संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सभी धर्मों के ईश्वरों के कान कुछ कमजोर हैं?
17-Mar-2021 6:10 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सभी धर्मों के ईश्वरों के कान कुछ कमजोर हैं?

उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव ने जिला प्रशासन को लिखकर भेजा है कि रोज सुबह करीब साढ़े 5 बजे मस्जिद के लाउडस्पीकर पर अजान की आवाज से उनकी नींद खराब होती है, और उसके बाद वे दुबारा सो नहीं पातीं, दिन भर सरदर्द बना रहता है। उन्होंने लिखा है कि वे किसी सम्प्रदाय, जाति, या वर्ग के खिलाफ नहीं हैं, अजान बिना लाउडस्पीकर भी हो सकती है ताकि दूसरों की दिनचर्या प्रभावित न हों। उन्होंने अपनी शिकायत में भारत के संविधान की पंथ निरपेक्षता का जिक्र भी किया है, और इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक आदेश का हवाला भी दिया है। इसके जवाब में अफसरों ने कहा है कि वे नियमानुसार कार्रवाई कर रहे हैं। दूसरी तरफ लखनऊ से शिया धर्मगुरू मौलाना सैफ अब्बास ने कहा है कि ऐसे में तो सुबह होने वाला कीर्तन भी गलत है। उन्होंने कहा- अजान तो दो-तीन मिनट की होती है, अधिक से अधिक पांच मिनट। अगर कुलपति ने सुबह की आरती और कीर्तन को लेकर भी शिकायत की होती तो भी मसला समझ में आता। लेकिन सिर्फ अजान को लेकर शिकायत करना ठीक नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि कुलपति जिस शहर की रहने वाली हैं वहां बड़ा कुंभ होता है, पूरे महीने लाउडस्पीकर की आवाजें उठती हैं, सडक़ें भी बंद होती हैं लेकिन किसी भी मुसलमान ने कोई चि_ी नहीं लिखी, न ही आपत्ति की। 

दोनों ही बातें बड़ी जायज हैं। चूंकि कुलपति ने साफ किया है कि वो किसी सम्प्रदाय के खिलाफ नहीं हैं, इसलिए उन्हें इसमें कोई परहेज नहीं होना चाहिए कि वे अपनी शिकायत को सुधारकर उसमें सभी धर्मों के, सभी धर्मस्थलों के लाउडस्पीकरों को बंद करवाने की बात लिखें। अगर वे सिर्फ मस्जिद के लाउडस्पीकर की बात करती हैं, तो उसका तो एक खास मतलब निकलेगा ही निकलेगा, और वे तोहमतों से बच नहीं सकेंगी। चूंकि उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक फैसले को साथ में लगाया है, इसलिए देश की कई अदालतों के अलग-अलग वक्त के फैसलों को देखना जरूरी है जिनमें धार्मिक स्थलों के अवैध कब्जों, और उनके ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ कार्रवाई की बात लिखी गई है। 

यह बात बिल्कुल सही है कि मंदिर-मस्जिद, या गुरूद्वारों और दूसरे धर्मस्थलों के लाउडस्पीकर आसपास के लोगों का जीना हराम करते हैं। जो आस्थावान हैं, और जो उस धार्मिक प्रसारण को सुनना चाहते हैं, उनके लिए अपने घरों के भीतर दीवारों के बीच तक सीमित धार्मिक संगीत वे खुद बजा सकते हैं। लोगों को नमाज का वक्त याद दिलाने के लिए मस्जिद के लाउडस्पीकरों पर से अगर अजान दी जाती है, तो यह उस वक्त की बात थी जब लोगों के पास अलार्म घडिय़ां नहीं होती थीं, फोन नहीं होते थे। आज तो गरीब से गरीब मुसलमान के पास भी मोबाइल फोन हैं, और उन पर दिन में पांच वक्त का अलार्म भी लगाया जा सकता है। कुलपति की यह मांग बिल्कुल सही है, और इलाहाबाद के प्रशासन को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। 
इसके साथ ही इलाहाबाद के प्रशासन और बाकी देश के भी शासन-प्रशासन को इन अदालती आदेशों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जिनमें धर्मस्थलों के ध्वनि प्रदूषण को रोकने की बात कही गई है। हम अपने आसपास दिन में कुछ बार कुछ-कुछ मिनटों के लिए मस्जिद के लाउडस्पीकरों का ध्वनि प्रदूषण झेलते हैं, और सुबह-शाम, पूरी-पूरी रात मंदिरों के कीर्तनों का उससे भी तेज ध्वनि प्रदूषण बर्दाश्त करते हैं। सरकार के अफसरों का हौसला इतना कम है कि रायपुर शहर के एक मंदिर के खिलाफ पड़ोस में रहने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार और मंदिरनिर्माता समाज के एक व्यक्ति हाईकोर्ट जाकर मंदिर के लाउडस्पीकर के खिलाफ स्थगन लेकर आए, तब कहीं जाकर उस मंदिर पर रोक लगी, लेकिन अफसरों ने बाकी शहर, प्रदेश के बाकी शहर-गांव कहीं भी कानून लागू करने की जहमत नहीं उठाई। 

कोई वक्त ऐसा रहा होगा जब आबादी बिखरी हुई रहती होगी, कंस्ट्रक्शन बहुत कम रहे होंगे, और लोगों को न फोन पर काम करना पड़ता होगा, न ही रात-दिन देखे बिना पढ़ाई करनी पड़ती होगी, वैसे वक्त में धार्मिक लाउडस्पीकर खप जाते होंगे। लेकिन अब तो चारों तरफ घनी आबादी रहती है, लोग रात-दिन की शिफ्ट में काम करते हैं, और ऐसे में नींद पूरी कर रहे लोग, आराम कर रहे बीमार, पढ़ रहे बच्चे या कच्ची नींद सो रहे छोटे बच्चे, तमाम लोग लाउडस्पीकरों की प्रताडऩा सहते हैं क्योंकि इसका विरोध धर्म का विरोध करार दे दिया जाएगा। 

तमाम धर्मस्थलों के साथ एक जैसा सुलूक करके सबसे लाउडस्पीकर हटा देने चाहिए, और सार्वजनिक जगहों पर धार्मिक अवैध कब्जे, अवैध निर्माण, सडक़ों पर अवैध धार्मिक आयोजन इन सबको बंद करवाना चाहिए। धर्म निरपेक्ष सरकार का मतलब हर धर्म की मनमानी और अराजकता को बर्दाश्त करना नहीं होता। धर्म निरपेक्ष का मतलब किसी भी धर्म की गुंडागर्दी न चलने देना भी होता है। सभी धर्मों की गुंडागर्दी रोकने में उत्तरप्रदेश के योगी राज को खासी दिक्कत आ सकती है क्योंकि बहुसंख्यक हिन्दू धर्म की अराजकता के खिलाफ वहां की पुलिस के हाथ उठेंगे कैसे? आज मस्जिदों के लाउडस्पीकर तो बंद करवाए जा सकते हैं, लेकिन क्या मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मंदिरों पर भी बराबरी की कार्रवाई कर पाएंगे? ऐसा करना उनके अस्तित्व की आत्महत्या से परे कुछ नहीं होगा क्योंकि धर्मान्धता और साम्प्रदायिकता ही उनकी सबसे बड़ी पहचान हैं। 

देश में जिस रफ्तार से साम्प्रदायिकता बढ़ती चल रही है, धर्मान्धता बढ़ती चल रही है, उसे कुचलना जरूरी है। और धार्मिक आस्था के प्रतीकों के इस किस्म के सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगनी ही चाहिए जिससे बाकी लोगों का जीना हराम हो रहा है। अदालतों के आदेश किसी एक धर्म के खिलाफ नहीं हैं, राज्य सरकारों को इतनी हिम्मत दिखानी चाहिए कि वे अपने-अपने इलाकों में धर्म की मनमानी को खत्म करें। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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