सामान्य ज्ञान

भोरताल नृत्य
07-May-2021 12:16 PM
भोरताल नृत्य

लोक नृत्य पूर्वोत्तर  असम राज्य की संस्कृति का एक अविभाज्य अंग हैं। बहुत से लोकनृत्य पेशेवर नर्तकों के बजाय सामान्य लोगों द्वारा किए जाते हैं। सामान्यत: विशेष अवसरों पर ग्रामीण एकत्रित होकर विभिन्न लोक वाद्यों के साथ गाते-बजाते हैं। ऐसे विशेष अवसरों में, फसल कटाई, बुवाई, शादियां व धार्मिक अवकाश शामिल हैं।
विख्यात सतरिया कलाकार, बुरहा बब्कर, द्वारा विकसित भोरताल नृत्य वस्तुत: संकारी संस्कृति का विस्तार है। झांझ-मंजीरा लिए 6 से 10 नर्तक यह नृत्य करते हैं, तथा झांझ का प्रदर्शन करते हुए कई आकर्षक रचनाएं प्रस्तुत करते हैं। इस नृत्य को राज्य के बरपेटा और गुवाहाटी के आस-पास त्यौहारों के अवसर पर देखा जा सकता है।
 

उदारतावाद
उदारतावाद व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थन का राजनैतिक दर्शन है। वर्तमान विश्व में यह अत्यन्त प्रतिष्ठित धारणा है। पूरे इतिहास में अनेकं दार्शनिकों ने इसे बहुत महत्व एवं मान दिया।
उदारतावाद शब्द का प्रयोग, साधारणतया, व्यापक रूप से मान्य, कुछ राजनीतिक तथा आर्थिक सिद्धांतों, साथ ही, राजनीतिक कार्यों बौद्धिक आंदोलनों का भी परिणाम है जो 16वीं शताब्दी से ही सामाजिक जीवन के संगठन में व्यक्ति के अधिकारों के पक्ष में, उसके स्वतंत्र आचरण पर प्रतिबंधों के विरुद्ध, कार्यशील रहे हैं। 19वीं शताब्दी में उदारतावाद का अभूतपूर्व उत्कर्ष हुआ। जो भी हो, राष्ट्रीयवाद के सहयोग से इसने इतिहास का पुननिर्माण किया। हालांकि यह अस्पष्ट था तथा इसका व्यावहारिक रूप स्थान-स्थान पर बदलता रहा, इसका अर्थ, साधारणतया, प्रगतिशील ही रहा। नवें पोप पियस ने जब 1846 ई. में अपने को उदार घोषित किया तो उसका वैसा ही असर हुआ जैसा आज किसी पोप द्वारा अपने को कम्युनिस्ट घोषित करने का हो सकता है।
 

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