संपादकीय

‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब क्या जनता दिल-दिमाग से वोट देने के बजाय फेंफड़ों से वोट देना सीखेगी?
22-Apr-2021 1:21 PM
‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : अब क्या जनता दिल-दिमाग से वोट देने के बजाय फेंफड़ों से वोट देना सीखेगी?

भारतीय लोकतंत्र में जनता की दिक्कतें बड़ी अदालतों के जितने करीब रहती हैं उतनी ही अधिक उभरकर दिखती हैं, और देश की राजधानी दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट भी है, और दिल्ली का हाईकोर्ट भी, वहां पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग, अल्पसंख्यक आयोग जैसी देश की सबसे ताकतवर संवैधानिक संस्थाएं स्थापित हैं। इसलिए जब दिल्ली पर कोई दिक्कत आती है तो ये अदालतें और ये दूसरी संस्थाएं सबसे पहले उसकी तरफ गौर करती हैं। इस व्यवस्था का नतीजा यह निकला कि कल दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली के अस्पतालों में भर्ती हजारों मरीजों की जान खतरे में देखते हुए रात तक सुनवाई की, और केंद्र सरकार को ऑक्सीजन की कमी तुरंत दूर करने का हुक्म दिया। लेकिन जैसा कि जाहिर है दिल्ली हाईकोर्ट का कार्य क्षेत्र दिल्ली तक सीमित है, और यह अर्जेंट याचिका दिल्ली के एक सबसे बड़े और महंगे निजी अस्पताल समूह की ओर से लगाई गई थी कि उसके सैकड़ों मरीजों के लिए बस कुछ घंटों की ऑक्सीजन बाकी है। बड़े वकील थे, मामले की तुरंत सुनवाई हुई, और केंद्र सरकार ने आनन-फानन यह वादा किया कि उसने दिल्ली के लिए ऑक्सीजन का कोटा बढ़ा दिया है और वह ऑक्सीजन की कमी नहीं होने देगी। लेकिन अदालत ने केंद्र सरकार से इस आश्वासन के पहले जो कहा उन शब्दों को न सिर्फ दिल्ली के लिए केंद्र सरकार की जिम्मेदारी के तौर पर, बल्कि पूरे देश के लिए केंद्र सरकार की जिम्मेदारी और राज्य-सरकारों की जिम्मेदारी के तौर पर भी, देखने की जरूरत है। 

दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि पेट्रोल और स्टील इंडस्ट्री की ऑक्सीजन सप्लाई रोक कर सरकार को इसे अपने हाथों में ले लेना चाहिए, उद्योगों को ऐसे वक्त पर ऑक्सीजन देना, कारोबारी लालच की इंतहा है। अदालत ने कहा कि यह (केंद्र) सरकार आसपास की सच्चाई से इतनी बेखबर कैसे हो सकती है? जज ने कहा-हम हैरान और हताश हैं कि सरकार मेडिकल ऑक्सीजन की इतनी अहम जरूरत को लेकर सचेत नहीं है। अदालत ने यह भी कहा कि सबसे अहम बात यह है कि किसी की मौत ऑक्सीजन की कमी के कारण नहीं होना चाहिए। किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट का ऐसा कड़ा रुख ऐसे कड़े शब्दों में इसके पहले का याद नहीं पड़ता जब केंद्र सरकार से अदालत ने यह कहा हो कि भीख मांगो, उधार मांगो, या चोरी करके लाओ, कहीं से भी ऑक्सीजन लेकर आओ, वरना हजारों जिंदगियां खत्म हो जाएंगी। अदालत ने कहा कि जनता सिर्फ सरकार पर निर्भर हो सकती है, और ऐसी बुनियादी इमरजेंसी में लोगों को सुरक्षा देने के लिए सरकार को जो करना हो करे, वह भीख मांगे, उधार मांगे, या चोरी करे लेकिन जनता की जिंदगी बचाए। 

अदालत में बातचीत का यह पूरा सिलसिला दिल्ली को लेकर सीमित था, लेकिन आज देश भर से जो खबरें आ रही हैं वे भयानक हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार की राजधानियों में निजी अस्पतालों ने नोटिस लगा दिए हैं कि वहां मरीजों के लिए ऑक्सीजन नहीं बची है और मरीजों के घरवाले उन्हें दूसरे अस्पतालों में ले जाएं और दूसरे अस्पतालों का हाल यह है कि वहां न बिस्तर है ना ऑक्सीजन है ना दवाइयां हैं और वेंटीलेटर जैसी बड़ी सुविधाओं की बात तो छोड़ ही दें। एक अस्पताल के नोटिस की फोटो आई है कि बीस मिनट के भीतर मरीज को ले जाएँ, क्योंकि उसके बाद के लिए ऑक्सीजन नहीं है। पूरे देश में यही हाल है और पूरे देश की जनता यह भी देख रही है कि किस तरह केंद्र सरकार चलाने वाली भारतीय जनता पार्टी, और उसके बड़े बड़े नेता, बड़े-बड़े मंत्री पिछले एक-डेढ़ महीने से किस तरह लगातार दिल्ली के बाहर चल रहे थे और किस तरह लगातार चुनावी राज्यों में चुनाव प्रचार में लगे हुए थे। कल के दिल्ली हाईकोर्ट के रुख को देखें, उसके कड़े शब्दों को देखें, तो लगता है कि दिल्ली राज्य से बाहर भी पूरे देश में ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर जो जिम्मेदारी केंद्र सरकार की बन रही थी, वह जिम्मेदारी चुनावी लाउडस्पीकर के शोर में खो चुकी थी। केंद्र सरकार के एक दिग्गज रेल मंत्री, पीयूष गोयल राज्यों को यह सुझाव देते दिख रहे थे कि उन्हें ऑक्सीजन की खपत पर रोक लगानी चाहिए। देश के लोग यह सुनकर हैरान थे कि मरीजों को दी जाने वाली ऑक्सीजन में किस किस्म की कटौती और किफायत बरती जा सकती है ? लोगों ने सोशल मीडिया पर रेल मंत्री की इस बात को लेकर जो कुछ लिखा है वह अखबार में लिखने लायक बात भी नहीं है लेकिन हकीकत यही है कि यह देश जिस किस्म के गैरइंतजाम का शिकार हुआ है, और यह शब्द लिखना जरूरी इसलिए है कि यह बात बदइंतजाम की नहीं, गैरइंतजाम की है, कोई इंतजाम ही नहीं रह गया। और अब जब कोरोना वायरस वाली मौतें हिंदुस्तान को दुनिया में अव्वल होने का एक शर्मनाक खिताब दिला चुकी हैं तो मानो केंद्र सरकार जागी है, और किसी एक राज्य को ऑक्सीजन देने का कोटा बढ़ाकर वह फटकार लगा रही अदालत को संतुष्ट करना चाहती है। 

आज पूरे देश से जगह-जगह सोशल मीडिया पर आम लोग गुहार लगा रहे हैं कि एक ऑक्सीजन वाले बिस्तर की जरूरत है, ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत है, जीवन रक्षक इंजेक्शन की जरूरत है, वेंटिलेटर की जरूरत है, लेकिन पूरे देश में इसकी कोई तैयारी नहीं दिख रही है राज्य सरकारों की अपनी जिम्मेदारियां अपनी जगह पर हैं, लेकिन केंद्र सरकार, जिसने कि महामारी एक्ट के तहत पूरे देश का कोरोना नियंत्रण, कोरोना से बचाव, कोरोना से जुड़ी हर बात को अपने कब्जे में रखा हुआ था, अपने काबू में रखा हुआ था, जहां रोज केंद्र सरकार की ओर से राज्यों को नोटिस और सलाह जारी हो रहे थे, वहां पर आज अगर पूरा देश इस कदर बिना तैयारी के बैठा हुआ है तो इसकी जिम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा केंद्र सरकार पर आता है जिसने वक्त रहते चीजों पर काबू नहीं किया। जिसने हिंदुस्तान में कोरोना की हेल्थ इमरजेंसी के रहते हुए, चलते हुए, पिछले एक साल में ऑक्सीजन दूसरे देशों को एक्सपोर्ट की।  जिसने वक्त रहते हुए यह तैयारी नहीं की कि ऑक्सीजन की कमी पडऩे के पहले, ऑक्सीजन की खपत वाली किन इंडस्ट्रीज को सप्लाई रोक कर, वहां की सप्लाई को मेडिकल ऑक्सीजन में बदलकर उसका इस्तेमाल किया जा सकता है। आज अगर हाईकोर्ट का एक जज इस बात को बड़ी तल्खी के साथ सरकार को सिखाने की कोशिश कर रहा है, तो सरकार में बैठे हुए बड़े-बड़े मंत्री और बड़े बड़े अफसर इतने बरसों में क्या सीखे हुए हैं ? क्या इनको खुद होकर यह समझ नहीं आ रहा था कि पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी से तबाही मची हुई है और ऐसे में उद्योगों को ऑक्सीजन देना बंद करना चाहिए ? उद्योगों का ऑक्सीजन का उत्पादन अस्पतालों की तरफ मोडऩा चाहिए ? यह बात आज दिल्ली हाईकोर्ट में केंद्र सरकार का वकील कह रहा है कि ऐसे उद्योगों को बंद करने में 72 घंटे का समय लगता है, तो यह 72 घंटे का समय पिछले हफ्ते-दस दिन में क्यों इस्तेमाल नहीं किया गया जब पूरे देश में ऑक्सीजन की कमी थी ? 

आज हमारे पास दिल्ली हाईकोर्ट के जज की की हुई टिप्पणियों से अधिक कड़ा लिखने के लिए कुछ भी नहीं है। हम आमतौर पर ऐसे मामलों में बहुत कड़ा लिखते हैं लेकिन उससे भी अधिक कड़ा दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है। उसमें केंद्र सरकार को कहां है कि आप भीख मांगो, उधार मांगो, या चोरी करो, लेकिन जिंदगियों को बचाना आपकी जिम्मेदारी है। यह एक बहुत ही साफ आईना केंद्र सरकार को दिखाया है हाईकोर्ट ने, और इससे जो शर्मिंदगी लोगों को होनी चाहिए वह शर्मिंदगी ताली, थाली, दिया-मोमबत्ती, इन सबसे जा नहीं  सकती, इन सबसे धुल नहीं सकती। इनकी रोशनी में यह शर्मिंदगी और उभरकर दिखेगी। आज देश यह देखकर हैरान है कि लोगों के पास सिवाय लफ्फाजी,  सिवाय बयान देने के, और कुछ नहीं बचा है लोगों की जिंदगी को बचाने के लिए। और इस बात को समझ लेना चाहिए कि आज देश में कोरोना की यह हालत कोई अंत नहीं है। आज सुबह के आंकड़े बता रहे हैं कि किस तरह तीन लाख को पार करके काफी आगे बढ़ चुके हैं कोरोना के 24 घंटों के आंकड़े। किस तरह से मौतें 2000 को पार करके आगे बढ़ रही हैं। एक दिन में यह नौबत पूरे देश की जनता का भरोसा केंद्र सरकार और राज्य सरकारों पर से भी उठाने के लिए बहुत है। केंद्र सरकार जिसको कि पूरे देश को एक योजना में जोडक़र चलना चाहिए था, जो पूरी तरह से अपनी फौलादी शिकंजे में देश के राज्यों को लेकर चल रही थी, जो एक-एक बात को तय कर रही थी, जो एक एक बात के लिए जवाब मांग रही थी राज्य सरकारों से, आज उसके खुद के पास अदालत में देने के लिए कोई जवाब नहीं है। यह इतनी शर्मनाक नौबत है, इतनी शर्मनाक नौबत है कि इससे इस देश की लीडरशिप उबरेगी कैसे ? आज इस देश में यह माहौल लग रहा है कि मानो चुनाव जीत लेना, किसी राज्य का चुनाव जीत लेना, केंद्र की कुछ सीटों का उपचुनाव जीत लेना, यही इस देश को चलाने की कामयाबी है, यही लोकतंत्र को चलाने की कामयाबी है, यही मानवता के प्रति सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। यह किस नौबत में आकर यह देश खड़ा हो गया है कि जहां मरीज को स्ट्रेचर पर लेकर दौड़ रहे हैं घरवाले, और अगर वह खुशकिस्मत हैं तो आधे लोग ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर साथ-साथ दौड़ रहे हैं। लोग सडक़ों के किनारे कहीं से ऑक्सीजन सिलेंडर जुटाकर बैठे हैं। और यह तो बातें उनकी जिनको ऑक्सीजन सिलेंडर मिल गया है, बाकी को तो मौत के बाद दफन होना या जलना भी नसीब नहीं हो रहा है।  मध्यप्रदेश के एक जिले की ऐसी भयानक तस्वीरें आई है जहां पर मरघट में लकडिय़ों को और गोबरियों को जमा-जमाकर पहले से तैयार करके रखा जा रहा है, कि जैसे-जैसे लाशें आएं, वैसे-वैसे उनको तुरंत जलाया जाए।

यह देश अस्पताल की तैयारी नहीं कर सका, टीके और दवाई की तैयारी नहीं कर सका, ऑक्सीजन की तैयारी नहीं कर सका, लेकिन यह जरूर है कि मध्यप्रदेश जैसे एक राज्य में यह देश एडवांस में चिताओं की तैयारी करके रख रहा है कि मुर्दा पहुंचे उसके पहले चिता तैयार रहना चाहिए, मृतक के सम्मान में कोई गुस्ताखी नहीं होना चाहिए ! आज पूरे देश को, दिल्ली को ही नहीं, और दिल्ली के हाईकोर्ट को ही नहीं, पूरे देश को यह देखने की जरूरत है कि यह किस मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है ! और क्या नेताओं के दिए गए बयानों से किसी की जिंदगी बच रही है ? किसी की सांसें चल रही हैं ? किसी के घर के मृतक को सम्मान के साथ जलने का मौका मिल रहा है ? आज यह देश सरकार की बदइंतजामी, गैरइन्तजामी, सरकार की नाकामी को लेकर जिस मुहाने पर आकर खड़ा हुआ है इस मुहाने पर तो यह देश अपने पूरे इतिहास में कभी भी नहीं खड़ा था। देश की जनता इस बात को कब तक याद रखेगी और कब तक अपने सामूहिक सम्मोहन के चलते हुए बार-बार उन्हीं नेताओं को चुनते रहेगी, इसको वह जनता जाने।  और जनता की जिंदगी और मौत उसकी ऐसी पसंद से ही जुड़ी रहेगी। अब क्या जनता दिल-दिमाग से वोट देने के बजाय फेंफड़ों से वोट देना सीखेगी? फिलहाल तो दिल्ली हाईकोर्ट ने जो कहा है इन लाइनों को यहां लिखने से अधिक कड़ा हमारे पास कुछ नहीं है।

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