विचार / लेख

कोरोना मैडम की अंग्रेजी
27-Apr-2021 8:10 PM
कोरोना मैडम की अंग्रेजी

-विजय मिश्रा ‘अमित’

कोरोना वायरस के संक्रमण काल ने स्कूल-कॉलेज में भले ही ताला बंदी कर रखा है, लेकिन कोरोना गुरू घंटाल ने लोगों को शिक्षित करने के मामले में देश की आजादी के सत्तर साल को पीछे छोड़ दिया है। देश में शिक्षा के क्षेत्र में जो विकास सात दशकों में नहीं हुआ उससे कहीं ज्यादा कोरोना ने अपने एक साल के कार्यकाल में लोगों को गजब शिक्षित कर दिया है। खासकर अंग्रेजी के शब्दों के ज्ञान के मामले में पिछले एक साल का इतिहास  तो देश में स्वर्णिम काल के रूप में जाना जाएगा।

बीते एक वर्ष में जहां अनेक स्कूल-कॉलेज बंद हो गए, वहीं बिना प्रयास के देशभर में चारों ओर कोरोनावायरस का स्कूल खुल गया है। इस स्कूल में छोटे बड़े बूढ़े नौजवान युवक युवती सभी भर्ती हो गए हैं। चौक-चौराहों, पान-गुपचुप ठेलों  में खड़े-खड़े लोग कई कठिन अंग्रेजी शब्दों को ऐसी सहजता से बोल रहे हैं मानों सदियों से वे उसका इस्तेमाल करते आ रहे हैं। अंग्रेजी मीडियम के बच्चे की तो छोडि़ए सरकारी हिंदी मीडियम स्कूल के बच्चे और गांव खेड़े के लोग भी कोरोना स्कूल की अंग्रेजी पढ़ाई में अव्वल चल रहे हैं।

कोरोना मैडम द्वारा सिखाए  गए अंग्रेजी शब्दों को बोलने की होड़ सी मच गई है। कोरोना स्कूल में अंग्रेजी शब्दों का ज्ञान अनायास हुए बरसात के बाद बाजार में सस्ते हो चले टमाटर के भांति बेभाव मिल रहा है। अंग्रेजी के जिन कठिन कठिन शब्दों को  मार मार के स्कूल में रटाए जाते थे, ऐसे अंग्रेजी के शब्दों से भी कहीं ज्यादा ‘टीपिकल और लेटेस्ट’ शब्दों को घर में बैठे-बैठे कोरोना मैडम सबको सीखा दे रहीं हैं। कोरोना स्कूल का शानदार रिजल्ट ‘ग्लो साईन बोर्ड’ की तरह  चमक रहा है। कोरोना मैडम के द्वारा लोकप्रिय बनाए गए अंग्रेजी शब्दों का  प्रताप धूंआंधार दिखाई दे रहा है। अंधे-गूंगे-बहरे भी इन शब्दों को देख-बोल-सुन पा रहे हैं।

शहरियों की तो छोडि़ए गंवई गांव के लोग भी ठांय-ठांय कोरोनामय अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं। जिसे सुन सुन कर कोरोना स्कूल के हेड मास्टर कोविड महाशय की छाती छप्पन इंच हुए जा रही है। वे गर्व से सीना ठोक-ठोक  कर देशवासियों को बता रहे हैं कि भय बिना प्रीत न होई गोपाला।

कोरोना स्कूल ‘चलता-फिरता शिक्षालय (शौचालय)’ की तरह  गली मोहल्ले में अंग्रेजी का असामान्य ज्ञान बांटते फिर रहा है। दिन-रात लोगों के आगे पीछे चलते-फिरते कोरोना संबद्ध अंग्रेजी शब्दों को बोलने के लिए सबके सिर पर डंडा बरसा रहा है। जिसका सुपरिणाम है कि  सोते जागते आदमी तो आदमी रेडियो, टीवी,और  अखबार भी एंटीजन सैंम्पल, आरटीपीएस आर, निगेटिव, पॉजि़टिव, सेनेटाइजर, मास्क, सोशल डिस्टेसिंग, रेमडेसिविर, लॉकडाउन, हैंडवाश, इम्यूनिटी, वेक्सीनेशन, ग्रीन-टी,ग्लब्स, ऑक्सीजन बेड, कोविड केयर सेंटर, होम आइसोलेशन, आक्सीमीटर, ग्लूकोमीटर, थर्मामीटर, क्वांरेटाइन सेंटर, वर्चुअल मीटिंग, होम डिलीवरी, एक्टिव केस, फ्लैग मार्च, रेड अलर्ट,ऑक्सीजन लेवल, ऑक्सीजन कंसट्रेटर, अनलाक, कंटेंटमेंट जोन, वेंटिलेटर फ्रंटलाइन कोरोना वारियर्स, जैसे अंग्रेजी शब्दों से लदे गूंथे पड़े हैं।

उत्तरप्रदेश में तो शिक्षा (व्यवसाय) जगत के किसी डेढ़ होशियार ने बकायदा कोरोना इंटरनेशनल स्कूल भी आरंभ कर दिया है। अस्पतालों में तो कुछ शिशु जन्मदाताओं ने नए नामकरण की अंधी चाहत में नवजात शिशु का नामकरण कोरोना बाई, कोविड सिंह, वेक्सीन कुमार, इम्यूनिटी ठाकुर, कंटेंटमेंट जोन रखना आरंभ कर दिया है। ए सब देख-सुनकर कहना पड़ेगा ‘तेरा क्या होगा रे कालिया।’

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