ताजा खबर

कोरोना संक्रमण से मरने और बचने वालों में इस फ़र्क़ को समझिए
23-Apr-2021 2:52 PM
कोरोना संक्रमण से मरने और बचने वालों में इस फ़र्क़ को समझिए

-ऐम्बर डांस

कोविड19 बीमारी करने वाला कोरोना वायरस इंसानी शरीर के लिए नया वायरस है. इससे लड़ने की प्रक्रिया में शरीर का इम्यून सिस्टम ओवर-रिएक्ट कर सकता है जिससे वो शरीर को ही क्षति पहुंचा सकता है.

भारत के अस्पताल इन दिनों कोविड-19 के मरीज़ों से भरे हैं. इस वायरस से भारत में अब तक लगभग दो लाख लोगों की मौत हो चुकी है.

मरने वालों में ज़्यादातर वो लोग हैं जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर है. लेकिन ऐसा नहीं है कि दूसरों को इससे ख़तरा नहीं. कोरोना से मरने वालों में बहुत से नौजवान और सेहतमंद लोग भी शामिल हैं.

इसकी क्या वजह है?
हमारे शरीर में जब भी कोई बैक्टीरिया या वायरस घुसता है तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता उससे लड़ती है और उसे कमज़ोर करके ख़त्म कर देती है.

लेकिन, कई बार हमारे शरीर के दुश्मन या बीमारी से लड़ने वाली कोशिकाओं की ये सेना बाग़ी हो जाती है.और दुश्मन को ख़त्म करने की कोशिश में ख़ुद हमारे ही शरीर को ही नुक़सान पहुंचाने लगती है.

जिन कोशिकाओं की उन्हें हिफ़ाज़त करनी है, ये लड़ाकू दस्ता उन्हीं पर हमला बोल देता है.

जब हमारा इम्यून सिस्टम ज़रूरत से ज़्यादा सक्रिय होकर रोगों से लड़ने के बजाय हमारे शरीर को ही नुक़सान पहुंचाने लगता है, तो उसे 'साइटोकाइन स्टॉर्म' कहते हैं.

इसमें इम्यून सेल फेफड़ों के पास जमा हो जाते हैं और फेफड़ों पर हमला करते हैं. इस प्रक्रिया में ख़ून की नसें फट जाती हैं. उनसे ख़ून रिसने लगता है और ख़ून के थक्के बन जाते हैं. नतीजतन शरीर का ब्लड प्रेशर कम हो जाता है. दिल, गुर्दे, फेफड़े और जिगर जैसे शरीर के नाज़ुक अंग काम करना बंद करने लगते हैं या कह सकते हैं कि ये शिथिल पड़ने लगते हैं.

इस स्थिति को जांच और इलाज के बाद नियंत्रित किया जा सकता है. लेकिन कोविड-19 के मरीज़ों में इसे काबू करने के लिए क्या तरीक़ा हो सकता है, फ़िलहाल कहना मुश्किल है.

कोमा में भी जा सकते हैं मरीज़
शरीर में जब भी साइटोकाइन स्टॉर्म होता है तो ये सेहतमंद कोशिकाओं को भी प्रभावित करता है. ख़ून के लाल और सफ़ेद सेल ख़त्म होने लगते हैं और जिगर को नुक़सान पहुँचाते हैं.

जानकारों का कहना है कि साइटोकाइन स्टॉर्म के दौरान मरीज़ को तेज़ बुखार और सिरदर्द होता है. कई मरीज़ कोमा में भी जा सकते हैं. ऐसे मरीज़ हमारी समझ से ज़्यादा बीमार होते हैं. हालांकि अभी तक डॉक्टर इस परिस्थिति को महज़ समझ पाए हैं. जांच का कोई तरीक़ा हमारे पास नहीं है.

कोविड-19 के मरीज़ों में साइटोकाइन स्टॉर्म पैदा होने की जानकारी दुनिया को वुहान के डॉक्टरों से ही मिली है. उन्होंने 29 मरीज़ों पर एक रिसर्च की और पाया कि उनमें आईएल-2 और आईएल-6 साइटोकाइन स्टोर्म के लक्षण थे.

वुहान में ही 150 कोरोना केस पर की गई एक अन्य रिसर्च से ये भी पता चला कि कोविड से मरने वालों में आईएल-6 सीआरपी साइटोकाइन स्टोर्म के मॉलिक्यूलर इंडिकेटर ज़्यादा थे. जबकि जो लोग बच गए थे उनमें इन इंडिकेटरों की उपस्थिति कम थी.

अमरीका में भी कोविड के मरीज़ों में साइटोकाइन स्टॉर्म का प्रकोप ज़्यादा देखा गया है.

डॉक्टरों का कहना है कि कोविड-19 के मरीज़ों में प्रतिरोधक क्षमता के सेल्स फेफड़ों पर बहुत जल्दी और इतनी तेज़ी से आक्रमण करते हैं कि फेफड़ों पर फ़ाइब्रोसिस नाम के निशान बना देते हैं. ऐसा शायद वायरस की सक्रियता की वजह से होता है.

ऐसा पहली मर्तबा नहीं है कि साइटोकाइन स्टॉर्म का रिश्ता किसी महामारी से जोड़ कर देखा जा रहा है. वैज्ञानिकों के मुताबिक़ 1918 में फैले फ्लू और 2003 में सार्स महामारी (सार्स महामारी का कारण भी कोरोना वायरस परिवार का ही एक सदस्य था) के दौरान भी शायद इसी वजह से बड़े पैमाने पर मौत हुईं थीं. और शायद एच1एन1 स्वाइन फ़्लू में भी कई मरीज़ों की मौत, अपनी रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं के बाग़ी हो जाने की वजह से ही हुई थी.

वैज्ञानिकों का मानना है कि महामारियों वाले फ़्लू में मौत शायद वायरस की वजह से नहीं बल्कि मरीज़ के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक सक्रिय होने की वजह से होती है. जब शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही असंतुलित हो जाएगी तो मौत होना तय है.

अपनी इम्यून सेल को बेक़ाबू होने से बचने के लिए ज़रूरी है कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को ही शांत किया जाए. इसके इलाज के लिए स्टेरॉयड ही पहली पसंद हैं. लेकिन कोविड के संदर्भ में अभी ये स्पष्ट नहीं है कि स्टेरॉयड इसमें लाभकारी होंगे या नहीं.

मान लीजिए साइटोकाइन से लड़ने के लिए स्टेरॉयड अगर बम हैं तो अन्य दवाएं टार्गेटेड मिसाइलें हैं. मरीज़ को ये दवाएं इसलिए दी जाती हैं, ताकि इम्यून सिस्टम बरक़रार रहे और गड़बड़ कोशिकाएं खत्म कर दी जाएं.

मिसाल के लिए अनाकिन्रा (क्रेनेट) एक प्राकृतिक मानव प्रोटीन का संशोधित संस्करण है जो साइटोकाइना IL-1 के लिए रिसेप्टर्स को रोकता है. ये रिह्यूमोटाइड आर्थराइटिस के इलाज के लिए अमरीका की सरकार से मान्यता प्राप्त है.

इसी तरह टोसिलिज़ुमाब (एक्टेम्रा) भी कोविड-19 में फ़ायदेमंद साबित हो सकती है.

सामान्य तौर पर इसका इस्तेमाल भी गठिया, जोड़ों के दर्द और इम्योथेरेपी वाले कैंसर के मरीज़ों में साइटोकाइन स्टॉर्म नियंत्रित करने के लिए किया जाता है.

फ़रवरी महीने में चीन में कोविड के 21 मरीज़ों पर इसका इस्तेमाल किया गया था. कुछ ही दिनों में कोविड के बहुत से लक्षण कम हो गए थे. दो हफ्ते में ही 19 मरीज़ों को घर भेज दिया गया था.

कोविड-19 के लिए साइटोकाइन ब्लॉकर्स पर कई तरह की क्लिनिकल रिसर्च की जा रही हैं. टोसिलिज़ुमाब पर इटलीऔर चीन में भी रिसर्च की जा रही है.

कोविड के मरीज़ों में साइटोकाइन स्टॉर्म नियंत्रित करने में टोसिलिज़ुमाब काफ़ी कारगर साबित हुई है. डॉक्टर्स का कहना है कि साइटोकाइन स्टॉर्म को पहचानना ही अपने आप में बड़ी बात है. अक्सर देखा गया है कि ये आकर गुज़र जाता है लेकिन डॉक्टर इसे समझ ही नहीं पाते.

रोग प्रतिरोधक क्षमता हमें रोगों से बचाती है, लेकिन अगर ये ही हमें मौत के घाट उतार दे तो फिर क्या किया जाए. यक़ीनन हमें अपनी इस क्षमता को बाग़ी होने से रोकना ही होगा. रिसर्चर इस दिशा में काम कर रहे हैं. (bbc.com)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news