अंतरराष्ट्रीय
एक तरफ़ जहां रूस में यूक्रेन पर हमले के विरोध में प्रदर्शन हुए हैं, वहीं दूसरी ओर रूसी सैनिक यूक्रेन की राजधानी कीएव तक जा पहुंचे हैं.
क्यों रूसी राष्ट्रपति पुतिन को पसंद नहीं आई यूक्रेन की आज़ादी और आख़िर कब से सुलग रही थी इस जंग की चिंगारी. देखिए रिपोर्ट.
यूक्रेन इस वक्त पूरी तरह से रूस का आक्रामक हमला झेल रहा है, साथ ही वो अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहा है.
यूक्रेन पर रूस के हमले को तीन दिन बीत चुके हैं. इस बीच रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी कीएव तक पहुंच चुकी है. लेकिन अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आगे क्या होगा?
4 करोड़ की आबादी वाले यूक्रेन को अपने अधीन करने में रूस को जितना वक़्त लगेगा, उसकी मुश्किलें उतनी ही बढ़ती जाएंगी. (bbc.com)
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन पर रूस के हमले की निंदा की है और कहा है कि वो यूक्रेन के लोगों के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.
इससे पहले जब रूस ने यूक्रेन में सैनिकों को भेजना शुरू किया था तब पुतिन के आदेश को ट्रंप ने 'जीनियस' बताया था.
साथ ही ये भी कहा था कि उनका मानना है कि अमेरिका भी अपनी दक्षिणी सीमा की रक्षा के लिए ऐसी ही ''पीसकीपिंग'' सेना का इस्तेमाल कर सकता है.
न्यूज़ एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़, अब फ्लोरिडा में एक सभा को संबोधित करते हुए ट्रंप ने रूस के हमले की निंदा की है और यूक्रेन के लोगों के लिए सहानुभूति जताई है.
उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की की भी तारीफ़ की और उन्हें ''निडर नेता'' बताया है.
अपने संबोधन के दौरान वो अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन पर भी निशाना साधते नज़र आए. अमेरिकी चुनावों में धांधली का आरोप लगाते हुए ट्रंप ने कहा कि अगर धांधली नहीं हुई होती तो ये संकट कभी आता ही नहीं.
उन्होंने कहा, "जैसा कि हर कोई जानता है, अगर हमारे चुनाव में धांधली नहीं होती और मैं राष्ट्रपति होता तो ये भयानक संकट कभी पैदा ही नहीं होता."
डोनाल्ड ट्रंप ने पुतिन की भी तारीफ़ की और कहा कि वो स्मार्ट हैं क्योंकि उन्होंने दुनिया के नेताओं और नेटो को मात दी है.
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के मुताबिक़, ट्रंप ने कहा, "दिक्कत ये नहीं है कि पुतिन स्मार्ट हैं, वो बेशक स्मार्ट हैं लेकिन असली दिक्कत ये है कि हमारे नेता 'डम्ब' हैं."
बता दें कि इससे पहले बाइडन एक इंटरव्यू में, ट्रंप के "जीनियस" वाले बयान का मज़ाक उड़ा चुके हैं. (bbc.com)
नई दिल्ली, 26 फरवरी| रूस और यूक्रेन के बीच साइबर युद्ध तेज हो गया है, रूस ने यूक्रेनी संगठनों से संबंधित सिस्टम पर डेटा को स्थायी रूप से नष्ट करने के लिए एक नए विनाशकारी मैलवेयर का उपयोग किया है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के कारण हैकिंग समूहों ने विश्व स्तर पर अपनी गतिविधियां बढ़ा दी हैं। जबकि रूस समर्थित हैकर्स पहले ही कई यूक्रेनी सरकारी वेबसाइटों और बैंकों को हिट कर चुके हैं। एक प्रमुख हैकिंग समूह ने खुद को 'पश्चिमी सहयोगियों' के साथ गठबंधन किया है और रूस में संचालन को निशाना बना रहा है।
समूह ने ट्वीट किया, "बेनामी समूह आधिकारिक तौर पर रूसी सरकार के खिलाफ साइबर युद्ध में है।"
आईबीएम सिक्योरिटी एक्स-फोर्स टीम के अनुसार, उन्होंने यूक्रेनी सिस्टम पर हटाए जा रहे नए और विनाशकारी 'हर्मेटिकवाइपर' मैलवेयर का एक नमूना प्राप्त किया है।
उन्होंने एक बयान में कहा, "हर्मेटिकवाइपर हाल ही में देखा गया दूसरा विनाशकारी मैलवेयर परिवार है, जो पिछले दो महीनों में यूक्रेन में संगठनों और पूर्वी यूरोप के अन्य देशों को निशाना बना रहा है।"
"हाइब्रिड ऑपरेशंस के समर्थन में नागरिक लक्ष्यों के खिलाफ विनाशकारी साइबर हमलों की संभावना जारी रहेगी। इसके अलावा, एक्स-फोर्स का मानना है कि यह संभावना है कि साइबर हमले चल रहे संघर्ष के दायरे के समानांतर बढ़ते और विस्तारित होते रहेंगे।"
इस बीच, बेनामी ने दावा किया कि उसने "रूसी रक्षा मंत्रालय की वेबसाइट के डेटाबेस को लीक कर दिया है।"
हैकर समूह ने शुक्रवार को ट्वीट किया कि उसके पास "रूसी रक्षा मंत्रालय के सभी निजी डेटा" तक पहुंच है। (ट्वीट को बाद में हटा दिया गया, क्योंकि इसने "ट्विटर नियमों का उल्लंघन किया")।
रूस से संचालित एक राज्य प्रायोजित समूह कोंटी, व्लादिमीर पुतिन के कार्यो के समर्थन में सामने आया।
कोंटी ने डार्क वेब पर अपनी साइट पर एक संदेश पोस्ट करते हुए कहा कि "कोंटी टीम आधिकारिक तौर पर रूसी सरकार के लिए पूर्ण समर्थन की घोषणा कर रही है।"
रिपोर्ट के मुताबिक, "अगर कोई रूस के खिलाफ साइबर हमले या किसी भी युद्ध गतिविधियों को आयोजित करने का फैसला करेगा, तो हम दुश्मन के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे पर हमला करने के लिए अपने सभी संभावित संसाधनों का उपयोग करने जा रहे हैं।"
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बीच बेलारूसी राज्य-प्रायोजित हैकर्स यूक्रेनी सैन्य कर्मियों के निजी ईमेल पते को भी निशाना बना रहे हैं।
यूक्रेन की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी-यूए) ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि बड़े पैमाने पर फिशिंग अभियान यूक्रेन के सैन्यकर्मियों के निजी खातों को निशाना बना रहा है।
इन गतिविधियों के पीछे 'यूएनओ1151' नामक मिन्स्क स्थित समूह का हाथ पाया गया है। इसके सदस्य बेलारूस गणराज्य के रक्षा मंत्रालय के अधिकारी हैं।
रिपोर्टे सामने आईं कि बड़े पैमाने पर साइबर हमलों के साथ यूक्रेनी सरकारी वेबसाइटों और बैंकों पर हमला करने के बाद रूस द्वारा प्रायोजित हैकर अब एक पूर्ण युद्ध के बीच स्थानीय लोगों को चुप कराने के लिए देश में इंटरनेट के बुनियादी ढांचे पर हमला कर रहे हैं।
गुरुवार को आक्रमण शुरू होने के बाद साइबर आक्रमण ने पहले ही देश के कुछ हिस्सों में इंटरनेट कनेक्टिविटी को काट दिया।
रूस को पहले यूक्रेनी सरकारी साइटों के खिलाफ डीडीओएस हमलों से जोड़ा गया था, लेकिन एक पूर्ण ब्लैकआउट का मतलब नेटवर्क स्तर पर दूरसंचार बुनियादी ढांचे को अक्षम करना होगा।
कम से कम दो अन्य हैकर समूहों ने घोषणा की है कि वे रूस का समर्थन कर रहे हैं : द रेड बैंडिट्स और कूमिंगप्रोजेक्ट।
रूस के यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में जाने के साथ ईरानी खुफिया और सुरक्षा मंत्रालय से जुड़े हैकर्स, जिसे मड्डीवाटर कहा जाता है, सक्रिय हो गए, साइबर जासूसी और एशिया, अमेरिका और यूके, साइबर और कानून अधिकारियों सहित वैश्विक स्तर पर संगठनों के खिलाफ चेतावनी दी कि अन्य दुर्भावनापूर्ण हमलों का संचालन करने के लिए बग का फायदा उठा रहे हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 फरवरी| यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने शनिवार को कहा कि उन्होंने रूस के हमले पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात की है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनजीसी) में 'राजनीतिक समर्थन' मांगा है। रूस द्वारा संयुक्त राष्ट्र में अपने आक्रमण की निंदा करने के लिए एक वोट से दूर रहने के भारत के फैसले की प्रशंसा करने के तुरंत बाद उन्होंने मोदी से बात करने का खुलासा किया।
उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी से बात की और यूक्रेन द्वारा रूस की आक्रामकता को माकूल जवाब दिए जाने की जानकारी दी।
जेलेंस्की ने ट्वीट किया, "हमारी जमीन पर 100,000 से अधिक आक्रमणकारी हैं। उन्होंने आवासीय भवनों पर घातक रूप से गोलियां चलाईं।"
उन्होंने भारत से यूएनजीसी में राजनीतिक समर्थन प्रदान करने का आग्रह करते हुए कहा, "आक्रामक को एक साथ रोकें!"
भारत के विदेश मंत्रालय ने ट्वीट किया : "राष्ट्रपति जेलेंस्की ने प्रधानमंत्री को यूक्रेन में जारी संघर्ष की स्थिति के बारे में विस्तार से जानकारी दी।"
मोदी ने जारी संघर्ष के कारण जान-माल के नुकसान पर गहरा दुख व्यक्त किया। उन्होंने हिंसा की तत्काल समाप्ति और बातचीत की वापसी के लिए अपने आह्वान को दोहराया, और शांति प्रयासों के लिए किसी भी तरह से योगदान करने की भारत की इच्छा सं अवगत कराया।
प्रधानमंत्री ने यूक्रेन में फंसे छात्रों सहित भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और सुरक्षा के लिए भारत की गहरी चिंता से भी अवगत कराया। मोदी ने भारतीय नागरिकों को तेजी से और सुरक्षित रूप से निकालने के लिए यूक्रेनी अधिकारियों से सहायता मांगी
भारत ने यूएनएससी के प्रस्ताव पर मतदान करने से परहेज किया था, जिसमें यूक्रेन के खिलाफ रूस की आक्रामकता की कड़ी निंदा की गई थी, यह कहते हुए कि बातचीत ही मतभेदों और विवादों को निपटाने का एकमात्र जवाब है।
भारत में रूसी दूतावास ने शनिवार को एक ट्वीट में कहा, "25 फरवरी, 2022 को यूएनएससी में मतदान में भारत की स्वतंत्र और संतुलित स्थिति की हम सराहना करते हैं।"
इसने आगे कहा, "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी की भावना में रूस यूक्रेन के आसपास की स्थिति पर भारत के साथ घनिष्ठ संवाद बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।" (आईएएनएस)
मॉस्को: यूक्रेन पर हमले के बाद अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं. बताया जा रहा है कि इन प्रतिबंधों के चलते रूस को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ सकता है. इस बीच SWIFT से रूस को प्रतिबंधित किए जाने की चर्चा चल रही है. लेकिन रूस पर ये प्रतिबंध लगाने से पहले कई देशों को अपने हितों की चिंता भी सताने लगी है.
दरअसल SWIFT एक वैश्विक बैंकिंग प्रणाली है. इससे पहले भी रूस को इससे प्रतिबंधित करने की धमकी दी जा रही थी. 2014 में क्रिमिया पर कब्जा करने के बाद अमेरिका ने रूस को स्विफ्ट से अलग करने का आह्वान किया था. आइये जानते हैं SWIFT के बारे में
क्या है SWIFT ?
स्विफ्ट ग्लोबल बैंकिंग सर्विसेज के जीमेल के तौर पर कार्य करने वाली एक प्रणाली है. साल 1973 में इसकी स्थापना की गई थी ताकि टेलेक्स प्रणाली पर निर्भरता को समाप्त किया जा सके. जिसका उपयोग टेक्सट मैसेज भेजने के लिए किया जाता था. स्विफ्ट 200 से ज्यादा देशों में 11 हजार से ज्यादा फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन और कंपनीज के बीच मैसेज के तौर पर सुरक्षित संचार प्रदान करता है.
स्विफ्ट की विशेषता है कि इसके जरिए एक दिन में औसतन 4 करोड़ मैसेज भेजे जा सकते हैं जिनमें बैंकिंग कार्यप्रणाली से जुड़े विवरण शामिल हैं. स्विफ्ट एक सदस्य-स्वामित्व वाली सहकारी समिति है जिसका ऑफिस बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में स्थित है.
SWIFT की भूमिका अहम क्यों?
चूंकि स्विफ्ट एक वैश्विक बैंकिंग प्रणाली है और इसका महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि साल 2012 में जब कुछ ईरानी बैंकों को स्विफ्ट से बाहर कर दिया गया था तो ईरान का तेल निर्यात एक दिन में 3 मिलियन बैरल से अधिक गिर गया था. वहीं जब 2014 में रूस को स्विफ्ट से बाहर करने की चेतावनी दी गई थी तो उस समय रूस के वित्त मंत्री ने देश की जीडीपी में गिरावट की चेतावनी दी थी. जिसके बाद कोई कदम नहीं उठाया गया.
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SWIFT से बाहर हुआ रूस तो क्या होगा असर?
यदि रूस को स्विफ्ट से बाहर कर दिया जाता है तो रूस में घरेलू और विदेशी स्तर पर पैसों को लेनदेन लगभग असंभव हो जाएगा और इससे रूस को फॉरेन करेंसी प्राप्त नहीं होगी. इसके कारण रूस की कंपनीज और उसकी अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा. हालांकि ऐसा नहीं है कि इससे नुकसान सिर्फ रूस को ही होगा बल्कि दूसरे देशों को रूस से मिलने वाले संसाधन जैसे- गैसे, तेल और विभिन्न धातु प्राप्त नहीं हो सकेगी.
वहीं अगर रूस को स्विफ्ट से प्रतिबंधित किया गया तो अमेरिका और जर्मनी को सबसे ज्यादा नुकसान होगा क्यों कि उनके बैंक, रूस के बैंक से संपर्क करने के लिए स्विफ्ट का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं.
उधर यूरोपिय देश भी तेल और गैस के लिए रूस पर सबसे ज्यादा निर्भर है और इसी कारण से वह कोई भी बड़ा कदम उठाने से पहले सोच रहे हैं. एक अनुमान के अनुसार, यूरोपीय संघ करीब 40 फीसदी गैस जरूरत के लिए रूस पर निर्भर है. रूस के राजनेताओं ने चेतावनी दी है कि पैसों के लेन-देने के बिना गैस और तेल की सप्लाई बंद हो जाएगी.
नई दिल्ली/कीव, 26 फरवरी | यूक्रेन के उप प्रधानमंत्री माईखाइलो फेडोरोव ने शनिवार को एप्पल के सीईओ टिम कुक से यूक्रेन पर हमले के जवाब में रूसी उपयोगकर्ताओं को उत्पादों और सेवाओं की आपूर्ति बंद करने का आग्रह किया।
ट्विटर पर पोस्ट किए गए एक खुले पत्र में, फेडोरोव ने कहा कि उन्होंने रूस में लोगों के लिए एप स्टोर को ब्लॉक करने के लिए कुक से संपर्क किया है।
"मैंने रूसी संघ के नागरिकों के लिए एप्पल स्टोर को ब्लॉक करने और अमेरिकी सरकार के प्रतिबंधों के पैकेज का समर्थन करने के लिए एप्पल के सीईओ से संपर्क किया है!"
"मैं आपसे अपील करता हूं कि रूसी संघ को एप्पल सेवाओं और उत्पादों की आपूर्ति बंद कर दें, जिसमें ऐप स्टोर तक पहुंच को अवरुद्ध करना शामिल है!"
जो बाइडेन प्रशासन ने गुरुवार को रूस पर कड़े प्रतिबंध जारी किए, जिसमें एप्पल और अन्य अमेरिकी कंपनियों को रूसी सेना या रक्षा मंत्रालय को सेवाएं प्रदान करने से रोकने के उपाय शामिल हैं।
हालांकि, फेडोरोव ने कुक से रूसी उपयोगकर्ताओं के लिए भी ऐप स्टोर सेवाओं को बंद करने के लिए कहा।
फेडोरोव ने कुक को लिखा, "हमें यकीन है कि इस तरह की कार्रवाइयां रूस के युवाओं और सक्रिय आबादी को अपमानजनक सैन्य आक्रमण को रोकने के लिए प्रेरित करेंगी।"
व्हाइट हाउस ने पुष्टि की है कि यूक्रेन में मास्को के चल रहे सैन्य अभियान पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव को भी मंजूरी देगा।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 फरवरी यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने शनिवार की सुबह सोशल मीडिया पर एक वीडियो पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने शहर के विभिन्न हिस्सों में रात भर तोपखाने की गोलाबारी के बाद खुद को कीव की सड़कों पर घूमते हुए दिखाया। फॉक्स न्यूज की रिपोर्ट से यह जानकारी मिली।
जेलेंस्की ने अपने देशवासियों को एक संक्षिप्त वीडियो संबोधन में कहा, "हम अपने देश की रक्षा करेंगे और ऑनलाइन बहुत सारी गलत जानकारी है।"
यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोदिमिर जेलेंस्की ने शनिवार की सुबह कीव में सूरज निकलने के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, "फर्जी सूचनाओं पर विश्वास न करें। मैं यहां हूं। हम अपने देश की रक्षा करेंगे, क्योंकि हमारी ताकत हमारे सच में है।"
उन्होंने कहा, "हम अपने देश की रक्षा करेंगे।"
फॉक्स न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार, रूसी सैनिकों के कथित तौर पर राजधानी में प्रवेश करने के बाद कीव में रात भर जोरदार विस्फोटों और तीव्र गोलाबारी के बाद जेलेंस्की ने यह टिप्पणी की है। (आईएएनएस)|
कीव/नई दिल्ली, 26 फरवरी | यूक्रेन पर रूस के हमले के बीच बेलारूस के हैकर्स यूक्रेन के सैन्य कर्मियों के निजी ईमेल को निशाना बना रहे हैं।
यूक्रेन की कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी-यूए) ने एक फेसबुक पोस्ट में कहा कि बड़े पैमाने पर फिशिंग अभियान यूक्रेन के सैन्य कर्मियों के निजी अकाउंट को निशाना बना रहा है।
सीईआरटी-यूए ने शुक्रवार देर रात कहा, "मास फिशिंग ईमेल हाल ही में यूक्रेन के सैन्य कर्मियों और संबंधित व्यक्तियों के निजी 'एआई डॉट यूए' और 'एमेटा डॉट यूए' अकाउंट को लक्षित करते हुए देखे गए हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "अकाउंट से छेड़छाड़ होने के बाद आईएमएपी प्रोटोकॉल द्वारा हमलावरों को सभी संदेशों तक पहुंच प्राप्त होती है। बाद में, हमलावर फिशिंग ईमेल भेजने के लिए लोगों के विवरण का उपयोग करते हैं।"
इन गतिविधियों के पीछे 'यूएनसी1151' नामक मिन्स्क स्थित ग्रुप है। इसके सदस्य बेलारूस गणराज्य के रक्षा मंत्रालय के अधिकारी हैं।
साइबर-सुरक्षा फर्म मैंडिएंट ने इससे पहले पिछले साल नवंबर में ग्रुप को बेलारूसी सरकार से जोड़ा था।
कीव सरकार ने कहा कि साइबर हमले के पीछे 'यूएनसी1151' ग्रुप का हाथ था, जिसके कारण पिछले सप्ताह यूक्रेन की सरकारी वेबसाइट रूक गई थी।
रिपोर्ट सामने आई हैं कि बड़े पैमाने पर साइबर हमलों के साथ यूक्रेन की सरकारी वेबसाइटों और बैंकों पर हमला करने के बाद रूस द्वारा प्रायोजित हैकर अब एक पूर्ण युद्ध के बीच स्थानीय लोगों को चुप कराने के लिए देश में इंटरनेट के बुनियादी ढांचे पर हमला कर रहे हैं।
गुरुवार को आक्रमण शुरू होने के बाद साइबर आक्रमण ने पहले ही देश के कुछ हिस्सों में इंटरनेट कनेक्टिविटी को काट दिया गया।
आउटेज ने ट्रायोलन इंटरनेट सेवा प्रदाता को भी प्रभावित किया, जो खार्किव सहित यूक्रेन के कई शहरों और अन्य क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करता है।
(आईएएनएस)
यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद हजारों लोग सीमा पार कर पड़ोसी देशों में पहुंच रहे हैं. इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, लड़ने की उम्र के पुरुषों को देश के अंदर ही रहने के लिए कहा गया है.
यूक्रेन से निकले लोगों ने पोलैंड, रोमानिया, हंगरी और स्लोवाकिया में शरण ली है. शुक्रवार को पूरे दिन रूसी मिसाइलों का शोर यूक्रेन के आकाश में गूंजता रहा. देश के बाहर निकलने वाली सड़कों पर गाड़ियों की कई किलोमीटर लंबी कतारें लग गई हैं.
इलाके में यूक्रेन के बाद यूक्रेनी लोगों की सबसे बड़ी तादाद पोलैंड में रहती है. अधिकारियों का कहना है कि यहां कुछ जगहों पर सीमा पार करने में लोगों को 6 से 12 घंटे तक का इंतजार करना पड़ रहा है. पश्चिमी यूक्रेन के लीव शहर से 85 किलोमीटर दूर पोलैंड के दक्षिणी शहर मेडिका तक जाने वाली सड़क कारों से भरी पड़ी है. पुलिस को उन्हें संभालने में भारी मशक्कत करनी पड़ रही है. इंटरनेट नक्शे वाली वेबसाइटें बता रही हैं कि पूरे रास्ते का करीब एक-तिहाई हिस्सा भारी ट्रैफिक जाम में फंसा है.
रो-रोकर आपबीती बता रहे लोग
30 साल की लुडमिला ने रोते हुए कहा, "केवल औरतें और बच्चे हैं, क्योंकि मर्दों को रोक दिया गया है. हम अपने पिता, पति और आदमियों को घर छोड़ कर आए हैं. बहुत बुरा लग रहा है." यूक्रेन के कानून में 18 से 60 साल के लोगों को अनिवार्य सैनिक सेवा के लिए भेजा जा सकता है. देश में आपातकाल है, इसलिए उनके देश के बाहर जाने पर रोक लग गई है.
लीव से आई 30 साल की मार्ता बाउख ने कहा कि उनके पति को भी सीमा पार नहीं जाने दिया गया. उन्होंने बताया, "लीव में हालात ठीक हैं, लेकिन दूसरे शहरों में तो भारी तबाही है. कीव पर खूब गोलीबारी हुई है. कई छोटे शहरों को भी निशाना बनाया गया. मुझे लगता है कि बस कुछ ही देर की बात है. यह भी दूसरे शहरों की तरह खतरे में होगा."
कहां जाएंगे देश छोड़नेवाले?
संयुक्त राष्ट्र की सहायता एजेंसियों का कहना है कि इस जंग की वजह से 50 लाख लोग देश के बाहर जाएंगे. इनमें से केवल पोलैंड में ही करीब 30 लाख लोगों के पहुंचने की आशंका है. एजेंसियों का कहना है कि यूक्रेन के कुछ हिस्सों में ईंधन, नगदी और दवाइयों की कमी हो रही है. संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि कम से कम एक लाख लोग अब तक अपने घर छोड़ कर जा चुके हैं.
यूरोपीय संघ के गृहमंत्री रविवार को इस संकट के नतीजों पर चर्चा करेंगे. जर्मनी ने पहले ही कह दिया है कि हिंसा के कारण देश छोड़ कर जाने वालों को संघ शरण देगा. ब्रशेल्स में यूरोपीय संघ के समकक्षों के साथ बैठक करने आईं जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा है, "हमें बम और टैंकों की वजह से भाग कर आने वाले लोगों को स्वीकार करने के लिए बिना देरी के हर संभव कोशिश करने की जरूरत है."
सीमा अधिकारियों का कहना है कि गुरुवार को पोलैंड में यूक्रेन से 29,000 लोग आए और इनमें से आधे से ज्यादा ने जताया है कि वे जंग के कारण भाग कर आए हैं. इसी तरह रोमानिया में 10,000 और स्लोवाकिया में करीब 3,000 लोग गुरुवार को पहुंचे.
मदद की गुहार
उत्तरी रोमानिया की सीमा पर बहुत दुखद दृश्य है. वहां महिलाएं रोते हुए अपने पुरुष प्रियजनों को विदा दे रही हैं. यहां कारों की लंबी कतारें हैं, क्योंकि उन्हें बोट के सहारे डेन्यूब नदी पार कर इसाकिया पहुंचना है. यह शहर मोल्डोवा और काले सागर के बीच है. स्लोवाक अधिकारियों ने लोगों से रक्तदान करने का आग्रह किया है. इन लोगों ने 5,380 बिस्तरों के अस्पताल तैयार किए हैं, जो सेना या फिर नाटो के इस्तेमाल में रहेगा.
पूरे मध्य यूरोप में स्वयंसेवक सोशल मीडिया पर संदेश डाल कर आम लोगों से सीमा पार कर आने वाले लोगों के लिए जगह और ट्रांसपोर्ट में मदद करने की गुहार लगा रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता खाने-पीने की चीजें बांटने के लिए कैंप लगा रहे हैं. पोलैंड और रोमानिया ने यूरोपीय संघ के बाहर से आने वालों के लिए शुक्रवार से क्वारंटीन की शर्त खत्म कर दी है.
हंगरी ने कहा है कि वह तीसरे देश के लोगों के लिए मानवीय गलियारा खोलेगा. ईरान या भारत जाने के लिए जो लोग यूक्रेन से भाग रहे हैं, उन्हें बिना वीजा के हंगरी आने दिया जाएगा और फिर ये लोग पास के एयरपोर्ट से अपने देश के लिए विमान में जा सकते हैं.
एनआर/वीएस(रॉयटर्स)
जर्मनी की संघीय पुलिस को आशंका है कि दक्षिणपंथी चरमपंथी गुट रूस और यूक्रेन की लड़ाई में शामिल होने के लिए जा सकते हैं. संघीय पुलिस ऐसे लोगों की पहचान करने और उन्हें रोकने में जुट गई है.
सुरक्षा एजेंसियों को शक है कि जर्मनी के कट्टरपंथी रूस के साथ सहयोग कर सकते हैं. जर्मन सरकार ने वामपंथी राजनीतिक पार्टी डी लिंके के अनुरोध पर इस बारे में सरकार के रुख की जानकारी दी है. समाचार एजेंसी डीपीए ने इनसे जुड़े दस्तावेज देखें हैं जो इस खबर की पुष्टि कर रहे हैं.
जर्मनी में कई नवनाजी गुट सक्रिय हैं.ये गुट अल्पसंख्यकों और आप्रवासियों के प्रति नफरत फैलाते हैं. बीते सालों में जर्मनी में अल्पसंख्यकों पर कई हमले भी हुए हैं. ज्यादातर कट्टरपंथी रूस का पक्ष लेने वाले हैं, हालांकि कट्टरपंथियों का एक धड़ा ऐसा भी है जो यूक्रेन के साथ सहानुभूति रखता है. ऐसा माना जाता है कि नवनाजी गुट डेयर द्राइ वेग यानी "तीसरा रास्ता" की सहानुभूति यूक्रेन के राष्ट्रवादियों के साथ है.
सरकार के पास पक्की जानकारी नहीं
सरकार ने एक सांसद के उठाए सवाल के लिखित जवाब में कहा है, "जर्मन दक्षिणपंथी चरमपंथियों के धुर दक्षिणी अर्धसैनिक यूनिटों में जा कर युद्धक गतिविधियों में संदिग्ध रूप से शामिल होने के बारे में संघीय सरकार के पास अभी कोई पुष्ट जानकारी नहीं है कि कोई दक्षिणपंथी यूक्रेन गया है या फिर उन इलाकों में ऐसी गतिविधियों में सक्रिय रूप से हिस्सा ले रहा है."
जर्मनी के गृह मंत्रालय ने साफ तौर पर कहा है कि मौजूदा संकट के कारण संघीय पुलिस निदेशालयों ने अपना ध्यान दक्षिणपंथी चरमपंथियों की संभावित यात्राओं पर लगाया है." मंत्रालय का यह भी कहना है, "संदिग्ध मामलों में प्रबल नियंत्रण के उपाय किए जाएंगे और अगर कानूनी शर्तें पूरी नहीं हुईं तो उनकी यात्रा को रोका जाएगा."
जर्मन सांसद मार्टिना रेनर ने डि लिंके की तरफ से इस बारे में जानकारी देने का आग्रह किया था. रेनर का कहना है कि जर्मन नवनाजियों का यूक्रेन और रूस के साथ बेहतर संबंध होने की वजह से उनके युद्ध में शामिल होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. रेनर ने कहा, "मैं सुरक्षा अधिकारियों से मांग करती हूं कि वो संकेतों पर नजर रखें और फिर उनके मुताबिक काम करें."
नवनाजी गुटों के रूसी कट्टरपंथियों से संबंध
जर्मनी में सक्रिय नवनाजी गुटों के रूसी कट्टरपंथियों से संपर्क और संबंध की खबरें आती रही हैं. इससे पहले 2020 में ऐसी खबरें आई थीं जिनमें कहा गया कि नवनाजी गुटों के चरमपंथियों ने यूक्रेन या रूस जा कर अर्धसैनिक ट्रेनिंग ली थी. इनमें जर्मनी की धुर दक्षिणपंथी नेशनल डेमोक्रैटिक पार्टी और डेयर द्राइ वेग के युवा कार्यकर्ता शामिल थे. उन खबरों के मुताबिक इन लोगों ने पूर्वी यूक्रेन में सक्रिय जर्मन मिलिशिया गुटों के साथ जा कर हथियार चलाने और विस्फोटकों की ट्रेनिंग ली थी. इनके साथ फिनलैंड और स्वीडन के कुछ युवा भी थे.
ये खबरें जर्मन खुफिया एजेंसियों के सूत्रों के हवाले से आई थीं. तब कहा गया था कि ये ट्रेनिंग कैंप रशियन इंपीरियल मूवमेंट की ओर से लगाए गए थे. यह संगठन रूसी साम्राज्य को दोबारा खड़ा करने के उद्देश्य से सक्रिय है. अमेरिका ने इस संगठन को आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल भी किया था.
एनआर/एके(डीपीए)
यूक्रेन पर हमले ने रूसी राष्ट्रपति को अलग थलग कर दिया है लेकिन लगता नहीं कि उन्हें इसकी परवाह है. अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जानकार इस स्थिति को उनकी पसंद बता रहे हैं. इससे घरेलू राजनीति में उनकी स्थिति मजबूत हो सकती है.
डॉयचे वैले पर निखिल रंजन की रिपोर्ट-
यूक्रेन पर रूसी हमले ने अमेरिका और उसके सहयोगियों को रूस के खिलाफ "विध्वंसकारी" प्रतिबंधों के पैकेज पर तुरंत रजामंद कर लिया. नाटो, यूरोपीय संघ और जी 7 के नेताओं ने हमले की निंदा की और रूस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है.
प्रतिबंधों से बेअसर पुतिन
ब्लूबे एसेट मैनैजमेंट में उभरते बाजारों के रणनीतिकार टिमोथी ऐश कहते हैं, "पुतिन को अब हमारे पश्चिमी उदार बाजार वाले लोकतंत्र की व्यवस्था के लिए सबसे करीबी खतरे के रूप में देखा जा रहा है." ऐश का यह भी कहना है कि पश्चिमी देशों के नेता "पुतिन से पूरी तरह से निराश और खतरे में" महसूस कर रहे हैं. पुतिन ने खुद को पश्चिमी देशों के लिए "पहले नंबर का अछूत बना लिया है."
थिंक टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी अधिकारी कंफोर्ट इरो का कहना है कि इसके नतीजे में बहुत संभावना है कि रूस ऐतिहासिक रूप से लंबे समय के लिए आर्थिक तौर पर अकेला पड़ जाएगा.
2014 में रूस ने जब क्राइमिया को यूक्रेन से अलग कर अपने साथ मिला लिया तभी से उस पर प्रतिबंधों का दौर शुरू हो गया था. इसके बाद रूसी राष्ट्रपति के आलोचक आलेक्सी नावाल्नी को 2020 में जहर देने के बाद ये सिलसिला और आगे बढ़ा. हालांकि इन सारे प्रतिबंधों का रूसी राष्ट्रपति पर कोई असर हुआ हो यह दुनिया ने नहीं देखा.
बहुत पहले से तैयारी
राजनीतिक विश्लेषण संस्था आर पॉलिटिक की संस्थापक तात्याना स्तानोवाया बताती हैं, "करीब डेढ़ साल से क्रेमलिन बहुत सक्रियता के साथ इसकी तैयारी में जुटा हुआ था कि पश्चिमी देश और ज्यादा कड़े प्रतिबंध लगाएंगे." स्तानोवाया के मुताबिक पुतिन के लिए, "प्रतिबंधों का लक्ष्य रूस के हमले की आक्रामकता से बचाव नहीं है बल्कि रूस के विकास को रोकना है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि पुतिन पश्चिमी देशों के साथ लंबी लड़ाई की उम्मीद रखते हैं.
पश्चिमी देशों ने कुछ प्रतिबंधों का तो एलान कर ही दिया है और जो बाकी है उनमें रूस को वैश्विक भुगतान तंत्र स्विफ्ट से अलग करना है. हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गुरुवार को कहा कि यूरोप ने अभी इस कदम पर फैसला नहीं किया है. रूसी राष्ट्रपति ने इस आशंका से बचने के लिए रूस में अच्छी खासी तैयारी की है. खासतौर से विदेशी मुद्रा के भंडार को बढ़ा कर वो इस डर को अपने दिमाग से निकाल देना चाहते हैं. फिलहाल रूस के पास करीब 640 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार मौजूद है.
इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के रूस विशेषज्ञ ओलेग इग्नातोव कहते हैं, "विशाल मुद्रा भंडार, तेल की बढ़ती कीमत और जीडीपी के मुकाबले कम कर्ज का अनुपात रूस की तुरंत लगने वाले प्रतिबंधों से रक्षा करेंगे...हालांकि लंबे समय में इनके कारण देश में आर्थिक जड़ता आएगी."
ऊर्जा की बड़ी दुकान
रूस दुनिया में कच्चे तेल के सबसे बड़े उत्पादक देशों में है. 2014 के बाद इसने इस दिशा में काफी ज्यादा प्रगति की है और हमले के बाद तो यह उस स्तर पर पहुंच गया है जहां इससे पहले कभी नहीं रहा. बीते कई हफ्तों से रूस और पोलैंड के बीच पाइपलाइन से आने वाले गैस की सप्लाई कम हो रही थी लेकिन शुक्रवार को यह अचानक चार गुना बढ़ गई. ऐश ने गुरुवार को रूसी शेयर बाजार में भारी गिरावट की ओर इशारा करते हुए कहा कि भारी प्रतिबंधों के कारण रूस "वैश्विक बाजार में अछूत बन जाएगा और निवेश के लायक नहीं रहेगा."
रूसी राष्ट्रपति के दफ्तर क्रेमलिन का कहना है कि उसने इस स्थिति का अनुमान पहले ही लगा लिया था. क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने पत्रकारों से कहा, "इस भावुक लम्हे को जितना मुमकिन है उतना तात्कालिक रखने के लिए सारे जरूरी उपाय पहले ही कर लिए गए हैं." पेस्कोव ने राजनयिक असर को भी कम कर के दिखाने की कोशिश की. पेस्कोव का कहना है, "निश्चित रूप से कुछ देशों के साथ हमें समस्या होगी लेकिन हम इन देशों के साथ पहले से ही समस्याओं का सामना कर रहे हैं."
वास्तव में ऐसा लग रहा है कि पुतिन का रूस अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा की बुनियादों को ही हिला देना चाहता है. कंफोर्ट इरो का कहना है, "यह सिर्फ यूरोपीय सुरक्षा संकट नहीं है. इस जंग के नतीजे वैश्विक सुरक्षा के लिए भी कठिन और लंबे समय के लिए होंगे." कार्नेगी मॉस्को सेंटर के सीनियर फेलो अलेक्जांडर बाउनोव का कहना है कि स्वाभाविक रूप से रूस लंबे समय के लिए अछूत बन जाएगा और यू्क्रेन में उसका अभियान जितना लंबा होगा, "उतना ज्यादा दूसरे देशों के साथ रूस के आर्थिक संपर्क और संबंध बिगड़ेंगे."
रूस के लिए संकट के साथी
पश्चिम की ओर से कूटनीतिक और आर्थिक तौर पर "अछूत" पुतिन चीन और ईरान जैसे देशों की तरफ जा सकते हैं. इन दोनों देशों ने अब तक रूस की निंदा नहीं की है, ईरान ने संघर्ष विराम और राजनीतिक समाधान की मांग की है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तो गुरुवार को जब यूक्रेन पर हमला हुआ तब मास्को में ही थे. यह बीते कई दशकों में किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की पहली रूस यात्रा थी.
चीन का कहना है कि वह यूक्रेन को लेकर रूस की "सुरक्षा मामलों पर जायज चिंताओं को समझता है." जब दुनिया के देश रूस से आर्थिक संबंध तोड़ रहे हैं और प्रतिबंध लगा रहे हैं उसी समय चीन ने रूस से गेंहू के आयात को मंजूरी दी है. पहले इस आयात पर यह कह कर रोक लगाई गई थी कि उनमें फफूंद और दूसरी समस्याएं हैं. ईरान का कहना है कि मौजूदा "यूक्रेन समस्या की जड़ में नाटो के उकसावे हैं." अमेरिका और ईरान के संबंधों का हाल दुनिया जानती ही है. अगर परमाणु करार पर दोबारा सहमति नहीं बनती है तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि ईरान किस ओर जाएगा.
रूसी राष्ट्रपति भारत की तरफ से भी संयुक्त राष्ट्र में सहयोग की उम्मीद लगाए बैठे हैं. भारत के प्रधानमंत्री ने गुरुवार को पुतिन से फोन पर बात की और यूक्रेन में सैनिक अभियान बंद करने को कहा. हालांकि भारत ने रूस के इस कदम की ना तो निंदा की है ना ही भविष्य में संबंधों पर इसकी वजह से पड़ने वाले किसी असर की बात की है.
बेलारूस तो इस हमले में अपनी जमीन का इस्तेमाल होने दे रहा है और कजाखस्तान ने भी रूस का समर्थन किया है. मतलब साफ है कि पश्चिमी देश, अमेरिका और उनके सहयोगी जितना इसे एकतरफा मामला बता रहे हैं, यह उतना है नहीं. दूसरी तरफ पुतिन बहुत पहले से खुद को और देश को इन परिस्थितियों के लिए तैयार करते रहे हैं. ऐसे में उनका टीवी पर आकर परमाणु हथियार के इस्तेमाल की धमकी देना भी अब दुनिया को हैरान नहीं करता. ऐसा लगता है कि वो मान चुके हैं कि दुनिया में अब वो अकेले ही हैं. (dw.com)
युद्ध-विरोधी रैलियों में हिस्सा लेने के चलते 53 शहरों में लगभग 1700 लोग हिरासत में लिए गए. 700 प्रदर्शनकारी राजधानी मॉस्को और 400 सेंट पीटर्सबर्ग में पकड़े गए. रूस में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के खिलाफ सख्त कानून हैं.
रूसी प्रशासन ने युद्ध विरोधी प्रदर्शनों में शामिल ना होने की चेतावनी दी थी. चेताया था कि प्रदर्शनकारियों को गंभीर नतीजे भुगतने होंगे. लेकिन 24 फरवरी को रूस के दर्जनों शहरों में लोग युद्ध के विरोध में सड़कों पर उतर आए. यह सेंट पीटर्सबर्ग में हुए एक प्रोटेस्ट की तस्वीर है.
रूस में यूक्रेन पर हुए हमले के खिलाफ दर्जनों शहर में विरोध प्रदर्शन हुए हैं. पुलिस ने 1700 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया है. रूसी राष्ट्रपति के दफ्तर क्रेमलिन ने कहा कि यूक्रेन को 'आजाद' करवाने और 'नाजियों से खाली करवाने' की जरूरत है. और, उसे भरोसा है कि रूसी जनता इस युद्ध का समर्थन करेगी.
मगर जैसे-जैसे यूक्रेन से हमले की तस्वीरें आने लगीं और वहां हो रही मौतों के बारे में पता चला, कई जानी-मानी हस्तियों ने युद्ध के खिलाफ सार्वजनिक बयान दिए. शाम होते-होते खबरें आने लगीं कि रूस के कई शहरों में हजारों की संख्या में लोग ऐंटी-प्रोटेस्ट कानून तोड़कर युद्ध का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतर रहे हैं.
प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों को चेतावनी दी थी
रूसी प्रशासन ने युद्ध का विरोध करने वालों को प्रदर्शनों में शामिल ना होने की चेतावनी दी थी. गंभीर अपराधों की जांच करने वाली सरकारी एजेंसी 'दी इन्वेस्टिगेटिव कमेटी' ने रूसी जनता को चेताते हुए कहा कि प्रदर्शनों में शामिल होने के कानूनी नतीजे भुगतने होंगे. कमेटी ने कहा, "लोगों को पता होना चाहिए कि ऐसी गतिविधियों का कानूनी नतीजा क्या हो सकता है."
चेतावनियों के बावजूद मॉस्को के पुश्किन स्क्वेयर के पास हजारों प्रदर्शनकारी जमा हुए. वे 'नो टू वॉर' के नारे लगा रहे थे. रूसी संसद के निचले सदन 'स्टेट डुमा' के मुख्य दरवाजे पर भी प्रदर्शनकारियों ने स्प्रे पेंट से 'नो टू वॉर' लिख दिया. प्रदर्शन करने वाली 23 साल की अनास्तासिया नेस्तुल्या ने न्यूज एजेंसी एएफपी से बात करते हुए कहा, "मैं सदमे में हूं. मेरे रिश्तेदार और करीबी लोग यूक्रेन में रहते हैं. मैं फोन पर उनसे क्या कहूं?" अनास्तासिया ने बताया कि लोग प्रोटेस्ट में शामिल होने से डर रहे हैं.
पूर्व राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग में भी करीब एक हजार प्रदर्शनकारियों ने युद्ध-विरोधी प्रदर्शन किया. यहां 27 साल की प्रदर्शनकारी स्वेत्लाना वोल्कोवा ने कहा, "मुझे महसूस हो रहा है कि प्रशासन पागल हो गया है. दुष्प्रचार के सहारे लोगों को मूर्ख बनाया गया है." यहां तीन पुलिसकर्मी एक युवा प्रदर्शनकारी को घसीटकर ले जाते दिखे. घसीटे जाते समय वह चीख रहा था, "किससे लड़ रहे हो तुम लोग? पुतिन को गिरफ्तार करो."
जेल से नवाल्नी का बयान
रूस के दर्जनों दूसरे शहरों में भी रैलियां निकाली गईं. यूक्रेन पर हमला ऐसे समय में हुआ है, जब रूस में विपक्ष पर काफी सख्ती है. पुतिन के खिलाफ बड़ी रैलियां आयोजित करने वाले मुख्य विपक्षी नेता आलेक्सी नवाल्नी जेल में हैं. एक स्वतंत्र टीवी चैनल ने 24 फरवरी को उनका एक वीडियो प्रसारित किया. इसमें नवाल्नी यूक्रेन युद्ध का विरोध करते दिखे. उन्होंने कहा, "मैं इस जंग के खिलाफ हूं. रूसी जनता से की गई चोरी को ढंकने के लिए रूस और यूक्रेन के बीच यह युद्ध शुरू किया गया है. यह देश में मौजूद दिक्कतों से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश है."
रूस में ओवीडी-इंफो नाम का एक मानवाधिकार मीडिया प्रोजेक्ट विपक्ष रैलियों में हुई गिरफ्तारियों के आंकड़े जमा करता है. उसके मुताबिक, 24 फरवरी को युद्ध-विरोधी रैलियों में हिस्सा लेने के चलते 53 शहरों में लगभग 1700 लोगों को हिरासत में लिया गया. इनमें सबसे ज्यादा 700 प्रदर्शनकारी राजधानी मॉस्को और 400 प्रोटेस्टर सेंट पीटर्सबर्ग में पकड़े गए. हालिया सालों में रूस ने विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ सख्ती बढ़ा दी हैं. प्रोटेस्ट के खिलाफ कानून कड़े कर दिए गए हैं. विरोध प्रदर्शनों में अक्सर ही बड़े स्तर पर गिरफ्तारियां होती हैं.
क्या कह रहे हैं लोग?
न्यूज एजेंसी एएफपी ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला शुरू होने के बाद उसने मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में जितने भी लोगों से बात की, उनमें तकरीबन सभी युद्ध और खून-खराबे के खिलाफ थे. हालांकि कुछ लोगों ने इस संकट के लिए यूक्रेन को भी जिम्मेदार ठहराया. 48 साल की यूलिया अंतोनोवा सेंट पीटर्सबर्ग में अंग्रेजी की शिक्षिका हैं. उन्होंने कहा, "मैं युद्ध नहीं चाहती. मैं नहीं चाहती कि लोग मरें."
54 साल के विक्टर एंतिपोव भी सेंट पीटर्सबर्ग में ही रहते हैं. उन्होंने कहा कि वह पुतिन के तौर-तरीकों का समर्थन नहीं करते हैं. क्रेमलिन की योजना पर टिप्पणी करते हुए विक्टर बोले, "कोई भी समझदार इंसान युद्ध नहीं चाहता. पुतिन आगे की नहीं सोच रहे हैं." 20 साल के आर्किटेक्चर छात्र इगोर खारितोनोव ने रूसी प्रशासन को 'विकृत' बताते हुए कहा, "मुझे युद्ध से घिन आती है." मगर पुतिन की पीढ़ी के कई रूसी नागरिक राष्ट्रपति के समर्थन में भी हैं. 70 साल की गलिना सम्योलेनको ने यूक्रेन में अलगाववादियों के कब्जे वाले इलाकों- डोनेत्स्क और लुहांस्क का जिक्र करते हुए कहा, "पुतिन रूसी जनता और उन दोनों गणराज्यों की मदद करना चाहते हैं."
यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने नेटो के सामने अपने 73 साल के इतिहास में सबसे बड़ी चुनौती पेश की है.
नेटो क्षेत्र की पूर्वी सीमा के ठीक बगल में युद्ध हो रहा है और नेटो के कई सदस्य देशों को लग रहा है कि रूस आगे उन पर हमला कर सकता है.
सैन्य गठबंधन नेटो, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी जैसे शक्तिशाली देश शामिल हैं,
पूर्वी यूक्रेन में अधिक सैनिक तैनात कर रहा है. हालांकि ब्रिटेन और अमेरिका ये स्पष्ट कर चुके हैं कि उनका यूक्रेन में अपने सैनिक भेजने का कोई इरादा नहीं है.
नेटो क्या है?
नॉर्थ एटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो 1949 में बना एक सैन्य गठबंधन है जिसमें शुरुआत में 12 देश थे जिनमें अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस शामिल थे. इस संगठन का मूल सिद्धांत ये है कि यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है तो बाकी देश उसकी मदद के लिए आगे आएंगे.
इसका मूल मक़सद दूसरे विश्व युद्ध के बाद रूस के यूरोप में विस्तार को रोकना था. 1955 में सोवियत रूस ने नेटो के जवाब में पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों के साथ मिलकर अपना अलग सैन्य गठबंधन खड़ा किया था जिसे वॉरसा पैक्ट नाम दिया गया था.
लेकिन 1991 में सोवियत यूनियन के विघटन के बाद वॉरसा पैक्ट का हिस्सा रहे कई देशों ने दल बदल लिया और वो नेटो में शामिल हो गए.
नेटो गठबंधन में अब 30 सदस्य देश हैं.
यूक्रेन को लेकर रूस के साथ मौजूदा तनाव क्यो हैं?
यूक्रेन एक पूर्व सोवियत रिपब्लिक है जो एक तरफ़ रूस से और दूसरी तरफ़ यूरोपीय संघ से सटा है. यूक्रेन में रूसी मूल के लोगों की बड़ी आबादी है और उसके रूस के साथ सामाजिक और सांस्कृतिक रिश्ते रहे हैं.
रणनीतिक रूप से रूस इसे अपना ही हिस्सा मानता रहा है और हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने कहा था कि यूक्रेन वास्तव में रूस का ही हिस्सा है.
हालांकि हाल के सालों में यूक्रेन का झुकाव पश्चिम की तरफ़ अधिक रहा है. उसका यूरोपीय संघ और नेटो का हिस्सा होने का इरादा उसके संविधान में भी लिखा है.
फिलहाल यूक्रेन नेटा का एक सहयोगी देश है. इसका मतलब ये है कि इस बात को लेकर सहमति है कि भविष्य में कभी यूक्रेन को नेटो में शामिल किया जा सकता है.
रूस पश्चिमी देशों से ये भरोसा चाहता है कि ऐसा कभी नहीं होगा.
हालांकि अमेरिका और उसके सहयोगी देश यूक्रेन को नेटो में शामिल होने से रोकने के ख़िलाफ़ हैं. उनका तर्क है कि यूक्रेन एक स्वतंत्र राष्ट्र है जो अपनी सुरक्षा को लेकर निर्णय ले सकता है और गठबंधन बना सकता है.
रूस किन और बातों को लेकर चिंतित है?
राष्ट्रपति पुतिन का दावा है कि पश्चिमी देश नेटा का इस्तेमाल रूस के इलाक़ों में घुसने के लिए कर रहे हैं. वो चाहते हैं कि नेटो पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य गतिविधियां रोक दे.
वो तर्क देते रहे हैं कि अमेरिका ने 1990 में किया वो वादा तोड़ दिया है जिसमें भरोसा दिया गया था कि नेटो पूर्व की तरफ़ नहीं बढ़ेगा. वहीं अमेरिका का कहना है कि उसने कभी भी ऐसा कोई वादा नहीं किया था.
नेटो का कहना है कि उसके कुछ सदस्य देशों की सीमाएं ही रूस से लगी हैं और ये एक सुरक्षात्मक गठबंधन हैं.
नेटो ने रूस और यूक्रेन को लेकर क्या-क्या किया है?
2014 में यूक्रेन के लोगों ने रूस समर्थक राष्ट्रपति को सत्ता से हटा दिया था, इसके कुछ महीने बाद ही रूस ने पूर्वी प्रायद्वीप क्राइमिया पर नियंत्रण कर लिया था. रूस ने पूर्वी यूक्रेन के बड़े इलाक़ों पर नियंत्रण कर लेने वाले अलगाववादियों का भी खुला समर्थन किया था.
नेटो ने इसमें दख़ल नहीं दिया लेकिन उसने पूर्वी यूरोपीय देशों में पहली बार गठबंधन के सैनिक तैनात कर दिए. इन सैनिकों को तैनात करने का मक़सद है कि यदि भविष्य में कभी रूस नेटो क्षेत्र की तरफ़ बढ़े तो उसे रोका जा सके.
नेटो के इस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया और पोलैंड में चार बटालियन की बराबर बैटल ग्रुप हैं जबकि रोमानिया में एक बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड है.
नेटो ने बाल्टिक देशों और पूर्वी यूरोप में हवाई निगरानी भी बढ़ाई है ताकि सदस्य देशों के वायु क्षेत्र में घुसने की कोशिश करने वाले रूसी विमानों को रोका जा सके.
रूस ये कहता रहा है कि वो चाहता है कि ये बल इन क्षेत्रों से निकल जाएं.
मौजूदा संकट में नेटो ने क्या किया है?
नेटो की पूर्वी सीमाओं को मज़बूत करने के लिए अमेरिका ने पोलैंड और रोमानिया में तीन हज़ार अतिरिक्त सैनिक तैनात किए हैं. इसके अलावा लड़ाई के लिए तैयार 8,500 सैनिकों को अलर्ट पर रखा है. हालांकि यूक्रेन में सैनिक तैनात करने की कोई योजना अभी नहीं है.
इसके अलावा क़रीब बीस करोड़ डॉलर क़ीमत के हथियार भी नेटो ने यूक्रेन को भेजे हैं जिनमें जेवलिन एंटी टैंक मिसाइलें भी शामिल हैं और स्टिंगर एंटी एयरक्राफ़्ट मिसाइलें भी हैं. इसके अलावा नेटो ने अन्य सदस्य देशों को अमेरिका में निर्मित हथियार यूक्रेन भेजने की अनुमति भी दे दी है.
ब्रिटेन ने यूक्रेन को कम दूरी वाली 2 हज़ार एंटी टैंक मिसाइलें दी हैं. पोलैंड में 350 सैनिक भेजे हैं और इस्टोनिया में अतिरिक्त 900 सैनिक भेजकर अपनी ताक़त दोगुना की है.
ब्रिटेन ने दक्षिणी यूरोप में आरएएफ़ के अतिरिक्त लड़ाकू विमान तैनात किए हैं और पूर्वी भूमध्य सागर में गश्त करने के लिए रॉयल नेवी का युद्धक पोत भी भेजा है. यहां पहले से ही नेटो के युद्धक पोत मौजूद हैं.
यूक्रेन पर रूस के आक्रामण से पैदा हुए हालात में मानवीय मदद के लिए तैयार रहने के लिए भी ब्रिटेन ने एक हज़ार सैनिकों को मुस्तैद रखा है.
डेनमार्क, स्पेन, फ़्रांस और नीदरलैंड्स ने भी पूर्वी यूरोप और पूर्वी भूमध्यसागर में जंगी विमान और युद्धपोत भेजे हैं.
अब नेटो क्या करेगा?
नेटो ने सैकड़ों लड़ाकू विमानों और युद्धपोतों को अलर्ट पर रखा है और वो रूस और यूक्रेन के सीमावर्ती इलाक़ों में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा रहा है.
वो अपनी रेस्पांस फोर्स को भी एक्टीवेट कर सकता है जिसमें क़रीब चालीस हज़ार सैनिक हैं.
नेटो रोमानिया, बुल्गारिया, हंगरी, स्लोवाकिया और ऐसे ही दूसरे देशों मे अतिरिक्त सैन्य बल और लड़ाकू समूह तैनात कर सकता है.
पोलैंड और बाल्टिक देशों में पहले से ही उसके लड़ाकू समूह मौजूद हैं. (bbc.com)
-सरोज सिंह
एक तरफ़ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक चल रही थी तो दूसरी तरफ़ रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया था.
दोनों घटनाओं के बीच फ़ासला महज़ कुछ मिनटों का था.
ग़ौर करने वाली बात ये थी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता वही रूस कर रहा था, जिसके ऊपर यूक्रेन पर हमला करने का आरोप है.
इस बैठक में संयुक्त राष्ट्र में यूक्रेन के स्थाई प्रतिनिधि सर्गेई किसलित्सा ने अपने बयान में भावुक अपील की.
"डी-एस्केलेशन की बात के लिए अब बहुत देर हो चुकी है. रूसी राष्ट्रपति ने जंग की घोषणा कर दी है. इस बैठक का अब कोई मतलब नहीं है."
रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की यूरोप के दूसरे देशों से लगातार मदद की गुहार लगाते नज़र आ रहे हैं.
उनकी गुहार का कुछ असर भी हुआ.
यूरोपीय देशों की तरफ़ से रूस पर 'कुछ प्रतिबंध' लगाए गए और कुछ देशों ने रूस के हमले की 'कड़ी निंदा' की.
दो विश्व युद्ध झेलने के बाद, 21वीं सदी में एक देश दूसरे स्वतंत्र देश पर हमला कर देता है और दुनिया के दूसरे देश इसे रोक पाने में नाकाम कैसे रह जाते हैं.
इस वजह से संयुक्त राष्ट्र, नेटो और यूरोपीय संघ तीनों पर सवाल उठ रहे हैं.
एक एक कर तीनों के बारे में जानने की ज़रूरत है.
साल 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद दुनिया शांति चाहती थी.
तब 50 देशों के प्रतिनिधियों ने मिलकर एक चार्टर पर हस्ताक्षर किए और एक नई अंतरराष्ट्रीय संस्था की नींव रखी गई, जिसे आज संयुक्त राष्ट्र कहते हैं.
इसके छह अंग हैं, जिनमें से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ज़िम्मेदारी दुनिया में शांति और सुरक्षा बनाए रखने की है, जिसके लिए वो प्रभावित देशों में पीस कीपिंग फोर्स भेजते हैं.
उम्मीद की गई कि यह संस्था पहले और दूसरे विश्वयुद्ध जैसा कोई तीसरा युद्ध नहीं होने देगी.
लेकिन आज कई अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार इस बात से आगाह कर रहे हैं कि यूक्रेन-रूस का मामला बढ़ा तो तीसरे विश्व युद्ध की तरफ़ ना बढ़ जाए.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद अपने बयान में कहा, " मैं अपने भाषण की शुरुआत बदलते हुए कहना चाहता हूँ, मानवता के नाम पर अपने सैनिकों को रूस वापस बुला लीजिए. मानवता के लिए ऐसा कुछ शुरू ना करें जो इस सदी की शुरुआत से अब तक का सबसे ख़तरनाक युद्ध साबित हो."
शुक्रवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक और बैठक प्रस्तावित है जिसमें यूक्रेन पर हमले को लेकर एक प्रस्ताव पारित होने की संभावना है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस एक स्थाई सदस्य है और चीन भी इस मामले पर उसका साथ दे सकता है.
ऐसे में पाँच स्थायी सदस्य में दो सदस्य अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर लें तो प्रस्ताव का कोई महत्व नहीं रह जाता.
इस वजह से सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस मामले में संयुक्त राष्ट्र केवल बयान, प्रस्ताव और बैठक ही कर सकता है? उसके पास दुनिया में शांति बनाए रखने के लिए कोई और पावर नहीं है?
प्रोफ़ेसर हर्ष वी पंत दिल्ली स्थित थिंक टैंक 'ऑब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन' में स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ प्रोग्राम' के प्रमुख हैं.
बीबीसी से बातचीत में वो कहते हैं, "संयुक्त राष्ट्र में शांति और सुरक्षा के मुद्दे तभी तक सुलझाए जा सकते हैं जब बात दो कमज़ोर देशों की हो. अगर पाँच स्थाई सदस्य में से एक भी सदस्य पर शांति और सुरक्षा भंग करने का आरोप हो तो इस संस्था के कोई मायने नहीं रह जाते. ये इराक युद्ध के समय भी देखा गया था."
हालांकि हर्ष पंत ये भी जोड़ते हैं कि इराक युद्ध के समय अमेरिका ने रूस जैसे रवैया नहीं अपनाया था.
उस समय सुरक्षा परिषद की कार्यवाही को याद करते हुए वो कहते हैं, "इराक पर हमले के वक़्त अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र में एक प्रेज़ेंटेशन दी थी, बाक़ी सदस्यों को यकीन दिलाने की कोशिश की थी उनका हमला क्यों जायज़ है. लेकिन इस समय रूस ऐसा कुछ करते नहीं दिख रहा."
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस के बारे में हर्ष पंत कहते हैं, " उन्होंने भी अपनी तरफ़ से कुछ बयान देने के अलावा कुछ नहीं किया. वो चाहते तो प्लेन लेकर मॉस्को जाते, रूसी राष्ट्रपति से मिल कर बात करते. भले ही उससे कुछ हासिल ना होता, लेकिन एक प्रयास करते तो कम से कम दिखते."
इराक युद्ध के दौरान अमेरिका की कार्रवाई को संयुक्त राष्ट्र ने 'अवैध' करार दिया था और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का उल्लंघन बताया था.
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र: 'रोटी-चावल नहीं मिल रहा, बिस्कुट-मैगी से हो रहा गुज़ारा'
नेटो क्या है?
यूरोप और उत्तरी अमेरिका में ही शांति बनाए रखने के लिए एक दूसरी संस्था भी बनी थी, जिसे नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइज़ेशन यानी नेटो कहते हैं. इसका गठन दूसरे विश्व युद्ध के चार साल बाद 1949 में हुआ था.
उस समय दुनिया में दो महाशक्तियाँ हुआ करती थीं - अमेरिका और सोवियत संघ. सदस्य देशों की सोवियत यूनियन से सुरक्षा के मक़सद से ही इसका गठन हुआ था. शुरुआत में नेटो के अमेरिका और कनाडा समेत 12 सदस्य देश थे . अभी नेटो के कुल 30 देश सदस्य हैं, जिसमें यूक्रेन शामिल नहीं है.
यूक्रेन पर रूस के ताज़ा हमले की एक वजह नेटो का यही विस्तार है.
आर्मीनिया में भारत के राजदूत रह चुके अचल मल्होत्रा कहते हैं, "पुतिन को लगता है कि नेटो का विस्तार और यूक्रेन को नेटो में शामिल करने की कोशिश, रूस को घेरने के लिए हो रही है. रूस इस वजह से दोनों बातों को अपनी सुरक्षा के लिए ख़तरा मानते हैं."
"1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, माना जा रहा था कि नेटो का कोई औचित्य नहीं रह गया है. सोवियत संघ टूट कर 15 छोटे-छोटे देश में बिखर गया था. ऐसे में रूस का दावा है कि नेटो ने उन्हें भरोसा दिलाया था कि वो अपना आगे विस्तार नहीं करेगा. इस भरोसे का कोई लिखित स्वरूप है या नहीं इस पर लंबे समय से विवाद चल रहा है. लेकिन हक़ीकत ये है कि नेटो का विस्तार हाल तक जारी रहा."
नेटो की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लात्विया, एस्टोनिया और लिथुआनिया 2004 में नेटो में शामिल हुए. क्रोएशिया और अल्बानिया नेटो में 2009 में शामिल हुए.
2008 में यूक्रेन और जॉर्जिया के नेटो में शामिल होने की बात थी, लेकिन ऐसा हो ना सका.
इसका जिक्र करते हुए अचल मल्होत्रा कहते हैं, "साल 1991-2000 के बीच रूस का नेतृत्व पुतिन के मुक़ाबले तुलनात्मक रूप से कमज़ोर था. इसलिए नेटो के विस्तार को वो रोक नहीं पाए. पुतिन के आने के बाद रूस थोड़ा मज़बूत हुआ. 2008 में जब यूक्रेन और जॉर्जिया को नेटो में शामिल होने की बात चली तो पुतिन ने इसका सख़्ती से विरोध किया. पहले रूस ने जॉर्जिया में सैन्य हस्तक्षेप किया और अब यूक्रेन पर हमला किया है."
वो आगे कहते हैं, " नेटो उस वक़्त भी जॉर्जिया के बचाव के लिए सामने नहीं आया था, जबकि जॉर्जिया के संबंध सदस्य देशों से काफ़ी अच्छे थे. इस बार भी नेटो अपने सैनिकों को यूक्रेन भेजने का इरादा नहीं रखता. ये बात साफ़ कर दी गई है. "
दरअसल नेटो के सैनिक तभी इस तरह के युद्ध में जाते हैं जब जंग में उसके सदस्य देश शामिल हों. ये भी सच है कि नेटो ने यूक्रेन की सैन्य शक्ति बढ़ाने की दिशा में काफ़ी मदद की है.
जानकार ये भी कह रहे हैं कि अगर नेटो ने रूस और यूक्रेन की जंग में यूक्रेन का साथ दिया, तो मामला ज़्यादा बिगड़ सकता है. हालात तीसरे विश्व युद्ध जैसे पहुँच सकते हैं. नेटो सदस्य देशों की एक बैठक भी आज प्रस्तावित है. नेटो ने अपने पूर्वी छोर पर 100 लड़ाकू विमानों को अलर्ट पर रखा है.
यूरोपीय संघ
संयुक्त राष्ट्र और नेटो के साथ-साथ यूरोपीय देशों का एक और समूह है, यूरोपीय संघ. इस समूह के कुल 27 सदस्य हैं, जिनमें से 21 देश, नेटो में भी शामिल हैं.
अमेरिका और ब्रिटेन यूरोपीय संघ के सदस्य नहीं है. जर्मनी, फ्रांस और इटली इसके सदस्य हैं. रूस यूक्रेन क्राइसिस में इस संघ का ज़िक्र भी काफ़ी बार हो रहा है.
ये सुरक्षा के लिए नहीं बल्कि आर्थिक मदद के लिए बनाया गया मंच है, जो साल 1958 में बना था.
यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोपीय संघ की तरफ़ से रूस पर काफ़ी बड़े प्रतिबंध लगाए गए हैं. इनमें वित्तीय सेक्टर, ऊर्जा, परिवहन और रूस के शासन से जुड़े अभिजात्य वर्ग के वीज़ा पर भी प्रतिबंध लगाने की बात है.
माना जा रहा है कि प्रतिबंधों के कारण रूस की तेल रिफाइनरी के लिए तकनीक और एयरक्राफ़्ट के लिए स्पेयर पार्ट्स की ख़रीद असंभव हो जाएगी और रूस आर्थिक रूप से दुनिया के दूसरे देशों से कट सकता है.
वरिष्ठ पत्रकार और 'द हिंदू अख़बार' की कूटनीतिक मामलों की संपादक सुहासिनी हैदर कहती हैं, "ईयू ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाएं हैं उसका लक्ष्य है कि रूस को आर्थिक, तकनीकी और सैन्य मदद से दुनिया से काट सकें."
लेकिन सुहासिनी का मानना है कि इन प्रतिबंधों से यूक्रेन समस्या का कोई समाधान नहीं हो सकता है. रूस को भले ही इससे यूरोपीय संघ कमज़ोर करने में सफ़ल हो जाए, लेकिन यूक्रेन में जो क्राइसिस चल रहा है, इन प्रतिबंधों के साथ उसे रोका नहीं जा सकता.
वो कहती हैं, "रूस को पहले 2008 में जॉर्जिया में हमने देखा, बाद में 2014 में क्राइमिया में देखा और 2022 में यूक्रेन में जो हो रहा है, उसे भी देख रहे हैं. इसके आधार पर लगता है कि रूस और यूरोपीय देशों में एक अनसुलझा संकट है जो हर कुछ साल के बाद आता रहेगा. दूसरे विश्व युद्ध के बाद यूरोप में अमन आ गया है, ये घटनाएँ उस सोच को चुनौती देती हैं."
इसके साथ सुहासिनी ये भी जोड़ती हैं कि रूस इस हमले के बाद यूरोपीय देशों की एकता में फूट डालने में कामयाब होता दिख रहा है. इस संघ के सदस्य देश एक दूसरे पर रूस के ख़िलाफ़ ज़्यादा सख़्ती से पेश नहीं आने की बात लगातार कह रहे हैं.
यूरोपीय संघ को अगर आगे अपनी प्रासंगिकता बनाए रखनी है तो रूस से बैर मोल लेकर ऐसा किया जा सकता है ये सोचने वाली बात होगी. इस बीच फ़्रांस ने यूक्रेन को 33.6 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद और सैन्य उपकरण मुहैया कराने का भरोसा भी जताया है. लेकिन रूस की सैन्य क्षमता के आगे ये प्रतिबंध और मदद कितने काम के हैं. ये तो वक़्त ही बताएगा. (bbc.com)
नई दिल्ली, 25 फरवरी| ब्लैक सी (काला सागर) में एक द्वीप की हवाई और समुद्री बमबारी से रक्षा करते हुए यूक्रेन के सैनिकों ने रूसी हमलावरों के सामने आत्मसमर्पण करने के बजाय शहीद हो जाने का विकल्प चुना। द गार्जियन ने अपनी एक रिपोर्ट में जानकारी दी कि जैसे ही रूस के सैनिकों ने यूक्रेन के जवानों से आत्मसमर्पण करने के लिए कहा तो यूक्रेनी जवानों ने कथित तौर पर रूसी नौसेना के युद्धपोत पर सवार एक अधिकारी को अपशब्द कहे।
रिपोर्ट में कहा गया है कि स्नेक आइलैंड पर यूक्रेन के 13 सीमा रक्षक तैनात थे, जो लगभग 16-हेक्टेयर (40-एकड़) चट्टानी द्वीप है, जिसका स्वामित्व यूक्रेन के पास है। यह द्वीप क्रीमिया से लगभग 186300 किमी पश्चिम में स्थित है। रूसी सैनिकों ने गुरुवार को द्वीप पर बमबारी की।
यूक्रेन के अधिकारियों ने घोषणा की है कि आत्मसमर्पण से इनकार करने पर सभी 13 सैनिकों को मार गिराया गया।
अपने देश पर आक्रमण के बाद अपने संबोधन में, यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने घोषणा की है कि वह मरणोपरांत सभी सैनिकों को 'हीरो ऑफ यूक्रेन' (यूक्रेन के नायक) पुरस्कार प्रदान करेंगे।
जेलेंस्की ने कहा, "सभी सीमा रक्षक वीरतापूर्वक मारे गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।"
द गार्जियन ने बताया कि एक ऑडियो सामने आया है, जिसमें स्नेक आइलैंड पर यूक्रेनी सीमा रक्षकों और एक रूसी नौसेना के जहाज के बीच एक बातचीत सुनी जा सकती है। रूस ने इस पर कब्जा करने के लिए यूक्रेन के सैनिकों को आत्मसमर्पण करने को कहा था। एक रूसी अधिकारी ने द्वीप पर मौजूद यूक्रेनी सेना को 'अपने हथियार डालने' के लिए कहा था।
रिपोर्ट के अनुसार, रूसी वॉरशिप में मौजूद सैनिक अधिकारियों ने स्नेक आइलैंड में मौजूद यूक्रेनी सैनिकों से हथियार रखने और उन्हें आत्मसमर्पण करने के लिए कहा। रूसी सैनिकों ने कहा कि यह रूस का युद्धपोत है आप अपने हथियार रख दें और आत्मसमर्पण कर दें, ताकि किसी भी तरह का रक्तपात न हो और किसी की जान न जाए। रूसी अधिकारियों ने चेतावनी दी कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो हम बम बरसाएंगे।
हालांकि इसके जवाब में यूक्रेनी सैनिकों ने सरेंडर करने से साफ मना कर दिया और रूसी अधिकारियों को कई अपशब्द भी कहे।
रिकॉडिर्ंग में एक संक्षिप्त चुप्पी के बाद, एक यूक्रेनी अधिकारी ने कथित तौर पर जवाब देते हुए गाली दी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑडियो कई मीडिया आउटलेट्स द्वारा प्रकाशित किया गया है और इसे यूक्रेन के आंतरिक मंत्रालय के सलाहकार एंटोन हेराशचेंको द्वारा सोशल मीडिया पर साझा किया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 फरवरी| यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने गुरुवार रात एक वीडियो कॉन्फ्रेंस कॉल में अपने यूरोपीय समकक्षों के लिए एक अशुभ चेतावनी दी। स्काई न्यूज ने यह जानकारी दी। इजराइल के वाला न्यूज के एक पत्रकार के अनुसार, उन्होंने अन्य नेताओं से कहा, "यह आखिरी बार हो सकता है, जब आप मुझे जीवित देख रहे हों।"
यूक्रेन के राष्ट्रपति के सलाहकार ने पहले चेतावनी दी थी कि अगर रूस यूक्रेन की राजधानी पर कब्जा करता है, तो जेलेंस्की को मारना चाहता है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ऐसा माना जा रहा है कि रूस यूक्रेन में कठपुतली सरकार स्थापित करने की योजना बना रहा है, अगर वह कीव पर सफलतापूर्वक कब्जा कर लेता है, तो।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन में विशिष्ट यूक्रेनी अधिकारियों को पकड़ने या मारने के लिए चेचन विशेष बलों के एक दस्ते को यूक्रेन में तैनात किया गया है।
डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, मॉस्को टेलीग्राम चैनल के सुरक्षा प्रतिष्ठान के लिंक के साथ प्रत्येक सैनिक को कथित तौर पर यूक्रेनी अधिकारियों की तस्वीरों और उन पर विवरण के साथ एक विशेष 'कार्ड का डेक' दिया गया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि सूची रूसी जांच समिति द्वारा 'अपराधों' के संदिग्ध अधिकारियों और सुरक्षा अधिकारियों की है।
वहीं यूक्रेन के राष्ट्रपति ने स्वीकार किया कि वह अपनी राजधानी में रूसी हत्यारों के लिए 'नंबर एक लक्ष्य' हैं, जबकि उनका परिवार पुतिन के हमलावरों के लिए 'नंबर दो लक्ष्य' है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 फरवरी| यूक्रेन के एक बहादुर नागरिक को रूसी सैन्य काफिले को रोकने की कोशिश करते हुए रूसी सैनिकों के सामने खड़े होते हुए देखा गया। माना जाता है कि यह फुटेज, क्रीमिया के करीब देश के दक्षिण में रिकॉर्ड किया गया है।
लेकिन पुतिन के जवान खूनी लड़ाई का सामना करने के लिए तैयार लग रहे हैं, क्योंकि शहर की रक्षा के लिए काम करने वाले यूक्रेनी सैनिकों ने राजधानी के केंद्र में सुनाई देने वाली गोलियों और विस्फोटों के साथ राजमार्गों, पुलों और सड़क के किनारों पर रक्षात्मक पदों की स्थापना शुरू कर दी। डेली मेल ने बताया कि नागरिकों को राइफल और मोलोटोव कॉकटेल से भी लैस किया जा रहा था।
यूक्रेन के साथ 2,800 लोगों को मारने का दावा करने के साथ रूसी सेनाएं देश भर में भारी हताहतों को झेल रही है।
लेकिन इसकी बहुत कम संभावना थी, जैसा कि राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की ने अपने लोगों से कहा कि 'तुम सब हमारे पास हो', उन्होंने देश की रक्षा के लिए एक उत्साहजनक संबोधन दिया था, नागरिकों से युद्ध में शामिल होने के लिए यूरोप में कहीं और से यात्रा करने का आह्वान किया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 फरवरी | उत्तर-अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के नेताओं ने कहा कि यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद वे पूर्वी यूरोप में और सैनिकों को तैनात कर रहे हैं। 30 नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा, "रूसी सरकार के झूठ की बौछार से किसी को भी मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है।"
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, "राष्ट्रपति पुतिन का यूक्रेन पर हमला करने का निर्णय एक भयानक रणनीतिक गलती है, जिसके लिए रूस आर्थिक और राजनीतिक दोनों रूप से, आने वाले वर्षों में एक गंभीर कीमत चुकाएगा।"
नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा कि रूस ने यूरोप में शांति भंग कर दी है। नाटो ने अपने तीव्र प्रतिक्रिया बल के तत्वों को पूर्वी यूरोप की ओर भूमि, समुद्र और हवा में तैनात किया है।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने कहा कि सुरक्षा ब्लॉक ने पहले से ही हमारी रक्षा को मजबूत कर दिया है और अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय देशों ने पहले ही इस क्षेत्र में हजारों सैनिकों को तैनात कर दिया है।
स्टोल्टेनबर्ग ने कहा कि 100 से अधिक लड़ाकू जेट अब यूरोप में 30 रक्षा स्थानों में, 120 से अधिक जहाजों और तीन स्ट्राइक वाहक समूहों के साथ काम कर रहे हैं।
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने जोर देकर कहा कि सेना नाटो क्षेत्र के हर इंच की रक्षा करेगी और आगे कहा कि यह यूक्रेन, साथ ही जॉर्जिया, मोल्दोवा और बोस्निया सहित रूस द्वारा खतरे वाले क्षेत्र के अन्य देशों को समर्थन देना जारी रखेगा।
नाटो ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह यूक्रेन में सेना नहीं भेजेगा, जो गठबंधन का सदस्य नहीं है।
बीबीसी ने बताया कि उन्होंने रूस से अपने हमले को तुरंत रोकने, यूक्रेन से अपनी सेना वापस लेने और शांतिपूर्ण बातचीत में फिर से प्रवेश करने का आह्वान किया।
नाटो महासचिव ने कहा कि आक्रमण से भारी पीड़ा हुई है और उनका तर्क है कि पश्चिमी नेताओं को और अधिक करने के लिए तैयार रहना चाहिए। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 फरवरी| रूसी संचार प्रहरी रोसकोम्नाडजोर ने शुक्रवार को कहा कि वह फेसबुक पर सेंसरशिप का आरोप लगाते हुए रूसी मीडिया पर अमेरिकी सोशल मीडिया द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के जवाब में मेटा प्लेटफॉर्म फेसबुक तक पहुंच को आंशिक रूप से प्रतिबंधित कर रहा है। "25 फरवरी को, अभियोजक जनरल के कार्यालय ने विदेश मंत्रालय के साथ समझौते में फैसला किया कि सोशल नेटवर्क फेसबुक मौलिक मानवाधिकारों और स्वतंत्रता के साथ-साथ रूसी नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता के उल्लंघन में शामिल है।" द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, रोसकोम्नाडजोर वेबसाइट ने कहा कि शुक्रवार से फेसबुक पर 'आंशिक रूप से प्रतिबंधित' लग जाएंगे।
यह अभी स्पष्ट नहीं है कि प्रतिबंधों में क्या शामिल होगा।
रूस ने हाल ही में पश्चिमी सोशल मीडिया दिग्गजों पर दबाव बनाया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले साल, देश ने ट्विटर के संचालन को धीमा कर दिया, क्योंकि उस पर अवैध सामग्री को हटाने में विफल रहने का आरोप लगाया गया था।
क्रेमलिन के आलोचकों ने पहले चेतावनी दी थी कि यूक्रेन पर संभावित आक्रमण के रूस के नागरिक समाज के लिए नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, जेल में बंद विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की सहयोगी मारिया पेवचुक ने ट्वीट किया, "किसी भी पैमाने की कोई भी संभावित सैन्य कार्रवाई नवलनी के जीवन को अभी तक सबसे बड़े जोखिम में डालेगी।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 फरवरी| रूस के साथ सैन्य संघर्ष तेज होने पर यूक्रेन के नागरिकों के बीच अपना पैसा निकालने के लिए भारी संख्या जमा हो रही है। आरटी ने यह जानकारी दी। यूक्रेन की राजधानी कीव और अन्य प्रमुख शहरों में ली गई फोटो में केंद्रीय बैंक के बाद एटीएम पर लंबी लाइनें देखी जा सकती हैं।
शुक्रवार को, एनबीयू के प्रमुख ने कहा कि एटीएम में नकदी का प्रवाह सीमित नहीं होगा और गैर-नकद भुगतान भी प्रतिबंधों के अधीन नहीं हैं।
हालांकि, नियामक ने देश के बैंकों को रूसी और बेलारूसी रूबल का उपयोग करके कोई भी विदेशी मुद्रा लेनदेन करने से प्रतिबंधित कर दिया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने रूसी निवासियों के खातों पर परिचालन पर भी प्रतिबंध लगा दिया है और सीमा पार मुद्रा भुगतान पर रोक लगा दी है।
रूस में भी एटीएम के बाहर लोगों की कतारें देखी गई हैं। आरटी ने बताया कि रूसी केंद्रीय बैंक के आंकड़ों से पता चला है कि नकदी के लिए आबादी और व्यवसायों की मांग मार्च 2020 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
गुरुवार को, रूसियों ने अपने खातों से 100 बिलियन रूबल (1 बिलियन डॉलर ) से अधिक की निकासी की। हालांकि, यह राशि कोविड -19 महामारी की शुरूआत में मुद्रा निकासी में वृद्धि के दौरान की तुलना में 1.5 गुना कम है।
रूसी नियामक ने एक आपातकालीन सहायता पैकेज की घोषणा करते हुए कहा है कि यह सभी आवश्यक उपकरणों का उपयोग करके वित्तीय स्थिरता और वित्तीय संस्थानों की व्यावसायिक निरंतरता के रखरखाव को सुनिश्चित करेगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 26 फरवरी | रूस के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने शुक्रवार को कहा कि अगर स्वीडन और फिनलैंड नाटो में शामिल होने का इरादा रखते हैं, तो मॉस्को जवाब देगा। मारिया जखारोवा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और यूक्रेन में चल रहे संघर्ष और रूस के आगे बढ़ने के इरादों पर विचार व्यक्त किये।
उनके भाषण की एक क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल होना शुरू हो गई है जिसमें वह स्वीडन और फिनलैंड के लिए एक धमकी जारी करती दिख रही हैं, वीडियो में यह कहते हुए दिख रही हैं कि इसके 'गंभीर सैन्य-राजनीतिक नतीजे' होंगे।
जखारोवा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, "फिनलैंड और स्वीडन को अन्य देशों की सुरक्षा को नुकसान पहुंचाने वाली अपनी सुरक्षा को आधार नहीं बनाना चाहिए।"
रिपोर्ट में कहा गया है, "स्पष्ट रूप से फिनलैंड और स्वीडन का नाटो में प्रवेश, (जो सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण सैन्य गठबंधन है) के गंभीर सैन्य-राजनीतिक नतीजे होंगे, जो हमारे देश से प्रतिक्रिया की मांग करेंगे।"
यह यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर जेलेंस्की द्वारा पुष्टि किए जाने के बाद आया है कि देश को दोनों देशों से समर्थन मिल रहा है।(आईएएनएस)
काठमांडू, 25 फरवरी | नेपाल और भारत पनबिजली परियोजनों में संयुक्त निवेश करने के लिये रजामंद हुये हैं। बुधवार को शुरू हुई दो दिवसीय नेपाल-भारत संयुक्त ऊर्जा बैठक में दोनों देश पनबिजली क्षेत्र में संयुक्त निवेश के लिये सहमत हुये। समझौते के तहत इसके लिये एक संयुक्त तकनीकी टीम का गठन किया जायेगा, जो भारत द्वारा दिये गये प्रस्तावों का अध्ययन करेगी।
एक बड़ी पनबिजली परियोजना के निर्माण के लिये तकनीकी टीम में दोनों देशों के तीन-तीन सदस्य होंगे।
बैठक में शामिल हुये एक अधिकारी ने बताया कि यही टीम संयुक्त निवेश पर जरूरी सलाह देगी। यह टीम अपनी रिपोर्ट पेश करेगी, जिसके आधार पर पनबिजली परियोजना और पारेषण लाइन में संयुक्त निवेश किया जायेगा।
दोनों देश और अधिक पारेषण लाइन बनाने , निर्माणाधीन पारेषण लाइन को पूरा करने पर भी सहमत हुये हैं। इसके अलावा बैठक में दोनों देशों के बीच नयी पारेषण लाइन स्थापित करने ,अरुण पनबिजली परियोजना के पूरा करने और ऊर्जा आयात तथा निर्यात का भी प्रस्ताव रखा गया।
बैठक के दौरान नेपाल ने अपने बिजली प्राधिकरण द्वारा पेश किये गये कई प्रस्तावों को अनुमोदित करने का आग्रह किया। ये प्रस्ताव भारत को विद्युत निर्यात करने के संदर्भ में हैं।
ऊर्जा मंत्रालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक नेपाल की विभिन्न पनबिजली परियोजनाओं से भारत को बिजली का निर्यात करने के लिये भारत मंजूरी देगा।
मौजूदा समय में नेपाल को भारत को सिर्फ 39 मेगावाट बिजली निर्यात करने की अनुमति है। नेपाल विद्युत प्राधिकरण ने अतिरिक्त 814 मेगावाट बिजली निर्यात करने की अनुमति मांगी है। नेपाल ने अपनी पनबिजली परियोजनाओं की नयी सूची भारत को सौंपी है, जिनसे वह भारत को बिजली का निर्यात करना चाहता है। इस सूची में नयी परियोजनाओं को भी शामिल किया गया है।
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि ढालकेबर-मुजफ्फरपुर 400 किलोवाट पारेषण लाइन के जरिये 600 मेगावाट बिजली का आयात-निर्यात किया जा सकता है। अब तक इस लाइन से 350 मेगावाट बिजली ही आयात की जाती है।
गत साल सितंबर में नेपाल बिजली प्राधिकरण और पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के बीच समझौता हुआ था कि वे संयुक्त निवेश के जरिये दोनों देशों के बीच गुजरने वाली बटवाल-गोरखपुर पारेषण लाइन के भारतीय हिस्से का निर्माण करेंगे।
बैठक में यह निर्णय लिया गया कि 22 अप्रैल तक एक नयी कंपनी बनायी जायेगी, जो 400 किलोवाट की दूसरी पारेषण लाइन बटवाल-गोरखपुर के बीच बनायेगी। (आईएएनएस)
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 25 फरवरी | अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उम्मीद जताई है कि भारत यूक्रेन मुद्दे पर अमेरिका के साथ तालमेल बिठाएगा।
गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन में यह पूछे जाने पर कि क्या भारत, एक प्रमुख रक्षा भागीदार, रूस और यूक्रेन पर अमेरिका के साथ समन्वय में है। बाइडेन ने कहा, 'हम तालमेल बिठाने जा रहे हैं।'
उन्होंने कहा, "हम आज भारत के साथ परामर्श कर रहे हैं, हमने इसे पूरी तरह से हल नहीं किया है।"
विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने गुरुवार को विदेश मंत्री एस जयशंकर को रूस के खिलाफ मजबूत सामूहिक कार्रवाई के बारे में बात करने के लिए फोन किया।
प्राइस ने कहा कि 'ब्लिंकन ने रूस के आक्रमण की निंदा करने के लिए एक मजबूत सामूहिक प्रतिक्रिया के महत्व पर जोर दिया और यूक्रेन पर रूस के पूर्व नियोजित, अकारण और अनुचित हमले पर चर्चा करते हुए तत्काल वापसी और युद्धविराम का आह्वान किया।
जयशंकर ने बाद में ट्वीट किया, "यूक्रेन में चल रहे घटनाक्रम और इसके प्रभावों पर ब्लिंकन से चर्चा की।"
बाइडेन ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंधों की घोषणा की है, लेकिन यूक्रेन की मदद के लिए सेना भेजने से इनकार किया, हालांकि अमेरिकी सेना पूर्व में नाटो सहयोगियों के पास जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह, जिन्होंने प्रतिबंधों के बारे में संवाददाताओं को जानकारी दी, ने आश्वासन दिया कि अमेरिकी कार्रवाई वैश्विक ऊर्जा क्षेत्र को बाधित नहीं करेगी।
गुरुवार रात ब्रेंट क्रूड ऑयल 101 डॉलर बैरल के ऊपर कारोबार कर रहा था।
सिंह ने कहा कि अगर आक्रमण आगे बढ़ता है तो कोई रूसी वित्तीय संस्थान सुरक्षित नहीं है।
भारत इस पर एक दुविधा का सामना कर रहा है कि वह अपने पुराने मित्र और रक्षा आपूर्तिकर्ता रूस से कैसे निपटे, , जबकि पश्चिम के साथ उसके संबंध बढ़ रहे हैं।
नई दिल्ली की परीक्षा तब होगी जब अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया जाएगा और उसे एक पक्ष लेना होगा।
भारत ने जनवरी में यूक्रेन पर परिषद की बैठक में पश्चिम द्वारा प्रस्तावित कार्यसूची पर एक प्रक्रियात्मक वोट से परहेज किया। (आईएएनएस)
जर्कता, 25 फरवरी | इंडोनेशिया के पश्चिमी प्रांत पश्चिम सुमात्रा में शुक्रवार को आए 6.2 तीव्रता के भूकंप में दो लोगों की मौत हो गई और दर्जनों अन्य घायल हो गए। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिमी सुमात्रा प्रांत के आपदा प्रबंधन और शमन एजेंसी की ऑपरेशन यूनिट के प्रमुख, जिसका नाम केवल जुमैदी है, उन्होंने कहा कि भूकंप से इमारतों और घरों को भी नुकसान पहुंचा है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, कीव, 25 फरवरी | बड़े पैमाने पर साइबर हमलों के साथ यूक्रेन की सरकारी वेबसाइटों और बैंकों पर हमला करने के बाद, रूसी हैकर अब एक पूर्ण युद्ध के बीच स्थानीय लोगों को चुप कराने के लिए यूक्रेन में इंटरनेट के बुनियादी ढांचे पर हमला कर रहे हैं। शुक्रवार को रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साइबर आक्रमण ने देश के कुछ हिस्सों में पहले ही इंटरनेट कनेक्टिविटी को काट दिया था।
गुरुवार देर रात अमेरिका में जॉर्जिया टेक में इंटरनेट आउटेज डिटेक्शन एंड एनालिसिस (आईओडीए) प्रोजेक्ट ने ट्वीट किया, यूक्रेन के आईएसपी ट्रायोलन का आंशिक आउटेज लगभग 2.50 बजे शुरू हुआ।
आउटेज ने ट्रायोलन इंटरनेट सेवा प्रदाता को भी प्रभावित किया, जो सहित यूक्रेन के कई शहरों और अन्य क्षेत्रों में सेवाएं प्रदान करता है।
वैश्विक इंटरनेट मॉनिटर प्लेटफॉर्म नेटब्लॉक्स ने ट्वीट किया, "भारी विस्फोटों के सुनने के तुरंत बाद यूक्रेन-नियंत्रित शहर में महत्वपूर्ण इंटरनेट व्यवधान दर्ज किया गया, उपयोगकर्ता प्रदाता ट्रायोलन पर फिक्स्ड लाइन सेवा के नुकसान की रिपोर्ट कर रहे हैं, जबकि सेलफोन अभी भी काम कर रहा है।"
एक अपडेट में, नेटब्लॉक्स ने कहा कि राजनीतिक बंदरगाह शहर मारियुपोल, डोनेट्स्क में एक महत्वपूर्ण इंटरनेट व्यवधान दर्ज किया गया है। यह घटना नागरिकों के हताहत होने और कई लोगों के लिए दूरसंचार सेवाओं के नुकसान की रिपोर्ट के बीच हुई है।
कई नागरिक समाज समूह देश के इंटरनेट बुनियादी ढांचे पर सीधे हमलों की संभावना के बारे में चिंतित है।
इससे पहले, जैसे ही रूस ने यूक्रेन के खिलाफ सैन्य अभियान शुरू किया था, यूक्रेन की प्रमुख सरकारी वेबसाइटें बंद हो गईं थी।
यूक्रेन के मंत्रिमंडल और विदेश मंत्रालय, बुनियादी ढांचा, शिक्षा और अन्य मंत्रालयों की वेबसाइटें डाउन हो गईं थी।
अमेरिकी अधिकारियों ने चेतावनी दी थी कि रूस यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई के साथ साइबर ऑपरेशन का इस्तेमाल करेगा।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को यूक्रेन पर पूर्ण पैमाने पर आक्रमण शुरू किया था। रूसी हवाई हमलों ने देश भर में सुविधाओं को प्रभावित किया। (आईएएनएस)