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घाना में महिला फुटबॉलर इस दिशा में काम कर रही हैं कि ज्यादा से ज्यादा प्रशंसकों को कैसे आकर्षित किया जाए. ऐसे में सवाल यह है कि बेहतर खेलना ज्यादा जरूरी है या सेक्सी लुक?
डॉयचे वैले पर एस्थर ओवुसुआ अपियाह-फाय की रिपोर्ट-
घाना की ज्यादातर महिला फुटबॉल खिलाड़ी कट्टर रूढ़िवादी संस्कृति में पली-बढ़ी हैं, जहां लिंग के आधार पर उनकी भूमिकाओं को गंभीरता से लिया जाता है. अब ये महिला खिलाड़ी इस बात पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए और कैसा दिखना चाहिए.
ये लड़कियां अपना फिगर मेंटेन करने, बेहतर एथलीट बनने और सेक्सी दिखने का प्रयास कर रही हैं, ताकि अपने प्रशंसक बढ़ा सकें. ऐसे में सवाल यह है कि क्या सेक्सी दिखने से महिलाओं के खेल के प्रशंसकों की संख्या में इजाफा होगा?
रूढ़िवादी धारणाएं
परंपरागत तौर पर फुटबॉल मनोरंजन का साधन रहा है. इस खेल के प्रति प्रशंसकों को आकर्षित करने के लिए दुनिया भर में कई कदम उठाए गए हैं. इन सब के बावजूद घाना में महिला फुटबॉल के क्षेत्र में धीमी गति से प्रगति हुई है. इसके प्रति दिलचस्पी बढ़ाने के लिए इसके प्रसारण को लेकर समझौता किया गया और खेल के प्रायोजक बनाए गए. इनके बावजूद अधिकांश फुटबॉल क्लबों के प्रशंसकों की संख्या में कमी आई है.
घाना में महिला फुटबॉल के प्रति ज्यादा दिलचस्पी न होने के लिए कई चीजों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इनमें सबसे प्रमुख है इन फुटबॉल खिलाड़ियों को मर्दाना लक्षणों वाली महिलाओं के तौर पर देखना.
डीडब्ल्यू से बात करते हुए घाना की राष्ट्रीय महिला टीम की गोलकीपर पेट्रीसिया मांटे ने इस बात की पुष्टि की है कि लोग यह मानते हैं कि वह पुरुष है क्योंकि वह फुटबॉल खेलती है. उन्होंने कहा, "हमारी सामाजिक संरचना ऐसी है कि अगर आप युवा महिला हैं और फुटबॉल खेलती हैं, तो वे आपको पुरुष के तौर पर देखते हैं."
भारत में गोकुलम एफसी और घाना की राष्ट्रीय टीम की स्ट्राइकर विवियन कोनाडु ने भी डीडब्ल्यू को ऐसी ही समान कहानी बताई कि किस तरह घाना की अधिकांश महिला फुटबॉल खिलाड़ी आए दिन रूढ़िवादी सोच का सामना करती हैं. उन्होंने कहा, "लोग मुझे सड़क पर बेतरतीब ढंग से रोकते थे और पूछते थे कि मैं पुरुष हूं या महिला. इससे मुझे काफी परेशानी होती थी."
खेल में सेक्स अपील मायने रखती है?
टकर सेंटर फॉर रिसर्च ऑन गर्ल्स एंड विमन इन स्पोर्ट्स की निदेशक डॉ. मैरी जो केन के अध्ययन के मुताबिक, सेक्सुअल अपील वाले शरीर ने महिलाओं को बड़ी हस्ती बना दिया, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि उनके प्रशंसकों की उस खेल में गहरी रुचि हो जिसे वह खेलती हैं. टकर इंस्टीट्यूट की एक सदस्य निकोल लावोई कहती हैं, "सेक्स, सेक्स को बेचता है, खेल को नहीं."
घाना का एक बड़ा दर्शक वर्ग अब भी यही मानता है कि पुरुष ही बेहतर एथलीट हो सकते हैं, लेकिन महिला फुटबॉल खिलाड़ी इस नजरिये को बदलने की कोशिश कर रही हैं. पेट्रीसिया मेंटे ने कहा, "हर किसी का शरीर अलग होता है. मेरा शरीर पुरुष की तरह विकसित हुआ है, लेकिन मैं पुरुष नहीं हूं. हां, मैं एक अच्छी एथलीट हूं."
कई खिलाड़ियों को यह चिंता सताती है कि मैदान के बाहर लोग उन्हें पुरुष के तौर पर देख सकते हैं और उन्हें कई ब्रांडों के विज्ञापन नहीं मिल सकते क्योंकि वे पारंपरिक सौंदर्य मानकों पर खरा नहीं उतरती हैं. घाना की सिर्फ कुछ ही महिला फुटबॉल खिलाड़ियों को बड़े ब्रैंड के विज्ञापन मिले हैं और उनमें से अधिकांश कंपनियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करती हैं.
विवियन कोनाडू ने बताया, "जब मैं छोटी थी, तो महिलाओं के कपड़े पहनती थी लेकिन जब मैंने फुटबॉल खेलना शुरू किया, तो मैंने ये कपड़े पहनने बंद कर दिए. इसका मुख्य कारण यह था कि महिलाओं के कपड़े पहनने पर मैं अजीब दिखती थी. यहां तक कि जब मैं उन्हें पहनती थी, तो मेरी बहनें भी मुझ पर हंसती थीं. इसलिए, मैंने महिलाओं वाले कपड़े पहनना बंद कर दिया."
मौजूदा समय के हिसाब से मार्केटिंग
पारंपरिक और रूढ़िवादी बाधाओं से निजात पाने के लिए सिर्फ महिला खिलाड़ी ही संघर्ष नहीं कर रही हैं. घाना महिला प्रीमियर लीग क्लब 'रिज सिटी एफसी' की सीईओ क्लियोपेट्रो एन नकेतिया ने कहा, "क्लब के सीईओ के तौर पर यह कहना मेरे लिए काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि महिला फुटबॉल में वाकई सेक्स बिकता है."
उन्होंने बताया कि महिलाएं लंबे समय से फुटबॉल खेल रही हैं लेकिन प्रशंसक सिर्फ उन्हीं की ओर आकर्षित हो रहे हैं जो यह दिखाती हैं कि वे कितनी सेक्सी हैं, "दुर्भाग्य की बात यह है कि खेल से ज्यादा सेक्सी दिखना काम करता है."
वह कहती हैं कि कि सोशल मीडिया पर वे पोस्ट ज्यादा लोकप्रिय हुए हैं जिनका मैदान से कोई लेना-देना नहीं है, "इन पोस्ट में लड़कियां या तो पोज दे रही हैं, मजाकिया मूड में हैं या सेक्सी दिख रही हैं. लोग भी इस तरह की चीजों को देखना ज्यादा पसंद करते हैं."
नकेतिया का मानना है कि पुरुषों की वजह से ही महिला फुटबॉल की लोकप्रियता बढ़ सकती है. इन पुरुष प्रशंसकों के आकर्षित होने से ही महिला फुटबॉल के समर्थक बढ़ेंगे, "अगर हम सिर्फ महिला प्रशंसकों के भरोसे रहें, तो यह खेल लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाएगी."
उनके अनुसार महिला फुटबॉल में सेक्स अपील की जरूरत को खत्म करने का एक ही तरीका है कि महिलाओं की दिलचस्पी बढ़ाई जाए, "इसका मुख्य कारण यह है कि अगर महिलाएं खेल देखने बाहर जाती हैं, तो वे यह नहीं देखती हैं कि खिलाड़ी कितनी सेक्सी हैं.”
खेल को और आकर्षक बनाने की जरूरत
घाना के ज्यादातर पुरुष प्रशंसकों ने डीडब्ल्यू से बातचीत के दौरान खेल को ज्यादा आकर्षक बनाने की जरूरत पर जोर दिया. नेल्सन नाम के एक प्रशंसक ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा कि अगर खेल को अच्छी तरह से बढ़ावा दिया जाए और महिलाओं के खेल में कड़ी प्रतिस्पर्धा या रोमांचक मुकाबला देखने को मिले, तो इसे देखने में कोई समस्या नहीं होगी.
नेल्सन ने कहा, "अगर वे पुरुषों की तरह खेलती हैं, तो मेरे हिसाब से गेंद पर उनकी पकड़ मजबूत होगी. मुझे लगता है कि उनके लुक की वजह से खेल के प्रति पुरुषों की दिलचस्पी बढ़ाने में मदद मिल सकती है, लेकिन खेल के दौरान रोमांचक मुकाबला होने पर हमारी दिलचस्पी ज्यादा बढ़ेगी."
फीफा के पूर्व अध्यक्ष सेप ब्लैटर ने 2004 में कई बातों के अलावा यह भी कहा था कि महिलाओं को शॉर्ट्स पहनकर ज्यादा से ज्यादा प्रशंसकों को आकर्षित करना चाहिए. उन्होंने कहा था कि महिला फुटबॉल को लोकप्रिय बनाने के लिए खिलाड़ियों को टाइट शर्ट्स और शरीर से चिपकी हुई शॉर्ट्स पहनना चाहिए. इस बात को लेकर उनकी तीखी आलोचना की गई थी.
हाल के समय में, महिला फुटबॉल के क्षेत्र में बेहतर प्रगति देखने को मिली है. हाल ही में आयोजित महिला अफ्रीका कप ऑफ नेशंस और महिला यूरो ने अपने ड्रेस कोड में बदलाव किए बिना रिकॉर्ड तोड़ उपस्थिति के आंकड़े पेश किए. घाना को उम्मीद है कि वहां भी महिला फुटबॉल के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ेगी लेकिन पहले उसे रूढ़िवादी सोच से लड़ाई जीतनी होगी. (dw.com)
कनाडा की नई शराब गाइडलाइन वैज्ञानिक सहमतियों से इत्तेफाक रखती है. ज्यादातर पश्चिमी देशों में स्वास्थ्य अधिकारी जिसे मॉडरेट ड्रिंकिंग कहते हैं, वो शायद उतना सुरक्षित नहीं, जैसा पहले माना जाता था.
डॉयचे वैले पर क्लेयर रॉथ की रिपोर्ट-
कनाडा सरकार की नयी शराब गाइडलाइन के मुताबिक हर सप्ताह, शराब की सिर्फ दो ड्रिंक ही कम जोखिम वाली होती है. पूर्व की गाइडलाइन के लिहाज से ये बहुत भारी कटौती है, जिसमें कहा गया था कि लैंगिक आधार पर रोजाना करीब दो ड्रिंक ली जा सकती है. वर्षों से अधिकांश पश्चिमी देशों में स्वास्थ्य अधिकारी ये बताते आए हैं कि पुरुषों के लिए दिन में दो ड्रिंक और औरत के लिए एक ड्रिंक को मॉडरेट यानी हल्का या सामान्य और सुरक्षित कहा जा सकता है.
जर्मनी और अमेरिका में 7 से 14 ड्रिंक प्रति सप्ताह (लैंगिक आधार पर) को कम खतरे वाला माना जाता है. जबकि ब्रिटेन में छह ड्रिंक प्रति सप्ताह को लो-रिस्क में रखा गया है. लेकिन हाल के वर्षों में प्रकाशित शोध उपरोक्त पैमानों पर सवाल उठाता है. कई अध्ययन ये बताते रहे हैं कि रोजाना भी एक या दो पैग शराब का स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ सकता है. पश्चिमी देशों में कनाडा पहला ऐसा देश है जिसने इस नयी रिसर्च के नतीजों को मानते हुए अपने यहां गाइडलाइन बदली है.
शराब का मॉडरेट सेवन और मस्तिष्क
वैज्ञानिकों ने असल में क्या पाया है? मार्च 2022 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन ने कुछ पुरजोर साक्ष्य पेश किए हैं कि जिसे शराब का मॉडरेट या हल्का सेवन माना जाता है वो असल में मस्तिष्क को नुकसान पहुंचा सकता है. यूके बायोबैंक से 36000 से ज्यादा अधेड़ और बूढ़े लोगों के मस्तिष्क के स्कैन की जांच करने के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि हर रोज औसतन 175 मिलीलीटर वाइन या आधा लीटर बीयर पीने वाले 50 वर्षीय व्यक्तियों के मस्तिष्क, उनकी आधा मात्रा में पीने वालों या बिल्कुल भी न पीने वालों की तुलना में, डेढ़ साल बूढ़े दिखते थे.
शोधकर्ताओं के मुताबिक शराब पीने के साथ साथ बुढ़ापे में भी वृद्धि होने लगी थी. ये अध्ययन, मस्तिष्क पर मॉडरेट ड्रिंकिंग के प्रभावों की छानबीन करने वाले अब तक के सबसे बड़े अध्ययनों में से एक है. शोधकर्ताओं के मुताबिक मॉडरेट या औसत ड्रिंकिंग का अर्थ है एक सप्ताह में अधिकतम 14 पेग. और हल्के सेवन का मतलब है प्रति सप्ताह एक से ज्यादा पैग लेकिन सात से कम. लेकिन बहुत से सवालों के जवाब बाकी हैं.
सीधे जवाब अब भी कम हैं
पहली नजर में, मस्तिष्क के अध्ययन से जुड़े नतीजे भले ही सीधे और स्पष्ट दिखते हों, लेकिन थोड़ा और गहराई में देखें तो बहुत सी चीजों के बारे में हम अभी कुछ नहीं जानते. लुसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी में अल्कोहल एंड ड्रग एब्यूज सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की निदेशक पैट्रिशिया मोलिना कहती हैं कि ये अभी अस्पष्ट है कि दो साल की अवधि में सिकुड़ चुके और बुढ़ापे के चिन्ह दिखा चुके मस्तिष्क का, संज्ञानात्मक व्यवहार पर क्या असर पड़ता है.
मोलिना कहती हैं कि कई साक्ष्य, मस्तिष्क के आकार में कमी और संज्ञानात्मक नुकसान के बीच एक संबंध दिखाते हैं. लेकिन वो इस बात से भी अंजान हैं कि खास प्रतिशतों में मस्तिष्क के घटते आकार का किसी बीमारी के नतीजों से सीधा संबंध दिखाने वाले निर्णायक अध्ययन हुए हैं या नहीं. ऐसी बीमारी जिनके बारे में मरीज या उनके डॉक्टर पहले से वाकिफ हैं. मोलिना कहती हैं कि उक्त अध्ययन का डिजाइन ऐसा है कि कुछ सवालों के जवाब मिलना मुश्किल हो जाता है.
जैसे कि उसके नतीजे शारीरिक फिटनेस की कमी या हंटिंग्टन बीमारी जैसी दूसरी गतिविधियों और ब्रेन मैटर को घटाने वाली बीमारियों से होने वाली सिकुड़न के साथ तुलना में क्या कहते हैं. मोलिना के मुताबिक, "मेटा-विश्लेषण ही जवाब पाने का सबसे करीबी तरीका होगा." दूसरे शब्दों में, किसी को इस बारे में उपलब्ध तमाम लिटरेचर पर नजर डालनी होगी और नतीजों का तुलनात्मक विश्लेषण किया जा सके.
मोलिना कहती हैं कि ऐसी तुलनाएं करना इसलिए भी कठिन हैं क्योंकि अलग अलग गतिविधियां या बीमारियां अलग अलग स्थानों पर अलग अलग सिकुड़न पैदा करती हैं. मिसाल के लिए, दिन भर मटरगश्ती करने और सिर्फ प्रोसेस्ड फूड खाने से, हंटिंग्टन बीमारी की अपेक्षा, दिमाग में अलग इलाके पर सिकुड़न आ सकती है. पहले मुर्गी या पहले अंडा वाला असमंजस भी है. क्या ये हो सकता है कि नियमित रूप से शराब पीने को प्रवृत्त लोगों का मस्तिष्क आमतौर पर न पीने वालों की तुलना में छोटा ही होता हो?
मोलिना कहती हैं कि शोधकर्ता इस सवाल का जवाब, किशोरावस्था में मस्तिष्क के संज्ञानात्मक विकास के अध्ययन के जरिए देने की कोशिश कर रहे हैं. उस अध्ययन के तहत, शराब और ड्रग के सेवन से जुड़ा डाटा जमा करने के अलावा, समय के साथ मस्तिष्क के आकार में बदलावों को ट्रैक किया जाता है
लेकिन रेड वाइन तो कहते हैं, अच्छी होती है?
शराबखोरी शरीर और दिमाग, दोनों के लिए हानिकारक है, इस बात के प्रमाण तो पक्के और निर्णायक हैं. लेकिन जब बात आती है मॉडरेट सेवन की तो मामला थोड़ा पेचीदा हो जाता है. पिछले कुछ दशकों में प्रकाशित बहुत से अध्ययन ये दावा करते दिखते है कि मॉडरेट मात्रा में शराब पीना आपने लिए वास्तव में अच्छा हो सकता है. ब्रेन स्टडी से ठीक एक दिन पहले का अध्ययन भी इनमें शामिल है.
यूके बायोबैंक के जरिए करीब 312000 मौजूदा पियक्कड़ों से मिले डाटा का विश्लेषण करते हुए शोधकर्ताओं ने पाया कि खाने के साथ रोजाना करीब 150 मिलीलीटर वाइन के बराबर अल्कोहल सेवन करने वाली औरतों में और 300 एमएल के बराबर का अल्कोहल सेवन करने वाले पुरुषों में, टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा कम रहता है. येल यूनिवर्सिटी में मेडिसिन की प्रोफेसर और अल्कोहल की लत से जुड़े मामलों की विशेषज्ञ जेनेट ट्रेटॉल्ट का कहना है कि इस किस्म के शोध में, सुर्खियों की तह में जाकर चीजों को समझना जरूरी है.
वो कहती हैं कि आखिरकार अध्ययन ने सिर्फ यही पाया है कि अगर आप खाने के साथ अल्कोहल लेते हैं तो आपको टाइप 2 डायबिटीज होने की आशंका कम है और अगर बिना खाए लेते हैं तो हो सकती है. अल्कोहल आपके लिए अच्छा है, ऐसा कहीं नहीं कहा गया है. जेनेट ट्रेटॉल्ट कहती हैं, "अगर आप ये सारी पेचीदगियां या दुश्वारियां नहीं समझते या उन पर गौर नहीं करते हैं तो आपके निष्कर्ष या विवेचनाएं कुछ महत्वपूर्ण और मानीखेज मुद्दों की ओर ले जा सकती हैं."
ऐसे अध्ययनों के आलोचक ये भी कहते हैं कि उनमें जरूरी सामाजिक-आर्थिक कारकों को भी शामिल नहीं किया जाता है, रेड वाइनके लाभों को बढ़ाचढ़ाकर दिखाने का चलन भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त रहा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि ऊंचे रुतबे यानी ऊंची सामाजिक-आर्थिक साख वाले लोगों में, जो अक्सर पहले से स्वस्थ ही होते हैं, हर रोज एक गिलास रेड वाइन लेने की संभावना ज्यादा देखी जा सकती है बजाय कि उनमें जो ऐसे रुतबे वाले नहीं होते हैं.
अल्कोहल का सेवन स्वास्थ्यवर्धक नहीं
2018 में न्यू यार्क टाइम्स की जांच में पाया गया कि स्वास्थ्य पर मॉडरेट अल्कोहल सेवन के असर का पता लगाने वाले 10 साल की अवधि वाले बड़े पैमाने के अध्ययनों में शामिल शोधकर्ता, शराब उद्योग की ओर झुके हुए थे. नेशनल इन्स्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) के अध्ययन की फंडिंग में लगी 10 करोड़ डॉलर की राशि, मुख्यतः शराब उद्योग के बड़े खिलाड़ियों की ओर से आई थी. उनमें आनह्युजर-बुश इनबेव भी एक है. इस अध्ययन के लीड ऑथर हार्वर्ज यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफेसर हैं, ईमेल और कॉंफ्रेंस कॉल्स के जरिए उन्होंने अल्कोहल कंपनियों को भरोसा दिलाया था कि नतीजे उनके ही पक्ष में आएंगे.
एनआईएच के जांचकर्ताओं को जब इस घोटाले की खबर लगी तो अध्ययन रुकवा दिया गया. हालांकि प्रकाशित कुछ हुआ नहीं लेकिन ये हालात इस बात की याददिहानी हैं कि लुभावने नतीजों को लेकर सावधान रहना चाहिए. 2018 के एक बड़े अध्ययन ने मॉडरेट सेवन को लेकर जारी बहस पर विराम लगाने की कोशिश की. उसका कहना था कि किसी भी पैमाने पर शराब पीने से सेहत अच्छी नहीं होती.
26 साल की अवधि में 195 देशों के डाटा का इस्तेमाल करते हुए अध्ययन में अल्कोहल के वैश्विक बोझ का अब तक का सबसे व्यापक आकलन पेश किया गया. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों ने स्टडी के डिजाइन में कमियों की ओर इशारा किया है. जैसे कि, संख्या में अपने नतीजे रखने के बजाय, शोधकर्ताओं ने नजदीकी शब्दावली में नतीजे बताए थे. जब उन्होंने ठेठ आंकड़ों में या संख्या में बात रखी तो नुकसान का स्तर बदल गया.
जितना कम उतना बेहतर
रोजाना एक पेग लेने वालों में, अल्कोहल से जुड़ी स्वास्थ्य समस्या होने का जोखिम रोज न पीने वालों की तुलना में, 0.5% ज्यादा था. आंकड़ों में देखें तो अध्ययन ने पाया कि 15 से 95 साल की उम्र वाले प्रति एक लाख लोगों में से 914 लोगों ने अगर शराब न पी हो तो उस स्थिति में एक साल में कोई समस्या आती है. और अगर वे पीते तो प्रति लाख में उनकी संख्या सिर्फ चार और बढ़कर 918 हो जाती.
शराब की खपत के बारे में जो कुछ भी हम जानते हैं, उसे देखते हुए, ट्रेटॉल्ट के मुताबिक वो अपने मरीजों को शराब पूरी तरह छोड़ने के लिए नहीं कहेंगी. उनका कहना है कि वो पहले से संज्ञानात्मक समस्या वाले मरीजों के मस्तिष्क का अध्ययन करना चाहेंगी या उन्हें और परामर्श देंगी. वो कहती हैं, "लेकिन मैं जरूरी नहीं कि इस डाटा को मरीजों के व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश के लिए इस्तेमाल करूं जिन्हें वास्तव में कोई नुकसान नहीं हुआ है और जो जानते हैं कि उनके संभावित खतरे क्या हैं. मैं अपने तमाम मरीजों को ये नहीं कहूंगी कि वे पीना छोड़ दें."
अगर आप स्वस्थ होने की कोशिश कर रहे हैं, तो कभीकभार रेड वाइन का एक गिलास शायद काम न आए. लेकिन वो शायद ज्यादा नुकसान भी न करे. लेकिन कनाडा की नयी गाइडलाइन, वैज्ञानिक बिरादरी के शोधकर्ताओं का ये रुझान जरूर दिखाती है कि शराब पीने के मामले में "मॉडरेट" शब्द को वे किस तरह परिभाषित करने लगे हैं. (dw.com)
बेलग्रेड, 21 जनवरी | सर्बिया के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वुसिक ने शुक्रवार को अपने देश के स्वायत्त प्रांत कोसोवो और मेटोहिजा के मुद्दे पर यूरोपीय संघ, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और इटली के प्रतिनिधियों के साथ चर्चा की। बैठक में यूरोपीय संघ के विशेष प्रतिनिधि मिरोस्लाव लाजकाक, पश्चिमी बाल्कन देशों के प्रति नीति की देखरेख करने वाले अमेरिका के उप सहायक सचिव गेब्रियल एस्कोबार, फ्रांस के राष्ट्रपति और जर्मन चांसलर के विदेश व सुरक्षा नीति के सलाहकार क्रमश: इमैनुएल बोने और जेंस प्लेटनर व इटली के प्रधान मंत्री के राजनयिक सलाहकार फ्रांसेस्को तालो शामिल थे।
बैठक के बाद राष्ट्रपति कार्यालय के बयान के अनुसार वुसिक ने कहा, हम इस बात पर सहमत हैं कि एक स्थिर संघर्ष कोई समाधान नहीं है और जब आपके पास एक स्थिर संघर्ष होता है, तो यह केवल समय की बात है जब कोई इसे खोल देगा और जब गैर-जिम्मेदार व्यक्ति पूरे पश्चिमी बाल्कन की शांति और स्थिरता को ध्वस्त कर देंगे।
समाचार एजेंसी शिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार 2022 में बेलग्रेड और प्रिस्टिना के बीच नाजुक बातचीत सर्बियाई पहचान दस्तावेजों, यात्रा दस्तावेजों व लाइसेंस प्लेटों की वैधता को लेकर तनाव से बाधित हुई, जिसके परिणामस्वरूप सर्बों ने कोसोवो के संस्थानों को छोड़ दिया और विरोध प्रदर्शन किया।
सर्बियाई राष्ट्रपति ने सितंबर 2022 में प्रस्तावित योजना पर विचार करने की इच्छा व्यक्त की।
मीडिया में लीक हुए संस्करण के अनुसार प्रस्तावित योजना का उद्देश्य बेलग्रेड और प्रिस्टिना के बीच संबंधों के पूर्ण सामान्यीकरण को प्राप्त करना है।
वुसिक ने अपनी चिंता का पूरी तरह से खुलासा किए बिना कहा, हम अवधारणा को स्वीकार करने और प्रस्तावित योजना के कार्यान्वयन पर काम करने के लिए तैयार हैं, इस तथ्य के साथ कि मैंने एक बात बहुत स्पष्ट कर दी है और एक महत्वपूर्ण मुद्दे पर सभी देखभाल और आरक्षित दिखाया है।
वुसिक ने कहा कि प्रस्तावित योजना के संबंध में सरकार के सदस्यों, संसद के सदस्यों और सभी महत्वपूर्ण सामाजिक समूहों के साथ परामर्श किया जाएगा।
गौरतलब है कि कोसोवो ने 2008 में एकतरफा रूप से सर्बिया से स्वतंत्रता की घोषणा की। लेकिन सर्बिया ने इसे अस्वीकार कर दिया और कोसोवो को अपना प्रांत मानता है। (आईएएनएस)|
(सज्जाद हुसैन)
इस्लामाबाद, 21 जनवरी। पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी ने कहा है कि सरकार उन आतंकवादी संगठनों के साथ कोई बातचीत नहीं करेगी जो देश के कानूनों और संविधान का सम्मान नहीं करते हैं।
सरकारी समाचार एजेंसी ‘एसोसिएटेड प्रेस ऑफ पाकिस्तान’ के अनुसार दावोस में विश्व आर्थिक मंच की बैठक के दौरान ‘वाशिंगटन पोस्ट’ के साथ एक साक्षात्कार में, बिलावल ने पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार पर तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के प्रति तुष्टिकरण की नीति अपनाने का भी आरोप लगाया।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे विश्वास है कि अगर हम अफगान अंतरिम सरकार के साथ काम कर सकते हैं, जिसका इन समूहों पर प्रभाव है, तो हम अपनी सुरक्षा कायम रखने में सफल होंगे।’’
उन्होंने कहा कि देश का नया नेतृत्व, राजनीतिक और सैन्य दोनों, उन आतंकवादी संगठनों से कोई बातचीत नहीं करेगा जो देश के कानूनों और संविधान का सम्मान नहीं करते हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या पाकिस्तान को उम्मीद है कि नई अफगान सरकार टीटीपी के खिलाफ कार्रवाई करेगी, बिलावल ने कहा, ‘‘हम दोनों आतंकवाद के शिकार हैं। मैं नहीं मानता कि आतंकवाद के खिलाफ अफगानिस्तान की सरकार अपने दम पर सफल होगी और न ही हम अपने दम पर आतंकवाद के खिलाफ सफल होंगे। हमें मिलकर काम करना होगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का पूरा उद्देश्य पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक देश बनाना है। हमारा मानना है कि चरमपंथ और आतंकवाद से निपटने का एकमात्र तरीका लोकतंत्र है।’’
यह पूछे जाने पर कि क्या वह इस साल प्रधानमंत्री बन सकते हैं, बिलावल ने कहा कि उन्हें पहले चुनाव जीतना होगा। (भाषा)
बीजिंग, 21 जनवरी। तिब्बत में एक राजमार्ग की सुरंग के बाहर हिमस्खलन में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या बढ़कर शुक्रवार को 28 हो गई। चीन के सरकारी प्रसारक ‘सीसीटीवी’ की खबर में यह जानकारी दी गई है।
तिब्बत के दक्षिण-पश्चिम में न्यिंगची शहर को मेडोग काउंटी से जोड़ने वाली सुरंग के बाहर की तस्वीरों में करीब छह कर्मी जमी बर्फ को हटाते नजर आ रहे हैं। अधिकारियों ने बताया कि करीब 1,000 बचावकर्मी और दर्जनों आपातकालीन वाहन बचाव एवं राहत कार्य में जुटे हुए हैं।
मंगलवार की शाम सुरंग के ठीक बाहर कई टन बर्फ गिरी, जिससे कई चालक वाहनों समेत बर्फ में दब गए।
चीन में रविवार से शुरू होने वाली नव वर्ष की छुट्टी के लिए कई लोग अपने-अपने घर जा रहे थे।
न्यिंगची शहर लगभग 10,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है, यह तिब्बत की क्षेत्रीय राजधानी ल्हासा से लगभग पांच घंटे की दूरी पर है। (एपी)
एपी देवेंद्र धीरज धीरज 2101 0030 बीजिंग
न्यूज़ीलैंड लेबर पार्टी के सांसद क्रिस हिपकिन्स का जेसिंडा अर्डर्न की जगह प्रधानमंत्री बनना तय हो गया है.
पार्टी के शीर्ष नेता पद की दौड़ में वो अकेले दावेदार हैं, जिसकी वजह से उनका प्रधानमंत्री पद पर चुना जाना भी तय है.
क्रिस हिपकिन्स पहली बार साल 2008 में सांसद बने थे और नवंबर 2020 में उन्हें कोरोना प्रबंधन के लिए मंत्री चुना गया था.
इससे पहले गुरुवार को जेसिंडा अर्डर्न ने एलान किया था कि वो पीएम पद छोड़ने जा रही हैं. उन्होंने कहा था कि अब उनके पास योगदान देने के लिए कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं बचा है.
हिपकिन्स कितने समय तक इस पद पर रहेंगे ये अभी तय नहीं क्योंकि इसी साल अक्टूबर में न्यूज़ीलैंड के आम चुनाव होने हैं. अगर लेबर पार्टी चुनाव हार जाती है तो हिपकिन्स केवल आठ महीनों के लिए ही पीएम रहेंगे.
44 वर्षीय हिपकिन्स फिलहाल पुलिस, शिक्षा और जनसेवा मंत्री हैं. पीएम बनने से पहले रविवार को संसद में उन्हें लेबर पार्टी की ओर से औपचारिक समर्थन की ज़रूरत होगी.
अगर ये समर्थन उन्हें मिल जाता है तो अर्डर्न औपचारिक रूप से 7 फ़रवरी को गवर्नर जनरल को अपना इस्तीफ़ा सौंप देंगी. इसके बाद हिपकिन्स को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाएगा.(bbc.com/hindi)
गुरुवार को अमेरिका के एक डिस्ट्रिक्ट जज ने पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर क़रीब 10 लाख डॉलर का हर्जाना लगाया है.
राष्ट्रपति ट्रंप ने हिलेरी क्लिंटन पर मानहानि का मुक़दमा दायर कर 7 करोड़ डॉलर हर्जाने की मांग की थी. हिलेरी क्लिंटन और अन्य के ख़िलाफ़ दायर किए गए इस मानहानि के मुक़दमे को कोर्ट ने ‘ओछा’ क़रार दिया.
डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले मार्च में ये मुक़दमा दायर किया था जिसमें आरोप लगाया था कि 2016 के चुनाव में हिलेरी क्लिंटन, डेमोक्रेटिक नेशनल कमेटी और अन्य ने ग़लत नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की और चुनाव जीतने के लिए ट्रंप के चुनावी अभियान को रूस के साथ जोड़ने की कोशिश की थी.
ट्रंप ने इसके लिए हर्जाने के तौर पर सात करोड़ डॉलर की मांग की थी.
हालांकि यह मुक़दमा बीते सितम्बर में ही ख़ारिज हो गया था और एक प्रतिवादी के अपील पर डोनाल्ड ट्रंप पर 65,000 डॉलर का जुर्माना भी लगाया गया था.
गुरुवार को ये ताज़ा आदेश हिलेरी क्लिंटन की अपील पर आया है.
अपने आदेश में जज ने कहा कि ट्रंप न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग के मास्टरमाइंड हैं और इस मुक़दमे में कोई दम नहीं था और इसके पीछे राजनीतिक मक़सद छिपा था.(bbc.com/hindi)
संयुक्त राष्ट्र की परमाणु हथियारों की निगरानी करने वाली संस्था अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) ने कहा है कि यूक्रेन के ज़ापोरिज़्ज़िया स्थित न्यूक्लियर प्लांट से ख़तरा अभी टला नहीं है. इस प्लांट पर रूस का कब्ज़ा है.
आईएईए ने बीबीसी से कहा, "ज़ापोरिज़्ज़िया स्थित न्यूक्लियर प्लांट अभी भी गंभीर ख़तरे में है."
रूसी सैनिकों ने बीते साल मार्च में इस प्लांट पर कब्ज़ा किया था, जिससे न्यूक्लियर हादसे का ख़तरा बढ़ गया था.
आईएईए के अध्यक्ष रफ़ाल ग्रॉसी इस प्लांट से जुड़ी सुरक्षा को लेकर लगातार बातचीत कर रहे हैं.
वो कई बार यूक्रेन जा चुके हैं और एक लंबी प्रक्रिया की निगरानी कर रहे हैं.
इस प्रक्रिया में आईएईए यूक्रेन के सभी न्यूक्लियर पावर प्लांट में अपनी मौजूदगी सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहा है. (bbc.com/hindi)
गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फ़ाबेट बड़े पैमाने पर कर्मचारियों की छंटनी करने जा रही है.
कंपनी ने शुक्रवार को एलान किया कि उसने 12 हज़ार लोगों को नौकरी से निकालने का फ़ैसला किया है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक एल्फ़ाबेट के सीईओ सुंदर पिचाई ने कर्मचारियों को एक मेल किया है. इसमें उन्होंने लिखा, "हमने अपने वर्कफ़ोर्स में क़रीब 12,000 पदों को कम करने का फ़ैसला किया है."
उन्होंने कहा कि ये फ़ैसला "बदली हुई आर्थिक वास्तविकता के कारण लिया गया है, जिसका हम आज सामना कर रहे हैं."
उन्होंने कहा, " जिन फ़ैसलों के चलते हम यहां तक पहुंचे हैं, उनकी मैं पूरी ज़िम्मेदारी लेता हूं."
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक इस फ़ैसले का पूरी कंपनी की कई टीमों पर असर होगा. अमेरिका में इस फ़ैसले से प्रभावित होने वाले लोगों को कंपनी ने जानकारी दे दी है.
दूसरे देशों में इस प्रक्रिया को पूरा करने में थोड़ा समय लग सकता है.
कुछ दिनों पहले ही माइक्रोसॉफ़्ट ने 10 हज़ार लोगों को नौकरी से निकालने की जानकारी दी थी. (bbc.com/hindi)
क्वेटा, 20 जनवरी | पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में शुक्रवार को एक रेलवे ट्रैक के पास हुए विस्फोट में कम से कम आठ लोग घायल हो गए। रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह जानकारी दी। बलूचिस्तान में पाकिस्तान रेलवे के प्रवक्ता मुहम्मद काशिफ ने डॉन को बताया, धमाका तब हुआ जब पेशावर जाने वाली जाफर एक्सप्रेस पानीर इलाके से गुजर रही थी। उन्होंने आगे कहा कि धामके के कारण ट्रेन की छह बोगियां पटरी से उतर गईं, जिस कारण आठ लोग घायल हो गए। घायलों को नजदीकी के अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
इस बीच, डिप्टी कमिश्नर समीउल्लाह ने भी घटना की पुष्टि की और कहा कि यह एक रिमोट-कंट्रोल विस्फोट था जिससे ट्रेन की कई बोगियां पटरी से उतर गईं। बचाव दलों को मौके पर भेज दिया गया है। हालांकि, पुलिस की ओर से अभी तक घटना पर बयान जारी नहीं किया है।
गौरतलब है कि बीते साल 25 दिसंबर को बलूचिस्तान में आतंकवाद की विभिन्न घटनाओं में एक कप्तान सहित छह सुरक्षाकर्मियों की मौत हो गई, जबकि कम से कम 17 लोग घायल हो गए। सेना के मीडिया विंग ने कहा था कि सुरक्षाबलों के प्रमुख दल के करीब एक आईईडी धमाका हुआ था। बयान में आगे कहा गया है कि हमले में शामिल संदिग्धों को पकड़ने के लिए इलाके में अभियान जारी है।
एक अन्य बयान में आईएसपीआर ने कहा था कि झोब के सांबाजा इलाके में आतंकवादियों के खिलाफ एक अभियान में एक सुरक्षाकर्मी मारा गया था और दो जवान घायल हुए थे। वहीं जवानों ने एक आतंकवादी को भी ढेर कर दिया था। (आईएएनएस)|
एक वैश्विक सर्वे के नतीजों में यह बात सामने आई है कि दुनिया में हर पांच में से सिर्फ दो व्यक्ति भविष्य में अपने परिवार को बेहतर बनाने की उम्मीद रखते हैं.
एडेलमैन ट्रस्ट बैरोमीटर की एक हालिया रिपोर्ट, जो दो दशकों से अधिक समय से हजारों लोगों के सामाजिक दृष्टिकोण का सर्वेक्षण कर रही है, ने खुलासा किया कि दुनिया के कुछ सबसे विकसित देशों जैसे अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और जापान में लोगों में निराशावाद अपने उच्चतम स्तर पर है.
इसने आगे पुष्टि की कि महामारी औरमहंगाई के प्रभाव से समाज कैसे विभाजित हो रहा है. मुद्रास्फीति और महामारी के प्रभावों के बावजूद, उच्च-आय वाले परिवार अभी भी संस्थानों पर बहुत अधिक निर्भर हैं, लेकिन निम्न-आय समूहों के बीच सामाजिक अलगाव बढ़ रहा है.
एडेलमैन कम्युनिकेशंस ग्रुप के रिचर्ड एडेलमैन ने कहा, "यह एक वास्तविक बड़े वर्ग विभाजन को फिर से दिखाता है."
पिछले साल 1 नवंबर से 28 नवंबर तक 28 देशों के लोगों का इस सर्वे के लिए इंटरव्यू लिया गया था. रिचर्ड एडेलमैन ने कहा, "हमने इस वितरण को स्वास्थ्य देखभाल उद्योग पर महामारी के प्रभाव के दौरान देखा, और अब हम इसे मुद्रास्फीति के संदर्भ में देख रहे हैं."
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य संगठनों ने गरीबों पर महामारी के सबसे बड़े प्रभाव का अनुमान लगाया है. बुनियादी जरूरतों की बढ़ती कीमतों से कम आय वाले लोगों पर सबसे ज्यादा मार पड़ी है.
रिचर्ड एडेलमैन के अनुसार विश्व स्तर पर केवल 40 प्रतिशत लोग इस बात से सहमत थे कि वे और उनके परिवार अगले पांच वर्षों में बेहतर स्थिति और परिस्थितियों की उम्मीद करते हैं. एक साल पहले 50 प्रतिशत इस विचार से सहमत थे. उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में सबसे अधिक सार्वजनिक मोहभंग अमेरिका में 36 प्रतिशत, युनाइटेड किंगडम में 23 प्रतिशत, जर्मनी में 15 प्रतिशत और जापान में 9 प्रतिशत पर पाया गया.
कम दर के बावजूद केवल चीन पिछले वर्ष की तुलना में इस प्रवृत्ति को कम करता हुआ प्रतीत होता है. शून्य-कोविड नीतियों के कारण आर्थिक मंदीके बावजूद चीन में ऐसे लोगों का अनुपात बढ़कर 65 प्रतिशत हो गया है. गौरतलब है कि चीन ने अब अपनी नीतियों में ढील दी है.
एडेलमैन के इस सर्वेक्षण में दर्ज आंकड़ों के अनुसार उच्च आय वाले 63 प्रतिशत समाज के प्रमुख संस्थानों पर भरोसा करते हैं. अकेले कम आय वाले अमेरिकियों के बीच इन संस्थानों में विश्वास 40 प्रतिशत तक गिर गया है. सऊदी अरब, चीन, जापान और संयुक्त अरब अमीरात में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है.
समाज के विभाजन और भविष्य में इस स्थिति के बने रहने पर किए गए एक सर्वेक्षण के परिणामों में पाया गया कि अर्जेंटीना, दक्षिण अफ्रीका, स्पेन, स्वीडन और कोलंबिया जैसे समाजों में बड़ी संख्या में इस मानसिकता वाले लोग हैं और वे इस कथन से सहमत हैं.
एए/वीके (रॉयटर्स)
दक्षिण कोरिया, 20 जनवरी । दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल की एक झुग्गी बस्ती में आग लगने के बाद सैंकड़ों लोगों को वहां से निकाला गया है.
शुक्रवार की सुबह गुरयोंग गांव में लगी आग में 60 से ज़यादा घर तबाह हो गए. अभी तक किसी के घायल होने या मरने की ख़बर नहीं है.
दक्षिण कोरिया मीडिया के मुताबिक इस इलाके के घर एक दूसरे से सटे हुए हैं. ये झुग्गी बस्ती राजधानी के आखिरी छोर पर हैं.
आग बुझाने में 900 दमकल कर्मियों और सात हेलिकॉप्टरों की मदद ली गई.
प्रभावित इलाके में रहने वाले 72 साल के एक बुज़ुर्ग ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला, मैंने देखा कि आग की लपटें उठ रही थीं."
"मुझे लगा कि ये एक गंभीर हादसा है और मुझे अकेले नहीं भागना चाहिए. इसलिए मैंने लोगों के दरवाज़े खटखटाए और चिल्लाना शुरू किया. लोग बाहर आए और चिल्लाने लगे. वहां अफ़रातफ़री थी."
आग के कारणों का अभी तक पता नहीं चला है, लेकिन ये इलाका आग और बाढ़ के लिहाज़ से ख़तरे की जद में माना जाता है.
यहां घर कार्ड बोर्ड और लकड़ी के बने हैं. कोरिया टाइम्स के मुताबिक गुरयोंग गांव में 2009 से 16 बार आग लग चुकी है.
1980 के दशक में एक पुनर्विकास योजना के कारण विस्थापित लोगों को यहां बसाया गया था. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन, 20 जनवरी । अमेरिका और ब्रिटेन समेत यूरोप के कई देशों की ओर से यूक्रेन को हथियार देने के वादे के बाद अब जर्मनी पर भी दबाव बढ़ रहा है कि वो यूक्रेन की मदद करे.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने जर्मनी से टैंक मांगे हैं. ये मांग जर्मनी की पश्चिमी देशों से बातचीत के पहले की गई है.
ज़ेलेंस्की ने कहा, "अगर आपके पास लेपर्ड (टैंक) हैं, तो हमें दें."
अमेरिका और यूरोप के कई देश पहले ही यूक्रेन को नए हथियार देने का वादा किया कर चुके हैं .
अमेरिका ने यूक्रेन को 25 करोड़ डॉलर का पैकेज देने का एलान किया है. इसमें बख्तरबंद गाड़ियां, एयर डिफेंस सिस्टम और रूस को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दूसरी तरह की मदद शामिल है.
कल की मीटिंग में नौ देश शामिल हुए थे. ये हैं ब्रिटेन, पोलैंड, लातविया, लिथुआनिया, डेनमार्क, चेक रिपब्लिक, एस्टोनिया , नीदरलैंड और स्लोवाकिया.
अब जर्मनी पर भी हथियार देने का दबाव बढ़ रहा है. फिनलैंड और पोलैंड यूक्रेन को जर्मनी में बने लेपर्ड-2 टैंक देना चाह रहे हैं लेकिन इसके लिए उन्हें जर्मनी की इजाज़त लेनी होगी. (bbc.com/hindi)
कोलंबो, 20 जनवरी विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कर्ज में डूबे श्रीलंका के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए शुक्रवार को कहा कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में विशेष रूप से ऊर्जा, पर्यटन और बुनियादी ढांचा के क्षेत्रों में भारत अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेगा।
उन्होंने शुक्रवार सुबह श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे से मुलाकात की।
जयशंकर ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘‘कोलंबो आने का मेरा पहला मकसद इन कठिन पलों में श्रीलंका के साथ भारत की एकजुटता व्यक्त करना है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मेरे समकक्ष और अन्य श्रीलंकाई मंत्रियों के साथ कल (बृहस्पतिवार) शाम हुई बैठकों में अच्छी चर्चा हुई।’’
श्रीलंका को आर्थिक संकट से उबारने में मदद करने के लिए भारत ने ‘क्रेडिट’ और ‘रोलओवर’ के रूप में लगभग चार अरब डॉलर दिए हैं।
उन्होंने कहा कि भारत ने दृढ़ता से महसूस किया कि श्रीलंका के ऋणदाताओं को श्रीलंकाई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
इससे पहले, श्रीलंका ने पिछले वर्ष 3.9 अरब अमेरिकी डॉलर की ऋण सहायता दिए जाने और गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे द्वीपीय देश को कर्ज के पुनर्गठन का आश्वासन देने जैसे कदमों के लिए भारत का आभार व्यक्त किया है।
इससे वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से ऋण प्राप्त कर सकेगा।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर श्रीलंका की यात्रा पर हैं और उन्होंने कर्ज के बोझ तले दबे इस देश में तेजी से आर्थिक सुधार के लिए निवेश की गति बढ़ाने की प्रतिबद्धता जताई है। (भाषा)
कोलंबो, 20 जनवरी | भारत दौरे पर आए विदेश मंत्री (ईएएम) एस. जयशंकर ने अपने श्रीलंकाई समकक्ष को आर्थिक रूप से कमजोर दक्षिणी पड़ोसी देश में आर्थिक सुधार में तेजी लाने के लिए निवेश प्रवाह बढ़ाने की भारत की प्रतिबद्धता के बारे में बताया। गुरुवार शाम श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी के साथ अपनी बैठक के बाद भारतीय विदेश मंत्री ने ट्वीट किया, श्रीलंका में निवेश प्रवाह बढ़ाने की हमारी प्रतिबद्धता से अवगत कराया, ताकि आर्थिक सुधार में तेजी लाई जा सके। कल सुबह नेतृत्व के साथ चर्चा के लिए तत्पर हैं।
जयशंकर ने कहा, आज शाम कोलंबो में विदेश मंत्री अली साबरी और अन्य मंत्रिस्तरीय सहयोगियों के साथ एक अच्छी बैठक हुई। बुनियादी ढांचे, कनेक्टिविटी, ऊर्जा, उद्योग और स्वास्थ्य में भारत-श्रीलंका सहयोग पर चर्चा हुई।
श्रीलंका के विदेश मंत्री ने भी ट्वीट किया, कोलंबो में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिलकर खुशी हुई। हमारे राष्ट्रों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने, लोगों से लोगों के संपर्क, व्यापार और निवेश संबंधों पर चर्चा की और श्रीलंका के लिए सहायताभारत के ²ढ़ संकल्प की सराहना की।
जयशंकर की संकटग्रस्त पड़ोसी की यात्रा श्रीलंका के ऋणों के पुनर्गठन का समर्थन करने के लिए आईएमएफ को दिए गए भारत के आश्वासन के बाद हुई।
इस सप्ताह की शुरुआत में श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने संसद को सूचित किया कि भारत और चीन के साथ ऋण पुनर्गठन वार्ता सफल रही।
मंत्रालय के एक हाई प्रोफाइल प्रतिनिधिमंडल के साथ भारत के विदेश मंत्री 19 और 20 जनवरी को श्रीलंका की दो दिवसीय यात्रा पर हैं। (आईएएनएस)|
लंदन, 20 जनवरी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड में वाहन चलाते समय एक वीडियो बनाने के लिए अपनी ‘सीट बेल्ट’ हटाने को लेकर माफी मांगी है।
सुनक के ‘डाउनिंग स्ट्रीट’ (प्रधानमंत्री कार्यालय) के प्रवक्ता ने बृहस्पतिवार को कहा कि उन्होंने केवल थोड़ी देर के लिए अपनी सीट बेल्ट हटाई थी और वह स्वीकार करते हैं कि उनसे गलती हुई है।
ब्रिटेन में कार में ‘सीट बेल्ट’ न लगाने पर 100 पाउंड का तत्काल जुर्माना है। अगर मामला अदालत में जाता है तो यह जुर्माना बढ़कर 500 पाउंड हो जाता है। वैध चिकित्सा कारणों के चलते ‘सीट बेल्ट’ लगाने में कई बार छूट दी जाती है।
सुनक के प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ यह उनके निर्णय लेने में एक मामूली चूक थी। प्रधानमंत्री ने एक छोटा वीडियो बनाने के लिए अपनी सीट बेल्ट हटाई थी। वह पूरी तरह से अपनी गलती स्वीकार करते हैं और माफी मांगते हैं।’’
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘ प्रधानमंत्री का मानना है कि सभी को सीट बेल्ट लगानी चाहिए।’’
सुनक ने देश भर में 100 से अधिक परियोजनाओं को कोष मुहैया कराने के लिए ‘लेवलिंग अप फंड’ की घोषणाएं करने के लिए यह वीडियो बनाया था। वीडियो में उनकी कार के आसपास मोटरसाइकिल पर सवाल पुलिस कर्मी नजर आ रहे हैं।
विपक्षी दल ‘लेबर पार्टी’ के एक प्रवक्ता ने सुनक पर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘ ऋषि सुनक इस देश में सीट बेल्ट लगाना, डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करना, ट्रेन सेवा, अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करना नहीं जानते। हर दिन यह सूची लंबी होती जा रही है और इसे देखना काफी दुखद है।’’
गौरतलब है कि कुछ दिन पहले सामने आए एक वीडियो में सुनक अपने कार्ड से संपर्क रहित (कॉन्टैक्टलेस) भुगतान करने में संघर्ष करते दिखे थे। (भाषा)
अमेरिका और यूरोपीय देशों ने कहा है कि वे यूक्रेन को और हथियारों की सप्लाई करेंगे. इस सप्लाई गोला-बारूद के अलावा युद्ध में काम आने वाली बख़्तरबंद गाड़ियां भी होंगी.
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, रूस-यूक्रेन युद्ध के अगले चरण में कीएव के समर्थन के लिए हुई एक अहम बैठक में ये फै़सला लिया गया.
इसी सिलसिले में अमेरिका ने यूक्रेन की मदद के लिए 2.5 बिलियन डॉलर की सप्लाई भेजने का एलान किया है. ब्रिटेन ने कहा है कि वो यूक्रेन को 600 ब्रिम्स्टोन मिसाइल देगा.
डेनमार्क ने कहा है कि वो यूक्रेन को फ्रांस निर्मित 19 सीज़र होवित्ज़र और स्वीडन ने आर्चर आर्टिलरी सिस्टम देने का वादा किया है. जर्मनी के रामस्टेन में 50 देशों की बैठक के बाद ये फ़ैसला हुआ है.
इस बैठक में नेटो के भी 30 सदस्य देशों ने हिस्सा लिया. रामस्टेन में हुई बैठक में इस मुद्दे पर चर्चा हुई कि रूस के ख़िलाफ़ यूक्रेन को और कैसे मदद दी जा सकती है.
जर्मनी में हुई बातचीत को लेकर यूक्रेन के राष्ट्रपति जे़लेंस्की ने कहा था कि कीएव को 'मजबूत फ़ैसलों' और 'ताक़तवर मिलिट्री सपोर्ट' की उम्मीद है
लेकिन अमेरिका और जर्मनी ने यूक्रेन की ओर से अत्याधुनिक टैंक की मांग पर कोई फ़ैसला नहीं किया है.
इसे लेकर रूस ने चेतावनी दी है कि अगर पश्चिमी देशों ने यूक्रेन को ये मदद दी तो इसके गंभीर परिणाम होंगे.
यूक्रेन को भारी हथियारों की मदद देने के मामले में जर्मनी एहतियात बरत रहा है. लेकिन जर्मन चांसलर पर यूक्रेन को लेपर्ड टैंक देने के लिए दबाव बढ़ रहा है. (bbc.com/hindi)
लंदन, 20 जनवरी। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने बृहस्पतिवार को उत्तर-पश्चिम इंग्लैंड में गाड़ी चलाते समय सोशल मीडिया के लिए वीडियो बनाने के दौरान अपनी सीट बेल्ट हटाने में “निर्णय की संक्षिप्त त्रुटि” के लिए माफी मांगी।
सुनुक के डाउनिंग स्ट्रीट के प्रवक्ता ने कहा कि उन्होंने केवल थोड़ी देर के लिए अपनी सीट बेल्ट हटाई थी और स्वीकार करते हैं कि उन्होंने गलती की है।
ब्रिटेन में कार में सीट बेल्ट न लगाने पर 100 पाउंड का “ऑन-द-स्पॉट” जुर्माना दिया जा सकता है, अगर मामला अदालत में जाता है तो यह बढ़कर 500 पाउंड हो जाता है। (भाषा)
सियोल, 20 जनवरी। दक्षिण कोरिया की राजधानी के निकट एक गांव में शुक्रवार सुबह अस्थाई मकानों में आग लग गई जिससे कम से कम 60 मकान पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और करीब 500 स्थानीय लोगों को वहां से निकाला गया।
अधिकारियों ने बताया कि दमकलकर्मी सियोल के गुरयोंग गांव में लगी आग पर काबू पाने की कोशिश रहे हैं। किसी के हताहत होने की तत्काल कोई खबर नहीं है।
सियोल के गंगनम जिले के दमकल विभाग के अधिकारी शिन योंग-हो ने बताया कि बचावकर्मी आग से प्रभावित क्षेत्रों में लोगों की तलाश कर रहे हैं, हालांकि माना जा रहा है कि सभी लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है।
आग सुबह करीब साढ़े छह बजे लगी थी। आग पर काबू पाने के लिए और लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए 800 से अधिक दमकल कर्मियों, पुलिस अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों को तैनात किया गया।
घटनास्थल की तस्वीरों में दमकलकर्मी घने सफेद धुएं से ढके गांव में आग की लपटों को बुझाने की कोशिश करते और हेलीकॉप्टर ऊपर से पानी का छिड़काव करते दिख रहे हैं।
शिन योंग-हो ने बताया कि ऐसा अनुमान है कि गांव में ‘प्लास्टिक शीट’ और लकड़ी (प्लाईवुड) से बने एक घर में आग लग गई थी, जो बाद में बाकी मकानों में फैल गई।
उन्होंने बताया कि आग लगने की उचित वजह का पता लगाया जा रहा है।
गंगनम जिला कार्यालय के अधिकारी किम अह-रेम ने बताया कि करीब 500 लोगों को नजदीक स्थित जिम और एक स्कूल में ठहराया गया है। अधिकारियों की योजना उन्हें बाद में होटलों में ठहराने की है।
दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक योल के प्रवक्ता किम उन-हे ने बताया कि राष्ट्रपति ने अधिकारियों से घटना से जानमाल के नुकसान को कम से कम करने के लिए सभी उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल करने को कहा है। (एपी)
भारत के हैदराबाद शहर में जन्मी अरुणा मिलर को अमेरिकी राज्य मैरीलैंड की लेफ्टिनेन्ट गवर्नर चुना गया है. वो इस पद पर चुने जाने वाली पहली भारतीय-अमरीकी राजनेता बन गई हैं.
बुधवार को अरुणा ने राज्य के दसवें लेफ्टिनेन्ट गवर्नर के रूप में शपथ ली. इस बारे में उन्होंने ट्वीट कर कहा "हमने इतिहास रच दिया है. लेकिन ताकत इतिहास के बनने में नहीं है बल्कि ताकत लोगों के हाथों में है. ये बस एक सफर की शुरुआत है."
58 साल की मिलर का परिवार सालों पहले अमेरिका में बस गया था. उनके पिता 1960 में एक मेकैनिकल इंजीनियर के तौर पर अमेरिका पहुंचे थे. बाद में वो अपने पूरे परिवार को भी साथ लेकर गए. उस वक्त अरुणा सात साल की थीं.
अरुणा ने मिसोरी यूनिवर्सिटी ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से सिविल इंजीनियरिंग में डिग्री हासिल की जिसके बाद उन्होंने मॉन्टेगोमेरी काउंटी में यातायात विभाग में 25 साल काम किया. (bbc.com/hindi)
नयी दिल्ली, 19 जनवरी। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के द्विपक्षीय बतचीत की पेशकश करने के कुछ ही दिन बाद भारत ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसियों जैसे संबंध चाहता है, लेकिन इसके लिए आतंकवाद और हिंसा से मुक्त वातावरण होना चाहिए।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने साप्ताहिक प्रेस वार्ता में यह टिप्पणी उस वक्त की जब उनसे पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ द्वारा पिछले सप्ताह कश्मीर सहित विभिन्न ज्वलंत मुद्दों के समाधान के लिए दोनों देशों के बीच बातचीत की पेशकश के बारे में पूछा गया था।
बागची ने कहा, ‘‘हमने यह (पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की) टिप्पणी देखी है, लेकिन इसके बाद वहां के पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) ने कुछ और कहा। इसके कुछ दिनों पहले वहां के कुछ नेताओं ने भी टिप्पणी की थी।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम पाकिस्तान के साथ सामान्य पड़ोसियों जैसे संबंध चाहते हैं, लेकिन इसके लिए उपयुक्त माहौल होना चाहिए, जो आतंकवाद, शत्रुता और हिंसा से मुक्त हो।’’ पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सोमवार को दुबई स्थित अल अरबिया समाचार चैनल के साथ एक साक्षात्कार के दौरान कश्मीर सहित विभिन्न 'ज्वलंत' मुद्दों के समाधान के लिए अपने भारतीय समकक्ष नरेन्द्र मोदी के साथ 'गंभीर' बातचीत की पेशकश की थी।
शरीफ ने कहा था, ‘‘भारतीय नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मेरा संदेश है कि आइए, हम बातचीत की मेज पर बैठें और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों के हल के लिए गंभीरता से बातचीत करें।’’
उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान और भारत पड़ोसी देश हैं और उन्हें ‘‘एक दूसरे के साथ ही रहना है।’’
हालांकि, इसके बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा था कि कश्मीर पर 2019 में उठाये गए कदम को वापस लिए बिना भारत के साथ बातचीत संभव नहीं है।
गौरतलब है कि भारत लगातार कहता रहा है कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते और पाकिस्तान को बातचीत की बहाली के लिए अनुकूल माहौल मुहैया कराना चाहिए।
भारत द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म करने और पांच अगस्त, 2019 को राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद दोनों देशों के बीच संबंध और खराब हो गए थे। (भाषा)
-शुमाएला जाफ़री
अभी कुछ हफ़्ते पहले की ही बात है, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच तीख़ी ज़ुबानी जंग हुई थी.
पाकिस्तान ने भारत के सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने के प्रस्ताव में अड़ंगा लगा दिया था. लेकिन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने अमन का हाथ बढ़ाया और प्रधानमंत्री मोदी को 'गंभीर और ईमानदार' बातचीत करने का न्यौता दे डाला.
हालांकि, शहबाज़ शरीफ़ के बयान के कुछ घंटों के भीतर ही पाकिस्तान इससे पलट भी गया.
शहबाज़ शरीफ़ के दफ़्तर की तरफ़ की तरफ़ से सफ़ाई देते हुए कहा गया कि भारत से बातचीत तभी हो सकती है, जब भारत कश्मीर से धारा 370 हटाने के अपने 'अवैध फ़ैसले' को पलटे और वहां दोबारा पुराने प्रावधान लागू करे.
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा क्या था?
संयुक्त अरब अमीरात स्थित न्यूज़ चैनल अल-अरबिया को दिए गए एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा था, "भारत के नेतृत्व और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरा संदेश यही है कि आइए बातचीत की मेज़ पर बैठें और कश्मीर जैसे ज्वलंत मुद्दों को हल करने के लिए गंभीर और ईमानदार बातचीत करें."
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि, "कश्मीर में रोज़ाना मानव अधिकारों का भयंकर उल्लंघन हो रहा है. हिंसा हो रही है और भारत ने अपने संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म करके कश्मीरियों को दी गई नाममात्र की स्वायत्तता भी छीन ली है."
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा कि 'पाकिस्तान ने भारत से तीन जंगें लड़कर अपने सबक़' सीख लिए हैं.
उन्होंने कहा, "अब ये हमारे ऊपर निर्भर है कि हम शांति से रहें और तरक़्क़ी करें या आपस में लड़ते रहें और अपने वक़्त और संसाधन को बर्बाद करते रहें. हमने भारत से तीन जंगें लड़ीं और इससे अवाम के लिए मुश्किलें, ग़रीबी और बेरोज़गारी ही बढ़ी है. हमने अपने सबक़ सीख लिए हैं और हम अब शांति से रहना चाहते हैं. शर्त बस ये है कि हम अपने असल मसले हल करने में क़ामयाब हो जाएं."
अपने इंटरव्यू में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने ये इशारा भी किया कि भारत और पाकिस्तान को साथ लाने में संयुक्त अरब अमीरात का नेतृत्व भी अहम भूमिका अदा कर सकता है.
शहबाज़ शरीफ़ ने कहा, "मैंने मोहम्मद बिन ज़ायद से गुज़ारिश की है कि वो पाकिस्तान के बिरादर हैं, संयुक्त अरब अमीरात हमारे लिए भाई जैसा मुल्क है. उनके भारत से भी अच्छे ताल्लुक़ात हैं. इसलिए वो दोनों देशों को बातचीत की मेज़ पर ला सकते हैं, और मैं क़सम खाकर कहता हूं कि हम भारतीय नेतृत्व के साथ पूरी ईमानदारी और मक़सद से बातचीत करेंगे."
जैसे ही इस इंटरव्यू का प्रसारण हुआ, पाकिस्तान में हंगामा बरपा हो गया.
इमरान ख़ान की पार्टी, तहरीक-ए-इंसाफ ने शहबाज़ शरीफ़ के बयान की आलोचना की और कहा कि शहबाज़ शरीफ़ तो पाकिस्तान के रवायती रुख़ से पलट गए हैं. जबकि पाकिस्तान ने हमेशा यही कहा है कि भारत से बातचीत तभी मुमकिन है, जब भारत अपने नियंत्रण वाले कश्मीर में 5 अगस्त 2019 को उठाए गए क़दम वापस ले.
इस सियासी नुक़सान को कम से कमतर रखने के लिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने तुरंत क़दम उठाया और ट्वीट किया कि प्रधानमंत्री लगातार ये कहते आए हैं कि भारत और पाकिस्तान को अपने आपसी मसले और ख़ास तौर से कश्मीर का मसला बातचीत और शांतिपूर्ण तरीक़ों से हल करना चाहिए.
पीएमओ ने ये सफ़ाई भी दी कि उन्होंने बार-बार ये कहा है कि भारत से बातचीत तभी हो सकती है, जब वो कश्मीर घाटी का विशेष दर्जा दोबारा बहाल करे.
बातचीत के प्रस्ताव से पीछे क्यों हटा पाकिस्तान?
पाकिस्तान में भारतीय मामलों के जानकार डॉक्टर अरशद अली का मानना है कि नेताओं की पहल महत्वपूर्ण ज़रूर है, मगर ये तब तक असरदार नहीं हो सकती, जब तक इस पहल को सभी भागीदारों का समर्थन हासिल न हो.
अरशद कहते हैं, "ये बात तो केवल विदेश मंत्रालय बता सकता है कि जब प्रधानमंत्री ने अल-अरबिया को दिए इंटरव्यू में भारत से बातचीत की पेशकश की, तो क्या उन्होंने विदेश मंत्रालय को भरोसे में ले लिया था."
हालांकि, हक़ीक़त यही है कि 2019 के बाद से भारत से बातचीत को लेकर पाकिस्तान का आधिकारिक रुख़ एक जैसा ही रहा है कि किसी भी तरह के संवाद के लिए भारत को कश्मीर में मोदी सरकार द्वारा उठाए गए क़दम वापस लेने होंगे.
इसके अलावा अरशद अली ये भी मानते हैं कि भारत ने पाकिस्तान को लेकर बेहद सख़्त रुख़ अपनाया हुआ है. उसकी तरफ़ से बातचीत की न तो कोई ख़्वाहिश जताई गई है और न ही गंभीर बातचीत के लिए किसी क़िस्म का लचीला रुख़ अपनाने का इशारा किया गया है.
वो कहते हैं, "इसका मतलब ये है कि शहबाज़ शरीफ़ का ये बयान एक दोस्ताना इशारे से ज़्यादा कुछ भी नहीं था. अगर दोनों देशों के बीच वाक़ई किसी भी तरह की गंभीर बातचीत की सहमति बनती है, तो उसके लिए पहले ज़मीनी स्तर पर तैयारी करनी होगी और नेताओं की मुलाक़ात से पहले उसकी रूपरेखा तय करनी होगी. कोई एक देश इस मामले में इकतरफ़ा फ़ैसला नहीं ले सकता."
विश्लेषक घीना मेहर के मुताबिक़, पाकिस्तान के लिए न तो बातचीत की ये पेशकश करने का सही मौक़ा था और न ही उसका सही मंच था.
घीना मेहर का मानना है, "हो सकता है कि शहबाज़ शरीफ़ ने ये दांव बढ़ती घरेलू आर्थिक चुनौतियों और सियासी संकट से अवाम का ध्यान बंटाने के लिए चला हो. या फिर शहबाज़ शरीफ़ का मक़सद ये भी हो सकता है कि वो अपने मुल्क के कट्टर दुश्मन की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाकर ख़ुद को विश्व मंच पर एक कद्दावर नेता के तौर पर पेश कर सकें."
"ये प्रस्ताव सुनने में तो नेकनीयत लग रहा था. लेकिन, ये भी ज़ाहिर है कि बातचीत की पेशकश के लिए जो अल्फ़ाज़ चुने गए, उनके बारे में गंभीरता से नहीं सोचा गया. यही वजह है कि बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय को ट्वीट करके इस पर सफ़ाई देनी पड़ी."
कूटनीति बनाम घरेलू सियासत
राजनीति वैज्ञानिक डॉक्टर हसन अस्करी रिज़वी भी घीना मेहर की बात से सहमत हैं.
उनका मानना है कि आज जब भारत और पाकिस्तान दोनों ने एक दूसरे को लेकर कड़ा रुख़ अपनाया हुआ है, तो कोई ये उम्मीद कैसे लगा सकता है कि इस तरह की अधकचरी पेशकश का कोई अच्छा नतीजा निकलेगा.
हसन अस्करी रिज़वी का आकलन है कि इस वक़्त भारत में पाकिस्तान के साथ किसी उपयोगी बातचीत को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं है.
वो कहते हैं, "इस वक़्त भारत अपनी कट्टर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी देश की नई छवि गढ़ने में जुटा है. जब राष्ट्रवाद उफ़ान पर हो, तो एक ऐसे देश के साथ बातचीत अलोकप्रिय कदम हो सकती है, जिसे सत्ताधारी पार्टी दुश्मन के तौर पर पेश करती रही है. ऐसा कोई भी कदम प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के लिए सियासी तौर पर नुक़सानदेह हो सकता है. इसी तरह, पाकिस्तान में भी कूटनीतिक मसलों पर सियासी खींचतान होती आई है."
इस पेशकश पर शहबाज़ शरीफ़ के सबसे बड़े सियासी दुश्मन इमरान ख़ान की पार्टी ने जैसी प्रतिक्रिया दी, उससे डॉक्टर अस्करी का तर्क वाज़िब लगता है.
पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ की वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री शीरीन मज़ारी अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ पर तीखा हमला बोला.
मज़ारी ने लिखा कि, "एक आयातित प्रधानमंत्री के तौर पर जो मसखरा बैठा है, उसे ऐसे मसलों पर अपनी ज़ुबान बंद रखनी चाहिए, जिनकी उसे समझ नहीं है क्योंकि इससे बस पाकिस्तान को नुक़सान ही होता है. वो ये कहते हुए भारत से बातचीत की भीख मांग रहा है कि पाकिस्तान ने 'अपना सबक़ सीख लिया है'. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे शख़्स का ऐसा बयान बेहद वाहियात है."
पाकिस्तान का यू टर्न?
डॉक्टर हसन अस्करी की राय में शहबाज़ शरीफ़ की सरकार इतनी कमज़ोर है कि नीयत नेक होने के बावजूद उसकी सियासी हैसियत ऐसी नहीं है कि वो ऐसी गंभीर पेशकश कर सके.
वो कहते हैं, "हमारे सियासतदान कूटनीति को भी घरेलू राजनीति की तरह देखते हैं; अंतरराष्ट्रीय मामलों पर बोलते वक़्त उन्हें ज़्यादा सावधानी और चतुराई से काम लेना चाहिए. हमे नेताओं को ख़याल रखना चाहिए कि ऐसे बयानों के नतीजे गंभीर होते हैं."
डॉक्टर अस्करी ये मानते हैं कि इस वक़्त जो माहौल पूरे दक्षिणी एशिया का है, उसमें भारत और पाकिस्तान के संबंध सामान्य बनाने की दिशा में कोई ख़ास क़ामयाबी नहीं मिल सकती है. दोनों ही देशों में ये रिश्ते एक तरह से घरेलू सियासत की क़ैद में हैं.
अस्करी का मानना है, "पाकिस्तान को लेकर कट्टर नीति अपनाने से प्रधानमंत्री मोदी को ख़ूब चुनावी फ़ायदा हुआ है, और आज जब वो अगले आम चुनाव की तैयारी कर रहे हैं, तो वो अपनी चुनावी फ़ायदा देने वाली नीति में भला क्यों बदलाव करेंगे?"
विश्लेषकों का ये भी मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ ने भारत से बातचीत की पेशकश करने से पहले मुल्क के अन्य भागीदारों, जैसे कि विपक्षी दलों, सुरक्षा तंत्र और संसद को भरोसे में नहीं लिया था. ये पाकिस्तान की रवायती नीति से यू-टर्न लेने जैसा था. यही वजह है कि पाकिस्तान में शरीफ़ की पेशकश को हाथों-हाथ नहीं लिया गया.
भारत और पाकिस्तान दोनों ही परमाणु शक्ति संपन्न देश हैं. दोनों देशों के संबंध 2019 में उस वक्त से बेहद ख़राब चल रहे हैं, जब भारत ने कश्मीर के पुलवामा में सुरक्षाबलों पर हुए आतंकी हमलों के बाद, पाकिस्तान के भीतर हवाई हमले किए थे.
बाद में मोदी की अगुवाई वाली भारत सरकार ने जब कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म किया और उसकी स्थिति को बदला तो तनाव और बढ़ गया.
देश की आज़ादी और बंटवारे के बाद से भारत और पाकिस्तान ने तीन बड़ी जंगें लड़ी हैं. इसके अलावा दोनों देशों के बीच छोटी-मोटी कई झड़पें भी हुई हैं. इंटरव्यू में शहबाज़ शरीफ़ ने इन्हीं जंगों के हवाले से कहा था कि उनके देश ने अपने सबक़ सीख लिए हैं.
क्या था मक़सद?
कई जानकारों के मुताबिक़, शहबाज़ शरीफ़ ने भारत से बातचीत की पेशकश के लिए जो वक़्त चुना, वो भी बहुत अहम है.
उनका मानना है कि शहबाज़ शरीफ़ हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर गए थे और उन्होंने तभी अल-अरबिया को इंटरव्यू दिया था. हो सकता है कि उन्होंने कुछ ख़ास लोगों को प्रभावित करने के लिए ये पेशकश की हो.
संभावना इस बात की भी है कि जिस तरह दुनियाभर के नेता भारत और पाकिस्तान से आपस में बातचीत करने की गुज़ारिश करते रहे हैं.
वैसे में ये भी हो सकता है कि संयुक्त अरब अमीरात के नेताओं ने भी पाकिस्तान को यही सुझाव दिया हो और शायद शहबाज़ शरीफ़ इसी मशविरे से संतुलन बिठाने की कोशिश कर रहे थे.
हालांकि, वो ये पेशकश करने से पहले ये अंदाज़ा ठीक-ठीक नहीं लगा सके कि इस पर घरेलू मोर्चे से क्या प्रतिक्रिया आएगी. हालांकि, अगर ऐसा हुआ भी है, तो अब तक किसी आधिकारिक स्रोत से इसकी पुष्टि नहीं हुई है.
भारत का जवाब
हाल के बरसों में पाकिस्तान से रिश्तों में जमी बर्फ़ पिघलाने के किसी भी प्रस्ताव पर बेहद ठंडा रवैया अपनाया है. फिर चाहे ये क्रिकेट हो, कला हो या फिर आम जनता के बीच संपर्क. भारत, पाकिस्तान से न्यूनतम संभव संवाद की नीति पर चल रहा है.
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच कूटनीतिक जंग ने दोनों देशों को एकदूसरे से और दूर कर दिया है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने भारत प्रशासित कश्मीर में मानव अधिकारों के हालात पर ध्यान खींचा था. वहीं भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दुनिया को याद दिलाया था कि ओसामा बिन लादेन, पाकिस्तान में ही छुपा हुआ था.
बिलावल भुट्टो ने तो भारत के प्रधानमंत्री को 'गुजरात का क़साई' तक कह डाला था और उनके इस बयान को पाकिस्तान के अवाम और मुख्यधारा के मीडिया ने जिस तरह से हाथों हाथ लिया था, वो देखना वाक़ई दिलचस्प था.
क्या रिश्तों की बर्फ़ पिघलेगी?
घीना मेहर कहती हैं कि घरेलू समर्थक बेहद अहम हैं और बड़े अफ़सोस की बात है कि आज दक्षिण एशिया में कूटनीति, कट्टर राष्ट्रवाद और लोकलुभावन सियासत की शिकार हो गई है. ऐसे माहौल में दोनों देशों के रिश्तों की बर्फ़ पिघलने की उम्मीद लगाना बेमानी है.
भारतीय मामलों के जानकार अरशद अली कहते हैं कि ऐसे माहौल में छोटे छोटे क़दम ज़्यादा उपयोगी हो सकते हैं.
वो कहते हैं कि, "भारत पाकिस्तान के बीच ट्रैक टू के संपर्क अभी भी बने हुए हैं. दोनों देश बड़े गुपचुप तरीक़े से एक दूसरे से सीमित स्तर पर संपर्क रखते हैं. जलवायु परिवर्तन और आम जनता के बीच संपर्क जैसे क्षेत्र हैं, जहां अभी भारत और पाकिस्तान मिलकर काम कर सकते हैं."
अरशद अली कहते हैं कि, "रिश्तों में तल्ख़ी के बाद भी भारत और पाकिस्तान ने ऐतिहासिक रूप से ये साबित किया है कि वो एक दूसरे से रिश्ते रख सकते हैं. दोनों देशों ने 80, 90 और 2000 के दशक में ये काम करके दिखाया भी है और वो अभी भी ऐसा कर सकते हैं. लेकिन, इसके लिए हमें सही समय का इंतज़ार करना ही होगा." (bbc.com/hindi)
बगदाद, 19 जनवरी। इराक में एक फुटबॉल स्टेडियम के बाहर हुई भगदड़ में दो लोगों की मौत हो गयी और दर्जनों घायल हो गये।
इराकी न्यूज एजेंसी की खबर के अनुसार दक्षिणी इराक में स्थित स्टेडियम में लोग टूर्नामेंट का फाइनल मैच देखने के लिये इकट्ठा हुए तब यह भगदड़ मची। यह देश में चार दशक में पहला अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल टूर्नामेंट है।
इराकी न्यूज एजेंसी ने कहा कि बसरा अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम के बाहर हुई इस घटना में करीब 60 लोग घायल हुए जिसमें से कुछ की हालत गंभीर है।
बसरा अस्पताल के एक डाक्टर ने एसोसिएटिड प्रेस से कहा कि भगदड़ में दो लोगों की मौत हो गयी और 38 घायल हैं तथा कुछेक को अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है।
आठ देशों के अरब गल्फ कप का फाइनल मैच गुरूवार को इराक और ओमान के बीच खेला जायेगा।
इराक 1979 के बाद पहली बार टूर्नामेंट की मेजबानी कर रहा है। (एपी)
किंशासा (कांगो), 19 जनवरी मध्य अफ्रीकी देश कांगो में सप्ताहांत में हुए सिलसिलेवार हमलों के बाद 49 नागरिकों के शवों वाली सामूहिक कब्रें मिली हैं। संयुक्त राष्ट्र ने यह जानकारी दी।
इन हमलों के लिए स्थानीय मिलिशिया को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता फरहान हक ने बुधवार को न्यूयॉर्क में पत्रकारों को बताया कि इटुरी प्रांत के दो गांवों में यह कब्रें मिली हैं। इटुरी प्रांत बूनिया शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर है।
फरहान हक के मुताबिक न्याम्बा गांव में एक सामूहिक कब्र में छह बच्चों सहित कुल 42 लोगों के शव मिले हैं जबकि सात अन्य पुरुषों के शव मबोगी नामक एक अन्य गांव में पाए गए थे।
संयुक्त राष्ट्र के उप प्रवक्ता ने न्यूयॉर्क में कहा, ‘‘सप्ताहांत में कोडेको मिलिशिया द्वारा नागरिकों पर किए गए हमलों की रिपोर्ट मिलने के तुरंत बाद शांति सैनिकों ने क्षेत्र में गश्त शुरू कर दी। यह हमले तब हुए हैं जब बड़े पैमाने पर कब्रें मिली हैं। ’’ (एपी)
येरेवान (आर्मीनिया) 19 जनवरी आर्मीनिया के एक सैन्य अड्डे पर बृहस्पतिवार तड़के आग लगने से कम से कम 15 सैनिकों की मौत हो गई।
रक्षा मंत्रालय ने बताया कि पूर्वी आर्मीनिया के गेघारकुनिक प्रांत के अज़त गांव में स्थित एक बैरक में आग लगी।
मंत्रालय के मुताबिक, आग लगने की घटना में तीन सैनिक जख्मी हुए हैं और उनकी हालत गंभीर है। हालांकि मंत्रालय ने आग लगने के कारण के बारे में जानकारी नहीं दी है।
गेघारकुनिक क्षेत्र की सीमा अजरबैजान से लगती है। अजरबैजान और आर्मीनिया का नगोनो-काराबख को लेकर दशकों से विवाद है। नगोनो-काराबख अजरबैजान में है लेकिन इस पर नियंत्रण जातीय आर्मीनियाई बलों का है जिन्हें आर्मीनिया का समर्थन प्राप्त है।
सितंबर 2020 में छह हफ्ते तक चली जंग में अजरबैजान की सेना नगोनो-काराबख में काफी अंदर तक आ गई और उसने आर्मीनिया के बलों को खदेड़ दिया। इसके बाद उस साल नवंबर में आर्मीनिया को रूस की मध्यस्थता वाले शांति समझौते को स्वीकार करना पड़ा। (एपी)