विचार / लेख
पहली तस्वीर दिल्ली के युवा इरतिज़ा कुरैशी की है। दूसरी तस्वीर दिल्ली के बुरारी के लक्ष्मण तिवारी और उनके 4 साल के बेटे की है। पिछले दिनों लक्ष्मण तिवारी के माँ -बाप दोनों का एक ही दिन कुछ घंटों के अंतराल में डेथ हो गया था। मां को दिए जा रहा ऑक्सीजन खत्म हो चुका था। एक घंटे तक हांफने, तेजी से घरघराहट, छटपटाहट और बेटे द्वारा पम्पिंग के बाद भी उनके मां की मौत हो गई।
बमुश्किल कुछ घंटे बाद ही जब तक लक्ष्मण तिवारी इस दु:ख को संभाल पाते, उनके पिता भी ऑक्सीजन के लिए हांफने लगें। हताश बेटे ने अपने पिता की छाती को पंप करना शुरू किया। लेकिन उनके पिता ने भी साथ छोड़ दिया। माँ-बाप की मौत लक्ष्मण और उनके चार साल के बेटे के आँखों के सामने हो गई। लक्ष्मण के ऊपर जैसे वज्रपात हो गया। पत्नी हॉस्पिटल में भी गंभीर थी । रोये कि बच्चे को सम्हाले ,कि माँ -बाप की लाश को अंतिम संस्कार के लिए ले जाये। लक्ष्मण ने पास के पड़ोसियों के यहाँ दौड़ लगाना शुरू किया। सबसे मदद मांगी। लेकिन एक आदमी लक्ष्मण और उसके बच्चों को सहारा देने नहीं आया।
लक्ष्मण ने रिश्तेदारों को फ़ोन लगाया ,लेकिन कोई नहीं आया।15 घण्टे तक दोनों माँ -बाप का शव घर में पड़ा रहा। यह खबर किसी तरह दिल्ली के 35 साल के युवा इरतिज़ा कुरैशी तक पहुंचती है। इरतिज़ा सुबह 4 बजे ही बुरारी थाने पहुंच जाते हैं और इस परिवार की मदद के लिए गुहार लगाते हैं।लेकिन पुलिस की तरफ से कहा जाता है, “हमारे पास ऐसी कोई सुविधा नहीं है। 102 या 112 पर कॉल करें।“ वो 102 नंबर पर कॉल करता है तो उसे जवाब मिलता है, "हमारे पास कोविड मरीजों के शवों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। हम केवल जीवित रोगियों के मामलों को हैंडल करते हैं।” 112 नंबर डायल करने पर उन्हें अजीबोगरीब चीजें बताई जाती है, "आप जस्टडायल के लिए प्रयास क्यों नहीं करते और नंबर क्यों नहीं लेते हैं?"
इरतिज़ा सामाजिक संगठनों की मदद मांगते हैं। एक संगठन तैयार होता है तो शर्त लगा देता है, शव को श्मसान के बाहर छोड़ आएंगे।ड्राइवर हाथ लगाएगा तो 8 हज़ार लगेगा। परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वे इसे वहन कर सकें। शव भी गर्मी की वजह से खराब होना शुरू हो गया था। इरतिज़ा फिर पुलिस से गुहार करता है प्लीज़ इस परिवार में चार साल का बच्चा है,उसकी मनोदशा समझिए कुछ कीजिए। पुलिस मदद करने से फिर इंकार कर देता है और इरतिज़ा को सलाह देते हैं श्मसान घाट जाकर देखिये वहाँ कोई एम्बुलेंस होगा। इरतिज़ा तुरंत निगमबोध घाट जाते हैं। वहाँ बुरी स्थिति थी, वे घण्टों इंतजार नहीं कर सकते थे। उन्होंने वेब पोर्टल हिंदुस्तान लाइव के फरहान याहिया से मदद मांगी साथ ही डीसीपी नार्थ दिल्ली को टैग किया। वेब पोर्टल ने लाइव किया ।
एक करोड़ लोगों ने देखा। लेकिन मदद को एक ही आया, उसका भी धर्म इस्लाम था। करीब 22 घंटे की कड़ी मशक्कत, दुख और निराशा के बाद लक्ष्मण के माता-पिता को आखिरकार 'सम्मानजनक' विदाई मिलती है। चार साल का बच्चा करीब पूरे एक दिन अपने दादा-दादी की क्षत-विक्षत लाशों को देखता है और उसके पिता मदद की भीख माँगते हैं फिर भी एक आदमी मदद को नहीं आता है। यही समाज बनाया है हमने। इस तिवारी परिवार के दर्जनों मिश्र,शुक्ला, पांडेय,चौबे आदि से नाता जरूर रहा होगा । इरतिज़ा उस चार साल के बच्चे के लिए किसी सुपरहीरो से कम नहीं है। जब नफ़रत बोई जाएगी इरतिज़ा के कौम के खिलाफ तो मुझे पूरी उम्मीद है लक्ष्मण तिवारी का चार साल का बेटा आगे आकर प्रतिकार करेगा। इरतिज़ा जिंदाबाद.