विचार / लेख

डंक कर पैना चल बढ़ा सेना, चल ततइया चल ततइया
05-May-2021 6:50 PM
डंक कर पैना चल बढ़ा सेना, चल ततइया चल ततइया

-प्रकाश दुबे

परदे के पास बैठकर सिनेमा देखने वाले दर्शकों के प्रिय अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती टोपी लगाकर बांकी अदा में चुनाव प्रचार करते पाए गए। अचानक तबियत बिगडऩे पर ऊटी के अपने घर-होटल में आराम करने खिसक गए। मतगणना के दो दिन पहले सहसा कोलकाता के राजभवन में प्रकट हुए। फिलमी कयास अफवाह बनकर लोगों की जबान पर पहुंचा-मिठुदा को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। गुलूबंद इशारा यह, कि ममता की रवानगी तय है।

राजभवन में मिथुन की आवभगत भी रोबदार तरीके से हुई। शहर कोलकाता और वहां भी राजभवन पहुंचने की चटपटी चर्चा को मतगणना का दीमक चट कर गया। आप जानें कि नक्सलबाड़ी आंदोलन के समर्थन की वैचारिक शुरुआत छोडक़र डिस्को डांसर बनकर ठुमके लगाने वाला कलाकार राजभवन काहे जा पहुंचा? तबियत बिगडऩे पर चिंतित राज्यपाल ने मिथुन की मिजाजपुर्सी की थी। ठीक होने पर चाय पीने बुलाया था। चुनावी फिल्म खत्म होने से पहले चाय पर चर्चा कर ली। इस बहाने प्रचार हुआ कि तबियत की अनदेखी कर जीत के लिए कोश्प्चािश् की। श्रेय याद दिलाने और भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रचार का अलबत्ता किसी को फायदा नहीं हुआ।     

छोड़ मीठा गुड़, तू वहां तक उड़

बंबइया फिल्मों में सुर नहीं जमा। दिल्ली वालों की सियासी-सरगम में शामिल होकर बाबुल सुप्रियो लोकसभा सदस्य और राज्यमंत्री बने। अच्छे दिन कट रहे थे। अचानक दिल्ली वालों का आदेश मिलने पर टालीगंज के चुनावी कीचड़ में कूदना पड़ा। बुझे मन से भद्रलोक के बांग्ला चित्रलोक पहुंचे। ममता बनर्जी सरकार के सूचना मंत्री अरूप बिश्वास से चुनावी पटखनी खाकर बाबुल प्रसन्न हैं। राज्यमंत्री की कुर्सी बची।

बाबुल की तरह चुनाव मैदान में उतारे गए लगभग सभी सांसद पहलवान हारकर खुश हैं। पार्टी और अपनी हार से दिल्ली का घर बचा। अंग्रेजी के आधा दर्जन अखबारों में काम करने और भाजपा पक्ष में किताबें लिखने वाले स्वपन दासगुप्त एकमात्र अपवाद हैं। तारकेश्वर से विधानसभा चुनाव लडऩे के लिए राज्यसभा सदस्यता से त्यागपत्र दिया। दुनियादारी नहीं सीखी? अजी, मुफ्त में नैतिकता का पुण्य मिला। गनीमत है कि उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडु ने राज्यसभा से त्यागपत्र मंजूर नहीं किया।

थाम तुरही, छोडक़र मीठा पपइया

भाषण देने और रैली करने से किसी को रोका नहीं था। इसका मतलब यह नहीं, कि लुटियन के टीले पर रहने वालों को संसद और सांसदों की सेहत की चिंता नहीं होती। कोरोना महामारी के डर से लुटियन इलाके में संसद अधिवेशन और संसदीय समितियों की बैठकों में कटौती हो जाती है। संसद की वर्तमान इमारत कुछ सालों की मेहमान है। चुनाव लडऩे वाले और लड़ाने वाले भी इन दिनों फुर्सत हैं। हालात की बदहाली के बावजूद कुछ सांसद देश की बेहाली पर चर्चा की मांग उठा रहे हैं। समितियों की बैठक के लिए सभापति बार बार पत्र लिखते हैं। खतोकिताबत कर परेशान करने वालों में जयराम रमेश शामिल हैं। दिल्ली के अस्पतालों में बिस्तर और प्राणवायु यानी आक्सीजन के लिए हाहाकार मचा है। मंत्रियों और कुछ सांसदों के महामारी के चपेट में आने के बावजूद ये नादान मांग करने से बाज नहीं आते।

काट तन मोटी व्यवस्था का

आस्ट्रेलिया दोस्त देश है। वहां के अखबार ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यकुशलता पर तीखी कलम चलाई। भारतीय उच्चायुक्त ने तुरंत अखबार को चिट्ठी लिखकर प्रतिवाद किया। न अखबार ने ध्यान दिया और न अभिव्यक्ति की आजादी के हिमायती देश की सरकार ने। बल्कि भारत से हवाई यातायात पर रोक लगा दी। गाजियाबाद वासी कवि गजलकार कुंअर बेचैन महामारी की चपेट में आए। शब्द और भाव के धनी कवि का बेटा प्रगीत आस्ट्रेलिया से आने के लिए छटपटाता रहा। न तो प्रगीत की प्रधानमंत्री से दोस्ती है और न विदेशमंत्री जयशंकर को उनकी गुहार सुनने की फुर्सत मिली।

कवि के प्रशंसकों के प्रयास परवान नहीं चढ़े। कवि और कारोबारी में यही अंतर है। इस भेद को कुंअर बेचैन भलीभांति जानते थे। चल ततइया रचना में कवि ने कहा था-काट तन मोटी व्यवस्था का जो धकेले जा रही है देश का पइया। चल ततइया, है जहां पर कैद पेटों में रुपइया। व्यवस्था का पहिया नहीं हिला। बेटे की राह तकते कवि के प्राण पखेरू उड़ गए।

भास्करवारी के सारे शीर्षक उनकी रचना चल ततइया से। कवि की स्मृति को समर्पित हैं।

 (लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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