सामान्य ज्ञान
तीन बीघा गलियारा, पिछले दशकों में काफी चर्चा में रहा है। यह भारतीय भूमि का वह हिस्सा है जिसे लेकर भारत और बांग्लादेश के बीच लगभग चार दशक तक विवाद की स्थिति रही।
बांग्लादेश जब आजाद हुआ उस समय भारत-बांग्लादेश सीमा पर कई ऐसे क्षेत्र थे जो प्रशासनिक रूप से तो एक देश के अधिकार में थे लेकिन उन तक पहुंच मार्ग दूसरे देश से होकर जाता था। ऐसे क्षेत्रों की अदला-बदली के लिए 1971 में ही दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान की अगुवाई में हुए इस समझौते में पहली बार तीन बीघा गलियारे का जिक्र किया गया था। समझौते के मुताबिक 1974 तक बांग्लादेश को अपने दक्षिण बेरूबारी क्षेत्र का एक हिस्सा भारत को सौंपना था और इसके बदले में उसे तीन बीघा गलियारे का नियंत्रण मिलना था.। भारतीय भूमि का यह 178 & 85 वर्ग मीटर क्षेत्र बांग्लादेश के दहाग्राम-अंगारपोटा इलाके के लिए पहुंच मार्ग है।
समझौते के बाद कुछ ही महीनों में बांग्लादेश ने दक्षिण बेरूबारी का हिस्सा भारत को सौंप दिया, लेकिन उसे तीन बीघा गलियारा क्षेत्र पर नियंत्रण नहीं मिला। दरअसल भारत द्वारा बांग्लादेश को यह क्षेत्र दिए जाने की दिशा में कई कानूनी और संवैधानिक अड़चनें तो थी हीं साथ ही इस मामले पर पश्चिम बंगाल में काफी विरोध भी देखने को मिल रहा था। वर्ष 1974 में जब मसला नहीं सुलझा तो भारत-बांग्लादेश के बीच 1982 में फिर एक समझौता हुआ, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी.।
वर्ष 1992 में फिर से एक समझौता हुआ और तीन बीघा गलियारा दिन में छह घंटे के लिए बांग्लादेशी नागरिकों की आवाजाही के लिए खोलने पर सहमति बन गई। जून, 1996 में यह अवधि बढ़ाकर 12 घंटे कर दी गई, लेकिन इस बीच इस क्षेत्र का नियंत्रण भारत के पास ही रहा। तीन बीघा गलियारा को लेकर एक व्यापक समझौता वर्ष 2011 में हो पाया जब यह क्षेत्र लीज पर बांग्लादेश को दे दिया गया।