विचार / लेख

कौन जाने आपको किसका कंधा नसीब होगा...
29-Apr-2021 5:31 PM
कौन जाने आपको किसका कंधा नसीब होगा...

-कृष्ण कांत

किसी को भी जीवन की आखिरी यात्रा में कंधा चाहिए, वह कंधा हिंदू का हो या मुसलमान का, इससे फर्क नहीं पड़ता।

इलाहाबाद के हाईकोर्ट के जॉइंट रजिस्ट्रार हेम सिंह की पत्नी और बेटी की पहले ही मौत हो चुकी थी। वे इलाहाबाद में अकेले रह रहे थे। एक हफ्ते पहले हेम सिंह खुद कोरोना पॉजिटिव हुए। उन्होंने इटावा में रहने वाले अपने दोस्त सिराज अहमद चौधरी को सूचना दी। सिराज ने उनको एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया। अस्पताल ने पैसे मांगे तो सिराज ने दो लाख रुपये भी जमा कराए। हालांकि, हेम सिंह बच नहीं सके। इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।

हेम सिंह की तबियत बिगड़ी तो सिराज को जानकारी दी गई। वे इटावा से भागकर इलाहाबाद पहुंचे। हेम सिंह की मौत के बाद सिराज ने उनके रिश्तेदारों को फोन किया। एक-एक करके कम से कम 20 रिश्तेदारों और परिचितों से बात की लेकिन कोई कंधा देने को तैयार नहीं हुआ। रिश्तेदारों ने कोरोना संक्रमण का हवाला देकर संस्कार करने से मना कर दिया। जब कोई तैयार नहीं हुआ तो सिराज अपने दोस्त का शव एम्बुलेंस में लेकर फाफामऊ श्मशान घाट पहुंचे। उन्होंने हेम सिंह के साथ रहने वाले संदीप और एम्बुलेंस के दो लडक़ों की मदद से अंतिम संस्कार किया। सिराज अहमद ने खुद मुखाग्नि दी। अंतिम संस्कार करने के बाद सिराज तीन दिन तक हेम सिंह के यहां ही रुके रहे।

सिराज को जब हेम सिंह की तबियत बिगडऩे की खबर मिली तो वे इटावा से अपनी बहन की सास के जनाजे में शामिल होने आगरा जा रहे थे। वे आगरा न जाकर इलाहाबाद दोस्त के पास आ गए। सिराज ने बताया, ‘अंतिम संस्कार के लिए हेम सिंह के एक करीबी रिश्तेदार को जब फोन किया तो सपाट जवाब मिला, आप लोग हैं तो हमारी क्या आवश्यकता है। आप लोग पर्याप्त हैं।’

रिश्तेदारों ने किनारा कर लिया। दोस्त कैसे छोड़ सकता था? उसने दोस्ती का फर्ज निभाया। दोस्त को अंतिम विदाई देने के लिए 400 किलोमीटर का सफर तय किया और दोस्त को सम्मानजनक विदाई दी।

सम्मानजनक अंतिम संस्कार किसी भी व्यक्ति का अधिकार है। हमारे पिता जी किसी का अंतिम संस्कार कराने में सबसे आगे रहते थे। कहते थे कि किसी व्यक्ति को सम्मान के साथ मुखाग्नि देना पुण्य का काम है। पाप और पुण्य का मुझे नहीं पता, लेकिन व्यक्ति को गरिमापूर्ण विदाई देना मानवता है।

संकट का समय सबक लेने का भी समय होता है। ये महामारी हमें सिखा रही है कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। हमारी गंगा जमुनी तहजीब कोई मिथक नहीं है। वह इस पावन धरती का संस्कार है जो हम सबकी रगों में है। इसीलिए आज जाति धर्म का बंधन तोडक़र एक मुस्लिम एक हिंदू को रीति रिवाज के साथ अंतिम विदाई दे रहा है। 

आपस में प्रेमभाव बनाए रखें और किसी के कहने से किसी से नफरत न करें। कौन जाने आपकी अंतिम यात्रा में आपको किसका कंधा नसीब होगा।

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