संपादकीय
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सदर बाजार में हर बरस दो दिन पहले से होली के रंग बरसने लगते हैं और यह नोटिस टंग जाता है कि यहां से निकलने वाले जान लें कि यहां होली चल रही है। लेकिन इस बरस कोरोना के चलते हुए आज भी, होली जलने के कुछ घंटे पहले तक भी यह सडक़ सूखी थी और आवाजाही जारी थी। तस्वीर / छत्तीसगढ़
हिन्दुस्तान के और हिन्दू धर्म के किसी भी दूसरे त्यौहार के मुकाबले होली कई किस्म की बुराईयों से जुड़ी हुई आती है। हो सकता है कि सैकड़ों बरस पहले लकड़ी की कमी न रहती हो, और लोग होली जलाते हों तो उससे न तो लकड़ी की कमी होती होगी, न ही हरे पेड़ उसके लिए काटने पड़ते होंगे, और न ही प्रदूषण इतना अधिक रहता होगा कि होली की आग से प्रदूषण और बढ़ता रहा हो। वैसे वक्त होली जलाने की जो परंपरा थी, उस वक्त सडक़ें भी डामर की नहीं रहती थीं, और न तो वे जलकर खराब होती थीं, और न ही अगले दिन से उस जगह से निकलने वाली गाडिय़ों से कई दिन तक उडऩे वाली राख दिक्कत खड़ी करती होगी। जिस तरह दीवाली बहुत से पटाखों के बारूद और रसायन का भयानक प्रदूषण हवा में फैलाकर सेहत पर खतरा खड़ा करने लगी है, उसी तरह होली से अब शहरी और कस्बाई सडक़ें जलती हैं, राख और कोयला कई दिनों तक हवा में उड़ते हैं, और लोग हरे पेड़ काटकर भी जला देते हैं।
अब होली जलाने से परे का रिवाज देखें तो अगले दिन रंग खेला जाता है, और किसी समय वह अच्छा रंग भले रहता होगा, अब यह रंग तरह-तरह के रसायनों से बना हुआ रहता है, और लोग चेहरों को चांदी या सोने जैसा पेंट लगाकर भी घूमते हैं। अधिक उत्साही लोग चुनाव की अमिट स्याही जुटाकर भी कुछ चुनिंदा चेहरों पर पोतते हैं, और इनका नुकसान तुरंत चाहे नहीं दिखता, वह रहता तो लंबे समय तक है। होली जलाने से लेकर रंग खेलने तक जो बात एक सरीखी रहती है वह नशे और अश्लीलता की है। होली के दो-चार दिन जमकर नशा चलता है, और लोग अश्लील गालियां देते घूमते हैं। अब एक हिन्दू धार्मिक कथा से शुरू हुआ यह त्यौहार कब और कैसे नशे और अश्लीलता में डूब गया यह अंदाज लगाना खासा मुश्किल काम है, लेकिन अभी तो पिछले 25-50 बरस से देखने में ऐसा ही आ रहा है।
त्यौहारों का जिंदगी में एक अलग महत्व होता है, और होली के साथ एक खूबी यह है कि यह सबसे सस्ता हिन्दू त्योहार भी है। और त्योहारों में यहां मामूली क्षमता के लोग भी कपड़े सिलाने या खरीदने की परंपरा निभाते हैं, वहीं होली में लोग पुराने कपड़ों में निकलते हैं, और पहले से खराब हो चुकी एक जोड़ी पूरी तरह फेंकने लायक हो जाती है, इसमें कोई खर्च नहीं होता। दारू भी लोग अपनी औकात से पीते हैं, रंग-गुलाल में भी बहुत बड़ा खर्च नहीं होता है। इस तरह होली एक सस्ता त्योहार है जो किसी गरीब परिवार पर भी बोझ बनकर नहीं आता। फिर जैसा कि होली के त्योहार को लेकर कहा जाता है कि दुश्मन बन चुके दिल भी इस दिन मिल जाते हैं, तो हो सकता है कि कुछ लोग खोए हुए दोस्त इस दिन वापिस पा जाते होंगे, या नए दोस्त बना लेते होंगे। इससे परे की एक बात यह भी है कि हिन्दुस्तानी जनजीवन में अश्लीलता और गाली-गलौज से अमूमन परहेज चलता है, लेकिन इस दिन लोगों को अपनी भड़ास निकालने का पूरा मौका मिलता है, और उनकी दमित-कुंठित भावनाएं त्यौहार की आड़ में बाहर आ जाती हैं। उत्तर भारत के कुछ इलाके ऐसे भी हैं जिनमें महिलाओं और पुरूषों के बीच सार्वजनिक रूप से मिलकर खेले जाने वाले अकेले त्यौहार होली से महिलाओं को भी बराबरी का एक मौका मिलता है, और वे ल_मार होली खेलते भी दिखती हैं। होली के रंग-गुलाल के साथ-साथ परंपरागत गीत-संगीत की बड़ी समृद्ध परंपरा है, और लोगों को इन एक-दो दिनों पर फिक्र अलग रखकर आनंद लेने का मौका मिलता है, और भारत की इसी परंपरा के चलते कई भाषाओं की फिल्मों को भी होली के नाच-गाने मिल जाते हैं।
इस बरस, 2021 में यह होली एक अभूतपूर्व तनाव के बीच आई है। पिछले बरस 2020 में होली कोरोना-लॉकडाउन के पहले आई थी, और लोगों ने उसे हर बार की तरह खेला भी था। लेकिन इस बरस पिछले एक-दो महीनों से हिन्दुस्तान में जिस रफ्तार से कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, और अभी बंगाल-असम के चुनाव, और कई क्रिकेट मुकाबलों की मेहरबानी से बढ़ते चलने हैं, उसे देखते हुए इस बार की होली सिर्फ लापरवाही और गैरजिम्मेदार लोगों के बीच पहले सरीखी हो सकती है, बाकी तमाम लोग डरे-सहमे भी रहेंगे, और हो सकता है कि सरकार की सलाह के मुताबिक घर के भीतर भी रहेंगे। यह याद रखने की जरूरत है कि होली में जिस तरह एक-दूसरे को छूना, एक-दूसरे के गले मिलना, एक-दूसरे पर रंग डालना चलता है, वह सिलसिला कोरोना को बहुत पसंद आने वाला है, और हो सकता है कि होली की मस्ती हिन्दुस्तान में कोरोना को एक नई ऊंचाई पर ले जाए। आज कोरोना की जितनी काल्पनिक तस्वीरें बनाई गई हैं, और प्रचलित हैं, वे सारी की सारी होली जैसे रंगों में दिखती हैं, और आज हकीकत भी यही है कि इन रंगों के साथ-साथ छुपा हुआ कोरोना भी चारों तरफ फैले। होली की परंपरा शुरू होने के बाद से अब तक कभी ऐसी नौबत नहीं आई थी कि लोगों को इतनी सावधानी बरतने की जरूरत पड़ी हो, और होली की लापरवाही इस महामारी या ऐसी महामारी के फैलाने का खतरा रहे। अगले दो-तीन दिन लोगों को होली की अपनी हसरतों को तब तक काबू रखना चाहिए जब तक कि कोरोना चला न जाए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)