विचार / लेख
-कनुप्रिया
कमाल की बात यह है कि आज जो चैनल ‘व्यवस्था’ पर ठीकरा फोड़ रहे हैं, वो कल तक देश की व्यवस्था छोड़ मंदिर और मस्जिद पर कवरेज कर रहे थे। वो मंदिरों के अवशेष ढूँढ रहे थे, अपने चैनल्स पर बैठकर चिन्दी चोर मौलानाओ और पन्डतों को बुलाकर दिन रात धर्म मज़हब की बहस करा रहे थे।
यही चैनल्स अंधविश्वास फैलाने वाले कार्यक्रमों, नागलोक, पाताललोक , स्वर्ग की सीढ़ी और एलियन्स जैसी मूर्खताओं से भरे रहते थे। ये यन्त्र, ताबीज़, नजऱ के टोटके बेच रहे थे। और जब उनसे जी भर जाता था तो पाकिस्तान के षडय़ंत्र इस तरह दिखाते थे मानो भारतीय ख़ुफिय़ा एजेंसीज पहली ब्रेकिंग न्यूज़ इन्हें ही देती हैं, तब भी इन्हें पुलवामा का पता नही चला।
इन चैनल्स ने पिछले 7 साल में व्यवस्था की बिल्कुल सुध नही ली, बिहार में जब दिमाग़ी बुख़ार से मौतें हो रही थीं तो अंजना ओम कश्यप बिहार की सरकार से सवाल पूछने की जगह अस्पताल में घुसकर डॉक्टर्स को लताड़ लगा रही थीं, मानो पत्रकार न होकर ख़ुद सरकार हों। यही चैनल्स थे जिन्होंने उत्तरप्रदेश में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों पर सवाल न करके डॉक्टर कफ़ील ख़ान की गिरफ्तारी में ज़्यादा रुचि दिखाई थी, बल्कि कहें कि भूमिका निभाई थी।
जिस समय देश की चिकित्सा व्यवस्था पर बात करने उसके खोखलेपन और कमी को दिखाने की।ज़रूरत थी उस समय यही चैनल्स जमातियों को कोरोना जिहादी साबित करने पर अपना एड़ी चोटी का जोर लगा रहे थे।
जब जरूरत थी कि व्यवस्था के जरूरी अंग प्रवासी मजदूरों की तकलीफ पर फोकस किया जाता ये सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के लिये एक लडक़ी को बलि का बकरा बनाने में मशगूल थे।
जिन्होंने व्यवस्था के सारे ज़रूरी सवालों को गुनाह के स्तर तक नजऱंदाज़ करके सिफऱ् नफऱत, मूर्खता, अफ़वाह न और टुटपुँजियपन को हवा देने का काम किया, जिन्हें 7 साल में व्यवस्था शब्द को याद तक करना उचित नही समझा, वो अचानक से ढेर समझदार होकर देश की इस मारक दुर्दशा पर सिस्टम सिस्टम अलाप रहे हैं, मानो सिस्टम अब तक कोई निहायत ही अदृश्य वस्तु थी जो अचानक प्रकट हो गई हो।
आज अगर देश का सिस्टम खऱाब है तो इसमें सबसे बड़ा योगदान इन्ही मीडिया चैनल्स का है, और ये आज भी उसे मज़ीद खऱाब करने में ही लगे हुए हैं।
सिस्टम का सबसे ज़्यादा सड़ चुका भाग ये गोदी मीडिया चैनल ही हैं, ये महीने भर भी बंद हो जाएँ तो देश को व्यवस्था की इस दुर्गंध से थोड़ी राहत मिल जाए।