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चीन 'देशभक्तों' के हाथ में सौंपेगा हांगकांग का शासन
05-Mar-2021 7:33 PM
चीन 'देशभक्तों' के हाथ में सौंपेगा हांगकांग का शासन

चीन ने अपनी संसद की सालाना बैठक में अंतरराष्ट्रीय जगत को चेतावनी दी है कि वो हांगकांग में दख़लंदाज़ी नहीं दें.

चीन के प्रधानमंत्री ली केचियांग ने नेशनल पीपल्स कांग्रेस (एनपीसी) से कहा कि चीन ऐसी किसी भी कोशिश का कड़ाई से बचाव करेगा.

चीन ने अपने देश की इस सबसे बड़ी राजनीतिक बैठक में घोषणा की कि हांगकांग की चुनाव व्यवस्था में व्यापक बदलाव किए जाएँगे ताकि हांगकांग का भार "देशभक्त" लोगों को दिया जा सके.

समझा जा रहा है कि ये एक संकेत है कि सरकार अब वहाँ किसी भी क़िस्म के असंतोष को बर्दाश्त नहीं करेगी.

इस बारे में लिए गए फ़ैसले के एक मसौदे पर संसद की बैठक में चर्चा होगी, जो एक सप्ताह तक चलनी है.

बीजिंग में इस बैठक के लिए कम्युनिस्ट पार्टी के हज़ारों प्रतिनिधि जुटे हैं.

माना जा रहा है कि इस बैठक में हांगकांग के अलावा आर्थिक वृद्धि और पर्यावरण को लेकर सरकार की नीतियों पर भी चर्चा होगी.

हांगकांग के बारे में क्या बदलाव होने हैं?
एनपीसी के उपाध्यक्ष वांग चेन ने शुक्रवार को कहा कि हांगकांग का संविधान समझे जाने वाले हांगकांग के बेसिक लॉ दस्तावेज़ में कई बदलाव करने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा कि हांगकांग की चुनाव व्यवस्था में अभी कुछ ऐसी कमियाँ हैं, जिसकी वजह से विपक्षी कार्यकर्ता हांगकांग की आज़ादी की माँग उठा देते हैं.

उन्होंने कहा कि इन ख़तरों को दूर किए जाने की ज़रूरत है, ताकि "हांगकांग के चरित्र के हिसाब से एक लोकतांत्रिक चुनाव व्यवस्था तैयार की जा सके."

ये क़दम चीन में एक नए राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून को लागू किए जाने के बाद उठाया गया है, जिसके बारे में आलोचकों का कहना है कि इसके सहारे हांगकांग में असंतोष को दबाने की कोशिश की जा रही है.

इस क़ानून के तहत अब तक कई गिरफ़्तारियाँ हुई हैं. पिछले सप्ताह 47 लोकतंत्र-समर्थक कार्यकर्ताओं पर देशविरोधी काम करने का आरोप लगा दिया गया.

ब्रिटेन का उपनिवेश रहा हांगकांग अब चीन का एक हिस्सा है, जहाँ का शासन एक देश, दो व्यवस्थाओं की नीति के तहत चलता है, यानी उसकी अपनी क़ानून व्यवस्था है और अभिव्यक्ति और प्रेस से जुड़े अपने अलग क़ानून हैं.

लेकिन हांगकांग के कई अधिकार संगठनों ने चीन पर आरोप लगाया है कि वो हाल के वर्षों में वहाँ मिली स्वतंत्रता और स्वायत्तता को नुक़सान पहुँचा रहा है. 2019 में वहाँ बड़े पैमाने पर हिंसक संघर्ष भी हुए थे.

चीनी संसद की बैठक से पहले ही हांगकांग और चीन के कई अधिकारियों ने हांगकांग का शासन "देशभक्तों" के हाथ में देने की बात उठाई थी.

हांगकांग में पिछले साल सभी लोकतंत्र समर्थक विधायकों ने त्यागपत्र दे दिया था, जिसके बाद से वहाँ विपक्ष लगभग ख़त्म हो गया है.

जबकि हाल तक हांगकांग में विपक्ष का एक तबक़ा था, जो स्थानीय चुनावों में कामयाबी हासिल करता रहा था.

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर में राजनीति शास्त्र के अध्यापक प्रोफ़ेसर इयन चॉन्ग ने कहा, "2019 में लोकतंत्र-समर्थकों ने अच्छा काम किया, जिससे कम्युनिस्ट पार्टी चिंता में पड़ गई कि उनकी बताई नकारात्मक बातों का असर नहीं हो रहा है."

उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कम्युनिस्ट पार्टी उन आवाज़ों को दूर करना चाहती है, जिसे वो नहीं सुनना चाहती."

एनपीसी क्या है?
नेशनल पीपल्स कांग्रेस चीन की सबसे शक्तिशाली संस्था है, जिसे चीन की संसद समझा जाता है.

लेकिन वास्तविकता में ये एक रबर स्टांप लगाने वाली संसद है, जिसका काम केवल केंद्र सरकार की पहले से तय नीतियों और योजनाओं पर मुहर लगाना होता है.

इसकी बैठक हर साल मार्च में होती है, जिसमें देश भर से लगभग 3,000 प्रतिनिधि जमा होते हैं.

ये चीन के अलग-अलग प्रांतों, स्वायत्त क्षेत्रों और हांगकांग तथा मकाउ के विशेष प्रशासनिक क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं.

एनपीसी की बैठक के साथ ही चीन में पीपल्स कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस (सीपीसीसी) की भी बैठक होती है, जो देश की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक सलाहकार संस्था है.

सीपीसीसी की बैठक गुरूवार को ही शुरू हो गई है.

कांग्रेस में आगे क्या हो सकता है?
चीनी कांग्रेस की बैठक में अगली पंचवर्षीय योजना को भी मंज़ूरी दी जाएगी, जिसकी घोषणा पिछले साल हुई थी.

ये चीन की 14वीं पंचवर्षीय योजना है. वहाँ 1953 से ऐसी योजनाओं का की घोषणाएं होती रही हैं.

चीन दुनिया की अकेली बड़ी अर्थव्यवस्था है, जो इस तरह की पंचवर्षीय योजनाओं का ऐलान करता है.

बैठक में चीन के "डुएल सर्कुलेशन मॉडल" की भी चर्चा हो सकती है, जिसके तहत चीन विदेशी बाज़ारों में निर्यात के साथ-साथ घरेलू उपभोग को भी बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर बेन्जमिन हिलमैन ने बीबीसी को बताया कि ऐसे लक्ष्यों की ज़रूरत अमेरिका को लेकर जारी चिंताओं की वजह से हुई है, जिससे वो सेमीकंडक्टर जैसी एडवांस तकनीकों तक चीन की पहुँच को सीमित कर सकता है.

उन्होंने कहा, "ऐसे क़दमों से चीन की ख़्वावे जैसी कंपनियों को घुटने टेकने पड़ सकते हैं और आगे भी उसकी आर्थिक वृद्धि के रास्ते में बाधा आ सकती है."

चीन इसके साथ ही एनपीसी में कोरोना महामारी का भी ज़िक्र कर ये दर्शाने की कोशिश कर सकता है कि उसने सफलता से इसका सामना किया. (bbc.com)

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