ताजा खबर

मिजोरम में शराबबंदी के बावजूद बढ़ रहा है शराब और नशीली दवाओं का सेवन
25-Feb-2021 6:58 PM
मिजोरम में शराबबंदी के बावजूद बढ़ रहा है शराब और नशीली दवाओं का सेवन

शराबबंदी लागू होने के बावजूद राज्य में हर तीन घंटे पर शराब या नशीली दवाओं के सेवन का एक मामला दर्ज होता है. एक ताजा अध्ययन में यह बात सामने आई है.

डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-

पूर्वोत्तर राज्य मिजोरम लंबे अरसे तक ड्राई स्टेट था यानी वहां पूरी तरह शराबबंदी लागू थी. 2015 में यह खत्म कर दी गई. लेकिन 2019 में इसे दोबारा लागू कर दिया गया. इसके बावजूद पड़ोसी राज्यों और पड़ोसी देश म्यांमार से यहां में शराब और नशीली वस्तुएं आ रही हैं. शराब और नशीली दवाओं के सेवन के बढ़ते मामलों का अध्ययन करने वाले गैर-सरकारी संगठन ड्रग्स एडिक्शन एंड एड्स रेसिस्टेंस सोसायटी के प्रमुख डेविड लालरेमरुआता कहते हैं, "2009 से 2019 तक राज्य पुलिस और एक्साइज व नारकोटिक्स विभाग (ईएनडी) ने शराब पीने के 26 हजार से ज्यादा मामले दर्ज किए थे. इसी तरह नशीली दवाओं के सेवन के सात हजार से मामले दर्ज किए गए थे."

इस अध्ययन में 2009 से 2019 यानी जिन 11 वर्षों के आंकड़े जुटाए गए हैं उनमें से सात साल राज्य में शराबबंदी लागू थी. नशे के आदी लोगों के इलाज का काम करने वाले डॉक्टर चांगलुंगमुआना बताते हैं, "बीते साल हुए लॉकडाउन ने इस समस्या से निपटने में सरकारी संसाधनों की कमी को उजागर कर दिया." शराबबंदी के बावजूद राज्य में शराब और नशीली दवाओं के सेवन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. एक्साइज एंड नारकोटिक्स विभाग के कमिश्नर गुरुचुंगनुंगा साइलो कहते हैं, "विभाग के पास संसाधनों का भारी अभाव है. राज्य के 11 जिलों में कुल मिला कर करीब तीन सौ कर्मचारी हैं. ऐसे में तमाम जगहों पर निगाह रखना या छापेमारी अभियान चलाना संभव नहीं है."

राज्य के सरकारी वकील लालरेमथांगी बताते हैं, "राजधानी आइजल की विशेष अदालत में नशीली दवाओं के सेवन के सात सौ से ज्यादा मामले लंबित हैं. इसी तरह चंफई, लुंगलेईस कोलासिब और सियाहा जैसे प्रमुख शहरों की विशेष अदालतों में भी ऐसे काफी मामलों की सुनवाई चल रही है." सामाजिक कार्यकर्ता डीके लागिन्लोवा बताते हैं, "राज्य में तमाम राजनीतिक दलों और चर्चों ने शराब के प्रति तो सख्त रवैया अपनाया है लेकिन सीमा पार से नशीली वस्तुओं की तस्करी रोकने के मामले में उनका रवैया उदासीन है. यही वजह है कि शराबबंदी के बावजूद सीमा पार से तस्करी से आने वाली शराब और नशीली वस्तुओं का सेवन तेजी से बढ़ रहा है."

चर्चका कड़ाविरोध 
मिजोरम में 1997 से 2015 तक पूर्ण शराबबंदी लागू थी. फिर राज्य में ललथनहवला के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने शराब की बढ़ती तस्करी, मिलावटी शराब की बढ़ती बिक्री और राजस्व को होने वाले नुकसान का हवाला देकर 2015 में शराबबंदी खत्म कर दी थी. लेकिन तीन साल बाद नवंबर 2018 के विधानसभा चुनावों में यही सबसे बड़ा मुद्दा बना था. विपक्षी मिजो नेशल फ्रंट (एमएनएफ) ने सत्ता में आने पर दोबारा शराबबंदी लागू करने का वादा किया था.

तत्कालीन मुख्यमंत्री ललथनहवला ने शराबबंदी खत्म करने के अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि शराब की बिक्री और पीने पर लगे प्रतिबंध ने शराबमुक्त समाज बनाने में मदद नहीं की. इसने उल्टे कालाबाजारी को बढ़ाने का काम किया था. उनका कहना था, "राज्य में शराबबंदी के बावजूद लोगों में शराब का सेवन पूरी तरह बंद नहीं हुआ था. पड़ोसी असम से चोरी-छिपे शराब यहां पहुंचती थी. नतीजतन राजस्व का भारी नुकसान होता था. इसके अलावा लोग अपनी लत पूरी करने के लिए जहां-तहां चोरी-छिपे बनने वाली मिलावटी शराब पी लेते थे. इससे होने वाली बीमारियां भी लगातार बढ़ रही थीं."

शराब की हर घूंट शरीर पर कैसा असर डालती है
चर्च ने उस समय सरकार के इस फैसले का कड़ा विरोध किया था. राज्य में शराबबंदी के कट्टर समर्थक फादर चुआथुआमा का कहना था, "नया कानून चर्च की ओर से बनाए गए नियमों के खिलाफ है." उनका दावा था कि शराबबंदी लागू होने से पहले मिजोरम में शराब अभिशाप बन गई थी. इसकी वजह से सैकड़ों परिवार टूट गए और बर्बाद हो गए थे."

राजधानी आइजोल में 250 से ज्यादा चर्च हैं. यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है. राज्य के सामाजिक और राजनीतिक हल्के में चर्च का इतना ज्यादा असर भारत के किसी भी कोने में देखने को नहीं मिलता. राज्य में चुनावी आचार संहिता भी चर्च के फैसलों से तय होती है और शादी-ब्याह जैसे पारंपरिक उत्सवों पर होने वाले खर्च भी. शराबबंदी खत्म करने के फैसले पर चर्च संगठनों की नाराजगी को ध्यान में रखते हुए विपक्षी एमएनएफ ने सत्ता में आने पर शराबबंदी दोबारा लागू करने का वादा किया था.

इसी वजह से 40 सदस्यों वाली विधानसभा में उसे 26 सीटें मिल गईं. शराबबंदी लागू करते समय मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने दलील दी थी कि बीते दो-तीन बरसों में पांच सौ से ज्यादा पुलिस वालों ने शराब के चलते अपनी जान गंवाई है. शराब के चलते ही राज्य में करीब सात हजार मौतें हो चुकी हैं जो मिजोरम जैसे छोटे राज्य को देखते हुए बहुत ज्यादा है. इन सबकी वजह पाबंदी हटने के बाद सरकारी दुकानों में मिलने वाली खराब क्वॉलिटी की शराब है.

गैर-सरकारीसंगठनोंका साथजरूरी
एमएनएफ के नेता और आबकारी व नारकोटिक्स मंत्री डॉ. केके बिछुआ ने शराबबंदी विधेयक पेश करते हुए कहा था कि राज्य सरकार ने आम लोगों के स्वास्थ्य तथा कानून को सही ढंग से लागू कराने के उद्देश्य से शराब के निर्माण, आयात, बिक्री और खपत पर रोक लगाने का फैसला किया है. बिछुआ कहते हैं, "राज्य में शराबबंदी खत्म होने के बाद तीन साल के भीतर इसके सेवन और सड़क हादसों में सैकड़ों युवाओं की मौत हो गई है."

राजनीतिक विश्लेषक 2018 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की पराजय के लिए शराबबंदी खत्म करने के उसके फैसले को जिम्मेदार ठहराते हैं. एक राजनीतिक विश्लेषक व लेखक आरएल साइलो कहते हैं,  "आम लोग और चर्च संगठन शराबबंदी खत्म करने के खिलाफ थे. लेकिन कांग्रेस सरकार ने उनके विरोध को तवज्जो नहीं दी थी. उसने उल्टे दलील दी थी कि इससे राजस्व बढ़ेगा और म्यांमार व दूसरे पूर्वोत्तर राज्यों से नकली शराब तस्करी पर अंकुश लगाया जा सकेगा."

मिजोरम सोशल डिफेंस एंड सोशल रिहैबिटिलेशन बोर्ड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी लालूपुई साइलो कहती हैं, "मिजोरम में पड़ोसी राज्यों और अंतरराष्ट्रीय सीमा के दूसरी ओर से नशीली वस्तुएं और शराब पहुंचती हैं. इस सामाजिक बुराई पर अंकुश लगाने के लिए एक साथ कई मोर्चे पर काम करना होगा. इसके लिए गैर-सरकारी संगठनों को भी साथ लेना जरूरी है." उनका कहना है कि नशीली दवाओं की सप्लाई करने वाले लोग भी खुद नशे के आदी हैं. ऐसे लोगों को गिरफ्तार करने के बाद उनका समुचित इलाज जरूरी है ताकि जेल से बाहर निकलने के बाद वे दोबारा इस धंधे से नहीं जुड़ सकें.
-------

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news