विचार / लेख
-संजय अलंग
आज जयंती पर याद
जगजीत सिंह के प्रसंग में एक रोचक स्मरण है। बात ग्वालियर की है। तब मैं वहाँ पदस्थ था। तब वहाँ जगजीत सिंह का एक कार्यक्रम के अनुक्रम में आना हुआ। उसके कुछ समय पूर्व, दीपावली के तत्काल उपराँत, ग्वालियर में वह एक दिवसीय अंतरराष्र्टीय क्रिकेट मैच हुआ था, जिसमें सचिन ने आस्ट्रेलिया के विरूद्ध शतक बनाया था और भारत विजयी रहा था। दोनों दल ग्वालियर आए हुए थे।
एक रात्रि होटल में पूल साईड डिनर का आयोजन था। इसमें दोनों दलों के साथ मात्र 4-5 परिवार ही थे। मेरा परिवार भी था। इस मौके पर मेरे दोनों चिरंजीव सर्वज्ञ और सौहार्द ने दोनों दलों के कोच और समस्त खिलाडिय़ों के आटोग्राफ, एक अटोग्राफ बुक में ले लिए। यह दुर्लभ संग्रह बन पड़ा। सचिन, कुम्बले, द्रविड़, बाडऱ्र, पोंटिंग आदि सभी।
इसके कुछ समय उपराँत जब जगजीत ग्वालियर आए, तब उनका सानिध्य भी रहा। सायं कार्यक्रम में जाते हुए मैंने उनकी सभी सीडी और कैसेट साथ रख लीं। जब वे आए, और स्टेज एवं व्यवस्था का पूर्व जायजा लेने के लिए स्टेज की ओर मुखातिब हुए, तभी उनकी नजर मुझ पर पड़ी और वह मुझसे बातें करने लगे तथा इसी अनुक्रम में मेरे कंधे पर हाथ रख मुझे ग्रीनरूम ले गए।
हम दोनों सोफे पर अगल-बगल बैठ गए। मैंने सभी सीडी और कैसेट तो टेबल पर रख दिए। बातों में वर्तमान कविता, गज़़ल, लेखक और साहित्य का विषय भी सम्मिलित था। बातों के दौरान ही बिना इस हेतु कुछ कहे, जगजीतजी ने सीडी और कैसेट के कव्हर खोले और मेरी जेब से मॉर्कर पेन निकालकर सभी कव्हर और सीडी पर हस्ताक्षर करने लगे। मेरी जेब में वह आटोग्राफ बुक भी थी, जिस पर सर्वज्ञ और सौहार्द्र ने, खिलाडिय़ों के हस्ताक्षर लिए थे। मैंने सहजता देख उस पर भी हस्ताक्षर करा लिए और उसे भी टी टेबल पर ही रख दिया, जो सभी चीजों के खुल जाने से अस्त-व्यस्त हो चली थी।
तभी किशोरियों के दल ने प्रवेश किया और सभी जगजीत पर झूम पड़े। फोटोग्राफ, आटोग्राफ आदि की व्यवस्था की सुचारूता के कारण मैं उनकी बगल से उठकर साइड के सोफे पर बैठ गया। किशोरियों ने जब विदा ली, तब मैं भी टेबल पर बिखरी सामग्री समेटने को उद्दत हुआ। तभी ज्ञात हुआ कि, वह आटोग्राफ बुक वहाँ नहीं है, जिस में अब जगजीत सहित खिलाडिय़ों के भी हस्ताक्षर थे। मैं तत्काल बाहर आया। दरवाजे के दहाने पर खड़ी किशोरियों से पूछा। सबने अनभिज्ञता बताई। आटोग्राफ बुक गुम चुकी थी।
वापस आकर जब यह बात सर्वज्ञ और सौहार्द को पता चली तो वे उदास हो गए।
अब इसे काफी अरसा बीत चुका है, पर पारिवारिक माहौल में जब उल्हाने की बारी आती है, तब बच्चे यह प्रसंग उठाते हैं।