सामान्य ज्ञान
हिन्दू ग्रंथों में यक्ष का जिक्र कई स्थानों पर मिलता है। यक्षों एक प्रकार के पौराणिक चरित्र हैं। यक्षों को राक्षसों के निकट माना जाता है, यद्यपि वे मनुष्यों के विरोधी नहीं होते, जैसे राक्षस होते हंै। माना जाता है कि प्रारम्भ में दो प्रकार के राक्षस होते थे; एक जो रक्षा करते थे वे यक्ष कहलाए तथा दूसरे यज्ञों में बाधा उपस्थित करने वाले राक्षस कहलाये।
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है जादू की शक्ति । हिन्दू धर्मग्रन्थों में एक अच्छे यक्ष का उदाहरण मिलता है जिसे कुबेर कहते हैं तथा जो धन-सम्पदा में अतुलनीय थे। एक अन्य यक्ष का प्रसंग महाभारत में भी मिलता है। जब पाण्डव दूसरे वनवास के समय वन-वन भटक रहे थे तब एक यक्ष से उनकी भेंट हुई जिसने युधिष्ठिर से विख्यात यक्ष प्रश्न किए थे।
महाभारत की कथा के अनुसार पाण्डवों से पांच प्रश्न पूछने वाला यक्ष वास्तव में यम था, जिसने पाण्डवों को अपने प्रश्नों के उत्तर देने से पहले पानी पीने से मना किया था। युधिष्टिर से पूछा गया यक्ष का सवाल और युधिष्टिर का जवाब भारतीय दर्शन की झलक दिखलाते हैं।
अज्ञातवास के दौरान प्यास से तरसते पाण्डव एक के बाद एक , एक सरोवर से पानी पीने जाते हैं। वहां एक यक्ष उन्हें रोक कर कहता है कि अगर उसके सवाल का जवाब दिए बिना किसी ने पानी पिया तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जाएगी। अर्जुन भीम, नकुल और सहदेव उसकी बात अनसुनी कर देते हैं और पानी पीते ही मृत होकर सरोवर के किनारे गिर पड़ते हैं। अंत में भाइयों को खोजते युधिष्टिर सरोवर के किनारे पहुंचते हैं और यक्ष की बात सुन कर उसके सवाल का जवाब देने के लिए तैयार हो जाते हैं। यक्ष उनसे पूछता है कि इस दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? युधिष्टिर जवाब देते हैं- इस दुनिया में नित्य लोगों को मरते देखते हुए भी मनुष्य यह सोच कर जीता है कि वह कभी मरने वाला नहीं, इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है। यक्ष युधिष्ठिïर के उत्तर से प्रसन्न होकर उनके सभी भाइयों को जीवनदान देते हैं।