संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक मुश्किल चौराहे पर खड़ी छत्तीसगढ़ सरकार, और छलांग लगाता कोरोना
07-Apr-2021 3:48 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : एक मुश्किल चौराहे पर खड़ी छत्तीसगढ़ सरकार, और छलांग लगाता कोरोना

छत्तीसगढ़ में कोरोना की वजह से जो नौबत आज आ खड़ी हुई है, उसमें सरकार एक चौराहे पर खड़ी दिख रही है, और बेहतर रास्ता कौन सा है यह तय करना आसान नहीं है। अभी-अभी खत्म हुई छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल की बैठक अधिक तैयारी के इरादे के साथ खत्म हुई है और सरकार ने हालात गंभीर होने की बात इस तैयारी के बयान के साथ ही एक किस्म से मान ली है। व्यापारी प्रतिनिधियों के साथ बैठक के बाद आज शाम तक राजधानी रायपुर और कुछ दूसरे शहरों में लॉकडाऊन की घोषणा के आसार हैं। जाहिर है कि इस रफ्तार से बढ़ते कोरोना के साथ तो जिंदगी चल नहीं सकती, इसलिए उसे कुछ दिनों के लिए स्थगित करके घरों में कैद रखा जाए। प्रशासन के सामने यह भी एक बड़ी चुनौती रहेगी कि लॉकडाऊन के बीच कैसे हर शहर में रोज हजारों कोरोना-टेस्ट किए जाएंगे, और कैसे हजारों वैक्सीन लगाई जाएंगी।

बीते कल चौबीस घंटों में करीब दस हजार नए कोरोना पॉजिटिव मेडिकल जांच में पाए गए हैं, और लोगों का अंदाज यह है कि इससे दर्जनों गुना कोरोना पॉजिटिव लोग होंगे लेकिन वे नौकरी जाने, मजदूरी जाने के डर से जांच नहीं करा रहे हैं। ऐसे भी बहुत से लोग होंगे जो कि मेडिकल जुबान में असिम्प्टोमेटिक (लक्षणविहीन) होंगे और इसलिए वे किसी जांच के लिए पहुंच ही नहीं रहे हैं। प्रदेश भर में कोरोना जांच केंद्रों पर जो अंधाधुंध भीड़ लगी है, वहां पहुंचकर भी बहुत से लोग लौट जा रहे हैं कि अब तक अगर कोरोना नहीं लगा होगा, तो भी यहां लग जाएगा। अस्पतालों में बिस्तर नहीं बचे हैं, और छोटे से छोटे निजी अस्पताल में भी कोरोना वार्ड के एक हफ्ते का बिल डेढ़ लाख रुपये तय कर दिया गया है। बड़े अस्पताल और भी बड़ा बिल बना रहे हैं, मरीजों का ऑक्सीजन स्तर जब तक एक निर्धारित सीमा से ऊपर नहीं पहुंच रहा है, उन्हें छुट्टी नहीं दी जा रही है, और खर्च की कोई सीमा नहीं रह गई है। चारों तरफ सरकारी इंतजाम इस कदर चुक गया है कि सुबह से देर दोपहर तक कई जगहों पर कोरोना वार्ड में खाना नहीं पहुंच रहा है। 

इन बातों से परे आज छत्तीसगढ़ की जमीनी हकीकत यह है कि यह अपनी आबादी के कई गुना अधिक आबादी वाले प्रदेशों से कई गुना अधिक कोरोना संक्रमण वाला प्रदेश हो गया है, और अब तक के आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में पचास हजार से अधिक सक्रिय कोरोना पॉजिटिव अभी हैं। इनमें से अधिकतर घरों पर ही अलग रखे गए हैं, लेकिन जब लोगों के लापरवाह मिजाज को देखा जाए, तो यह बात अविश्वसनीय लगती है कि मास्क तक से परहेज करने वाला यह प्रदेश घरों पर सावधानी से अलग बैठे रहेगा और परिवार के बाकी लोगों के लिए खतरा नहीं बनेगा। 

लेकिन आज सबसे बड़ी फिक्र लॉकडाऊन को लेकर है कि अलग-अलग शहरों या जिलों को किस तरह बंद किया जाए ताकि लोगों का संपर्क एक-दूसरे से टूटे और कोरोना की लंबी-लंबी छलांग बंद हो, या धीमी पड़े। पिछले दो दिनों के आंकड़े देखें तो छत्तीसगढ़ में पांच अपै्रल को करीब 75सौ कोरोना पॉजिटिव मिले थे जो कि छह अपै्रल को बढक़र करीब दस हजार नए कोरोना पॉजिटिव हो गए हैं। यह अविश्वसनीय किस्म की और हक्काबक्का करने वाली नौबत है। दुनिया की किसी सरकार की पूरी ताकत भी इस रफ्तार से बढऩे वाले कोरोना संक्रमण से नहीं जूझ सकती और छत्तीसगढ़ को कड़ा और कड़वा फैसला लेना ही होगा।

एक अलग मोर्चा वैक्सीन का चल रहा है। देश के अलग-अलग राज्यों में कोरोना के टीके लगाने की रफ्तार अलग-अलग है। महाराष्ट्र में जहां पर कि देश की सबसे खराब हालत है, वहां अगले तीन दिनों के लिए ही टीके बचे हैं, और राज्य सरकार का कहना है कि जिन्हें पहले टीके लग चुके हैं, उन्हें भी लगाने के लिए दूसरा टीका नहीं बचेगा। छत्तीसगढ़ में भी कल से बिलासपुर के निजी अस्पतालों को टीके देना बंद कर दिया गया था, और ताजा हालत आगे सामने आएगी। टीकों की कमी अगर हो जाएगी तो कुछ महीनों बाद भी कोरोना पर काबू पाने की उम्मीद एक सपना साबित होगी। एक सौ 30 करोड़ आबादी के इस देश में अब तक महज कुछ करोड़ लोगों को ही टीके लगे हैं, और उनमें भी कम लोगों को ही दो टीके लगे हुए एक पखवाड़ा हो चुका है जिसके बाद उसका असर माना जाता है। 

किसी भी प्रदेश में संक्रमण को रोकना पहली नजर में उसकी अपनी जिम्मेदारी मानी जाती है, और टीकों की सप्लाई केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है, लेकिन उनको लगाना राज्य सरकार का ही काम है। यह नौबत किसी भी राज्य के लिए एक अभूतपूर्व चुनौती की है जिसमें शासन और प्रशासन के बड़े अफसरों से लेकर छोटे कर्मचारियों तक की समझ-बूझ और क्षमता कसौटी पर चढ़ रही है। निर्वाचित राजनीतिक नेता सरकार की मशीनरी का कैसा इस्तेमाल करते हैं यह बहुत बड़ी चुनौती उनके सामने है।

फिर जनता के सामने भी यह बहुत बड़ी चुनौती है कि किसी लॉकडाऊन की नौबत में वह कमाए क्या, और खाए क्या। राज्य सरकारें या केंद्र सरकार गरीबी की रेखा के नीचे के लोगों तो जिंदा रहने के लिए मुफ्त अनाज दे सकती हैं, और संपन्न तबके को बैंक की किश्त पटाने में समय की कुछ छूट मिल सकती है, सरकारी नौकरी के लोगों को भी तनख्वाह की गारंटी है, लेकिन असंगठित कर्मचारियों और रोजगार पर जिंदा रहने वाले छोटे-छोटे कारोबारियों के लिए कोई भी लॉकडाऊन मरने जैसी नौबत ला देता है। किसी भी राज्य सरकार के सामने ऐसे बड़े तबके का ख्याल रखना भी एक असंभव सी चुनौती है, और देखना होगा कि छत्तीसगढ़ या किसी दूसरे राज्य की सरकार किस तरह अपने लोगों के काम आती है, उनका साथ देती है।(क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)

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