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म्यांमारः जनरल ह्लाइंग जिन्होंने आंग सान सू ची को गिरफ़्तार कर हथियाई सत्ता
02-Feb-2021 11:34 AM
म्यांमारः जनरल ह्लाइंग जिन्होंने आंग सान सू ची को गिरफ़्तार कर हथियाई सत्ता

जनरल मिन आंग ह्लाइंग जिन्होंने म्यांमार में सैनिक शासन लागू किया

सैन्य तख़्तापलट के बाद सेना के जनरल मिन ऑन्ग ह्लाइंग म्यांमार में सबसे ताकतवर व्यक्ति बन चुके हैं. 64 वर्षीय ह्लाइंग इसी साल जुलाई के महीने में रिटायर होने वाले थे. लेकिन आपातकाल की घोषणा के साथ ही म्यांमार में ह्लाइंग की पकड़ काफ़ी मजबूत हो गई है.

लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए मिन ऑन्ग ह्लाइंग ने एक लंबा सफर तय किया है. सेना में प्रवेश के लिए दो असफल प्रयासों के बाद ह्लाइंग को तीसरी बार में नेशनल डिफेंस एकेडमी में प्रवेश मिला.

इसके बाद म्यांमार की ताकतवर सेना तत्मडा में जनरल के पद तक पहुंचने का सफर उन्होंने धीरे-धीरे तय किया है.

तख़्तापलट से पहले कितने मज़बूत थे ह्लाइंग?

म्यांमार में 1 फरवरी 2021 को हुए तख़्तापलट से पहले भी जनरल ह्लाइंग कमांडर इन चीफ़ के रूप में राजनीतिक रूप से काफ़ी प्रभावशाली थे. म्यांमार में लोकतांत्रिक व्यवस्था शुरू होने के बाद भी ह्लाइंग ने म्यांमार की सेना तत्मडा की ताकत को कम नहीं होने दिया. इसके लिए उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी निंदा का सामना करना पड़ा और संजातीय अल्पसंख्यकों पर सैन्य हमलों के लिए प्रतिबंधों का भी सामना करना पड़ा.

लेकिन अब जबकि म्यांमार उनके नेतृत्व में सैन्य शासन में प्रवेश कर रहा है तब जनरल ह्लाइंग अपनी ताकत बढ़ाने और म्यांमार का आगामी भविष्य तय करने की दिशा में काम करते दिख रहे हैं.

यंगून यूनिवर्सिटी में क़ानून के छात्र रहे ह्लाइंग को अपने तीसरे प्रयास में म्यांमार की रक्षा सेवा अकादमी में जगह मिली थी. इसके बाद उन्होंने पैदल सैनिक से लेकर जनरल तक का सफर तय किया. इस सफर में उन्हें लगातार पदोन्नति मिलती रही और साल 2009 में वह ब्यूरो ऑफ़ स्पेशल ऑपरेशन - 2 के कमांडर बने.

इस पद पर बने रहते हुए ह्लाइंग ने उत्तर पूर्वी म्यांमार में सैन्य अभियानों को संभाला जिसकी वजह से जातीय अल्पसंख्यक शरणार्थियों को चीनी सीमा से लेकर पूर्वी शान प्रांत और कोकांग क्षेत्र छोड़कर भागना पड़ा.

ह्लाइंग की टुकड़ियों पर हत्या, बलात्कार और आगजनी के तमाम आरोप लगे. लेकिन इसके बावजूद वह लगातार ऊपर बढ़ते गए और अगस्त 2010 में ज्वॉइंट चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ बने.

इसके कुछ महीनों बाद ही साल 2011 के मार्च महीने में ह्लाइंग ने कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को पछाड़ते हुए लंबे समय तक म्यांमार की सेना का नेतृत्व करने वाले सेनानायक थान श्वे की जगह ली.

ह्लाइंग के सेना नायक बनने पर ब्लॉगर और लेखक ह्लाऊ दावा करते हैं कि ह्लाइंग और वह एक दूसरे को बचपन से जानते हैं. उन्होंने ह्लाइंग को परिभाषित करते हुए कहा कि "ह्लाइंग बर्मा की बर्बर सेना के संघर्षों में तपे सैनिक" हैं. लेकिन उन्होंने ह्लाइंग को एक स्कॉलर और जेंटलमैन की उपाधि से भी परिभाषित किया.

राजनीतिक प्रभुत्व और नरसंहार
ह्लाइंग ने सेनाध्यक्ष के रूप में अपना कार्यकाल म्यांमार में लंबे समय तक रहे सैन्य शासन ख़त्म होने और लोकतंत्र के आगमन के साथ शुरू किया था. लेकिन इसके बाद भी वह तत्मडा की शक्ति बरकरार रखने के प्रति तत्पर रहे.

सेना के समर्थन वाले राजनीतिक दल यूनियन सॉलिडेरिटी एंड डेवलपमेंट पार्टी के सत्ता में आने के साथ ही ह्लाइंग के राजनीतिक प्रभुत्व और सोशल मीडिया पर उनकी उपस्थिति में भारी इज़ाफा हुआ.

लेकिन 2016 में संपन्न हुए अगले चुनाव में जब आंग सान सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी सत्ता में आई तब उन्होंने बदलाव को स्वीकार करते हुए सार्वजनिक कार्यक्रमों में आंग सान सू ची के साथ दिखना शुरू किया.

एनएलडी की ओर से संविधान परिवर्तन और सैन्य ताकत को सीमित करने के प्रयास किए गए.

लेकिन इन सभी प्रयासों को धता बताते हुए ह्लाइंग ने ये सुनिश्चित किया कि संसद में सेना के पास 25 फीसदी सीटें रहें और सुरक्षा से जुड़े सभी अहम पोर्टफोलियो सेना के पास रहें.

साल 2016 - 2017 में सेना ने उत्तरी रख़ाइन स्टेट में संजातीय अल्पसंख्यक समुदाय रोहिंग्या के ख़िलाफ़ आक्रामक कार्रवाई की जिसकी वजह से रोहिंग्या मुस्लिमों को म्यांमार छोड़कर भागना पड़ा.

इसके बाद ह्लाइंग को कथित 'नरसंहार' के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निंदा का सामना करना पड़ा.

अगस्त 2018 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने कहा कि "म्यांमार सेना के कमांडर इन चीफ़ मिन आंग ह्लाइंग समेत अन्य शीर्ष जनरलों के ख़िलाफ़ रख़ाइन प्रांत में नरसंहार और रख़ाइन, कचिन और शान प्रांत में 'मानवता के ख़िलाफ़ अपराध' और 'युद्ध अपराधों के लिए जांच होनी चाहिए और सजा मिलनी चाहिए."

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद के इस बयान के बाद फेसबुक ने उनका अकाउंट डिलीट कर दिया. इसके साथ ही उन सभी लोगों और संस्थाओं का भी अकाउंट डिलीट कर दिया गया जिनके बारे में कहा गया कि उन्होंने म्यांमार में मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन किया है या करने में एक भूमिका अदा की है.

अमरीका ने साल 2019 में उन पर दो बार नस्लीय सफाई (एथनिक क्लींज़िंग) और मानवाधिकार उल्लंघन में उनकी भूमिका के लिए प्रतिबंध लगाए हैं. साल 2020 जुलाई में ब्रिटेन ने भी उन पर प्रतिबंध लगाए हैं.

सत्ता पर कब्जा
साल 2020 के नवंबर महीने में संपन्न हुए आम चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी ने एकतरफ़ा जीत हासिल की.

लेकिन इसके बाद तत्मडा और सेना के समर्थन वाले दल यूएसडीपी ने बार बार चुनाव नतीजों को विवादित करार दिया. यूएसडीपी ने व्यापक चुनावी घोटाले का आरोप लगाया है. लेकिन चुनाव आयोग ने इन आरोपों का खंडन किया.

इसके बाद 1 फरवरी को नई सरकार को औपचारिक रूप से स्वीकार्यता मिलनी थी. लेकिन सरकार और सेना के बीच जारी विवाद की वजह से तख़्तापलट की आशंकाएं भी जताई जा रही थीं.

मिन आंग ह्लाइंग ने 27 जनवरी को 1962 और 1988 के तख़्तापलट का उदाहरण देते हुए चेतावनी दी कि "अगर संविधान का पालन नहीं करना है तो उसे ख़त्म कर देना चाहिए"

हालांकि, 30 जनवरी तक उनके दफ़्तर ने ह्लाइंग के बयान से पीछे हटते हुए कहा कि मीडिया ने संविधान ख़त्म करने की सैन्य अफसरों के बयान को तोड़ - मरोड़कर पेश किया है.

हालाकि, 1 फरवरी की सुबह तत्माडॉ ने स्टेट काउंसिलर आंग सान सू ची, राष्ट्रपति विन म्यिंट समेत कई नेताओं को हिरासत में लेकर साल भर के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी.

ह्लाइंग ने इसके बाद म्यांमार की सत्ता को अपने हाथ में लेकर चुनाव में कथित घोटाले के मुद्दे को प्राथमिकता पर रखा है.

ह्लाइंग के नेतृत्व में की गई नेशनल डिफेंस एवं सिक्योरिटी काउंसिल की बैठक में कहा गया है कि काउंसिल चुनाव में घोटाले के आरोपों की जांच करेगी और नए चुनाव कराएगी. इस तरह से एनएलडी की जीत को अवैध करार दिया गया है.

मिन आंग ह्लाइंग इस साल जुलाई महीने में कमांडर इन चीफ़ के पद से रिटायर होने वाले थे क्योंकि वह 65 वर्ष की आयु को पार कर चुके हैं. लेकिन उन्होंने अब स्वयं को एक और साल दे दिया है. लेकिन म्यांमार में सैनिक शासन लौटने की वजह से ह्लाइंग संभवत: लंबे समय के लिए पद पर बने रह सकते हैं. (bbc.com)

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