सामान्य ज्ञान
प्रजापति कश्यप जी की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरुड़ और अरुण। अरुण जी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।
जटायु पंचवटी में रहते थे। एक दिन आखेट के समय महाराज दशरथ से इनका परिचय हुआ और ये महाराज के अभिन्न मित्र बन गये। वनवास के समय जब भगवान श्री राम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे, तब जटायु से उनका परिचय हुआ। भगवान श्री राम अपने पिता के मित्र जटायु का सम्मान अपने पिता के समान ही करते थे। जटायु ने सीता का हरण करके ले जा रहे रावण से युद्ध किया था। रावण ने तलवार से उनके पंख काट डाले। जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े । भगवान श्री राम सीता जी को खोजते हुए जटायु के पास आए। जटायु मरणासन्न थे, लेकिन उन्होंने सीता के संबंध में सारी जानकारी श्रीराम को दी। भगवान श्री राम ने जटायु के शरीर को अपनी गोद में रख लिया। उन्होंने पक्षिराज के शरीर की धूल को अपनी जटाओं से साफ किया। जटायु ने उनके मुख-कमल का दर्शन करते हुए उनकी गोद में अपना शरीर छोड़ दिया। राम-लक्ष्मण ने उसका दाह-संस्कार, पिंडदान तथा जलदान किया।