सामान्य ज्ञान

बांस की अनोखी टैक्सियां
05-May-2021 12:26 PM
बांस की अनोखी टैक्सियां

दुनिया में बांस का क्या - क्या उपयोग होता है, इसकी कहानी काफी लंबी है, लेकिन अब इससे टैक्सियां भी बनने लगी हैं। ये टैक्सियां अनोखी इसलिए भी हैं, क्योंकि यह कोई पेट्रोल या डीजल से नहीं बल्कि नारियल से तैयार बायोडीजल पर चलती हैं।  इन टैक्सियों का 90 फीसदी हिस्सा बांस का है और ये  इन्हें ईको टैक्सी नाम दिया गया है तथा फिलहाल इनके दो मॉडल तैयार किए गए हैं -ईको 1 और ईको 2 । ईको 1 में 20 आदमी बैठ सकते हैं। एक गैलन बायोडीजल में यह आठ घंटे तक चलती है। ईको 2 भी एक गैलन बायोडीजल में आठ घंटे चलती है, हालांकि इसमें 8 आदमी ही बैठ सकते हैं। वैसे ईको 2 में स्टीरियो साउंड सिस्टम भी है।
 दरअसल ये बांस की टैक्सियां फिलीपींस के टाबोंटाबोन शहर के मेयर रूस्टिको बाल्डेरियन की सोच की उपज हैं, जिन्होंने शहरवासियों की जरूरतों को ध्यान में रख इन्हें तैयार कराया। धान की खेती के लिए जाने जाने वाले इस छोटे-से शहर में लोगों के आवागमन का मुख्य साधन मोटरसाइकिलें हैं। भाड़े के वाहनचालक पांच-छह लोगों को बैठाकर मोटरसाइकिलें चलाते हैं, जो असुविधाजनक और खतरनाक होते हैं। आवागमन के साधन के रूप में इन मोटरसाइकिलों के विकल्प के तौर पर बांस की टैक्सियों को तैयार किया गया है। इनकी लागत तो कम है ही, ये सुरक्षित और पर्यावरण हितैषी  यानी इको फ्रैंडली भी हैं। 
बांस तेजी से नवीनीकरण होने योग्य वस्तु है तथा स्थानीय तौर पर प्रचुरता में उपलब्ध है। बांस काफी लचीला होता है और इस दृष्टि से इसकी मजबूती भी कम नहीं आंकी जा सकती। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इन टैक्सियों को स्थानीय स्तर पर पर स्थानीय सामग्री से स्थानीय युवकों ने तैयार किया है।

कार्ल माक्र्स 
5 मई सन 1818 ईसवी को जर्मनी के दार्शनिक और मार्कसिज़्म विचारधारा के संस्थापक कार्ल माक्र्स का जन्म हुआ। उन्होंने पहले कानून और फिर दर्शनशास्त्र एवं इतिहास की शिक्षा प्राप्त की। वे कुछ समय तक एक पत्रिका के संपादक रहे और सन 1848 में अपने एक साथी फ्रिडरेश ऐंगलस के साथ मिलकर उन्होंने एक पुस्तक में अपने विचारों और दृष्टिकोणों को प्रस्तुत किया। राजनैतिक गतिविधियों के कारण उन्हें दो वर्ष बाद जर्मनी से देश निकाला दे दिया गया। जिसके बाद अंतिम आयु तक वे ब्रिटेन में रहे । 
कार्ल माक्र्स की महत्वपूर्ण पुस्तकों में कम्युनिस्ट मेनिफ़ेस्टो और दास कैपिटल है। उनका मानना था कि विश्व में पूंजीवाद का पतन होगा और मज़दूर वर्ग की सरकार बनेगी। जो वर्गरहित समाज के लिए कार्य करेगी। माक्र्स का निधन सन 1883 में हुआ, लेकिन उनका दृष्टिकोण बाद तक चर्चा में रहा। सन 1990 में पूर्व सोवियत संघ के विघटन के पश्चात माक्र्स की भविष्यवाणियों की पोल खुलती गई।
 

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