अंतरराष्ट्रीय
लाहौर, 13 नवंबर | पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा कि देश के बारे में महत्वपूर्ण फैसले लंदन में किए जा रहे हैं, जबकि उन्होंने नए सेना प्रमुख की नियुक्ति को लेकर कभी विवाद नहीं खड़ा किया। द न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, हकीकी आजादी मार्च में हिस्सा लेने वालों को वीडियो लिंक के जरिए संबोधित करते हुए इमरान ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ पिछले पांच दिनों से लंदन में हैं।
वह तय कर रहे हैं कि पाकिस्तान का सेना प्रमुख कौन बनेगा। गौर कीजिए कि इस देश के साथ क्या हो रहा है। हमारे नए सेना प्रमुख का फैसला एक दोषी और भगोड़ा और उसके बेटे और बेटी कर रहे हैं। उसके बगल में इशाक डार के बेटे बैठे हैं, जो देश छोड़कर भाग गए हैं। इशाक डार भी देश नहीं लौटा जब तक कि उसके आकाओं ने उसे आश्वासन नहीं दिया कि कोई उसे गिरफ्तार नहीं करेगा।
उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बेटे कहते हैं कि वे पाकिस्तान के नागरिक नहीं हैं क्योंकि वे अपने भ्रष्टाचार का जवाब नहीं दे सकते।
खान ने आगे कहा, "पनामा पेपर्स में मरियम नवाज के नाम पर चार महलों का खुलासा हुआ था। इस देश के चोर तय कर रहे हैं कि इस देश का भविष्य क्या होगा। दुनिया के किसी भी सभ्य समाज में यह कल्पना भी नहीं की जा सकती है कि देश के बाहर 30 साल से देश का पैसा चुरा रहे लोग अहम फैसले लेते हैं।"
इमरान ने कहा कि शहबाज शरीफ ने एक अखबार पर उनका अपमान करने का आरोप लगाया, लेकिन वह नहीं जानते कि ब्रिटिश अदालतें न्याय करती हैं।
पीटीआई के चीफ ने आगे बताया, "वो अब गहरे संकट में हैं। ब्रिटेन की अदालतों ने उन्हें तलब किया है। अब उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी कि उन्हें उन आरोपों का स्पष्टीकरण देना होगा, जो उन्होंने अखबार पर कुछ गंभीर आरोप लगाए हैं।" (आईएएनएस)
नयी दिल्ली, 13 नवंबर। वाणिज्य मंत्रालय ने चीन, थाईलैंड एवं वियतनाम से सोलर सेल के आयात में डंपिंग-रोधी जांच को भारतीय सौर उत्पाद विनिर्माता संघ (इस्मा) से मिले अनुरोध के बाद बंद कर दिया है।
वाणिज्य मंत्रालय के व्यापार समाधान महानिदेशालय (डीजीटीआर) ने 15 मई, 2021 को इन तीन देशों से आयात किए जा रहे सोलर सेल में डंपिंग के आरोपों की जांच शुरू की थी। लेकिन इस्मा से इस बारे में मिले अनुरोध को देखते हुए अब इस जांच को बंद किया जा रहा है।
डीजीटीआर ने एक अधिसूचना में इस फैसले की जानकारी देते हुए कहा कि चीन, थाईलैंड एवं वियतनाम से आयात किए जाने वाले सोलर सेल के खिलाफ जारी डंपिंग-रोधी जांच बंद की जा रही है।
डंपिंग-रोधी नियम, 1995 के तहत किसी खास परिस्थिति में जांच को बंद किए जाने का भी प्रावधान किया गया है। इसमें एक प्रावधान यह है कि अगर शिकायतकर्ता ही जांच को बंद करने का अनुरोध करता है तो उस जांच को रोक दिया जाएगा।
इस मामले में भी इस्मा की ही शिकायत पर डीजीटीआर ने जांच शुरू की थी और अब उसके अनुरोध को ही देखते हुए इसे बंद करने का फैसला किया गया है। (भाषा)
वाशिंगटन, 13 नवंबर। डेमोक्रेटिक पार्टी ने शनिवार को रिपब्लिकन पार्टी की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए सीनेट पर नियंत्रण बरकरार रखा। रिपब्लिकन पार्टी को हाल में हुए मध्यावधि चुनाव में बहुमत हासिल करने की उम्मीद थी।
प्रतिनिधि सभा के भविष्य को लेकर अनिश्चितता हालांकि अब भी बरकरार है क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी वहां अपने मामूली बहुमत को बरकरार करने की कोशिश में लगी है।
नेवाडा में सीनेटर कैथरीन कोर्टेज मैस्टो की जीत के साथ ही 100 सदस्यीय सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी के पास 50 सीटें हो गईं और उसका बहुमत बरकरार रहा। मैस्टो की जीत रिपब्लिकन पार्टी के लिए झटका है, जो उनकी हार को लेकर आश्वस्त थी।
सीनेट के नेता सदन चक शूमर ने शनिवार रात जीत हासिल करने का दावा किया।
उन्होंने ट्वीट किया, “सीनेट में डेमोक्रेटिक पार्टी को बहुमत।”
नेवाडा के परिणाम आने के बाद अब जॉर्जिया एकमात्र राज्य बचा है, जहां दोनों पार्टियों के बीच अब भी मुकाबला चल रहा है।
अमेरिकी कांग्रेस (संसद) के दो सदनों सीनेट और प्रतिनिधि सभा के लिए आठ नवंबर को मतदान हुआ था। (एपी)
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का कहना है कि पाकिस्तान से लगी पंजाब और जम्मू कश्मीर की सीमा पर ड्रोन से नशीले पदार्थों, हथियारों और गोला-बारूद भेजने के मामले 2022 में दोगुना से अधिक हो गए हैं.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़, बीएसएफ़ के महानिदेशक पंकज कुमार सिंह ने शनिवार को बताया कि ड्रोन फॉरेंसिक का अध्ययन करने के लिए दिल्ली में हाल ही में एक शिविर में स्टेट ऑफ़ आर्ट लेबोरेट्री बनाई गई है. इसके परिणाम काफ़ी उत्साहजनक रहे हैं.
उन्होंने कहा, "इसके ज़रिए सुरक्षा एजेंसियां सीमा पार से इस अवैध गतिविधि में शामिल अपराधियों का पता लगाने, ड्रोन के रास्ते और अपराधियों के ठिकानों का पता लगाने में भी सक्षम हैं."
उन्होंने यह भी कहा, "बीएसएफ काफ़ी समय से ड्रोन ख़तरे का सामना कर रहा है. पाकिस्तान कई तरह के ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है. ड्रोन कई तरह के काम कर सकता है, जिसके बारे में सब जानते हैं. लेकिन ड्रोन के इस तरह हो रहे इस्तेमाल ने हमारे लिए समस्या खड़ी कर दी है क्योंकि ड्रोन कहीं से भी आ सकते हैं और बहुत जल्दी ऊंची उड़ान भरते हैं."
बीएसएफ़ के मुताबिक़, 2020 में भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा पर क़रीब 79 ड्रोन के उड़ने का पता चला था. 2021 में यह संख्या बढ़कर 109 और 2022 में 266 हो गई है. 2022 में पंजाब में ड्रोन की 215 उड़ानों का पता चला. वहीं, जम्मू में ड्रोन की ऐसी 22 उड़ानों का पता चला.
बीएसएफ़ के महानिदेशक ने कहा कि फिलहाल इस समस्या का पुख्ता समाधान नहीं है.
उन्होंने कहा, "हम फॉरेंसिक लैब की मदद से इन ड्रोन के असली ठिकानों का पता लगा रहे हैं. इन ड्रोन्स में भी कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन की तरह चिप लगी होती है, जिससे काफ़ी जानकारी मिल सकती है."
उन्होंने बताया कि पंजाब पुलिस ने ड्रोन से हो रही नशीले पदार्थों और हथियारों की तस्करी को रोकने की बीएसएफ़ की मुहिम में बहुत अच्छा सहयोग किया है.
महानिदेशक ने कहा, "इस साल हमने अब तक 11 ड्रोन गिराए हैं. इस पर काम करने वाली टीमों को हम काफ़ी अच्छा इनाम भी दे रहे हैं. हम सीमा पर पेट्रोलिंग भी बढ़ा रहे हैं ताकि ड्रोन से आने वाला सामान कोई उठा न सके. हम ड्रोन फॉरेंसिक में अभी और गहन अध्ययन कर रहे हैं ताकि इन्हें भेजने और पाने वाले के बारे में जानकारी जुटाई जा सके."(bbc.com/hindi)
ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क ने कहा है कि हो सकता है कि अगले सप्ताह से ब्लू टिक सेवा फिर से शुरू हो जाए.
ट्विटर पर पॉल जमील नाम के एक यूज़र के एस सवाल का जवाब देते हुए मस्क ने लिखा कि शायद अगले सप्ताह के अंत तक ये सेवा फिर शुरू हो.
मस्क ने ये भी इशारा किया कि ट्विटर पर जल्द अलग-अलग तरह के इमोजी भी देखने को मिल सकते हैं.
ट्विटर ब्लू टिक सब्सक्रिप्शन सेवा में यूजर्स से 7.99 डॉलर प्रतिमाह का भुगतान मांगा जा रहा है.
क्यों लगाई गई थी रोक?
ट्विटर ने ब्लू टिक के लिए आठ डॉलर के सब्सक्रिप्शन को शुक्रवार को रोक दिया है. एलन मस्क के ट्विटर खरीदने के बाद ये पहली बार है जब बड़े बदलाव का एक फ़ैसला कंपनी ने वापस लिया है.
एलन मस्क ने ब्लू टिक के लिए भुगतान का नया नियम शुरू किया था लेकिन फिलहाल इसे रोक दिया गया है.
ब्लू टिक सब्सक्रिप्शन लागू होने के बाद से कई बड़े ब्रांड के फर्जी अकाउंट बन गए थे और उन्हें ब्लू टिक भी मिल गया था. इससे वो कंपनी के असली अकाउंट जैसे दिखने लगे थे.
ऐसे ही एक मामले में एली लिलि नाम की कंपनी का एक फर्जी अकाउंट बनाया गया था जिसे ट्वीट किया गया, 'इंसुलिन मुफ़्त'.
इस पर ट्विटर ने अब तक कोई बयान नहीं दिया है. लेकिन कंपनी एली लिलि ने ट्वीट किया, "हम उनसे माफ़ी मांगते हैं जिन्हें फर्जी लिलि अकाउंट से ये गलत संदेश मिला है."
इस घटना से ये चिंताएं बढ़ गई हैं कि ट्विटर से गलत सूचनाएं फैलाने के मामले बढ़ सकते हैं. इस घटना के बाद शुक्रवार को कंपनी के शेयर 4 प्रतिशत तक गिर गए.
एलन मस्क ने पिछले महीने 44 अरब डॉलर में ट्विटर को खरीदा था. इसके बाद से उन्होंने ट्विटर में कई बदलाव किए हैं.
ट्विटर से करीब 3700 लोगों को नौकरी से निकाल दिया गया था जो कि कंपनी के आधे स्टाफ के बराबर था. (bbc.com/hindi)
डलास (अमेरिका), 13 नवंबर। अमेरिका के डलास में शनिवार को हवाई करतब के दौरान दो सैन्य विमान आपस में टकराकर जमीन पर गिर गए, जिसके बाद उनमें आग लग गई। यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि विमान में कितने लोग सवार थे और न ही हताहतों के बारे में कोई जानकारी मिली है।
पूर्व सैनिक दिवस के मौके पर करतब का आयोजन करने वाली कंपनी और दुर्घटनाग्रस्त विमान की मालिक ‘कॉमेमोरेटिव एयर फोर्स’ की प्रवक्ता लियाह ब्लॉक ने ‘एबीसी’ न्यूज को बताया कि उनका मानना है कि ‘बी-17 फ्लाइंग फोर्ट्रेस’ बमवर्षक विमान में चालक दल के पांच सदस्य और पी-63 किंग कोबरा लड़ाकू विमान में एक व्यक्ति सवार था।
घटना दोपहर करीब एक बजकर 20 मिनट पर शहर के मुख्य इलाके से लगभग 16 किलोमीटर दूर डलास एक्जिक्यूटिव एयरपोर्ट पर हुई। दुर्घटना के बाद आपात सहायता कर्मी घटनास्थल पर पहुंच गए।
एंथनी मोनटोया नामक व्यक्ति ने विमानों को टकराते हुए देखा।
उन्होंने बताया, “मैं वहां खड़ा हुआ था। मैं पूरी तरह हैरान रह गया और कुछ समझ नहीं पाया। आसपास के सभी लोग हांफ रहे थे। सब फूट-फूट कर रो रहे थे। सब सदमे में थे।”
डलास के मेयर एरिक जॉनसन ने कहा कि राष्ट्रीय परिवहन सुरक्षा बोर्ड ने हवाई अड्डे को अपने नियंत्रण में ले लिया है। स्थानीय पुलिस और अग्निशमन विभाग सहायता प्रदान कर रहे हैं। (एपी)
यूक्रेन, 12 नवंबर । खेरसोन से रूसी सैनिकों के पीछे हटने के बाद वहां यूक्रेनी सैनिकों का ज़ोरशोर से स्वागत किया गया.
वीडियो में देखा जा सकता है कि स्थानीय लोग झंडों के साथ सड़कों पर उतरे और सैनिकों का स्वागत किया. कुछ लोग देशभक्ति गीत गाते भी देखे गए.
यूक्रेन के विदेश मंत्री डिमित्रो कुलेबा जो आसियान समिट के लिए कंबोडिया में हैं, उन्होंने कहा है कि खेरसोन से रूस का पीछे हटना दिखा रहा है कि वो इस जंग में हार जाएंगे.
उन्होंने कहा, “हम एक और जंग जीत गए हैं, हम आपको याद दिलाना चाहते हैं कि जंग की शुरुआत के बाद पहले हमने कीएव जीता, फिर उत्तर-पूर्व से रूस को पीछे हटने के लिए मजबूर किया, खारकीएव में जीत हासिल की और अब खेरसोन में उनकी हार हुई है.”
उन्होंने कहा, “हम जंग जीत रहे हैं लेकिन लड़ाई जारी रहेगी. यूक्रेन में आत्मविश्वास भरा हुआ है, हमारी सेना हमारे इलाकों को फिर से हासिल करेगी.” (bbc.com/hindi)
गुरुवार को एक ईरानी जनरल ने हाइपरसोनिक मिसाइल बनाने का दावा कर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के कान खड़े कर दिये हैं. ईरान का दावा है कि दुनिया का कोई भी एयर डिफेंस सिस्टम इस मिसाइल को पकड़ नहीं सकता.
एक ईरानी जनरल का दावा है कि उनके देश ने ऐसी हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित कर ली है जो किसी भी एयर डिफेंस सिस्टम को भेद सकती है. हाइपरसोनिक मिसाइल पारंपरिक मिसाइलों की तरह ही परमाणु हथियार ढोने में सक्षम होती हैं. ये मिसाइल आवाज की गति से पांच गुना ज्यादा रफ्तार से उड़ान भर सकती हैं.
एयर डिफेंस सिस्टम नहीं पकड़ पायेगा
इस्लामिक रेवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की एयरोस्पेस यूनिट के कमांडर जनरल अमिराली हाजीजादेह का कहना है, "यह हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल एयर डिफेंस सिस्टम के घेरे को तोड़ने के लिए बनाई गई है." ईरान की समाचार एजेंसी फार्स ने जनरल का बयान छापा है. हाजीजादेह के मुताबिक, "यह सभी एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को तोड़ने में सक्षम है." इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि इसे पकड़ने की क्षमता रखने वाला सिस्टम विकसित करने में दशकों लग जाएंगे.
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा आयोग (आईएईए) के प्रमुख रफायल ग्रोसी ने मिस्र में संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में इस घोषणा पर चिंता जताई है. समाचार एजेंसी एएफपी से ग्रोसी ने कहा, "हम जानते हैं कि इस तरह की घोषणाएं ध्यान बढ़ाती हैं, चिंता बढ़ाती हैं, लोगों का ध्यान ईरान के परमाणु कार्यक्रम की ओर बढ़ाती हैं." हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वो ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चल रही बातचीत पर इसका "कोई असर नही होने" की उम्मीद कर रहे हैं.
यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब बीते हफ्ते ही ईरान ने माना है कि उसने रूस को ड्रोन दिये हैं. हालांकि उसका यह भी कहना है कि उसने ये ड्रोन यूक्रेन की लड़ाई शुरू होने से पहले दिये. बीते महीने वॉशिंगटन पोस्ट ने खबर दी थी कि ईरान रूस में मिसाइलें भेजने की तैयारी कर रहा है. ईरान ने इस रिपोर्ट को खारिज करते हुए इसे "पूरी तरह गलत" बताया है. यह सारी घटनाएं तब हो रही हैं जब ईरान महसा अमीनी की हिरासत में मौत के बाद विरोध प्रदर्शनों की आंच झेल रहा है.
हाइपरसोनिक मिसाइल
बैलिस्टिक मिसाइलों से उलट हाइपरसोनिक मिसाइलें वातावरण में कम ऊंचाई पर उड़ान भरती हैं और इसलिए अपने लक्ष्य पर जल्दी पहुंच जाती हैं. उत्तर कोरिया ने पिछले साल हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण कर इसकी तकनीक हासिल करने के लिए होड़ को लेकर दुनिया की चिंता बढ़ा थी. फिलहाल हाइपरसोनिक मिसाइलों के मामले में रूस सबसे आगे है और उसके पीछे चीन और अमेरिका हैं.
हाइपरसोनिक मिसाइल की चाल को उड़ान के दौरान नियंत्रित किया जा सकता है इस वजह से इसे पकड़ पाना और इससे अपनी सुरक्षा कर पाना कठिन होता है. अमेरिका समेत दूसरे देशों ने क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइलों से अपनी रक्षा के लिए सिस्टम तैयार किये हैं लेकिन हाइपरसोनिक मिसाइल को पकड़ने या गिराने को लेकर अब भी कोई सिस्टम नहीं है.
प्रतिबंध के दौर में हथियार
ईरान और रूस दोनों फिलहाल बहुत कठोर प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं. ईरान पर ये प्रतिबंध 2015 के परमाणु करार से अमेरिका के बाहर होने और रूस पर फरवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद लगे. इन दोनों देशों ने प्रतिबंध लगने के बाद प्रमुख क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाया है जिससे कि अपनी अर्थव्यवस्थाओं को संभाल सकें.
बुधवार को रूस के सुरक्षा प्रमुख निकोलाई पात्रुशेव ईरान में थे. इस दौरान उनकी ईरान के साथ आतंकवाद और चरमपंथ के खिलाफ जंग के अलावा पश्चिमी देशों के दखल से जूझने पर भी बातचीत हुई.
परमाणु करार पर बातचीत
मिसाइल बनाने की घोषणा की पृष्ठभूमि में कहीं ना कहीं 2015 के परमाणु करार को दोबारा लागू करने पर ठप्प हुई बातचीत को शुरू करने की मंशा है. ईरान ने यह करार ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, जर्मनी, रूस और अमेरिका के साथ की थी. इसके तहत उसे प्रतिबंधों में छूट मिली थी और बदले में उसने गारंटी दी थी कि वह परमाणु हथियार नहीं बनायेगा. ईरान हमेशा से हथियार बनाने के आरोपों से इनकार करता रहा है.
2018 में डॉनल्ड ट्रंप के करार से बाहर आने के बारे में किये एकतरफा फैसले के बाद यह करार बेकार हो गया. आईएईए ने गुरुवार को बताया कि तीन ठिकानों पर अघोषित परमाणु पदार्थों को लेकर ईरान से बातचीत में "कोई प्रगति" नहीं हुई है. करार पर बातचीत आगे ले जाने में यह मुद्दा एक प्रमुख बाधा बना हुआ है. 2015 के करार में यूरेनियम संवर्धन की जो सीमा तय की गई थी ईरान उसके पार जा कर संवर्धन कर रहा है.
हाइपरसोनिक मिसाइल विकसित करने की घोषणा से पहले 5 नवंबर को ईरान ने एक रॉकेट का परीक्षण भी किया जो अंतरिक्ष में उपग्रह ले कर जा सकता है. अमेरिका बार बार इस पर चिंता जताता है कि इस तरह के रॉकेट की तकनीक ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल तकनीक को मजबूत कर सकती है. इनकी मदद से वह परमाणु हथियार ढोने वाले मिसाइल बना सकता है. मार्च में अमेरिका ने मिसाइल से जुड़ी ईरान की गतिविधियों पर रोक लगाई थी.
एनआर/वीके (एएफपी)
‘महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा’ नामक एक रूसी कक्षा में स्कूल के कुछ अध्यापक यूक्रेन के आक्रमण का बचाव कर रहे हैं. विरोध करने वाले छात्रों को भारी दबाव का सामना करना पड़ता है.
डॉयचे वैले पर सर्गेई सतानोव्स्की की रिपोर्ट-
पिछले दो महीनों से रूस के स्कूलों में रूसी ध्वज को उठाना अनिवार्य कर दिया गया है. साथ ही रूसी स्कूलों में हफ्ते की शुरुआत एक विशेष कक्षा से हो रही है जिसका नाम है- "महत्वपूर्ण बातों पर परिचर्चा”. ये महत्वपूर्ण बातें क्या हैं, इस बारे में निर्देश शिक्षा मंत्रालय से मिलता है.
इन कक्षाओं में अक्सर कुछ सरकारी छुट्टियों- मसलन, मातृ दिवस, पितृ दिवस इत्यादि के महत्व पर बातचीत होती है लेकिन शिक्षक दिवस पर छात्रों को विशेष रूप से यह बताया गया कि रूसी सेनाओं द्वारा यूक्रेनी क्षेत्र पर कब्जा करना एक ‘ऐतिहासिक न्याय' क्यों है. और इसका कारण बताया गया कि यह मूल रूप से रूसी क्षेत्र का ही हिस्सा है.
स्कूली बच्चे अक्सर यूक्रेन के बारे में सुनते हैं. मार्क (बदला हुआ नाम) नाम का एक छात्र सेंट पीटर्सबर्ग के एक स्कूल में पढ़ता है.
आतंकवाद पर चिंता जताते हुए वह कहता है कि उसे स्कूल के डायरेक्टर और अध्यापकों ने बताया है कि यूक्रेन लगातार रूस पर हमले कर रहा था, "दरअसल, हमें यह सिखाया जा रहा है कि किसी आतंकी हमले के वक्त हमें कैसे अपना बचाव करना है.”
कालिनिनग्राड के एक स्कूल में हाईस्कूल के एक छात्र के मुताबिक, उसके प्रधानाचार्य ने पिछले महीने देशभक्ति की कक्षा में बताया, "रूस पर लगातार कोई न कोई हमला कर रहा है और हर कोई हमारे देश को बर्बाद करना चाहता है.”
कक्षा में अनुपस्थित रहने पर पूछताछ
जो मां-बाप अपने बच्चों को इन कक्षाओं में नहीं भेजते, उन्हें मुसीबत का सामना करना पड़ सकता है. युवा कल्याण विभाग और एक मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञ के मुताबिक मॉस्को में दस साल की एक बच्ची वार्या शोलिकर ने ऐसी ही एक कक्षा छोड़ दी थी या उससे छूट गई तो उसके परिजनों को काफी परेशानी हुई.
स्कूल में एक कमीशन ने उनकी बच्ची के व्यवहार के बारे में चर्चा की, उसकी मां येलेना शोलिकर को बुलाया गया. इस कमीशन में स्कूल प्रबंधन के एक प्रतिनिधि, एक मनोवैज्ञानिक और शायद एक घरेलू खुफिया एजेंसी एफएसबी के एक प्रतिनिधि शामिल थे और उनके मुताबिक, वे लोग वार्या के इस कक्षा में अनुपस्थित होने को लेकर बेहद चिंतित थे.
उन लोगों ने इस बात को भी इंगित किया कि लड़की ने वॉट्स ऐप पर संत जेवलिन का एक मेमे भी शेयर किया था जिसमें एक संत की आकृति को एक एंटी टैंक सिस्टम को पकड़े हुए दिखाया गया था जो कि यूक्रेन में रूसी सैनिकों के खिलाफ यूक्रेन के राष्ट्रीय रंग नीले और पीले के सामने इस्तेमाल किया जा रहा है.
स्कूल में पुलिस की मदद से कई लोगों से पूछताछ और जानकारी के बाद अफसरों ने लड़की के परिवार का घर ढूंढ़ निकाला. अपनी रिपोर्ट में उन्होंने घर के भीतर की सजावट में ‘संदिग्ध रंग' पाए जाने का जिक्र किया. उनका कहना था कि येलेना शोलिकर के लैपटॉप में चरमपंथी चैनलों को भी देखा गया था और वो इन सब बातों का जवाब देने में असमर्थ थी.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया, "इस अपार्टमेंट में नीले और पीले रंग भी थे जिनके बारे में येलेना शोलिकर का कहना था कि ये रंग उसे बहुत पसंद हैं.”
निरीक्षकों ने निष्कर्ष निकाला कि येलेना शोलिकर "अपने राजनीतिक विचारों को अपनी बेटी पर थोपती हैं और बेटी सोशल मीडिया पर जो कुछ भी लिखती है, उस पर उसके मां-बाप का कोई नियंत्रण नहीं रहता.”
निरीक्षकों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि संत जेवलिन का मेमे यह दिखाता है कि दस साल की लड़की "को अपनी मातृभूमि के इतिहास के बारे में कुछ भी पता नहीं है और न ही उसे अपने देश और दुनिया के राजनीतिक रुझान के बारे में कुछ मालूम है.” इन लोगों ने लड़की और उसकी मां दोनों को ही मनोवैज्ञानिक से सलाह लेने का आदेश दिया.
शिक्षकों के लिए कठिन विकल्प
देशभक्ति का पाठ पढ़ाया जाना सिर्फ बच्चों के मां-बाप के लिए ही मुश्किलों भरा फैसला है बल्कि शिक्षकों के लिए भी है. रशियन एलायंस ऑफ टीचर्स के चेयरमैन डेनील केन कहते हैं, "सोशल मीडिया में कुछ लिखने, बयान देने या फिर रैलियों में भाग लेने के मामलों में अध्यापकों को परेशान करने की अलग-अलग घटनाएं पहले भी हो रही थीं लेकिन अब इसे संस्थागत कर दिया गया है.”
केन आगे कहते हैं कि प्रोपेगेंडा की बातें अब थोपी जाने लगी हैं, लोगों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वो तय करें कि इस अभियान का हिस्सा बनेंगे या नहीं. केन को भी सितंबर महीने में अधिकारियों ने "विदेशी एजेंट” घोषित कर दिया था.
अलायंस ऑफ टीचर्स अदालत में तातन्या शेरवेंको के मामले की पैरवी कर रहा है. मॉस्को में अध्यापकों ने "महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा” करने से इनकार कर दिया और डोज टीवी चैनल पर इस बारे में एक इंटरव्यू भी दिया. यह चैनल अब लात्विया से प्रसारित होता है लेकिन इसके कार्यक्रम रूस में रहने वाले या रूस से बाहर रह रहे दर्शकों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं.
तातन्या शेरवेंको को स्कूल प्रशासन ने काफी प्रताड़ित किया था और उसी के खिलाफ वो कोर्ट में मुकदमा लड़ रही हैं. हालांकि शेरवेंको अभी भी स्कूल में पढ़ा रही हैं लेकिन डेनील केन को आशंका है कि उन्हें निकाल दिया जाएगा.
‘विचारधारा से प्रभावित शैक्षणिक कार्य'
रशियन रिपब्लिक ऑफ तातरस्तान के एक बड़े शहर नबेरझाईन चेल्नी स्थित एक स्कूल में इतिहास के अध्यापक राउशेन वेलिउलिन और स्कूल प्रबंधन के बीच लंबा विवाद चला और आखिरकार विवाद की समाप्ति तब हुई जब वेलिउलिन को नौकरी से निकाल दिया गया.
अगस्त महीने में वेलिउलिन ने "स्पेसिफिक्स ऑफ आइडियोलॉजिकल एजूकेशनल वर्क विद चिल्ड्रेन एंड एजूकेटर्स” विषय पर अध्यापकों की एक बैठक में हिस्सा लिया था. इस बैठक में "महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा” भी शामिल थी.
वेलिउलिन ने संविधान के अनुच्छेद 13 का हवाला देते हुए उनके काम में सरकारी हस्तक्षेपकी आलोचना की थी. यह अनुच्छेद जबरन किसी विचारधारा को थोपने से रोकता है. वेलिउलिन को नौकरी से निकाल दिया गया. अदालत में वो यह साबित करने में सक्षम थे कि उनकी बर्खास्तगी गैरकानूनी है और बतौर टीचर उन्हें दोबारा बहाल किया जाना चाहिए.
उन्होंने फैसले का इंतजार नहीं किया. उन्होंने कहा कि स्कूल वापसी के लिए समझौते करने को उनके जमीर ने गवाही नहीं दी. उन्हें धमकी दी गई कि वो अपने दफ्तर में कैमरा लगवाएं ताकि उनके बयानों की निगरानी की जा सके. उनसे कहा गया कि उन्हें नौकरी करनी है तो "महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा” का नेतृत्व करना होगा.
वेलिउलिन ने गिरगिस्तान जाने का फैसला कर लिया. वो कहते हैं, "युद्ध के खिलाफ कुछ भी कहना प्रतिबंधित है. मेरे पास बहुत बच्चे हैं और मुझे अपना काम जिम्मेदारी से करना है.” (dw.com)
दुनिया के मंच पर खाड़ी देश कतर इस तरह से कभी सामने नहीं आया. ऊर्जा का धनी कतर इस महीने के आखिर में दुनिया भर के खेलप्रेमियों की नजर पर होगा जब फुटबॉल वर्ल्डकप का मुकाबला इसकी जमीन पर खेला जायेगा.
हाथ के अंगूठे जैसी आकृति वाला प्रायद्वीपीय देश कतर फारस की खाड़ी में मौजूद है. समुद्र में मौजूद प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार के दम पर यह दुनिया में प्रति नागरिक धन के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल हो गया है.
इस पैसे ने इसे अरब जगत के सबसे जाने पहचाने सेटेलाइट न्यूज चैनल अल जजीरा को खड़ा करने के साथ ही, अमेरिकी सैनिकों के एक बड़े सैन्य अड्डे के निर्माण और पश्चिम के एक प्रमुख मध्यस्थ की अहम भूमिका हासिल करने में मदद दी है जिसका इस्तेमाल तालिबान के साथ बातचीत में भी हो रहा है.
दुनिया में कतर का स्थान
अरब प्रायद्वीप कतर की जमीनी सीमा सऊदी अरब से लगती है इसके साथ ही यह द्वीपीय देश बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात के भी करीब है. फारस की खाड़ी में इसकी सीमा ऊरान से लगती है और यहीं पर प्राकृतिक गैस के इसके विशाल भंडार हैं. कतर अमेरिका के डेलावेयर राज्य से आकार में दोगुना है. करीब 29 लाख लोगों की इसकी आबादी का ज्यादातर हिस्सा पूर्वी तट पर मौजूद राजधानी दोहा के आसपास ही रहता है.
बुनियादी रूप से कतर समतल है और गर्मियों में इसका तापमान 40 डिग्री के ऊपर चला जाता है और तब ह्यूमिडिटी भी काफी ज्यादा रहती है.
कतर की सरकार
कतर में एक निरंकुश सरकार है जो यहां के अमीर शेख तमिम बिन हमाद अल थानी के मुताबिक चलती है. 42 साल के अमीर ने जून 2013 में सरकार की बागडोर संभाली थी जब उनके पिता ने गद्दी छोड़ दी थी. देश में 45 सदस्यों वाली एक सलाहाकर परिषद भी है लेकिन असल ताकत अमीर के पास ही है.
खाड़ी के दूसरे देशों की तरह ही कतर में भी राजनीतिक दलों पर पाबंदी है. यूनियन बनाने या फिर हड़ताल का अधिकार अत्यधिक सीमित है. देश में कोई स्वतंत्र मानवाधिकार संगठन भी नहीं है. आबादी का महज 10 फीसदी हिस्सा ही यहां का मूल नागरिक है और इन्हें पालने से लेकर कब्र तक सारी सरकारी सुविधायें मिलती हैं. कतर की नागरिकता मिलना दुर्लभ है.
कतर का इतिहास
अल थानी का परिवार 1847 से कतर पर राज कर रहा है. हालांकि यह पहले ओटोमन साम्राज्य और फिर ब्रिटिश राज के अधीन रहा था. कतर 1971 में आजाद हुआ जब ब्रिटेन ने इस इलाके को अलविदा कहा. कतर से तेल का निर्यात दूसरे विश्वयुद्ध केबाद शुरू हुआ. 1997 में कतर ने दुनिया को लिक्विफाइड नेचुरल गैस भेजने की शुरूआत की.
गैस बेचने से मिले पैसे ने कतर के क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं को हवा दी. उसने अल जजीरा सेटेलाइट न्यूज नेटवर्क बनाया जिससे मास मीडिया में अरब धारणाओं को प्रचारित करने में मदद मिली. खासतौर से 2011 के अरब वसंत के प्रदर्शनों के दौरान. कतर ने कतर एयरवेज को भी खड़ा किया जो पूरब और पश्चिम को जोड़ने वाली दुनिया की अच्छी एयरलाइनों में शामिल है.
अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कतर
कतर सु्न्नी इस्लाम की अत्यंत रुढ़िवादी धारा का पालन करता है जिसे वहाबी कहा जाता है. हालांकि पड़ोसी देश सऊदी अरब से उलट यहां विदेशी लोगों को शराब पीने की छूट है. कतर ने 2011 में अरब वसंत के दौरान इस्लामी ताकतों का समर्थन किया इसमें मिस्र का मुस्लिम ब्रदरहुड और मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी भी शामिल थे. इनके अलावा सीरिया के राष्ट्रपति बशर अहमद के विरोधियों को कतर ने समर्थन दिया. अल जजीरा अल कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन के बयानों को चलाने के लिए काफी मशहूर हुआ.
कतर ने चरमपंथी गुट हमास के साथ ही मध्यस्थ की भूमिका निभाई है और अमेरिका की तालिबान के साथ बातचीत में भी जिसका नतीजा 2021 में अमेरिका की अफगानिस्तान से वापसी के रूप में सामने आया. बहरीन, मिस्र, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने कई सालों तक कतर का बहिष्कार किया और इसके पीछे इस्लामी ताकतों का समर्थन करना ही कुछ हद तक कारण था. यह बहिष्कार तब खत्म हुआ जब अमेरिका में जो बाइडेन राष्ट्रपति का चुनाव जीत गये.
कतर का सैन्य महत्व
1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान पश्चिमी देशों के सैनिकों को ठिकाना बनाने की अनुमति दे कर कतर नरे अल उदैद एयर बेस पर एक अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया. अमेरिकी सैनिकों ने 11 सितंबर के हमलों और उसके नतीजे में अफगानिस्तान पर हमले के बाद खुफिया तौर पर इस सैनिक अड्डे का इस्तेमाल शुरू किया. इस सैनिक अड्डे के अमेरिका इस्तेमाल का पता दुनिया को मार्च 2022 में चला जब उप राष्ट्रपति डिक चेनी मध्यपूर्व के दौरे पर आये.
इसके बाद अमेरिकी सेना के सेंट्रल कमांड का मुख्यालय 2003 में अल उदैद में चला आया. इशके बाद अफगानिस्तान, इराक और सीरिया में यहीं से एयर ऑपरेशन चले. इस्लामिक स्टेट के खिलाफ जंग में भी इसने अहम भूमिका निभाई और आज भी यहां 8000 से ज्यादा अमेरिकी सैनिक मौजूद हैं. अमेरिका के अलावा यहां तुर्की की सेना भी तैनात है.
एनआर/ओएसजे (एपी)
निश्चित तौर पर ऐसा कहना संभव नहीं है कि किसी परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना का उसके आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है, फिर भी विशेषज्ञों ने इस बारे में कुछ आशंकाएं जताई हैं.
ऐसे समय में जब यूक्रेन युद्ध के दौरान परमाणु हमले की धमकी की चर्चा हो रही है, तो लोगों के मन में मुख्य रूप से दो आशंकाएं उभरती हैं. पहली यह कि अगर यूक्रेन के परमाणु संयंत्रों पर हमला हो गया तो क्या होगा? और दूसरी यह कि यदि युद्ध के दौरान परमाणु हथियारों का इस्तेमाल हुआ तो क्या होगा?
इस लेख के लिए हमने विशेषज्ञों से इस बारे में बात की कि फुकुशिमा और चेर्नोबिल संयंत्रों में हुई दुर्घटनाओं ने आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य को किस तरह से प्रभावित किया. साथ ही उनसे यह बताने को कहा गया कि ऐसी दुर्घटनाएं जापोरिझिया संयंत्र के खतरे के बारे में हमारी मौजूदा समझ को विकसित करने में कितनी मददगार हो सकती हैं.
इस श्रृंखला के अगले लेख में हम हिरोशिमा और नागासाकी में परमाणु बम धमाके से लोगों के स्वास्थ्य पर हुए प्रभाव की जानकारी देंगे. साथ ही, यह भी जानने की कोशिश होगी कि यदि आज के समय में युद्ध में परमाणु हथियारों का प्रयोग होता है तो उसका क्या असर होगा.
कब्जे में जापोरिझिया
यूक्रेन का जापोरिझिया परमाणु संयंत्र देश की दक्षिणी सीमा से ज्यादा दूर नहीं है. इस साल इसने युद्ध के दौरान भी चलते रहने का रिकॉर्ड बनाया और ऐसा करने वाला यह पहला परमाणु संयंत्र बन गया.
इस साल मार्च में जब से रूसी सेनाओं ने इस संयंत्र पर कब्जा किया है, तभी से पूरे यूरोप में लोग इसकी तुलना चेर्नोबिल परमाणु संयंत्रसे कर रहे हैं कि अगर 1986 की तरह यहां भी ऐसी कोई दुर्घटना होती है तो क्या होगा. चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में 1986 में हुई दुर्घटना परमाणु ऊर्जा के इतिहास की सबसे खौफनाक दुर्घटना है. इस हादसे के बाद चेर्नोबिल संयंत्र से निकले विकिरणों ने पूरे यूरोप को प्रभावित किया और इस इलाके में मनुष्यों के साथ-साथ पौधों और जानवरों को भी नुकसान पहुंचाया.
इस दुर्घटना के तीन महीने के भीतर 30 से ज्यादा कर्मचारियों की मौत हो गई थी. साल 2003 में इस हादसे से स्वास्थ्य और पर्यावरण पर आए प्रभाव के अध्ययन के लिए संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों का एक समूह बना चेर्नोबिल फोरम. 2006 में फोरम ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके मुताबिक इसकी वजह से आगे चलकर करीब चार हजार लोग कैंसर से मर गए. हालांकि इस आंकड़े को लेकर कई तरह के सवाल भी उठे.
चेर्नोबिल के स्वास्थ्य प्रभावों पर बहस
कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि आपदा के असली प्रभावों को उस वक्त सोवियत संघ के अधिकारियों ने छिपा लिया था ताकि उसकी भयावहता को कम करके दिखाया जा सके. इन विशेषज्ञों में मेसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की प्रोफेसर केट ब्राउन भी हैं. उन्होंने 1986 में आपदा के बाद से ही यूक्रेन और आस-पास के लोगों के स्वास्थ्य पर इस दुर्घटना से निकले विकिरण के प्रभावों का काफी गहन अध्ययन किया है.
साल 2006 में ग्रीनपीस में प्रकाशित एक रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया था कि इस दुर्घटना में मरने वालों की संख्या 90 हजार के करीब थी जो कि चेर्नोबिल फोरम रिपोर्ट के अनुमानों से करीब 23 गुना ज्यादा थी.
अमेरिका स्थित वैज्ञानिकों की एक संस्था न्यूक्लियर पॉवर सेफ्टी के निदेशक और भौतिकविज्ञानी एडविन लिमैन कहते हैं कि ‘मुझे नहीं लगता कि चेर्नोबिल फोरम रिपोर्ट आधिकारिक रिपोर्ट है.'
लिमैन कहते हैं कि फोरम की रिपोर्ट सिर्फ कैंसर से मरने वाले लोगों की संख्या पर आधारित है, वो भी पूर्व सोवियत संघ में. इस रिपोर्ट में यूरोप के दूसरे हिस्सों और उत्तरी गोलार्ध के अन्य इलाकों की आबादी को नजरअंदाज किया गया है. लिमैन कहते हैं कि संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों की ओर से चेर्नोबिल दुर्घटना के स्वास्थ्य प्रभावों पर वास्तविक रिपोर्ट 1988 में प्रकाशित हुई थी जिसमें इसके वैश्विक प्रभाव का अध्ययन किया गया था और इसके मुताबिक, रेडियेशन की वजह से हुए कैंसर के कारण करीब तीस हजार लोगों की जान गई.
वो कहते हैं, "मूल मुद्दा यह है कि कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि विकिरण के निम्न स्तरीय एक्सपोजर कैंसर का कारण बनते हैं या नहीं, और दुनिया भर में विशेषज्ञों की सहमति इस बात पर है कि हां, ऐसा होता है. चेर्नोबिल फोरम की सोच इससे अलग है.”
वो कहते हैं कि ये निष्कर्ष दरअसल राजनीतिक दस्तावेज थे जिनमें बहुत ही सावधानीपूर्वक दुर्घटना के प्रभावों को कम से कम करके दिखाया गया था.
चेर्नोबिल दुर्घटना में बचने वाले लोगों पर किए गए अध्ययन बताते हैं कि ऐसे लोगों में थाइरॉयड कैंसर के मामले ज्यादा थे. दुर्घटना के कई दशक बाद, शोधकर्ताओं ने पूर्व सोवियत संघ के युवा लोगों में इसकी दर का पता लगाया जो अनुमान से तीन गुना ज्यादा थी. अध्ययन के मुताबिक, इस बढ़ोत्तरी के पीछे दूषित दूध का सेवन है.
लिमैन कहते हैं कि हालांकि कैंसर के खतरे से संबंधित कई विस्तृत अध्ययन साल 2000 के शुरुआती महीनों में प्रकाशित हुए थे जबकि चेर्नोबिल आपदा की वजह से कैंसर के बहुत से मामले तब तक दिखने शुरू नहीं हुए थे. बीस साल बाद, इन रिपोर्टों पर आगे कोई अध्ययन नहीं हुआ.
आपदा के स्वास्थ्य प्रभावों से संबंधित रिपोर्टों में दुर्घटना के आस-पास के इलाकों में आपदा की वजह से अवसाद और चिंता से संबंधित परेशानियों को भी रेखांकित किया गया है.
फुकुशिमा से तुलना कहीं बेहतर है
लिमैन के मुताबिक, जापोरिझिया परमाणु संयंत्र में किसी भी संभावित दुर्घटना से होने वाला नुकसान साल 2011 में जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में होने वाले नुकसान जैसा हो सकता है. उनके मुताबिक, "चेर्नोबिल दुर्घटना के जो परिणाम हुए थे, वैसे परिणामों की आशंका जापोरिझिया संयंत्र में कम है क्योंकि ये हल्के पानी के रिएक्टर हैं जो कि जर्मनी और अन्य पश्चिमी देशों के परमाणु संयंत्रों के रिएक्टरों की तरह हैं.”
फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना किसी परमाणु संयंत्र में एकमात्र आपदा है जिसे अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी यानी आईएईए के इंटरनेशनल न्यूक्लियर इवेंट स्केल पर सात अंक दिए गए हैं. यह आपदा सुनामी और भूकंप की वजह से आई थी जिनके चलते संयंत्र में बिजली चली गई, तीन परमाणु संयंत्र नष्ट हो गए, हाइड्रोजन विस्फोट हुआ और बहुत ज्यादा विकिरण फैल गया.
आधिकारिक रिपोर्टों के मुताबिक, हालांकि सुनामी और भूकंप से कई लोगों की जान गई लेकिन परमाणु संयंत्र की वजह से सीधे किसी की भी मौत नहीं हुई. हां, विकिरण की वजह से लोग बीमार जरूर हुए लेकिन इसका सबसे बड़ा स्वास्थ्य प्रभाव लोगों पर मनोवैज्ञानिक स्तर पर पड़ा जब उन्हें वहां से निकाला गया था.
अब, शोधकर्ताओं का कहना है कि फुकुशिमा आपदा का आस-पास के पर्यावरण पर बहुत ही मामूली प्रभाव पड़ा क्योंकि ज्यादातर विकिरण समुद्र में चला गया.
लिमैन कहते हैं, "जापोरिझिया वास्तव में जमीन से घिरा हुआ है, इसलिए ऐसा नहीं होगा. लेकिन, फिर भी यह उम्मीद की जा सकती है कि यहां से कम विकिरण निकलेगा और उसका प्रसार भी कम होगा.”
लिमैन आगे कहते हैं कि जापोरिझिया में किसी शक्तिशाली दुर्घटना के बाद विकिरण का स्तर इस बात पर भी निर्भर करेगा कि यह दुर्घटना तकनीकी कारणों से हो रही है या फिर युद्ध की वजह से. युद्ध की स्थिति में दुर्घटनाग्रस्त होने पर संयंत्र से विकिरण बहुत तेजी से निकलेगा. ऐसी स्थिति में परिणाम की भयावहता कुछ ऐसी होगी जिसे चेर्नोबिल और फुकुशिमा के परिणामों के बीच में रखा जा सकेगा.
वो कहते हैं, "मुझे लगता है कि चेर्नोबिल जैसी घटना की आशंका बहुत कम है जिसका प्रभाव जर्मनी पर हो. कुछ ना कुछ प्रभाव तो जरूर होंगे लेकिन 1986 में चेर्नोबिल जैसी स्थिति नहीं होने पाएगी.”
यूक्रेन के दूसरे रिएक्टरों को भी खतरा है
जापोरिझिया परमाणु संयंत्र ने लोगों का ध्यान इसलिए आकर्षित किया है क्योंकि यह यूक्रेन का एकमात्र परमाणु संयंत्र है तो प्रत्यक्ष तौर पर रूस के नियंत्रण में है. लेकिन लिमैन कहते हैं कि उन्हें यूक्रेन के दूसरे परमाणु संयंत्रों की भी चिंता है जो कि पुराने हैं. दुर्घटना की स्थिति में विनाशकारी प्रभाव के लिहाज से वो और भी संवेदनशील हो गए हैं.
वो कहते हैं, "यूक्रेन में तीन और परमाणु संयंत्र हैं और ये सभी पश्चिमी सीमा के नजदीक हैं. इसलिए ये मोर्चे से थोड़ा दूर हैं लेकिन अभी भी ये रूसी रॉकेट और ड्रोन की सीमा में हैं.”
उनके मुताबिक, हालांकि इनमें से कोई भी संयंत्र चेर्नोबिल के मॉडल का नहीं है और कुछ पुराने हल्के पानी वाले रिएक्टर हैं और इन्हें भी जापोरिझिया की तरह ही हमले से इतना नुकसान नहीं होने वाला है. वो कहते हैं, "यदि चीजें सुलझती हैं और इन पर हमला करना अधिक आसान हो जाता है तब ये पश्चिमी यूरोप के लिए कहीं ज्यादा चिंता का सबब होगा.”
लंदन, 12 नवंबर | भारत में जन्मे ब्रिटिश और अमेरिकी संरचनात्मक जीवविज्ञानी और नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकी रामकृष्णन को ब्रिटिश ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मनित किया गया है। तमिलनाडु में चिदंबरम के मंदिरों के शहर से आने वाले 70 वर्षीय वेंकटरामन वेंकी रामकृष्णन ने 30 से अधिक वर्षों तक जीवविज्ञानी के रूप में काम किया है, उनका अधिकांश शोध आणविक जीव विज्ञान में केंद्रीय समस्याओं पर केंद्रित है।
उन्हें राइबोसोम की उच्च-रिजॉल्यूशन परमाणु संरचना के लिए थॉमस स्टिट्ज और एडा योनाथ के साथ 2009 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, जिसने एंटीबायोटिक दवाओं के विकास में नई संभावनाएं खोलीं।
शुक्रवार को किंग चार्ल्स तृतीय ने उन्हें सम्मानित किया। उन्हें इसके लिए सितंबर में चुना गया था।
रामकृष्णन को 2012 में आणविक जीव विज्ञान की सेवाओं के लिए नाइटहुड से सम्मानित किया गया था। वह लोकप्रिय पुस्तक जीन मशीन के लेखक भी हैं।
रामकृष्णन यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, लियोपोल्डिना और ईएमबीओ के सदस्य होने के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के विदेशी सदस्य भी हैं।
2017 में उन्हें अमेरिकन एकेडमी ऑफ अचीवमेंट का गोल्डन प्लेट अवार्ड मिला। ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज के छात्र रहे रामकृष्णन को 2015 में पांच साल के लिए रॉयल सोसाइटी के अध्यक्ष के रूप में चुना गया था। उन्होंने बड़ौदा विश्वविद्यालय, ओहियो विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में अध्ययन किया।
उन्हें 2010 में भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। (आईएएनएस)|
ईरान, 11 नवंबर । ईरान के ख़ुफ़िया मामलों के मंत्री ने सऊदी अरब को चेतावनी देते हुए कहा है कि ईरान के 'रणीनतिक सब्र' के बने रहने की कोई गारंटी नहीं है. अगर स्रब टूटता है तो शीशे के महल चकनाचूर हो जाएँगे.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ मंत्री इस्माइल खतीब ने कहा, ''अब तक ईरान ने दृढ़ता के साथ रणनीतिक सब्र बनाया हुआ है. लेकिन, यह गारंटी नहीं दे सकता कि दुश्मनी बनी रहने पर यह सब्र ख़त्म नहीं होगा.''
उन्होंने कहा, ''अगर ईरान जवाब देने और सज़ा देने का फ़ैसला करता है, शीशे के महल चकनाचूर हो जाएँगे और ये देश कभी स्थिर नहीं हो पाएँगे.''
ईरान में महसा अमीनी की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद देश में हिजाब के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त हिंसक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं.
महसा अमीनी को हिजाब ना पहनने के चलते गिरफ़्तार किया गया था. इन विरोध प्रदर्शनों में कई लोगों की जान भी चली गई है.
ईरान अपने अमेरिका और सऊदी अरब समेत अपने दुश्मन देशों को ईरान में विरोध प्रदर्शन भड़काने के लिए ज़िम्मेदार बता रहा है. उसने देश को अस्थिर करने की कोशिशों का जवाब देने की चेतावनी दी है.
इस्माइल खतीब ने कहा, ''मैं सऊदी अरब से कहूँगा कि हमारी और इस क्षेत्र के अन्य देशों की तकदीर एक-दूसरे से जुड़ी हुई है क्योंकि हम पड़ोसी हैं. ईरान में आई अस्थिरता सिर्फ़ वहीं तक सीमित नहीं रहेगी. ये क्षेत्र के दूसरे देशों तक फैल सकती है. (bbc.com/hindi)
अमेरिका, 11 नवंबर । अमेरिका ने यूक्रेन को एक बार फिर मदद के तौर पर हथियार और उपकरण देने की घोषणा की है.
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने बताया, ''मैंने यूक्रेन को रक्षा मंत्रालय इंवेंट्री से और 40 करोड़ डॉलर के हथियार और उपकरण देने का निर्देश दिया है. अगस्त 2021 के बाद से हम 25वीं बार मदद भेज रहे हैं. यूक्रेन के सुरक्षा बल रूस की सेना को पीछे खदेड़ रहे हैं, अमेरिका यूक्रेन के साथ खड़ा है.''
अमेरिकी मदद के इस पैकेज में हॉक एयर डिफेंस सिस्टम के लिए मिसाइल, चार एवेंजर एयर डिफेंस सिस्टम्स, आर्टिलरी और मोर्टार राउंड्स, एचएमएम व्हिकल्स, 400 ग्रेनेड लॉन्चर्स, अवरोध हटाने के लिए तोड़ने वाले उपकरण, ठंड से बचाने वाले कपड़े आदि शामिल हैं.
इस मदद को सही ठहारते हुए विदेश मंत्रालय ने बयान
जारी किया है, ''यूक्रेन के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर रूस के हवाई हमलों के चलते अतिरिक्त बचाव की क्षमता अहम है.''
रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध होने के बाद से पश्चिमी देशों ने हथियारों के ज़रिए यूक्रेन की मदद की है. यूक्रेन के नेटो में शामिल ना होने के कारण पश्चिमी देश यूक्रेन में रूस के ख़िलाफ़ सेना नहीं भेज सकते.
वहीं, दोनों देशों के बीच संघर्ष अब भी जारी है और यूक्रेन के कुछ इलाक़ों पर रूस ने कब्ज़ा कर लिया है.
हालांकि, रूस ने बुधवार को एक अहम शहर खेरसोन से अपनी सेना की वापसी की घोषणा कर दी है जिसे रूस के लिए एक झटका बताया जा रहा है. (bbc.com/hindi)
अमेरिका, 11 नवंबर । अगले हफ़्ते अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात होने वाली है. इस मुलाक़ात के एजेंडे में ताइवान का मसला सबसे अहम हो सकता है.
जो बाइडन के साल 2020 में राष्ट्रपति बनने के बाद ये पहला मौका है जब दोनों राष्ट्र प्रमुखों की मुलाक़ात होगी.
हालांकि, ये मुलाक़ात ऐसे समय में हो रही है जब दोनों देशों के बीच रिश्तों में तनाव की स्थिति बनी हुई है.
इस तनाव की वजह ताइवान भी है.
अमेरिकी संसद के निचले सदन, हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी के अगस्त में ताइवान दौरे के बाद चीन और अमेरिका में तनातनी बढ़ गई थी.
चीन ने इसे 'वन चाइना पॉलिसी' का उल्लंघन कहा और ताइवान के एयरस्पेस के ऊपर उड़ानें भरी थीं. तब अमेरिका ने चिंता जताई थी कि चीन ताइवान पर हमला कर सकता है.
वहीं, अमेरिका ने कंप्यूटर चिप तकनीक तक पहुंच को बाधित कर दिया है जिससे चीन की निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था को चोट पहुंची है.
इस बैठक पर अमेरिका के एशियाई सहयोगी भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की भी नज़र बनी हुई है. इन देशों के भी चीन के साथ रिश्तों में अक्सर टकराव देखने को मिलता है. (bbc.com/hindi)
माले, 11 नवंबर मालदीव की राजधानी माले में विदेशी कामगारों के क्वार्टर के गैराज में भीषण आग लग जाने से सात भारतीय नागरिकों समेत 10 लोगों की झुलसकर मौत हो गई। मालदीव में भारतीय उच्चायोग ने शुक्रवार को यह जानकारी दी।
आग स्थानीय समयानुसार बृहस्पतिवार रात करीब साढ़े बारह बजे मावेयो मस्जिद के पास स्थित एम. निरुफेही में कार मरम्मत के गैराज में लगी थी। मालदीव में भारतीय उच्चायोग (एचसीआईएम) ने कहा कि स्थानीय अधिकारियों ने उन्हें सूचित किया है कि मृतकों में सात भारतीय नागरिक शामिल हैं।
भारतीय उच्चायोग ने ट्वीट किया, ‘‘माले में आग लगने की घटना: मालदीव के अधिकारियों ने पुष्टि की है कि मरने वालों में सात भारतीय नागरिक हैं। एक व्यक्ति की पहचान होनी अब भी बाकी है। उच्चायोग परिवारों के संपर्क हैं।’’
मालदीव की मीडिया ने बृहस्पतिवार को मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) के हवाले से कहा था कि आग में मारे गए 10 लोगों में नौ भारतीय थे।
एचसीआईएम ने अन्य ट्वीट में कहा, ‘‘उच्चायोग के अधिकारियों ने घटनास्थल से सुरक्षित निकाले गए भारतीय नागरिकों से मुलाकात की। उन्हें हर संभव सहायता का आश्वासन दिया गया। हम मालदीव के अधिकारियों, गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) और समुदाय के सदस्यों के आभारी हैं जिन्होंने बचाए गए लोगों को जरूरी सहयोग मुहैया कराया।’’
‘सनऑनलाइन’ की खबर के अनुसार, ताजा सूचना के मुताबिक आग में मारे गए लोगों में भारतीय एवं बांग्लादेशी नागरिक शामिल हैं जिनमें महिला एवं पुरूष दोनों की मौत हुई है।
खबर में कहा गया है कि आग निचले तल पर एक गैराज में लगी थी, जबकि इमारत के पहले तल पर प्रवासी मजदूर रहते थे और वहां हवा आने जाने के लिए सिर्फ एक खिड़की थी।
अधिकारियों ने कहा कि प्रवासी जिस बिस्तर पर सोए थे उसके पास एक गैस सिलेंडर था। इस क्वार्टर में बांग्लादेश, भारत और श्रीलंका के प्रवासी मजदूर भी रहते थे।
खबर में कहा गया है कि घटना में कुल 10 लोगों की मौत हुई है। घायलों में से एक की पहचान बांग्लादेशी नागरिक के तौर पर हुई है, जिसकी हालत नाजुक है।
खबर के अनुसार, अधिकारियों ने बताया कि प्रवासियों के क्वार्टर में कम से कम 38 लोग रहते थे और प्रत्येक बिस्तर के बगल में रसोई गैस का सिलेंडर रखा था। इनमें से 28 को बचा लिया गया, जिनमें से छह महिलाएं और तीन पुरुष समेत नौ लोग एनडीएमए की देखरेख में हैं।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बृहस्पतिवार को ट्वीट किया, ‘‘आज माले में आग की घटना में लोगों की दुखद मौत से गहरा दुख हुआ। उच्चायोग भारतीयों के संबंध में पूरा ब्यौरा देगा, जो प्रभावित परिवारों से संपर्क कर रहा हैं।’’
मालदीव के विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद ने बृहस्पतिवार को अपने भारतीय समकक्ष जयशंकर से बात की और राजधानी माले में भीषण आग में कई भारतीयों की मौत पर मालदीव की सरकार और लोगों की ओर से संवेदना व्यक्त की।
फोन पर हुई बातचीत में शाहिद ने जयशंकर से कहा कि घटना के संबंध में विस्तृत जांच के आदेश दिए गए हैं जिसमें 10 लोग मारे गए हैं।
मालदीव के विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने बांग्लादेश के अपने समकक्ष से भी बात की। शाहिद ने ट्वीट किया, ‘‘भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर और बांग्लादेश के विदेश मंत्री डॉ. ए. के. अब्दुल मोमेन से बात की और बीती रात को माले में हुई घटना में मारे गए लोगों के प्रति मालदीव की जनता एवं लोगों की ओर से संवेदना व्यक्त की। दोनों नेताओं को सूचित किया कि इस संबंध में विस्तृत जांच जारी है।’’
इसके अलावा विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इस घटना को ‘‘त्रासद’’ बताया। उन्होंने कहा कि माले में भारतीय उच्चायोग प्रभावित भारतीयों और उनके परिवारों को हर संभव मदद मुहैया कराएगा। (भाषा)
मिस्र में हो रहे सीओपी27 सम्मेलन में प्रतिनिधियों के पास आवश्यक फैसले लेने में मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र की जलवायु विज्ञान संस्था द्वारा दशकों से किए गए शोध के नतीजे मौजूद हैं. आइए जानते हैं क्या कहते हैं नतीजे.
जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) करीब हर पांच सालों में एक रिपोर्ट तैयार करता है जिसमें जलवायु परिवर्तन, उसके कारण और उसके असर को लेकर वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक सहमति दिखाई देती है. पिछले साल आई आखिरी रिपोर्ट ने ग्लोबल वॉर्मिंग के मुख्य कारण और जलवायु विज्ञान के केंद्रीय तत्वों की बात की थी.
इसके बाद इस साल दो बड़ी रिपोर्टें जारी की गईं. एक रिपोर्ट फरवरी में आई जिसमें ये बताया गया कि दुनिया को कैसे जलवायु परिवर्तन के असर का सामना करना सीखना पड़ेगा. दूसरी रिपोर्ट अप्रैल में आई जिसमें जलवायु को गर्म करने वाले उत्सर्जन को कम करने के तरीकों पर जोर दिया गया.
स्पष्ट रूप से इंसान जिम्मेदार
जलवायु परिवर्तन के भौतिक आधार पर पिछले साल आई रिपोर्ट में कहा गया था की बढ़ते हुए तापमान के लिए स्पष्ट रूप से इंसान ही जिम्मेदार हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि जलवायु परिवर्तन खतरनाक रूप से बेलगाम होने के करीब पहुंच चुका है.
चर्म मौसम की ऐसी घटनाएं जो पहले दुर्लभ हुआ करती थीं वो अब ज्यादा देखने को मिल रही हैं और इनके आगे कुछ इलाके दूसरों के मुकाबले ज्यादा कमजोर हैं. पहली बार, रिपोर्ट के लेखकों ने मीथेन पर काबू पाने के लिए तुरंत कदम उठाने को कहा. इसके पहले तक आईपीसीसी का ध्यान कार्बन डाइऑक्साइड पर केंद्रित था.
जलवायु परिवर्तन को अनियंत्रितहोने से बचाने के लिए समय खत्म होता देख रिपोर्ट के लेखकों ने कहा कि जियोइंजीनियरिंग या बड़े स्तर के हस्तक्षेपों के लाभ और नुकसान का मूल्यांकन किया जाना चाहिए. इनमें सौर रेडिएशन को रोकने के लिए वातावरण में कणों को डालना शामिल है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि सबसे अमीर देश समेत दुनिया के सभी देशों को जलवायु परिवर्तन के असर और एक पहले से गर्म दुनिया के हिसाब से ढलने की तैयारी करनी शुरू कर देनी चाहिए.
बदलाव के लिए हो जाएं तैयारफरवरी में यूक्रेन पर रूस के हमले की खबर ने उस रिपोर्ट के जारी होने की खबर को ढंक लिया जिसमें ये बताया गया कि पहले से ज्यादा गर्म दुनिया के लिए कैसे तैयार हों. रिपोर्ट में कहा गया कि पहले से ज्यादा आने वाली गर्मी की लहरें, और मजबूत तूफान और पहले से ज्यादा ऊंचे समुद्र के स्तर के अनुकूल ढलने के लिए अमीर और गरीब सभी देशों को तैयार हो जाना चाहिए.
जलवायु परिवर्तन का असर फसलों और पानी की आपूर्ति पर भी पड़ेगा जिससे व्यापार और श्रम व्यवस्थाओं पर भी असर पड़ेगा और लाखों लोग गरीबी और खाद्य असुरक्षा का सामना करेंगे. गरीबों के लिए डरावने पूर्वानुमान को देखते हुए एक "घाटा और नुकसान" कोष की मांग फिर से तेज हुई, जिसके जरिए आपदाओं की जो कीमत गरीब देश चुकाएंगे उसका हर्जाना अमीर देश भुगतेंगे.
व्यक्तिगत कदम भी जरूरी
एक रिपोर्ट को जारी करते समय उसके एक सह-अध्यक्ष ने कहा कि यह "अभी नहीं तो कभी नहीं" का समय है. रिपोर्ट में कहा गया कि आने वाले कुछ दशकों में कठोर रूप से कटौती से ही तापमान के बढ़ने को अनियंत्रित होने से बचाया जा सकता है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अक्षय ऊर्जा के स्रोतों और प्रदूषण ना फैलाने वाले स्रोतों की तरफ बदलाव बहुत धीरे हो रहा है. यह भी कहा गया कि खेती के तरीके और जंगलों को बचाने के तरीके को बदल कर उत्सर्जन कम किया जा सकता है. चेतावनी दी गई कि जलवायु परिवर्तन से आर्थिक विकास पर असर पड़ता है.
पहली बार व्यक्तिगत स्तर पर कदम उठाने की जरूरत को रेखांकित किया गया. सरकारों से भी कहा गया कि वो ऐसी नीतियां लाएं जिनसे उपभोक्ताओं की और यातायात संबंधी आदतें बदलें जिनसे संसाधनों की बर्बादी कम हो.
सीके/एए (रॉयटर्स)
ईरान में प्रदर्शनकारी और उन्हें दबाने में जुटी सुरक्षा बल आधुनिक तकनीकों का जम कर इस्तेमाल कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी इनकी मदद से अपनी पहचान छिपाने में जुटे हैं तो सुरक्षा बल उन्हें ढूंढ निकालने और कार्रवाई करने में.
तेहरान की लीमा और उनके दोस्तों को गिरफ्तारी, मारपीट और यहां तक कि मौत का डर सता रहा है. ईरान में ज्यादा अधिकारों और नये नेतृत्व की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल होना उनके इस डर की वजह है. हालांकि बदलाव की चाहत के साथ ही एन्क्रिप्टेड चैट से लेकर मोबाइल ऐप्स और तकनीक ने उन्हें सहारा दे रखा है.
मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं, असंतोष और प्रदर्शन को दबाने के लिए ईरान के अधिकारियों ने भी तकनीक को अपनाया है. प्रदर्शनकारियों को ट्रैक करने, विरोधियों की बात सुनने और सख्त ड्रेस कोड की अवहेलना करने वाली महिलाओं के लिए डिलीवरी ऐप्स, ट्विटर और चेहरा पहचानने वाली तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
वीपीएन का बढ़ा इस्तेमाल
टेक्सस में मियां ग्रुप में अधिकारी अजीन मोहजेरिन कहते हैं, तकनीक प्रदर्शनकारियों की लड़ाई में दोधारी तलवार बन गया है. मियां ग्रुप ईरान में अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों को मदद करती है. लीमा, 23 साल की छात्र हैं. वह सुरक्षा कारणों से अपना पूरा नाम नहीं बताना चाहतीं. वह प्रतिबंधित सोशल मीडिया साइटों, मैसेज ऐप चलाने से लेकर सुरक्षा बलों को चकमा देने के लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (वीपीएन) का इस्तेमाल करती हैं.
डेटा के मुताबिक कार्रवाईयों से बचने के लिए वीपीएन का इस्तेमाल करने वाले ईरानियों की संख्या में रोजाना 1,000 फीसदी तक की बढ़त देखी गई है.
जवाबी कार्रवाई के लिए तकनीक का रुख
सितंबर में पुलिस हिरासत में 22 साल की कुर्द महिला महसा अमीनी की मौत के बाद ईरान विरोध प्रदर्शनों की चपेट में है. प्रशासन की जवाबी कार्रवाई के तहत सूचना के प्रसार को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करना और इंटरनेट बंद करने के साथ बल प्रयोग के तरीकों को अपनाया गया.ईरानी अधिकारियों ने कहा है कि चेहरे की पहचान करने वाली तकनीक का इस्तेमाल हिजाब ना पहनने वाली महिलाओं की पहचान करने और दंडित करने के लिए किया जाएगा. इसके लिए सार्वजनिक आदेश जारी किया गया था. अधिकारियों ने ऐसे चैनल भी बनाए हैं जो नागरिकों को टेलीग्राम, ट्विटर और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों पर प्रदर्शनकारियों की मुखबिरी के लिए उकसाती है.
पुलिस को चकमा देने के लिए तकनीक
लीमा गेरशाद नाम के एक क्राउडसोर्स ऐप का इस्तेमाल करती हैं जिससे 'अनुचित पोशाक' के लिए महिलाओं को कभी भी परेशान करने या हिरासत में ले लेने वाली मोरल पुलिस के रियल टाइम लोकेशन को ट्रैक और शेयर किया जा सकता है. लीमा ने कहा, "हम ऐप का इस्तेमाल इसलिए करते हैं क्योंकि हम डरे हुए हैं. सिर्फ ऐप की वजह से कई बार हम दिशा बदलने और मोरल पुलिस को चकमा देने में कामयाब रहे हैं."
उन्होंने पिछले पांच महीनों में करीब एक दर्जन बार गेरशाद का इस्तेमाल किया है. ईरान में महिलाओं की मदद के लिए गेरशाद को 2016 में एक मानवाधिकार गैर-लाभकारी संगठन यूनाइटेड ने तैयार किया था. डिजिटल निगरानी बढ़ने के साथ यह पत्रकारों, कार्यकर्ताओं का पसंदीदा औजार बन गया है.
ईरान में यूनाइटेड की एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर फिरूजेह महमूदी ने कहा गेरशाद करीब 86,000 बार डाउनलोड किया जा चुका है. मोरल पुलिस को चकमा देने और पुलिसिया कार्रवाई के ठिकानों को रिपोर्ट करने के लिए यूजर्स ने इसका इस्तेमाल किया.
"ईरानी महिलाओं का समर्थन करने की जरूरत है क्योंकि मोरल पुलिस उन्हें सता और प्रताड़ित कर रही है."
वह कहती हैं, "यह एक संवेदनशील ऐप है, इसलिए कुछ लोग जब बाहर जाते हैं तो इसे फोन से हटा लेते हैं और इसके बजाय सुरक्षा बलों के स्थान को रिपोर्ट करने और देखने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि अगर इंटरनेट बंद हो, फिर कोई भी दांव नहीं चलता."
सुरक्षित टूल के इस्तेमाल पर जोर
पिछले साल ईरान सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद करने वाला देश था. सुरक्षा बल ड्रेस कोड का उल्लंघन करने वाली महिलाओं और नये नेतृत्व की मांग करने वालों पर लगातार कार्रवाई कर रहे हैं. ऐसे हालात में तकनीकी विशेषज्ञों ने डिजिटल निगरानी के लिए ईरान के गुप्त अभियान के खतरे का हवाला देते हुए प्रदर्शनकारियों से बच कर रहने की गुजारिश की है.
वाशिंगटन, डी.सी. में एक अधिकार संगठन फेमेना के फाउंडर सुसान तहमासेबी कहते हैं, "इनमें से बहुत से युवा जो गिरफ्तार हो रहे हैं, मारे गये हैं, हाई स्कूल या कॉलेज के छात्र हैं और उनके पास ऑनलाइन सुरक्षित होने के बारे में जानकारी नहीं है."
सितंबर में अमेरिकी अधिकारियों ने ईरानियों की मदद के लिए उपलब्ध इंटरनेट सेवाओं की रेंज बढ़ाने के लिए गाइडलाइन जारी किया ताकि निगरानी और सेंसरशिप को दरकिनार किया जा सके. वीपीएन इस्तेमाल करने वाले यूजर पहचान छिपा सकते हैं.
ईरानी फारसी में नाहोफ्ट- या 'हिडन' का भी इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐप बनाने में मदद करने वाले युनाइटेड के महमूदी बताते हैं, एंड्रॉयड एन्क्रिप्शन ऐप फारसी टेक्स्ट को बेतरतीब शब्दों या तस्वीर में बदल देता है जिसे मैसेजिंग ऐप पर भेजा जा सकता है.
जब से विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, 30 से 40 लाख लोगों ने हर दिन साइफन पर लॉग इन किया है, जो यूजर्स को निजी सर्वर पर इंटरनेट का इस्तेमाल करने और फेसबुक और यूट्यूब जैसी प्रतिबंधित साइटों को मॉनिटर करने की इजाजत देता है.साइफन के मीडिया मैनेजर अली तेहरानी कहते हैं, "जो टूल निगरानी रखे या खिलाफ इस्तेमाल हो उसकी बजाय लोगों को इंटरनेट से जोड़ने के लिए सुरक्षित टूल के बारे में बताना महत्वपूर्ण है."
असली नुकसान
गैर-लाभकारी टेक फर्म कांडू की फाउंडिंग डायरेक्टर नीमा फातेमी कहती हैं, "असली नुकसान किया जा रहा है."
साइबर सुरक्षा फर्म सीइआरटीएफए के फाउंडर अमीन सबेटी ने बताया, अधिकारी सेलफोन के जरिए भी लोकेशन ट्रैक कर नागरिकों की निगरानी कर रहे हैं. वह कहते हैं, "लोगों ने विरोध प्रदर्शनों में जाते वक्त अपने मोबाइल फोन बंद करना सीख लिया है, क्योंकि मोबाइल कंपनी के लिए उनकी सटीक लोकेशन पता करना आसान है."
हिमायती समूह ताराज की फाउंडर रोया पाकजाद कहती हैं, राइड या डिलीवरी ऐप्स का इस्तेमाल महिलाओं को बताने के लिए किया जाता है कि उन्होंने सही ढंग से हिजाब नहीं पहना. एजेंट डेटा तक पहुंचने में सक्षम हैं क्योंकि निजी फर्म डेटा सुरक्षा नहीं देती.
पाकजाद ने कहा, "सरकार हमेशा महिलाओं को अलग करने की इच्छुक रही है, ताकि वे अपनी सार्वजनिक भागीदारी को नियंत्रित करें और सार्वजनिक स्थानों पर अपनी मौजूदगी को सीमित करें, इसलिए वे मामूली तकनीकी तरीकों का इस्तेमाल कर सकती है. कोई चेक और बैलेंस नहीं हैं, तकनीक के इस्तेमाल पर कोई सीमा नहीं है."
न्यूयॉर्क की मीडिया द इंटरसेप्ट के मुताबिक ग्राहक अपने फोन का इस्तेमाल कैसे करते हैं, इसे जानने, बदलने या बाधित करने के लिए ईरानी अधिकारी एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम का इस्तेमाल करते हैं. ऐसा आंदोलनों को ट्रैक करने, एन्क्रिप्शन को डिकोड करने के लिए किया जाता है.
तहमासेबी ने कहा, तकनीक की ज्यादा समझ रखने वाली सरकार ईरानियों के लिए एक गंभीर खतरा है. यह पीढ़ी जितनी बहादुर है, उतनी ही बड़े जोखिमों का सामना कर रही है. वे सुरक्षाबलों के तरीकों से अवगत नहीं हैं जो निगरानी का इस्तेमाल कर उनके खिलाफ मामले बना रहे हैं.
केके/एनआर(रॉयटर्स)
ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क ने गुरुवार को ट्विटर के दिवालिया होने की आशंका पर अपने कर्मचारियों से बात की.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक उन्होंने ट्विटर के कर्मचारियों को जानकारी दी कि वो दिवालिया होने की आशंका से इनकार नहीं करते.
ट्वीटर में अपने कर्मचारियों के साथ पहली बार बैठक में मस्क ने आगाह किया है कि कंपनी अगले साल अरबों डॉलर खो सकती है.
एलन मस्क ने हाल ही में 44 अरब डॉलर में ट्विटर को खरीदा है.
इसके बाद से उन्होंने इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर कई बदलाव भी किए हैं.
इस बीच दुनियाभर में ट्विटर ने हज़ारों लोगों को नौकरी निकाला है. इसपर एलन मस्क को आलोचना का भी सामना करना पड़ा है.
उन्होंने कंपनी को हो रहे नुक़सान का हवाला देते हुए ब्लू टिक के लिए सब्सक्रिप्शन भी शुरू किया है.
मस्क ने ये भी आरोप लगाया था कि एक्टिविस्ट ग्रुप ट्विटर की कमाई कम करने के लिए विज्ञापनदाताओं पर प्रभाव डाल रहे हैं.
अमेरिकी एजेंसी ने जताई चिंता
वहीं, अमेरिका के फेडरल ट्रेड कमिशन ने ट्विटर में कुछ कर्मचारियों के निकलने से चिंता भी जाहिर की है.
कमिशन ने कहा कि गोपनीयता और अनुपालन से जुड़े तीन अधिकारियों के जाने के वो ट्वीटर पर ''गहरी चिंता'' के साथ नज़र रख रहे है.
ट्विटर के दो वरिष्ठ कर्मचारियों योएल रॉथ और रॉबिन व्हीलर ने बुधवार को इस्तीफ़ा दे दिया है.
गुरुवार को ट्विटर की चीफ़ सिक्योरिटी ऑफ़िसर ली किसनर ने ट्विटर से इस्तीफ़ा देने की घोषणा की थी. उन्होंने ट्वीट करके इसकी जानकारी दी थी
ट्वीटर के कुछ आंतरिक संदेशों के मुताबिक कंपनी में गोपनीयता और अनुपालन से जुड़ी जिम्मेदारियां संभाल रहे और भी लोगों ने इस्तीफ़ा दिया है. (bbc.com/hindi)
ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क ने पैरोडी अकाउंट्स को लेकर एक अहम जानकारी दी है.
उन्होंने ट्वीट किया, ''ज़्यादा सटीक होते हुए, जो अकाउंट पेरोडी कर रहे हैं. असल में लोगों को बरगलाना ठीक नहीं है.''
मस्क ने कहा, ''पैरोडी में शामिल अकाउंट्स को अपने नाम के आगे पैरोडी लिखना होगा ना कि सिर्फ़ बायो में.''
पैरोडी अकाउंट्स वो होते हैं जो किसी और के अकाउंट की नकल के तौर पर बनाए जाते हैं. नाम में ही पैरोडी लिखे होने से लोगों को साफ़तौर पर पता चल सकेगा कि ये नकली अकाउंट है.
हाल ही में एलन मस्क के साथ खुद एक पैरोडी अकाउंट से जुड़ा मामला हुआ था.
उनके नाम के एक पैरोडी या कहें नकली अकाउंट से एक भोजपुरी गाने का ट्वीट किया गया था. इस अकाउंट पर एलन मस्क के नाम के आगे ब्लू टिक भी लगा था. हालांकि, उसके नीचे कोई और नाम लिखा था.
लेकिन, बाद में पता चला कि ये अकाउंट एलन मस्क का नहीं बल्कि कोइयान वूलफ़र्ड नाम के यूज़र का था. वह अमेरिकी नागरिक हैं और ऑस्ट्रेलिया की लाट्रोब यूनिवर्सिटी में हिंदी पढ़ाते हैं.
तब भी एलन मस्क ने जानकारी दी थी कि अगर कोई यूज़र अपने हैंडल का नाम बदलता है तो वह अस्थाई रूप से वैरिफाई ब्लू टिक खो देगा. (bbc.com/hindi)
काबुल, 10 नवंबर। अफगानिस्तान में महिलाओं के जिम जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। एक अधिकारी ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
तालिबान के एक साल से अधिक समय पहले सत्ता संभालने के बाद से महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रता पर नकेल कसने का यह नवीनतम फरमान है।
तालिबान पिछले साल अगस्त 2021 में सत्ता पर काबिज हुआ था। उन्होंने देश में माध्यमिक और उच्चतर विद्यालय जाने पर लड़कियों पर प्रतिबंध लगा दिया है, महिलाओं को रोजगार के ज्यादातर क्षेत्रों में प्रतिबंधित कर दिया है और महिलाओं को सार्वजनिक स्थानों पर सिर से लेकर पैर तक बुर्के में ढके रहने का आदेश दिया था।
धार्मिक मामलों के मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा कि प्रतिबंध लगाया जा रहा है क्योंकि लोग आदेशों की अनदेखी कर रहे थे और महिलाओं ने हिजाब पहनने संबंधी नियमों का पालन नहीं किया।
महिलाओं के पार्क में जाने पर भी पाबंदी है। महिलाओं के जिम और पार्क में जाने पर प्रतिबंध इसी हफ्ते से लागू हो गया है।
प्रवक्ता ने कहा, ‘‘लेकिन, दुर्भाग्य से, आदेशों का पालन नहीं किया गया और नियमों का उल्लंघन किया गया और हमें महिलाओं के लिए पार्क और जिम बंद करने पड़े।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ज्यादातर मौकों पर हमने पुरुषों और महिलाओं, दोनों को एकसाथ कई पार्क में देखा है और दुर्भाग्य से उन्होंने हिजाब नहीं पहन रखा था। इसलिए हमें एक और निर्णय लेना पड़ा और हमने सभी पार्क और जिम को महिलाओं के लिए बंद करने का आदेश दिया।’’(एपी)
पाकिस्तान, 10 नवंबर । पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ पंजाब के वज़ीराबाद से अपना मार्च फिर से शुरू कर रही है, यह वही शहर है जहां 3 नवंबर को पीटीआई अध्यक्ष इमरान खान के काफ़िले पर हमला हुआ था.
मार्च के लिए एक नया कंटेनर वज़ीराबाद लाया गया है, क्योंकि जिस कंटेनर में इमरान ख़ान सवार थे, वह अभी भी हमले की जगह पर है और इसे सबूतों की सुरक्षा के लिए सील कर दिया गया है.
नए कंटेनर पर सामने की ओर बुलेट प्रूफ ग्लास लगाया गया है. वज़ीराबाद में कचहरी चौक को बैनर और फ्लेक्स से सजाया गया है और इमरान ख़ान के भाषण के लिए एक बड़ी स्क्रीन लगाई गई है. इमरान ख़ान अपने समर्थकों को वर्चुअली संबोधित करेंगे.
पीटीआई के उपाध्यक्ष शाह महमूद कुरैशी आज मार्च की अगुवाई करेंगे.
सुरक्षा के कड़े इंतज़ाम
मार्च की सुरक्षा के लिए कड़े सुरक्षा इंतज़ाम किए गए हैं. ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों से इसकी निगरानी की जाएगी.
सड़क के किनारे की इमारतों के ऊपर पुलिस कमांडो तैनात किए जाएंगे.
पीटीआई नेताओं ने कहा है कि मार्च नवंबर के तीसरे सप्ताह में रावलपिंडी पहुंचेगा और यहीं पर इमरान ख़ान इसमें शामिल होंगे और फिर इसे राजधानी इस्लामाबाद की ओर ले जाएंगे.
विश्लेषकों का मानना है कि इमरान खान अपने समर्थकों को सड़क पर मौजूद रखकर दबाव बनाए रखना चाहते हैं.
हालांकि, अब इमरान ख़ान की ग़ैर मौजूदगी और हालिया हमले में एक कार्यकर्ता के मारे जाने के बाद ऐसा लगता है कि अब शायद ही मार्च को जनता का इतना समर्थन ना मिले.
इमरान ख़ान ने कल ही एक अन्य सैन्य अधिकारी का नाम बताने का वादा किया था जो कथित तौर पर नियंत्रण कक्ष में आईएसआई के मेजर जनरल फै़सल नसीर के साथ उनकी हत्या की साजिश को अंजाम दिए जाने की निगरानी कर रहा था.
अब तक, चूंकि पीटीआई प्रमुख अपने आरोपों के सबूतों के बारे में ठोस जवाब नहीं दे पाए हैं, इसलिए कुछ टिप्पणीकारों का मानना है कि इस तरह के आरोप भीड़ को भाषणों और रैलियों से जोड़े रखने के लिए हैं.
मार्च इस्लामाबाद पहुंचने में कितना समय लगेगा?
पीटीआई धीरे-धीरे क्यों आगे बढ़ रही है? क्या गतिरोध को तोड़ने का रास्ता खोजने में समय लग रहा है?
क्या वह नए सेना प्रमुख की नियुक्ति की घोषणा को देख रही है? यह कितनी दूर जा सकता है? ये सभी सवाल हवा में हैं, राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि आने वाले कुछ हफ्तों में कई जवाब मिलने की संभावना है. (bbc.com/hindi)
अमेरिका , 10 नवंबर । अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि एलन मस्क के विदेशों के साथ निवेश में कुछ गलत है या नहीं, ये देखा जा सकता है.
जो बाइडन से एलन मस्क के ट्विटर अधिग्रहण और विदेशी निवेश को लेकर सवाल पूछा गया था.
एक पत्रकार ने प्रेस वार्ता में पूछा था, ''क्या आपको लगता है कि एलन मस्क अमेरिका की सुरक्षा के लिए ख़तरा हैं. क्या अमेरिका को एलन मस्क के सऊदी अरब सहित विदेशी सरकारों के साथ ट्विटर के संयुक्त अधिग्रहण की जांच करनी चाहिए?''
इस पर जो बाइडन पहले तो हंसे. फिर उन्होंने कहा, ''मुझे लगता है कि एलन मस्क के अन्य देशों के साथ कॉरपोरेशन और टेक्निकल रिश्तों को देखना चाहिए कि वो कुछ अनुचित कर रहे हैं या नहीं. मैं इसकी सलाह नहीं दे रहा हूं.''
हाल ही में एलन मस्क ने 44 अरब डॉलर में ट्विटर को खरीदा है. इसके बाद से उन्होंने ट्विटर में कई बदलावों की भी घोषणा की है.
पिछले महीने रिपोर्ट्स सामने आई थीं कि बाइडन प्रशासन में ट्विटर के 44 अरब डॉलर के अधिग्रहण की राष्ट्रीय सुरक्षा समीक्षा को लेकर चर्चा हो रही है.
इस अधिग्रहण में निवेश करने वालों में सऊदी अरब के प्रिंस अलवलीद बिन तलाल और कतर का सॉवरेन वेल्थ फंड शामिल है.
दो अमेरिकी सीनेटर ने ट्विटर सौदे की जांच की मांग की थी ताकि ट्विटर के ज़रिए यूज़र्स की ऐसी जानकारी ना मिल सके जिनसे मानवाधिकार कार्यकर्ता और सऊदी अरब की आलोचना करने वाले ख़तरे में आ जाएं. (bbc.com/hindi)
जोहानिसबर्ग, 10 नवंबर दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति एफ. डब्ल्यू. डी. क्लार्क का नोबेल शांति पुरस्कार पदक केप टाउन स्थित उनके घर से चोरी हो गया है। उनके फाउंडेशन ने बुधवार को इसकी पुष्टि की।
राष्ट्रपति क्लार्क को 1993 में नेल्सन मंडेला के साथ संयुक्त रूप से यह पुरस्कार दिया गया था। मंडेला 27 साल जेल की सजा काटने के बाद 1994 में देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने थे।
दक्षिण अफ्रीकी मीडिया की खबरों के अनुसार, अप्रैल में क्लॉर्क के घर से पदक की चोरी हुई। वहां के एक पूर्व कर्मचारी पर चोरी का आरोप है। कुछ गहने और अन्य चीजें भी उनके घर से चोरी हुई थीं।
क्लार्क जीवनभर दक्षिण अफ्रीका में एक विवादास्पद शख्स के रूप में चर्चा में बने रहे। अपनी कई टिप्पणियों के लिए उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा था कि रंगभेद मानवता के खिलाफ अपराध नहीं है। हालांकि निधन से पहले उन्होंने सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी थी। 2021 में उनका निधन हो गया था। (एपी)
क़तर, 10 नवंबर । क़तर में हिरासत में लिए गए आठ पूर्व भारतीय नौसेनिकों की स्थिति को अब भी रहस्य बना हुआ है. उनके ठीक होने को लेकर अभी तक कोई जानकारी नहीं दी गई है.
भारतीय दूतावास इस मामले को लेकर स्थानीय प्रशासन के लागातर संपर्क में है.
पूर्व नौसेनिकों को हिरासत में लेने का कारण फिलहाल सार्वजनिक नहीं किया गया है और ना ही भारत को इसकी आधिकारिक तौर पर जानकारी दी गई है. ये 70 दिनों से हिरासत में हैं.
इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया है कि दोहा में भारतीय दूतावास स्थानीय अधिकारियों से लगातार संपर्क में है ताकि एक और बार हिरासत में मौजूद भारतीयों से मिला जा सके.
पीटीआई के अनुसार भारतीय अधिकारियों को दो बार कॉन्सुलर एक्सेस दी जा चुकी है यानी दो मौकों पर वो पूर्व नौसेनिकों से मिल चुके हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक ये आठ पूर्व सैन्यकर्मी एक नीजी कंपनी दहरा ग्लोबल टेक्नोलॉजिज़ एंड कंसल्टेंसी सर्विसेज के लिए काम कर रहे थे. वो कुछ मौकों पर अपने परिवार से बात कर सकते हैं.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, ''हमें आठ भारतीय नागरिकों के हिरासत में लिए जाने की जानकारी है जो कतर में एक निजी कंपनी के लिए काम कर रहे थे.''
''कतर में हमारा दूतावास वहां प्रशासन के संपर्क में है. दूतावास के अधिकारियों को हिरासत में मौजूद भारतीयों से मिलने का मौका मिला और उन्होंने उनकी सेहत की भी जानकारी ली.'' (bbc.com/hindi)