संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बच्चों को गुलाम बनाए लाल कालीन पर चलता एक निर्वाचित तानाशाह
27-Feb-2021 5:43 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : बच्चों को गुलाम बनाए लाल कालीन पर चलता एक निर्वाचित तानाशाह

पहली नजर में तस्वीर पर भरोसा नहीं हुआ। और यह वक्त ऐसा चल रहा है जिसमें तस्वीरें गढऩा बड़ा आसान है। इसलिए जब तक खासी तलाश करके सच्चाई तय न हो जाए तब तक अधिक चौंकाने वाली बातों को शक की नजर से देखना ही बेहतर और महफूज होता है। अभी एक राज्य के मुख्यमंत्री की ऐसी तस्वीर सोशल मीडिया पर आई जिसमें वे अफसरों से घिरे हुए लाल कालीन पर चल रहे हैं, और दोनों तरफ स्कूली बच्चे जमीन पर उकड़ू बैठे झुककर सिर जमीन में धंसाए हुए हैं, उनकी आंखें मुख्यमंत्री को देखने के बजाय अपने आपको देख रही हैं। यह तस्वीर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह की है और उनके फेसबुक पेज पर भी ढेर से लोगों ने इस आलोचना के साथ इसे पोस्ट किया है कि मणिपुर को तानाशाह उत्तर कोरिया बना डाला है जहां गुलामों की तरह बच्चों को इस तरह जमीन में सिर धंसाकर बैठाया गया है। 

लेकिन 21वीं सदी की इस तस्वीर को लेकर देश के एक मुख्यमंत्री को कोसना इसलिए ठीक नहीं है कि अपने-अपने वक्त पर सिंहासन के नशे में चूर बहुत से नेता इस किस्म की बहुत सी अलग-अलग हरकतें करते हैं। हिन्दुस्तान में यह एक आम बात है कि मुख्यमंत्री तो दूर, मंत्रियों के इंतजार में भी स्कूली बच्चों को कडक़ती ठंड या चिलचिलाती धूप में घंटों खड़ा कर दिया जाता है। हिन्दुस्तान के कागजों शेरों, मानवाधिकार आयोगों और बाल कल्याण परिषदों में ऐसे रिवाज के खिलाफ कई बार हवा में हुक्म दनदनाए हैं जो कागज के रॉकेट से भी कम नुकसान कर पाए हैं। सत्ता की बददिमागी ऐसे कागजी हुक्मों को अपनी कचरे की टोकरी में भी नहीं डालती कि कहीं इस पर गिरकर उनके थूक की बेइज्जती न हो जाए। 

सत्ता की बददिमागी जब हैवानियत की हद तक पहुंच जाती है तो लोगों को हिन्दुस्तान जैसे लोकतंत्र में अदालत जाकर इसके खिलाफ हुक्म पाने की कोशिश करनी चाहिए।  सत्ता एक किस्म से शर्मप्रूफ हो चुकी है, बाजार की धूर्त कानूनी जुबान का इस्तेमाल करें तो सत्ता पहले तो शर्मरेजिस्टेंट थी, अब वह शर्मप्रूफ हो गई है। किसी किस्म की आलोचना लोगों को छू भी नहीं पाती, और जैसा कि बाजार कई सामानों के बारे में कहता है, सत्ता पर बैठे लोगों की शर्म पर  अब मानो टैफलॉन कोटिंग हो गई है, और उसे कुछ भी छू नहीं सकता। लोकतंत्र गौरवशाली परंपराओं के आगे बढऩे और बढ़ाने के हिसाब से बनाया गया तंत्र है, हिन्दुस्तान में यह नीचता और कलंकित कामों की परंपराओं को, उनकी मिसालों को आगे बढ़ाने, उन्हें मजबूत करने के हिसाब से ढल चुका है। अब यहां शर्म और झिझक लोहे के चक्कों वाली बैलगाडिय़ों की तरह इस्तेमाल से बाहर हो चुकी हैं, और एक राज्य का मुख्यमंत्री बच्चों के गुलाम सरीखे इस्तेमाल को अपने राज्य की गौरवशाली परंपरा करार देते हुए उसे देखकर अपना सीना गर्व से तन जाने की बात लिखता है। वो वक्त अब हवा हुआ जब देश का प्रधानमंत्री बच्चों को गोद में लेकर गर्व हासिल करता था, और उन्हें देश की तकदीर करार देता था। 

हिन्दुस्तान अब लगातार, और तेज रफ्तार से बेशर्म होती जा रही राजनीतिक संस्कृति का लोकतंत्र हो गया है। तंत्र इतना बेशर्म हो गया है कि वह लोक को गुलामों सरीखे जमीन पर बिछाकर गौरवान्वित होता है। क्या सत्ता हर कहीं ऐसी ही संवेदनाशून्य हो जाती है? मणिपुर के कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर इस तस्वीर के साथ लिखा है कि अगर उन्हें ऐसे रिवाज पसंद हैं तो उन्हें थाईलैंड चले जाना चाहिए और वहां का राजा होना चाहिए जिससे मिलने के लिए लोगों को जमीन पर घिसटते हुए चलना पड़ता है। तेरह हजार से अधिक लोगों ने कड़ी आलोचना पोस्ट की है। लोगों को अभी कुछ बरस पहले के अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की वे तस्वीरें याद पड़ती हैं जिनमें वे राष्ट्रपति भवन पहुंचे हुए कुछ आम अमरीकी बच्चों में से जिद करते हुए फर्श पर लेट गए बच्चों के साथ फर्श पर लेटकर उन्हें खुश करने की कोशिश कर रहे हैं। लोगों को ओबामा की वे तस्वीरें भी याद पड़ती हैं जिनमें वे राष्ट्रपति भवन के गलियारों से गुजरते हुए वहां सफाई कर रहे कर्मचारियों की पीठ पर धौल जमाते हुए उनसे मजाक करते हुए, उनका हाल पूछते हुए निकल रहे हैं। दुनिया में जगह-जगह इंसानी कही जाने वाली खूबियों वाले ऐसे नेता भी होते हैं, और दूसरी तरफ ऐसे नेता भी होते हैं जो सिंहासन पर बैठते हैं तो उनका अंदाज हिंसासन पर बैठे सरीखा लगता है। उनकी बददिमागी उस ऊंचाई पर चलती है जिस ऊंचाई पर उनका पांच बरस का हेलीकॉप्टर भी नहीं पहुंच पाता। 

यह सिलसिला हिन्दुस्तान की राजनीति, और हिन्दुस्तान के चुनावों के लिए जितना खराब है, उससे कहीं अधिक खराब उन बच्चों के लिए है जो राह चलते सत्ता की ऐसी हिंसा और बददिमागी देखते हैं, अलोकतांत्रिक मिजाज देखते हैं। बच्चों की यह नई पीढ़ी जिस तरह के राजनीतिक कुकर्म और राजनीतिक तानाशाही को देखते हुए बड़ी हो रही है, जिस तरह की हिंसक और अनैतिक बातों को सुनते हुए बड़ी हो रही है, यह सब कुछ इस पीढ़ी के साथ एक बड़ी मानसिक हिंसा है, लेकिन इसे कौन देखे? इसे देखने का जिम्मा जिन जजों पर हो सकता है, वे तो राज्यसभा के राजपथ पर चलने की इस शर्त पर पहले ही दस्तखत कर चुके हैं कि वे सत्ता की तरफ से आंखों पर पट्टी बांधे रखेंगे। इस देश का लोकतंत्र सत्ता और अदालत के सुधारे नहीं सुधरने वाला, इसके लिए जनता के बीच से मजबूत आंदोलन चलाकर जनमत पैदा करने की जरूरत है। जब सोशल मीडिया पर करोड़ों लोग एक साथ धिक्कारेंगे, तो हो सकता है कि बेशर्मी की चट्टान पर खरोंच तो आ ही जाए। फिलहाल तो गुलाम बनाए हुए बच्चों के बीच लाल कालीन पर चलते हुए निर्वाचित तानाशाह की ओर से कोई अफसोस भी अब तक सामने नहीं आया है। 

(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news