सामान्य ज्ञान

भारत में मसाला पार्क कहां स्थापित हैं
05-May-2021 12:19 PM
भारत में मसाला पार्क कहां स्थापित हैं

भारत में मसाला उत्पादक क्षेत्रों में भारतीय मसाला बोर्ड द्वारा मसाला  पार्क स्थापित किए गए हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश के गुना में भी ऐसा ही मसाला पार्क शुरू किया गया है। 
 गुना का मसाला पार्क देश के विभिन्न मसाला उत्पादक क्षेत्रों में मसाला बोर्ड द्वारा स्थापित किए गए मसाला पार्कों में चौथा मसाला पार्क है, जिसमें 45 करोड़ रुपये का निवेश हुआ है। भारतीय मसाला बोर्ड ने मसाला उत्पादकों की सहायता के लिए 7 स्थानों पर मसाला पार्क स्थापित करने के लिए कदम उठाएं है, ताकि उन्हें वैज्ञानिक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकें। इससे पहले स्थापित तीन पार्क मध्यप्रदेश में छिंदवाड़ा में, केरल में पुट्टादी में और राजस्थान में, जोधपुर में पहले से ही कार्य कर रहे है। मसाला बीजों की पैदावार लेने के बाद किसान या तो सस्ता किराया देकर पार्क में अपने पैदावार को रख सकते हैं या पार्क के अंदर स्थित मसाला प्रोसेसरों को सीधे बेच सकते हैं। इसमें बिचौलियों की भूमिका बहुत कम है, जिससे किसानों को अपनी पैदावार का उचित दाम मिलेगा।  इन पार्कों में निर्यातक भी मसाला बोर्ड द्वारा निर्धारित शर्तों पर अपने यूनिट खोल सकते हैं।
 मसाला पार्कों को मसालों और मसाला उत्पादों के प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन के लिए औद्योगिक पार्क माना जाता है, जहां अंतर्राष्ट्रीय मापदंडों के अनुरूप प्रोसेसिंग की सुविधाएं होती है। क्षेत्रीय फसलों की आवश्यकता के अनुसार स्थापित मसाला पार्क, मसाला बीजों की खेती, पैदावार के बाद की सुविधाओं, मूल्य संवद्र्धन के लिए प्रोसेसिंग, पैकेजिंग, भंडारण और मसालों तथा मसाला उत्पादों के निर्यात की प्रक्रियाओं में ताल-मेल रखता है, ताकि उपभोक्ता देशों को गुणवत्ता वाले मानदंडों के अनुरूप आपूर्ति हो सके।
 

चारण किसे कहा जाता है?
चारण, भाट या कथावाचक,  भारत के पश्चिमी गुजरात राज्य में रहने वाले और  हिंदू जाति की वंशावली का विवरण रखने वाले  वंशावलीविद था। ये राजस्थान की राजपूत जाति से अपनी उत्पत्ति का दावा करते हैं और संभावत: मिश्रित ब्राह्मण और राजपूत वंश से उत्पन्न हो सकते हैं। 
इनके कई रिवाज उत्तरी भारत में उनके प्रतिरूप भाटों से मिलते- जुलते हैं। दोनों समूह वचनभंग के बजाय मृत्यु वरण को अधिक महत्व देने के लिए  विख्यात हैं।  चारण योद्धा और राजाओं से संबंधित कथा गीतों की रचना एक विशिष्ट पश्चिमी राजस्थानी बोली में करते हैं, जिसे डिंगल कहा जाता है, जिसका प्रयोग किसी अन्य उद्देश्य के लिए नहीं किया जाता है। 
 

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