सामान्य ज्ञान

मधुवन
04-May-2021 12:12 PM
मधुवन

मधुवन, मधुपुरी या महोली, मथुरा के पास का एक वन है। मान्यता है कि इसका स्वामी मधु नाम का दैत्य था। 
मथुरा से लगभग साढ़े तीन मील दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित यह ग्राम वाल्मीकि रामायण में वर्णित मधुपुरी के स्थान पर बसा हुआ है। मधु नामक दैत्य  के पुत्र लवणासुर को शत्रुघ्न ने युद्ध में पराजित कर उसका वध कर दिया था और मधुपुरी के स्थान पर उन्होंने नई मथुरा या मथुरा नगरी बसाई थी। महोली ग्राम को आजकल मधुवन-महोली कहते हैं। महोली मधुपुरी का अपभ्रंश है। लगभग 100 वर्ष पूर्व इस ग्राम से गौतम बुद्ध की एक मूर्ति मिली थी। इस कलाकृति में भगवान को परमकृशावस्था में प्रदर्शित किया गया है। यह उनकी उस समय की अवस्था का अंकन है जब बोधिगया में 6 वर्षों तक कठोर तपस्या करने के उपरांत उनके शरीर का केवल शरपंजन मात्र ही अवशिष्ट रह गया था।
इस वन का उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है।  विष्णुपुराण में भी यमुना तटवर्ती इस वन का वर्णन है। विष्णुपुराण से सूचित होता है कि शत्रुघ्न ने मधुवन के स्थान पर नई नगरी बसाई थी। हरिवशंपुराण के अनुसार इस वन को शत्रुघ्न ने कटवा दिया था। पौराणिक कथा के अनुसार बालक धु्रव ने इसी वन में तपस्या की थी। 
प्राचीन संस्कृत साहित्य में मधुवन को श्रीकृष्ण की अनेक चंचल बाल-लीलाओं की क्रीड़ास्थली बताया गया है। यह गोकुल या वृन्दावन के निकट कोई वन था। आजकल मथुरा से साढ़े तीन मील दूर महोली मधुवन नामक एक ग्राम है। यह ब्रज के प्रसिद्ध बारह वनों में से एक है। मथुरा से लगभग साढ़े तीन मील दक्षिण-पश्चिम की ओर स्थित यह ग्राम वाल्मीकि रामायण में वर्णित मधुपुरी के स्थान पर बसा हुआ है।  
 

कौन थे लिच्छवि

लिच्छवि नामक जाति ईसा पूर्व छठी सदी में बिहार प्रदेश के उत्तरी भाग यानी मुजफ्फरपुर जिले के वैशाली नगर में निवास करती थी। लिच्छ नामक महापुरुष के वंशज होने के करण इनका नाम लिच्छवि पड़ा अथवा किसी प्रकार के चिह्न (लिक्ष) धारण करने के कारण ये इस नाम से प्रसिद्ध हुए। लिच्छवि राजवंश इतिहास प्रसिद्ध है जिसका राज्य किसी समय में नेपाल, मगध और कौशल में था।
प्राचीन संस्कृत साहित्य में क्षत्रियों की इस शाखा का नाम  निच्छवि  या  निच्छिवि  मिलता है । पाली रूप लिच्छवि  है। मनुस्मृति के अनुसार लिच्छवि लोग व्रात्य क्षत्रिय थे । उसमें इनकी गणना झल्ल, मल्ल, नट, करण, खश और द्रविड़ के साथ की गई है । ये  लिच्छवि  लोग वैदिक धर्म के विरोधी थे। इनकी कई शाखाएं दूर दूर तक फैली थीं। वैशालीवाली शाखा में जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी हुए और कौशल की शाक्य शाखा में गौतम बुद्ध प्रादुर्भूत हुए। किसी समय मिथिला से लेकर मगध और कोशल तक इस वंश का राज्य था। जिस प्रकार हिंदुओं के संस्कृत ग्रंथों में यह वंश हीन कहा गया है, उसी प्रकार बौद्धों और जैनों के पालि और प्राकृत ग्रंथों में यह वंश उच्च कहा गया है । गौतम बुद्ध के समसामयिक मगध के राजा बिंबसार ने वैशाली के लिच्छवि लोगों के यहां संबंध किया था । 
 

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