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चीन-अमेरिका संघर्ष में भारत की भूमिका
21-Apr-2021 9:50 PM
चीन-अमेरिका संघर्ष में भारत की भूमिका

बीजिंग, 21 अप्रैल | हर कोई वर्तमान चीन-अमेरिका संघर्ष को बहुत स्पष्ट रूप से देखता है। दोनों देश कूटनीति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, और रणनीति के सभी पहलुओं में भीषण प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। यहां तक कि दक्षिण चीन सागर और ताइवान के सवाल पर चीन और अमेरिका के बीच सैनिक मुठभेड़ होने का खतरा भी मौजूद है। कुछ अंतर्राष्ट्रीय रणनीतिकारों ने अमेरिका और चीन को 'नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था' पर समझ तक पहंचने का आह्वान किया। यानी चीन और अमेरिका को शांति बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा और सहयोग के क्षेत्रों के दायरे को निर्धारित करना चाहिए।

21वीं शताब्दी में चीन व अमेरिका के बीच फिर भी सहयोग करने की गुंजाइश है, जिससे दोनों पक्ष हितों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। लेकिन अमेरिका की 'आधिपत्य' स्थिति और चीन के 'ताइवान एकीकरण' असंगत विरोधाभास हैं। ध्यान रहे कि जब चीन और अमेरिका ने आधी सदी पहले राजनयिक संबंध स्थापित किए थे, तब तो अमेरिका दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश था। इसके आधिपत्य के लिए एकमात्र खतरा सोवियत संघ का था और उस समय ताइवान के स्वाधीन होने की कोई संभावना भी नहीं थी।

उस समय चीन और अमेरिका रणनीतिक हितों के आदान-प्रदान के माध्यम से उभय जीत प्राप्त कर सकते थे। हालांकि आज की स्थिति में पूर्ण रूप से बदलाव आया है। चीन के विकास से अमेरिका के आधिपत्य को चुनौती दी गई है। दूसरी ओर, ताइवान के साथ एकीकरण करना चीन का मुख्य हित है।

यह निर्विवाद है कि चीन-अमेरिका संघर्ष से भारत को अनुकूल स्थिति प्राप्त हुई है, क्योंकि चीन को अमेरिका का मुकाबला करने के लिए अपने प्रयासों को केंद्रित करना पड़ता है, जबकि अमेरिका भी हिंद-प्रशांत रणनीति के माध्यम से भारत को अपने शिविर में खींचना चाहता है। कुछ भारतीयों का मानना है कि भारत अमेरिका के सहारे सीमा मुद्दे पर चीन को रियायत देने में मजबूर कर सकता है। हालांकि, पिछले दो वर्षो में सीमा पर हुए टकराव से भारत और चीन दोनों पक्षों को कोई भी लाभ नहीं हुआ। इसके बजाय, दोनों देशों ने भारी कीमत चुकाई। उधर, अमेरिका केवल यही चाहता है कि भारत उसके चीन विरोधी मोर्चे में शामिल हो जाए।

अपने हितों के मुद्दे पर अमेरिका हमेशा बहुत स्वार्थी रहा है। उदाहरण के लिए, भारत का वैक्सीन उत्पादन अमेरिका से 37 प्रमुख कच्चे माल के आयात पर निर्भर है, लेकिन अमेरिका घरेलू जरूरतों के कारण भारत को इन कच्चे माल के निर्यात को प्रतिबंधित करता है। अमेरिका वर्तमान में नए कोरोना वायरस टीकों का दुनिया में दूसरा बड़ा उत्पादक है, पर वह बहुत कम टीके निर्यात करता है। यदि अमेरिका भारत को वैक्सीन सामग्रियों की आपूर्ति बंद कर दे, तो भारत और उन देशों, जिन्हें भारतीय वैक्सीन की सख्त जरूरत है, के लिए विनाशकारी हो जाएगा।

हाल ही में, चीन और भारत के प्रतिनिधियों ने सैन्य कमांडर-स्तरीय वार्ता के 11वें दौर का आयोजन किया। हालांकि, दोनों पक्षों ने एक संयुक्त बयान का मसौदा जारी नहीं किया, न ही उन्होंने राष्ट्रीय रक्षा मंत्रालय से जानकारी जारी की। इसलिए यह संदेह है कि दोनों पक्षों के बीच बातचीत गतिरोध में फंस गई है। सभी सैन्य क्रियाएं रणनीतिक निर्णय का परिणाम हैं।

यदि भारतीय पक्ष हमेशा यह मानता है कि चीन-अमेरिकी संघर्ष एक ऐसा अवसर है जिसका भारत लाभ उठा सकता है, तो इस गलतफहमी का परिणाम केवल नई त्रासदियों को जन्म दे सकता है, क्योंकि चीन ताइवान मुद्दे को हल करने के लिए पश्चिम के सीमावर्ती क्षेत्रों के नुकसान की अनुमति नहीं देगा और इतिहास ने यह साबित किया है कि अमेरिका हमेशा अपने सहयोगियों के प्रति उपयोगवादी रुख अपनाता रहता है। हमें देखना है कि तीसरे पक्ष के लिए चीन-अमेरिकी टकराव एक सुअवसर बनता है या जाल। (आईएएनएस)

(साभार : चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)

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