विचार / लेख
-गिरीश मालवीय
अगर आप सोच रहे हैं कि जैसे आप सोशल मीडिया पर कोई पोस्ट अपने हाथ से करते हैं वैसे ही ये बड़े-बड़े सेलेब्रिटी अपने ट्वीट खुद अपने हाथ लिखते हंै और जो वो पोस्ट कर रहे हैं वही उनका पर्सनल ओपिनियन है ! तो माफ कीजिए आप बिल्कुल गलत सोच रहे हैं। चाहे वह रिहाना हो या ग्रेटा थुनबर्ग हो या कँगना राणावत हो या सचिन तेंदुलकर, यह लोग कुछ भी अपने आप से नहीं लिख रहे हैं। हर सेलेब्रिटी के हर ट्वीट के पीछे कोई न कोई एजेंसी जरूर काम करती है। और हर चीज का बाजार है। समर्थन का भी बाजार है तो विरोध का भी बाजार है, इस पूरे खेल को समझना-समझाना बहुत जरूरी है
डेढ़-दो साल पहले की घटना है। हमारे शहर इंदौर में एक ‘महाराज’ ने दोपहर में 2 बजे आत्महत्या की, संयोग से उस दिन कोई त्यौहार था। दोपहर तीन बजे उनके ट्विटर एकाउंट से एक ट्वीट हुआ और देशवासियों को त्योहार की बधाई दी गई। पुलिस ने पता किया कि आखिर यह ट्वीट किया किसने ? तो पता लगा कि उनका ट्विटर एकाउंट जो एजेंसी चला रही थी उसे पता ही नहीं था कि महाराज तो आत्महत्या कर चुके हैं। ‘महाराज’ जी के कोई 10- 15 लाख फॉलोअर नहीं थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने एक एजेंसी हायर कर रखी थी और आप आज भी यह सोचते हैं कि कँगना अपने ट्वीट अपने हाथ से लिख रही हंै या ग्रेटा थुनबर्ग को वाकई भारत के किसानों से हमदर्दी है इसलिए वह ऐसे ट्वीट कर रही हंै तो आपको एक बार दुबारा विचार करने की जरूरत है
बहुत बारीकी से रचा जाता है यह खेल!
रिहाना का नाम भी अब तक भारत में बहुत से लोगों ने नहीं सुना होगा! उसके पास यहाँ खोने के लिए कुछ भी नहीं है, और ग्रेटा थुनबर्ग जैसे लोग इस बात का बेहतरीन उदाहरण है कि कैसे किसी व्यक्ति को इस डिजिटल वल्र्ड में सेलेब्रिटी बनाया जाता है, ( इस बात का बहुत से मित्रों को बुरा लग सकता है लेकिन जो सच है वह सच है )
2018 में कोबरापोस्ट के रिपोर्टरों ने एक छद्म पीआर एजेंसी के प्रतिनिधि बनकर भारत के बड़े-बड़े फिल्मी सितारों से मुलाकात की थी। उन्हें बताया गया कि आपको अपने फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम अकाउंट के जरिये एक राजनीतिक पार्टी को प्रोमोट करना है ताकि आने वाले 2019 के चुनावों से पहले पार्टी के लिए माकूल माहौल तैयार हो सके। उनसे जो कहा गया था वह ध्यान से समझिए उनसे कहा गया था, ‘हम आपको हर महीने अलग-अलग मुद्दों पर कंटैंट देंगे, जिसे आप अपने शब्दों और शैली में लिखकर अपने फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम अकाउंट से पोस्ट करेंगे। आपके और हमारे बीच आठ-नौ महीने का एक दिखावटी करार होगा। यही नहीं जब पार्टी किसी मुद्दे पर घिर जाए तो आपको ऐसे मौकों पर पार्टी का बचाव भी करना होगा।’
इस स्टिंग में शामिल लगभग सभी अभिनेताओं-अभिनेत्रियों ने उस साल होने वाले लोकसभा चुनावों में किसी दल के लिए अनुकूल माहौल बनाने में पैसे के बदले अपने सोशल मीडिया अकाउंट का इस्तेमाल करने पर रजामंदी जाहिर की थी। इसमें सोनू सूद भी शामिल थे। सोनू सूद हर महीने 15 मैसेज के लिए 1.5 करोड़ की फीस पर तैयार नहीं थे। सूद एक दिन में पांच से सात मैसेज करने को तैयार थे लेकिन प्रति मैसेज वे 2.5 करोड़ रुपये की मांग कर रहे थे।
यह है इन तथाकथित सेलेब्रिटीज की सच्चाई और यह बात भी समझ लीजिए कि हर बात को सिर्फ पैसों से ही नहीं तौला जा सकता, बहुत से और अन्य फायदे होते हैं जो बहुत बाद में जाहिर होते या जाहिर नहीं भी होते।
एक बात पर गौर किया आपने ! किसानों का आंदोलन तो लगभग छह महीने से चल रहा है। 60-70 किसान अब तक शहीद हो चुके हैं, तो अचानक परसो ही ऐसा क्या हो गया जो अचानक दुनिया की बड़ी-बड़ी सेलेब्रिटीज का ध्यान उनकी तरफ आकृष्ट हो गया, दो दिन से ऐसे ट्वीट पर ट्वीट आ रहे हैं जैसे कोई ट्रिगर दब गया है। क्या यह अनयुजुअल नहीं लगता आपको ?
यह ट्वीट पर ट्वीट करना और उन ट्वीट की खबरें मीडिया में छाई रहना, सरकार द्वारा उन ट्वीट का संज्ञान लेना, उस पर हमारे द्वारा सोशल मीडिया में प्रतिक्रिया व्यक्त करना, यह सब एक तरह का स्यूडो वातावरण है, ताकि विरोध की तीव्रता को एक निश्चित दायरे में समेटा जा सके। इसमें सबसे अधिक भूमिका मीडिया की है इंटरनेट की ताकत को नेताओं, विचारधाराओं और संगठनों ने अब अच्छे से पहचान लिया है। और ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम का भी आधिपत्य एक तरह की मीडिया कम्पनियों के ही पास में है।
आज पाठक या दर्शक ही मीडिया का प्रोडक्ट हो चुका है। जाहिर-सी बात है कि हर प्रोडक्ट को एक बाजार की जरूरत होती है। नोम चोमस्की जैसे लोग शुरू से समझाते आए हैं कि डिजिटल वल्र्ड में सोशल मीडिया का स्वामित्व पूरी तरह से कॉरपोरेट के हाथों में है और ज्यादा उत्साहित होने का कोई कारण नहीं है।
इस वक्त चल रही ट्विटर वार सिर्फ मुद्दों को उलझाकर प्रेशर रिलीज के ही काम आएगी, इस बात को आप जितना जल्दी समझ लें उतना अच्छा है।