अंतरराष्ट्रीय
(रेनॉड फौकार्ट, लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी)
लैंकेस्टर (ब्रिटेन), 14 मार्च (द कन्वरसेशन) यूक्रेन पर आक्रमण ने रूस को दिवालिया होने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। ब्याज दरें दोगुनी हो गई हैं, शेयर बाजार बंद हो गया है और रूसी मुद्रा रूबल अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से युद्ध की सैन्य लागत बढ़ गई है। रूसी नागरिक जो अब आईकेईए, मैकडॉनल्ड्स या स्टारबक्स में खर्च करने में असमर्थ हैं, उन्हें अपने पास मौजूद किसी भी पैसे को विदेशी मुद्रा में बदलने की अनुमति नहीं है।
अनुमान बताते हैं कि रूसी अर्थव्यवस्था अगले साल सात प्रतिशत तक सिमट सकती है, जबकि आक्रमण से पहले इसमें दो प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान था। इस बीच, यूरोपीय संघ (ईयू) रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता में भारी कमी करने की योजना बना रहा है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने स्तर पर आयात को चरणबद्ध तरीके से सीमित करना शुरू कर दिया है।
इसके दीर्घकालिक परिणाम भयावह हैं। अगर प्रतिबंध को बनाए रखा जाता है, तो रूस चीन और बेलारूस के अलावा अपने मुख्य व्यापारिक भागीदारों से अलग हो जाएगा। रेटिंग एजेंसियों का अब अनुमान है कि रूस जल्द ही अपने लेनदारों को भुगतान करने में असमर्थ होगा। विदेशी निवेश आकर्षित करना मुश्किल हो जाएगा और यह पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो जाएगा।
अगर पुतिन यूक्रेन में जीत का दावा करने वाले बिंदु पर पहुंच जाते हैं तो आर्थिक परिदृश्य वास्तव में और भी खराब दिखाई देता है। देश पर कब्जा करने और कठपुतली सरकार स्थापित करने से निश्चित रूप से नष्ट हुए बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी रूस पर आएगी और यूक्रेन के नागरिकों के तेजी से यूरोप समर्थक होने से इस तरह के शत्रुतापूर्ण वातावरण में शांति बनाए रखने के लिए पुतिन को रूस के बजट से भारी मात्रा में संसाधनों को हटाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
युद्ध की कीमत
जीवन प्रत्याशा और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद पर आधारित एक मोटे अनुमान से पता चलता है कि 10,000 रूसी सैनिकों की मृत्यु चार अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की लागत के अनुरूप होगी। पुतिन ने मृत सैनिकों के परिवारों को दिए जाने वाले मामूली मुआवजे की भी घोषणा की है, जिसका भुगतान स्थानीय मुद्रा में किया जाएगा, जिसका अर्थ है कि इसका वास्तविक मूल्य जल्द ही शून्य के करीब हो सकता है।
आने वाले दिनों और हफ्तों में पुतिन के लिए युद्ध की कीमत बहुत अधिक है या नहीं, यह दो तत्वों पर निर्भर करेगा। क्या रूसी सैन्य और रक्षा उद्योग पश्चिम से इलेक्ट्रॉनिक्स और औद्योगिक रोबोट जैसे तकनीकी आयात के बिना जीवित रह सकते हैं? और क्या प्रतिबंधों और हताहतों का प्रभाव जनता की राय को इस तरह से बदलने के लिए पर्याप्त होगा जिससे क्रेमलिन को खतरा हो?
-जेम्स गैलहर
अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में लगातार नए प्रयोग हो रहे हैं. अब इसकी सीमा पहले से कहीं आगे बढ़ा दी गई है.
जेनेटिक इंजीनियरिंग से बने सूअरों से निकाले गए शुरुआती अंग लोगों के शरीर में प्रत्यारोपित किए गए थे.
इस तरह के सूअर का हृदय पहली बार जिस मनुष्य के शरीर में प्रत्यारोपित किया गया था वह सिर्फ दो महीने तक जिंदा रहा था.
पूरी दुनिया में इस वक्त प्रत्यारोपण के लिए अंगों की कमी है. ऐसे में अंगों की असीमित सप्लाई के लिए हम सूअरों के इस्तेमाल के कितने करीब हैं?
अब हम एक ऐसे ऑपरेशन थियेटर की ओर चलते हैं, जहां प्रत्यारोपण ऑपरेशन होने वाला है.
ऑपरेशन थियेटर में चुप्पी पसरी हुई है. यहां सूअर के अंग को प्रत्यारोपण के लिए लाए जाने से पहले तनाव दिख रहा है.
सर्जनों ने अभी अभी एक सूअर के गुर्दे को एक मानव शरीर से जोड़ा है. अब मानव शरीर का रक्त सूअर के अंगों की ओर प्रवाहित हो रहा है.
अंग प्रत्यारोपण करने वाले सर्जन डॉ. जेमी लोक का कहना है, "आप सुई गिरने की आवाज भी सुन सकते थे."
वह कहती हैं, "अगले चंद पलों में इस ऑपरेशन की कामयाबी या नाकामी तय हो जाएगी और अब सबके दिमाग में एक ही सवाल है- गुलाबी या काला?"
अगर मानव शरीर ने बाहरी अंग के खिलाफ भयानक हमला बोल दिया तो सूअर के उत्तक में मौजूद हर कोशिका में छेद हो जाएंगे. साथ ही इस अंग में भीतर से बाहर तक थक्का जम जाएगा. इसके बाद पहले यह चितकबरा फिर नीला और फिर कुछ ही मिनटों में काला हो जाएगा.
अगर 'हाइपरएक्यूट रिजेक्शन' से बच जाते हैं तो यह प्रत्यारोपित अंग खून और ऑक्सीजन से गुलाबी हो जाता है.
हाइपरएक्यूट रिजेक्शन प्रत्यारोपण के कुछ ही मिनट बाद शुरू हो जाता है. यह प्रक्रिया तब शुरू होती है जब एंटीजेन का पूरी तरह मिलान नहीं हो पाता है.
अंग प्रत्यारोपण ऑपरेशन के बाद अमेरिका में अलबामा यूनिवर्सिटी के डॉक्टर लोक ने कहा, "प्रत्यारोपित अंग गुलाबी हो गया और अब यह खूबसूरत दिख रहा है. अब राहत का अहसास हो रहा है. कमरे में खुशी और उम्मीद का माहौल है."
यह ऑपरेशन चिकित्सा जगत में कामयाबियों की श्रृखंला में से एक है. इसने जेनोट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में फिर से दिलचस्पी पैदा कर दी है.
मानव शरीर के लिए जानवरों के अंग का इस्तेमाल पुराना आइडिया है. इस क्रम में चिंपैंजी के अंडकोष के प्रत्यारोपण से लेकर बंदरों की दूसरी प्रजातियों के गुर्दे और हृदय निकाल कर इस्तेमाल किए जा चुके हैं. हालांकि इन प्रत्यारोपण की परिणति मृत्यु में ही हुई है.
दिक्कत यह है कि मानव शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) प्रत्यारोपित अंगों को एक संक्रमण की तरह लेता है और उस पर हमला करता है.
इस वक्त प्रत्यारोपण के लिए सबसे ध्यान सूअरों पर है क्योंकि उनके अंगों का आकार अमूमन मानव शरीर के अंगों के आकार के बराबर होता है. सूअर पालने का हमारा अनुभव सदियों पुराना है.
लेकिन अंग प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी चुनौती है हाइपरएक्यूट रिजेक्शन. अंग गुलाबी रहे और काला न पड़े, यह भी एक चुनौती है. ऐसा नहीं है कि आप सीधे किसी सूअर के फार्म में जाएं. वहां से एक सूअर पकड़ कर ले जाएं और इसके अंग को मानव शरीर में प्रत्यारोपित कर दें.
अंग प्रत्यारोपण के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग को विकास के कई चरणों से गुजरना पड़ा है ताकि सूअर के डीएनए को बदला जा सके. इस बदलाव से उनके अंग मानव शरीर के प्रतिरोध तंत्र से ज्यादा तालमेल बिठा पाते हैं.
हाल में सूअर के गुर्दे और हृदय के जो प्रत्यारोपण हुए उनमें अंग खास तौर पर तैयार '10- जीन सूअर' से लिए गए गए थे.
दान किए गए किसी अंग को मानव विकास हारमोन को प्रतिक्रिया देने से रोकने और अनियंत्रित वृद्धि से बचाने के लिए इसके जीन में एक बदलाव किया गया था.
एक और अहम बदलाव किया गया शर्करा अणु हटा कर. इसे अल्फा-गैल कहा जाता है. यह सूअर की कोशिका की सतह में चिपकता है और एक बड़े चमकते नियोन संकेत की तरह काम करता है. इस तरह यह टिश्यू को पूरी तरह एलियन बना देता है.
पूरक प्रणाली कहा जाने वाला हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली की एक इकाई अल्फा-गैल का इंतजार करने वाले शरीर की निगरानी करती है. यही वजह है प्रत्यारोपित होने के कुछ ही क्षणों के बाद अंग शरीर की ओर से खारिज कर दिए जाते हैं या मार दिए जाते हैं.
इस प्रयोग के दौरान दो अन्य 'नियोन संकेत' जेनेटिक तौर पर हटा दिए गए थे. इसके बजाय छह मानव संकेत जोड़े गए थे. यह सूअर की कोशिकाओं के ऊपर एक छद्म आवरण की तरह काम रहे थे. इससे इन्हें शरीर के प्रतिरोधी तंत्र से छिपने में मदद मिल रही थी.
बहरहाल, जो 10-जीन सूअर तैयार किया जाता है उसे जीवाणुरहित माहौल में बड़ा किया जाता है. ताकि वह प्रत्यारोपण के मुफीद हो सके.
वह अंग दान करना चाहते थे. ब्रेन डेड अवस्था में उनके परिवार की इजाजत से उनके गुर्दों की जगह सूअर के गुर्दे प्रत्यारोपित किए गए.
डॉक्टर लोक बताती हैं कि प्रत्यारोपित गुर्दों में से एक ने मूत्र बनाना शुरू कर दिया. यह कामयाबी उल्लेखनीय थी. इससे लगा कि जेनोट्रांसप्लांटेशन वास्तव में लोगों की जिंदगी बदल सकता है. और सीधे तौर पर कहें तो उनकी जिंदगी बचा सकता है. उन्हें उम्मीद है कि इस साल इसका क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो सकता है.
वो ऑपरेशन तीन दिन का लंबा प्रयोग था लेकिन इस बीच मैरीलैंड मेडिकल सेंटर यूनिवर्सिटी के सर्जन एक कदम आगे बढ़ कर प्रयोग करने के लिए तैयार थे.
57 साल के उनके मरीज डेविड बेनेट को भारी हार्ट अटैक आया था. उनका शरीर मानव अंग प्रत्यारोपण के मुफीद नहीं लग रहा था. उन्हें एक्मो मशीन के जरिये जिंदा रखा गया था. इससे उनके गुर्दे और फेफड़ों को सहारा मिला हुआ था.
बेनेट ने सूअर के हृदय को 'अंधेरे में लगाया गया निशाना' बताया.
इस ऑपरेशन के दौरान 10-जीन सूअर को 7 जनवरी को अस्पताल ले जाया गया. फिर इसके हृदय को बेनेट की छाती के अंदर दाखिल करा दिया गया. ऑपरेशन काफी पेचीदा था क्योंकि बेनेट का बीमार हृदय सूज गया था. इसलिए उसकी रक्त धमनियों को सूअर के छोटे हृदय से जोड़ना एक चुनौती था.
एक बार फिर घबराहट का माहौल था. ऐसा लग रहा था कि क्या प्रत्यारोपित हृदय तुरंत खारिज हो जाएगा. लेकिन यह धड़कता रहा और आखिरकार गुलाबी रंग में तब्दील हो गया. अस्पताल में कार्डियक जेनोट्रांसप्लांटेशन विभाग के डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद मोहिउद्दीन ने कहा कि वह तो 'अपनी जिंदगी' में इस सफलता को देखने की उम्मीद नहीं कर रहे थे.
जब मैंने इस ऑपरेशन के एक महीना पूरा होने पर उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि शरीर की ओर से प्रत्यारोपित अंग को खारिज करने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. लेकिन बेनेट अब भी काफी कमजोर दिख रहे थे.
उन्होंने कहा, '' हमने 1960 की एक कार में फरारी का नया ईंजन डाल दिया है. ईंजन काफी अच्छे तरीके से काम कर रहा है लेकिन बाकी बॉडी को भी अभी इससे एडजस्ट करना है. ''
लेकिन प्रत्यारोपण के दो महीनों के बाद बेनेट की मौत हो गई. लिहाजा जेनोट्रांसप्लांटेशन के असर और वजहों के बारे में अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है.
बेनेट ऑपरेशन से पहले भी काफी कमजोर थे और यह संभव हो सकता है कि उनके लिए नया हृदय भी पर्याप्त न हो.
इस मामले में प्रत्यारोपित अंग को खारिज किए जाने के किसी संकेत की रिपोर्ट नहीं थी . लेकिन अगर हृदय का विस्तृत विश्लेषण प्रतिरक्षा रक्षा प्रणाली की ओर से इस पर हमला करने का संकेत देता है तो 10-जीन सूअर में और संशोधन की जरूरत होती है ताकि प्रत्यारोपण के लिए अंग मानव शरीर के ज्यादा मुफीद हो सके.
और अंतत: मामला शरीर रचना पर आ सकता है और सूअर का हृदय मानव शरीर के मुफीद नहीं बैठ सकता. हमारे हृदय को गुरुत्वाकर्षण से लड़ने के लिए सूअर की तुलना में ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है क्योंकि मनुष्य को दो पैरों पर चलना पड़ता है. जबकि सूअर के चार पैर होते हैं.
नॉटिंघम यूनिवर्सिटी में स्टेम सेल बायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर क्रिस डेनिंग ने कहा कि हाइपरएक्यूट रिजेक्शन की नाकामी से पार पाने का मतलब हृदय प्रत्यारोपण की सफलता मानी जाएगी.
उन्होंने कहा कि अगर मामला मरीज की कमजोरी का था तो यह और बात है. लेकिन 'जेनोट्रांसप्लांटेशन' भविष्य में सफल हो सकता है. लेकिन अगर शरीर रचना का मामला हो तो यह 'संभावित शो स्टॉपर' हो सकता है.
अस्पताल अब अपने क्लीनिकल ट्रायल को जारी रखना चाहता है.
अंग प्रत्यारोपण की दुनिया में सूअर के अंगों से बढ़ी उम्मीद
ब्रिटेन के सबसे नामचीन ट्रांसप्लांट सर्जनों में से एक प्रोफेसर जॉन वॉलवर्क के मुताबिक बड़ी तादाद में लोगों की जिंदगी बचाने के लिए जरूरी नहीं कि गुणवत्ता में सूअर के हृदय को मानव हृदय की तरह ही होना पड़े. वह कहते हैं कि कई लोग अब भी ट्रांसप्लांट के इंतजार में मर जाते हैं.
जेनोट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में काम करने वाले प्रोफेसर वॉलवर्क शुरुआती लोगों में से एक हैं. उन्होंने ही दुनिया का पहला हृदय-फेफड़ा-लीवर प्रत्यारोपण किया था. वह कहते हैं कि 100 लोगों को मानव हृदय के साथ जिंदा रहने का 85 फीसदी मौका देने से अच्छा है कि 1000 लोगों को इसके साथ जिंदा रहने का 70 फीसदी मौका मिले.
जेनो ट्रांसप्लांटेशन को ट्रांसप्लांट मेडिसिन में हमेशा एक अगली बड़ी चीज के तौर पर देखा गया गया है. यही वजह है कि इसमें एक के बाद एक उल्लेखनीय ऑपरेशन हुआ. लेकिन आगे होने वाली और रिसर्च ही बता सकेंगी कि इसका बड़ा सपना मुकम्मल रूप ले सकेगा या नहीं.
डॉ. लोक कहती हैं, '' हमारा लक्ष्य यह होगा कि एक एडिटेड 10-जीन सूअर किडनी, लीवर और हृदय के नाकाम होने पर मरीजों की मदद कर सके और आखिरी दौर की दिल के मरीजों को बीमारी से निजात दिला सके.
उन्होंने कहा, यह बेहद अहम उपलब्धि होगी और मेरा ईमानदारी से यह मानना है कि अपने जीवनकाल में भी हम सब उस दौर में होंगे. ''
चीन ने अपने सबसे बड़े शहरों में से एक में रविवार को लॉकडाउन लागू कर दिया. समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, शहर की पूरी आबादी ही इस लॉकडाउन के दायरे में आ गई है.
दक्षिणी चीन के शेनज़ेन शहर में एक करोड़ 70 लाख की आबादी रहती है. चीन में कोरोना संक्रमण के मामले दोगुने बढ़कर 3400 के करीब पहुंच गए हैं. ज़ीरो-कोविड पॉलिसी को लेकर चीन सख़्त रवैया अपनाता रहा है. लेकिन हाल के दिनों में कोरोना संक्रमण के बढ़े मामलों की वजह से वहां बेचैनी का माहौल है.
शहर में सभी निवासियों से कहा गया कि वे अपने घरों में ही रहें क्योंकि पड़ोसी शहर हांगकांग ओमिक्रोन के मामलों से बुरी तरह प्रभावित है और यहां भी इससे जुड़े मामले बढ़ रहे हैं. शहर के प्रशासन की ओर से जारी नोटिस में बताया गया कि 20 मार्च तक लॉकडाउन लागू है और इस दौरान सार्वजनिक यातायात पर रोक है.
नोटिस में बताया गया कि वृहद स्तर पर तीन चरण में जांच होगी. रविवार को शेनजेंग के स्वास्थ्य अधिकारी लिन हांगचेंग ने कहा, '' अगर रोकथाम और नियंत्रण जैसे कदम को समय रहते मजबूती के साथ नहीं उठाया गया तो बड़े स्तर पर संक्रमण का प्रसार हो सकता है.''
चीन के कई शहरों में संक्रमण के मामले बढ़े हैं और इसके मद्देनजर शंघाई में अधिकारियों ने स्कूल बंद कर दिये और पूर्वोत्तर के कई शहरों में लॉकडाउन लागू है.
चीन के 18 प्रांत ओमिक्रोन और डेल्टा स्वरूप के क्लस्टर (कोई खास इलाका प्रभावित) से प्रभावित हैं. चीन में 2019 में सबसे पहले संक्रमण का मामला सामना आया था और तब से चीन कड़ाई से 'जीरो कोविड' नीति बनाए हुए है. (bbc.com)
सऊदी अरब ने कहा है कि उसने शनिवार को 81 पुरुषों को सज़ा-ए-मौत दी है. ये आंकड़ा बीते पूरे साल के दौरान सऊदी अरब में दी गई मौत की सज़ा से ज़्यादा है.
सरकारी समाचार एजेंसी एसपीए के अनुसार, मौत की सज़ा पाने वालों में सात यमनी और एक सीरियाई नागरिक शामिल हैं. इन्हें चरमपंथ सहित "एक से ज़्यादा जघन्य अपराधों" के लिए सज़ा दी गई है.
इनमें से कुछ पर कथित इस्लामी चरमपंथी समूह इस्लामिक स्टेट, अल-क़ायदा और यमन के हूती विद्रोहियों के समूहों से जुड़े होने का आरोप था.
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इनमें से कई आरोपियों को निष्पक्ष तौर पर क़ानूनन अपनी दलील देने का मौक़ा भी नहीं दिया गया. हालाँकि, सऊदी सरकार ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया है.
एसपीए के मुताबिक़, मौत की सज़ा पाने वालों पर 13 न्यायाधीशों के अधीन मुकदमा चलाया गया और इस दौरान ये सभी तीन चरणों वाली न्यायिक प्रक्रिया से गुज़रे थे.
इन सब पर देश के महत्वपूर्ण वित्तीय ठिकानों पर हमले की साजिश रचने, सुरक्षाबलों को मारने या उन्हें निशाना बनाने, अपहरण, यातना, बलात्कार और देश में हथियारों की तस्करी करने का आरोप लगाया गया था.
सऊदी अरब में बीते सालभर में 69 लोगों को मौत की सज़ा दी गई थी.
मौत की सज़ा देने वाले दुनिया के शीर्ष देशों में सऊदी अरब का नाम शामिल है. इस मामले में वो दुनिया में पांचवें पायदान पर है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की बनाई सूची के अनुसार इस लिस्ट में सऊदी अरब से पहले चीन, ईरान, मिस्र और इराक़ का नाम शामिल है. (bbc.com)
कीव,13 मार्च । शरणार्थियों के काफिले पर रूसी गोलाबारी में एक बच्चे सहित यूक्रेन के सात लोगों की मौत हो गयी। हमले के बाद यह काफिला वापस लौटने के लिए मजबूर हो गया।
यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह जानकारी दी।
एक खबर के अनुसार, ये सात लोग राजधानी कीव के उत्तर पूर्व में 20 किलोमीटर दूर पेरेमोहा गांव से जान बचा कर भाग रहे सैंकडों लोगों के काफिले में शामिल थे। इस गोलाबारी में लोग घायल भी हुए हैं।
रूस ने कहा है कि वह संघर्ष क्षेत्रों के बाहर मानवीय गलियारा बनाएगा, लेकिन यूक्रेनी अधिकारियों ने रूस पर उन मार्गों को बाधित करने और आम नागरिकों पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया है।
यूक्रेन की उप प्रधानमंत्री इरिना वेरेशचुक ने शनिवार को कहा कि ऐसे 14 गलियारों पर सहमति बनी थी लेकिन शनिवार को केवल नौ गलियारे खोले गए और इनके जरिए देश भर से 13 हजार लोगों को सुरक्षित निकाला गया।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, देश पर 17 दिन पहले हुए रूसी आक्रमण के बाद से अब तक कम से कम 25 लाख लोग यूक्रेन छोड़कर जा चुके हैं।(एपी)
रूस-यूक्रेन जंग और पश्चिमी देशों के रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच भारत के लिए एक अच्छी खबर आ रही है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत की सरकारी कंपनी का कुछ पैसा दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला में फंस गया था, जो अब वापस मिल सकता है. इस वक्त पूरी दुनिया का ध्यान रूस पर है, उसने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला कर दिया था. जिसके बाद से उसपर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. जबकि अमेरिका दूसरे देशों पर लगाए गए इन्हीं प्रतिबंधों में ढिलाई करने की सोच रहा है.
रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों के बीच भारत ने अमेरिका के साथ अपनी कूटनीतिक वार्ताओं को तेज कर दिया है, ताकि वेनेजुएला में उसकी कंपनी की बकाया राशि जारी हो सके. भारत की दूसरी बड़ी तेल और गैस कंपनी ONGC विदेश के सीईओ ने बताया कि भारत, अमेरिका के विदेश मंत्रालय के साथ इस मसले पर बातचीत कर रहा है. ताकि कंपनी को वेनेजुएला के तेल कार्गो के व्यापार से पिछले कर्जों का निपटारा किए जाने की अनुमति मिल सके. अमेरिका के वेनेजुएला पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ये पैसा फंसा हुआ है.
मिल सकते हैं 420 मिलियन डॉलर
सूत्रों का कहना है कि अमेरिका अब उन प्रतिबंधों में ढिलाई कर सकता है, जिससे ओएनजीसी की विदेशी शाखा ओवीएल को उसके 420 मिलियन डॉलर वापस मिल सकें. जो कुछ सालों से फंसे हुए हैं. 8 मार्च को बाइडेन प्रशासन ने रूस के तेल, गैस और कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था. ऐसे में अब माना जा रहा है कि इन सभी जरूरी चीजों के आयात के लिए अमेरिका रूस को भुलाकर दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला का रुख कर सकता है. अमेरिका ने जब से वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाए हैं, तभी से वहां से आयात बंद किया हुआ है.
ट्रंप कार्यकाल में लगे थे प्रतिबंध
साल 2017 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने OPEC के दो बड़े सदस्य देशों- वेनेजुएला और ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए थे. वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाए जाने के पीछे का कारण वहां के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को सत्ता से बेदखल करना था. जबकि ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए गए थे. जिसके चलते भारत ने बड़े स्तर पर 2019 में वेनेजुएला से तेल आयात में कटौती की. उसने ईरान से भी तेल खरीदना बंद कर दिया.
अमेरिका और वेनेजुएला के बीच बातचीत
अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने वेनेजुएला की राजधानी काराकास में वहां के अधिकारियों से मुलाकात की है. ये बैठक दो घंटे तक चली. हालांकि इसमें किन मुद्दों पर चर्चा हुई, ये स्पष्ट नहीं किया गया है. इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय व्हाइट हाउस ने वाशिंगटन डीसी में एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा था कि अधिकारियों ने काराकास का दौरा कई मुद्दों पर चर्चा करने के लिए किया था. जिसमें ‘ऊर्जा सुरक्षा’ के साथ-साथ देश (वेनेजुएला) में 9 अमेरिकी नागरिकों को जेल में रखे जाने का विषय शामिल है.
मादुरो ने पुतिन के प्रति समर्थन जताया
अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जुआन गोंजलेज ने किया. जो व्हाइट हाउस में लातिन अमेरिकी मामलों के टॉप सलाहकार हैं. उनके साथ वेनेजुएला में अमेरिकी राजदूत जेम्स स्टोरी भी थे. अधिकारियों ने वेनेजुएला का दौरा ऐसे वक्त पर किया है, जब यूक्रेन युद्ध के कारण दुनियाभर के देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. अमेरिका ने 2019 में इस दक्षिण अमेरिकी देश से रिश्ता तोड़ लिया था. हालांकि राष्ट्रपति मादुरो ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को आश्वस्त किया है कि वह यूक्रेन मामले में उनका समर्थन कर रहे हैं.
कच्चे तेल के व्यापार पर लगाए थे प्रतिबंध
अमेरिका ने मादुरो को सत्ता से हटाने के लिए इस देश पर तमाम प्रतिबंध लगाए थे, जिसमें देश को अमेरिकी बाजार में अपने कच्चे तेल के व्यापार से रोकना भी शामिल है. वेनेजुएला के राजस्व का 96 फीसदी हिस्सा तेल के व्यापार से ही आता है. अमेरिका ने मादुरो की सरकार से बातचीत करने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और विपक्षी नेता जुआन गाइदो को देश का वैध राष्ट्रपति बताया, साथ ही अमेरिका उन्हें नेता के रूप में मान्यता देने वाले 60 देशों में से एक है.
प्रतिबंध नीति की समीक्षा करेगा अमेरिका
फरवरी 2022 में (बाइडेन सरकार) अमेरिका ने संकेत दिया था कि वह अपनी प्रतिबंध नीति की समीक्षा करने के लिए तैयार है, केवल तभी जब मादुरो की सरकार और विपक्ष के बीच वार्ता आगे बढ़े. वहीं भारत की बात करें, तो वह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है. जो एक ही देश से तेल ना लेकर दूसरे देशों से भी लेना चाहता है, ताकि उसका आयात बिल कम हो सके और विदेशी मुद्रा बचाने के लिए सस्ता तेल खरीद सके.
अमेरिका से मंजूरी मिलना जरूरी
ईरान और वेनेजुएला पर लगे प्रतिबंधों के कारण प्रति दिन 30 लाख बैरल (बीपीडी) या विश्व आपूर्ति का 3 प्रतिशत तक तेल अवरुद्ध हो गया है. इस बीच अब भारत ने अमेरिका के माध्यम से वेनेजुएला से अपना बकाया वसूल करने के लिए अनुरोध किया है. अमेरिका में विदेश विभाग और भारतीय दूतावास इस मामले में चर्चा कर रहे हैं. वेनेजुएला से किसी भी तरह का बकाया पैसा लेने के लिए अमेरिका की मंजूरी काफी जरूरी है. अब देखना ये होगा कि अमेरिका कब तक इसपर हामी भरता है और भारत को उसका पैसा वापस मिल पाता है.(tv9hindi.com)
-काई वांग
रूस के आक्रमण पर यूएन में हुई वोटिंग में हिस्सा न लेकर चीन ने यूक्रेन में जारी युद्ध से ख़ुद को कूटनीतिक रूप से अलग रखा है.
दूसरी तरफ़, चीन सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर युद्ध को लेकर ज़ाहिर किए जा रहे मज़बूत विचारों को दबाने का प्रयास भी लगातार कर रहा है.
युद्ध की स्थिति में चीन ने अपने लिए इसे ही बीच का रास्ता बनाया है.
बीते महीने ही, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एलान किया था कि बीजिंग और रूस के बीच हाल ही में प्रगाढ़ हुए संबंधों की कोई "सीमा" नहीं है.
किस तरह के कंटेंट को दबा हा चीन?
चीन सोशल मीडिया से रोज़ाना उस तरह के पोस्ट को हटा रहा है जिनमें रूसी सैन्य कार्रवाई के पक्ष या फिर विपक्ष में विचार ज़ाहिर किए गए हों.
चीन में ट्विटर सरीख़े प्लेटफ़ॉर्म वीबो पर एक शख्स ने लिखा, "फिलहाल किसी में यूक्रेन के साथ खड़े होने की हिम्मत नहीं है." ये पोस्ट पूरी तरह से रूस के समर्थन में था.
चीन के सेंसरशिप को ट्रैक करने वाले फ्ऱी वीबो के मुताबिक, इस पोस्ट और इसके जैसे ही अन्य पोस्ट को हटा दिया गया.
युद्ध शुरू होने से पहले वीचैट मेसेजिंग ऐप पर व्लादिमीर पुतिन से इस्तीफ़े की मांग करने वाले एक सेवानिवृत्त रूसी जनरल की ख़ुली चिट्ठी शेयर हो रही थी.
अब इसे ब्लॉक कर दिया गया है.
रूस के समर्थन में व्यक्त किए गए कुछ विचारों को भी सोशल मीडिया से हटा दिया गया है.
रूस के सरकारी समाचार नेटवर्क आरटी के आधिकारिक वीबो अकाउंट से चीन के समर्थन के लिए एक धन्यवाद नोट लिखा गया. लेकिन इसे भी हटा दिया गया.
पोस्ट में लिखा था, "खुशी है कि रूस ने यूक्रेन में नाज़ियो से लड़ने के कठिन काम की शुरुआत की है. रूस पर लगाए प्रतिबंध अस्वीकार्य हैं."
सोशल मीडिया को कैसे सेंसर कर रहा है चीन?
किसी खास कंटेंट से निपटने के तरीकों के लिए चीन की सरकार लगातार सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को निर्देश दे रही है और उनपर इनका पालन करने का दबाव भी है.
इन्हीं निर्देशों में से एक कथित तौर पर लीक हो गया और चाइना डिजिटल टाइम्स ने इस बारे में ख़बर भी प्रकाशित कर दी.
ऐसा कहा जा रहा है कि इस महीने चीन के केंद्रीय नियामक साइबरस्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (सीएसी) ने सभी कमर्शियल वेबसाइट्स, स्थानीय और निजी मीडिया से कहा है कि वे यूक्रेन संघर्ष से जुड़े किसी मुद्दे पर न तो लाइवस्ट्रीम करें और न ही हैशटैग्स का इस्तेमाल करें.
इसके अतिरिक्त चीन में विदेशी मीडिया की रिपोर्ट्स को रिपोस्ट करना और किसी भी पक्ष के लिए "दुर्भावना से भरे संदेश" पोस्ट करना भी सख्त तौर पर प्रतिबिंधित है.
चीन की माडिया एक्सपर्ट सारा कुक इन कथित निर्देशों को लेकर कहती हैं, "मुझे ये वास्तविक लगते हैं. स्रोत विश्वसनीय है और नए निर्देश बीते समय में किए गए मीडिया के नियंत्रण से मेल खाते हैं."
आक्रमण के बाद चीन के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ऐसे कई पोस्ट हटा रहे हैं, जो ख़तरनाक या अशांति फैलाने वाले लगते हैं.
चीन के टिकटॉक सरीखे वीडियो प्लेटफ़ॉर्म डोएन ने बीते सप्ताह कहा था कि उसने युद्ध और घृणा को बढ़ावा देने वाले गलत सूचनाओं और अनुचित संदेश वाले 498 वीडियो और 2,657 कमेंट्स हटाए हैं. साथ ही सैकड़ों अकाउंट निलंबित भी किए हैं.
वीबो ने कहा कि उसने हज़ारों अकाउंट निलंबित किए हैं और बड़ी संख्या में ऐसे पोस्ट्स डिलीट किए जो यूक्रेन की मौजूदा स्थिति का "मख़ौल" उड़ा रहे थे. वीबो ने ये भी ऐलान किया कि अब वो पोस्ट में जियो-लोकेशन लेबल की शुरुआत करेगा, जिससे पोस्ट की वेरिफ़िकेशन करने में मदद मिलेगी.
वीडियो स्ट्रीमिंग साइट बिलीबिली ने कहा कि उसने बीते महीने 1,642 "अनुचित संदेश" हटाए और करीब 57 अकाउंट्स भी निलंबित किए.
वीचैट और बिलीबिली दोनों ने ही यूज़र्स ने से आग्रह किया है कि यूक्रेन पर चर्चा के दौरान वे "तार्किक" और "निष्पक्ष" रहें.
यूक्रेन के राष्ट्रपति का यह बयान क्या पुतिन के सामने नरम पड़ना है?
सरकारी और मेनस्ट्रीम मीडिया यूक्रेन की स्थिति पर लगातार रिपोर्टिंग कर रहा है लेकिन इन ख़बरों में रूस की कार्रवाई को "युद्ध" या "आक्रमण" नहीं कहा जा रहा है.
रियल टाइम में भ्रामक जानकारियों पर नज़र रखने वाली संस्था डबलथिंक लैब ने बताया है कि चीनी मीडिया लगातार "रूसी स्रोतों से मिलने वाली भ्रामक जानकारियों और साजिशों की कहानियों का ज़िक्र कर रहा है."
यूक्रेन के लोगों ने अपने ही परमाणु संयंत्र में आग लगा दी जैसे झूठे दावों को चीनी मीडिया लगातार बिना सवाल उठाए ही दोहरा रहा है.
चीनी मीडिया में यूक्रेन के प्रतिरोध पर भी बहुत कम रिपोर्टिंग हो रही है न तो रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों की व्यापक प्रतिक्रिया को ही ज़्यादा जगह मिल रही है.
सारा कुक कहती हैं, "मेरे विचार में, यूक्रेन से संबंधित कंटेंट पर सेंसरशिप असंतुलित है... उन टिप्पणियों और आवाज़ों को अधिक दबाया जा रहा है जो चीन के आधिकारिक रुख के विपरीत हैं."
चीन की मीडिया में यूक्रेन के घटनाक्रम की आलोचना दिखाई देती है, लेकिन अक्सर ये अमेरिका को निशाना बनाकर की जाती है, जिसपर संघर्ष भड़काने का दोष मढ़ा जाता है.
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में अमेरिका पर यूक्रेन में हथियार बेचकर मुनाफ़ा कमाने का आरोप लगाया गया.
एक अन्य लेख में, चीन की छवि ख़राब करने के लिए अमेरिका पर यूक्रेन संकट को लेकर भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप लगाया गया.
चीन में जहां अधिकांश विदेशी वेबसाइटों को या तो ब्लॉक कर दिया गया है या फिर कड़े प्रतिबंध झेलने पड़ रहे हैं, वहां रूस का सरकारी मीडिया लंबे समय से यहां आराम से काम कर रहा है.
स्पुतनिक जैसे रूसी मीडिया आउटलेट्स के वीबो पर 1.16 करोड़ फॉलोअर्स हैं. कई बार चीन की सरकारी मीडिया इसके हवाले से यूक्रेन संकट से जुड़ी ख़बरों की रिपोर्टिंग कर रही है.(bbc.com)
यूक्रेन के विदेश मंत्रालय का दावा है कि रूसी सेना ने दक्षिणी यूक्रेन के शहर मारियुपोल में एक मस्जिद पर गोलीबारी की है.
यूक्रेन का दावा है कि इस मस्जिद में बच्चों समेत 80 लोगों ने शरण ले रखी थी, जिसमें तुर्की के नागरिक भी शामिल हैं.
यूक्रेन ने ये भी आरोप लगाया है कि रूस ने मारियुपोल से लोगों को बाहर निकलने देने से इनकार कर दिया है और नाकाबंदी की वजह से सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं.
वहीं, रूस ने यूक्रेन पर शहर को खाली न कराने का आरोप लगाया है.
यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने एक ट्वीट में लिखा है कि मारियुपोल में सुल्तान सुलेमान और उनकी पत्नी रोक्सोलाना (हुर्रम सुल्तान) की मस्जिद पर रूस ने बमबारी की है.
ट्वीट में आगे लिखा है कि तुर्की के नागरिकों समेत 80 से अधिक वयस्क और बच्चे वहां छिपे हुए हैं. फिलहाल, किसी की मौत या किसी के जख़्मी होने का ब्योरा अबतक सामने नहीं आया है.
दूसरी तरफ़, रूस ने यूक्रेन में नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाने से इनकार किया है. (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कीएव में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि अब तक करीब 1300 यूक्रेन के सैनिकों की मौत लड़ाई में हो चुकी है.
ज़ेलेंस्की ने ये भी दावा किया कि शुक्रवार को करीब 500-600 रूसी सैनिकों ने यूक्रेन की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया है.
इन आंकड़ों की पुष्टि बीबीसी नहीं कर सकता है.
पश्चिमी सूत्रों का अनुमान है कि शुक्रवार तक करीब 6000 रूसी सैनिकों की मौत हुई है.
वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रूसी सैनिकों को चेतावनी देते हुए कहा है कि लोगों के दिमाग पर क़ब्ज़ा करना संभव नहीं है और अगर शहरों-कस्बों पर क़ब्ज़ा हो रहा है तो वो भी अस्थायी है.
ज़ेलेंस्की इस दौरान मेलिटोपोल के मेयर को अगवा किए जाने को लेकर भी रूस पर बरसते नज़र आए. ज़ेलेंस्की ने कहा कि मेलिटोपोल के मेयर को अगवा करने पर रूस को शर्म आनी चाहिए.
शुक्रवार की दोपहर को रूसी सैनिकों ने मेयर को अगवा कर लिया था और ये घटना सीसीटीवी में कैद हो गई थी जो सोशल मीडिया पर ख़ूब शेयर की जा रही है.
ज़ेलेंस्की का कहना है कि मेयर को अगवा किया जाना लोकतंत्र के ख़िलाफ़ अपराध है. उनका कहना है कि जर्मनी और फ्रांस के नेताओं को पुतिन से बातचीत कर मेयर को रिहा कराना चाहिए.
पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और अमेरिका को ईंधन निर्यात पर रोक के बाद अब रूस भारत को अपने तेल और पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात करने के साथ ही रूसी तेल क्षेत्र में भारत के निवेश को बढ़ाने का इच्छुक है.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू की ख़बर के मुताबिक़, शुक्रवार को रूसी उप प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेंडर नोवाक ने भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी को इसकी जानकारी दी है.
रूसी सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक, हरदीप सिंह पुरी ने नोवाक से फ़ोन पर बात की और भारत और रूस के बीच ऊर्जा क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने की संभावनाओं के बारे में चर्चा की.
रूस द्वारा जारी बयान के मुताबिक़, "भारत को रूस के तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात एक अरब डॉलर तक पहुँच गया है और अब इस आंकड़े को बढ़ाने के लिए स्पष्ट मौके हैं."
बयान के मुताबिक़ नोवाक ने कहा, "हम रूसी तेल और गैस क्षेत्र में भारतीय निवेश को बढ़ाने और भारत में रूसी कंपनियों के सेल नेटवर्क का विस्तार करने में रुचि रखते हैं." सूत्रों के अनुसार, रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के मद्देनज़र दोनों नेताओं के बीच भुगतान के संभावित तरीकों के साथ ही प्रस्ताव पर अन्य अधिकारियों द्वारा चर्चा किए जाने पर सहमति बनी.(bbc.com)
शनिवार सवेरे यूक्रेन की राजधानी कीएव समेत कई शहरों में हमले के साइरन सुनाई दिए हैं.
यूक्रेन ने एक और बार रूस पर आरोप लगाया है कि वो दक्षिणी शहर मारियुपोल से लोगों को सुरक्षित बाहर निकलने नहीं दे रहा.
यूक्रेनी सरकार का कहना है कि मारियुपोल में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. यहां अब तक मारियुपोल में 1,500 लोगों की मौत हो चुकी है और जो लोग बच गए हैं उनके पास न तो खाना है और न ही पानी. साथ ही उनके सामने बिना बिजली के ठंड गुज़ारने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
वहीं, शनिवार को यूक्रेनी अधिकारियों ने कहा है कि देश के उत्तरपूर्वी शहर सुमी से लोगों को बाहर निकालने के लिए और मानवीय कॉरिडोर बनने को लेकर सहमति बन गई है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने एक वीडियो जारी कर रूस की मांओं से अपील की है कि वो अपने बच्चों को युद्ध में न भेजें.
अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि वो यूक्रेन में रूस के ख़िलाफ़ युद्ध में हिस्सा लेने के लिए अपने सैनिक नहीं भेजेगा. हालांकि, उन्होंने कहा कि रूस के रईसों पर प्रतिबंध बढ़ाएंगे.
रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में यूक्रेन में जैविक हथियारों की अमेरिकी गतिविधियों का दावा किया. हालांकि, रूस ने इसके पक्ष में कोई सबूत नहीं दिए.
यूक्रेन ने कहा है कि आने वाले दिनों में बेलारूस युद्ध में रूस का साथ दे सकता है. (bbc.com)
ताज़ा ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर ब्रिटेन के रक्षा मंत्रायल ने कहा है कि 'रूसी सेना की एक टुकड़ी' राजधानी कीएव के सिटी सेंटर से 15 मील (25 किलोमीटर) दूर तक पहुंच चुकी है.
मंत्रालय ने कहा है कि राजधानी के उत्तर की तरफ़ रूसी सेना की जो बड़ी टुकड़ी थी वो अब हिस्सों में बंट गई है, "जो शायद शहर को घेरने में मदद करने के इरादे से किया गया है."
"ये भी हो सकता है कि रूसी सेना चाहती है कि यूक्रेन के जवाबी हमलों में उसका कम नुक़सान हो क्योंकि यूक्रेनी सेना के हमलों से उसे पहले ही काफ़ी क्षति हुई है."
इसके अलावा देश के चर्नीहीव, ख़ारकीएव, कारियुपोल और सुमी को रूसी सेना ने घेर लिया है और इन शहरों पर लगातार हमले कर रही है. (bbc.com)
कीव. यूक्रेन बीते 16 दिनों से रूस के हमले झेल रहा है. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर बायोलॉजिकल और केमिकल हथियार रखने का आरोप लगाया है. वहीं, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलडोमिर जेलेंस्की ने रूस के इन आरोप का जवाब देते हुए कहा, ‘मैं एक योग्य देश का योग्य राष्ट्रपति और दो बच्चों का पिता हूं. मेरी जमीन पर कोई बायोलॉजिकल और केमिकल हथियार नहीं है. पूरी दुनिया और आप भी यह बात जानते हैं.’
न्यूज एजेंसी एएफपी के मुताबिक जेलेंस्की ने कहा कि यूक्रेन में कोई भी जैविक हथियार या सामूहिक विनाश का कोई अन्य हथियार विकसित नहीं किया गया. उन्होंने रूस को चेतावनी देते हुए कहा कि उनके देश के खिलाफ जैविक हथियारों का इस्तेमाल सबसे गंभीर प्रतिबंधों को आमंत्रित करेगा. राष्ट्रपति वोलडोमिर जेलेंस्की की प्रतिक्रिया रूस की ओर से उनके देश पर जैविक हथियारों के विकास में रिसर्च करने के आरोप लगाने के बाद आई है.
रूसी रक्षा मंत्रालय ने लगाए थे आरोप
बता दें कि गुरुवार को रूसी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इगोर कोनाशेनकोव ने कहा था कि अनुसंधान का उद्देश्य घातक रोगजनकों के चुपके से प्रसार के लिए एक तंत्र विकसित करना था. रूसी रक्षा मंत्रालय की ओर से ये भी आरोप लगाया गया था कि अमेरिका ने इस रिसर्च के लिए वित्त पोषित किया था.
रूसी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता इगोर कोनाशेनकोव ने दावा किया कि मंत्रालय ने यूक्रेन में अमेरिकी सैन्य-जैविक गतिविधियों का विवरण देने वाले दस्तावेज प्राप्त किए हैं, जिसमें यूक्रेनियन के बायोमटेरियल को विदेशों में स्थानांतरित करना भी शामिल है. उन्होंने कहा कि अमेरिका ने पक्षी, चमगादड़ और सरीसृप रोगजनकों के साथ-साथ अफ्रीकी स्वाइन फ्लू और एंथ्रेक्स पर शोध करने की योजना बनाई है.
परिवार को लेकर जताई थी चिंता
इस वीडियो के बाद अब दुनियाभर से लोग प्रेसिडेंट जेलेंस्की के परिवार और उनके करीबियों के बारे में सर्च कर रहे हैं. रूसी सेना का डटकर मुकाबला कर रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलडोमिर जेलेंस्की ने कहा कि वह हर चुनौती का डटकर सामना करेंगे, अंतिम सांस तक वो अपने लोगों को नहीं छोड़ेंगे. हाल ही में उनका एक वीडियो सामने आया जिसमें उन्होंने अपनी पत्नी ओलेना वलोडिमिरिवना जेलेंस्का और दोनों बच्चों का जिक्र किया.
2003 में की थी शादी
यूक्रेन की प्रथम महिला ओलेना ओलेना वलोडिमिरिवना जेलेंस्का भी काफी सुर्खियों में रहती हैं. पेशे से वो एक आर्किटेक्ट, स्क्रीन राइटर हैं. साल 2019 में फोकस मैग्जीन ने जेलेंस्का को 100 सबसे प्रभावशाली यूक्रेनियन की लिस्ट में 30वें स्थान पर रखा था. राष्ट्रपति वलोडिमिर से उनकी शादी साल 2003 में हुई थी, जब वो अपने करियर को लेकर संघर्ष कर रहे थे.
कॉमेडियन से ऐसे बने राष्ट्रपति?
वोलडोमिर जेलेंस्की यूक्रेन के राष्ट्रपति बनने से पहले एक कॉमेडियन हुआ करते थे. साल 1997 में जेलेंस्की ने कई अन्य कॉमेडियन्स के साथ मिलकर अपना ग्रुप बनाया और 2003 में शोज करना शुरू किए. कॉमेडियन के तौर पर वोलडोमिर को लोगों का खूब प्यार मिला और इसी से प्रभावित होकर उन्होंने राजनीति में आने का फैसला किया.
साल 2018 में उन्होंने ‘सर्वेंट ऑफ द पीपल पार्टी’ के टिकट से राष्ट्रपति चुनाव लड़ा और 73 फीसदी वोटों से जीत दर्ज की. इसके बाद कॉमेडियन से प्रेसिडेंट बने वोलडोमिर ने यूक्रेन की जनता के लिए कई बड़े फैसले लिए, लेकिन उन्हें भी नहीं पता था कि पहले कार्यकाल में ही एक युद्धा का नेतृत्व भी करना होगा.
3 फ़रवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने इस्लामिक स्टेट (आईएस) समूह के जिन 'ख़लीफ़ा' अबु इब्राहिम अल-हाशिमी अल-क़ुरैशी के मारे जाने की बात कही थी, गुरुवार को इस चरमपंथी समूह ने उनके मौत की पुष्टि कर दी है.
इस्लामिक स्टेट की ओर से एक ऑनलाइन पोस्ट में ऑडियो संदेश के ज़रिए इसकी पुष्टि की गई और नए 'ख़लीफ़ा' अबु अल-हसन अल-हाशमी अल-क़ुरैशी के नाम की एलान किया गया.
लेकिन इसमें नए ख़लीफ़ा के बारे में और अधिक जानकारी नहीं दी गई और न ही यह बताया गया कि अबू इब्राहिम की मौत कब, कैसे और कहां हुई.
गुरुवार को जब ये ऑडियो मैसेज इस्लामिक स्टेट के नए प्रवक्ता अबु उमर अल-मुहजिर ने पोस्ट किया तब जाकर यह पता चला कि आखिर इस देरी की वजह क्या थी.
इस्लामिक स्टेट के नेता क़ुरैशी की मौत, अमेरिकी सेना ने ऐसे बिछाया जाल
दरअसल मुजहिर ने ये बताया कि उनसे पहले के प्रवक्ता अबु हमज़ा अल-क़ुरैशी की भी हाल ही में मौत हो गई है. मुहजिर ने कहा कि वो नए नेता के बारे में और नहीं बताएंगे लेकिन समर्थकों से उनमें निष्ठा रखने का आग्रह किया.
राष्ट्रपति बाइडन ने जब 3 फ़रवरी को ख़ुद देर रात अबु अल-हसन अल-हाशमी अल-क़ुरैशी के मारे जाने की बात कही थी तो ये बताया गया था स्पेशल फोर्स की छापेमारी के दौरान उन्होंने अपने परिवार को मारने के साथ ख़ुद को उड़ा लिया था.
इस कार्रवाई की जानकारी देते हुए बाइडन ने कहा था कि, "दुनिया के लिए एक बड़े आतंकी ख़तरे को दूर कर दिया गया है."
तब बाइडन ने अबु इब्राहिम अल-हाशिमी अल-क़ुरैशी को दुनिया भर में इस्लामिक स्टेट से जुड़े संगठनों के प्रसार और यज़ीदी लोगों के मारे जाने के पीछे मुख्य ताक़त बताया था.
महीनों चली थी इसकी प्लानिंग
अमेरिकी अधिकारियों ने तब ये भी बताया था कि कैसे इस ऑपरेशन की प्लानिंग महीनों तक चली थी. और उसके बाद सीरिया के इदलिब प्रांत में घुसकर इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया था.
चरमपंथी अबू इब्राहिम अल-हाशिमी अल-क़ुरैशी को "द ड्रिस्ट्रॉयर" के नाम से भी जाना जाता था. साल 2019 में अबू बक्र अल-बग़दादी की मौत के बाद अल-क़ुरैशी को इस्लामिक स्टेट का नेता बनाया गया.
बग़दादी की मौत के चार दिन बाद ही ये घोषणा की गई कि समूह अब अल-क़ुरैशी के नेतृत्व में काम करेगा. लेकिन ऐसा माना जाता है कि अल-क़ुरैशी को इस पद के लिए काफ़ी तैयार किया गया और जंग के मैदान से दूर रखा गया था.
इदलिब के ठिकाने का पता चला था
ख़ुफ़िया रिपोर्ट से पता चला कि अल-क़ुरैशी अपने परिवार के साथ सीरिया के आतमेह कस्बे में रह रहे हैं.
तुर्की की सीमा के पास इदलिब प्रांत में आने वाला ये इलाक़ा जिहादी गुटों का गढ़ है जो इस्लामिक स्टेट के धुर विरोधी हैं. साथ ही साथ वहाँ तुर्की समर्थित विद्रोही भी यहाँ सक्रिय हैं, जो सीरिया की सरकार का विरोध कर रहे हैं.
ख़ुफ़िया जानकारी थी कि अल-क़ुरैशी वहाँ अपने परिवार के साथ एक तीन मंज़िला रिहायशी इमारत की दूसरी मंज़िल पर रह रहे है. क़ुरैशी वहीं से कुरियर यानी संदेशवाहकों के ज़रिए अपने आदेश सीरिया और दूसरी जगहों पर भेजकर समूह को चलाते थे.
वो कभी भी घर से बाहर नहीं निकलते थे. सिर्फ़ नहाने के लिए बिल्डिंग की तीसरी मंज़िल पर जाया करते थे. अब यहाँ पर संदेह ये था कि अगर एयर स्ट्राइक की जाए तो इससे आम नागरिकों की मौत का ख़तरा था.
ऐसा माना जा रहा था कि बिल्डिंग में रहने वाले दूसरे परिवार इस्लामिक स्टेट से जुड़े नहीं थे या वो नहीं जानते थे कि अल-क़ुरैशी यहीं रहते हैं.
ऑपरेशन कैसे अंजाम दिया गया
वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारियों ने बताया कि इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ज़मीन के रास्ते हमला बोलने के बारे में विस्तार से अध्ययन किया गया.
कई तरह के हालातों का अभ्यास किया गया, ये समझने की कोशिश की गई कि अगर ज़मीन से ऑपरेशन होता है तो कितना जोख़िम है.
रिहायशी इमारत का मॉडल बनाया गया. इंजीनियरों ने ये समझा कि अगर विस्फोट से बिल्डिंग को उड़ाया जाता है तो कैसी स्थिति बनेगी.
राष्ट्रपति बाइडन को दिसंबर में इस संभावित ऑपरेशन के बारे में विस्तार से बताया गया. बाइडन ने पहली फ़रवरी को इस कार्रवाई की अनुमति दी थी.
3 फ़रवरी को जब इस ऑपरेशन के लिए हेलिकॉप्टर आतमेह पहुंच रहे थे तो बाइडन ख़ुद व्हाइट हाउस में स्थिति पर नज़र रखे हुए थे.
पेंटागन के प्रवक्ता जॉन किर्बी के मुताबिक अमेरिकी सेना ने कार्रवाई से पहले 8 बच्चों समेत 10 लोगों को बिल्डिंग से निकाला.
किर्बी ने बताया कि इस कार्रवाई के दौरान ही क़ुरैशी ने बिल्डिंग की तीसरी मंज़िल पर विस्फोट कर दिया, जिसमें क़ुरैशी, उनकी पत्नी और दो बच्चों की मौत हो गई.
उन्होंने ये भी बताया कि बाद में फिंगरप्रिंट और डीएनए एनालिसिस के बाद अल-क़ुरैशी की पहचान हुई.
साल 1976 में इराक़ में जन्मे अल-क़ुरैशी पर अमेरिका ने 1 करोड़ डॉलर का इनाम रखा था.
कभी इस्लामिक स्टेट का पूर्वी इराक़ से पश्चिम सीरिया तक क़रीब 88 हज़ार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर क़ब्ज़ा था और यहां के 80 लाख लोग इनके क्रूर शासन को झेलने के लिए बाध्य थे.
2019 में इस समूह को इस पूरी ज़मीन से खदेड़ दिया गया था लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ के एक अनुमान के मुताबिक सीरिया और इराक़ में इसके 6 से 10 हज़ार लड़ाके आज भी मौजूद हैं जो अचानक तेज़ हमले, घात लगाकर हमले और सड़क किनारे बमबारी जैसी घटनाओं आए दिन अंजाम देते रहते हैं. (bbc.com)
यूक्रेन के 10 लाख से ज्यादा बच्चे शरणार्थी बन चुके हैं. रातोंरात शरणार्थी बनने की पीड़ा बच्चों के दिल-दिमाग पर असर कर रही है. कोई पीछे छूटे पिता के लिए परेशान है तो किसी को अपने दोस्तों की फिक्र हो रही है.
10 साल की अनामारिया मसलोव्स्का का घर खारकीव में था. जब वहां बमबारी शुरू हुई, तो अनामारिया के दोस्त, उनके खिलौने और यहां तक कि उसका देश यूक्रेन भी उससे छूट गया. उसे अपना सबकुछ पीछे छोड़कर मां के साथ एक लंबी यात्रा पर निकलना पड़ा. कई दिन लंबी इस यात्रा का हासिल बस इतना है कि अब अनामारिया और उनकी मां सुरक्षित हैं. इस सुरक्षा के लिए उन्हें सबकुछ गंवाकर शरणार्थी बनना पड़ा है.
"मुझे अपने दोस्तों की फिक्र हो रही है"
अनामारिया और उनकी मां उन सैकड़ों शरणार्थियों के दल का हिस्सा थे, जो बहुत मशक्कतों के बाद ट्रेन के रास्ते हंगरी सीमा पार करने में कामयाब रहे. हालांकि वो अनामारिया खुश नहीं हैं. उन्हें खारकीव में रह रहे अपने दोस्तों की चिंता है. उसने अपने दोस्तों को वाइबर पर कई संदेश भेजे, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है.
हंगरी के सीमावर्ती शहर जाहून में रेलवे स्टेशन के भीतर बैठी अनामारिया बताती हैं, "मुझे उनकी बहुत याद आती है. मेरा उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है. वे बस मेरे भेजे मेसेज पढ़ते हैं, उनका जवाब नहीं आता. मुझे सच में बहुत चिंता हो रही है क्योंकि मैं नहीं जानती कि वे कहां हैं."
अनामारिया की परवरिश उनकी मां ने अकेले ही की है. वह उन 10 लाख शरणार्थी बच्चों में शामिल है, जिन्हें रूसी हमले के बाद यूक्रेन से जान बचाकर भागना पड़ा. पिछले दो हफ्तों में यूक्रेन से निकले शरणार्थियों की संख्या 20 लाख से ज्यादा हो गई है. इनमें आधे बच्चे हैं. कई बच्चे ऐसे भी हैं, जिन्हें जान बचाने की यात्रा अकेले ही करनी पड़ी. संयुक्त राष्ट्र की रिफ्यूजी एजेंसी 'यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीज' (यूएनएचसीआर) ने इसे दूसरे विश्व युद्ध के बाद से अब तक का यूरोप का सबसे बड़ा शरणार्थी संकट बताया है.
बच्चों पर इस त्रासदी का गहरा असर
बहुत छोटे बच्चों को अभी यह समझ नहीं आ रहा होगा कि उनकी जिंदगी कैसे सिर के बल उलट गई है. मगर थोड़े बड़े बच्चे हालात को समझ पा रहे हैं. उन्हें सामने आई परेशानियां महसूस हो रही हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इन बच्चों पर युद्ध की विभीषिका और शरणार्थी होने की पीड़ा का मनोवैज्ञानिक असर पड़ सकता है.
37 साल की विक्टोरिया फिलोनचुक अपनी एक साल की बेटी मारगोट को साथ लेकर कीव से रोमानिया पहुंची हैं. वह बताती हैं, "मारगोट को यह यात्रा किसी एडवेंचर जैसी लगी. उसके जैसे छोटे बच्चों को शायद समझ ना आए, लेकिन तीन-चार साल के बच्चे त्रासदी को समझ रहे हैं. मुझे लगता है कि यह उनके लिए बहुत मुश्किल अनुभव है."
डैनियल ग्रैडिनारु रोमानिया की सीमा पर शरणार्थियों के लिए काम कर रहे गैर-सरकारी संगठन 'फाइट फॉर फ्रीडम' के संयोजक हैं. उन्हें डर है कि अचानक घर छूट जाने और ठंड में कई दिनों की लंबी यात्रा का अनुभव शायद बच्चों की आगे की पूरी जिंदगी पर निशान छोड़ेगा. डैनियल कहते हैं, "मैं उम्मीद करता हूं कि ये लोग जहां भी जाएं, वहां के लोग इनकी काउंसलिंग कराने में मदद करें."
रूस पर नागरिकों के दमन का इल्जाम
ज्यादातर शरणार्थी यूक्रेन की पश्चिमी सीमा- हंगरी, पोलैंड, स्लोवाकिया, रोमानिया और मोलदोवा की ओर से आ रहे हैं. सबसे ज्यादा लोग पोलैंड पहुंच रहे हैं. पोलिश बॉर्डर गार्ड एजेंसी के मुताबिक, अब तक 13 लाख से ज्यादा शरणार्थी पोलैंड आ चुके हैं. हालिया दिनों में कई यूक्रेनी मानवीय गलियारों के रास्ते संघर्ष वाले इलाकों से निकल रहे हैं. यूक्रेन में यूएन की अधिकारी नतालिया मुदरेंको रूस पर महिलाओं और बच्चों समेत आम लोगों को रोकने का आरोप लगाती हैं. उन्होंने इल्जाम लगाया कि यूक्रेन के कुछ संघर्ष वाले शहरों में रूस भागने की कोशिश कर रहे लोगों को रोककर उन्हें बंधक बना रहा है.
8 मार्च को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की एक बैठक में नतालिया ने कहा कि नागरिकों को बाहर नहीं आने दिया जा रहा है और मानवीय सहायता उनतक पहुंचाने में भी रुकावट डाली जा रही है. रुंधे गले से नतालिया ने आरोप लगाया, "अगर लोग भागने की कोशिश करते हैं, तो रूसी उनपर गोलियां चलाकर उन्हें मार डालते हैं. लोगों के पास खाना-पानी खत्म हो रहा है, वे मर रहे हैं." 7 मार्च को मरियोपोल शहर में मर गई एक छह साल की बच्ची के बारे में बताते हुए नतालिया ने कहा, "अपने जीवन के आखिरी पलों में वह बच्ची बिल्कुल अकेली थी. उसकी मां रूसी गोलीबारी में पहले ही मारी गई थी."
त्रासदी का अनुभव
9 साल की वलेरिया वरेनको यूक्रेन की राजधानी कीव में रहती थीं. जब यहां रूसी बमबारी शुरू हुई, तो उसे अपनी इमारत के बेसमेंट में छुपना पड़ा. अपने छोटे भाई और मां जूलिया के साथ एक लंबा सफर तय करके 9 मार्च को वलेरिया हंगरी पहुंची है. इन तीनों को यहां बाराबास शहर के एक अस्थायी शरणार्थी शिविर में जगह मिल गई है. अब वलेरिया यूक्रेन में छूट गए बच्चों को कहना चाहती हैं कि वे सावधान रहें. सड़क पर पड़ी किसी लावारिस चीज को न छूएं क्योंकि "वे बम हो सकते हैं और बच्चों को बहुत नुकसान पहुंचा सकते हैं." वलेरिया के पिता भी यूक्रेन में ही हैं. वह रूसी हमलावर सैनिकों से कीव की रक्षा करने में हाथ बंटा रहे हैं. वलेरिया को अपने पिता पर गर्व है, लेकिन उसे पापा की बहुत याद आ रही है. वह कहती है, "मैं चाहती हूं कि पापा भी हमारे पास आ जाएं, लेकिन उन्हें आने की इजाजत नहीं है."
वलेरिया केवल नौ साल की है. युद्ध ने उसे रातोरात बहुत अनुभवी बना दिया है. त्रासदी में बच्चों का यूं एकाएक इतना समझदार हो जाना कितना भीषण है!
एसएम/एनआर (एपी)
रूस और यूक्रेन के विदेश मंत्रियों की तुर्की के अंताल्या में हुई बातचीत का कोई बड़ा नतीजा नहीं निकल सका है. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दोनों देशों के बीच यह अब तक की सबसे बड़े स्तर की बातचीत थी.
तुर्की के अंताल्या में रूस के विदेश मंत्री सर्गेइ लावरो और उनके यूक्रेनी समकक्ष डिमित्रो कुलेबा ने बातचीत की. बैठक में तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कोवुसोग्लु भी शामिल हुए. उम्मीद की जा रही थी कि दोनों पक्षों के बीच संघर्ष विराम पर कोई समझौता इस बैठक से निकल सकता है. दमित्रो कुलेबा का कहना है कि "कोई प्रगति नहीं" हुई है, यहां तक कि 24 घंटे के संघर्ष विराम पर भी. कुलेबा ने निराशा जताते हुए कहा, "ऐसा लगता है कि इस मामले पर फैसला लेने वाला रूस में कोई और है." इसके साथ ही कुलेबा ने यह भी दोहराया कि उनका देश पीछे नहीं हटेगा. कुलेबा ने कहा, "मैं यह दोहराना चाहता हूं कि यूक्रेन ने समर्पण नहीं किया था और समर्पण नहीं करेगा."
कुलेबा ने बैठक को "कठिन" बताया और आरोप लगाया कि रूसी विदेश मंत्री यूक्रेन के बारे में "पारंपरिक बयान" के साथ ही टेबल पर आए थे. यूक्रेनी विदेश मंत्री ने यह भी कहा कि वो लावरोव के साथ फिर इस फॉर्मेट में बात करेंगे, अगर समाधान निकालने के लिए चर्चा करने की कोई गुंजाइश हो.
बेलारूस की बैठक पर जोर
यूक्रेन और रूस के बीच इस दौरान प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत बेलारूस में भी हो रही है, लेकिन रूस की ओर से आई टीम इस बार थोड़े छोटे स्तर की है. इसमें कोई मंत्री शामिल नहीं है. हालांकि रूसी विदेश मंत्री ने बेलारूस में हो रही बैठक को ज्यादा अहम बताया और कहा, "आज की बैठक ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि बेलारूस में चल रही रूसी यूक्रेनी फॉर्मेट का कोई विकल्प नहीं है." लावरोव का कहना है, "हम हर तरह के संपर्क के पक्ष में हैं ...ताकि यूक्रेन के संकट का हल हो...लेकिन हमने जान लिया है कि उन्हें बेलारूस में चल रही मुख्य बातचीत को ज्यादा महत्व देना चाहिए और उसे कम करके नहीं देखना चाहिए."
बैठक की तस्वीरों में रूसी, तुर्क और यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल यू आकार वाले टेबल के सभी ओर बैठे हैं. हर मंत्री के साथ केवल दो अधिकारी ही मौजूद थे. दोनों पक्षों ने बैठक से पहले हाथ मिलाया या नहीं इस बात के भी कोई संकेत नहीं मिले हैं.
बैठक ऐसे समय में हुई जब दुनिया भर में यूक्रेन के बच्चों के अस्पताल पर हुई बमबारी के लिए नाराजगी है. यूक्रेन के मुताबिक इसमें कम से कम तीन लोगों की मौत हुई है, जिसमें एक बच्चा भी शामिल है. कुलेबा का कहना है कि उन्हें बैठक से मारियोपोल के लिए मानवीय गलियारे की उम्मीद थी लेकिन, "दुर्भाग्य से मंत्री लावरोव उस पर वादा करने की हालत में नहीं थे." यूक्रेनी विदेश मंत्री का कहना है कि लावरोव, "इस मामले पर संबंधित अधिकारियों से बात करेंगे."
उधर लावरोव का दावा है कि यह अस्पताल कट्टरपंथी आजोव बटालियन के "राष्ट्रवादियों के लिए सैन्य अड्डे" का काम कर रहा था. रूसी विदेश मंत्री ने यूरोपीय संघ और दूसरे देशों पर यूक्रेन को हथियारों की "खतरनाक सप्लाई" देने का आरोप लगाया है.
"रूस ने हमला नहीं किया"
तुर्की के एक पत्रकार ने पूछा कि क्या रूस दूसरे देशों पर भी हमले की योजना बना रहा है. इसके जवाब में लावरोव ने कहा, "हम दूसरे देशों पर हमले की योजना नहीं बनाते हैं और हमने यूक्रेन पर हमला नहीं किया है." रूसी विदेश मंत्री ने जोर दिया कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 24 फरवरी को यह ऑपरेशन इसलिए शुरू किया कि यूक्रेन, "रूसी फेडरेशन के लिए सीधा खतरा बन गया था."
बैठक के मेजबान तुर्क विदेशमंत्री ने माना कि यह आसान नहीं था, लेकिन इसके साथ ही कहा कि बातचीत "बहुत सभ्य" तरीके से हुई और गुस्से में आवाजें ऊंची नहीं की गईं. कावुसोग्लु ने बताया कि कुलेबा ने इस बात की पुष्टि की है कि राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की पुतिन के साथ बैठक के लिए तैयार थे और लावरो ने भी कहा कि पुतिन सैद्धांतिक रूप से इसके खिलाफ नहीं हैं. तुर्क विदेश मंत्री का मानना है, "बैठक एक अहम शुरूआत थी. किसी को भी एक मुलाकात में करिश्मे की उम्मीद नहीं करनी चाहिए."
यूक्रेन और रूस के बीच सुलह के लिए चल रहे कूटनीतिक प्रयासों में तुर्की की बातचीत भी एक कोशिश है. इस बीच इस्राएल भी जेलेंस्की और पुतिन की बातचीत कराने की कोशिश में है. फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों भी इसी उम्मीद में अक्सर पुतिन को फोन कर रहे हैं.
तुर्की यूक्रेन का पारंपरिक साझीदार है और उसने बायराक्टर ड्रोन की सप्लाई भी यूक्रेन को की है. यूक्रेन इनका इस्तेमाल मौजूदा युद्ध में कर रहा है. हालांकि तुर्की गैस के आयात पर निर्भरता और सैलानियों से होने वाली कमाई के कारण रूस के साथ भी अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है. तुर्क राष्ट्रपति ने स्थायी संघर्ष विराम की उम्मीद जताई है.
एनआर/एसएम(एएफपी, एपी)
चीन में आठ बच्चों की एक मां को जंजीरों में बांध कर रखने की घटना पिछले महीने सामने आने के बाद मानव तस्करी को लेकर चर्चा तेज हो गई है. यहां तक कि चीन में नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में भी यह मामला उठाया गया.
जंजीरों में जकड़ी महिला पूर्वी हिस्से में मौजूद शुझोउ शहर के बाहरी इलाके में पिछले महीने मिली. उसे बार-बार बेचा गया है और जिस आदमी ने उसे आखिरी बार खरीदा, उससे उसके आठ बच्चे हैं. महिला की मानसिक हालत भी अच्छी नहीं थी. चीन के प्रधानमंत्री ली केकियांग ने जब शनिवार को नेशनल पीपुल्स कांफ्रेंस (एनपीसी) में सरकार के कामकाज के बारे में सालाना रिपोर्ट पेश की, तो उसमें भी मानव तस्करी का जिक्र था. आमतौर पर ऐसा कम ही होता है.
मानव तस्करी के खिलाफ नए कदम
स्थानीय सरकारों ने महिलाओं को शिकार बना रहे मानव तस्करी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कदमों का एलान किया है, जबकि सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय देश भर में मानव तस्करी के खिलाफ अभियान चला रहा है. इसका लक्ष्य लंबित मामलों से निपटना है और यह काम हर स्तर पर होगा. मंगलवार को चीन के शीर्ष अभियोजक झांग जुन ने घोषणा कि है कि विभाग अपहरण और तस्करी के खिलाफ कानूनों को "सख्ती से लागू" करेगा.
चीन की सरकारी मीडिया का कहना है कि कानूनी सुधार के कम से कम आधा दर्जन प्रस्ताव नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के सदस्यों और उसकी सलाहकार समिति की ओर से लाए गए हैं. इस हफ्ते नेशनल पीपुल्स कांफ्रेंस का सालाना सत्र चल रहा है. इसमें सरकार के कामकाज की समीक्षा होती है और उस पर सहमति की मुहर लगाई जाती है.
आपराधिक जुर्माना
कांग्रेस के सदस्य जियां शेंगनान ने प्रस्ताव दिया है कि तस्करी के मामलों में आपराधिक जुर्माना लगाया जाए जिससे कि बेचने वाले के साथ ही खरीदने वाले को भी सजा मिले. सरकारी अखबार बीजिंग यूथ डेली ने शेंगनान का बयान छापा है. इसमें उन्होंने कहा है, "उचित तरीके से जुर्माना बढ़ा कर और खरीदने पर आपराधिक जुर्मान लगाना एक निश्चित प्रतिरोध का काम करेगा." सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सरकार के प्रस्तावों का स्वागत किया है. हालांकि कुछ लोगों ने सवाल उठाए हैं कि क्या आपराधिक जुर्माना लगाना इससे लड़ने का सबसे बढ़िया तरीका है. फेंग युआन बीजिंग इक्वलिटी नाम की संस्था के सहसंस्थापक हैं, जो लिंग आधारित अपराध पर ध्यान देती है. फेंग युआन का कहना है, "निजी रूप से मैं मानती हूं कि सारे प्रस्ताव बहुत सकारात्मक और सार्थक हैं, लेकिन मुझे लगता है कि कई अहम बातें नहीं हैं." फेंग का कहना है कि प्रस्तावों में जरूरत से ज्यादा ध्यान खरीदने वाले के ऊपर आपराधिक जुर्मान लगाने पर दिया गया है.
मौजूदा चीनी कानूनों के तहत जो लोग महिलाओं या बच्चों की तस्करी करते हैं, उन्हें 5-10 साल की कैद या फिर मौत की सजा भी दी जा सकती है. खरीदने वाले के लिए तीन साल से ज्यादा की सजा नहीं है.
आरोपियों की संख्या घटी
जियांग के प्रस्ताव में पीड़ितों को छुड़ाए जाने के बाद उनकी स्थिति पर नजर रखने के लिए तंत्र बनाने की भी बात कही गई है. दूसरे लोगों का यह भी कहना है कि सरकार को तस्करी के पीड़ितों की सही पहचान करनी होगी, जिनके गलत नाम दर्ज हैं. इसके लिए देश भर में अपहरण के खिलाफ कार्रवाई के लिए एक अलर्ट सिस्टम बनाने के साथ ही आपराधिक जुर्माने को बढ़ाना भी होगा.
एनपीसी के सदस्य सीधे विधेयक तैयार नहीं करते हैं, बल्कि उनके प्रस्ताव संबंधित मंत्रालयों को भेजे जाते हैं. इसके बाद उनकी स्थायी समिति कानूनी जानकारों की मदद से कानून तैयार करती है.
जंजीर में बंधी महिला का मामला सामने आने के बाद लोग काफी उत्तेजित हैं और मांग कर रहे हैं कि तस्करी के खिलाफ कार्रवाई हो. झांग की 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं और बच्चों की तस्करी के आरोपियों की संख्या साल 2000 में 14,458 से घट कर पिछले साल 1,135 पर आ गई है. हालांकि यह साफ नहीं है कि संख्या में कमी तस्करी घटने की वजह से है या फिर कानून का पालन नहीं होने की वजह से. पिछले महीने चीन में विंटर ओलिंपिक हो रहे थे और मुमकिन है कि ऐसे वक्त में कोई विवाद खड़ा ना हो इसलिए सरकार ने इस मुद्दे पर तेजी दिखाई हो.
महिला अधिकार कार्यकर्ता फेंग ने सरकार से आग्रह किया है कि वह इस मामले को आपराधिक जुर्माने से अलग करके भी देखे. ज्यादा जरूरी चीजों में पीड़ितों की पहचान करना और छुड़ाए जाने के बाद उन्हें स्वतंत्र रूप से रहने में मदद देना शामिल है. इसके साथ ही उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से तंदुरुस्त होने के लिए संसाधन मुहैया कराना भी जरूरी है. सामाजिक कार्यकर्ताओं की चिंता यह भी है कि जब नए नाम के साथ पीड़ितों का पुनर्वास कराया जाएगा, तो क्या उन्हें सार्वजनिक सेवाओं का लाभ मिल सकेगा या नहीं.
चीन की कैबिनेट ने अप्रैल 2021 में कुछ मसलों का हल निकाला था. इनमें उनके शादी के दस्तावेजों की पुष्टि और दूर-दराज के इलाकों में तस्करी के खिलाफ ज्यादा लोगों को शिक्षित करना शामिल है. नए उपाय इन कोशिशों को और मजबूती दे सकते हैं.
तस्करी का कुछ संबंध देश में बड़े लैंगिक असंतुलन से भी है. इसकी एक बड़ी वजह रही है चीन की एक बच्चा नीति, जो अब बदल दी गई है. चीन में हर साल बड़ी संख्या में लोगों की बंधुआ मजदूरी और सेक्स के लिए तस्करी की जाती है. हालांकि इनमें से ज्यादातर लोगों को चीन के अंदर ही तस्करी कर के लाया और बंधक बना कर रखा जाता है. यह समस्या दुनिया के कई देशों में है और चीन की आबादी ज्यादा होने की वजह से इसका परिमाण भी काफी ज्यादा बड़ा है.
एनआर/एसएम(एपी)
पाकिस्तान की सेना ने गुरुवार को दावा किया कि बहुत ज़्यादा ऊंचाई से एक सुपरसोनिक ऑब्जेक्ट भारत से आया और पाकिस्तानी इलाक़े में क्रैश कर गया. पाकिस्तान ने कहा कि यह ऑब्जेक्ट ख़ुद गिरा है और लेकिन पाकिस्तान की वायु सेना इसकी निगरानी कर रही थी.
पाकिस्तान की सेना ने कहा है कि यह पैसेंजर उड़ानों के लिए बेहद ख़तरनाक था. पाकिस्तान ने भारत से इस पर जवाब भी मांगा है. पाकिस्तान के इस दावे पर भारत की ओर से अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
पाकिस्तान के डायरेक्टर-जनरल इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन यानी आईएसपीआर के प्रवक्ता मेजर जनरल बाबर इफ़्तिख़ार ने कहा, ''9 मार्च भारतीय क्षेत्र से तेज़ गति से उड़ता हुआ एक ऑब्जेक्ट आया. यह पाकिस्तान के मियां चन्नू के पास दिखा था. लेकिन यह नाकाम रहा और इससे आम जनों की संपत्ति को नुक़सान पहुँचा है. इसने पाकिस्तान के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया था. पाकिस्तानी एयरफ़ोर्स की नज़र इस पर बनी हुई थी. यह भारत के सिरसा से आया था. पाकिस्तान इसकी कड़ी निंदा करता है.''
पाकिस्तानी सेना ने कहा कि इस मामले में जो कुछ भी हुआ है, भारत इस पर स्पष्टीकरण दे. बाबर इफ़्तिख़ार ने कहा कि इस मामले में पाकिस्तानी सेना जाँच कर रही है. जनरल बाबर ने कहा कि पाकिस्तान भारत की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहा है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी क्षेत्र में यह तीन मिनट तक रहा है.
अभी पाकिस्तान की राजनीति में भारी उठा-पटक की स्थिति है. प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के ख़िलाफ़ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाने जा रहा है. इसे लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष में जुबानी हमले जारी है. जनरल बाबर से पूछा गया कि इमरान ख़ान कहते हैं कि सेना और सरकार साथ हैं, इस पर सेना का क्या कहना है? इस सवाल के जवाब में जनरल बाबर ने कहा कि सेना का सियासत से कोई लेना-देना नहीं है. (bbc.com)
बच्चों को जिस स्पोर्ट्स में मज़ा आने लगता है, वे उसमें जल्दी ही महारत हासिल कर लेते हैं. हालांकि कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं, जिन्होंने ठीक से बोलना भी न सीखा हो, लेकिन गेम्स में वो बड़े-बड़ों को पछाड़ दें. एक ऐसी ही छोटी सी बच्ची का वीडियो इस वक्त वायरल हो रहा है, जो जंगल में जमी बर्फ पर बड़े आराम से स्कीइंग करती हुई दिख रही है.
एडिया लीडम्स नाम की बच्ची की उम्र भले ही महज 3 साल है, लेकिन इसकी सुपर स्कीइंग को देखकर आप हैरान रह जाएंगे. एडिया घने जंगल में जमी बर्फ पर धड़ाधड़ स्कीइंग कर रही है. खास बात ये है कि बच्ची न तो डरती है और न ही किसी पेड़ से उसकी टक्कर होती है.
स्कीइंग करते हुए गाती रही गाना
ब्रिटिश कोलंबिया की रहने वाली ये बच्ची फर्नी में स्कीइंग कर रही थी. वो अपने परिवार के साथ वहां गई हुई थी. बच्ची के माता-पिता एरिक और कोर्टनी ने बच्ची को बेहद कम उम्र से स्कीइंग करना सिखा दिया था. उन्होंने बच्ची की स्कीइंग के वक्त उसे एक माइक्रोफोन पहना रखा था. फर्नी एल्पाइन रिसॉर्ट में बच्ची स्कीइंग करते हुए धीरे-धीरे गाना गा रही थी. एडवेंचर की शौकीन इस बच्ची को इसमें खूब मज़ा भी आ रहा था. वो अपने माता-पिता से बात करती हुई भी सुनी जा सकती है.
लोगों को पसंद आया वीडियो
रिसॉर्ट की ओर से भी इस वीडियो अपलोड किया गया है और लोगों को वीडियो काफी पसंद भी आ रहा है. पूरे वीडियो के दौरान एनी का हंसना, खिलखिलाना और खुद से ही बातें करना बहुत ही प्यारा है. वीडियो को अब तक लाखों लोगों ने देख लिया है. एडिया के दो और भाई-बहन हैं, जिन्हें स्कीइंग करना पसंद है, लेकिन एडिया ने ये बेहद छोटी उम्र में सीखकर सुर्खियां बटोर ली हैं.
बैंकॉक, 10 मार्च | थाईलैंड ने 1 जुलाई तक देश में कोरोना महामारी के एंडेमिक स्टेज का समर्थन करने के लिए चार फेज वाली योजना को मंजूरी दी है। ये जानकारी स्वास्थ्य अधिकारियों ने दी। न्यूज एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय संचारी रोग समिति (एनसीडीसी) द्वारा आयोजित एक बैठक में स्वीकृत इस योजना का उद्देश्य धीरे-धीरे नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के कारण होने वाले नए मामलों और मौतों को रोकना है और देश में वायरस को एक एंडेमिक स्टेज के रूप में तैयार करना है।
सार्वजनिक स्वास्थ्य मंत्री अनुतिन चरनवीराकुल ने बैठक की अध्यक्षता करने के बाद संवाददाताओं से कहा कि थाईलैंड की अर्थव्यवस्था को महामारी से उबरने में मदद करने के साथ-साथ सख्त उपायों को लागू करके सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए यह निर्णय लिया गया।
स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, शनिवार से अप्रैल की शुरूआत तक देश में अभी संक्रमण में और वृद्धि होगी, जबकि अप्रैल से मई तक मामलों की संख्या अधिक रहने का अनुमान है, लेकिन गिरावट शुरू हो जाएगी।
तीसरे चरण, मई के अंत से जून तक, 1 जुलाई से देश में एंडेमिक स्टेज में प्रवेश करने से पहले दैनिक संक्रमणों में लगभग 1,000 से 2,000 तक की बड़ी कमी देखने की उम्मीद है।
थाईलैंड में अब तक कोरोना के 3,111,857 मामले दर्ज किए गए और 23,438 लोगों की मौत हुई हैं।
अब तक, देश की लगभग सात करोड़ आबादी में से लगभग 71.7 प्रतिशत को पूरी तरह से टीका लगाया जा चुका है, जबकि 30.6 प्रतिशत को बूस्टर शॉट दिया गया है। (आईएएनएस)
लंदन, 10 मार्च | लंदन में आधे मिलियन से अधिक निवासियों को किराए के बकाया के कारण अपने घरों से संभावित निष्कासन का सामना करना पड़ रहा है। सिटी हॉल की एक रिपोर्ट में इसकी जानकारी दी गई है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सिटी हॉल और पोलस्टर्स यूगोव के शोध का अनुमान है कि राजधानी में घर किराए पर लेने वाले 2.4 मिलियन वयस्कों में से एक चौथाई अपने किराए पर पीछे रह गए हैं, या कोविड-19 महामारी के प्रत्यक्ष परिणाम के रूप में ऐसा करने की संभावना है।
लंदन के मेयर सादिक खान ने बुधवार को सरकार से उन्हें दो साल के लिए निजी किराए को फ्रीज करने की शक्ति देने का आह्वान किया, ताकि निवासियों को शहर में रहने की आसमान छूती लागत से निपटने में मदद मिल सके।
बुधवार को अपने विश्लेषण में, सिटी हॉल ने कहा कि दो साल में किराए पर फ्रीज करने से लंदन के औसत किराएदार को लगभग 3,000 पाउंड (3,950 डॉलर) की बचत होगी।
खान ने कहा, "निजी किराएदार राजधानी में रहने वाले सभी लोगों का लगभग एक तिहाई हिस्सा बनाते हैं और वे कीमतों और बिल वृद्धि के विनाशकारी संयोजन से प्रभावित होने के लिए तैयार हैं।"
होमलेट द्वारा जारी लेटेस्ट आंकड़ों के अनुसार, एक किरायेदार बीमा कंपनी, लंदन में नए किरायेदारों के लिए औसत किराये का मूल्य 1,757 पाउंड प्रति माह है।
लंदन में किराए में पिछले साल की तुलना में 11.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। (आईएएनएस)
सैन फ्रांसिस्को, 10 मार्च | एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स ने 48 नये स्टारलिंक उपग्रह को लांच किया है।
कंपनी ने बताया कि इन उपग्रहों को बुधवार को फ्लोरिडा के केप कैनवेरल स्पेस फोर्स स्टेशन से फाल्कन 9 रॉकेट के जरिये लांच किया गया था।
मस्क ने ट्वीट करके कहा कि 48 नये स्टारलिंक सैटेलाइट पृथ्वी की कक्षा में पहुंचे।
कंपनी 2019 से 2,000 से अधिक स्टारलिंक उपग्रह को लांच कर चुकी है। कंपनी को 12,000 स्टारलिंक सैटेलाइट लाचं करने की अनुमति प्राप्त है और उसने 30,000 उपग्रहों को लांच करने की अनुमति मांगी है। (आईएएनएस)
रूस ने प्रतिबंधों पर जवाबी कार्रवाई की चेतावनी देते हुए कहा कि अगर वेस्ट उसके तेल और गैस का बहिष्कार करना चाहता है, तो वह इसके लिए तैयार है. रूस ने कहा कि उसको पता है कि ऐसी स्थिति में अपनी एनर्जी सप्लाई कहां भेजनी है.
रूस ने पश्चिमी देशों और अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों पर पलटवार की चेतावनी दी है. उसने पश्चिमी देशों को चेतावनी दी है कि वह खुद पर लगे प्रतिबंधों की विस्तृत प्रतिक्रिया तैयार कर रहा है और उसके उठाए कदमों का असर पश्चिमी देश वहां महसूस करेंगे, जो उनके सबसे संवेदनशील पक्ष हैं.
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद से रूस की अर्थव्यवस्था अभी सबसे गंभीर स्थिति में है. यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस की करीब-करीब समूची वित्तीय और कॉर्पोरेट व्यवस्था पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. अब रूस ने जवाबी प्रतिक्रिया की चेतावनी दी है. रूसी विदेश मंत्रालय के आर्थिक सहयोग विभाग के निदेशक दिमित्री बिरिचेव्स्की ने कहा, "रूस की प्रतिक्रिया तीव्र और सोची-समझी होगी. जो इसके निशाने पर होंगे, उन्हें इसका असर महसूस होगा."
अंतरराष्ट्रीय बाजार पर असर
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन पर हुए हमले के जवाब में 8 मार्च को रूसी तेल और बाकी एनर्जी आयात पर तत्काल प्रतिबंध लगा दिया. इसी हफ्ते रूस ने चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिका और यूरोपीय यूनियन रूस से क्रूड आयात रोकते हैं, तो तेल की कीमत 300 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है.
रूस का कहना है कि यूरोप सालाना 50 करोड़ टन तेल का इस्तेमाल करता है. इसका लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा रूस निर्यात करता है. साथ ही, वह आठ करोड़ टन पेट्रोकेमिकल का भी निर्यात करता है. 8 मार्च को ही रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने टीवी पर प्रसारित अपने संबोधन में यूरोप को चेतावनी दी थी, "यह बिल्कुल स्पष्ट है कि रूसी तेल का बहिष्कार करने से अंतरराष्ट्रीय बाजार को बेहद गंभीर नतीजे भुगतने होंगे."
रूसी अर्थव्यवस्था को तेल और गैस निर्यात की जरूरत है
जर्मनी के नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन के सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया रोके जाने के फैसले का जिक्र करते हुए नोवाक ने कहा, "हमें भी पूरा अधिकार है कि हम भी ऐसा भी फैसला लें और नॉर्ड स्ट्रीम 1 गैस पाइपलाइन से होकर जा रही गैस की आपूर्ति रोक दें. यूरोपीय नेताओं को चाहिए कि वे अपने नागरिकों और उपभोक्ताओं को ईमानदारी से आगाह कर दें कि आने वाले दिनों में क्या होने वाला है." नोवाक ने ब्योरा दिए बिना कहा, "अगर आप रूस की ऊर्जा सप्लाई ठुकराना चाहते हैं, तो ठीक है. हम इसके लिए तैयार हैं. हमें पता है कि हम अपनी सप्लाई की दिशा किस तरह मोड़ सकते हैं."
रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. वह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का सबसे बड़ा निर्यातक है. वह प्राकृतिक गैस का भी बड़ा उत्पादक और निर्यातक है. रूस की कमाई का एक बड़ा हिस्सा जीवाश्म ईंधन के निर्यात से आता है. 2011 से 2020 के बीच रूस के संघीय बजट का लगभग 43 प्रतिशत हिस्सा तेल और गैस से मिले राजस्व से आया था.
बड़े खरीदार
रूस के तेल उत्पादन की क्षमता 1.13 करोड़ बैरल प्रतिदिन है. इनमें से ज्यादातर सप्लाई पूर्वी साइबेरिया, यमल और तातरस्तान इलाके से आती है. वह करीब 34.5 लाख बैरल तेल प्रतिदिन का घरेलू इस्तेमाल करता है और 70 लाख बैरल से ज्यादा क्रूड ऑइल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद प्रतिदिन निर्यात करता है. पिछले साल यूरोपीय संघ ने जितने कच्चे तेल का आयात किया, उसमें से लगभग एक चौथाई की आपूर्ति रूस ने की थी.
रूसी ऊर्जा आयात पर निर्भरता के मामले में यूरोपीय संघ के देशों की अलग-अलग स्थिति है. इनमें सबसे ज्यादा आयात जर्मनी और पोलैंड ने अपनी घरेलू जरूरतों के लिए किया. स्लोवाकिया, फिनलैंड, हंगरी और लिथुआनिया भी ज्यादातर रूसी आयात पर निर्भर हैं. मध्य और पूर्वी यूरोप के देश रूसी तेल के बड़े खरीदारों में शामिल हैं. बेलारूस ने अपने कुल तेल आयात का 95 प्रतिशत रूस से खरीदा.
चीन बन सकता है और बड़ा खरीदार
यूरोप के अलावा चीन भी रूसी तेल का बड़ा खरीदार है. अक्टूबर 2021 को खत्म हुए साल में चीन ने रूस से 16 लाख बैरल प्रतिदिन के हिसाब से कच्चा तेल खरीदा. सऊदी अरब के बाद चीन को सबसे ज्यादा कच्चे तेल की आपूर्ति रूस ने ही की. चीन के कुल तेल आयात का 15 हिस्सा रूस से आया. पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंध के बाद रूस, चीन को बिक्री बढ़ा सकता है. भारत भी एक संभावित खरीदार हो सकता है. उसे रोजाना करीब 43 लाख बैरल तेल की जरूरत है. इसका 85 प्रतिशत हिस्सा भारत आयात करता है. हालांकि अभी इसमें से तीन प्रतिशत से भी कम हिस्सा वह रूस से खरीदता है.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)
-डेनियल सैंडफ़ोर्ड
पुतिन ने अपने सहयोगियों को कई सालों से ऐसी किसी स्थिति के लिए आगाह किया हुआ था, ख़ास तौर पर क्राइमिया के विलय के बाद जब अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ रूस के संबंधों में कड़वाहट आ गई थी.
मगर जहाँ, उनके कुछ क़रीबी लोगों ने उनकी सलाह मानी और अपना निवेश रूस में ही रखा, वहीं कई अन्य ने विदेशों में आलीशान इमारतें और फ़ुटबॉल क्लब ख़रीद लिए, और उनकी कंपनियाँ विदेशी शेयर बाज़ारों में सूचीबद्ध रहीं.
अब ऐसे ही रूसी अरबपति अपनी संपत्तियों को लेकर चिंता में पड़ सकते हैं.
आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ रूसी अरबपतियों के बारे में.
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद ब्रिटेन, यूरोपीय संघ और अमेरिका की सरकारों ने रूस के कई अरबपति कारोबारियों के ख़िलाफ़ प्रतिबंधों का एलान किया जिन्हें राष्ट्रपति पुतिन का क़रीबी माना जाता है और सत्ता पर उनकी ख़ासी पकड़ है.
अलीशेर उस्मानोव, व्लादिमीर पुतिन के ना केवल क़रीबी लोगों में से एक हैं बल्कि उनकी गिनती वहाँ के सबसे अमीर लोगों में भी होती है. फ़ोर्ब्स पत्रिका के अनुसार उनकी अनुमानित संपत्ति 17.6 अरब डॉलर है.
वे एक प्रोफ़ेशनल तलवारबाज़ रहे हैं, जिन्हें यूरोपीय संघ एक "बिज़नेसमैन अधिकारी" बताता है जो राष्ट्रपति को उनकी समस्याओं को सुलझाने में मदद करते हैं.
उनका जन्म उज़्बेकिस्तान में हुआ था जो तब सोवियत संघ का हिस्सा था. वो यूएसएम होल्डिंग्स नाम का एक कंपनियों का समूह चलाते हैं जिनमें खनन और टेलिकॉम कंपनियाँ शामिल हैं, और जिनमें रूस का सबसे बड़ा मोबाइल नेटवर्क मेगाफ़ोन शामिल है.
यूरोपीय संघ ने उनके ख़िलाफ़ 28 फ़रवरी को प्रतिबंधों का एलान किया, उसके बाद अमेरिका और ब्रिटेन ने भी ऐसी ही घोषणाएँ कीं. उन्होंने प्रतिबंधों को नाजायज़ बताते हुए कहा कि उनपर लगाए गए सारे आरोप ग़लत थे.
यूक्रेन से बचकर पोलैंड आए भारतीय किस हाल में हैं?- ग्राउंड रिपोर्ट
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ब्रिटेन में, उनका निवेशक प्रॉपर्टी में दिखाई देता है. लंदन के बीचों-बीच बीचवुड हाउस नाम का उनका एक घर है जिसकी कीमत साढ़े छह करोड़ पाउंड है, और लंदन से ठीक बाहर सरे में, उनके पास एक हवेली है जिसनका नाम है सटन प्लेस.
ब्रिटेन सरकार ने दोनों को ज़ब्त कर लिया है.
उनके बिज़नेस पार्टनर फ़रहाद मोशिरी एक जानी-मानी फ़ुटबॉल कंपनी एवर्टन के मालिक हैं.
और उनकी कंपनियाँ यूएसएम, मेगाफ़न और योटा इस क्लब के मुख्य स्पॉन्सर हैं, और कई लोगों का ये भी मानना है कि उनकी इसमें और ज़्यादा भूमिका हो सकती है.
एवर्टन ने उनके साथ स्पॉन्सरशिप को बुधवार को रोक दिया, और मोशिरी ने यूएसएम के बोर्ड की सदस्यता छोड़ दी.
किसी ने नहीं लगाया प्रतिबंध
रोमन अब्रामोविच रूस के एक जाने-माने अरबपति हैं जो इंग्लैंड के जाने-माने फ़ुटबॉल क्लब चेल्सी के मालिक हैं. मगर उनके ऊपर अभी तक पाबंदी नहीं लगाई गई है, शायद इसलिए क्योंकि समझा जाता है कि पुतिन के दूसरे दोस्तों की अपेक्षा उनका रसूख कम है.
रूस में उनका कितना प्रभाव है, ये भी बहस का विषय रहा है. कुछ का मानना है कि पुतिन उन्हें बस झेल रहे हैं, वहीं कुछ का मानना है कि उनका रिश्ता कहीं ज़्यादा क़रीबी है.
अब्रामोविच पुतिन या उनकी क्रेमलिन सरकार से क़रीबी संबंध की बात का पुरज़ोर तरीक़े से खंडन करते हैं, मगर यदि प्रतिबंध लगे तो उनकी 12.4 अरब डॉलर की संपत्ति पर ख़तरा हो सकता है.
पिछले सप्ताह उन्होंने घोषणा की कि वो चेल्सी क्लब को 3 अरब पाउंड (लगभग 300 अरब रुपये) में बेचना चाहते हैं, और बताया जाता है कि लंदन के केन्सिंग्टन पैलेस गार्डेन्स में 15 करोड़ पाउंड यानी लगभग 15 अरब रुपये का उनका घर भी बिक्री के लिए उपलब्ध है.
अब्रामोविच ने अपनी संपत्ति 1990 के दशक में बनाई और उनकी गिनती बोरिस येल्तसिन के दौर के असल ओलिगार्कों में होती है.
उन्हें सबसे बड़ा मौक़ा मिला जब उन्होंने सिबनेफ़्ट नाम की तेल कंपनी को कौड़ी की कीमतों में ख़रीदा.
उनकी संपत्तियों में एक्लिप्स शामि है, जो दुनिया की तीसरी सबसे लंबी यॉट है, जो पिछले सप्ताह ब्रिटिश वर्जिन आइल्स में सैर कर रही थी. साथ ही उनकी संपत्ति में सोलैरिस नाम की एक दूसरी यॉट भी आती है जो बार्सिलोना में तट पर टिकी थी.
उन्होंने हाल के कुछ सालों में ब्रिटेन से अपने आप को समेटना शुरू कर दिया है. 2018 में उन्होंने फ़ैसला किया कि वो ब्रिटिश वीज़ा को रिन्यू नहीं करवाएँगे. उन्होंने हाल में इसराइल का पासपोर्ट हासिल किया और अब वो उसी पासपोर्ट पर लंदन आवाजाही करते हैं.
और पहले वो इंग्लैंड में चेल्सी के अपने मैदान स्टैमफ़ोर्ड ब्रिज में होनेवाले टीम के हर मैच में मौजूद होते थे, वहाँ अब वो बहुत कम ही दिखाई देते हैं.
अमेरिका ने लगाया प्रतिबंध
राष्ट्रपति पुतिन जब सत्ता में आए थे, तो ओलेग डेरिपाक्सा के पास पहले से ही अकूत संपत्ति थी, तब उनके पास 28 अरब डॉलर की संपत्ति थी. मगर अब समझा जाता है कि उनकी संपत्ति घट कर 3 अरब डॉलर रह गई है.
90 के दशक में वो अल्युमिनियम के कारोबार में संघर्ष करते हुए शिखर तक पहुँचे. अमेरिका ने कहा कि वो मनी लॉन्डरिंग, रिश्वतख़ोरी, उगाही और गुटबाज़ी में लिप्त थे.
अमेरिका ने साथ ही आरोप लगाए कि "उन्होंने एक बिज़नेसमैन की हत्या के आदेश दिए और उनके तार एक रूसी संगठित आपराधिक गुट से जुड़े थे". वो इन आरोपों से इनकार करते हैं.
साल 2008 के वित्तीय संकट में उन्हें भारी घाटा हुआ, और उन्हें इससे उबरने के लिए पुतिन की ज़रूरत महसूस हुई. राष्ट्रपति पुतिन ने उन्हें बेइज़्ज़त किया जब सबके सामने उन्होंने ऐसे संकेत दिए कि उन्होंने एक पेन चुराया है.
उसके बाद से, ऐसा लगता है कि उन्होंने अपनी स्थिति बदली, और मुएलर रिपोर्ट में उनका नाम एक ऐसे शख्स के तौर पर लिया गया, जो राष्ट्रपति पुतिन के काफ़ी क़रीबी थे. मुएलर रिपोर्ट 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने की रूसी कोशिशों की अमेरिकी जाँच के बाद आई थी.
उन्होंने एक ग्रीन एनर्जी और मेटल्स कंपनी, एन+ ग्रुप की स्थापना की जो लंदन स्टॉक एक्सचेंज में लिस्ट की गई, मगर बाद में उन्होंने इस कंपनी में अपनी हिस्सेदारी 50% से कम कर ली.
जब उनपर 2018 में अमेरिका ने प्रतिबंध लगाए. उस समय, उनकी एक बड़ी कंपनी बेसिक एलिमेंट ने एक बयान जारी किया था जिसमें इन प्रतिबंधों को "निराधार, हास्यास्पद और बकवास" बताया गया था.
उनके पास ब्रिटेन की सरे काउंटी के वेब्रिज में हैमस्टोन हाउस नाम की एक आर्ट डेको प्रॉपर्टी है जिसे वो ब्रिटेन में एक रूसी जासूस स्क्रिपाल को ज़हर देने की घटना के बाद ब्रिटेन और रूस के बीच गहराए विवाद के बाद से ही 1 करोड़ 80 लाख पाउंड यानी लगभग एक अरब 80 करोड़ रुपये में बेचना चाह रहे हैं.
उनके पास क्लियो नाम की एक यॉट भी है जो पिछले सप्ताह मॉलदीव में थी.
प्रतिबंधों का सामना करने वाले दूसरे ओलिगार्कों से अलग डेरिपास्का इस युद्ध को लेकर खुलकर राय जताते रहे हैं और सोशल मीडिया पर शांति की अपील करते रहे हैं. उन्होंने एक पोस्ट में लिखा- "जितनी जल्दी हो सके बातचीत शुरू होनी चाहिए."
अमेरिका और यूरोपीय संघ ने लगाए प्रतिबंध
व्लादिमीर पुतिन के साथ इगोर सेचिन के संबंध पुराने और गहरे हैं - ये कहते हुए यूरोपीय संघ ने 28 फ़रवरी को उनके ख़िलाफ़ प्रतिबंधों की घोषणा की. समझा जाता है कि वो पुतिन के सबसे वफ़ादार और क़रीबी सलाहकारों में से एक हैं, साथ ही वो उनके निजी मित्र भी हैं, और समझा जाता है कि दोनों में रोज़ाना बात होती है.
उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों को निर्दयता से हटाते हुए तरक्की की, और इसलिए रूसी प्रेस में उनको डार्थ वेडर के नाम से पुकारा जाता है. 2008 के समय की अमेरिकी दूतावास के एक लीक दस्तावेज़ में उन्हें एक ऐसा शख़्स बताया गया था "जो इतना रहस्यमय है कि ये मज़ाक किया जाता है कि शायद उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है, बल्कि वो एक मिथक है, जिसे रूसी सत्ता ने भय पैदा करने के लिए गढ़ा है."
अमेरिका ने उनके ऊपर 2014 में प्रतिबंध लगाया था, जिसे उन्होंने पूरी तरह से "नाजायज़ और ग़ैर-क़ानूनी" बताया. अमेरिका ने 24 फ़रवरी को नए प्रतिबंधों का एलान किया.
सेचिन ने राजनीति और कारोबार दोनों में हाथ आज़माया, कई बार तो वो एक साथ दोनों ही क्षेत्रों में ऊँचे ओहदों पर रहे.
उन्होंने इसके पहले 90 के दशक में से पुतिन के साथ सेंट पीटर्सबर्ग में मेयर दफ़्तर में काम किया था, और ऐसा बहुत लोग मानते हैं कि वो सोवियत ज़माने में ख़तरनाक मानी जाने वाली ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी के साथ थे, हालाँकि उन्होंने खुलकर इसे कभी स्वीकार नहीं किया है.
वो रूस में ही बसे हैं, मगर किसी को नहीं पता उनके पास कितने पैसे हैं. फ़्रांस ने एक समय उनकी एक यॉट अमॉरे वेरो को सीज़ कर लिया था, जिसका संपर्क उनसे बताया गया था जब उनकी दूसरी पत्नी ओल्गा सेचिना इस यॉट से तस्वीरें पोस्ट करती रहीं. उसके बाद उनका तलाक़ हो गया है.
मगर इन बातों के बावजूद, इस बात के आसार बहुत कम ही हैं कि उनकी विदेशों में जमा संपत्ति का आसानी से पता लगाया जा सकेगा, और इस यॉट के अलावा उनकी और संपत्तियों को ट्रैक कर उसे फ़्रीज़ किया जा सकेगा.
अमेरिका ने लगाया प्रतिबंध
अलेक्सी मिलर पुतिन के एक और पुराने दोस्त हैं. उन्होंने भी कामयाबी राष्ट्रपति पुतिन की वफ़ादारी के ज़रिए बनाई. इसकी शुरुआत तब हुई जब वो 90 के दशक में सेंट पीटर्सबर्ग के मेयर कार्यालय की विदेशी संबंध समिति में पुतिन के सहायक थे.
वो 2001 से रूस की सरकारी तेल कंपनी गैज़प्रॉम के ताक़तवर प्रमुख रहे हैं, मगर उनकी नियुक्ति चौंकाने वाली थी, और ये माना जाता रहा है कि वो बस अपने पुराने आका का हुक्म बजा रहे हैं.
2009 में रूस में अमेरिका के राजदूत ने गैज़प्रॉम को एक "अक्षम, राजनीतिक और भ्रष्ट" कंपनी बताया था.
मिलर पर 2014 में क्राइमिया के विलय के बाद उनपर प्रतिबंध नहीं लगा था, मगर 2018 में जब अमेरिका का नाम लिस्ट में शामिल किया, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इसपर गर्व है.
तब उन्होंने कहा था, पहली लिस्ट में नाम नहीं आने के बाद मुझे तो संदेह होने लगा - "शायद कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं? मगर आख़िरकार मेरा नाम जोड़ा गया. इसका मतलब है कि हम जो भी कर रहे हैं वो सही है."
ऐसा लगता नहीं कि रूस के बाहर उनकी संपत्ति का आसानी से पता लगाया जा सकता है, और इस बात की जानकारी नहीं है कि उनकी कुल संपत्ति कितनी है.
यूरोपीय संघ से प्रतिबंधित
यूरोपीय संघ ने प्योत्र एवन (तस्वीर में बाईं ओर) को राष्ट्रपति पुतिन के सबसे क़रीबी ओलिगार्कों में से एक बताया है. और वो मिखाइल फ़्रिडमैन को पुतिन के अंदरुनी कुनबे को चलानेवाला शख़्स मानता है.
दोनों ने मिलकर रूस का सबसे बड़ा प्राइवेट बैंक अल्फ़ा बैंक बनाया.
मुएलर रिपोर्ट में कहा गया है कि एवन ने साल में लगभग चार बार पुतिन से मुलाक़ात की, और वो बैठकों मे पुतिन जो भी सुझाव या आलोचनाएँ किया करते थे, उसे निर्देश माना करते थे, और अगर वो उनका पालन नहीं करते तो उन्हें इसका परिणाम भुगतना पड़ सकता था."
इन दोनों को पुतिन ने 2016 में भविष्य में लग सकने वाले प्रतिबंधों को लेकर आगाह कर दिया था.
पिछले सप्ताह इन दोनों लोगों ने लंदन स्थित लेटरवन इन्वेस्टमेंट ग्रुप से इस्तीफ़ा दे दिया जिसे उन्होंने 10 साल पहले गठित किया था. यूरोपीय संघ ने 28 फ़रवरी को उनके शेयर फ्रीज़ कर दिए थे.
एवन ने लंदन के प्रतिष्ठित संगठन रॉयल एकेडमी ऑफ़ आर्ट्स के ट्रस्टी पद से भी इस्तीफ़ा दे दिया है.
दोनों व्यवसायियों ने कहा कि वो "उन फ़र्ज़ी आधारों को पुरज़ोर तरीके़ से और हर उपलब्ध तरीक़े से चुनौती देंगे जिनके नाम पर प्रतिबंध लगाए गए हैं".
समझा जाता है कि फ़्रिडमैन की संपत्ति लगभग 12 अरब डॉलर होगी, और वो लंदन में लॉर्ड्स क्रिकेट ग्राउंट से लगे एक घर में रहते हैं, और उनके पास लंदन में ऐथलॉन हाउस नाम की एक और विशाल प्रॉपर्टी है जो उन्होंने 2016 में साढ़े छह करोड़ पाउंड यानी लगभग साढ़े छह अरब रुपये में ख़रीदी थी.
पिछले सप्ताह लंदन में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उन्होंने यूक्रेन युद्ध को एक बड़ी त्रासदी बताया, मगर कहा कि वो पुतिन सरकार की सीधी आलोचना नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करने से सैकड़ों हज़ारों कर्मचारियों की नौकरियों पर ख़तरा हो सकता है. (bbc.com)
देश पर हमले के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की रूस के आगे घुटने नहीं टेक रहे हैं लेकिन अब उन्होंने संकेत दिए हैं कि वो 'समझौते' के लिए तैयार हैं.
लगातार बातचीत की बात कह रहे ज़ेलेंस्की ने दोनेत्स्क, लुहांस्क और नेटो में यूक्रेन के शामिल होने पर खुलकर बात की है.
उन्होंने अमेरिकी टीवी चैनल एबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में कहा है कि वो यूक्रेन के लिए नेटो की सदस्यता के लिए ज़ोर नहीं लगा रहे हैं.
नेटो ही वो बड़ा मुद्दा है, जिसको लेकर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बेहद असहज रहे हैं और कहा जाता है कि यही यूक्रेन पर रूसी हमले की एक बड़ी वजह है. पुतिन नहीं चाहते हैं कि नेटो उनके किसी पड़ोसी देश तक पहुँच बना सके.
इसके साथ ही ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन के दो रूस समर्थित क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क पर भी अपनी बात रखी है.
नेटो क्या है?
नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1949 में बना था. इसे बनाने वाले अमेरिका, कनाडा और अन्य पश्चिमी देश थे. इसे इन्होंने सोवियत यूनियन से सुरक्षा के लिए बनाया था. तब दुनिया दो ध्रुवीय थी. एक महाशक्ति अमेरिका था और दूसरी सोवियत यूनियन.
शुरुआत में नेटो के 12 सदस्य देश थे जो अब बढ़कर 30 हो गए हैं. नेटो ने बनने के बाद घोषणा की थी कि उत्तरी अमेरिका या यूरोप के इन देशों में से किसी एक पर हमला होता है तो उसे संगठन में शामिल सभी देश अपने ऊपर हमला मानेंगे. नेटो में शामिल हर देश एक दूसरे की मदद करेगा.
लेकिन दिसंबर 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद कई चीज़ें बदलीं. नेटो जिस मक़सद से बना था, उसकी एक बड़ी वजह सोवियत यूनियन बिखर चुका था. दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी थी. अमेरिका एकमात्र महाशक्ति बचा था. सोवियत यूनियन के बिखरने के बाद रूस बना और रूस आर्थिक रूप से टूट चुका था.
रूस एक महाशक्ति के तौर पर बिखरने के ग़म और ग़ुस्से से ख़ुद को संभाल रहा था. कहा जाता है कि अमेरिका चाहता तो रूस को भी अपने खेमे में ले सकता था लेकिन वो शीत युद्ध वाली मानसिकता से मुक्त नहीं हुआ और रूस को भी यूएसएसआर की तरह ही देखता रहा.
नेटो के विस्तार को लेकर पुतिन नाराज़ रहे हैं. मध्य और पूर्वी यूरोप में रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लातविया, इस्टोनिया और लिथुआनिया भी 2004 में नेटो में शामिल हो गए थे. क्रोएशिया और अल्बानिया भी 2009 में शामिल हो गए. जॉर्जिया और यूक्रेन को भी 2008 में सदस्यता मिलने वाली थी लेकिन दोनों अब भी बाहर हैं.
नेटो पर क्या बोले ज़ेलेंस्की
एबीसी के इंटरव्यू में ज़ेलेंस्की से पूछा गया कि रूस की नेटो में न शामिल होने की मांग पर वो क्या कहते हैं? इस पर ज़ेलेंस्की ने कहा, "मैं बातचीत के लिए तैयार हूँ. जब हमें समझ आ गया कि नेटो हमें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, इसके बाद मैं काफ़ी पहले ही इस सवाल को पीछे छोड़ चुका था."
ज़ेलेंस्की ने कहा कि 'नेटो विवादित चीज़ों और रूस के साथ टकराव को लेकर काफ़ी डरता रहा है.
नेटो की सदस्यता पाने का हवाला देते हुए ज़ेलेंस्की ने कहा कि वो ऐसे देश के राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं जो घुटनों के बल गिरकर किसी चीज़ की भीख मांग रहा हो.
दो अलगाववादी क्षेत्रों पर क्या बोले
यूक्रेन पर 24 फ़रवरी को हमला करने से एक दिन पहले रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन के दो अलगाववादी रूस समर्थित क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र घोषित कर दिया था.
ज़ेलेंस्की से इंटरव्यू के दौरान पूछा गया कि रूस यूक्रेन पर हमला बंद करने के लिए तीन मांगें कर रहा है, जिनमें पहली नेटो में न शामिल होना, दूसरी क्राइमिया को रूसी क्षेत्र मानना और तीसरी दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र घोषित करना शामिल है.
इस सवाल पर ज़ेलेंस्की ने कहा कि उनके दरवाज़े बातचीत के लिए पूरी तरह खुले हुए हैं.
उन्होंने कहा, "मैं सुरक्षा गारंटी की बात कर रहा हूँ. मुझे लगता है कि अस्थायी तौर पर क़ब्ज़ा किए गए क्षेत्र को रूस को छोड़कर किसी ने भी मान्यता नहीं दी है और ये छद्म राष्ट्र हैं. लेकिन हम इस पर बात कर सकते हैं और इस पर समझौता कर सकते हैं कि कैसे ये क्षेत्र आगे चल सकते हैं."
"मेरे लिए यह ज़रूरी है कि इन क्षेत्रों में रह रहे लोग कैसे ज़िंदगी जीने वाले हैं और यूक्रेन का हिस्सा बनना चाहते हैं, जो भी यूक्रेन में हैं वो कहेंगे कि वो उन्हें चाहते हैं. इसलिए यह सवाल उनको मान्यता दे देने से अधिक कठिन है."
इसके बाद ज़ेलेंस्की ने सीधे रूसी राष्ट्रपति पुतिन पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि पुतिन को 'इन्फ़ॉर्मेशन बबल' से निकलकर बातचीत करने की ज़रूरत है.
उन्होंने कहा, "ये फिर से अतिंम चेतावनी है और हम अंतिम चेतावनियों के लिए तैयार नहीं हैं. राष्ट्रपति पुतिन को यह करने की ज़रूरत है कि वो बातचीत शुरू करें. बिना ऑक्सीजन के इन्फ़ॉर्मेशन बबल में रहने की जगह वो बातचीत शुरू करें. वो उस बबल में रह रहे हैं, जहाँ पर उन्हें हक़ीक़त का पता नहीं चल रहा है."
उन्होंने कहा कि अगर वो यूक्रेन छोड़ देंगे तो वो ज़िंदा ज़रूर रहेंगे लेकिन वो कभी एक इंसान नहीं रह पाएंगे.
वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति के रूसी तेल और गैस के आयात को रद्द करने के फ़ैसले का ज़ेलेंस्की ने स्वागत किया है. उन्होंने ट्वीट करके राष्ट्रपति जो बाइडन को शुक्रिया कहा है.
ज़ेलेंस्की ने कहा है कि दुनिया के दूसरे नेताओं को भी ऐसे ही क़दम उठाने की ज़रूरत है ताकि 'पुतिन की युद्ध की मशीन के सीधे दिल' पर हमला हो.
इसके अलावा ज़ेलेंस्की ने मंगलवार को ब्रिटिश संसद को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने पश्चिमी देशों से रूस पर और अधिक प्रतिबंध लगाने की मांग की थी.
ज़ेलेंस्की ने ब्रिटिश संसद को संबोधित करते हुए कहा कि यूक्रेनी लड़ते रहेंगे. उन्होंने पूर्व ब्रितानी प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल का हवाला देते हुए कहा कि 'हम लड़ेंगे.. हम लड़ेंगे जंगलों में, मैदानों में, तटों पर और सड़कों पर.'
रूस की क्या है मांग
रूसी सरकार के प्रवक्ता ने सोमवार को कहा था कि अगर उसकी शर्तों को मान लिया जाता है तो वो यूक्रेन के ख़िलाफ़ 'बिना देरी किए तुरंत' सैन्य अभियान रोकने के लिए तैयार हैं.
प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोफ़ ने कहा था कि मॉस्को की मांग है कि यूक्रेन अपनी सैन्य कार्रवाई को बंद करे, अपने संविधान में बदलाव करते हुए तटस्थता स्थापित करे, क्राइमिया को रूसी क्षेत्र के रूप में मान्यता दे और अलगाववादी क्षेत्रों दोनेत्स्क और लुहांस्क को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दे.
यूक्रेन पर हमले के बाद रूस का यह बेहद स्पष्ट बयान है. पेस्कोफ़ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ इंटरव्यू के दौरान कहा कि यूक्रेन को इन शर्तों के बारे में मालूम है और 'उनसे कहा जा चुका है कि सब कुछ एक लम्हे में रोका जा सकता है.'
इंटरव्यू के दौरान रूसी सरकार के प्रवक्ता ने साफ़ किया था कि रूस यूक्रेन में किसी ज़मीन पर दावा नहीं कर रहा है और न वो किसी क्षेत्र को क़ब्ज़ा करना चाहता है. साथ ही उन्होंने कहा कि राजधानी कीएव को रूस को सौंप देने की मांग 'सच नहीं' है.
"हम वास्तव में यूक्रेन के सैन्यीकरण को समाप्त कर रहे हैं. हम इसे ख़त्म करेंगे. लेकिन मुख्य चीज़ यह है कि यूक्रेन अपनी सैन्य कार्रवाई को रोके. उन्हें अपनी सैन्य कार्रवाई को रोकना चाहिए और फिर कोई भी गोली नहीं चलाएगा."
संविधान में बदलाव और तटस्थ रहने पर रूस का कहना है कि यूक्रेन को अपने संविधान में ऐसे बदलाव करने चाहिए ताकि वो किसी भी गठबंधन को अपने देश में घुसने से रोक सके.(bbc.com)