संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महाराष्ट्र गृहमंत्री पर आरोपों की ऊंची जांच सरकार से परे जरूरी
21-Mar-2021 6:13 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : महाराष्ट्र गृहमंत्री पर आरोपों की ऊंची जांच सरकार से परे जरूरी

मुम्बई के पुलिस कमिश्नर रहे, प्रदेश के डीजीपी स्तर के अधिकारी परमबीर सिंह ने मुख्यमंत्री को लिखी एक चिट्ठी में राज्य के गृहमंत्री अनिल देशमुख पर आरोप लगाया है कि उन्होंने पुलिस अधिकारियों पर महीनों से यह दबाव बनाया हुआ था कि वे मुम्बई के बार, पब, और रेस्त्रां से उगाही करके उन्हें सौ करोड़ रूपए महीना दें। अपने आरोपों के सुबूत में उन्होंने कुछ दूसरे बड़े अधिकारियों के साथ फोन पर आए-गए संदेशों को भी लगाया है। बड़े रहस्यमय तरीके से यह चिट्ठी परमबीर सिंह के सरकारी ईमेल से न भेजकर किसी और ईमेल से सीएम को भेजी गई, और चिट्टी पर उनके दस्तखत नहीं थे। लेकिन मीडिया में इस बारे में सवाल उठने पर उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा है कि यह चिट्ठी उन्होंने ही भेजी है और उनके पास अपने आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सुबूत हैं। यह पूरा मामला इस अफसर को मुम्बई पुलिस कमिश्नर के पद से हटाने के बाद फूटा है, और हटाने के पीछे की वजह जाहिर तौर पर मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटकों की एक गाड़ी के पकड़ाने से जुड़ी हुई है। वह एक अलग ही लंबी कहानी है जिसमें मुम्बई का एक बहुत ही कुख्यात सबइंस्पेक्टर एनआईए ने गिरफ्तार किया है जिसे इन विस्फोटकों से जोडक़र देखा जा रहा है, और विस्फोटकों की गाड़ी के मालिक की मौत से भी। लेकिन मुम्बई पुलिस के छोटे-बड़े अफसरों के इस साजिश और जुर्म से जुड़े रहने की जो जांच एनआईए कर रहा है, वह भी बड़े सनसनीखेज नतीजे पेश करती सुनाई पड़ रही है। लेकिन इस पूरे सिलसिले में मुम्बई पुलिस, या महाराष्ट्र के मंत्रियों का जो चरित्र सामने आ रहा है उस पर गौर करना जरूरी है। 

न तो मुम्बई पुलिस देश की अकेली भ्रष्ट पुलिस है, और न ही वह देश में सबसे अधिक भ्रष्ट है। पुलिस का हाल अधिकतर प्रदेशों में नेताओं की मेहरबानी से गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, और अगर प्रदेश यूपी सरीखा रहा, तो भ्रष्टाचार के साथ-साथ घोर साम्प्रदायिकता में भी डूबा हुआ है। महाराष्ट्र और मुम्बई में यह अकेला या पहला केस नहीं है जब मुठभेड़ में मारने के विशेषज्ञ कहे जाने वाले ऐसे किसी छोटे पुलिस अफसर के करोड़पति या अरबपति बनने की चर्चा आए। इसके पहले भी कई बार ऐसा हो चुका है, बहुत से दूसरे पहली नजर के हीरो बाद में विलेन साबित होते मिले हैं। मुम्बई पुलिस के कुछ लोगों पर दाऊद इब्राहिम सरीखे देश के सबसे खतरनाक मुजरिमों के साथ सांठ-गांठ होने की चर्चा भी कभी खत्म नहीं हुई है। और इस मुम्बई और महाराष्ट्र में पुलिस के विवादास्पद अफसर भूमाफिया बनते हुए भी दिखे हैं, और वे बरसों तक अपना एक माफियाराज भी चलाते रहने में कामयाब रहे हैं। 

अब दूसरे प्रदेशों का हाल देखें, तो बाकी प्रदेशों को कोसने से पहले छत्तीसगढ़ को देख लेना ठीक है जहां पर समय-समय पर बहुत से आला पुलिस अफसर जमीनों के सौदागरों की तरह काम करते भी दिखते हैं, और भूमाफिया की तरह भी। लोगों को याद होगा कि इसी पुलिस के कई कुख्यात अफसरों की भूमाफियाई के खिलाफ एक वक्त भाजपा सरकार में गृहमंत्री रहे हुए ननकी राम कंवर ने लगातार अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री को इन अफसरों के नाम सहित शिकायत लिखी थी, और जो हाल आज मुम्बई में वसूली, उगाही, और भूमाफियाई का दिख रहा है, वही हाल छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में भी एक से अधिक पुलिस अफसरों ने बना रखा था। लेकिन जैसा कि पैसों की अपार ताकत का विशेषाधिकार होता है, इन भ्रष्ट अफसरों और इनको पालने वाले सत्तारूढ़ लोगों ने कभी कोई फंदा इनके गले तक नहीं पहुंचने दिया, कभी कोई हथकड़ी भी इनके हाथों तक नहीं पहुंचने दी। मुम्बई चूंकि अधिक चर्चित जगह है और सौ करोड़ रूपए महीने की उगाही का टारगेट बहुत बड़ा है, और केन्द्र सरकार का महाराष्ट्र सरकार से बड़ा टकराव चल रहा है, इसलिए यह मामला बड़ी खबर बना है। लेकिन कम कमाऊ प्रदेशों और शहरों में नेताओं और अफसरों के दिए हुए छोटे टारगेट भी करोड़ों के रहते हैं, और छत्तीसगढ़ में आईएएस, आईपीएस, और सत्तारूढ़ नेताओं के ऐसे भ्रष्टाचार को भरपूर देखा हुआ है। अफसोस महज यह है कि कानून के बहुत लंबे हाथ भी इन तक नहीं पहुंच पाते क्योंकि ऐसी भूमाफियाई को राज्य से लेकर केन्द्र तक कई किस्म का संरक्षण मिला रहता है। 

मुम्बई के इस मामले में महज यह सोचने का मौका दिया है कि इस देश में पुलिस को सबसे ही भ्रष्ट नेताओं की सबसे ही बंधुआ मजदूरी से कैसे बचाया जा सकता है? इसे लेकर देश में समय-समय पर राष्ट्रीय स्तर के आयोगों और कमेटियों की सिफारिशें चौथाई सदी से दिल्ली में धूल और धक्के खा रही हैं, लेकिन उन्हें लागू करने का हौसला कोई पार्टी नहीं दिखाती है। हर पार्टी को अपनी सरकार रहते हुए यही ठीक लगता है कि राजनीति और जुर्म की बिसात पर पुलिस को प्यादों की तरह इस्तेमाल किया जाए, और जरूरत पडऩे पर अफसरों की बलि दे दी जाए। ऐसे में मुम्बई के एक अच्छे या बुरे बड़े अफसर ने सच्चे या गढ़े हुए जैसे भी सुबूतों के साथ गृहमंत्री पर इतनी बड़ी तोहमत लगाई है, तो उसकी जांच सरकार से परे किसी जज की अगुवाई में होनी चाहिए। ऐसा भी नहीं है कि जज आज हिन्दुस्तान में एकदम पाक-साफ रह गए हैं, लेकिन ईमानदार जांच के लिए भारतीय लोकतंत्र के भीतर अपनी तंग सीमाएं  और तंग संभावनाएं हैं, अब हिन्दुस्तान की जांच अमरीकी एफबीआई को तो दी नहीं जा सकती। 

इस मामले में यह बात ठीक लगती है कि किसी आला अफसर ने दूसरे बड़े आईपीएस से हुई अपनी बातचीत फोन पर सम्हालकर रखी है। कोई इसे दगाबाजी कहे, या गद्दारी कहे, कोई आरोप लगाने वाले अफसर को ही भ्रष्ट कहे, हमारा तो यह मानना है कि ऐसे सुबूत जिस भी भ्रष्ट मंत्री या अफसर को निपटाने के काम आएं, गंदगी उतनी ही छंटेगी। महाराष्ट्र के इस मामले को देखते हुए देश के बाकी अफसरों को भी टेलीफोन की बातचीत और संदेश सम्हालकर रखने चाहिए क्योंकि वे बड़े सुबूत की तरह काम आ सकते हैं। यह लड़ाई कुछ ऐसी है कि विभीषण का साथ लेकर भी अगर रावण को निपटाया जा सके, तो उसे गद्दारी नहीं समाजसेवा मानना चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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