अंग्रेज़ी
क्षुद्र ग्रह सौर मंडल बन जाने के बाद बचे हुए पदार्थ हंै। एक दूसरी कल्पना के अनुसार ये मंगल और गुरु के बीच में किसी समय रहे प्राचीन ग्रह के अवशेष हैं जो किसी कारण से टुकड़े-टुकड़े में बंट गया। इस कल्पना का एक कारण यह भी है कि मंगल और गुरू के बीच का अंतराल सामान्य से ज्यादा है। दूसरा कारण यह है कि सूर्य के ग्रह अपनी दूरी के अनुसार द्रव्यमान में बढ़ते हुए और गुरु के बाद घटते क्रम में है। इस तरह से मंगल और गुरु के मध्य मे गुरु से छोटा, लेकिन मंगल से बड़ा एक ग्रह होना चाहिए, लेकिन इस प्राचीन ग्रह की कल्पना सिर्फ एक कल्पना ही लगती है क्योंकि यदि सभी क्षुद्र ग्रहों को एक साथ मिला भी लिया जाए तब भी इनसे बना संयुक्त ग्रह 1500 किमी से कम व्यास का होगा जो कि हमारे चन्द्रमा के आधे से भी कम है।
क्षुद्रग्रहों के बारे में हमारी जानकारी उल्कापात मे बचे हुए अवशेषों से है। जो क्षुद्रग्रह पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी के वातावरण मे आकर पृथ्वी से टकरा जाते है उन्हे उल्का कहा जाता है। अधिकतर उल्काएं वातावरण में ही जल जाती हं,ै लेकिन कुछ उल्काएं पृथ्वी से टकरा भी जाती हैं। इन उल्काओं का 92 प्रतिशत भाग सिलीकेट का और 5 प्रतिशत भाग लोहे और निकेल का बना हुआ होता है। उल्का अवशेषों को पहचानना मुश्किल होता है क्योंकि ये सामान्य पत्थरों जैसे ही होते हैं।
क्षुद्र ग्रह सौर मंडल के जन्म के समय से ही मौजूद हंै। इसलिए विज्ञानी इनके अध्ययन के लिए उत्सुक रहते हैं। अंतरिक्षयान जो इनके पट्टे के बीच से गए हैं, उन्होंने पाया है कि ये पट्टा सघन नहीं है, इन क्षुद्र ग्रहों के बीच में काफी सारी खाली जगह है। अक्टूबर 1991 में गैलीलियो यान क्षुद्रग्रह क्रमांक 951 गैसपरा के पास से गुजरा था। अगस्त 1993 में गैलीलियो ने क्षुद्रग्रह क्रमांक 243 इडा की नजदीक से तस्वीरें ली थीं।
अब तक हजारो क्षुद्रग्रह देखे जा चुके हैं और उनका नामकरण और वर्गीकरण हो चुका है। इनमें प्रमुख है टाउटेटीस, कैस्टेलिया, जीओग्राफोस और वेस्ता। 2पालास, 4 वेस्ता और 10 हाय्जीया ये 400 किमीऔर 525 किमी के व्यास के बीच हंै। बाकि सभी क्षुद्रग्रह 340 किमी व्यास से कम के हैं। धूमकेतू, चन्द्रमा और क्षुद्रग्रहों के वर्गीकरण में विवाद है। कुछ ग्रहों के चन्द्रमाओं को क्षुद्रग्रह कहना बेहतर होगा जैसे मंगल के चन्द्रमा फोबोस और डीमोस , गुरू के बाहरी आठ चन्द्रमा ,शनि का बाहरी चन्द्रमा फोएबे वगैरह।
पांच प्राण
प्राचीन काल में जीवन- वायु के पांच प्रकारों का उल्लेख मिलता है- प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान। ये पंच प्राण कहलाते हैं। इसके अलावा प्राणों के पांच प्रकार के और भेदों का उल्लेख मिलता है- नाग, कूर्म, कृकिल , देवदत्त और धनंजय।
व्यापक अर्थ में प्राण का अर्थ ज्ञानेन्द्रिय या चेतना से लिया जाता है।. मृत्यु के समय प्राण सात मार्ग से निकलता है- आंख, कान, मुंह, नादि, गुदा, ब्रह्मïंध्र और मूत्रेन्द्रिय। वेद , उपनिषद, रामायण महाभारत और गीता - ये भारतीय संस्कृति के पांच प्राण माने गए हैं।