सामान्य ज्ञान
एल्ब्रूस पर्वत एक सुप्त ज्वालामुखी है जो कॉकस क्षेत्र की कॉकस पर्वत शृंखला में स्थित है। इसके दो शिखर हैं - पश्चिमी शिखर 5 हजार 642 मीटर ऊंचा है, और पूर्वी शिखर उस से जऱा कम 5 हजार 621 मीटर ऊंचा है। यूरोप और एशिया की सीमा कॉकस के इलाक़े से गुजऱती है और इस बात पर विवाद है के एल्ब्रूस पर्वत यूरोप में है या एशिया में। अगर इसको यूरोप में माना जाए, तो यह यूरोप का सबसे ऊंचा पर्वत है। एल्ब्रूस पर्वत रूस के काराचाए-चरकस्सिया क्षेत्र में स्थित है, और जॉर्जिया की सीमा के काफ़ी नज़दीक है।
एल्ब्रूस पर्वत का नाम इसके प्राचीन नाम अल बुजऱ् से बना है। ईरान की अवस्ताई भाषा की ऐतिहासिक कथाओं में एक हरा बरज़ाइती नाम का काल्पनिक पर्वत हुआ करता था और माना जाता था कि इसके इर्द-गिर्द ब्रह्माण्ड के सारे तारे और ग्रह परिक्रमा करते हैं। कुछ ईरानी विद्वानों का कहना है के शायद यही अल बुजऱ् के नाम की प्रेरणा हो। बरज़ाइती शब्द प्राचीन अवस्ताई के बरज़न्त शब्द का एक स्त्रीलिंग रूप है, जिसका अर्थ है ऊंचा । आधुनिक फ़ारसी में बरज़न्त बदल कर बुलन्द हो गया है, जो कि हिन्दी में भी प्रयोग होता है।
भारतीय ग्रंथों में गुप्तचर
गुप्त रूप से राजनीतिक या अन्य प्रकार की सूचना देने वाले व्यक्ति को गुप्तचर या जासूस कहते हैं। गुप्तचर अति प्राचीन काल से ही शासन की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता माना जाता रहा है। भारतवर्ष में गुप्तचरों का उल्लेख मनुस्मृति और कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में गुप्तचरों के उपयोग और उनकी श्रेणियों का विशद वर्णन किया है। राज्याधिपति को राज्य के अधिकारियों और जनता की गतिविधियों एवं समीपवर्ती शासकों की नीतियों के संबंध में सूचनाएं देने का महत्वपूर्ण कार्य उनके गुप्तचरों द्वारा संपन्न होता था। रामायण में वर्णित दुर्मुख ऐसा ही एक गुप्तचर था जिसने लंका प्रवास के बाद श्री रामचंद्र को सीता के विषय में जानकारी दी थी।
अर्थशास्त्र में उल्लेख है कि राजा के पास विश्वासपात्र गुप्तचरों का समुदाय होना चाहिए और इन गुप्तचरों को योग्य एवं विश्वस्त मंत्रियों के निर्देशन में काम करना चाहिए। अर्थशास्त्र में समष्ट एवं संचार नामक दो प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख मिलता है। समष्ट कोटि के गुप्तचर स्थानीय सूचनाएं देते थे और संचार कोटि के गुपतचर विभिन्न स्थानों का परिभ्रमण करके सूचनाएं एकत्र करते थे। समष्ट कोटि के गुप्तचरों के अनेक प्रकार होते थे, यथा कापातिक, उष्ठित, गृहपतिक, वैदाहक तथा तापस। संचार नामक गुप्तचर में सत्रितिक्ष्ण, राशद एवं स्त्री गुप्तचर जैसे भिक्षुकी, परिव्राजिका, मुंड, विशाली भी होती थीं। चंद्रगुप्त मौर्य के युग में सुदूर स्थित अधिकारियों पर नियंत्रण करने के लिये गुप्त संवाददाता एवं भ्रमणशील निर्णायकों का उपयोग किया जाता था। ये संवाददाता अथवा निर्णायक उन अधिकारियों के कार्यकलापों का निरीक्षण एवं मूल्यांकन करते थे और राजा को इस संबंध में गुप्त रूप से सूचनाएं भेजते थे। हिंदूकाल में इस प्रकार के गुप्तचरों का वर्ग अशोक के काल तक सुचारु रूप से कार्य करता रहा। उसके बाद भी शासन में गुप्तचरों का महत्व बना रहा। इन गुप्तचरों का पद राज्य के अत्यंत विश्वासपात्र व्यक्तियों को ही दिया जाता था। गुप्तचरों का उपयोग संगठित रूप से और विस्तृत पैमाने पर मुस्लिम और मुगलकाल में नहीं हुआ। वर्तमान समय में राजनीतिक प्रयोजनों के निमित्त देश के भीतर और बाहर गुप्तचरों का प्रयोग एक सर्वमान्य राजनीतिक धारणा है।