अंतरराष्ट्रीय
-विनीत खरे
- नेट एंडरसन ने 2017 में हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना की थी.
- हिंडनबर्ग ने अब तक कई अमेरिकी कंपनियों को निशाना बनाया है.
- कंपनी का नाम नाज़ी जर्मनी के एक नाकाम स्पेस प्रोजेक्ट पर रखा गया है.
- अदानी वाली रिपोर्ट हिंडनबर्ग की 19वीं रिपोर्ट है.
- हिंडनबर्ग का कहना है कि अदानी समूह ने 88 में से 62 सवालों के जवाब नहीं दिए हैं.
हिंडनबर्ग जैसी शॉर्ट सेलिंग कंपनियाँ अपने रिसर्च से निवेशकों का पैसा डूबने से बचाती हैं जैसा कि उनका दावा है, या फिर वो शेयर बाज़ार को नुक़सान पहुँचाकर अपनी जेब भरती हैं?
ये बहस अमरीका में सालों से चल रही है जहाँ हिंडनबर्ग जैसी कंपनियाँ क़ानूनन काम कर रही हैं. उन्हें पसंद करने वाले भी हैं और उनके दुश्मनों की भी कमी नहीं है.
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट की सनसनीखेज़ हेडलाइन दी थी--'कॉर्पोरेट इतिहास में सबसे बड़ा धोखा', अदानी समूह ने रिपोर्ट को झूठ क़रार दिया.
हिंडनबर्ग के आलोचक कह रहे हैं कि उसकी रिपोर्ट 'तेज़ी से आगे बढ़ते भारत को नीचे खींचने की कोशिश' है.
आम तौर पर शेयर के दाम ऊपर जाने पर पैसा बनता है, लेकिन शॉर्ट सेलिंग में दाम गिरने पर पैसा कमाया जाता है. इसमें किसी ख़ास शेयर में गिरावट के अनुमान पर दांव लगाया जाता है.
दरअसल, हिंडनबर्ग जैसे ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स कुछ ख़ास कंपनियां के शेयर की क़ीमत में गिरावट पर दांव लगाते हैं, फिर उनके बारे में रिपोर्ट छापकर निशाना साधते हैं.
वे इस काम के लिए ऐसी कंपनियों को चुनते हैं जिनके बारे में उन्हें लगता है कि उनके शेयरों की क़ीमत वास्तविक मूल्य से बहुत ज़्यादा है, या फिर उनकी नज़र में वो कंपनी अपने शेयर-धारकों को धोखा दे रही है.
नेट एंडरसन ने साल 2017 में हिंडनबर्ग रिसर्च की स्थापना की थी.
अमेरिका की एक शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कॉर्पियन कैपिटल के चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन के मुताबिक़, हिंडनबर्ग प्रतिष्ठित संस्था है और उनकी रिसर्च को भरोसेमंद माना जाता है. उसकी वजह से अमेरिका में कई मौक़ों पर भ्रष्ट कंपनियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हुई है.
न्यूयॉर्क से शॉर्ट सेलिंग पर न्यूज़ लेटर "द बीयर केव" निकालने वाले एडविन डॉर्सी बताते हैं हिंडनबर्ग रिसर्च जैसी ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म के रिपोर्ट जारी करने के दो प्रमुख कारण होते हैं. पहला, ग़लत काम की कलई खोलकर मुनाफ़ा कमाना और दूसरा, न्याय और उत्तरदायित्व सुनिश्चित करना.
एडविन डॉर्सी कहते हैं, "ये देखकर बेहद निराशा होती है कि चंद लोग शेयरधारकों की क़ीमत पर अमीर हो रहे हैं, और शायद धोखेबाज़ी कर रहे हैं. ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग की रिपोर्टें एक तरह की खोजी पत्रकारिता है, लेकिन मुनाफ़े की प्रेरणा थोड़ी अलग है. मैं नेट और हिंडनबर्ग को काफ़ी सराहनीय मानता हूँ."
ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर रिपोर्ट के साथ-साथ सोशल मीडिया का भी जमकर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन कई आम निवेशक ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म्स को पसंद नहीं करते क्योंकि दाम नीचे गिरने से उनके निवेश पर बुरा असर पड़ता है.
आश्चर्च की बात नहीं कि कई कंपनियां भी उन्हें पसंद नहीं करतीं. साल 2021 में एलन मस्क ने शॉर्ट सेलिंग को एक घोटाला बताया था.
शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कार्पियन कैपिटल के चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन अदानी मामले को भारत का 'एनरॉन मोमेंट' बताते हैं.
वो कहते हैं, "ये रोचक बात है कि अडानी और एनरॉन दोनो इन्फ़्रास्ट्रक्चर कंपनियां हैं जिनके मज़बूत राजनीतिक संबंध रहे हैं."
साल 2001 में एनरॉन भारी आर्थिक नुक़सान छिपाने के बाद दीवालिया हो गई थी, उस वक्त अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के एनरॉन प्रमुख केन ले और कंपनी अधिकारियों से नज़दीकी संबंध थे.
अदानी की आर्थिक हालत एनरॉन जैसी तो नहीं है, लेकिन उन पर केन ले की तरह सरकार से अतिरिक्त निकटता के आरोप लग रहे हैं.
कैलॉन कहते हैं, "मज़बूत और साफ़-सुथरी कंपनियों को शॉर्ट सेलर रिपोर्टों से कोई फ़र्क नहीं पड़ता. अगर कोई व्यक्ति गूगल, फ़ेसबुक या माइक्रोसॉफ़्ट के बारे में लिखेगा तो लोग उस पर हँसेंगे और स्टॉक पर कोई असर नहीं पड़ेगा."
हिंडनबर्ग प्रमुख नेट ऐंडरसन के बारे में वो कहते हैं, "उनकी ज़बर्दस्त साख है. उनके शोध की विश्वसनीयता है. उसका बहुत असर हुआ है."
अमेरिका में कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स ने शॉर्ट सेलिंग की आलोचना करने वाला एक चर्चित पेपर 'शॉर्ट ऐंड डिस्टॉर्ट' लिखा.
जोशुआ कहते हैं, "जिस वजह से वॉल स्ट्रीट में कई लोग नेट एंडरसन की इज़्ज़त करते हैं वो ये है कि वो अपने बारे में खुलकर बोलते हैं. इसका ये मतलब नहीं कि खुलकर बोलने वाला सच ही बोल रहा हो. कुछ लोगों ने उन पर सवाल उठाए हैं, लेकिन उन्होंने हाल के सालों में अमेरिका की सबसे बड़ी धोखेबाज़ियों को उजागर किया है."
अमेरिका में जस्टिस डिपार्टमेंट को सलाह देने वाले जोशुआ मिट्स कहते हैं, "हम कहते हैं कि कंपनियों को पारदर्शी होना चाहिए, सीधी बात करनी चाहिए कि वो निवेशकों के पैसे से क्या कर रहे हैं. उसी तरह हमें ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स से भी कहना चाहिए कि वो पारदर्शी रहें और सीधी बात करें."
हिंडनबर्ग की सबसे नामी रिपोर्ट
हिंडनबर्ग पर इस रिपोर्ट की टाइमिंग, या फिर उन्हें कितना मुनाफ़ा हुआ, इस पर कई सवाल उठे हैं. हमने नेट ऐंडरसन से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन हमें कोई जवाब नहीं मिला.
हिंडनबर्ग की वेबसाइट के मुताबिक़ अभी तक अदानी वाली रिपोर्ट को मिलाकर 19 रिपोर्टें लिखी हैं, और सबसे नामी रिपोर्ट सितंबर 2020 में जारी हुई थी. इसमें निकोला नाम की अमेरिकी इलेक्ट्रिक ऑटो कंपनी का भंडाफोड़ किया गया था.
एक वक्त 30 अरब डॉलर की मार्केट कैपिटल वाली कंपनी निकोला ने ज़ीरो कॉर्बन उत्सर्जन के भविष्य का सपना दिखाया और जनवरी 2018 में एक हाइवे पर बैटरी से चलने वाले 'निकोला वन सेमी-ट्रक' के तेज़ रफ़्तार से चलने का वीडियो जारी किया.
हिंडनबर्ग ने जाँच के बाद अपनी रिपोर्ट में दावा किया कि दरअसल सेमी-ट्रक को पहाड़ के ऊपरी हिस्से पर घसीटकर ले जाया गया और फिर ढलान पर फ़िल्म किया गया.
साल 2015 में स्थापित निकोला ने आरोपों से इनकार किया, लेकिन बाद में कंपनी प्रमुख ट्रेवर मिल्टन को इस्तीफ़ा देना पड़ा. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट छपते ही कंपनी के शेयर करीब 24 प्रतिशत गिरे. निकोला पर 12 करोड़ डॉलर से अधिक का जुर्माना लगा.
साल 2021 में मिल्टन पर धोखेबाज़ी के आरोप साबित हुए.
अदानी की बात करें तो हिंडनबर्ग के आरोपों पर कंपनी ने सभी आरोपों से इनकार किया, जिसके जबाव में हिंडनबर्ग ने कहा कि अदानी ने उसके 88 में से 62 सवालों का जवाब नहीं दिया है.
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ अमेरिका का जस्टिस डिपार्टमेंट हिंडनबर्ग सहित क़रीब 30 शॉर्ट सेलिंग कंपनियों या उनके साथियों के बारे में व्यापार के संभावित दुरुपयोग को लेकर जानकारी इकट्ठा कर रहा है, हालांकि किसी पर कोई आरोप नहीं लगे हैं.
हिंडनबर्ग ने अदानी को क्यों चुना?
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अस्वत दामोदरन ने एक ब्लॉग में लिखा कि जब ये रिपोर्ट आई तो उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि हिंडनबर्ग ने पूर्व में आम तौर पर ऐसी कंपनियों को निशाना बनाया है जो बहुत छोटी हों या फिर जिनके बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं हो, लेकिन अडानी एक बड़ी भारतीय कंपनी है जिसके बारे में इतनी बात होती है.
हिंडनबर्ग की पुरानी रिपोर्टें देखें तो वो अमेरिकी और चीनी कंपनियों के बारे में हैं तो फिर उन्होंने अपनी 19वीं रिपोर्ट के लिए अदानी को क्यों चुना?
न्यूयॉर्क में शॉर्ट सेलिंग पर न्यूज़ लेटर "द बीयर केव" निकालने वाले एडविन डॉर्सी के मुताबिक़, उन्हें नहीं पता कि हिंडनबर्ग ने अदानी की ओर देखना क्यों शुरू किया लेकिन "ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स को जब कोई टिप मिलती है, कहीं से गुमनाम ईमेल आती है तो वो उस कंपनी की ओर देखना शुरू कर देते हैं."
वो कहते हैं, "कई बार कंपनी का स्टॉक जब बहुत तेज़ी से ऊपर जाता है तो ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर का ध्यान उसकी ओर जाता है."
अप्रैल 2022 की एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़, गुज़रे दो सालों में अदानी के शेयर पैंडेमिक के बावजूद 18-20 गुना बढ़ गए थे.
शॉर्ट सेलिंग कंपनी स्कॉर्पियन कैपिटल चीफ़ इन्वेस्टमेंट ऑफ़िसर कीर कैलॉन कहते हैं, "अदानी स्पष्ट तौर पर निशाने पर थे. भारत के भीतर भी सालों से अदानी कंपनियों पर फ़्रॉड के आरोप लगते रहे हैं. कुछ साल पहले हमने शॉर्ट सेलर के तौर पर उस पर स्वतंत्र रूप से रिसर्च किया, फिर हमने ये सोचकर छोड़ दिया कि इसमें बताने लायक कोई बात नहीं, सब जगज़ाहिर है."
अदानी समूह हमेशा फ़्रॉड के हर आरोप से इनकार करता रहा है.
कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स के मुताबिक़, अमेरिका में ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स को लेकर नियामक संस्थाओं की जांच बढ़ी है, इसलिए उन्होंने दूसरे बाज़ारों का रुख़ किया है जहाँ बाज़ार शायद इतने विकसित न हों.
वो कहते हैं, "अगर बाज़ार का रेग्युलेटर अमेरिका से पांच या दस साल पीछे हो तो, या फिर स्थानीय रेग्युलेटर बहुत स्मार्ट नहीं है तो शॉर्ट सेलर्स के इस तरह के कारनामे बहुत रोचक हो जाते हैं. ये सच है कि पिछले एक दशक में ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स ज़्यादा-से-ज़्यादा ग्लोबल हो रहे हैं."
न्यूयॉर्क में शॉर्ट सेलिंग पर न्यूज़ लेटर "द बीयर केव" निकालने वाले एडविन डॉर्सी के मुताबिक़, अमेरिका की सबसे पहली बड़ी कंपनी सिट्रॉन रिसर्च थी जिसकी स्थापना एंड्र्यू लेफ़्ट ने की थी.
वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक आंकड़े के मुताबिक़ साल 2001 से 2014 के बीच में सिट्रॉन ने 111 शॉर्ट सेल रिपोर्टें लिखीं, और हर सिट्रॉन रिपोर्ट छपने के बाद टारगेट शेयर के दाम में औसतन 42 प्रतिशत की गिरावट आई.
हालांकि एंड्र्यू ने साल 2013 में टेस्ला के बारे में कहा था कि कंपनी के शेयर के दाम कुछ ज़्यादा ही हैं और इलेक्ट्रिक कार एक सनक-सी है, लेकिन उसके बाद टेस्ला के शेयर के दाम और कारों की बिक्री में बढ़ोतरी दर्ज हुई.
इस कारोबार में एक और बड़ा नाम कार्सन ब्लॉक का है जिनके बारे में अमेरिकी बाज़ारों को नियंत्रित करने वाली संस्था एसईसी के एक अधिकारी ने कहा था कि कॉर्सन ब्लॉक ने धोखेबाज़ी की घटनाओं पर एजेंसी से ज़्यादा रोशनी डाली है, और निवेशकों के पैसे बचाए हैं.
ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स क्लब के नए सितारे नेट एंडरसन ने कुछ वक्त इसराइल में भी गुज़ारा है और उन्हें अमेरिकी मीडिया में 'जायंट किलर' भी बुलाया गया है.
एडविन डॉर्सी के मुताबिक़, अमेरिका में ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग 20-25 साल पुरानी है और वहां ऐसी क़रीब 20 बड़ी कंपनियां हैं.
ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग पर एक रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2022 में 113 नए और बड़े शॉर्ट कैंपेन आए, और हिंडनबर्ग सबसे सफल ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलिंग फ़र्म्स में से एक थी.
लेकिन मज़ेदार बात ये है कि अमेरिकी मीडिया कह रहा है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों को ज़मीन पर लाने वाले ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स पर भी अमेरिकी क़ानून की नज़र है.
साल 2018 में अमेरिकी बाज़ारों को नियंत्रित करने वाली संस्था एसईसी ने एक हेज फंड कंपनी के ख़िलाफ़ कार्रवाई की थी, जिसे बाद में हर्जाना देना पड़ा था.
अमेरिका में कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स कहते हैं, "अगर कुछ पार्टियों की जांच हो रही है, इसका मतलब ये नहीं कि पूरी इंडस्ट्री या फिर एक इंडस्ट्री के हर भागीदार की जांच हो रही है."
वे कहते हैं, "अगर भारतीय सिक्योरिटीज़ रेग्युलेटर्स को इसे लेकर चिंता है तो वो देख सकते हैं कि अमेरिका क्या कर रहा है, और यहां कई सरकारी कार्रवाइयां हुई हैं."
हिंडनबर्ग के ख़िलाफ़ चुनौती का भविष्य
फ़ाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ गौतम अदानी ने हिंडनबर्ग के ख़िलाफ़ क़ानूनी लड़ाई के लिए एक बड़ी और महंगी अमेरिकी लॉ फ़र्म को चुना है.
इससे पहले एक वक्तव्य में अदानी ने क़ानूनी रास्ता अपनाने की बात कही थी, जबकि हिंडनबर्ग ने कहा था कि अम़ेरिका में क़ानूनी प्रक्रिया के दौरान वो ढेर सारे दस्तावेज़ों की मांग करेंगे.
जानकारों के मुताबिक़, जिन कंपनियों को शॉर्ट सेलर्स निशाना बनाते हैं वो कई बार मानहानि का दावा करते हुए अदालत का रुख़ करती हैं, लेकिन वहां केस को साबित करना चुनौतीपूर्ण होता है.
वजह है अमेरिका में आज़ादी से बोलने के अधिकार को मिली क़ानूनी सुरक्षा.
अमेरिका में कोलंबिया लॉ स्कूल के प्रोफ़ेसर जोशुआ मिट्स के मुताबिक़, "अमेरिकी अदालतें बोलने की आज़ादी का बहुत ध्यान रखती हैं, और बहुत सारे ऐक्टिविस्ट शॉर्ट सेलर्स ये कहकर केस जीत गए कि उनका बोलने का अधिकार सुरक्षित रहना चाहिए. चाहे वो अपना मत व्यक्त कर रहे हों, या फिर रिपोर्ट में क्या लिखा हो, बोलने की आज़ादी शॉर्ट सेलर्स को एक कवच प्रदान करती है, चाहे कंपनी को क्यों न लगे कि रिपोर्ट ग़लत है."
हालांकि जोशुआ मिट्स ये भी कहते हैं कि "अगर शॉर्ट सेलर अपने शॉर्ट कैंपेन से जुड़े व्यवहार और आचरण को लेकर पारदर्शी नहीं है, तो ये उनके लिए क़ानूनी बोझ ज़रूर बन सकता है."
भारत में शॉर्ट सेलिंग की स्थिति
अशोका यूनिवर्सिटी में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर गुरबचन सिंह के अनुसार, भारत में शॉर्ट सेलिंग होती है लेकिन बड़े स्तर पर नहीं, शॉर्ट सेलिंग पर सेबी के शॉर्ट पेपर में इसमें संभावित धोखेबाज़ी की बात की गई है, और बताया गया है कि किन वजहों से इस पर भारत में 1998 और 2011 में प्रतिबंध लगाया गया था.
जानकार बताते हैं कि जिस तरह की रिपोर्टें हिंडनबर्ग ने लिखी हैं, वैसी रिपोर्ट भारत में लिखना चुनौतीपूर्ण है.
सेबी के साथ रजिस्टर्ड रिसर्च विश्लेषक नितिन मंगल कहते हैं, "हमारे लिए आलोचना सहना बहुत मुश्किल होता है. हम आलोचना को सकारात्मक रूप से नहीं लेते. लोग मेरे रिसर्च की बहुत आलोचना करते हैं, लेकिन मुझे फ़र्क नहीं पड़ता."
मंगल के मुताबिक़, भारत में क़ानूनी कारणों से ऐसी रिसर्च कंपनियां नहीं हैं.
वे कहते हैं, "भारत में कंपनियां आपके ख़िलाफ़ कानूनी कार्रवाई कर सकती हैं. आपके ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज कर सकती हैं. अमेरिका में प्रक्रिया बहुत अलग है." (bbc.com/hindi)
-रजनीश कुमार
तुर्की और सीरिया में तबाही मचाने वाले भूकंप के बाद भारत मदद भेजने के लिए जिस तरह से मुखर होकर सामने आया, उसे मोदी सरकार की मध्य-पूर्व के प्रति प्रतिबद्धता से जोड़ा जा रहा है.
इससे पहले भारत ने 26 जनवरी यानी गणतंत्र दिवस के मौक़े पर मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फ़तेह अल-सीसी को मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया था.
मई 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से इसराइल से भी संबंध गहरे हुए हैं और खाड़ी के देशों से संबंधों में गर्मजोशी की बात कही जाती है. नरेंद्र मोदी पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने 2017 में इसराइल का दौरा किया था.
ईरान के साथ भारत का संपर्क पुराना है और अब तुर्की के साथ भी दोस्ती मज़बूत करने की कोशिश शुरू हो गई है.
जब इन इलाक़ों में अमेरिका की मौजूदगी कमज़ोर पड़ने की बात की जा रही है, तब भारत अपना पैर जमाने की कोशिश कर रहा है.
अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रहे हुसैन हक़्क़ानी ने 'द डिप्लोमैट' में लिखा है कि भारत आज़ादी के बाद से मध्य-पूर्व में सक्रिय रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इन इलाक़ों में भारत की संलिप्तता की गुणवत्ता बदली है.
मोदी की प्राथमिकता मध्य-पूर्व!
हुसैन हक़्क़ानी का मानना है कि बहुध्रुवीय दुनिया में भारत एक वैश्विक शक्ति बनने की तमन्ना के साथ आगे बढ़ रहा है. हक़्क़ानी ने लिखा है, ''तुर्की और सीरिया में भारत की ओर से बड़े पैमाने पर राहत-सामग्री का आना उसकी महत्वाकांक्षा को दिखाता है. भारत अब आपदा की स्थिति में मदद अपने पड़ोसियों से आगे भी पहुँचाने के लिए तत्पर दिख रहा है.''
हुसैन हक़्क़ानी ने लिखा है, ''तुर्की में भारत ने जो हालिया मदद भेजी है, उनमें एक पूरा फ़ील्ड हॉस्पिटल और मेडिकल टीम के साथ मशीन, दवाई के अलावा हॉस्पिटल बेड भी हैं. यह एक रणनीतिक मदद है न कि केवल मानवीय मदद. भारत के इस रुख़ से पूरे मध्य-पूर्व में एक मज़बूत छवि बनेगी. पश्चिम एशिया को लेकर भारत की गंभीरता साफ़ दिख रही है. वो चाहे क्वॉड हो या आईटूयूटू. I2U2 गुट में इसराइल, इंडिया, अमेरिका और यूएई हैं.''
कई विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका का ज़्यादा फ़ोकस चीन और यूक्रेन संकट पर है. ऐसे में मध्य-पूर्व में उसकी मौजूदगी कमज़ोर पड़ रही है.
कहा जा रहा है कि भारत को डर है कि अमेरिका की जगह मध्य-पूर्व में चीन ले सकता है और अगर ऐसा हुआ तो भारत के हितों के ख़िलाफ़ होगा.
मध्य-पूर्व में भारत के हित
भारत के लिए मध्य-पूर्व निवेश, ऊर्जा और रेमिटेंस का अहम स्रोत है. यह इलाक़ा भारत के सुरक्षा दृष्टिकोण से भी अहम माना जाता है क्योंकि इस्लामिक अतिवाद को लेकर चिंताएं अभी ख़त्म नहीं हुई हैं. भारत चाहता है कि मध्य-पूर्व में अमेरिका कमज़ोर पड़े तो वह इसके लिए पहले से तैयार रहे.
खाड़ी के देशों में भारत के क़रीब 89 लाख लोग रहते हैं. इनमें से 34 लाख भारतीय यूएई में रहते हैं और 26 लाख सऊदी अरब में. पिछले साल विदेशों में रहने वाले भारतीयों ने 100 अरब डॉलर कमाकर भारत भेजे थे, इनमें से आधी से ज़्यादा कमाई खाड़ी के देशों से थी.
पिछले एक दशक में भारत का मध्य-पूर्व से कारोबार भी तेज़ी से बढ़ा है. यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और सऊदी अरब चौथे नंबर पर है.
2022 में भारत और यूएई के बीच कॉम्प्रीहेंसिव इकनॉमिक पार्टनर्शिप एग्रीमेंट (सीईपीए) हुआ था. इसके बाद से दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में 38 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. भारत और यूएई के बीच द्विपक्षीय व्यापार 88 अरब डॉलर तक पहुँच गया है.
सऊदी अरब से भारत अपनी ज़रूरत का 18 फ़ीसदी कच्चा तेल आयात करता है. दूसरी तरफ़ सऊदी अरब का भारत के इन्फ़ास्ट्रक्चर में निवेश लगातार बढ़ रहा है.
भारत अपनी ज़रूरत का 80 फ़ीसदी तेल और गैस आयात करता है और 60 फ़ीसदी आयात खाड़ी के देशों से है. यूएई भारत के रणनीतिक तेल भंडार में भी मदद कर रहा है. भारत का मिस्र के साथ द्विपक्षीय व्यापार 7.26 अरब डॉलर का है और मिस्र में 50 भारतीय कंपनियों ने 3.15 अरब डॉलर का निवेश किया है.
भारत का इसराइल के साथ भी सुरक्षा संबंध काफ़ी मज़बूत हुआ है. भारत में रक्षा उपकरणों की आपूर्ति में इसराइल तीसरा सबसे बड़ा देश है.
इसराइल का 43 प्रतिशत हथियार निर्यात भारत में है. इसराइल के साथ भारत ईरान की भी उपेक्षा नहीं करता है जबकि ईरान और इसराइल दोनों से एक साथ संबंध बनाए रखना आसान नहीं है. यह जगज़ाहिर है कि ईरान और इसराइल के बीच ऐतिहासिक दुश्मनी है जो हर दिन बढ़ ही रही है.
भारत और तुर्की दोस्त क्यों नहीं बनते?
तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ रहा है. कहा जाता है कि इसकी शुरुआत 1950 के शुरुआती दशक या फिर शीत युद्ध के दौर में होती है.
इसी दौर में भारत-पाकिस्तान के बीच दो जंग भी हुई थी. तुर्की और भारत के बीच राजनयिक संबंध 1948 में स्थापित हुआ था. तब भारत के आज़ाद हुए मुश्किल से एक साल ही हुआ था.
इन दशकों में भारत और तुर्की के बीच क़रीबी साझेदारी विकसित नहीं हो पाई. कहा जाता है कि तुर्की और भारत के बीच तनाव दो वजहों से रहा है. पहला कश्मीर के मामले में तुर्की का पाकिस्तान परस्त रुख़ और दूसरा शीत युद्ध में तुर्की अमेरिकी खेमे में था जबकि भारत गुटनिरपेक्षता की वकालत कर रहा था.
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. तुर्की इसका सदस्य था. नेटो को सोवियत यूनियन विरोधी संगठन के रूप में देखा जाता था.
इसके अलावा 1955 में तुर्की, इराक़, ब्रिटेन, पाकिस्तान और ईरान ने मिलकर 'बग़दाद पैक्ट' किया था. बग़दाद पैक्ट को तब डिफ़ेंसिव ऑर्गेनाइज़ेशन कहा गया था.
इसमें पाँचों देशों ने अपनी साझी राजनीति, सेना और आर्थिक मक़सद हासिल करने की बात कही थी. यह नेटो की तर्ज़ पर ही था.
1959 में बग़दाद पैक्ट से इराक़ बाहर हो गया था. इराक़ के बाहर होने के बाद इसका नाम सेंट्रल ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन कर दिया गया था. बग़दाद पैक्ट को भी सोवियत यूनियन के ख़िलाफ़ देखा गया. दूसरी तरफ़ भारत गुटनिरपेक्षता की बात करते हुए भी सोवियत यूनियन के क़रीब लगता था.
जब शीत युद्ध कमज़ोर पड़ने लगा था तब तुर्की के 'पश्चिम परस्त' और 'उदार' राष्ट्रपति माने जाने वाले तुरगुत ओज़ाल ने भारत से संबंध पटरी पर लाने की कोशिश की थी.
1986 में ओज़ाल ने भारत का दौरा किया था. इस दौरे में ओज़ाल ने दोनों देशों के दूतावासों में सेना के प्रतिनिधियों के ऑफिस बनाने का प्रस्ताव रखा था. इसके बाद 1988 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तुर्की का दौरा किया था. राजीव गांधी के दौरे के बाद दोनों देशों के रिश्ते कई मोर्चे पर सुधरे थे.
लेकिन इसके बावजूद कश्मीर के मामले में तुर्की का रुख़ पाकिस्तान के पक्ष में ही रहा इसलिए रिश्ते में नज़दीकी नहीं आई.
1991 में इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन यानी ओआईसी के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी और इस बैठक में तुर्की के विदेश मंत्री ने कश्मीर को लेकर भारत की आलोचना की थी.
2003 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तुर्की का दौरा किया था. इस दौरे में दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों के बीच संपर्क बनाए रखने को लेकर सहमति बनी थी.
द मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट के अनुसार, ''बुलांत एजेवेत एकमात्र टर्किश प्रधानमंत्री थे जिन्हें 'भारत-समर्थक' प्रधानमंत्री के रूप में देखा जा सकता है क्योंकि उन्होंने पाकिस्तान में जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के तख़्तापलट को मंज़ूरी नहीं दी थी. एजेवेत ने अप्रैल 2000 में भारत का दौरा किया था. पिछले 14 सालों में किसी टर्किश राष्ट्रपति का यह पहला दौरा था. एजेवेत ने पाकिस्तान के दौरे का निमंत्रण अस्वीकार कर दिया था.''
''सबसे अहम यह है कि एजेवेत ने कश्मीर पर तुर्की के पारंपरिक रुख़ को संशोधित किया था. तुर्की का कश्मीर पर रुख़ रहा है कि इसका समाधान संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में होना चाहिए. लेकिन एजेवेत ने इसका द्विपक्षीय समाधान तलाशने की वकालत की थी. तुर्की के इस रुख़ के कारण भारत से संबंधों को बल मिला था.''
द मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट का कहना है, ''तुर्की में जब जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी (एकेपी) सत्ता में आई तो दोनों देशों में संबंध गहराने की संभावनाएं और बनीं. एकेपी ईयू के साथ चलने की बात करती थी और ट्रेड रिलेशन को मध्य-पूर्व से बाहर ले जाना चाहती थी. भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था थी और पाकिस्तान के साथ ट्रेड के मामले में बहुत संभावना नहीं थी. एकेपी ने भारत से संबंध बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान से रिश्ते ख़राब होने की शर्त पर नहीं.''
2008 में रेचेप तैय्यप अर्दोआन भारत के दौरे पर आए. इस दौरे में उन्होंने भारत के साथ फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट की बात रखी. अगले साल तुर्की का पहला नैनो सैटेलाइट भारत ने पीएसएलवी सी-14 से अंतरिक्ष में भेजा.
इसके बाद 2010 में तुर्की के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्लाह गुल ने भारत का दौरा किया और अंतरिक्ष रिसर्च में सहयोग बढ़ाने के लिए बात की थी.
दोनों देशों के बीच कारोबार में भी तेज़ी आने लगी. 2000 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 50.5 करोड़ डॉलर का था जो 2018 में 8.7 अरब डॉलर हो गया. पूर्वी एशिया में चीन के बाद भारत तुर्की का दूसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर बन गया. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान का तुर्की से व्यापार एक अरब डॉलर भी नहीं पहुँच पाया है.''
2017 में अर्दोआन राष्ट्रपति के रूप में भारत आए. अर्दोआन के साथ 100 सदस्यों वाला एक बिज़नेस प्रतिनिधिमंडल था. लेकिन नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद तुर्की का एक भी दौरा नहीं किया है.
मोदी के तुर्की नहीं जाने के पीछे भी पाकिस्तान एक अहम कारक माना जाता है. कश्मीर पर अर्दोआन का रुख़ भी पाकिस्तान की लाइन पर ही रहा है. 2010 में अफ़ग़ानिस्तान पर तुर्की के नेतृत्व वाली वार्ता से भारत को हटा दिया गया था.
इसके अलावा तुर्की ने न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप यानी एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध किया था. कहा जाता है कि तुर्की का यह रुख़ पाकिस्तान के दबाव में था.
लेकिन पिछले कुछ सालों में अर्दोआन का रुख़ कश्मीर के मामले में मद्धम पड़ा है. अर्दोआन ने पिछले साल 20 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र की 77वीं आम सभा को संबोधित करते हुए कहा था, ''75 साल पहले भारत और पाकिस्तान दो संप्रभु देश बने, लेकिन दोनों मुल्कों के बीच शांति और एकता स्थापित नहीं हो पाई है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. हम उम्मीद और प्रार्थना करते हैं कि कश्मीर में उचित और स्थायी शांति स्थापित हो.''
अर्दोआन की इस टिप्पणी के एक हफ़्ता पहले ही उज़्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गेनाइज़ेशन (एससीओ) समिट से अलग भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन से मुलाक़ात हुई थी.
संयुक्त राष्ट्र आम सभा में अर्दोआन पहले भी कश्मीर का मुद्दा उठाते रहे हैं, लेकिन पिछले साल उनकी टिप्पणी बिल्कुल अलग थी. इससे पहले वह कहते थे कि कश्मीर समस्या का समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के तहत होना चाहिए.
क्या तुर्की अपना तेवर छोड़ देगा?
दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ की प्रोफ़ेसर सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं कि तुर्की और भारत दोनों मिडिल पावर हैं और दोनों वैश्विक शक्ति बनने की चाहत रखते हैं.
ऐश्वर्या कहती हैं, ''यूक्रेन में रूस के हमले के बाद से वैश्विक स्तर पर मिडिल पावर वाले देशों की अहमियत बढ़ी है. यूक्रेन संकट में तुर्की और भारत दोनों समाधान तलाशने की कोशिश कर रहे हैं.
कई बार दोनों देशों के हित आपस में टकराते भी हैं. भारत तुर्की में इसलिए मदद नहीं भेजता कि वह पाकिस्तान के क़रीब है, तो यह नासमझी ही होती. भारत वहाँ मानवीय मदद भेज रहा है, लेकिन इसका असर इतना निरपेक्ष नहीं होता है. इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ता है.''
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सेंटर फ़ॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर एके महापात्रा को नहीं लगता है कि भारत की मानवीय मदद से तुर्की की विदेश नीति लंबी अवधि के लिए बदल जाएगी.
महापात्रा कहते हैं, ''तुर्की में अभी जो सत्ता है, वह इस्लाम की राजनीति करती है. उसकी राजनीति में पाकिस्तान एक पक्ष रहेगा. हाँ, इतना ज़रूर हो सकता है कि अर्दोआन संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर भारत के ख़िलाफ़ जो बोलते हैं, उसे बोलना बंद कर दें. तुर्की जहाँ है, वह बेहद अहम इलाक़ा है. तुर्की से मध्य एशिया जाना आसान है. यूरोप से सीमा लगती है. मध्य-पूर्व में पहुँच आसान है. उसके साथ ऑटोमन साम्नाज्य की विरासत है.
इसलिए इस्लामिक दुनिया का नेता भी बनना चाहता है. तुर्की को पाकिस्तान से कोई फ़ायदा नहीं है, लेकिन इस्लाम के नाम पर साथ दिखना मजबूरी है. भारत एक उभरती हुई अर्थव्यवस्था है और तुर्की इसकी उपेक्षा नहीं कर सकता है, लेकिन वह पाकिस्तान को छोड़ देगा, ऐसा नहीं होगा.''
महापात्रा कहते हैं, ''भारत की मदद से पाकिस्तान ज़रूर घबराया हुआ है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की बेचैनी साफ़ दिख रही है. वह तुर्की जा रहे हैं. पाकिस्तान को लग रहा है कि सऊदी और यूएई की तरह कहीं तुर्की भी भारत के पाले में न चला जाए. तुर्की में भारत की मदद विश्वगुरु वाली छवि को मज़बूत करने के लिए है न कि क़रीबी बढ़ाने के लिए.''
तुर्की अभी भारत को दोस्त कह रहा है, लेकिन वह पाकिस्तान को लंबे समय से भाई कहता रहा है. (bbc.com/hindi)
बर्लिन, 17 फरवरी। जर्मनी में वेतन में वृद्धि की मांग को लेकर कर्मचारियों द्वारा कार्य बहिष्कार किए जाने के बाद हवाई अड्डों पर हजारों उड़ानों को रद्द कर दिया गया।
फ्रैंकफर्ट, म्यूनिख और हैम्बर्ग समेत सात जर्मन हवाई अड्डों पर हड़ताल के चलते करीब 300,000 यात्रियों को परेशानी हुई और विभिन्न एयरलाइन को 2300 से अधिक उड़ानें रद्द करनी पड़ी।
वेर्दी लेबर यूनियन के क्रिस्टीन बेहले ने सरकारी प्रसारक आरबीबी-इंफोरेडियो से कहा कि कर्मचारियों के साथ अर्थपूर्ण समझौता नहीं होने पर जर्मन हवाई अड्डों पर ‘गर्मियों में अस्त-व्यस्त स्थिति’ हो जाएगी।
यूनियन अपने सदस्यों के वेतन में 10.05 प्रतिशत या कम से कम 500 यूरो की वृद्धि की मांग कर रहा है ताकि जर्मनी में महंगाई में वृद्धि की मार से बचा जा सके। (एपी)
(अदिति खन्ना)
लंदन, 17 फरवरी। ब्रिटेन में रहने वाली 83 वर्षीय सिख विधवा महिला ने दिवंगत पति के 12 लाख मूल्य पाउंड के एस्टेट (भूसंपत्ति) में 50 प्रतिशत की ‘तर्कसंगत’ हिस्सेदारी पाने का मुकदमा लंदन उच्च न्यायालय में जीत लिया है।
महिला के पति की करीब एक साल पहले मौत हो गई थी और उसने वसीयत में पूरी संपत्ति अपने दो बेटों के नाम कर दी थी।
न्यायमूर्ति रॉबर्ट पील ने पिछले सप्ताह दिए फैसले में कहा कि वह इस बात से संतुष्ट हैं कि करनैल सिंह ने 66 साल तक जीवन संगिनी रहीं हरबंस कौर के लिए तर्कसंगत प्रावधान नहीं किया जबकि उन्होंने विवाह और परिवार के कपड़ा व्यवसाय में‘‘पूरी तरह से और समान योगदान’’ दिया।
अदालत के दस्तावेजों के मुताबिक पिता की वसीयत के एक लाभार्थी बेटे ने अपनी मां के दावे का विरोध नहीं किया जबकि दूसरे बेटे ने कानूनी प्रक्रिया में हिस्सा नहीं लिया।
न्यायमूर्ति पील ने कहा, ‘‘ मैं संतुष्ट हूं कि मृतक की एस्टेट में दावेदार हरबंस कौर के लिए तर्कसंगत प्रावधान नहीं किया गया। उन्हें एस्टेट के कुल मूल्य का 50 प्रतिशत मिलना चाहिए और एस्टेट का बंटवारा वसीयता में व्यक्त की गई इच्छा से अलग होना चाहिए।’’
अदालत ने निर्देश दिया कि ‘दावेदार को तत्काल ’ 20 हजार पाउंड का भुगतान एस्टेट की आय से किया जाए और महिला द्वारा मुकदमे पर किए गए खर्च का भुगतान भी किया जाए।
एस्टेट के मालिक करनैल सिंह की अगस्त 2021 में मौत हो गयी थी। उन्होंने जून 2005 में एक वसीयत की थी जिसमें यह संपत्ति उनके दोनों पुत्रों को दी गयी थी। सिंह ने वसीयत में अपनी पत्नी और चार पुत्रियों को सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया ताकि संपत्ति पुरुष सदस्यों के पास बनी रहे। (भाषा)
हंगेरियन-अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस की अडाणी मामले पर टिप्पणी को लेकर बीजेपी नेताओं ने सोरोस की कड़ी आलोचना की है. बीजेपी ने कहा है कि सोरोस भारत के लोकतंत्र को ही तोड़ना चाहते हैं.
जर्मनी में चल रहे म्युनिख सुरक्षा सम्मेलन में 16 फरवरी, 2023 को बोलते हुए सोरोस ने कहा था कि गौतम अडाणी के व्यापार की समस्याओं की वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कमजोर होंगे और भारत में "लोकतांत्रिक पुनरुत्थान" का रास्ता खुलेगा.
92 साल के सोरोस ने कहा, "मोदी और शक्तिशाली उद्योगपति अडाणी करीबी साथी हैं; दोनों की किस्मत एक दूसरे के साथ गुंथी हुई है. अडानी इंटरप्राइजेज ने स्टॉक बाजार में पैसे जुटाने की कोशिश की, लेकिन वो नाकामयाब रहे. अडाणी पर स्टॉक धोखेबाजी का आरोप है और उनका स्टॉक ताश के पत्तों की तरह ढह गया."
उन्होंने आगे कहा, "मोदी इस विषय पर शांत हैं, लेकिन उन्हें विदेशी निवेशकों को और संसद में जवाब देना पड़ेगा." सोरोस ने कहा कि अडाणी की समस्याएं "भारत की सरकार पर मोदी के शिकंजे को उल्लेखनीय ढंग से कमजोर करेंगी" और "अति आवश्यक संस्थागत सुधारों की तरफ जोर देने के लिए रास्ते खोलेंगी".
उन्होंने यह भी कहा, "यह सरल तर्क लग सकता है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि भारत में लोकतांत्रिक पुनरुत्थान होगा."
सोरोस अडाणी समूह पर अमेरिकी कंपनी हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट के आने के बाद के घटनाक्रम के बारे में बात कर रहे थे. रिपोर्ट में अडाणी पर दशकों तक "स्टॉक धोखेबाजी और एकाउंटिंग जालसाजी" का आरोप लगाया गया था.
रिपोर्ट के बाद शेयर बाजार में समूह की कंपनियों को भारी नुकसान झेलना पड़ा. संसद में विपक्ष ने भी यह मुद्दा उठाया और एक संसदीय समिति द्वारा पूरे मामले की जांच की मांग की.
कौन हैं जॉर्ज सोरोस
सोरोस हंगेरियन-अमेरिकी मूल के अरबपति निवेशक हैं. उन्हें उनके लोकोपकार के लिए भी जाना जाता है. 1960 के दशक से लेकर उन्होंने कई हेज फंडों की स्थापना की और दुनिया के सबसे प्रभावशाली अरबपतियों में से एक बन गए.
उन्हें 1992 में ब्लैक वेंस्डे के नाम से जाने जाने वाले यूके सरकार के वित्तीय संकट के समय बैंक ऑफ इंग्लैंड के शेयरों की शार्ट सेलिंग कर एक अरब पौंड मुनाफा कमाने के लिए जाना जाता है.
उन्हें दुनिया भर में प्रगतिशील और उदार राजनीती का समर्थन भी माना जाता है और यह भी माना जाता है कि वो दुनिया भर +में इस विचारधारा के कार्यक्रमों और गतिविधियों की वित्तीय मदद भी करते हैं.
इस तरह की मदद के लिए उन्होंने ओपन सोसाइटी फाउंडेशन्स नाम की संस्था की स्थापना की थी, जिसके जरिए उन्होंने अरबों रुपए दान किए हैं. फोर्ब्स ने उन्हें "सबसे दरियादिल दाता" कहा है.
बीजेपी का हमला
अडाणी प्रकरण में सोरोस की टिप्पणी के बाद भारत सरकार के मंत्रियों और बीजेपी के नेताओं ने सोरोस पर सीधे निशाना साधा और कहा कि वो भारत के लोकतंत्र को ही गिराने की कोशिश कर रहे हैं.
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने सोरोस की टिप्पणी पर बुलाई गई एक विशेष प्रेस वार्ता में कहा, "जिस इंसान ने बैंक ऑफ इंग्लैंड को तोड़ दिया, जिसे एक आर्थिक युद्ध अपराधी घोशित किया जा चुका है उसने आप भारतीय लोकतंत्र को तोड़ने की कामना की घोषणा की है."
ईरानी ने कहा कि सोरोस के बयानों से स्पष्ट हो रहा है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं को निशाना बनाने के लिए एक अरब डॉलर की फंडिंग की घोषणा की है.
उन्होंने यह भी कहा, "जॉर्ज सोरोस का यह ऐलान कि वो हिंदुस्तान में मोदी को झुका देंगे, हिंदुस्तान की लोकतांत्रिक तरीके से चुनी सरकार को ध्वस्त करेंगे उसका मुंहतोड़ जवाब हर हिंदुस्तानी को देना चाहिए." अडाणी समूह ने अभी तक सोरोस की टिप्पणी पर कोई बयान नहीं दिया है. (dw.com)
अब तक जापान द्वीपों की जिस गिनती को मानता रहा है, वह आंकड़ा 1987 में जापान कोस्ट गार्ड ने जारी किया था. तब यह काम हाथ से किया गया था. कागजी मानचित्रों की मदद से द्वीपों की गिनती की गई और कुल संख्या 6,852 बताई गई थी.
पढ़ें डॉयचे वैले पर स्वाति मिश्रा की रिपोर्ट-
35 साल में पहली बार जापान ने अपने द्वीपों की गिनती करवाई. डिजिटल मैपिंग टेक्नोलॉजी की मदद से हुई इस गिनती में जापानी द्वीपों की संख्या पहले के मुकाबले करीब दोगुनी होने की उम्मीद है. पहले जहां जापानी द्वीपों की संख्या 6,852 थी, वहीं अब इसके 14,125 होने का अनुमान है. हालांकि इस बड़ी वृद्धि का मतलब यह नहीं कि जापान का क्षेत्रफल पहले से बड़ा हो गया हो. जापानी भूभाग और समुद्री क्षेत्र के आकार में कोई बदलाव नहीं आएगा. जापान की न्यूज एजेंसी क्योदो ने यह जानकारी दी है. हालांकि अभी सरकार ने नई गिनती से जुड़े आंकड़े जारी नहीं किए हैं.
इस हालिया सर्वे में जियोस्पेशल इन्फॉर्मेशन अथॉरिटी ऑफ जापान (जीएसआई) के 2022 के इलेक्ट्रॉनिक लैंड मैप के आधार पर द्वीपों की गिनती करवाई गई. पुरानी हवाई तस्वीरों और डाटा की भी मदद ली गई, ताकि कृत्रिम द्वीपों को इस गिनती से अलग किया जा सके. इस प्रक्रिया में एक लाख से ज्यादा द्वीपों की पहचान हुई, लेकिन आधिकारिक सूची में बस उन्हें शामिल किया गया है जिनकी परिधि 100 मीटर या इससे ज्यादा है.
दोबारा गिनती करवाने की मांग
इस ताजा गिनती का संदर्भ उन आलोचनाओं से है, जिनमें कहा जा रहा था कि जापान के पास उपलब्ध द्वीपों की गिनती के आंकड़े पुराने और आउटडेटेड हैं. लिबरल डेमोक्रैटिक पार्टी के एक सांसद ने दिसंबर 2021 में यह मुद्दा उठाते हुए कहा था कि राष्ट्रीय महत्व से जुड़े प्रशासनिक मामलों के लिए द्वीपों की सटीक गिनती मालूम होना जरूरी है.
अब तक जापान द्वीपों की जिस गिनती को मानता आया है, वह आंकड़ा 1987 में जापान कोस्ट गार्ड ने दिया था. उस वक्त यह काम हाथ से किया गया था. कागजी मानचित्रों का इस्तेमाल कर द्वीपों की गिनती की गई थी और कुल द्वीपों की संख्या 6,852 बताई गई थी. लेकिन आगे के दशकों में जानकारों ने कहा कि यह संख्या असली आंकड़ों से काफी कम हो सकती है.
डिजिटल मैपिंग तकनीक की मदद से की गई खोजे गए नए द्वीप "लॉ ऑफ द सी" के अनुरूप हैं. इसके मुताबिक, द्वीप प्राकृतिक तौर पर बनी जमीन है, जो पानी से घिरी होती है और ज्वार के समय पानी के ऊपर रहती है
जापान की भौगोलिक बनावट
जापान एक द्वीपसमूह है. अंग्रेजी में इस भौगोलिक बनावट को आर्किपेलेगो कहते हैं. यहां मुख्य चार द्वीप हैं, होक्काइदो, होंशू, शिकोकू और क्यूशु. इसके अलावा कई छोटे और बेहद छोटे द्वीप हैं, जो उत्तर में साइबेरिया के पूर्वी छोर से दक्षिण में ताइवान के सुदूर किनारे तक फैले हैं. द्वीपों के फैलाव के कारण जापान का स्थलीय भूभाग कम होते हुए भी यह काफी लंबा है और 370,000 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा के क्षेत्र में फैला है. हजारों द्वीपों में से करीब 421 पर ही इंसानी बसाहट है.
जापान "वोल्कैनिक रिंग ऑफ फायर" का हिस्सा है. आकार में घोड़े की नाल जैसा दिखने वाले प्रशांत महासागर के इस क्षेत्र में ज्वालामुखी विस्फोट और भूकंप होते रहते हैं. जापान में भी ज्वालामुखी हैं और ज्वालामुखीय गतिविधियां भी भूगोलीय संरचनाओं को प्रभावित करती हैं. इनके कारण नए द्वीपों का निर्माण भी होता है.
ज्वालामुखी के फटने से बनते द्वीप
अभी अगस्त 2021 में वैज्ञानिकों ने बताया था कि टोक्यो से करीब 1,200 किलोमीटर दूर समुद्र के भीतर एक ज्वालामुखी फटने के कारण एक नया द्वीप बन गया है. ऐसे द्वीप कितने स्थायी होंगे, यह उनकी संरचना पर निर्भर करता है. मसलन राख जैसी चीजों के जमा होने से बने द्वीप का लगातार टकराते रहने वाले समुद्री थपेड़ों के आगे टिकना मुश्किल है. कटाव और घिसाव के कारण वो डूब जाते हैं. लेकिन ज्यादा मात्रा में लावा के जमा होने पर बनी संरचना के अपेक्षाकृत ज्यादा स्थायी होने की संभावना होती है.
नए द्वीप बनते रहते हैं. कुछ डूब जाते हैं, तो कुछ टिक भी जाते हैं. दिसंबर 2013 में भी टोक्यो से करीब 1,000 किलोमीटर दूर बने ऐसे ही एक द्वीप की खूब चर्चा हुई थी. बनावट के शुरुआती दौर में यह द्वीप लोगों को कॉर्टून किरदार स्नूपी जैसा लग रहा था. सोशल मीडिया पर लोग इसे स्नूपी आइलैंड कह रहे थे. यह द्वीप पहले से मौजूद निशिनोशिमा द्वीप से मिल गया.
ताइवान , 17 फरवरी । ताइवान का कहना है कि उसे कुछ ऐसे अवशेष मिले हैं जो कि दुर्घटनाग्रस्त चीनी गुब्बारे के लगते हैं.
ताइवान की सेना का कहना है कि उसे गुरुवार को स्थानीय समयानुसार 11:00 बजे (03:00 जीएमटी) चीन के तट के पास ताइवान के नियंत्रण वाले द्वीप डोंग्यिन के ऊपर एक अज्ञात वस्तु को तैरते हुए दिखाई दी.
सेना का कहना है कि प्रारंभिक जांच से पता चला है कि ये अवशेष एक मौसम संबंधी उपकरण का हिस्सा हैं.
शुक्रवार को, ताइवान के रक्षा मंत्री चिउ कुओ-चेंग ने कहा कि अधिकारी दुर्घटनाग्रस्त गुब्बारे की आगे जांच करेंगे लेकिन अभी किसी "निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता."
स्थानीय मीडिया के अनुसार, वरिष्ठ रक्षा अधिकारी चेन यू-लिन ने बताया कि ताइवान के अपतटीय द्वीपों में पहली बार इस तरह के गुब्बारे के अवशेष मिले हैं. (bbc.com/hindi)
-तनवीर मलिक
पाकिस्तान, 17 फरवरी । पाकिस्तान में रोज़मर्रा में इस्तेमाल होने वाली चीज़ों के दामों में भारी उछाल दर्ज किया जा रहा है.
ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़, पाकिस्तान में एक किलोग्राम चाय की कीमत 1700 रुपये के पार चली गयी है.
इसके साथ ही आटा, दाल और खाने के तेल जैसी चीज़ों के दाम भी काफी बढ़ गए हैं.
पाकिस्तान के कराची शहर के बीचों बीच महारानी बाज़ार में किराना की दुकान चला रहे ज़ाहिद ने बताया है कि पिछले छह महीने के दौरान 10 किलोग्राम आटे की कीमत 450 रुपये बढ़ी है.
वे कहते हैं, "पहले 10 किलो आटे की कीमत 800 रुपये हुआ करती थी जो अब 1250 रुपये में मिल रही है. इसी तरह, खाना पकाने के तेल की कीमत पहले 380 रुपये हुआ करती थी जो अब 620 रुपये हो गई है."
एक किलोग्राम चने की दाल की कीमत पहले 280 रुपये थी, अब 430 रुपये हो गई है.
वहीं एक किलोग्राम दाल मैश जो पहले तीन सौ बीस रुपये की थी, अब चार सौ से अधिक पर मिल रही है.
इसके साथ ही चायपत्ती पहले प्रति किलोग्राम 1400 रुपये की थी, अब ये 1700 रुपये से ऊपर मिल रही है. (bbc.com/hindi)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 17 फरवरी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने बताया कि अमेरिका और कनाडा के हवाई क्षेत्र में इस महीने नष्ट की गईं तीन संदिग्ध वस्तुओं के चीनी जासूसी गुब्बारा कार्यक्रम से संबंध का कोई संकेत नहीं मिला है और ये वस्तुएं संभवत: निजी कंपनियों या अनुसंधान संस्थानों से संबंधित थीं।
साउथ कैरोलाइना में अटलांटिक महासागर के तट पर एक चीनी गुब्बारे को मार गिराए जाने के बाद बाइडन ने व्हाइट हाउस में अपने पहले संबोधन में कहा कि अमेरिकी लड़ाकू विमानों ने तीन अन्य वस्तुओं को मार गिराया जिनमें दो को अमेरिका और एक को कनाडा में नष्ट किया गया।
चीनी गुब्बारे को मार गिराने के मद्देनजर चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने बीजिंग के साथ संवाद की आवश्यकता पर जोर दिया।
बाइडन ने अमेरिका और कनाडा के हवाई क्षेत्र में इस महीने नष्ट की गईं तीन संदिग्ध वस्तुओं का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘अमेरिका और कनाडा की सेना मलबे को प्राप्त करने का प्रयास कर रही है ताकि वे इन तीन वस्तुओं के बारे में और जान सकें। खुफिया समुदाय अब भी तीनों घटनाओं का आकलन कर रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हम अब तक ठीक से नहीं जानते कि ये तीन वस्तुएं क्या थीं। अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि क्या वे चीन के जासूसी गुब्बारे कार्यक्रम से संबंधित थीं या वे किसी अन्य देश के निगरानी यान थे।’’
बाइडन ने कहा, ‘‘खुफिया समुदाय का फिलहाल यही अनुमान है कि ये तीन वस्तुएं संभवत: ऐसे गुब्बारे थीं, जिनका संबंध निजी कंपनियों, मनोरंजन या मौसम का अध्ययन करने वाले या अन्य वैज्ञानिक अनुसंधान करने वाले अनुसंधान संस्थानों से था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने शुरुआत से ही कहा है कि हमें चीन के साथ प्रतिस्पर्धा चाहिए न कि संघर्ष। हम नया शीत युद्ध नहीं चाहते। हम प्रतिस्पर्धा करेंगे। हम जिम्मेदारी के साथ इस प्रतिस्पर्धा को अंजाम देंगे ताकि यह संघर्ष में नहीं बदले।’’
बाइडन ने चीनी गुब्बारे को नष्ट किए जाने के मद्देनजर कहा, ‘‘यह प्रकरण हमारे राजनयिकों और हमारे सैन्य पेशेवरों के बीच खुले संवाद को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमारे राजनयिक आगे भी संवाद में शामिल होंगे और मैं भी (चीन के) राष्ट्रपति शी (चिनफिंग) के साथ संवाद बनाए रखूंगा। मैं हमारे खुफिया, राजनयिक और सैन्य पेशेवरों के पिछले कई हफ्तों में किए कार्य के लिए उनका आभारी हूं, जिन्होंने एक बार फिर साबित किया है कि वे दुनिया में सबसे सक्षम हैं।’’
बाइडन ने कहा कि उन्होंने चीनी निगरानी गुब्बारों को जल्द से जल्द मार गिराने का आदेश दिया था, क्योंकि यह सुरक्षा की दृष्टि से जरूरी था।
उन्होंने कहा, ‘‘सेना ने इसके विशाल आकार को देखते हुए इसे जमीनी क्षेत्र के ऊपर मार गिराने से बचने की सलाह दी थी जो कई स्कूल बस के आकार के बराबर था और अगर इसे थल क्षेत्र के ऊपर मार गिराया जाता तो यह जमीन पर मौजूद लोगों के लिए खतरा हो सकता था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसके बजाय हमने इसकी बारीकी से निगरानी की, हमने इसकी क्षमताओं का विश्लेषण किया और हमने इसके बारे में और जानकारी जुटाई कि यह कैसे काम करता है।’’
बाइडन ने कहा, ‘‘ हमने तब तक इंतजार किया जब तक यह जल क्षेत्र के ऊपर सुरक्षित नहीं पहुंच गया। इससे न केवल नागरिकों की रक्षा होती बल्कि आगे के विश्लेषण के लिए हम इसके पर्याप्त घटकों को पुन: प्राप्त भी कर पाते। फिर हमने एक स्पष्ट संदेश भेजते हुए इसे मार गिराया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अमेरिकी संप्रभुता का उल्लंघन अस्वीकार्य है।’’ (भाषा)
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने गुरुवार को कहा है कि वह चीनी गुब्बारा गिराने के मामले में जल्द ही चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात करेंगे.
अमेरिकी प्रांत दक्षिणी कैरोलाइना में चार फरवरी को अमेरिकी वायु सेना के लड़ाकू विमान ने चीन के एक गुब्बारे को निशाना बनाया था. इसके बाद अमेरिकी अधिकारियों की ओर से इसे हाई-टेक चीनी स्पाई गुब्बारे की संज्ञा दी गयी थी.
हालांकि चीन ने किसी तरह की जासूसी के आरोपों से इनकार किया था और कहा था कि ये ग़ुब्बारा मौसम संबंधी जानकारी जुटाने के लिए छोड़ा गया था, जो रास्ता भटक कर अमेरिकी हवाई क्षेत्र की तरफ चला गया.
ये मामला सामने आने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन ने अपना पूर्व निर्धारित चीनी दौरा भी रद्द कर दिया था.
अमेरिकी वायु सेना ने इसके बाद हवा में देखे गए तीन और मानवरहित चीजों को निशाना बनाया. इनमें से एक को अलास्का के पास, एक को कनाडा के उत्तर-पश्चिम में और एक को अमेरिका-कनाडा सीमा के पास गिराया गया.
हालांकि, अमेरिकी सरकार ने इन तीन चीज़ों को जासूसी से जुड़ा हुआ नहीं बताया है.
इस मामले पर बाइडन ने कहा है, “मैं जल्द ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बात कर सकता हूं. हम इस मामले की तह तक जाएंगे.”
उन्होंने कहा है कि चार फरवरी के बाद आसमान से गिराई गयी तीन चीज़ें शोध आदि से जुड़ी हो सकती हैं.
इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वह एक नया शीत युद्ध नहीं चाहते.
लेकिन उन्होंने इस गुब्बारे को निशाना बनाने के लिए माफ़ी नहीं मांगी है.
उन्होंने कहा, “हम हमेशा अमेरिकी जनता के हितों की रक्षा और उनकी सुरक्षा के लिए कदम उठाएंगे.”
बाइडन प्रशासन और उनकी पार्टी इस मामले में कथित रूप से लेटलतीफ़ी से फ़ैसला लेने की वजह से आलोचना का सामना कर रही है. (bbc.com/hindi)
नौ साल तक यूट्यूब की मुख्य कार्यकारी अधिकारी रही सुज़ैन वोजित्स्की के अपने पद से इस्तीफ़ा देने के बाद भारतीय मूल के नील मोहन गुरुवार को इस वीडियो प्लेटफ़ॉर्म के मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनाए गए हैं.
मिंट में छपी एक ख़बर के अनुसार, 25 साल पहले जब गूगल एक गराज में बना था, उस वक्त से सुज़ैन वोजित्स्की गूगल के साथ जुड़ी थीं. बाद में गूगल ने यूट्यूब को ख़रीद लिया और सुज़ैन 2014 में इसकी मुख्य कार्यकारी अधिकारी बनीं.
अख़बार लिखता है कि 54 साल की सुज़ैन का कहना है कि वो अब अपने परिवार, स्वास्थ्य और निजी जीवन पर ध्यान देना चाहती हैं इस कारण अपने पद से इस्तीफ़ा दे रही हैं.
अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया के मुताबिक़, सुज़ैन की जगह लेने वाले नील मोहन ने स्टैनफ़र्ड यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रिकल इंडीनियरिंग की पढ़ाई की है. वो पहले गूगल में बतौर चीफ़ प्रोडक्ट ऑफ़िसर काम कर चुके हैं.
इससे पहले वो माइक्रोसॉफ़्ट में भी काम कर चुके हैं और बायो-तकनीक के क्षेत्र में काम करने वाली कंपनी 23एंडमी के बोर्ड में भी रहे हैं. (bbc.com/hindi)
दिल्ली से छपने वाले अख़बारों में शुक्रवार को अंतरराष्ट्रीय ख़बरों के अलावा राजधानी दिल्ली में सामने आए निक्की यादव हत्या मामले, त्रिपुरा-मेघालय चुनावों से जुड़ी ख़बरें, राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत के मोदी पर निशाना साधने से लेकर यूट्यूब के नए सीईओ नील मोहन से जुड़ी ख़बरों को प्राथमिकता दी गई है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एक ईरानी महिला के बाल काटने के दो-सेकंड के वीडियो से नाराज़गी के कारण ईरान के विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाह्यान ने अपना भारत दौरा रद्द कर दिया है.
अख़बार लिखता है कि ईरानी विदेश मंत्री मार्च महीने की तीन और चार तारीख को रायसीना डायलॉग के लिए भारत आने वाले थे, लेकिन दो-सेकंड के एक वीडियो के कारण अब उन्होंने ये दौरा रद्द कर दिया है.
एक मिनट 50 सेकंड के इस वीडियो में एक जगह पर एक ही फ़्रेम में ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की तस्वीर के साथ एक ईरानी महिला की तस्वीर दी गई है जो अपने बाल काट रही है.
भारत के विदेश मंत्रालय के साथ मिलकर रायसीना डायलॉग का आयोजन ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन (ओआरएफ़) करता है. इसमें कई देशों के नेता समेत अलग-अलग मुद्दों के जानकार हिस्सा लेते हैं. इस साल ये कार्यक्रम दिल्ली में दो से लेकर चार मार्च तक होना है.
इसी कार्यक्रम को लेकर महीने भर पहले ओआरएफ़ ने सोशल मीडिया पर एक प्रोमोशनल वीडियो पोस्ट किया था. इस वीडियो में मौजूदा दौर में दुनिया के सामने मौजूद चुनौतियों और अलग-अलग देशों के सामने खड़ी मुश्किलों का ज़िक्र है.
इसके 40वें सेकंड में एक फ़्रेम में दो तस्वीरें दिखती हैं. जहां फ़्रेम में नीचे विरोध प्रदर्शन में शामिल एक महिला अपने बाल काटती है, वहीं ऊपर के फ़्रेम में ईरान के राष्ट्रपति की तस्वीर दिखती है.
ईरान में बीते दिनों हिजाब सही तरीके से न पहनने को लेकर महसा अमीनी नाम की एक लड़की को पुलिस ने हिरासत में लिया था. बाद में इस लड़की कि हिरासत में मौत हो गई थी, जिसके बाद वहां कई सप्ताह तक सरकार विरोधी प्रदर्शन हुए. इन प्रदर्शनों के दौरान महिलाओं ने सामने आकर अपने बाल काटे थे.
सूत्रों के हवाले से अख़बार लिखता है कि इस वीडियो क्लिप से नाराज़ ईरान ने अपने दूतावास के ज़रिए ओआरएफ़ और भारतीय विदेश मंत्रालय से संपर्क किया और प्रदर्शनकारी के साथ एक ही फ़्रेम में राष्ट्रपति की तस्वीर दिखाने को लेकर आपत्ति जताई. उन्होंने इस वीडिया क्लिप को हटाने के लिए कहा जिससे आयोजकों ने इनकार कर दिया.
इसके बाद ईरानी सरकार ने आयोजकों से कहा है कि विदेश मंत्री रायसीना डायलॉग में शामिल नहीं होंगे.
ईरान के साथ भारत के व्यापारिक रिश्ते हैं. ईरान में हुए विरोध प्रदर्शनों पर भारत ने अब तक कोई टिप्पणी नहीं की है. बीते साल नवंबर में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार काउंसिल ने ईरान में कथित मानवाधिकार उल्लंघन के मामले की जांच के लिए एक फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग मिशन भेजने का प्रस्ताव पेश किया गया था.
जर्मनी और नीदरलैंड्स के लाए इस प्रस्ताव पर वोटिंग करने से 16 देशों ने इनकार कर दिया था, इनमें से भारत भी एक था. हालांकि ये प्रस्ताव 25 वोटों के साथ पास हो गया था.
वीडियो में क्या है?
ओआरएफ़ द्वारा जारी वीडियो की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक क्लिप से की गई है. ये बीते साल समरकंद में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई उनकी मुलाक़ात के वक्त की क्लिप है जिसमें वो कहते हैं कि, 'ये युद्ध का दौर नहीं है.'
वीडियो में रूसी राष्ट्रपति के अलावा यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर की भी क्लिप है.
अख़बार लिखता है कि मार्च की पहली और दूसरी तारीख़ को भारत में जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की अहम बैठक होनी है. रायसीना डायलॉग का आयोजन इस बैठक के बाद किया गया है.
ऐसे में माना जा रहा है कि कई मुल्कों के विदेश मंत्री इस कार्यक्रम के लिए भारत में रुकेंगे. जी-20 देशों के अलावा भी कई देशों के विदेश मंत्री इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए भारत पहुंचने वाले हैं. (bbc.com/hindi)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने बीबीसी को दिए एक विशेष साक्षात्कार में कहा है कि उनकी सरकार रूस के साथ संभावित शांति समझौते में अपनी ज़मीन देने के लिए तैयार नहीं है.
रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई के आगामी 24 फ़रवरी को एक साल पूरे हो जाएंगे. इससे पहले वह ब्रितानी नेताओं से मिलने के लिए लंदन पहुंचे थे.
इसी मौक़े पर बीबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि रूस को ज़मीन देने का मतलब ये होगा कि वह वापस आता रहेगा जबकि पश्चिमी हथियार शांति को हमारे ज़्यादा क़रीब लेकर आएंगे.
उन्होंने कहा, “रूसी हमले हर तरफ़ से होना शुरू हो चुके हैं.’
हथियारों को लेकर उन्होंने कहा, “हां, बिल्कुल. आधुनिक हथियार शांति कायम होने की प्रक्रिया को तेज़ करते हैं, क्योंकि हथियार ही एक मात्रा भाषा है जो रूस को समझ आती है.”(bbc.com/hindi)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 17 फरवरी। अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की नेता एवं राष्ट्रपति पद के चुनाव में पार्टी उम्मीदवार बनने की दौड़ में शामिल निक्की हेली ने कहा है कि अमेरिकियों को देश में नयी पीढ़ी के नेता की जरूरत है।
हेली ने ‘फॉक्स न्यूज’ के साथ एक साक्षात्कार में कहा, ‘‘हमने कई नेताओं को देखा है जिन्होंने पूर्व में हमारा नेतृत्व किया है। हमें कांग्रेस में कार्यकाल की सीमाएं रखनी होंगी। हमें 75 वर्ष से अधिक आयु के किसी भी निर्वाचित अधिकारी के लिए योग्यता परीक्षण कराने की आवश्यकता है।’’
अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो पहले ही चुनाव लड़ने के अपने फैसले की घोषणा कर चुके हैं, वे 75 साल से अधिक उम्र के हैं।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव केरिन ज्यां-पियरे ने हेली के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘हमने पहले भी इस तरह के हमले या टिप्पणियां सुनी हैं।’’
उन्होंने कहा कि बाइडन अपनी क्षमता साबित कर इस बार इस प्रकार के आलोचकों को चुप कराने में कामयाब रहे हैं।
‘फॉक्स न्यूज’ के साथ साक्षात्कार में हेली ने कहा कि अमेरिका को नयी पीढ़ी के नेता की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें इस यथास्थिति को बदलना होगा। हमें इस अव्यवस्था को पीछे छोड़ना होगा और भविष्य के बारे में बात करनी होगी।’’ (भाषा)
लाहौर, 16 फरवरी। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बृहस्पतिवार को एक यात्री ट्रेन में हुए विस्फोट में कम से कम दो लोगों की मौत हो गई और नौ अन्य घायल हो गए। मीडिया की खबरों से इस बात की जानकारी मिली।
अधिकारियों ने बताया कि विस्फोट जाफर एक्सप्रेस के अंदर उस समय हुआ जब वह क्वेटा से रावलपिंडी जा रही थी।
‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार’ के मुताबिक, पुलिस सूत्रों ने बताया कि धमाका यात्री ट्रेन के शौचालय के अंदर हुआ। उस समय यह ट्रेन प्रांत के एक जिले चिचावतनी पहुंची थी।
‘डॉन अखबार’ की खबर के मुताबिक घायलों और हताहतों की पुष्टि करते हुए पाकिस्तान रेलवे के प्रवक्ता बाबर अली ने कहा कि विस्फोट की प्रकृति अभी निर्धारित नहीं की गई है।
मुल्तान के उपाधीक्षक हम्माद हसन ने बताया कि आतंकवाद रोधी विभाग की एक टीम मौके पर पहुंच गई है और सबूत इकट्ठे कर रही है। (भाषा)
पाकिस्तान में क्वेटा से पेशावर से जा रही ज़फर एक्सप्रेस ट्रेन में विस्फोट हुआ है.
बीबीसी पश्तो के मुताबिक इस हमले में कम से कम दो लोगों के मारे जाने और आठ लोगों के घायल होने की खबर है.
बताया जा रहा है कि ट्रेन के चौथे डिब्बे में विस्फोट हुआ है. पाकिस्तान रेलवे का कहना है कि विस्फोट में मारे गए लोगों में एक महिला भी शामिल है.
शुरुआती जानकारी के मुताबिक विस्फोट का कारण गैस-रिसाव बताया जा रहा है लेकिन पुलिस का कहना है कि वह घटना की जांच कर रही है. (bbc.com/hindi)
पाकिस्तान, 16 फरवरी । पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने राष्ट्रपति आरिफ अल्वी से पूर्व सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के ख़िलाफ़ तत्काल जांच की मांग की है.
उन्होंने राष्ट्रपति और सेना के सुप्रीम कमांडर को पत्र लिखकर मांग की है कि पूर्व सेना प्रमुख के ख़िलाफ़ शपथ के उल्लंघन की जांच की जाए.
इमरान ने लिखा कि पूर्व सेना प्रमुख ने पत्रकार जावेद चौधरी के साथ एक बैठक में स्वीकार किया है कि उनका मानना था कि अगर इमरान ख़ान सत्ता में रहे तो देश ख़तरे में पड़ सकता है.
उन्होंने पूछा कि सेना प्रमुख के रूप में ऐसा कहने का अधिकार उन्हें किसने दिया? उन्होंने ऐसा कहकर संविधान के अनुच्छेद 244 का उल्लंघन किया है और इसकी जांच की जानी चाहिए. (bbc.com/hindi)
-शहज़ाद मलिक
इस्लामाबाद , 16 फरवरी । इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने पूर्व गृह मंत्री शेख़ रशीद को ज़मानत दे दी है और उनकी रिहाई का आदेश दिया है.
जज मोहसिन अख्तर कयानी ने शेख़ रशीद की ज़मानत अर्ज़ी स्वीकार करते हुए 50 हज़ार रुपए का ज़मानती मुचलका जमा करने का आदेश दिया है.
शेख रशीद फ़िलहाल न्यायिक रिमांड पर अदियाला जेल में है.
शेख़ रशीद ने पूर्व राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी पर पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की हत्या की साजिश के लिए एक चरमपंथी संगठन को धन देने का आरोप लगाया.
इस्लामाबाद की अबपारा पुलिस ने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के एक कार्यकर्ता के ख़िलाफ़ मामला दर्ज कर उसे गिरफ़्तार कर लिया है.
इस्लामाबाद के अतिरिक्त सत्र जज ने शेख़ रशीद अहमद की ज़मानत याचिका को इस आधार पर ख़ारिज कर दिया था कि अभियुक्त अपने आरोपों को दोहरा रहा था.
शेख़ रशीद के ख़िलाफ़ मुर्री थाने में इन्हीं आरोपों के तहत मामला दर्ज किया गया था, लेकिन स्थानीय अदालत ने उन्हें इस मामले में ज़मानत दे दी थी.
इसी आरोप में बलूचिस्तान और सिंध के थानों में शेख़ रशीद के ख़िलाफ़ भी मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने उन्हें आगे की कार्रवाई करने से रोक दिया था. (bbc.com/hindi)
पीएम नेतन्याहू इस्राएल की कानूनी व्यवस्था में बड़े बदलाव करना चाहते हैं. इससे न्यायिक प्रक्रिया में सरकार का दखल और नियंत्रण काफी बढ़ जाएगा. आरोप है कि नेतन्याहू की योजना का संबंध उनपर चल रहे आपराधिक मुकदमों से है.
प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार इस्राएल की कानूनी व्यवस्था में बड़े बदलाव की योजना लाई है. इसका देश में खूब विरोध हो रहा है. कई हफ्तों से पूरे देश में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इस्राएली समाज के बड़े धड़े ने इस योजना की निंदा की है. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी चिंता जताई है. इसी क्रम में 13 फरवरी को इस्राएली संसद के बाहर हुए विशाल प्रदर्शन की तस्वीरें और वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं.
नेतन्याहू और उनके सहयोगियों का कहना है कि देश में अनिर्वाचित जजों के पास बहुत ज्यादा ताकत है और इसपर काबू करना जरूरी है. वहीं विपक्षियों और आलोचकों का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया से नेतन्याहू के गहरे निजी हित जुड़े हैं. नेतन्याहू पर भ्रष्टाचार का मुकदमा चल रहा है. ऐसे में कानूनी प्रक्रिया में बदलाव की उनकी योजना देश के लोकतांत्रिक ढांचे को नष्ट करेगी. सरकार और संस्थाओं के कामकाज की निगरानी करने के लोकतांत्रिक "चेक्स एंड बैलेंसेज" बर्बाद हो जाएंगे. विपक्षियों का आरोप है कि इस योजना की आड़ में नेतन्याहू खुद पर चल रहे आपराधिक मुकदमे को खत्म करना चाहते हैं.
देश के कई हिस्सों में प्रदर्शन
13 फरवरी को प्रस्तावित बदलाव के खिलाफ संसद के बाहर हुआ प्रदर्शन, हालिया सालों में येरुशलेम में हुआ सबसे बड़ा प्रोटेस्ट था. विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने के लिए देशभर से लोग पहुंचे थे. ट्रेनों में खचाखच भीड़ देखी गई. आयोजकों के मुताबिक, 13 फरवरी को हुई रैली में एक लाख से ज्यादा लोग शामिल हुए. इनमें अरब, महिला अधिकार और एलजीबीटीक्यू अधिकार कार्यकर्ताओं के अलावा विपक्षी दल के कार्यकर्ता भी शामिल थे.
साथ ही, कई अकादमिक, छात्र, कर्मचारी, रिटायर हो चुके लोग और परिवार भी रैली का हिस्सा बने. लोग हाथ में झंडा लिए "डेमोक्रेसी," "शेम शेम" और "इस्राएल तानाशाही नहीं बनेगा" जैसे नारे लगा रहे थे. विपक्षी नेता याइर लापिड ने संसद की ओर इशारा करते हुए प्रदर्शनकारियों की भीड़ से कहा, "वो हमें सुन रहे हैं. वो हमारी एकजुटता और समर्पण को सुन पा रहे हैं. वो ना सुनने का दिखावा करते हैं. वो ना डरने का दिखावा करते हैं. लेकिन उन्हें सुनाई देता है और वो डरे हुए हैं."
क्या प्रस्ताव हैं सरकार के?
येरुशलेम के अलावा देश के कई और शहरों में भी बड़े प्रदर्शन हुए हैं. हालांकि विरोध के बावजूद नेतन्याहू के नियंत्रण वाली संसदीय समिति ने योजना से जुड़े कानून के शुरुआती हिस्सों को पास कर दिया. इनमें नेतन्याहू के बहुमत वाली विधायिका को न्यायिक नियुक्तियों का नियंत्रण देने से जुड़ा प्रस्ताव भी शामिल है. अभी एक स्वतंत्र समिति जजों की नियुक्ति करती है. इस समिति में वकील, नेता और जज शामिल हैं. एक और प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट से बड़े कानूनों की कानूनी वैधता की समीक्षा का अधिकार ले लेगा.
इनके अलावा एक और प्रस्ताव लाने की योजना है, जो संसद को यह अधिकार देगी कि पसंद ना आने पर वह सुप्रीम कोर्ट के फैसले पलट सकती है. विपक्षियों का कहना है कि ये प्रस्ताव इस्राएल को हंगरी और पोलैंड जैसी व्यवस्था बना देंगे, जिनमें लीडर के पास सारे अहम अधिकार होते हैं. उसपर निगरानी रखने और फैसला सुनाने के लिए कोई संस्था प्रभावी नहीं रह जाती. संसद की कमिटी में वोटिंग के दौरान खूब हल्ला हुआ. विपक्षी सदस्य कॉन्फ्रेंस टेबल पर चढ़कर नारे लगाने लगे. कई विपक्षी नेताओं को बाहर निकाल दिया गया. कुछ को तो सुरक्षाकर्मी घसीटकर बाहर ले गए.
खुद को पीड़ित बताते हैं नेतन्याहू
अब यह प्रस्ताव संसद में जाएगा. तीन अलग-अलग वोटिंग में इन्हें पास किया जाना होगा. 20 फरवरी को पहली वोटिंग होने की उम्मीद है. संसद में नेतन्याहू का बहुमत है. ऐसे में उन्हें आगे बढ़ने से रोका जाना मुमकिन नहीं लग रहा है. हालांकि बड़े स्तर पर हो रहे विरोध प्रदर्शन ध्यान खींच रहे हैं. नेतन्याहू ने आरोप लगाया है कि विपक्ष जान-बूझकर देश को अराजकता की ओर धकेल रहा है. साथ ही, उन्होंने विरोधियों से बातचीत का भी संकेत दिया.
कानून मंत्री यारिव लेविन और कमिटी के अध्यक्ष रोथमान ने एक साझा बयान जारी कर विपक्ष को बातचीत का आमंत्रण दिया, जिसे विपक्ष ने नामंजूर कर दिया. विपक्ष की मांग है कि बातचीत शुरू करने के लिए जरूरी है कि सरकार प्रक्रिया को रोके. नेतन्याहू ने दिसंबर 2022 में सत्ता में वापसी की थी. पुलिस, प्रॉसिक्यूटर और जजों की तीखी आलोचना करते हुए वह खुद को गहरी साजिश का शिकार बताते आए हैं. हालांकि आलोचक इन दावों को खारिज करते हैं.
एसएम/एमजे (एपी)
स्कॉटलैंड, 16 फरवरी । स्कॉटलैंड में नए फ़र्स्ट मिनिस्टर (शासन प्रमुख) की खोज शुरू हो गई है.
ये खोज निकोला स्टर्जन के इस्तीफ़ा देने के बाद शुरू हुई है. निकोला आठ साल से ज़्यादा वक़्त से इस पद पर थीं.
निकोला के अचानक इस्तीफ़े से कई लोगों को हैरानी हुई थी.
जब तक स्कॉटलैंड के नए फ़र्स्ट मिनिस्टर पद पर कोई नया नहीं आ जाता, तब तक निकोला स्टर्जन पद पर बनी रहेंगी.
एसएनपी की नेशनल एक्ज़ीक्यूटिव कमेटी गुरुवार को बैठक करके नए नेतृत्व को चुने जाने से जुड़ी समय सीमा तय करेगी.
निकोला स्टर्जन ने कहा, ''मेरे दिल और दिमाग़ ने कहा कि वक़्त आ गया है. ये फ़ैसला मेरे, मेरी पार्टी और मेरे देश के लिए सही है.'' (bbc.com/hindi)
थाईलैंड, 16 फरवरी । साल 2018 में थाईलैंड की एक गुफ़ा में 12 बच्चे फँस गए थे.
इन बच्चों को बचाने के लिए दुनियाभर से गोताखोर और बचावकर्मी आगे आए थे.
ये 12 बच्चे जब सुरक्षित गुफा से बाहर निकले तो कुछ लोगों ने इसे चमत्कार की तरह देखा और बच्चों के बचने की ख़ुशियां मनाई गईं.
मगर अब लगभग पांच साल बाद इन 12 बच्चों में से एक डुआंगपेच प्रोमथेप की मौत हो गई है.
प्रोमथेप की मौत ब्रिटेन में हुई है. बीते साल ही प्रोमथेप ने ब्रिटेन की फुटबॉल एकेडमी में दाखिला लिया था.
प्रोमथेप उस फुटबॉल टीम के कप्तान थे, जो थाईलैंड की गुफ़ा में कोच सहित फँस गई थी.
इन बच्चों को बचाने के लिए जब रेस्क्यू टीम गुफा के अंदर गई थी, तब टॉर्च मारने पर प्रोमथेप का चेहरा दिखा था.
ये तस्वीर उस घटना की यादगार तस्वीरों में से एक थी.
प्रोमथेप की मौत की वजह के बारे में अभी पता नहीं चल पाया है.
पुलिस का कहना है कि इस मौत को फिलहाल संदिग्धता भरी निगाहों से नहीं देखा जा रहा है.
थाईलैंड में छपी कुछ रिपोर्ट्स में ये कहा जा रहा है कि प्रोमथेप के सिर पर चोट लगी थी.
प्रोमथेप को रविवार को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था.
बीते साल अगस्त में प्रोमथेप ने इंस्टाग्राम पर ख़ुद के ब्रिटेन की फुटबॉल एकेडमी में दाखिला और स्कॉलरशिप मिलने की बात साझा की थी.
प्रोमथेप के दोस्त ख़ुश थे. प्रोमथेप ने तब लिखा था- आज मेरा सपना पूरा हो गया.
लेकिन छह महीने बाद ही ये पूरा होता सपना बीच में टूट गया और प्रोमथेप दुनिया छोड़कर चले गए. (bbc.com/hindi)
चीन की सड़कों पर फिर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. ये प्रदर्शन रिटायर हुए लोग कर रहे हैं.
प्रदर्शन मेडिकल इंश्योरेंस में की जाने वाली कटौती के ख़िलाफ़ हो रहे हैं.
ये प्रदर्शन वुहान में हुए, जहां कोरोना का पहला मामला सामने आया था.
प्रदर्शनकारी बुधवार को वुहान और डालियान में जुटे थे.
सात दिनों में ये दूसरी बार है, जब चीनी सरकार पर दबाव बनाने के लिए विरोध प्रदर्शन हुए हैं.
पहला प्रदर्शन 8 फ़रवरी को तब हुआ था जब प्रशासन की ओर से ये एलान किया गया था कि इलाज के लिए दिए जाने वाले पैसों में कटौती की जाएगी.
ये वो रक़म है जिसे रिटायर हुए लोग सरकार से अस्पताल ख़र्च का बिल लगाकर वापस लेते हैं.
ये प्रदर्शन ऐसे वक़्त में हो रहे हैं जब कुछ दिनों में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की सालाना बैठक होनी है.
सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही पोस्ट में देखा जा सकता है कि प्रदर्शनकारियों में बड़ी संख्या बुज़ुर्गों की है.
कुछ दिनों पहले चीन की सरकार के ख़िलाफ़ देश में जमकर प्रदर्शन हुए थे. ये प्रदर्शन कोविड आने के तीन साल बाद भी जारी लॉकडाउन को हटाने को लेकर हुए थे.
इन प्रदर्शनों के बाद चीन की सरकार ने लॉकडाउन के नियमों में कुछ ढील की थी.
हालांकि इस ढील के बाद चीन में कोरोना के मामले तेज़ी से बढ़ने की ख़बरें भी आई थीं. (bbc.com/hindi)
वाशिंगटन, 16 फरवरी। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी ने बुधवार को कहा कि पाकिस्तान के साथ दीर्घकालिक संबंध को अमेरिका महत्व देता है लेकिन दक्षिण एशियाई देश की मौजूदा घरेलू राजनीति पर कोई टिप्पणी नहीं की।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने अपने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से कहा, ‘‘हम पाकिस्तान के साथ अपने दीर्घकालिक सहयोग को महत्व देते हैं। हमने हमेशा एक समृद्ध एवं लोकतांत्रिक पाकिस्तान को अपने हितों के लिए महत्वपूर्ण माना है, जिसमें कोई बदलाव नहीं होने वाला है। हम किसी भी द्विपक्षीय संबंध में ‘प्रोपेगेंडा’, गलत, भ्रामक सूचना को नहीं आने देंगे, भले ही उनका अंत हो या न हो।’’
प्राइस ने कहा, ‘‘इसमें जाहिर तौर पर पाकिस्तान के साथ हमारे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंध भी शामिल हैं। जहां तक पाकिस्तान के अंदर विभिन्न राजनीतिक पक्षों की बात है तो एक राजनीतिक उम्मीदवार या पार्टी बनाम दूसरी में हमारी कोई भूमिका नहीं है। हम उनका समर्थन करते हैं, जैसा कि हम दुनिया भर में करते हैं, लोकतांत्रिक, संवैधानिक और कानूनी सिद्धांतों का शांतिपूर्ण समर्थन करते हैं।’’
उन्होंने हालांकि प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने को लेकर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के अपने बयान से पलटने पर कोई टिप्पणी नहीं की। उन्होंने कहा, ‘‘मैं आरोप-प्रत्यारोप पर कोई टिप्पणी नहीं करने जा रहा हूं। जब से ये गलत आरोप सामने आए हैं हमने इसके बारे में स्पष्ट तौर पर बात की है। हमने लगातार कहा है कि इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं है।’’
अमेरिकी नेतृत्व से मुलाकात के लिए एक पाकिस्तानी रक्षा प्रतिनिधिमंडल वाशिंगटन में है। प्राइस ने कहा, ‘‘मैं सार्वजनिक रूप से यह साझा करना चाहूंगा कि पाकिस्तान अमेरिका का एक महत्वपूर्ण सहयोगी है। यह कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है।’’ (भाषा)
(ललित के. झा)
कार्लेस्टन (साउथ कैरोलिना), 15 फरवरी। भारतीय मूल की रिपब्लिकन नेता निक्की हेली ने बुधवार को कहा कि अश्वेत-श्वेत दुनिया में बड़ी हुई एक गेहुआं रंग की लड़की के रूप में उन्होंने अमेरिका में सपनों को साकार होते हुए देखा है।
हेली ने 2024 में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी की औपचारिक घोषणा करने के बाद पहले सार्वजनिक भाषण में ये बात कही।
साउथ कैरोलिना के तटीय शहर कार्लेस्टन में एक कार्यक्रम के दौरान अपने उत्साहित समर्थकों को संबोधित करते हुए हेली ने कहा, “मुझे पहले से कहीं अधिक विश्वास है कि हम अपने समय में इस दृष्टिकोण को वास्तविक बना सकते हैं - क्योंकि मैंने अपने पूरे जीवन में यही देखा है। एक श्वेत-अश्वेत दुनिया में पली-बढ़ी गेहुआं लड़की के रूप में मैंने अमेरिका में सपनों को साकार होते हुए देखा है।”
हेली ने संयुक्त राष्ट्र में अपने अनुभव, भारतीय प्रवासियों की संतान के रूप में अपनी पृष्ठभूमि का जिक्र किया और जोर देकर कहा, “मैं जो कह रही हूं वह सच है, अमेरिका एक नस्लवादी देश नहीं है।”
निक्की हेली उर्फ निमरत निक्की रंधावा का जन्म 1972 में दक्षिण कैरोलिना के बामबर्ग में सिख माता-पिता अजीत सिंह रंधावा और राज कौर रंधावा के यहां हुआ था, जो 1960 के दशक में पंजाब से कनाडा गए और फिर अमेरिका आकर बस गए थे।
हेली एक सिख महिला के तौर पर बड़ी हुईं, लेकिन 1996 में माइकल हेली से शादी के बाद उन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया।
अमेरिका में अपने जीवन के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता ने बेहतर जीवन की तलाश में भारत छोड़ा। वे यहां बामबर्ग, साउथ कैरोलिना में बसे, जिसकी आबादी 2,500 थी। हमारा छोटा शहर हमसे प्यार करने लगा, लेकिन यह हमेशा आसान नहीं था। हमारा परिवार एकमात्र भारतीय परिवार था। कोई नहीं जानता था कि हम कौन थे, हम क्या थे, या हम यहां क्यों आए थे।”
उन्होंने कहा, “लेकिन मेरे माता-पिता जानते थे। और हर दिन, उन्होंने मुझे, मेरे भाइयों और मेरी बहन को याद दिलाया कि हमारे सबसे बुरे दिन में भी, हम अमेरिका में रहने के लिए धन्य हैं। वे तब सही थे - और वे अब भी सही हैं। मेरे माता-पिता एक ऐसे देश में आए थे जो ताकतवर बन रहा था और जिसका आत्मविश्वास बढ़ रहा था।” (भाषा)
तुर्की में बीती छह फरवरी की सुबह आए शक्तिशाली भूकंप के बाद कई देश इस मुश्किल घड़ी में उसका साथ देने के लिए आगे आए हैं.
इन देशों की लिस्ट में पाकिस्तान का नाम भी शामिल है.
भूकंप आने के बाद पाकिस्तान की सूचना प्रसारण मंत्री मरियम औरंगज़ेब ने प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ के तुर्की जाने की घोषणा की थी.
मरियम औरंगज़ेब ने कहा था कि पीएम शरीफ़ आठ फ़रवरी को तुर्की दौरे पर रवाना होंगे और वह भूकंप में मारे गए लोगों के प्रति संवेदना जताएंगे.
लेकिन शहबाज़ शरीफ़ को जिस दिन जाना था, उसी दिन पाकिस्तान की ओर से कहा गया कि प्रधानमंत्री का तुर्की दौरा स्थगित कर दिया गया है.
इस घोषणा के कुछ दिन बाद ही एक बार फिर शहबाज़ शरीफ़ के तुर्की दौरे पर जाने की ख़बर आई है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के मुताबिक़, पीएम शहबाज़ शरीफ़ 16 - 17 फ़रवरी को तुर्की दौरे पर रहेंगे.
इस यात्रा के दौरान शहबाज़ शरीफ़ तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन से भी मिलेंगे.
विदेश मंत्रालय के बयान के मुताबिक़, शरीफ़ इस मुश्किल वक़्त में तुर्की के साथ खड़े रहने की बात को दोहराएंगे.
इसके साथ ही पाकिस्तान तुर्की की हर संभव मदद करने की भी कोशिश करेगा.
अपने दौरे में शरीफ़ तुर्की के भूकंप प्रभावित इलाक़ों में भी जाएंगे. शरीफ़ ने छह फ़रवरी को रेचेप तैय्यप अर्दोआन से फ़ोन पर बात की थी और राहत और बचाव कार्य में मदद करने का आश्वासन दिया था.
पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि तुर्की और पाकिस्तान के रिश्ते गहरे हैं और दोनों मुल्क हर मुश्किल वक़्त में एक-दूसरे के साथ खड़े रहेंगे.
शरीफ़ का दौरा रद्द होने पर कैसी प्रतिक्रिया रही थी?
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित का कहना है कि जिस तरह से तुर्की का दौरा प्लान किया गया और जिस तरह से रद्द करना पड़ा वह पाकिस्तान के लिए शर्मनाक है.
बासित ने कहा था कि 'यह तुर्की दौरे का सही मौक़ा नहीं था. लेकिन पाकिस्तान ने ऐसा पहली बार नहीं किया है. तुर्की में पाकिस्तान के राजदूत रहे करामतुल्लाह गोरी ने एक बार बताया था कि 1999 में तुर्की में इसी तरह का भूकंप आया था. तब प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ थे.
तब नवाज़ शरीफ़ ने भी तुर्की जाकर संवेदना व्यक्त करने का फ़ैसला किया था. सरताज़ अज़ीज़ तब विदेश मंत्री थे और वह नवाज़ शरीफ़ को तुर्की जाने से मना कर रहे थे. उनका कहना था कि यह सही वक़्त नहीं है.' (bbc.com/hindi)