राजनीति
जयपुर, 9 दिसंबर | राजस्थान में कांग्रेस के दो खेमों ने कुछ महीने पहले ही राज्य में पार्टी की सरकार के लिए मुसीबत खड़ी कर दी थी, जो किसी तरह से चली गई लेकिन अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस नेता सचिन पायलट के बीच की तल्खी फिर से उभरने लगी है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हाल ही में सिरोही जिले में एक कांग्रेस कार्यालय का उद्घाटन करते हुए कहा था कि राज्य सरकार संकट से बच गई, क्योंकि वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी के भीतर के बागियों को निलंबित कर दिया।
उन्होंने विपक्षी भाजपा पर उनकी सरकार को फिर से गिराने की चाल चलने का आरोप भी लगाया।
बागी नेता, जिनकी ओर वह इशारा कर रहे थे, उनमें प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व प्रमुख और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और उनके (पायलट के) वफदार रमेश मीणा और विश्वेंद्र सिंह शामिल हैं, जिन्हें निलंबित कर दिया गया था और राज्यमंत्री का दर्जा छीन लिया गया था, जब गहलोत नेतृत्व के खिलाफ खुलकर बगावत करते हुए 18 विधायकों के साथ पायलट मानेसर चले गए थे।
गहलोत की अचानक आई टिप्पणियों से सभी स्तब्ध रह गए।
हालांकि, कांग्रेस खेमे के सूत्रों ने बताया कि राजस्थान के मुख्यमंत्री राजनीतिक नियुक्तियां करने और अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं।
सूत्रों ने कहा कि इस पड़ाव पर, उनका खेमा नहीं चाहता है कि पूर्व उपमुख्यमंत्री और उनकी टीम को फिर से शामिल किया जाए और इसलिए यह बयान आया है।
बुधवार को पंचायत निकाय और जिला परिषद के चुनावों में कांग्रेस की बड़ी हार हुई। हालांकि, कई स्थानों पर मतगणना अभी जारी थी।
केंद्रीय नेतृत्व एक डैमेज कंट्रोल मोड में रहा है और इसेस पहले कि स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाए, इसने हस्तक्षेप किया है।
राजस्थान प्रभारी अजय माकन ने सिरोही में गहलोत की टिप्पणी के तुरंत बाद एक बयान दिया। उन्होंने गहलोत के दावे के उलट कहा कि पार्टी के लिए पायलट एक संपत्ति की तरह हैं और आश्वासन दिया कि राज्य सरकार सुरक्षित है।
माकन द्वारा दिए गए दोनों बयान राजनीतिक गलियारों में सबसे अधिक चर्चा का मुद्दा बन गए हैं।
इस बारे में सुगबुगाहट है कि क्या गहलोत और कांग्रेस आलाकमान के बीच सब ठीक है।
पायलट की पार्टी में वापसी के बाद से गहलोत ने दिल्ली का दौरा नहीं किया है।
पायलट खेमे की प्रतिक्रिया मिलने के बाद केंद्रीय नेतृत्व अविनाश पांडे (गहलोत कैंप) की जगह अजय माकन (राहुल गांधी खेमे से) को ले आया। इसके अलावा पायलट की शिकायत को सुनने के लिए एक तीन सदस्यीय टीम बनाई गई थी जिसमें के.सी. वेणुगोपाल, माकन और अहमद पटेल को शामिल किया गया था।
उस समय गहलोत ने पायलट को 'निकम्मा और नकारा' करार दिया था। हालांकि, दिवंगत अहमद पटेल जैसे दिग्गज नेताओं के हस्तक्षेप से, पायलट पार्टी में लौट आए।
जब से यह अनुमान लगाया गया है कि राज्य में चीजों को सुचारु बनाने के लिए दोनों में से एक को दिल्ली में शिफ्ट करना होगा।
दोनों खेमों ने आईएएनएस से बातचीत में इसका खंडन किया है और ऐसी संभावनाओं को 'अफवाह' करार दिया है और कहा कि दोनों नेता राज्य में रहेंगे।
सभी की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि पार्टी में गहलोत या पायलट खेमे में से किसे बेहतर नियुक्तियां मिलेंगी।
इसके अलावा, राज्य पीसीसी जिसे संकट के बाद भंग कर दिया गया था, उसे भी पुनर्गठित करने की आवश्यकता है।
माकन ने कहा कि पीसीसी का गठन फिर से 31 दिसंबर तक किया जाएगा और 31 जनवरी तक बोर्ड और कॉर्पोरेशन अध्यक्षों की नियुक्ति की जाएगी।
--आईएएनएस
कोलकाता, 8 दिसंबर | पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी रैलियों में लोगों को मार देती है। ममता बनर्जी ने रानीगंज में एक बैठक में कहा, "वे झूठ बोलते हैं और लोगों को मारते हैं। वे रैलियां करते हैं और अपने लोगों को मार देते हैं।"
मुख्यमंत्री का यह बयान सिलीगुड़ी में भगवा ब्रिगेड के विरोध प्रदर्शन के एक दिन बाद आया है।
भाजपा ने सोमवार को सिलीगुड़ी जिला में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के कार्यकर्ताओं पर हुई पुलिस की कथित कार्रवाई और उसमें एक कार्यकर्ता की मौत के विरोध में मंगलवार को उत्तर बंगाल के आठ जिलों में बंद बुलाया था।
सिलीगुड़ी में 50 वर्षीय पार्टी कार्यकर्ता उलेन रॉय की मौत के बाद भारतीय जनता पार्टी द्वारा ने 12 घंटे के बंद का आह्वान किया था।
दरअसल, सोमवार को सिलीगुड़ी में ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे भाजयुमो के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने आंसूगैस के गोले दागे थे और पानी की बौछार की थी। इसमें पार्टी के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई। भाजपा नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि बंगाल में लोकतंत्र की हत्या हो रही है।
धारा 144 के उल्लंघन और भीड़ को शांत करने के लिए पुलिस ने यह कार्रवाई की थी।
ममता बनर्जी ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाले केंद्र को सरकार के स्वामित्व वाली कोयला खदानों को बेचने की अनुमति नहीं देगी। उन्होंने आगे आरोप लगाया कि कोयला माफिया भाजपा के संरक्षण में थे।
उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी विकेंद्रीकरण अभियान का विरोध करना जारी रखेगी। ममता ने कहा, "जब तक मैं जीवित हूं तब तक ऐसा कभी नहीं होने दूंगी। मैंने प्रस्ताव दिया था कि अवैध कोयला कारखानों को केंद्र और राज्य द्वारा संयुक्त रूप से वैध किया जाएगा। मैं चाहती हूं कि लोगों को रोजगार मिले।" उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने कभी भी उन्हें इस प्रस्ताव पर कोई जवाब नहीं दिया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 दिसंबर | गृहमंत्री अमित शाह के आवास पर शाम को 7:00 बजे तय हुई मीटिंग किसान नेताओं के मतभेद की भेंट चढ़ गई। सिंघु बॉर्डर से रवाना होने के बावजूद गृह मंत्री अमित शाह के घर पर मीटिंग करनी है या नहीं? यह बात आखिर समय तक किसान नेता तय नहीं कर सके। गृह मंत्री अमित शाह के घर पर शाम करीब 7:30 पर किसान नेता राकेश टिकैत तो पहुंचे लेकिन प्रतिनिधिमंडल में शामिल 12 अन्य नेता पहुंचे ही नहीं। बाद में पता चला कि अब मंत्री अमित शाह के घर की जगह इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च के गेस्ट हाउस में मीटिंग होगी।
अमित शाह के घर पर पहुंचे राकेश टिकैत ने मीडिया से कहा कि, "उन्हें 7:00 बजे से गृह मंत्री के आवास पर मीटिंग के लिए बुलाया गया था। लेकिन अब पता चल रहा है कि यहां की जगह कहीं और मीटिंग होनी है। संघर्ष मोर्चा के अपने अन्य नेताओं से बातचीत के बाद पता करता हूं कि अब कहां मीटिंग है।"
विज्ञान भवन की 5वें राउंड की बैठक में शामिल रहे एक किसान नेता ने आईएएनएस को बताया कि, "गृहमंत्री के घर पर मीटिंग के लिए सभी में आम सहमति नहीं बन पाई। किसान संगठनों को किसी दूसरी जगह कृषि मंत्री की मौजूदगी में भी बैठक का निर्णय लिया। जिसके बाद पूसा परिसर के गेस्ट हॉउस में मीटिंग तय हुई। प्रतिनिधिमंडल में शामिल किसान नेता फिलहाल पूसा परिसर पहुंचे हैं।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 दिसंबर | मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के मुताबिक मंगलवार को भारत बंद के दौरान उन्हें घर से बाहर नहीं निकलने दिया गया। केजरीवाल के कैबिनेट सहयोगियों ने पुलिस पर मुख्यमंत्री को हाउस अरेस्ट करने का आरोप लगाया है। मंगलवार शाम मुख्यमंत्री ने स्वयं कहा कि वह घर से बाहर निकल कर किसानों के बीच जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें नहीं जाने दिया गया। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा, "वे नहीं चाहते थे कि मैं किसी भी तरह से बाहर जाऊं और किसानों के बीच जाकर उनका समर्थन करूं।"
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, "मैं मुख्यमंत्री बन कर नहीं, बल्कि एक आम आदमी बन कर सिंघु बॉर्डर पर जाकर आधा-पौना घंटा किसानों के साथ बैठ कर वापस आना चाहता था, लेकिन मुझे जाने नहीं दिया गया। केंद्र सरकार ने दिल्ली के 9 स्टेडियम को जेल बनाने की अनुमति मांगी थी और दबाव भी बनाया था, लेकिन मैंने इनकार कर दिया। तभी से केंद्र सरकार बहुत ज्यादा नाराज है।"
मुख्यमंत्री ने कहा, "आज मेरा भी मन था और मैंने भी योजना बना रखी थी कि आज मैं थोड़ी देर के लिए मुख्यमंत्री बन कर नहीं, बल्कि एक आम आदमी बनकर बॉर्डर पर जाऊंगा। आधा-पौना घंटा अपना उनको समर्थन देने के लिए और एकजुटता जाहिर करने के लिए एक आम आदमी की तरह उनके साथ बैठूंगा और वापस आ जाऊंगा। मुझे लगता है कि उनको शायद मेरी योजना पता चल गई थी। इसलिए आज उन्होंने मुझे जाने तो नहीं दिया।"
मुख्यमंत्री ने कहा कि, "मुझे उम्मीद है कि केंद्र सरकार जल्द से जल्द किसानों की सारी मांगे मानेगी और एमएसपी पर कानून बनाएगी, ताकि हमारे किसानों को कड़ाके की ठंड में और ज्यादा नहीं बैठना पड़े। आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को राजनीति से ऊपर उठकर किसानों की मदद करनी है और बिल्कुल सेवा भाव से जब तक किसान बैठे हैं, तब तक उनकी सेवा करनी है।"
आम आदमी पार्टी के मुताबिक मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पूरे दिन की मशक्कत के बाद देर शाम पार्टी नेताओं से मिले। इस दौरान अरविंद केजरीवाल ने पार्टी के नेताओं और वालेंटियर्स को संबोधित किया। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मुझे बेहद खुशी है कि सारा देश एक साथ किसानों की इन मांगों के समर्थन में एकजुट हो गया है। एक तरफ से एकता आ गई है।
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, "कुछ दिन पहले हमारे पास केंद्र सरकार का प्रस्ताव आया था। जब देश भर से किसान दिल्ली की तरफ कूच कर रहे थे, तो पहले इन्होंने हरियाणा के एक-एक शहर में किसानों को रोकने की कोशिश की। इसके लिए बैरिकेड लगाए गए, पानी की बौछारें छोड़ी गईं और आंसू गैस के गोले भी छोड़े, लेकिन हमारे किसान भाई सारी अड़चनों को पार करके दिल्ली पहुंच गए। इन्होंने फिर योजना बनाई कि किसानों को दिल्ली में आने देंगे और इन्होंने दिल्ली में 9 स्टेडियमों को जेल में परिवर्तित करने की अनुमति मांगी।"
सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि, "मुझे पता था कि अगर आज हमने केंद्र सरकार को स्टेडियमों को जेल बनाने की इजाजत दे दी और अगर इन्होंने सारे किसानों को स्टेडियमों की जेल में बंद कर दिया, तो हमारे किसानों का आंदोलन कमजोर पड़ जाएगा। हमारे ऊपर खूब तरह-तरह का दबाव आए, कई फोन आए, लेकिन हमने ठान ली थी कि हम किसानों के साथ हैं।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 दिसम्बर | भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (बीएफआई) के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार महाराष्ट्र के भाजपा नेता आशीष शेलार ने कोविड-19 सम्बंधी सुरक्षा कारणों के चलते बीएफआई के चुनाव स्थगित होने पर हैरानी जताई है। मुंबई क्रिकेट संघ के पूर्व अध्यक्ष और महाराष्ट्र के पूर्व खेल मंत्री शेलार ने पिछले सप्ताह ही नामांकन दाखिल किया था। उन्होंने कहा कि जब बिहार में और हैदराबाद में चुनाव हो सकते हैं तो इसमें क्यों नहीं।
बीएफआई के चुनाव गुरुग्राम में 18 दिसम्बर को होने थे। लेकिन कोविड-19 सम्बंधी सुरक्षा कारणों के चलते इसे स्थगित कर दिया गया है। बीएफआई के अधिकतर राज्य संघों ने कोरोना महामारी को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की थी।
शेलार ने चुनाव स्थगित होने पर हैरानी जताते हुए कहा, " कोविड-19 के कारण बीएफआई चुनावों के स्थगन के बारे में बीती रात बीएफआई अध्यक्ष के पत्र को देखकर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ। ऐसे समय में जब देश में बिहार में विधानसभा के चुनाव, हैदराबाद में नगर निगम चुनाव (दोनों में लाखों लोग शामिल हुए) और विभिन्न खेल संघों के चुनाव भी हुए हैं, तो फिर इसे स्थगित करना वास्तव में अप्रत्याशित है।"
उन्होंने कहा, " मुझे लगता है कि इस कदम से पता चलता है कि बीएफआई लोकतांत्रिक प्रक्रिया के सिद्धांतों का पालन करने के लिए तैयार नहीं है। हमें विश्व निकाय एआईबीए के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए, लेकिन ऐसे में इसके स्थगित होने से उन्हें गलत संदेश जाता है।"
इससे पहले, बीएफआई ने एक बयान में कहा कि 32 में से 23 राज्य संघों द्वारा कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर चिंता जाहिर की थी और इसे लेकर रिटर्निग ऑफिसर राजेश टंडन को पत्र भी लिखा था। उनकी दलील है कि बीएफआई के अधिकांश वोटिंग सदस्य 60 साल के ऊपर के हैं और ऐसे में उन्हें कोरोना होने का खतरा काफी अधिक है।
भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने भी इस स्थगन को अपनी मंजूरी दे दी है।
इससे पहले, एक अन्य राष्ट्रीय खेल महासंघ के एक सीनियर खेल प्रशासक, जो अपने महासंघ की चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने के लिए दिल्ली आए थे, उनकी कोविड-19 के कारण मृत्यु हो गई।
बीएफआई के चुनाव इससे पहले सितंबर में होने थे, लेकिन कोरोना महामारी के कारण स्थगित कर दिये गए थे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 दिसंबर | किसानों के मुद्दों को लेकर शरद पवार के नेतृत्व में विपक्षी दलों का प्रतिनिधिमंडल बुधवार शाम 5 बजे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलेगा। दिल्ली-एनसीआर में किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार ने मंगलवार को कहा कि विपक्षी नेताओं का प्रतिनिधिमंडल बुधवार को राष्ट्रपति से मुलाकात करेगा। इससे पहले विपक्षी नेता संयुक्त रणनीति बनाने के लिए पवार के आवास पर बैठक करेंगे।
सूत्रों ने बताया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी, माकपा महासचिव सीताराम येचुरी, सीपीआई के डी. राजा और डीएमके के एलंगोवन पहले पवार के आवास पर मिलेंगे और फिर राष्ट्रपति से मिलने जाएंगे।
पूर्व केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार पर भाजपा ने एपीएमसी पर उनके पहले के रुख को लेकर प्रहार किया है, जबकि पवार ने भाजपा पर मुद्दे को भटकाने का आरोप लगाया है। पवार ने स्पष्ट किया कि उन्होंने केवल एपीएमसी अधिनियम में सुधारों की वकालत की थी।
विपक्षी नेताओं ने कहा कि वे 24 राजनीतिक दलों के संपर्क में हैं। सीपीआई नेता डी. राजा ने बताया कि कोविड के कारण केवल पांच नेता राष्ट्रपति के पास जाएंगे।
किसान संगठन और विशेष रूप से सहकारी क्षेत्र महाराष्ट्र में बहुत मजबूत है और शरद पवार का हस्तक्षेप ऐसे समय में हुआ है, जब आंदोलन को गति मिली है।
इस मुद्दे पर प्रेस को संबोधित करने के लिए कांग्रेस ने हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मैदान में उतारा। 24 राजनीतिक दलों के साथ कांग्रेस ने किसान आंदोलन का समर्थन किया है और चाहती है कि नए अधिनियमित किए गए कृषि कानूनों को निरस्त किया जाए।
पार्टी ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि सरकार को इन कानूनों को रद्द करना चाहिए और संसद के सत्र को बुलाना चाहिए और चर्चा करनी चाहिए कि क्या वे सुधार लाना चाहते हैं। यदि वे किसानों के हित में काम करें तो कांग्रेस इसका स्वागत करेगी।
हुड्डा ने कहा कि सरकार को इन कानूनों को रद्द करना चाहिए और संसद का सत्र बुलाना चाहिए।
कांग्रेस ने कहा कि उसके घोषणापत्र में 'फार्मर मार्केट' के जरिए एपीएमसी को किसानों के करीब लाने की बात थी। (आईएएनएस)
पणजी, 8 दिसम्बर | गोवा में आम आदमी पार्टी (आप) ने केंद्र सरकार पर मंगलवार को देशव्यापी हड़ताल (भारत बंद) के दौरान दिल्ली के बाहरी इलाके में किसान समूहों से मिलने से रोकने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को घर में नजरबंद (हाउस अरेस्ट) रखने का आरोप लगाया। गोवा आप के संयोजक राहुल महाम्ब्रे ने पणजी में एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, "केजरीवाल को घर में नजरबंद रखा गया है। वह किसी से भी नहीं मिल सकते। आंदोलनरत किसान भी उनसे नहीं मिल सकते।"
महाम्ब्रे ने कहा, "हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए एक अघोषित आपातकाल में हैं, क्योंकि राष्ट्रीय राजधानी के एक निर्वाचित मुख्यमंत्री को नजरबंद रखा गया है।"
आप ने जहां दिल्ली पुलिस पर राष्ट्रीय राजधानी के मुख्यमंत्री को नजरबंद रखने का आरोप लगाया है, वहीं दिल्ली पुलिस ने आरोप को झूठा बताते हुए इस आरोप से इनकार किया है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 8 दिसंबर | किसानों के भारत बंद के साथ ही पश्चिम बंगाल में मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से बुलाए गए उत्तरी बंगाल के आठ जिलों में भी बंद देखने को मिला। भाजपा द्वारा आहूत सांकेतिक बंद को मिश्रित प्रतिक्रिया मिली। भाजपा ने सोमवार को सिलीगुड़ी जिला में भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के कार्यकर्ताओं पर हुई पुलिस की कथित कार्रवाई और उसमें एक कार्यकर्ता की मौत के विरोध में उत्तर बंगाल बंद बुलाया गया था।
सिलीगुड़ी में 50 वर्षीय पार्टी कार्यकर्ता की मौत के बाद भारतीय जनता पार्टी द्वारा ने 12 घंटे के बंद का आह्वान किया था।
दरअसल, सोमवार को सिलीगुड़ी में ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे भाजयुमो के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने आंसूगैस के गोले दागे थे और पानी की बौछार की थी। इसमें पार्टी के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई। भाजपा नेताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि बंगाल में लोकतंत्र की हत्या हो रही है।
धारा 144 के उल्लंघन और भीड़ को शांत करने के लिए पुलिस ने यह कार्रवाई की थी।
जलपाईगुड़ी, कूचबिहार, अलीपुरद्वार और मालदा जैसे जिलों में दैनिक जीवन आंशिक रूप से प्रभावित हुआ। कूचबिहार और अलीपुरद्वार से झड़प की कुछ छिटपुट घटनाएं सामने आईं। कूचबिहार रेलवे स्टेशन क्षेत्र में भाजपा समर्थकों ने आंदोलन किया, जबकि पार्टी कार्यकर्ताओं के एक अन्य समूह ने माथाभांगा-कूच बिहार राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक ट्रक में तोड़फोड़ भी की।
भाजपा कार्यकर्ताओं ने अलीपुरद्वार में उत्तर बंगाल राज्य परिवहन निगम (एनबीएसटीसी) डिपो को भी जबरन बंद कर दिया। घटना ने इलाके में आज सुबह तनाव पैदा कर दिया। बाद में, पुलिस ने मामले में हस्तक्षेप किया और बस डिपो को खोल दिया। जलपाईगुड़ी जिले का माल बाजार क्षेत्र भी बंद की चपेट में आ गया और यहां सब सुनसान दिखाई दिया। सड़क पर भी इक्का-दुक्का वाहन ही नजर आया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 8 दिसंबर | 13 किसान नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल मंगलवार शाम को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने के लिए उनके आवास के लिए निकल चुका है। बैठक शाम 7 बजे निर्धारित है। शाह का निवास स्थान 6ए कृष्ण मेनन मार्ग है। (आईएएनएस)
पश्चिम बंगाल, 08 दिसंबर | पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले अहम विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक माहौल अचानक गरमा गया है. बीते महीने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विधानसभा की 294 में से 200 सीटें जीतने का दावा किया और अब बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्य में पार्टी मामलों के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने नागरिकता (संशोधन) क़ानून यानी सीएए को जनवरी से लागू करने की बात कह कर राजनीति के ठहरे पानी में पत्थर उछाल दिया है.
बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा भी नौ दिसंबर को कोलकाता के दौरे पर पहुँचने वाले हैं. दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सोमवार को पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले में अपनी रैली में बीजेपी पर जम कर बरसीं और कहा कि वे बाहरी लोगों को लेकर बंगाल की सत्ता पर क़ब्ज़ा करने का उसका मंसूबा कभी पूरा नहीं होने देंगी.
बढ़ती राजनीतिक सरगर्मी के बीच सोमवार को उत्तर बंगाल के सिलीगुड़ी में बीजेपी के मिनी सचिवालय अभियान के दौरान पुलिस के साथ हुई हिंसक झड़प में कई लोग घायल हो गए. बीजेपी नेता सायंतन बसु ने दावा किया कि इसमें पार्टी के एक कार्यकर्ता की मौत हो गई है. इससे पूर्व सिलीगुड़ी में सरकार का एक मिनी सचिवालय है. इस दौरान पुलिस ने जहां आंसू गैस के गोले छोड़े, लाठी चार्ज किया और पानी बरसाया वहीं बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पुलिसवालों पर पथराव किया.
नागरिकता (संशोधन) क़ानून
सीएए का मुद्दा पश्चिम बंगाल में पहले से ही विवादास्पद रहा है. ममता बनर्जी उन चुनिंदा मुख्यमंत्रियों में शामिल हैं जिन्होंने इस क़ानून के सदन में पेश होने पर इसके ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर कर धरना और प्रदर्शन किया था.
अब बीते कोई आठ महीनों से कोरोना महामारी और इसकी वजह से लागू लॉकडाउन के चलते यह मुद्दा बंद बस्ते में चला गया था. लेकिन अब बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने इसे जनवरी से लागू करने की बात कह कर एक बार फिर विवाद छेड़ दिया है. इस मुद्दे पर बीजेपी और सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस के बीच ज़ुबानी जंग भी शुरू हो गई है.
सीएए में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन और पारसी शरणार्थियों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है.
कैलाश विजयवर्गीय ने शनिवार को कोलकाता से सटे उत्तर 24-परगना ज़िले के बारासात में पार्टी के एक कार्यक्रम में कहा था कि नागरिकता (संशोधन) क़ानून अगले साल जनवरी से लागू हो सकता है. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव का आरोप था कि तृणमूल कांग्रेस की सरकार शरणार्थियों के प्रति हमदर्दी नहीं रखती है.
उनका कहना था, "हमें उम्मीद है कि सीएए के तहत शरणार्थियों को नागरिकता देने की प्रक्रिया अगले साल जनवरी से शुरू हो जाएगी. केंद्र सरकार ने पड़ोसी देशों से उत्पीड़न का शिकार होकर आने वाले शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए उक्त क़ानून पारित किया था."
उस कार्यक्रम के दौरान विजयवर्गीय और पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुकुल राय ने साफ़ कर दिया कि बीजेपी सीएए को अगले विधानसभा चुनावों में सबसे प्रमुख मुद्दा बनाएगी.
कोलकाता में आयोजित एक कार्यक्रम में विजयवर्गीय ने कहा, "सीएए लागू करने की माँग में पार्टी अगले महीने सड़क पर उतर कर अभियान चलाएगी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री को तो बाहरी बताती हैं, लेकिन रोहिग्या शरणार्थियों और बंग्लादेश से आने वाले घुसपैठियों को बाहरी नहीं मानतीं."
विजयवर्गीय का सवाल था कि क्या ममता पड़ोसी देशों से शरणार्थी के तौर पर आने वाले हिंदुओं को नागरिकता दिए जाने के ख़िलाफ़ हैं?
पार्टी के वरिष्ठ नेता मुकुल राय बताते हैं कि अगले चुनाव में सीएए का मुद्दा सबसे अहम होगा. वह कहते हैं, "हम आम लोगों के पास जाएंगे. नागरिकता का मुद्दा अहम है. लेकिन तृणमूल कांग्रेस चुनावी नतीजों का अनुमान लगाने में नाकाम है. बीजेपी यहां 200 से अधिक सीटें जीतेंगी."
दूसरी ओर, तृणमूल कांग्रेस ने विजयवर्गीय के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है. तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और शहरी विकास मंत्री फ़रहाद हकीम कहते हैं, "बीजेपी पश्चिम बंगाल के लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश कर रही है. अगर बांग्लादेश से आने वाले मतुआ समुदाय के लोग नागरिक ही नहीं हैं तो वे चुनावों में वोट कैसे डालते हैं?"
ममता की रैली
ममता बनर्जी ने सोमवार को पश्चिम मेदिनीपुर ज़िले में आयोजित रैली में किसान आंदोलन, कृषि क़ानूनों और दूसरे मुद्दों पर बीजेपी और उसकी अगुवाई वाली केंद्र सरकार की जमकर खिंचाई की. ममता ने कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों का समर्थन करते हुए नरेंद्र मोदी सरकार से कहा कि वह या तो किसानों की माँगें मान लें या इस्तीफ़ा दें. धान की बालियों को हाथ में लेकर शपथ लेते हुए तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि वह हमेशा किसानों के साथ थीं, हैं और रहेंगी. नए कृषि क़ानूनों की वजह से देश में सब्जियों की क़ीमतें बढ़ी हैं. अगर केंद्र इसे वापस नहीं लेता है तो आने वाले समय में महँगाई और भी बढ़ेगी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि वे बाहरी लोगों को लेकर बंगाल की सत्ता पर क़ब्ज़ा करने की बीजेपी की कोशिशों को कामयाब नहीं होने देंगी. उन्होंने पीएम केयर्स फ़ंड पर भी निशाना साधा और इस पर श्वेतपत्र जारी करने की माँग की.
ममता का कहना था, "केंद्र ने न तो कोरोना के मुक़ाबले के लिए कोई सहायता दी है और न ही अंफान से हुए नुक़सान के लिए. बावजूद इसके वह ख़र्च का हिसाब माँग रही है. राज्य सरकार ने अपने ख़ज़ाने से चार हज़ार करोड़ रुपये ख़र्च किए हैं. केंद्र को पहले पीएम केयर्स फ़ंड का हिसाब देना होगा."
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता ने आरोप लगाया कि अगले साल होने वाले चुनावों से पहले तीनों भाइयों यानी कांग्रेस, सीपीएम और बीजेपी ने हाथ मिला लिया है. उनका कहना था, "बीजेपी के लोग यहां तृणमूल के घर में सेंध लगाने में जुटे हैं. लेकिन हम उनको देश से ही खदेड़ देंगे." उन्होंने रक्षा, रेल और कोयला जैसे क्षेत्रों के निजीकरण के लिए भी केंद्र पर हमले किए.
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष कहते हैं, "तृणमूल कांग्रेस के पैरों तले की ज़मीन तेज़ी से खिसक रही है. अब आम लोगों का ममता सरकार से भरोसा ख़त्म हो चुका है. हम अगले साल 200 से ज़्यादा सीटें जीतकर सरकार बनाएँगे."
उनका आरोप था कि केंद्र से करोड़ों की रक़म लेने के बावजूद राज्य सरकार ख़र्चों का कोई हिसाब नहीं दे रही है और उल्टा झूठे आरोप लगा रही है. घोष ने भी रविवार को पूर्व मेदिनीपुर में एक रैली की थी.
जानकारों का कहना है कि त्योहारों का सीज़न ख़त्म होने के बाद अब सत्ता के दोनों दावेदारों ने अपनी राजनीतिक गतिविधियाँ तेज़ कर दी हैं. इसके तहत अमित मालवीय समेत पार्टी के कई नेता राज्य का दौरा कर चुके हैं.
कोई चार दशकों से बंगाल की राजनीति और राजनीतिक बदलावों पर नज़दीकी निगाह रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार तापस मुखर्जी कहते हैं, "सीएए का मुद्दा उठाना बीजेपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा है. लेकिन तृणमूल कांग्रेस इस क़ानून को किसी भी क़ीमत पर लागू नहीं होने देना चाहती. ऐसे में इस मुद्दे पर विवाद और तेज़ होने का अंदेशा है. अब जेपी नड्डा के दौरे से बीजेपी का अभियान और तेज़ होगा."(bbc.com/hindi)
जयपुर, 8 दिसंबर | राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के राजस्थान में भारत बंद के आह्वान को शांतिपूर्ण तरीके से मनाने की अपील मंगलवार को निर्थक साबित हुई, जब कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने यहां राज्य भाजपा मुख्यालय पर पथराव किया और दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं में आपस में ही झड़प हो गई। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को 'गुंडे' करार देते हुए, राज्य भाजपा अध्यक्ष सतीश पूनिया ने गहलोत को टैग करते हुए ट्वीट किया, "कांग्रेस के गुंडों ने पुलिस की मौजूदगी में भाजपा प्रदेश मुख्यालय पर पथराव किया। यह कैसा बंद है? यह किस तरह का विरोध है? क्या है? इसका कारण और क्या उपद्रव है?"
एनएसयूआई के कार्यकर्ता, निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, सितंबर में लागू केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा किए गए देशव्यापी भारत बंद के आह्वान के तहत राज्य भाजपा मुख्यालय के घेराव के लिए आए थे। हालांकि, भाजयुमो कार्यकर्ता पहले से ही वहां मौजूद थे।
आखिरकार स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ा।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 8 दिसंबर | 'मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को रिहा करो रिहा करो', 'हमें मुख्यमंत्री से मिलने दो मिलने दो' यह नारे मंगलवार दोपहर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास के बाहर लगाए। पार्टी कार्यकर्ताओं और स्वयं उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने आरोप लगाया कि पुलिस उन्हें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात नहीं करने दे रही है। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया मंगलवार दोपहर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। मनीष सिसोदिया के मुताबिक उन्हें व अन्य विधायकों को पुलिस ने मुख्यमंत्री से नहीं मिलने दिया गया। इसपर उपमुख्यमंत्री ने पुलिस पर मुख्यमंत्री को हाउस अरेस्ट करने का आरोप लगाया। इसके बाद मनीष सिसोदिया अन्य लोगों के साथ सीएम हाउस के बाहर धरने पर बैठ गए।
उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा, "पुलिस मुख्यमंत्री से लोगों को मिलने नहीं दे रही है। मुख्यमंत्री को इन लोगों ने गिरफ्तार कर रखा है। मुख्यमंत्री को लोगों से मिलने नहीं दे रहे हैं। इसका मतलब मुख्यमंत्री अंडर अरेस्ट हैं। केंद्र सरकार दिल्ली के स्टेडियमों को जेल बनाना चाहती थी। मुख्यमंत्री ने ऐसा करने से रोका तो उन्होंने मुख्यमंत्री के घर को जेल बना दिया है।"
पुलिस द्वारा आम आदमी की पार्टी के कार्यकर्ताओं को रोके जाने पर पार्टी के नेताओं ने पुलिस के खिलाफ जबरदस्त नारेबाजी की। मुख्यमंत्री आवास के बाहर उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के साथ मौजूद आम आदमी पार्टी के इन कार्यकर्ताओं ने पुलिस के समक्ष प्रदर्शन भी किया। इन नेताओं ने 'मुख्यमंत्री को रिहा करो रिहा करो' के नारे लगाए।
मुख्यमंत्री केजरीवाल के आवास के बाहर मनीष सिसोदिया ने कहा, "लोग मुख्यमंत्री से मिलना चाहते हैं लेकिन पुलिसकर्मी लोगों को मुख्यमंत्री से मिलने की इजाजत नहीं दे रहे। खुद मुख्यमंत्री भी इन लोगों से मिलना चाहते हैं, लेकिन पुलिस मुख्यमंत्री और लोगों के बीच मुलाकात नहीं होने दे रही। इसका मतलब तो यह है कि सीएम को हाउस अरेस्ट किया गया है।"
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थकों ने 'दिल्ली पुलिस मुदार्बाद', 'दिल्ली पुलिस हाय-हाय' के नारे लगाए। इन लोगों का कहना था कि पुलिस उन्हें मुख्यमंत्री से मिलने नहीं दे रही है।
वहीं सुरक्षा में मौजूद कर्मचारियों कहना था कि मुख्यमंत्री आवास में जाने के लिए इतने लोगों को अनुमति नहीं दी जाएगी। इस पर मनीष सिसोदिया ने मुख्यमंत्री आवास में फोन लगाया। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मुताबिक स्वयं उन्हें भी मुख्यमंत्री से मुलाकात करने मुख्यमंत्री आवास के भीतर नहीं जाने दिया गया, जबकि मुख्यमंत्री आवास के अंदर से उन्हें अंदर बुलाने की अनुमति थी।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 8 दिसम्बर | किसानों और सरकार के बीच बुधवार को छठे दौर की बातचीत होने वाली है। इससे पहले किसानों के आह्वान पर देश भर में चल रहे 'भारत बंद' के बीच केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी ने मंगलवार को घोषणा की कि नरेंद्र मोदी सरकार "एमएसपी और मंडी अधिनियम (एपीएमसी अधिनियम)" के लिए तैयार है। मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार की पहली प्राथमिकता न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) है और वह आने वाले दिनों में मंडियों पर भी ध्यान केंद्रित करेगी।
रेड्डी ने यह सुनिश्चित किया कि सरकार इस मुद्दे पर दो अलग-अलग मतों का पालन नहीं करती है और 13 दिनों से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसानों के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध है।
रेड्डी ने कृषि भवन में आईएएनएस से बात करते हुए कहा, "हम एमएसपी और मंडी अधिनियम के लिए तैयार हैं। ये दो बिंदु हमारी सरकार की प्राथमिकता है। हमारी सरकार की पहली प्राथमिकता एमएसपी है। हम आने वाले दिनों में मंडियों को भी चलाएंगे। इन मुद्दों पर कोई दो राय नहीं है।"
कृषि कीमतों में किसी भी तेज गिरावट से कृषि उत्पादकों को राहत देने के लिए सरकार द्वारा एमएसपी एक बाजार हस्तक्षेप के तौर पर देखा जाता है, जो कि किसानों के लिए फसल का एक न्यूनतम मूल्य निर्धारित करके उन्हें राहत प्रदान करता है।
किसान ऐसा अंदेशा जता रहे हैं कि निजी मंडियों के आने के बाद एमएसपी लागू नहीं होगा। किसान कृषि उपज विपणन समिति (एपीएमसी) अधिनियम या मंडी अधिनियम में संशोधन की मांग कर रहे हैं।
मंत्री ने किसानों द्वारा बुलाए गए देशव्यापी बंद के बीच कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ अपनी संक्षिप्त बैठक के बाद यह बात कही।
मंत्री ने सभी किसानों से आग्रह किया है कि वे अपने विरोध प्रदर्शन को समाप्त कर दें। उन्होंने किसानों को बातचीत के जरिए समाधान निकालने पर जोर देते हुए आश्वासन दिया कि मोदी सरकार एमएसपी और मंडी अधिनियम के मुद्दों को प्राथमिकता देगी।
सरकार और किसानों के बीच पिछले पांच दौर की वार्ता के बाद कोई समाधान नहीं निकल सका है।
हजारों किसान अपनी बात पर अड़े हैं। उनका कहना है कि संसद के मानसून सत्र के दौरान सितंबर में पारित तीन 'किसान विरोधी' कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिए। हालांकि, सरकार का कहना है कि ये कानून किसानों के हित में हैं और उससे वह समृद्ध होंगे।
इन कानूनों में संशोधन की सरकार की पेशकश को 40 किसान यूनियन नेताओं ने खारिज कर दिया है, जो 26 नवंबर से पांच प्रमुख मांगों के साथ दिल्ली से लगती पांच अलग-अलग सीमाओं पर बैठे हजारों किसानों की ओर से सरकार से बात कर रहे हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 8 दिसंबर | केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर आश्वस्त हैं कि वार्ता से ही किसानों की समस्या का समाधान होगा। उन्होंने राजनीतिक दलों से किसानों के नाम पर सियासत नहीं करने की अपील की है। केन्द्रीय मंत्री तोमर ने मंगलवार को यहां संवाददताओं से बातचीत के दौरान किसान आंदोलन में आगे आने वाले राजनीतिक दलों को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि, पूर्व में भी मैंने कहा है कि किसानों के नाम पर सियासत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि जो राजनीतिक दल किसानों के नाम पर राजनीति कर रहें हैं वे अपने गिरेबान में झांक कर देखें कि वे या तो पहले अपने घोषणा पत्र में किसानों को गुमराह कर रहे थे या अब उनको गुमराह करने का काम कर रहे हैं।
तोमर ने कहा कि पूर्व की सरकारों की उपेक्षापूर्ण नीति के कारण किसान बर्बादी की कगार पर चले गए थे। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खेती किसानी को पटरी पर लाने का जी तोड़ प्रयत्न कर रहे हैं।
उन्होंने कहा इस समय जरूरत इस बात की है कि कोई भी किसानों को गुमराह करने का प्रयास न करे।
पूर्व कृषि मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार ने किसान आंदोलन को समर्थन दिया है और इस सिलसिले में वह राष्ट्रपति से मिलने वाले हैं। इससे पहले वे विपक्षी दलों के नेताओं से भी मुलाकात करेंगे।
इस संबंध में पूछे जाने पर केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा कि पवार साहब देश के बड़े नेता हैं और मैं समझता हूं कि वे इन सुधारों के संबंध में कई मंचों पर अपने विचार व्यक्त कर चुके हैं। तोमर ने कहा कि कृषि मंत्री के रूप में वो राज्यों से इन सुधारों को लागू करने का आग्रह कर चुके हैं।
तोमर ने कहा कि बाकी राजनीतिक दल कुछ भी कहे लेकिन मैं समझता हूं कि पवार सहाब को यह सब शोभा नहीं देता।
केन्द्रीय कृषि मंत्री ने कहा वह किसान नेताओं से बात कर रहे हैं और वार्ता के माध्यम से कोई न कोई समाधान निकलेगा। उन्होंने कहा, मैं आशावान हूं कि वार्ता के माध्यम से कोई न कोई समाधान होगा।
केन्द्र सरकार द्वारा लागू तीन कृषि कानूनों के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली की सिमाओं पर 26 नवंबर से किसान संगठनों से जुड़े लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और मंगलवार को किसान नेताओं ने देशव्यापी बंद का आहवान किया था।
इससे पहले केन्द्र सरकार के साथ किसानों की समस्याओं को लेकर पांच दौर की वार्ताएं हो चुकी हैं और अगले दौर की वार्ता 9 दिसम्बर बुधवार को होने जा रही है। कृषि मंत्री इस बात से आश्वस्त हैं कि किसानों की समस्याओं का जल्द समाधान निकलेगा।
केन्द्र सरकार ने प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के नेताओं को उनके द्वारा सुझाए गए कुछ बिंदुओं पर कृषि कानून में संशोधन का प्रस्ताव दिया गया है। जबकि वे तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हुए हैं।
आईएएनएस
चंडीगढ़, 7 दिसंबर | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की ओर से खुद को किसानों का 'सेवादार' कहने पर कटाक्ष किया है। सिंह ने केजरीवाल पर चुटकी लेते हुए पूछा कि क्या उन्हें गेहूं और धान के बीच का अंतर भी पता है। सिंह ने कहा कि एक ऐसा शख्स, जिसने केंद्र सरकार के तीनों विवादित कानूनों को दिल्ली में लागू करने में देरी नहीं लगाई और अब वह सार्वजनिक तौर पर खुद को किसानों का सेवादार कह रहे हैं, जो कि ढकोसले के सिवा कुछ भी नहीं है।
दरअसल अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों के साथ हुई मुलाकात पर टिप्पणी की थी कि वह किसानों से एक मुख्यमंत्री के तौर पर नहीं, बल्कि एक सेवादार के तौर पर मिलने आए हैं।
अमरिंदर सिंह ने केजरीवाल को चुनौती देते हुए कहा कि वह एक भी ऐसा कदम बता दें, जो उन्होंने किसानों के हित में उठाया हो।
पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा, "आपने तो इस मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा का सत्र तक नहीं बुलाया।" उन्होंने आरोप लगाया कि केजरीवाल महज अपने राजनीतिक हितों को साधने का काम कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि अगर केजरीवाल मानते हैं कि किसानों की सारी मांगे जायज हैं तो वे दिल्ली में क्यों नहीं केंद्र सरकार के विवादित कानूनों के खिलाफ प्रस्ताव पास करते, जैसा कि पंजाब ने किया है।
उन्होंने केजरीवाल को चुनौती दी कि वे मीडिया के लिए राजनीतिक ड्रामा करने के बजाय खुलकर और संवैधानिक तौर पर केंद्र सरकार के कृषि कानूनों का विरोध करके दिखाएं। अमरिंदर सिंह ने कहा कि मीडिया के सामने बयानबाजी से किसानों का भला नहीं होने वाला है।
केजरीवाल के सिंघु बॉर्डर दौरे को लेकर अमरिंदर सिंह ने कहा कि किसानों ने केजरीवाल की ड्रामेबाजी को समझ लिया है और उनका नजरिया नहीं बदलने वाला। उन्होंने कहा कि किसानों को उनका 'भारत बंद' कामयाब बनाने के लिए आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं की कोई जरूरत नहीं है। (आईएएनएस)
गुरुग्राम, 7 दिसंबर | हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सोमवार को देश भर के सभी विपक्षी दलों पर अपने निजी स्वार्थ के लिए किसानों के जीवन के साथ राजनीति करने का आरोप लगाया। खट्टर ने सोमवार को सशस्त्र सेना झंडा दिवस के अवसर पर गुरुग्राम में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान विपक्ष पर किसानों के बहाने राजनीति करने का आरोप लगाया।
खट्टर ने कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (आप), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), बहुजन समाज पार्टी (बसपा), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) सहित सभी प्रमुख विपक्षी दलों को किसानों की लड़ाई का मजाक बनाने और इस मुद्दे पर राजनीति करने को लेकर घेरा।
खट्टर ने कहा कि राज्य सरकार विरोध स्थलों पर किसानों को सब कुछ प्रदान कर रही हैं, जिसमें चिकित्सा सहायता, भोजन, पानी आदि शामिल हैं।
हरियाणा के मुख्यमंत्री ने कहा, "किसान शांतिपूर्ण तरीके से विरोध कर रहे हैं और कोई भी इस तरह से भारत में विरोध कर सकता है। लेकिन किसानों का समर्थन करने के लिए लोग और राजनीतिक दलों के कुछ समूह आगे आए हैं।"
खट्टर ने कहा, "मैं उन्हें किसानों के नाम पर की जा रही घटिया राजनीति रोकने का सुझाव देना चाहता हूं। किसानों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत चल रही है और मुझे उम्मीद है कि यह अच्छी प्रतिक्रिया के साथ खत्म होगी।"
खट्टर ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ राजनीतिक दल और संगठन केंद्र के नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध को प्रायोजित कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया है कि हरियाणा के किसानों ने इस प्रदर्शन में भाग नहीं लिया है।
खट्टर ने कहा कि राज्य सरकार हमेशा किसानों की पक्षधर रही है और किसानों को पहले भी उनकी फसल के नुकसान के मद्देनजर कई मुआवजे प्रदान किए गए हैं। (आईएएनएस)
लखनऊ, 7 दिसंबर | उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने किसान आंदोलन को लेकर धरना-प्रदर्शन कर रही समाजवादी पार्टी (सपा) पर तीखा प्रहार किया है। उन्होंने कहा कि जनता की नजरों से गिर चुकी सपा इन दिनों किसान आंदोलन की भूमि पर वोट बैंक की खेती करने की कोशिश कर रही है। राज्य सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थ नाथ ने सोमवार को कहा कि किसान आंदोलन के समर्थन में यात्रा करने की घोषणा करने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव जब तक सत्ता में रहे, बॉलीवुड के हीरो-हिरोइनों के नृत्य का आनंद लेते रहे, किसान कभी भी उसकी प्राथमिकता में नहीं रहा। किसानों हितों पर कुठाराघात करने का एक भी अवसर उन्होंने नहीं छोड़ा और आज जबकि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार और प्रदेश की योगी सरकार किसानों की मेहनत की पाई-पाई दिलवाने के लिए लगातार काम कर रही है तो सपा को किसानों की सुध हो आई है।
कैबिनेट मंत्री ने कहा कि किसानों के परम हितैषी बनने का स्वांग रच रहे अखिलेश से यह पूछा जाना चाहिए कि आखिर क्या कारण रहा कि 2016-17 में प्रदेश में मक्के की खरीद नहीं हुई। योगी सरकार ने आने के साथ ही पहला फोकस बकाए के भुगतान पर किया। तीन साल के दौरान योगी सरकार गन्ना किसानों का अब तक 1 लाख 12 हजार करोड़ रुपये से अधिक भुगतान कर चुकी है। यह योगी सरकार की किसान हितों के प्रति प्रतिबद्धता का ही नतीजा है कि अब तक किसानों से 277.29 लाख क्विंटल धान की खरीद की जा चुकी है। यह खरीद पिछले वर्ष से डेढ़गुना से भी अधिक है, पिछली सरकार की तुलना में योगी सरकार ने छहगुना अधिक धान की खरीद सुनिश्चित की है। यही नहीं, प्रदेश में 102 मक्का क्रय केंद्रों से अब तक किसानों से 3 लाख 52 हजार क्विंटल मक्का की खरीद की जा चुकी है।
सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर निरंतर धान खरीद की समीक्षा की जा रही है। धान और मक्का की खरीद का भुगतान 72 घंटे के अंदर सुनिश्चित किया जा रहा है। धान खरीद में लापरवाही बरतने पर पीसीएफ के अधिकारियों को निलंबित भी किया गया। पिछले तीन सालों में गन्ना किसानों को 1 लाख 10 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। वहीं, विभिन्न विपक्षी दल एमएसपी को लेकर भ्रम फैला रहे हैं।
सिद्धार्थ नाथ ने बताया कि अब तक चार करोड़ से अधिक किसानों के पास मृदा कार्ड हैं। कृषि यंत्रीकरण के जरिए श्रम पर होने वाली लागत घटे, इसके लिए सरकार कृषि यंत्रों पर भारी अनुदान दे रही है। यही नहीं, मौजूदा वित्तीय वर्ष में कृषि मशीनरी बैंक और कस्टम हायरिंग सेंटर के जरिए सरकार का लक्ष्य 22000 से अधिक किसान समूहों को 40 हजार से अधिक उन्नत कृषि यंत्र उपलब्ध कराना है। यंत्रीकरण के जरिए कम लागत में अधिक उपज मिलने से किसानों की आय बढ़ जाएगी।
सरकार ने अपने इस तंत्र के जरिए किसानों तक पहुंचने के लिए द मिलियन फार्मर्स स्कूल के नाम से अभिनव प्रयोग शुरू किया। दोनों फसली सीजन की शुरुआत में होने वाले अपने तरह की इस अभिनव योजना को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सराहा जा चुका है।
उन्होंने कहा कि किसान परंपरागत खेती की जगह बाजार की मांग के अनुसार खेती करें, इसके लिए विविधीकरण और प्रसंस्करण पर भी सरकार का खासा जोर है। किसान को उसकी उपज का वाजिब दाम मिले, इसके लिए सरकार न केवल न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाया, बल्कि फसलों की खरीद के दायरे और क्रय केंद्रों की संख्या को भी बढ़ाया। (आईएएनएस)
कोलकाता, 7 दिसंबर | पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोमवार को मांग की कि केंद्र सरकार को 'जनविरोधी' कृषि कानूनों को तुरंत वापस ले लेना चाहिए या फिर इस्तीफा दे देना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार को किसानों के अधिकारों को नष्ट करके सत्ता में नहीं रहना चाहिए।
ममता ने मिदनापुर कॉलेज ग्राउंड में एक बड़ी रैली को संबोधित करते हुए कहा, "भाजपा सरकार को तुरंत कृषि विधेयकों को वापस लेना चाहिए या फिर केंद्र की सत्ता से हट जाना चाहिए। किसानों के अधिकारों को नष्ट करने के बाद भी सत्ता में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।"
ममता जिस मंच से भाषण दे रही थीं, वहां सब्जियां भी रखी हुई थीं।
सिंगूर में टाटा मोटर्स की नैनो कार फैक्ट्री के लिए जबरन खेती की जमीन के अधिग्रहण पर साल 2006 में अपनी 26 दिनों की लंबी भूख हड़ताल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, "मैं सिंगूर को नहीं भूली हूं, नंदीग्राम को नहीं भूली हूं। किसानों को मेरा पूरा समर्थन है।"
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि वह चुप रहने या भाजपा के कुशासन के खिलाफ चुप्पी साधने के बजाय जेल में रहना पसंद करेंगी।
ममता ने भाजपा पर निशाना साधते हुए उसे बाहरी लोगों की पार्टी बताया। उन्होंने कहा, "मैं कभी भी भगवा खेमे को बंगाल पर नियंत्रण करने की अनुमति नहीं दूंगी। मैं बंगाल के लोगों से बाहरी लोगों द्वारा इस तरह के किसी भी प्रयास का विरोध करने की अपील करती हूं।"
उन्होंने कहा कि अगर तृणमूल कांग्रेस एक बार फिर लगातार तीसरी बार सत्ता में आती है, तो उनकी सरकार मुफ्त राशन देना जारी रखेगी।
ममता की रैली का आयोजन मिदनापुर शहर में उस समय किया गया, जब उनकी पार्टी और राज्य के पूर्व परिवहन मंत्री सुवेंदु अधिकारी के बीच अनबन चल रही है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा उनकी पार्टी के प्रतिनिधियों को लुभाने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने कहा, "तृणमूल कांग्रेस ईमानदार लोगों की एक राजनीतिक पार्टी है। हम भाजपा की तरह नहीं हैं, जो विभिन्न राज्यों में विपक्षी-संचालित सरकारों को गिराने के लिए अपने धनबल का उपयोग कर रही है।"
मुख्यमंत्री ने अधिकारी के अगले कदम पर लगाई जा रही अटकलों के बीच कहा, "भाजपा सभी विपक्षी दलों को तोड़ने की कोशिश कर रही है। जो भ्रष्ट हैं, वे अब भाजपा के खेमे में शामिल हो रहे हैं।"
ममता ने यह भी आरोप लगाया कि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) समर्थकों ने भी पाला बदल लिया है और वे अब बंगाल में भाजपा के साथ काम कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की 294 सदस्यीय विधानसभा के लिए चुनाव अगले साल अप्रैल-मई में होने की संभावना है। (आईएएनएस)
जम्मू-कश्मीर, 07 दिसम्बर | बीबीसी से ख़ास बातचीत में जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती ने यह बातें कहीं. रिहा होने के बाद उन्होंने पहली बार किसी ग्लोबल मीडिया कंपनी को अपना इंटरव्यू दिया है.
5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लिए जाने के बाद पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ़्ती तक़रीबन 14 महीनों तक हिरासत में रही थीं.
मुफ़्ती कश्मीर के उन प्रमुख नेताओं में से हैं जिन्होंने भारत सरकार के अगस्त में लिए गए फ़ैसले का खुलकर विरोध किया.
मुफ़्ती ने ईमेल के ज़रिए बीबीसी को दिए जवाब में कहा, "जम्मू-कश्मीर का जब भारत में विलय हुआ तो उसे संवैधानिक गारंटी दी गई थी कि अनुच्छेद 370 और 35ए के ज़रिए उसकी ख़ास पहचान की रक्षा की जाएगी. मुस्लिम बहुसंख्यक होने के बावजूद जम्मू-कश्मीर ने दो राष्ट्र के सिद्धांत को ख़ारिज किया और वह ख़ास दर्जे के तहत अलग-अलग शर्तों पर सहमत होकर एक धर्म-निरपेक्ष और लोकतांत्रिक भारत में शामिल हुआ. तो इन शर्तों का उल्लंघन करना राज्य के विलय की शर्तों के ख़िलाफ़ जाता है."
मुफ़्ती को पहले श्रीनगर के हरि निवास में रखा गया था जो कि 90 के दशक में एक पूछताछ केंद्र के रूप में इस्तेमाल होता था लेकिन अब वह प्रदेश का गेस्ट हाउस है.
मुफ़्ती ने कहा, "शुरुआत के तीन हफ़्ते मेरे बहुत मुश्किल थे क्योंकि मैं अपने परिवार से पूरी कटी हुई थी और मुझे नहीं पता था कि बाहर क्या हो रहा है. मैं अपना अधिकतर समय किताब पढ़ने में बिताती थी."
पीएसए के डोज़ियर में बताया गया षड्यंत्रकारी
इस साल फ़रवरी के पहले हफ़्ते में मुफ़्ती पर विवादित क़ानून पब्लिक सेफ़्टी एक्ट (पीएसए) के तहत मामला दर्ज किया गया. इस क़ानून के तहत किसी व्यक्ति को बिना किसी ट्रायल के दो साल तक जेल में रखा जा सकता है.
मुफ़्ती के पीएसए डोज़ियर में लिखा था, "व्यक्ति (मुफ़्ती) को कश्मीर की मध्यकाल की महारानी के आधार पर लोगों द्वारा 'कोटा रानी' और 'डैडीज़ गर्ल' कहा जाता है जो कि ख़तरनाक साज़िशों को बनाने के लिए जानी जाती हैं. जो सत्ता तक अपने विरोधियों में ज़हर फैलाकर आगे बढ़ीं हैं."
वो कहती हैं कि पीएसए के डोज़ियर ने उन्हें चौंकाया लेकिन यह हास्यास्पद भी था.
मुफ़्ती कहती हैं, "मैं अपने पिता के क़रीब थी तो उन्होंने एक कलंक की तरह मेरे लिए 'डैडीज़ गर्ल' का इस्तेमाल किया. मैं मानती हूं कि इसे किसी हिंदी फ़िल्म के स्क्रिप्ट राइटर ने लिखा था. षड्यंत्रकारी, कोटा रानी कहना व्यक्तिगत और नापसंद टिप्पणियां थीं जो पूरी तरह बेतुकी थीं."
पिछले साल अगस्त में मुफ़्ती ने हिरासत में लिए जाने से पहले सोशल मीडिया पर लिखा था, "अनुच्छेद 370 को समाप्त करना न सिर्फ़ विलय को अवैध बना देता है बल्कि भारत की क़ब्ज़े वाली हैसियत को जम्मू-कश्मीर में कम कर देता है."
पिछले साल की गई अपनी इस टिप्पणी पर अब वो विस्तार से बात करती हैं.
वो कहती हैं, "भारत के किसी भी विख्यात वकील से पूछ लीजिए वे आपको बताएंगे कि ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से अनुच्छेद 370 को हटाना संवैधानिक और क़ानूनी तौर पर भारत और जम्मू-कश्मीर के संबंधों पर सवाल खड़ा करता है. मेरा बयान क़ानूनी तथ्यों पर आधारित था लेकिन दुर्भाग्य से हर चीज़ पर राष्ट्र-विरोधी टैग लगा दिया जाता है."
पार्टी के एजेंडे में कोई बदलाव नहीं
जम्मू-कश्मीर में अधिकतर राजनीतिक दल अनुच्छेद 370 की रक्षा करने का वादा करते रहे हैं लेकिन अब इसके हटने के बाद विशेषज्ञों का मानना है कि ये पार्टियां कश्मीर में अपनी प्रासंगिकता खो चुकी हैं.
इस पर मुफ़्ती कहती हैं, "जहां तक मेरी प्रासंगिकता का सवाल है, 14 महीनों तक हिरासत में रहने और सभी तरह के दबाव सहने के बावजूद अभी भी मेरी आवाज़ को दबाने की कोशिशें की जा रही हैं."
पीडीपी का एजेंडा हमेशा से जम्मू-कश्मीर में ख़ुद से शासन करने का रहा है लेकिन अब कश्मीर का विशेष दर्जा वापस लिए जाने के बाद मुफ़्ती का कहना है कि उनकी पार्टी के एजेंडे में कोई बदलाव नहीं आया है.
मुफ़्ती कहती हैं, "सिर्फ़ इसलिए की बीजेपी संविधान में बदलाव कर रही है इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा नज़रिया और एजेंडा बदल चुका है. जम्मू-कश्मीर का स्थाई और सम्मानजनक समाधान यही है कि यहां स्व-शासन प्रणाली, बातचीत और मेल-जोल हो जैसा कि पीडीपी मानती है. इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है."
'डीडीसी असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए'
अक्टूबर में केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर के पंचायती राज क़ानून में बदलाव करने के बाद हर ज़िले में काउंसिल का गठन किया था. इस समय केंद्र शासित प्रदेश में 20 ज़िलों में पहली बार स्थानीय चुनाव या डिस्ट्रिक्ट डेवलपमेंट काउंसिल (डीडीसी) के चुनाव जारी हैं.
कइयों का मानना है कि पिछले साल अगस्त के बाद जो राजनीतिक प्रक्रियाएं ठप हो गई थीं यह उसी को फिर से शुरू करने की प्रक्रिया है. हालांकि, मुफ़्ती अलग तरह से सोचती हैं.
वो कहती हैं, "जम्मू-कश्मीर ने कई चुनावी चक्र देखे हैं और हमने यह भी देखा है कि इस मुद्दे पर कितना असर पड़ा है. डीडीसी असली मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए है जो कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ विश्वासघात और अलगाव की भावना का कारण है."
सात दलों का गठबंधन
पहली बार मुख्यधारा के सात राजनीतिक दलों ने एक गठबंधन बनाया है जो कि पीपल्स अलायंस फ़ॉर गुपकर डिक्लेरेशन (पीएजीडी) है और यह गठबंधन डीडीसी चुनाव में मिलकर लड़ रहा है.
इस गठबंधन का पहला लक्ष्य कश्मीर के विशेष दर्जे को बहाल करने के लिए लड़ना है. मुफ़्ती की पार्टी भी इस गठबंधन का हिस्सा है.
वो कहती हैं, "ऐसे समय में जब शांतिपूर्ण तरीक़े से असहमति दर्ज कराने वाले फ़ोरम का गला घोंटा जा चुका है वहां सिर्फ़ पीएजीडी ही सिर्फ़ इकलौता फ़्रंट बच जाता है जो भारत सरकार की जम्मू-कश्मीर के लिए शैतानी योजना से लड़ सके. हमने एकसाथ लड़ने का फ़ैसला इसलिए लिया ताकि बीजेपी और उसके साथियों को दूर कर सकें."
मुफ़्ती के पार्टी कार्यकर्ताओं ने कई मौक़ों पर विरोध प्रदर्शन दर्ज कराए हैं. इनमें जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जा छीनने की पहली बरसी और जंगलों से गुज्जर-बक्करवाल समुदाय को हटाने जैसे मामले शामिल हैं लेकिन कई बार पुलिस और प्रशासन ने इसे नाकाम कर दिया.(bbc.com/hindi)
जयपुर, 7 दिसंबर | राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से किसान संघों के नेताओं की बात सुनने और कृषि कानूनों को वापस लेकर गतिरोध का हल निकालने का आग्रह किया। वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, "यह देखना सबसे अधिक चिंताजनक है कि हमारे किसान सड़कों पर ठंड के मौसम में रातें बिता रहे हैं, जबकि सरकार उनकी वास्तविक मांगों की अनदेखी कर रही है। पीएम मोदी को सीधे हस्तक्षेप करना चाहिए, किसान यूनियनों के नेताओं की बात सुननी चाहिए और गतिरोध का समाधान निकालना चाहिए।"
"अधिक से अधिक किसान देश भर से आंदोलन में शामिल हो रहे हैं और दिल्ली की सीमा पर इकट्ठा हो रहे हैं। सरकार को किसानों के कल्याण के मुद्दों पर ध्यान देने में देरी नहीं करनी चाहिए।"
गलहोत ने कहा, "एनडीए सरकार को अपने अहंकार, असंवेदनशीलता, अड़ियल रवैये से बचना चाहिए और कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए।"
उन्होंने कहा, "मंडी व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस पार्टी हमारे कद्दावर लोगों के साथ खड़ी है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 दिसंबर | भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से एपीएमसी एक्ट को लेकर कांग्रेस पर हमला बोलने के बाद अब कांग्रेस ने पलटवार किया है। कांग्रेस ने कहा है कि भाजपा की ओर से महज आरोप लगाए जाने से काम नहीं चलेगा। पार्टी ने कहा कि कांग्रेस पर गलत तरीके से आरोप लगाने के बजाय उन्हें काले कानूनों को वापस लेना चाहिए, जो कि समय की जरूरत भी हैं।
कांग्रेस प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने कहा, "भाजपा को महसूस करना चाहिए कि पंडित नेहरू और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संपग्र) को दोषी ठहराने के उनके हमेशा प्रयोग में लाए जाने वाले, घिसे-पिटे एवं हमेशा दोहराए जाने वाले स्टंट किसानों के विरोध को समाप्त नहीं करेंगे। पूरे देश को खिलाने वाले किसान भाजपा की किसान विरोधी नीतियों से तंग आ चुके हैं। कांग्रेस केवल एक ही बात चाहती है कि एमएसपी का हक-किसान के हाथ में रखा जाए।"
कांग्रेस प्रवक्ता ने भाजपा के सामने कई सवाल दागे और पूछा कि एमएसपी हटाने से क्या सुधार होंगे। कांग्रेस नेता ने सवाल पूछते हुए कहा, "क्या कांग्रेस ने एमएसपी को खत्म करके एपीएमसी सुधारों के बारे में बात की थी?"
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि यदि नए कानून किसान समर्थक हैं, तो भाजपा इन्हें लेकर किसानों को समझाने में विफल क्यों रही है और किसानों पर लाठियों और वॉटर कैनन से हमला क्यों किया जा रहा है?
शेरगिल ने आरोप लगाया कि, "भाजपा सरकार सुधारक की बजाय विध्वंसक की भूमिका निभा रही है। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि कानून मंत्री कृषि नीति की व्याख्या करते हैं और कृषि मंत्री रक्षा सौदों की व्याख्या करते हैं और इसीलिए वे यह नहीं समझते कि एमएसपी छीनना किसानों पर एक प्रकार से हिरोशिमा में बम गिराने जैसा है।"
कांग्रेस ने लगभग सभी विपक्षी दलों के साथ मंगलवार को 'भारत बंद' का समर्थन किया है।
केंद्र सरकार की ओर से तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
गतिरोध को खत्म करने के लिए सरकार और किसानों के बीच पांचवें दौर की वार्ता भी सफल नहीं हो सकी। अब दोनों पक्ष किसान प्रतिनिधियों और सरकार ने नौ दिसंबर को बातचीत जारी रखने पर सहमति जताई है।
सरकार और किसान नेताओं के बीच शनिवार को हुई पांचवें दौर की बातचीत में कोई हल नहीं निकल सका। दोनों पक्ष तीन विवादास्पद कृषि कानूनों पर अपने रुख पर अड़े हुए हैं। किसान पूरी तरह से कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं, जबकि सरकार बीच का रास्ता निकालकर समस्या का हल करना चाह रही है। किसानों का कहना है कि सरकार जब तक तीन कृषि कानूनों को रद्द नहीं करती, तब तक उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा।
आईएएनएस
नई दिल्ली, 6 दिसंबर | कांग्रेस ने रविवार को मौजूदा किसानों के विरोध प्रदर्शन की तुलना बिहार के चंपारण में 1917 के किसान आंदोलन से की। पार्टी ने जोर देकर कहा कि वह किसानों को समर्थन देने के लिए प्रतिबद्ध है। पार्टी ने कहा, "एक बात तय है : जब भी निष्ठुर कानून हमारे अन्नदाता के हितों को नष्ट करने का प्रयास करता है, तो पूरा देश और कांग्रेस पार्टी किसानों के कल्याण के लिए एकजुट हो जाते हैं।"
किसानों पर नील की खेती पर कर लगाने के ब्रिटिश राज के फरमान से चंपारण में विरोध पैदा हुआ और किसानों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन किया।
कांग्रेस ने यह भी कहा, "कोई भी अब भी सोच रहा है कि किसान विरोध क्यों कर रहे हैं, उन्हें केवल बिहार में किसानों की दुखद स्थिति को देखना चाहिए। नीतीश कुमार ने मंडी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसके साथ ही एमएसपी का आश्वासन भी समाप्त हो गया।"
कांग्रेस शासित राज्य इन कृषि कानूनों का विरोध करने में सबसे आगे हैं।
पुडुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायणसामी ने कहा, "किसान बड़े संकट में देश का प्रतिनिधित्व करते हैं। देशभर में करोड़ों किसानों और कांग्रेस पार्टी की मांग है : मोदी सरकार को पूरे देश के कल्याण के मद्देनजर तीन किसान विरोधी किसान कानूनों को रद्द करना होगा।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 6 दिसंबर | केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ कई किसान संगठनों के 8 दिसंबर को भारत बंद की अपील की है, पर आरएसएस से जुड़े भारतीय किसान संघ ने इससे दूरी बना ली है। भारतीय किसान संघ ने कहा है कि जब दोनों पक्ष 9 दिसंबर को फिर से वार्ता करने के लिए सहमत हुए हैं तो फिर 8 दिसंबर को भारत बंद की घोषणा उचित नहीं है। भारतीय किसान संघ ने अपने बयान में कहा है कि अभी तक किसान आंदोलन अनुशासित चला है, मगर ताजा घटनाक्रमों को ध्यान में रखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि विदेशी ताकतें, राष्ट्रदोही तत्व और कुछ राजनीतिक दलों का प्रयास किसान आंदोलन को अराजकता की ओर मोड़ देने में प्रयासरत है। अंदेशा है कि वर्ष 2017 में मंदसौर की घटना न दोहरा दी जाए, जहां छह किसानों की गोलियों से मौत हुई थी। जिन लोगों ने किसानों को हिंसक आंदोलनों में झोंका वे नेता तो विधायक और मंत्री बन गए, परंतु जो जले-मरे उनके परिवार, आज बर्बादी का दंश झेल रहे हैं। ऐसे आंदोलन से नुकसान तो देश का और किसानों का ही होता है। इसलिए भारतीय किसान संघ ने भारत बंद से अलग रहने का निर्णय लिया है।
संगठन ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि वे जनता को भारत बंद के संबंध में सावधान करते हुए किसी भी प्रकार की अप्रिय वारदात से बचाएं।
किसान संघ के सुझाव :
भारतीय किसान संघ का कहना है कि वह तीनों कानूनों की वापसी नहीं, बल्कि संशोधन के पक्ष में है। एमएसपी से नीचे खरीद न हो, व्यापारियों से किसानों को धनराशि की गारंटी मिले, अलग से कृषि न्यायालयों की स्थापना हो।
भारतीय किसान संघ ने कहा कि देश की जनता यह भी जान चुकी है कि पंजाब राज्य सरकार के द्वारा पारित वैकल्पिक बिलों में केंद्रीय कानूनों को निरस्त कर पांच जून से पूर्व की स्थिति बहाल करने का प्रावधान किया जा चुका है, फिर भी पंजाब के किसान नेता तीनों बिलों को वापस लिए जाने पर क्यों अड़े हुए हैं। (आईएएनएस)
हैदराबाद, 6 दिसंबर | मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने रविवार को लोगों से अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में किए गए अन्याय को याद रखने और इस बारे में अगली पीढ़ी को बताने का आग्रह किया। मस्जिद के विध्वंस की 28 वीं वर्षगांठ पर, हैदराबाद के सांसद ने ट्विटर पर अपने विचारों को साझा किया।
ओवैसी ने कहा, "याद रखें और अगली पीढ़ी को सिखाए : 400 से ज्यादा वर्षो से हमारी बाबरी मस्जिद अयोध्या में खड़ी थी। हमारे पूर्वजों ने इसके हॉल में नमाज अता की, इसके आंगन में एक साथ अपना उपवास तोड़ा और जब वे मर गए, तो बगल के कब्रिस्तान में दफन हो गए।"
उन्होंने कहा, "22-23 दिसंबर, 1949 की रात को, हमारी बाबरी मस्जिद पर 42 साल तक अवैध रूप से कब्जे किया गया। 1992 में, आज ही के दिन पूरी दुनिया के सामने हमारी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया था। इसके लिए जिम्मेदार लोगों को एक दिन की भी सजा नहीं हुई। इस अन्याय को कभी मत भूलना।"
इस बीच, विभिन्न मुस्लिम संगठनों की अपील पर हैदराबाद और तेलंगाना के कई हिस्सों में इस दिन को काला दिवस के रूप में मनाया गया। कुछ इलाकों में दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद रहे। (आईएएनएस)
हैदराबाद, 6 दिसंबर | सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने भी तीन नए कृषि कानूनों का विरोध करने और 8 दिसंबर को किसान संगठनों द्वारा बुलाए गए 'भारत बंद' को समर्थन देने का फैसला किया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस अध्यक्ष के चंद्रशेखर राव ने कहा कि प्रस्तावित बंद को सफल बनाने के लिए टीआरएस इसमें सक्रिय रूप से भाग लेगी।
कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दलों सहित कई ट्रेड यूनियनों और राजनीतिक दलों ने पहले ही देशव्यापी बंद को अपना समर्थन देने की घोषणा की है।
टीआरएस प्रमुख ने कहा कि "हमारी पार्टी ने सितंबर में संसद में कृषि कानूनों का विरोध किया था। लेकिन भाजपा कथित रूप से भारतीय किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाना चाहती है।"
टीआरएस प्रमुख ने कहा कि नए कानून वापस लिए जाने तक आंदोलन जारी रखने की जरूरत है।
उन्होंने लोगों से किसानों के समर्थन में खड़े होने और भारत बंद को सफल बनाने की भी अपील की। (आईएएनएस)