संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लॉकडाउन प्रशासन का हथियार तो है लेकिन नाकामयाबी का सुबूत भी
03-Apr-2021 6:18 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : लॉकडाउन प्रशासन का हथियार तो है लेकिन नाकामयाबी का सुबूत भी

हिन्दुस्तान में सबसे तेज रफ्तार से जिन दो-चार राज्यों में कोरोना बढ़ रहा है, उनमें छत्तीसगढ़ एक है। आबादी के अनुपात में संक्रमण और मौत अगर देखें तो छत्तीसगढ़ देश के बहुत से दूसरे प्रदेश और महानगरों से भी आगे निकल गया है। और इसके बढऩे के रूकने का कोई ठिकाना नहीं दिख रहा है। पूरे देश में कोरोना पिछले पूरे एक बरस के सारे रिकॉर्ड को तोडऩे के करीब है, और एक दिन में कोरोना पॉजिटिव लोगों की बढ़ोत्तरी दो-चार दिनों में ही पिछले साल का रिकॉर्ड तोडऩे जा रही है। श्मशानों की तस्वीरें दिल दहलाने वाली हैं कि वहां पर चिता की राख ठंडी होने का वक्त भी नहीं मिल रहा है, और अगल-बगल दूसरी लाशें बिछा दी जा रही हैं। महाराष्ट्र के एक शहर की खबर है कि वहां कोरोना-मौतों में अंतिम संस्कार का जिम्मा परिवार का ही रहेगा, जबकि अब तक देश भर में परिवार को इससे दूर रखा जाता था, और पीपीई पोशाक पहने हुए कर्मचारी अंतिम संस्कार करते थे। 

देश भर में तरह-तरह के लॉकडाउन, नाईट कफ्र्यू का वक्त आ गया है, और राज्य के शासन से लेकर जिलों के प्रशासन तक बंद और प्रतिबंध ही सबसे आसान औजार माने जाते हैं। छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार ने जिला प्रशासनों पर लॉकडाउन या नाईट कफ्र्यू का फैसला छोड़ा है, और एक-एक करके कई जिले इसकी घोषणा भी करते जा रहे हैं। लॉकडाउन से लोगों में बेकारी, और बेरोजगारी बड़े पैमाने पर शुरू हो जाएगी, और कारोबार-कारखाने बंद होने से रोजगार और मजदूरी करने वाले लोग बड़ी संख्या में बिना काम के रह जाएंगे। इसलिए लॉकडाउन की नौबत आए बिना अगर कोरोना संक्रमण के बढऩे पर रोक लगाने का कोई जरिया निकाला जा सकता है, तो प्रशासन की वह अधिक बड़ी कामयाबी होगी। 

आज शहरी जिंदगी में जहां कोरोना संक्रमण बढऩे के खतरे सडक़ों पर दिखते हैं, वहां कोई कार्रवाई होते नहीं दिखती है। पुलिस को रिश्वत देकर जो ओवरलोड ऑटोरिक्शा चलते हैं, वे आज भी उसी तरह ओवरलोड चल रहे हैं, और इस खतरे को रोकना बहुत आसान हो सकता था, लेकिन पुलिस और प्रशासन की ऐसी कोई नीयत भी नहीं दिखती है। दूसरा एक खतरा सडक़ किनारे ऐसे खाने-पीने के ठेलों पर है जहां प्लेट-चम्मच या कप-ग्लास एक ही बाल्टी में बार-बार धोकर ग्राहकों को दिए जाते हैं। इन पर भी कोई कार्रवाई इतने महीनों में भी नहीं हुई, और अब आम हिन्दुस्तानी लोग कोरोना के खतरे से बेफिक्र हो चुके हैं, और ऐसी जगहों पर खाना-पीना बेबसी न होने पर भी वह धड़ल्ले से जारी है। बेघर लोग रोज का खाना बाहर खाने को तो बेबस हो सकते हैं, लेकिन स्वाद के लिए इस तरह खाना गैरजरूरी है, और लोगों को खतरे की समझ खत्म हो चुकी है। 

प्रशासन के पास लॉकडाउन करने का अधिकार तो है, लेकिन यह तो एक आखिरी रास्ता रहता है जिससे अर्थव्यवस्था भी चौपट होती है, और गरीब सबसे अधिक बदहाल हो जाते हैं। इसलिए यह नौबत आने के पहले ही दूसरी तरकीबों से संक्रमण को रोकने की समझदारी अगर दिखाई जाती, तो वह एक कामयाब प्रशासन होता। लॉकडाउन जैसा प्रतिबंध लगाकर तो संक्रमण को रोकना एक भारी नुकसान वाला आसान रास्ता है, जिसमें प्रशासनिक-कामयाबी कुछ भी नहीं है। 

पिछले कुछ बरसों में शहरों की सार्वजनिक जगहों पर, बगीचों में, तालाब किनारे, और फुटपाथों पर कसरत की बहुत सी मशीनें लगाई गई हैं जिनमें से हरेक का सैकड़ों लोग इस्तेमाल करते हैं। ये सारे लोग इन मशीनों के गिने-चुने हिस्सों को थामते हैं, और ये संक्रमण का एक बड़ा खतरा हो सकता है, लेकिन इन पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। छत्तीसगढ़ में तो जागरूक लोगों से लेकर सरकार तक सभी बहुतायत आबादी की गैरजिम्मेदारी देखकर हक्का-बक्का हैं कि इतनी मौतों के बाद भी लोग मास्क तक लगाने को तैयार नहीं हैं। यहां सडक़ों पर महिला कर्मचारियों के जत्थे लोगों की गाडिय़ों को घेर-घेरकर उन पर जुर्माना लगा रही हैं, उसकी तस्वीरें रोज छप रही हैं, फिर भी लोग सुधर नहीं रहे हैं। जिन दुकानों में रोज सैकड़ों ग्राहक पहुंच रहे हैं, वहां भी दुकानदार खुद मास्क लगाने को तैयार नहीं हैं। अब सवाल यह है कि इतने गैरजिम्मेदार और लापरवाह लोग बर्दाश्त क्यों किए जाएं? जब ये लोग दूसरे जिम्मेदार लोगों की जिंदगी पर खतरा बनकर खड़े हैं, तो इन पर मामूली जुर्माने से अधिक बड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की जाए? आज कोरोना के संक्रमण का खतरा इतना अधिक है कि किसी को जेल भेजने की सलाह देना गलत होगा, लेकिन कारोबार के आकार और लापरवाही का दर्जा देखकर इन पर इतना तगड़ा जुर्माना तो लगाना ही चाहिए कि और लोगों को सबक मिल सके। 

महामारी से आबादी को बचाना आसान नहीं है, दसियों लाख सावधान लोगों के बीच अगर दसियों हजार लापरवाह हैं, तो वे बीमारी को फैलाने के लिए काफी हैं। इसलिए प्रशासन को लापरवाह लोगों पर बड़ी सख्ती बरतनी चाहिए, और ऐसी कड़ी कार्रवाई का प्रचार भी करना चाहिए। लेकिन इसके साथ-साथ बड़ी बात यह है कि संक्रमण फैलने के खतरे वाले कारोबार, कार्यक्रम की शिनाख्त करके उन्हें तुरंत रोका जाना चाहिए। अगर बीच के कुछ महीनों में जब कोरोना का हमला कुछ कम था, उस वक्त कारोबार और कार्यक्रम को लेकर प्रशासन ने सावधानी बरती होती, तो ऐसी नौबत नहीं आई होती। दुनिया भर के चिकित्सा वैज्ञानिकों और महामारी के जानकारों का यह मानना है कि कोरोना का टीका लगाने की जरूरत हर बरस पड़ सकती है, और मास्क तो बरसों तक लगाना ही पड़ेगा, तो ऐसी नौबत में हर राज्य और जिले को सख्ती से सावधानी लागू करने का काम करना चाहिए। जिन लोगों को कोरोना से होने वाली मौतें अभी भी काफी नहीं लग रही हैं, उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि कोरोना से उबरने के बाद भी लोग बदन से हुए नुकसान से नहीं उबर सकते, और वे बाकी जिंदगी कई किस्म की दिक्कतें झेलते रहेंगे। लोगों के पास, लापरवाह लोगों के पास गैरजिम्मेदारी दिखाने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए, और उन पर सख्त कार्रवाई प्रशासन का जिम्मा है।  (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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