राष्ट्रीय
लखनऊ, 20 अप्रैल | 'एक कोशिश ऐसी भी' - यह किसी फिल्म का शीर्षक नहीं है, लेकिन ये शब्द आज के समय में संकट में घिरे लोगों के लिए आशा की एक किरण की तरह हैं। एक कोशिश ऐसी भी नामक एक एनजीओ है, जो 42 साल की वर्षा वर्मा द्वारा संचालित है। यह एनजीओ कोविड-19 संक्रमण से दम तोड़ चुके लोगों के शवों को श्मशान घाट तक पहुंचाने और यहां तक कि उनका अंतिम संस्कार करने में भी मदद कर रहा है।
एनजीओ खासतौर पर बुजुर्गों और बेसहारा लोगों की मदद करने के लिए जमीनी स्तर पर काम में जुटा हुआ है।
वर्षा ने दो साल पहले इस पहल को शुरू करने का फैसला किया था, जब उन्होंने अपने दोस्त को खो दिया था और उसके दाह संस्कार के लिए एक शव लेकर जाने वाली वैन के लिए उन्हें कई घंटों तक इंतजार करना पड़ा था।
तब वर्षा ने फैसला किया कि वह दूसरों को इसी तरीके से पीड़ित नहीं होने देंगी।
उन्होंने इसके बाद फेसबुक पर एक पोस्ट डालकर शवों को उठाने और एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाने के लिए किराए पर वैन की मांग की।
इस बारे में बता करते हुए वर्षा ने कहा, "कुछ घंटों बाद ही मेरे पास कई फोन कॉल आए और शाम तक मैं एक वाहन किराए पर लेने में कामयाब रही। बाद में, मेरे भाई हितेश वर्मा और मैंने एक ड्राइवर की तलाश की। जैसे ही हमें हमारी टीम में ड्राइवर मिला, मैंने एक पोस्टर के साथ आरएमएल अस्पताल के पास बैठना शुरू कर दिया, जिसमें लिखा गया था, निशुल्क शव वाहन। शुरूआत में लोगों की उलझन भरी प्रतिक्रिया देखने को मिली, लेकिन बाद में कुछ परिवार मदद मांगने आए। कुछ रोगियों के रिश्तेदार थे, जो मेरे साथ श्मशान घाट गए थे, जबकि कुछ के पास तो कोई भी नहीं था। हमने पहले दिन पांच और दूसरे दिन नौ शवों का अंतिम संस्कार किया।"
जल्द ही वर्षा और उनकी टीम के दो सदस्यों के लिए यह काम एक पूर्ण सेवा में बदल गया, जब पिछले साल महामारी शुरू हुई।
जैसे ही उन्हें कोई फोन आता है या कोई परिवार उनके पास आता है तो वह वैन निकालती हैं और कोविड-19 संक्रमण की वजह से जान गंवाने वाले व्यक्ति के शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मशान घाट ले जाती हैं।
ऐसे समय में जब कोविड मरीज के निधन के बाद संक्रमण फैलने के डर से लोग उनके शव को छूने या दाह संस्कार करने से परहेज कर रहे हैं, उस वक्त वर्षा बिना किसी शुल्क के इस कार्य को अंजाम दे रही हैं।
पीपीई किट पहने, वर्षा और उसकी टीम के सदस्य अस्पताल या मृतक के घर जाते हैं और शव को श्मशान घाट ले जाते हैं। अंतिम संस्कार किए जाने के बाद वे परिवार को उनके घर वापस भी भेज देते हैं।
इसके लिए फंड दिव्या सेवा फाउंडेशन से आता है, जिसे उन्होंने 2017 में सामाजिक कार्य करने के लिए स्थापित किया था।
वर्षा ने कहा, "बचपन से, हमें मृतकों का सम्मान करने के लिए सिखाया गया है। ऐसे समय में जब लोग हर घंटे असहाय है और मर रहे हैं, यह उन लोगों के प्रति सम्मान का मार्ग है, जो महामारी का शिकार हो रहे हैं।"
हालांकि लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करना पुलिस का कर्तव्य है, मगर जब वह काफी व्यस्त होते हैं तो इसके लिए वर्षा की मदद भी लेते हैं।
जब पुलिस द्वारा अंतिम संस्कार किया जाता है, तो शवों को आमतौर पर एक कपड़े में पैक करके खुले रिक्शे में ले जाया जाता है, लेकिन वर्षा एक वाहन की व्यवस्था करती हैं और शव को सम्मान के साथ श्मशान पहुंचाती हैं।
वर्षा ने कहा कि उन्हें बैकुंठ धाम और गुलाल घाट श्मशान घाट पर कार्यकतार्ओं से बहुत मदद और समर्थन मिल रहा है।
उनके पति, राकेश एक इंजीनियर हैं और उनका कहना है कि इस महामारी के समय पर उन्हें वर्षा को लेकर चिंता भी है।
वर्षा अपनी बेटी नंदिनी के लिए एक आदर्श हैं, जो अपनी मां पर गर्व करती हैं और उनकी तरह ही बनना चाहती है। (आईएएनएस)