सामान्य ज्ञान
थारु भारत की जनजातियों में से एक प्रमुख जनजाति है। इसका विस्तार उत्तर भारत के तराई क्षेत्रों उत्तराखंड राज्य के जनपद उधमसिंह नगर से लेकर उत्तर प्रदेश के पीलीभीत, लखीमपुर, खीरी, गोण्डा, बहराइच, गोरखपुर, बलरामपुर, श्रावस्ती, सिद्धार्थ नगर, महाराजगंज व बिहार राज्य के पश्चिमी चम्पारण जिलों तक है। थारुओं के इस संपूर्ण क्षेत्र को ‘थारुआर’ नाम से जाना जाता है। यह संपूर्ण थारुआर क्षेत्र दलदली हो जो कि लगभग 15 हजार 500 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है जिसकी लम्बाई लगभग 600 किमी चौड़ाई लगभग 30 किमी तक है।
इस क्षेत्र में वर्षा अधिक होने के कारण यहां की भूमि दलदली है जिसके कारण यहां घास और झाडिय़ां बहुतायत में पाई जाती हैं जो कि पशुओं को चारे के रूप में प्रयोग में आती हैं। यहां चीड़, बेंत, मूंज आदि भी प्रचुर मात्रा में पाई जाते हैं। वर्षा अधिक होने और दलदली क्षेत्र होने के कारण यहां मच्छरों की अधिकता है तथा वातावरण अस्वास्थ्यकर है जिसके चलते इन क्षेत्रों को मृत्यु का देश भी कहते हैं।
थारुओं की उत्पत्ति के सम्बन्ध में माना जाता है कि ये वास्तव में राजपूतों के वंशज हैं इनका मूल निवास स्थान चित्तौड़ है और चित्तौड़ पर जब मुसलमानों का आक्रमण हुआ तो राजपूतों ने अपने घर की महिलाओं को अपने नौकरों के साथ तराई के सुरक्षित जंगलों में भेज दिया। कालान्तर में इन स्त्रियों का सम्बन्ध इन्हीं नौकर पुरुषों के साथ हुआ। यह सम्बन्ध एक सन्धि के रुप में अस्तित्व में आया जो कि ‘नून लोटा’ सन्धि के रुप में जाना जाता है। इस सन्धि के अन्तर्गत लोटे में नून (नमक) मिला पानी डालकर उसकी साक्षी में राजपूत महिलाओं और उनके नौकरों के युगलों ने एक-दूसरे के हो जाने की सौगन्ध खाई, किन्तु राजपूत महिलाओं ने एक शर्त रखी कि यदि उन स्त्रियों के आदमी कभी वापस लौट आएं तो यह समझौता तत्काल समाप्त हो जाएगा। इस प्रकार इस सन्धि से एक नया सम्बन्ध बना और एक नई पीढ़ी की शुरुआत हुई। चूंकि ये राजस्थान के थार क्षेत्र के निवासी थे अत: ये थारु कहलाए ।