सामान्य ज्ञान
तंजानिया का संयुक्त गणराज्य, अफ्रीका महाद्वीप के पूर्वी भाग में स्थित एक देश है, जिसकी सीमाएं, उत्तर में कीनिया और युगांडा, पश्चिम में रवांडा, बुरुंडी और कांगो, दक्षिण में ज़ाम्बिया, मलावी और मोजाम्बिक से मिलती हैं, तथा देश की पूर्वी सीमा हिंद महासागर द्वारा निर्धारित होती है।
तंजानिया का संयुक्त गणराज्य, 26 प्रदेशों जिन्हें मिकाओ कहते हैं, से मिलकर बना है, जिनमें जंज़ीबार का स्वायत्त क्षेत्र भी शामिल है। 1996 से, तंजानिया की सरकारी राजधानी दोदोमा है, जहां संसद और कुछ सरकारी कार्यालय स्थित हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर 1996 के बीच, तटीय शहर दार अस सलाम ने देश की राजनीतिक राजधानी बना रहा। आज, दार-एस-सलाम तंजानिया का सबसे प्रमुख वाणिज्यिक शहर है और ज्यादातर सरकारी कार्यालय यहीं पर स्थित हैं। यह देश का और उसके स्थलरुद्ध पड़ोसी देशों के लिए सबसे प्रमुख बंदरगाह है।
26 अप्रैल सन 1964 ईसवी को जंजीबार और तांगानीका देशों को मिलाकर तंज़ानिया देश अस्तित्व में आया। इससे पहले तक दोनों देश विभिन्न शक्तियों के अधीन रहे। अंत में इन पर ब्रिटेन का अधिकार था दोनों की जनता के निरंतर विरोध के बाद और कड़े संघर्ष के पश्चात 1961 में तांगानीका और 1963 में जंजीबार ब्रिटेन से स्वतंत्र हो गए। 1964 ईसवी में जूलियस नायरे रे ने जिन्होंने ब्रिटेन के विरुद्ध तांगानीका की जनता के संघर्ष का नेतृत्व किया और जो इस देश के पहले राष्ट्रपति बने अपने देश और ज़ंज़ीबार के विलय की मांग की। उनकी यह इच्छा पूरी हुई और वे तंज़ानिया के भी पहले राष्ट्रपति बने।
दुनिया का पहला अखबार कब निकला
26 अप्रैल वर्ष 1630 को विश्व क्षेत्र का पहला समाचार पत्र जर्मनी से प्रकाशित हुआ। लोज़ नामक इस समाचार पत्र ने विश्व में एक ऐसे उद्योग और पेशे को अस्तित्व प्रदान किया जो इस समय राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक का एक महत्वपूर्ण भाग समझा जाता है। उल्लेखनीय है कि इस वर्तमान समय में लोज़ समाचार पत्र के कुछ नमूने विश्व के बड़े संग्राहलयों में मौजूद हैं।
वहीं भारत में पहली बार 30 मई, 1826 को हिन्दी का प्रथम पत्र ‘उदंत मार्तंड’ का पहला अंक प्रकाशित हुआ। यह पत्र साप्ताहिक था। ‘उदंत-मार्तंड की शुरुआत ने भाषायी स्तर पर लोगों को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया। यह केवल एक पत्र नहीं था, बल्कि उन हजारों लोगों की जुबान था, जो अब तक खामोश और भयभीत थे। इस पत्र के संपादक जुगल किशोर को सहायता के अभाव में 11 दिसंबर, 1827 को पत्र बंद करना पड़ा। 10 मई, 1829 को बंगाल से हिन्दी अखबार बंगदूत का प्रकाशन हुआ। यह पत्र भी लोगों की आवाज बना और उन्हें जोड़े रखने का माध्यम। इसके बाद जुलाई, 1854 में श्यामसुंदर सेन ने कलकत्ता से ‘समाचार सुधा वर्षण’ का प्रकाशन किया। उस दौरान जिन भी अखबारों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कोई भी खबर या आलेख छपा, उसे उसकी कीमत चुकानी पड़ी। अखबारों को प्रतिबंधित कर दिया जाता था। उसकी प्रतियां जलवाई जाती थीं, उसके प्रकाशकों, संपादकों, लेखकों को दंड दिया जाता था। उन पर भारी-भरकम जुर्माना लगाया जाता था, ताकि वो दुबारा फिर उठने की हिम्मत न जुटा पाएं।