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सूअरों की रक्षा के लिए अब नहीं चढ़ेगी खरगोशों की बलि, जल्द आएगा नया टीका
15-Apr-2021 7:38 PM
सूअरों की रक्षा के लिए अब नहीं चढ़ेगी खरगोशों की बलि, जल्द आएगा नया टीका

सूअरों को क्लासिकल स्वाइन फीवर से बचाने का टीका बनाने के लिए अब भारत में खरगोशों की बलि नहीं चढ़ेगी. नए टीके के बहुत जल्द बाजार में आने की उम्मीद है. इसे सेल कल्चर विधि से विकसित किया गया है.

 (dw.com)

नया टीका काफी सस्ता भी होगा. देश के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित क्लासिकल स्वाइन फीवर टीके के साथ-साथ भेड़ों में होने वाले चेचक के टीके के व्यावसायिक उत्पादन का अधिकार हाल ही में अहमदाबाद की एक कंपनी को मिला है. ये दोनों टीके भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के तहत आने वाले भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) के वैज्ञानिकों ने तैयार किए हैं.

आईसीएआर के उपमहानिदेशक डॉ. भूपेंद्र नाथ त्रिपाठी ने बताया, "देश में क्लासिकल स्वाइन फीवर के टीके की सालाना 1.8 करोड़ खुराक की जरूरत है, जिसकी पूर्ति के लिए पहले के टीके पर्याप्त नहीं थे और उसकी इम्यूनिटी भी कम थी, लेकिन नए टीके की इम्यूनिटी भी ज्यादा है और ये काफी सस्ते भी हैं. व्यावसायिक उत्पादन शुरू होने के बाद वर्तमान जरूरतों की पूर्ति के लिए पर्याप्त टीके तैयार होने में देर नहीं लगेगी क्योंकि महज चार फलास्क में वैक्सीन की सारी जरूरतें पूरी हो जाएंगी."

नया टीका किफायती भी है

डॉ. त्रिपाठी ने आईएएनएस को बताया, "पहले के टीके की कीमत जहां 20 से 25 रुपये पड़ती है, वहां नए टीके महज दो रुपये में आएंगे. खास बात यह है कि इसके लिए अब खरगोशों की बलि देने की जरूरत नहीं होगी और नए टीके का एक डोज ही काफी होगा क्योंकि इसकी इम्यूनिटी दो साल तक बनी रहती है." वैज्ञानिक बताते हैं कि नया टीका सुरक्षित, शक्तिशाली और 100 फीसदी सुरक्षा प्रदान करने वाला है और टीकाकरण के 24 महीनों तक पशु के शरीर में रोग-प्रतिरोधी क्षमता बनाए रखता है.

क्या है क्लासिकल स्वाइन फीवर?

सूअरों में होने वाली वायरल जनित बीमारी को क्लासिकल स्वाइन फीवर कहते हैं. इस रोग में सूअर को उच्च ज्वर होता है और त्वचा पर रक्त स्राव, कान, पेट व अन्य अंगों का रंग नीला पड़ जाता है और पक्षाघात से पीड़ित होने से पशु की मौत हो जाती है. इस बीमारी में मृत्यु दर 100 फीसदी है.

भारत में 1964 से इस बीमारी की रोकथाम के लिए ब्रिटेन की लैपिनाइज्ड सीएसएफ वैक्सीन का इस्तेमाल किया जा रहा है. इस टीके को बनाने के लिए खरगोशों को मारना पड़ता था. वैज्ञानिक बताते हैं कि एक खरगोश से इस टीके के 50 डोज तैयार किए जाते थे जो काफी महंगे होने के साथ-साथ अपर्याप्त भी थे. इस एक टीके की कीमत 20 से 25 रुपये पड़ती है.

देश में 90.6 लाख सूअरों को टीके लगाने के लिए 1.8 करोड़ टीके की सालाना जरूरत है. वैज्ञानिक बताते हैं कि सेल कल्चर से विकसित नये टीके से देश की जरूरतों की पूर्ति आसानी से हो जाएगी.

भेड़ों में चेचक का उपचार

शीपपॉक्स भेड़ों में होनेवाली संक्रामक वायरल बीमारी है जिसमें पशु के पूरे शरीर में फफोले पड़ जाते हैं और गांठ भी पड़ जाती है. इस बीमारी से मृत्यु दर 50 फीसदी है. विशेषज्ञ बताते हैं कि भेड़ों में होने वाली चेचक की इस बीमारी से देश में सालाना करीब 125 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होता है और इस नुकसान से बचने का एकमात्र उपाय है भेड़ों का टीकाकरण. आईवीआरआई ने भेड़ के आईसोलेट (एसपीपीवी स्रिन 38/00स्ट्रेन) का उपयोग करके एक लाइव एटेनुएटेड शीपपॉक्स टीका तैयार किया है, जो परीक्षण में सुरक्षित और प्रभावी साबित हुआ है.

वैज्ञानिक बताते हैं कि इस टीके का एक डोज 48 महीने तक भेड़ की रक्षा करता है. इन दोनों टीकों का व्यवसायीकरण केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले कृषि अनुसंधान परिषद एवं शिक्षा विभाग (डेयर) के एग्रीइनोवट के माध्यम से किया गया है. क्लासिकल स्वाइन फीवर और शीप पॉक्स टीके के व्यावसायिक उत्पादन के लिए आईसीएआर-आईवीआरआई ने बीते सप्ताह अहमदाबाद की कंपनी हेस्टर बायोसाइंसेस के साथ दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए.

 (आईएएनएस)

 

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