अंतरराष्ट्रीय
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 29 मार्च। अमेरिका में बिहारी प्रवासी समुदाय के लोगों ने सिलिकॉन वैली में ‘बिहार दिवस’ मनाया और इस दौरान समारोह में शामिल लोगों ने राज्य के विकास में मदद करने का संकल्प किया।
‘बिहार दिवस’ हर साल 22 मार्च को मनाया जाता है। वर्ष 1912 में इसी दिन बंगाल प्रांत से अलग होकर बिहार एक स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था। ‘बिहार फाउंडेशन ऑफ यूएसए’ द्वारा आयोजित इस समारोह में सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दी गईं। इस मौके पर बिहार के उपमुख्यमंत्री ने एक वीडियो संदेश से लोगों को संबोधित भी किया।
संगठन के अध्यक्ष राजीव शर्मा ने कहा कि कैलिफोर्निया स्थित ‘बिहार फाउंडेशन’ पिछले कई वर्षों से स्वास्थ्य, शिक्षा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में विभिन्न विकासात्मक तथा गैर-लाभकारी गतिविधियों को अंजाम दे रहा है।
‘बिहार फाउंडेशन’ के सचिव दीपक शर्मा ने ‘एडॉप्ट ए विलेज’ कार्यक्रम सहित संस्थान की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी। साथ ही, कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान बिहार की मदद करने के लिए जरूरतमंद लोगों तथा अस्पतालों को ऑक्सीजन सांद्रक, ऑक्सीमीटर और दस्ताने भेजने के प्रयासों को भी रेखांकित किया।
इस कार्यक्रम में, सैन फ्रांसिस्को में भारत के वाणिज्य दूतावास के प्रतिनिधि रमाकांत कुमार, ‘सांता क्लारा काउंटी बोर्ड ऑफ सुपरवाइजर’ की सिंडी शावेज, ‘सांता क्लारा काउंटी बोर्ड ऑफ एजुकेशन’ की ट्रस्टी तारा शिवकृष्णन, सांता क्लारा शहर के उप महापौर एवं परिषद के सदस्य राज चहल और अमेरिकी कांग्रेस के उम्मीदवार रितेश टंडन भी शामिल हुए। (भाषा)
संयुक्त राष्ट्र, 29 मार्च। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने ‘‘यूक्रेन में मानवीय संघर्ष विराम’’ की संभावित व्यवस्थाओं का पता लगाने के लिए एक पहल की है, ताकि अत्यंत आवश्यक सामग्री की आपूर्ति की जा सके और एक महीने से जारी युद्ध को समाप्त करने के वास्ते राजनीतिक वार्ता के लिए एक मार्ग प्रशस्त किया जाए।
गुतारेस ने सोमवार को कहा कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के विश्वव्यापी मानवीय अभियानों के प्रमुख अवर महासचिव मार्टिन ग्रिफिथ्स से रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष विराम की संभावना का पता लगाने को कहा है। उन्होंने कहा कि ग्रिफिथ्स पहले ही इस संबंध में कुछ कदम उठा भी चुके हैं।
गौरतलब है कि 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दो मार्च और 24 मार्च को तत्काल युद्ध समाप्त करने का आह्वान किया था।
गुतारेस ने पत्रकारों से कहा कि उन्हें लगता है कि ‘‘संयुक्त राष्ट्र के लिए यह पहल करने’’ का वक्त है।
महासचिव ने कहा कि 24 फरवरी को यूक्रेन पर रूस के आक्रमण करने के बाद से, ‘‘ हजारों लोगों की बेवजह जान गई, करीब एक करोड़ लोग विस्थापित हुए...मकान, स्कूल, अस्पताल और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे तबाह किए गए और दुनिया भर में खाद्य सामग्री की कीमतें आसमान छू रही हैं।’’ (एपी)
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 29 मार्च। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने हिंद-प्रशांत रणनीति में सहयोग के लिए 1.8 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रस्ताव पेश किया साथ ही रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र में चीन के आक्रामक बर्ताव से मुकाबला करने के लिए 40 करोड़ अमेरिकी डॉलर का एक अन्य प्रस्ताव सोमवार को पेश किया।
अमेरिका, भारत और कई विश्व शक्तियां इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के मद्देनजर एक स्वतंत्र, मुक्त और संपन्न हिंद-प्रशांत सुनिश्चित करने पर जोर दे रही हैं।
बाइडन ने कहा, ‘‘ हिंद-प्रशांत में, अमेरिका अपनी भूमिका को मजबूत कर रहा है और लंबे समय से सहयोगियों तथा भागीदारों के साथ अपने सहयोग का विस्तार कर रहा है, जिसमें नए राजनयिक, रक्षा तथा सुरक्षा, महत्वपूर्ण एवं उभरती हुई प्रौद्योगिकी, आपूर्ति श्रृंखला और जलवायु एवं वैश्विक स्वास्थ्य पहल शामिल हैं। इसके साथ ही, हमारे यूरोपीय और हिंद प्रशांत सहयोगियों के बीच मजबूत संबंधों का समर्थन भी किया जा रहा है।’’
व्हाइट हाउस ने कहा कि राष्ट्रपति ने चीन के साथ रणनीतिक प्रतिस्पर्धा को प्राथमिकता दी है। चीन और रूस की आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए अपने सहयोगियों और भागीदारों के साथ मिलकर काम किया है। साथ ही, अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिकों को स्वदेश बुलाकर 20 साल से जारी युद्ध को समाप्त किया।
ये दोनों प्रस्ताव वर्ष 2023 के लिए अमेरिका के 773 अरब अमेरिकी डॉलर के वार्षिक रक्षा बजट का हिस्सा हैं, जिसे व्हाइट हाउस ने अपने वार्षिक बजटीय प्रस्तावों के हिस्से के रूप में कांग्रेस के समक्ष प्रस्तुत किया। (भाषा)
यूक्रेन का एक प्रतिनिधिमंडल रूस के साथ शांतिवार्ता के लिए तुर्की के इस्तांबुल शहर पहुंच गया है.
प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व यूक्रेन के रक्षा मंत्री ओलेक्सी रेज़निकोव के साथ-साथ राष्ट्रपति कार्यालय के प्रमुख मिखाइल पोडोलियाक कर रहे हैं.
इस प्रतिनिधिमंडल का कहना है कि उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता युद्ध-विराम होगा, हालांकि शांतिवार्ता में इस तरह के किसी प्रस्ताव पर सहमति बनने को लेकर संदेह है.
ये वार्ता, तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन की ओर से आयोजित की जा रही है जो मंगलवार को सुबह 10 बजे स्थानीय समयानुसार शुरु होगी.
इसके अलावा रूस मांग कर रहा है कि यूक्रेन नेटो में शामिल होने का इरादा छोड़ दे. उधर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की ने कहा है कि इस पर वह समझौता करने को तैयार हैं.
इसके अलावा इस शांतिवार्ता में यूक्रेन के अलगाववादियों के कब्ज़े वाले क्षेत्रों को लेकर भी बातचीत संभव है. (bbc.com)
बेलारूस में यूक्रेन-रूस वार्ताओं में हिस्सा लेने के बाद लौटे रूसी अरबपति रोमान अब्रामोविच पर संदिग्ध ज़हर के असर के लक्षण दिखाई दिए हैं.
ये जानकारी उनके एक करीबी सूत्र ने दी.
उन्हें कथित तौर पर आंखों में दर्द और त्वचा के छिलने जैसी दिक्कत पेश आ रही है.
यूक्रेन के दो अन्य शांति वार्ताकारों में भी ऐसे ही लक्षण नज़र आने की ख़बर है.
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कथित ज़हर देने की कोशिश रूस के कट्टरपंथियों की ओर से की गई थी जो नहीं चाहते थे कि ये शांति वार्ता हो.
आरोपों के सामने आने के कुछ ही समय बाद, समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक अमेरिकी अधिकारी के हवाले से लिखा कि ख़ुफ़िया एजेंसियों के अनुसार ये लक्षण किसी ज़हर के कारण नहीं बल्कि "पर्यावरणीय" कारणों से थे.
इसके बाद, यूक्रेन के राष्ट्रपति कार्यालय के एक अधिकारी, आईहोर जोव्कवा ने बीबीसी को बताया कि उन्होंने अब्रामोविच से कोई बात नहीं की, लेकिन यूक्रेनी प्रतिनिधिमंडल के सदस्य "ठीक" हैं, वहीं एक अन्य अधिकारी ने कहा कि ये कहानी "झूठी" है. (bbc.com)
आज एक बार फिर तुर्की में यूक्रेन और रूस के प्रतिनिधिमंडल मुलाक़ात कर रहे हैं. इन वार्ताओं में यूक्रेन अपने क्षेत्र की संप्रभुता को छोड़े बिना युद्धविराम की मांग करता रहा है.
यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने इस्तांबुल में वार्ता के बारे में कहा, "हम लोगों का, भूमि या संप्रभुता का सौदा नहीं कर रहे हैं."
उन्होंने यूक्रेन के सरकारी टीवी चैनल को बताया, "इस बातचीत का हासिल कम से कम मानवीय मुद्दों पर सहमति और ज़्यादा से ज़्यादा युद्धविराम पर रज़ामंदी हो सकती है."
लेकिन यूक्रेन के गृह मंत्रालय के सलाहकार वादिम डेनिसेंको ने कहा कि उन्हें संदेह है कि वार्ता में कोई सफलता मिलेगी.
अमेरिकी विदेश विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने यूक्रेन-रूस के बीच बेहतरी की उम्मीदों पर संदेह जताते हुए कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन युद्ध को खत्म करने के लिए समझौता करने को तैयार नहीं हैं.
इस बीच क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेसकोव ने कहा कि अब तक की बातचीत में कुछ महत्वपूर्ण हासिल नहीं हुआ है, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि वार्ताएं जारी रहे. (bbc.com)
कीव: रूस और यूक्रेन के बीच जंग छिड़े एक महीने से ज्यादा समय हो चुका है। अब तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया है। इस बीच ऐसी खबरें सामने आ रही हैं जिसमें कहा जा रहा है कि यूक्रेन में केमिकल अटैक का दौर शुरू हो चुका है। दरअसल, प्रसिद्ध यूरोपीय फुटबॉल क्लब चेल्सी एफसी के मालिक रोमन अब्रामोविच मार्च की शुरुआत में यूक्रेन के शांति वार्ताकारों के साथ राजधानी कीव में बैठक करने आए थे। अब्रामोविच रूसी नागरिक हैं। वॉल स्ट्रीट जनरल की रिपोर्ट के मुताबिक, इस दौरान उन पर और यूक्रेनी वार्ताकारों के ऊपर पॉयजन अटैक (जहर से हमला) हुआ। अब्रामोविच समेत तीन लोगों में अजीब से लक्षण दिखे, जिनमें शरीर में दर्द, लाल आंखें और चेहरों और हाथ की स्किन का छूटना शामिल है।
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इस रिपोर्ट को मानें तो 3 मार्च को रोमन अब्रामोविच समेत तीन शांति वार्ताकारों को बैठक के बाद जहर दिया गया। रोमन अब्रामोविच रूस और यूक्रेन की जंग में पीसमेकर के रूप में काम कर रहे थे। बैठक में अब्रामोविच के अलावा एक अन्य रूसी बिजनेसमैन और यूक्रेन के सांसद उमेरोव मौजूद थे। रात 10 बजे तक चली बातचीत के बाद इन तीनों लोगों ने केमिकल हथियारों के जरिये जहर दिए जाने के लक्षण महसूस किए।
रूसी कट्टरपंथियों पर केमिकल हमले का आरोप
वॉल स्ट्रीट जनरल ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि बैठक में शामिल तीनों लोगों ने मॉस्को में बैठे कट्टरपंथियों पर केमिकल हमला करने का आरोप लगाया है। दरअसल ये कट्टरपंथी नहीं चाहते कि जंग खत्म हो, इसलिए वे शांति वार्ता को पूरी तरह से नाकाम बनाना चाहते हैं। आपको बता दें कि कुछ दिनों पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने रूस को चेतावनी दी थी कि अगर वह परमाणु हमला करता है तो उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
कीव में गोली लगने से घायल भारतीय छात्र अस्पताल से डिस्चार्ज
इस बीच, कीव में गोली लगने से घायल हुए भारतीय छात्र हरजोत सिंह को दिल्ली के अस्पताल से आज छुट्टी मिल गई है, हालांकि अभी उन्हें पूरी तरह से ठीक होने में करीब 1 साल का समय लग सकता है। हरजोत की मानें तो वह अब बिल्कुल ठीक होने के बाद ही पढ़ाई शुरू करेंगे। दिल्ली के अस्पताल से आज शाम उन्हें डिस्चार्ज कर दिया है। यूक्रेन से वापस आने के बाद उनका इलाज जारी चल रहा था। हरजोत सिंह दिल्ली के छतरपुर निवासी है, वहीं युक्रेन से जब निकलने की कोशिश कर रहे थे तब उनपर गोलियां चलाई गई और वह घायल हो गए। इसके बाद 4 दिन बेहोश रहने के बाद उन्होंने अपने परिजनों से संपर्क किया। हरजोत के एक गोली उनके सीने में और दूसरी गोली कमर में और दो गोली उनके पैर में लगी थी।
आज तुर्की में यूक्रेन और रूस के बीच होगी बातचीत
दूसरी ओर, तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन ने कहा है कि वह मंगलवार को होने वाली बातचीत से पहले यूक्रेन और रूस के प्रतिनिधिमंडलों से मुलाकात करेंगे। एर्दोआन ने सोमवार को कैबिनेट की बैठक के बाद टेलीविजन पर अपने संबोधन में कहा कि वह यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से फोन पर अलग-अलग बात कर रहे हैं और दोनों नेताओं के साथ बातचीत सही दिशा में आगे बढ़ रही है। उन्होंने इस संबंध में विस्तृत जानकारी नहीं दी। रूस और यूक्रेन के वार्ताकार मंगलवार को इस्तांबुल में शुरू हो रही दो दिवसीय आमने-सामने की बातचीत में हिस्सा लेंगे। (navbharattimes.indiatimes.com)
पेशावर, 28 मार्च। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सोमवार को एक यात्री वैन गहरी खाई में गिर गई जिससे उसमें सवार महिलाओं और बच्चों समेत कम से कम सात लोगों की मौत हो गई तथा 10 अन्य घायल हो गए।
अधिकारियों ने बताया कि वाहन मरदान जिले से अपर पीर जिले के कालकोट जा रहा था जब एक मोड़ पर चालक वैन को संभाल नहीं पाया। घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती किया गया है।
खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री महमूद खान ने मृतकों के प्रति शोक व्यक्त किया और घायलों को इलाज की सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया। (भाषा)
(हरेंद्र मिश्रा)
यरूशलम, 28 मार्च। इजराइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट सोमवार को कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए। उनके मीडिया सलाहकार ने यह जानकारी दी।
बेनेट (50) तीन अप्रैल से पांच अप्रैल तक भारत के दौरे पर आने वाले थे। अभी यह पता नहीं चल पाया है कि क्या उनकी यात्रा रद्द की जाएगी।
बेनेट के कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘‘प्रधानमंत्री स्वस्थ महसूस कर रहे हैं और वह घर से काम जारी रखेंगे।’’
बयान में कहा गया, ‘‘बेनेट आज सुबह रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज, आंतरिक सुरक्षा मंत्री ओमर बारलेव, इजराइल रक्षा बलों के चीफ ऑफ स्टाफ अवीव कोहावी, शिन बेट प्रमुख रोनेन बार, पुलिस प्रमुख कोबी शबताई और अन्य अधिकारियों के साथ मिलकर कल रात हुए आतंकवादी हमले संबंधी घटनाओं की समीक्षा करेंगे।’’
हादेरा में रविवार को एक आतंकवादी हमले में दो इजराइली पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी और कुछ अन्य लोग घायल हुए थे। बेनेट ने हादेरा में एक बैठक में भाग लिया था, लेकिन आधिकारिक रूप से जारी तस्वीर में वह मास्क पहने दिखाई दिए थे। (भाषा)
बीबीसी ने कहा है कि पश्तो, फारसी और उज्बेक में बुलेटिन हटा दिए गए हैं. वॉयस ऑफ अमेरिका को भी तालिबान प्रसारण रोकने का आदेश दिया है.
ब्रिटेन के राष्ट्रीय प्रसारक के मुताबिक बीबीसी समाचार बुलेटिनों को ऑफ एयर करने का आदेश अफगानिस्तान की तालिबान सरकार ने दिया है. बीबीसी ने रविवार को यह घोषणा की और कहा."अफगानिस्तान के लोगों के लिए अनिश्चितता और अशांति के समय में यह एक चिंताजनक स्थिति है."
बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में भाषाओं के प्रमुख तारिक कफाला ने कहा कि 60 लाख से अधिक अफगान बीबीसी की "स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता" की सेवाएं लेते हैं और कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि उन्हें पहुंच से वंचित न किया जाए.
बीबीसी की पत्रकार यालदा हकीम ने कफाला का बयान ट्वीट किया है, जिसमें लिखा है, "हम तालिबान से अपने फैसले को वापस लेने की अपील करते हैं और अपने टीवी पार्टनरों के लिए बीबीसी के समाचार बुलेटिनों को तत्काल प्रसारण बहाल करने की मांग करते हैं."
वॉयस ऑफ अमेरिका को भी किया बंद
जर्मन समाचार एजेंसी डीपीए ने अफगान मीडिया कंपनी मोबी ग्रुप का हवाला देते हुए कहा कि तालिबान की खुफिया एजेंसी के आदेश के बाद उसने वॉयस ऑफ अमेरिका (वीओए) का प्रसारण भी बंद कर दिया. डीपीए ने कहा कि सूचना एवं संस्कृति मंत्रालय के प्रवक्ता अब्दुल हक हम्माद ने इसकी पुष्टि की है.
अगस्त 2021 में तालिबान के कब्जे में आने के बाद कई पत्रकार देश छोड़कर भाग गए हैं. तालिबान के अंतरराष्ट्रीय प्रसारकों को ऑपरेशन से रोकने का कदम उसके द्वारा लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों को फिर से खोलने के फैसले से पीछे हटने के कुछ दिनों बाद आया है. तालिबान ने जब अफगानिस्तान पर कब्जा किया तो पूरे देश में स्कूल बंद कर दिए गए.
पिछले हफ्ते ही भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के परिजन ने तालिबान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय आपराधिक अदालत (आईसीसी) में शिकायत दर्ज कराई है. पुलित्जर पुरस्कार विजेता दानिश की हत्या 16 जुलाई 2021 को हुई थी. हत्या का आरोप तालिबान पर लगा था. परिवार के वकील ने कहा कि दानिश की हत्या के लिए जिम्मेदार तालिबान के उच्च स्तरीय कमांडरों पर कानूनी कार्रवाई के मकसद से शिकायत दर्ज कराई गई है.
एए/सीके (एएफपी, डीपीए)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने अपनी सरकार पर अविश्वास मत आने से पहले राजधानी इस्लामाबाद में अहम रैली को संबोधित किया है.
इस्लामाबाद के परेड ग्राउंड में अपने समर्थकों की भारी भीड़ को संबोधित करते हुए इमरान ख़ान ने ये भी कहा है कि उनके ख़िलाफ़ बाहर से साज़िश की जा रही है और वो किसी की ग़ुलामी स्वीकार नहीं करेंगे.
इमरान ख़ान ने कहा, "हमारे देश को हमारे पुराने नेताओं की करतूतों की वजह से धमकियां मिलती रही हैं. हमारे देश में अपने लोगों की मदद से लोगों तब्दील किया जाता रहा."
इमरान ख़ान ने कहा, "ज़ु्ल्फ़ीकार अली भुट्टो ने जब देश की विदेश नीति को आज़ाद करने की कोशिश की तो फ़ज़लुर्रहमान और नवाज़ शरीफ़ की पार्टियों ने अभियान चलाया जिसकी वजह से उन्हें फ़ांसी दे दी गई. आज उसी भुट्टो के दामाद और उनके नवासे दोनों कुर्सी के लालच में अपने नाना की क़ुर्बानी को भुलाकर उसके क़ातिलों के साथ बैठे हुए हैं."
इमरान ने कहा, "मेरे ख़िलाफ़ साज़िश बाहर से की जा रही है, बाहर से हमारी विदेश नीति को प्रभावित करने की कोशिश की जा रही है. ये जो आज क़ातिल और मक़तूल इकट्ठा हो गए हैं, इन्हें इकट्ठा करने वालों का भी हमें पता है."
उन्होंने कहा, "मेरे ख़िलाफ़ साज़िश बाहर से हो रही है, मुझे हटाने के लिए बाहर का पैसा इस्तेमाल किया जा रहा है."
पाकिस्तान, क़तर के बाद चीन और रूस के नेताओं का काबुल दौरा, अफ़ग़ानिस्तान में आख़िर हो क्या रहा है?
पाकिस्तान में अविश्वास प्रस्ताव: इमरान ख़ान के लिए आने वाले दिन कितने मुश्किल?
इमरान ख़ान ने और क्या कहा
इमरान ख़ान ने अपने भाषण की शुरुआत में रैली में आने वाले लोगों और अपनी पार्टी के सांसदों का शुक्रिया अदा किया. उन्होंने कहा, "मैं जानता हूं कि तुम्हें पैसे देने और ख़रीदने की कोशिश हुई लेकिन आपने मुझे ख़ुश किया और मुझे आप पर गर्व है."
इमरान ने अपनी इस रैली का नाम अम्र बिन मारूफ़ रखा है जिसका मतलब होता है अच्छाई के साथ आओ.
इमरान ख़ान ने कहा, "मैं अपने दिल की बात रखना चाहता हूं और मैं चाहता हूं कि आप ख़ामोशी से मुझे सुने. मैंने आपको अच्छाई का साथ देने के लिए बुलाया है. हमारे पाकिस्तान की बुनियात इस्लामी कल्याणकारी राज्य की विचारधारा पर पड़ी थी. हमें अपने देश को रियासत-ए-मदीना के आधार पर बनाना है."
इमरान ख़ान ने कहा, "मुझसे लोग पूछते हैं कि आप दीन को सियासत के लिए क्यों इस्तेमाल करते हैं, तो मैं अपने दिल की बात कहूंगा कि आज से पच्चीस साल पहले जब मैंने अपनी पार्टी बनाई थी तो मैं सिर्फ़ इसलिए सियासत में आया तो मेरा एक मक़सद था कि मेरा मुल्क जिस नज़रिए के तहत बना था. जब तक हम अपने नज़रिए पर नहीं खड़े होंगे, हम एक राष्ट्र नहीं बन पाएंगे."
इमरान ख़ान ने कहा, "ब्रिटेन में फ्री मेडिकल इलाज मिलता है, फ्री शिक्षा मिलती है, बेरोज़गारों को फ़ायदे मिलते हैं और लोगों को फ्री क़ानूनी सलाह भी दी जाती है. हमारे पैगंबर ने रियासत-ए-मदीना में ऐसा ही निज़ाम बनाया था जहां राज्य लोगों का खयाल रखता था."
'पाकिस्तान की बदक़िस्मती'
इमरान ख़ान ने कहा, "ये सिर्फ़ पाकिस्तान की बदक़िस्मती नहीं है, बल्कि दुनिया के सभी विकासशील देशों की बदक़िस्मती है, कोई ग़रीब देश इसलिए ग़रीब नहीं होता कि उसके पास संसाधन नहीं है, बल्कि वो इसलिए ग़रीब होता है क्योंकि उसके ताक़तवर डाकुओं को क़ानून पकड़ नहीं पाता है. जो बड़े डाकू ग़रीब देशों से पैसा चुराते हैं वो विदेशों में महल बना लेते हैं. छोटा चोर देश को तबाह नहीं करता है बल्कि डाकू देश को तबाह करते हैं जिस तरह से ये तीन चूहे जो इकट्ठा हुए हैं, ये तीस साल से मुल्क को लूट रहे हैं. ये तीन चूहे तीस साल से देश का ख़ून चूस रहे हैं. इनकी विदेशी बैंकों में खाते हैं, इनका पैसा डॉलर में हैं."
नवाज़ शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ शरीफ़ पर निशाना साधते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "अगर मरियम बीबी जिसने ज़िंदगी में एक घंटे का काम नहीं किया, जिसको अभी चौदह साल में उर्दू ही बोलनी नहीं आई, वो नेता बनना चाहती है."
वहीं बिलावल भुट्टो पर निशाना साधते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "बिलावल कहते हैं मैं लीडर बनना चाहता हूं, अरे आसिफ़ ज़रदारी उसे नेता बनने से पहले थोड़ा बड़ा होने देता था. वो हर दिन धमकी देता है कि नैब ने मुझे बुलाया तो मैं यो करूंगा, पूछो क्या करोगो तो कहता है मैं रो पड़ूंगा."
इमरान ख़ान ने कहा, "ये चूहे ये सारा ड्रामा इसलिए कर रहे हैं कि परवेज़ मुशर्रफ़ की तरह इमरान ख़ान भी डर जाए और इन्हें एनआरओ दे दे. ये चाहते हैं कि इनकी चोरी माफ़ हो जानी चाहिए. जनरल मुशर्रफ़ ने इनके दबाव में और अपनी सरकार बचाने के लिए इन चोरों को एनआरओ (राष्ट्रीय सुलह अध्यादेश) दिया जिसका बोझ हम आज तक उठा रहे हैं. हम इनके लिए हुए क़र्ज़ों की किश्ते अदा कर रहे हैं."
इमरान ख़ान ने कहा, "सरकार जाती है जाए, जान जाती है जाय, मैं कभी इनको माफ़ नहीं करूंगा."
अपने भाषण के दौरान इमरान ख़ान ने अपनी सरकार की साढ़े तीन साल की उपलब्धियों का भी ज़िक्र किया. उन्होंने कहा कि इस दौरान महामारी आई लेकिन उन्होंने देश को कमज़ोर नहीं होने दिया.
मीडिया रिपोर्टों में दावा किया जा रहा था कि इमरान ख़ान अपने भाषण के दौरान इस्तीफ़ा भी दे सकते हैं. लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा.
अपना भाषण ख़त्म करते हुए इमरान ख़ान ने कहा, "आप सबको मुझसे एक वादा करना है, कि आप, मेरी क़ौम कभी भी इज़ाज़त नहीं देंगे, किसी पाकिस्तान हुक्मरान को कि वो अपनी क़ौम को किसी के आगे झुकने दे. कभी आपको किसी हुक्मरान को किसी के आगे झुकने की इजाज़त नहीं देनी है. जैसा पाकिस्तान ने अमेरिका की जंग लड़कर किया, अस्सी हज़ार पाकिस्तानियों की क़ुर्बानी दिलवाई, हमारे क़बीलाई लोगों को ज़ुल्म का सामना करना पड़ा, पैंतीस लाख लोगों को घर छोड़ना पड़ा."
इमरान ख़ान की रैली के जवाब में विपक्षी दलों का गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट सोमवार को राजधानी में बड़ी रैली करने जा रहा है. माना जा रहा है कि दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी ताक़त दिखा रहे हैं.
इसी बीच पाकिस्तान के गृह मंत्री शेख राशिद ने कहा है कि अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली में 2 और 4 अप्रैल के बीच हो सकता है. (bbc.com)
रूस ने अज़रबैजान पर नागार्नो-काराबाख़ में रूस के शांतिबलों के नियंत्रण वाले क्षेत्र में दख़ल देने के आरोप लगाए हैं.
साल 2020 में आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच हुए युद्ध के बाद रूस ने ही शांति-समझौता कराया था और अपने शांति बल तैनात किए थे.
ये पहली बार है जब रूस ने समझौते के उल्लंघन का आरोप लगाया है. रूस के रक्षा मंत्रालय ने अज़रबैजान पर तुर्की निर्मित ड्रोन के जॉरिए काराबाख़ में बलों पर हमला करने के आरोप भी लगाए हैं.
रूस ने क्षेत्र में बढ़ रहे तनाव को लेकर चिंता भी ज़ाहिर की है. वहीं अज़रबैजान के रक्षा मंत्रालय का कहना है कि वो रूस की तरफ़ से जारी इकतरफ़ा बयान पर अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं क्योंकि इसमें पूरा सच नहीं बताया गया है.
अज़रबैज़ान ने दावा किया है कि उसकी तरफ़ से संघर्ष विराम की किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं हुआ है. समाचार एजेंसी एएफ़पी के मुताबिक रूस और अज़रबैजान के रक्षा मंत्रियों ने इस क्षेत्र की स्थिति पर चर्चा की है और अज़रबैजान का कहना है कि उसने अपने सैन्य बलों की ज़मीनी स्थिति के बारे में जानकारी दी है.
अज़रबैजान ने आर्मीनिया पर काराबाख से सैनिक हटाने में नाकाम रहने और उकसावे की कार्रवाइयां करने के आरोप भी लगाए हैं.
अज़रबैजान ने कहा है कि वह रूस से मांग करता है कि अज़रबैजान के अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त क्षेत्र में मौजूद बाकी आर्मीनियाई बलों को भी वहां से हटाए. इस क्षेत्र में आर्मीनिया और अज़रबैजान की सेनाओं के बीच टकराव होता रहा है.
लेकिन शनिवार का घटनाक्रम पहली बार है जब रूस ने किसी पक्ष पर 2020 में हुए संघर्ष विराम का उल्लंघन करने के आरोप लगाए हैं. रूस ने ये भी कहा हि कि उसने अज़रबैजान से इस क्षेत्र से अपनै सैनिकों को पीछे हटाने के लिए कहा है. (bbc.com)
कनाडा का कहना है कि वो वैश्विक ऊर्जा संकट के समाधान के लिए अधिक तेल, गैस और यूरेनियम देने के लिए तैयार है.
यूक्रेन पर आक्रमण की वजह से रूस से आने वाले तेल और गैस की आपूर्ति बाधित हुई है जिसकी वजह से दुनिया भर में ईंधन के दाम बढ़ रहे हैं.
कनाडा के ऊर्जा मंत्री का कहना है कि कई देश रूस के तेल और गैस का विकल्प देने के लिए मदद करने के लिए तैयार हैं. कनाडा दुनिया का चौथा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. कनाडा ने कहा है कि वो अतिरिक्त दो लाख बैरल तेल देने के लिए प्रतिबद्ध है.
प्राकृतिक संसाधन मंत्री जोनाथन विल्किंसन ने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि कनाडा एक लाख बैरल अतिरिक्त प्राकृतिक गैस निर्यात करने के लिए भी तैयार है.
विल्किंसन ने कहा है कि हम उम्मीद करते हैं कि सालके अंत तक हम अपनी क्षमता में तीन लाख बैरल तक बढ़ा लेंगे. हालांकि रूस पर प्रतिबंधों की वजह से अगले महीने से बाज़ार में तीस लाख बैरल तेल और गैस की कमी आ जाएगी.
कनाडा तेल के निर्यात की क्षमता सीमित है क्योंकि उसकी पाइपलाइनें अभी अपनी पूरी क्षमता पर काम कर रही हैं. हालांकि विल्किंसन का कहना है कि अमेरिका के ज़रिए तेल भेजने का एक विकल्प खुला हुआ है.
वहीं, कनाडा की सबसे बड़ी पाइपलाइन कंपनी एनब्रिज ने बीबीसी से कहा है कि वो उत्तरी अमेरिका और यूरोप में ऊर्जा आपूर्ति बढ़ाने के लिए हर संभव कदम उठाने के लिए तैयार है. यूक्रेन में युद्ध की वजह से कई देशों ने रूस की गैस और तेल पर प्रतिबंध लगा दिए हैं. इसकी वजह से अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल के दाम भी बढ़ रहे हैं. (bbc.com)
लड़कियों के लिए स्कूल खोले जाने को लेकर अफ़ग़ानिस्तान में विरोध प्रदर्शन देखने को मिला है.
काबुल में हुए इस विरोध प्रदर्शन में ज़्यादातर महिलाओं और बच्चियों ने हिस्सा लिया. वो अपने हाथ में तख़्तियां थामे हुए थीं, जिनपर स्कूल खोलने की मांग और ''शिक्षा हमारा अधिकार है'' जैसे नारे लिखे हुए थे.
प्रदर्शनकारियों के इस समूह ने शिक्षा मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन किया और ''शिक्षा हमारा अधिकार, लड़कियों के लिए दरवाज़े खोलो'' जैसे नारे लगाए.
ये प्रदर्शन तालिबान के सशस्त्र बलों के सामने चल रहा था लेकिन उन्होंने कोई हस्तक्षेप नहीं किया. तालिबान की तरफ़ से पहले प्रदर्शनों को रोक दिया जाता था और लोगों को हिरासत में ले लिया जाता था लेकिन इस बार प्रदर्शन को चालू रहने दिया गया.
प्रदर्शन में मौजूद एक महिला शिक्षक ने बीबीसी से कहा, ''जब आज़ादी के लिए और जो बच्चियां स्कूल जाना चाहती हैं उनके लिए खड़े होने की बात हो तो मैं मरने के लिए तैयार हूं.''
उन्होंने कहा, ''हम अपनी बच्चियों के शिक्षा के हक़ के लिए यहां हैं, हक़ के बिना तो हम पहले ही मर चुके हैं.''
बीते साल अगस्त में जब तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़ा किया था तो लड़कों और लड़कियों के प्राइमरी स्कूलों को खुला रखा गया था लेकिन सेकेंडरी स्कूल की बच्चियों को क्लासरूम में जाने की अनुमति नहीं दी गई थी.
हाल ही में तालिबान ने सेकेंडरी स्कूल की लड़कियों के लिए भी स्कूल खोलने का एलान किया था लेकिन तालिबान के केंद्रीय नेतृत्व ने इस फ़ैसले को अचानक से पलट दिया.
दरअसल, वहां के शिक्षा मंत्रालय ने एलान किया था कि लड़कियों के स्कूल समेत देश के सभी स्कूल बुधवार को खोले जाएंगे. लेकिन अब कहा गया है, "लड़कियों के सभी स्कूल और वे स्कूल जिनमें लड़कियां पढ़ती हैं, अगले आदेश तक बंद रहेंगे."
नोटिस में कहा गया है कि लड़कियों के लिए यूनिफ़ॉर्म तय करने के बाद ही स्कूल खोले जाएंगे औय ये यूनिफ़ॉर्म, "शरीयत क़ानून और अफ़गानी परंपरा" के मुताबिक़ होगी. लेकिन यूनिफ़ॉर्म का हवाला देकर स्कूल न खोलने के फ़ैसले को लेकर कई परिवार नाराज हैं.
अमेरिका और ब्रिटेन समेत 10 देशों के अधिकारियों ने एक साझा बयान में तालिबान के स्कूल नहीं खोलने के फ़ैसले को परेशान करने वाला कदम बताया है. (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने पश्चिमी देशों की सरकारों से एक बार फिर अपील की है कि वो यूक्रेन की मदद के लिए लड़ाकू विमान, टैंक और मिसाइल डिफेन्स सिस्टम दें.
देर रात एक वीडियो संदेश में उन्होंने कहा कि यूरोप की सुरक्षा के लिए जो हथियार बनाए गए हैं वो गोदाम में पड़े धूल खा रहे हैं. ज़ेलेन्स्की ने शिकायत की कि मशीन गनों से वो रूसी लड़ाकू विमान नहीं गिरा सकते.
उन्होंने कहा, "हमारे सहयोगियों के पास हथियार हैं और वो गोदाम में पड़े हैं. ये केवल यूक्रेन की आज़ादी की बात नहीं है, ये पूरे यूरोप की स्वतंत्रता की बात है."
उन्होंने कहा कि यूक्रेन को नेटो का बस एक फ़ीसदी लड़ाकू विमान और एक फ़ीसदी टैंक चाहिए, इससे अधिक हम नहीं मांग रहे. उन्होंने नेटो सदस्यों से पूछा कि क्या वो रूस की धमकियों से डर गए हैं.
ज़ेलेंस्की ने सवाल किया, "यूरो-अटलांटिक इलाक़े में रहने वालों के लिए ज़िम्मेदार कौन है? क्या ये ज़िम्मेदारी रूस की होनी चाहिए, वो भी केवल इसलिए कि वो डरा रहा है?"
ज़ेलेंस्की बार-बार कहते रहे हैं कि अगर यूक्रेन पर रूस का क़ब्ज़ा हो गया तो, उसके बाद रूस आगे यूरोप के क्षेत्र में अपने पैर पसारेगा.
वहीं पोलैंड के दौरे पर गए अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेनी सरकार के मंत्रियों से मुलाक़ात की है. रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यूक्रेनी नेताओं से ये उनकी पहली मुलाक़ात है.
यूक्रेन के विदेश मंत्री दमित्रो कुलेबा ने कहा कि उन्हें दूसरे मुल्कों से हथियारों की मदद मिल रही है.
उन्होंने कहा, "हथियारों के मामले में यूक्रेन को जितनी मदद अमेरिका से मिली है उनकी किसी और देश से नहीं मिली है. ये बेहद अहम है. ये यूक्रेन के लोगों का जज़्बा है और पश्चिमी देशों के, ख़ासकर अमेरिका के दिए हथियारों की ताकत है जो हमारे लिए जंग के मैदान में सफल साबित होगी. हमें अमेरिका से और हथियारों का आश्वासन मिला है." (bbc.com)
ल्वीव, 27 मार्च। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने मॉस्को को गुस्से में चेतावनी दी कि वह यूक्रेनी लोगों के भीतर रूस के लिए गहरी घृणा के बीज बो रहा है, क्योंकि तोपों से किए जा रहे हमलों एवं हवाई बमबारी के कारण शहर मलबे में तब्दील हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि इससे आम नागरिकों की मौत हो रही है और अन्य लोग शरणस्थलों की खोज में हैं तथा जीवित रहने के लिए भोजन एवं पानी की तलाश कर रहे हैं।
जेलेंस्की ने शनिवार देर रात एक वीडियो संदेश में कहा, ‘‘आप हर वह चीज कर रहे हैं जिससे हमारे लोग स्वयं ही रूसी भाषा का त्याग कर देंगे, क्योंकि रूसी भाषा अब केवल आपसे, आपके द्वारा किए विस्फोटों एवं आपके द्वारा की गई हत्याओं और अपराधों से जुड़ी रहेगी।’’
यूक्रेन पर जारी रूस के हमले में मारे गए लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है। रूसी रॉकेट शनिवार को यूक्रेन के पश्चिमी शहर ल्वीव शहर में उस समय गिरे, जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पड़ोसी देश पोलैंड की यात्रा पर थे। रूस ने दावा किया है कि वह देश के पूर्व में हमलों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, लेकिन ल्वीव पर हमले ने यह याद दिलाया कि मॉस्को यूक्रेन में किसी भी जगह हमला कर सकता है। रूसी हमले में एक तेल कंपनी का एक हिस्सा जल गया।
रूस के एक के बाद एक हवाई हमलों ने शहर को हिलाकर रख दिया है, जहां अपने गृहनगरों को छोड़कर आए करीब 200,000 लोगों ने आश्रय ले लिया है।
यूक्रेन पर रूसी हमले शुरू होने के बाद से ल्वीव पर अब तक हमले नहीं हुए थे, लेकिन पिछले सप्ताह मुख्य हवाई अड्डे के पास विमान सुधार केन्द्र पर एक मिसाइल गिरी थी।
वहीं, चेर्निहिव में रुके रह गये बाशिंदे विस्फोटों और तबाही से सहमे हुए हैं। (एपी)
वारसॉ, 26 मार्च। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने शनिवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को हटाने का आह्वान करते हुए कहा, ‘‘यह व्यक्ति सत्ता में नहीं रह सकता।’’
बाइडन ने पोलैंड की राजधानी वारसॉ में अपने भाषण का इस्तेमाल उदार लोकतंत्र और नाटो सैन्य गठबंधन का बचाव करने के लिए किया। उन्होंने यह भी कहा कि यूरोप को रूसी आक्रामकता के खिलाफ लंबे संघर्ष के लिए खुद को तैयार करना चाहिए।
व्हाइट हाउस ने बाइडन के संबोधन को एक प्रमुख संबोधन बताया। अमेरिकी राष्ट्रपति रॉयल कैसल के सामने बोल रहे थे, जो वारसॉ के उल्लेखनीय स्थलों में से एक है और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था।
उन्होंने पोलैंड में जन्मे पोप जॉन पॉल द्वितीय के कहे शब्दों का जिक्र किया और चेतावनी दी कि यूक्रेन पर पुतिन के आक्रमण से ‘दशकों लंबे युद्ध’ का खतरा है। बाइडन ने कहा, ‘‘इस लड़ाई में हमें स्पष्ट नजर रखने की जरूरत है। यह लड़ाई दिनों या महीनों में नहीं जीती जाएगी।’’
लगभग 1,000 लोगों की भीड़ में कुछ यूक्रेनी शरणार्थी भी शामिल थे, जो यूक्रेन पर हमले के बीच वहां से भागकर पोलैंड और अन्य जगहों पर आ गए हैं। (एपी)
यूक्रेन पर हमले के बाद से रूसी ओलिगार्कों के सुपरयॉट खूब चर्चा में हैं. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों से इन यॉट के जब्त होने के कारण ही नहीं बल्कि इसलिए भी क्योंकि ओलिगार्क मौज-मस्ती के लिए दुनिया को खतरे में डाल रहे हैं.
डॉयचे वैले पर स्टुअर्ट ब्राउन की रिपोर्ट-
यूक्रेन पर रूसी हमले के एक महीने से ज़्यादा हो गए हैं. फिलहाल, किसी को नहीं पता कि यह युद्ध कब खत्म होगा. इस बीच रूस और रूसी ओलिगार्कों (धनाढ्य वर्ग) पर प्रतिबंधों का सिलसिला जारी है. रूसी ओलिगार्कों पर प्रतिबंधों के मद्देनजर, दुनिया के कुछ सबसे बड़े और आलीशान सुपरयॉट को यूरोपीय संघ के जलीय क्षेत्र से बाहर निकाला जा रहा है. जबकि कई यॉट पहले ही जब्त कर लिये गये हैं . अब तक रूसी ओलिगार्कों की करीब 50 करोड़ यूरो से ज्यादा मूल्य की यॉट जब्त कर ली गई है.
पुतिन के सहयोगी और जाने-माने अरबपति कारोबारी रोमन अब्रामोविच तेल और गैस बेचकर मौजूदा मुकाम पर पहुंचे हैं. प्रतिबंधों के मद्देनजर इन्होंने अपने दो सुपरयॉट को उन जलीय इलाके में पहुंचा दिया है जहां प्रतिबंध नहीं है. इसमें से एक यॉट को तुर्की के बोडरम बंदरगाह पर खड़ा किया गया है. अब्रामोविच का सुपरयॉट दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे महंगा यॉट माना जाता है.
हालांकि चूहे-बिल्ली का यह खेल यूक्रेन पर रूसी हमले के दौरान एक नई कहानी बनकर सामने आया है. लोग इन सुपरयॉट से होने वाले कार्बन उत्सर्जन के बारे में काफी कम जानते हैं. अब इससे जुड़ी सच्चाई सामने आ रही है कि यह किस कदर पर्यावरण के लिए खतरनाक है. कहा यह भी जाता है कि पुतिन खुद एक लग्जरी यॉट के मालिक हैं.
इंडियाना विश्वविद्यालय में एंथ्रोपोलॉजी के प्रोफेसर रिचर्ड विल्क और एंथ्रोपोलॉजी से पीएचडी कर रहे उनके सहयोगी बीट्रिज बैरोस के रिसर्च के अनुसार, लक्जरी मेगा-यॉट एक वर्ष में 7,020 टन CO2 तक जला सकते हैं. विल्क और बैरोस दुनिया के अमीर व्यक्तियों के कारण होने वाले कार्बन के उत्सर्जन का रिकॉर्ड तैयार कर रहे हैं. वे कहते हैं कि ऐसे जहाज जिनमें हेलीकॉप्टर, पनडुब्बियां, स्विमिंग पूल और चालक दल के 100 सदस्य मौजूद होते हैं वे "पर्यावरण के लिहाज से अब तक की सबसे खराब संपत्ति" हैं.
विल्क और बैरोस के विश्लेषण से यह जानकारी सामने आयी है कि दुनिया के शीर्ष 20 अरबपतियों ने सिर्फ 2018 में औसतन 8,000 मीट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन किया. हालांकि, इन अरबपतियों में से कुछ ने काफी कम तो कुछ ने काफी ज्यादा कार्बन का उत्सर्जन किया. इसी दौर में दुनिया भर में नागरिकों का औसत कार्बन फुटप्रिंट 4 टन और अमेरिकी नागरिकों का 15 टन था. इन शीर्ष अरबपतियों ने जितना कार्बन का उत्सर्जन किया उसमें से दो-तिहाई के लिए ये सुपरयॉट जिम्मेदार हैं.
सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाले अरबपति रोमन अब्रामोविच के पास दो सबसे बड़ी यॉट भी है. अब्रामोविच का ‘एक्लिप्स' जो फिलहाल तुर्की में मौजूद है उसे दुनिया का सबसे महंगा मेगायॉट माना जाता है. अनुमान के मुताबिक, तेल और गैस के दिग्गज कारोबारी अब्रामोविच ने सिर्फ 2018 में 33,859 मीट्रिक टन CO2 का उत्सर्जन किया था. रूसी कारोबारी के दो-तिहाई कार्बन फुटप्रिंट के लिए यह यॉट जिम्मेदार है. इस एक्लिप्स यॉट के संचालन में हर साल करीब 6 करोड़ डॉलर खर्च होता है.
रिपोर्ट के लेखकों ने कहा कि बिल गेट्स के पास करीब 124 अरब डॉलर की संपत्ति है जो कि अब्रामोविच से करीब 10 गुना ज्यादा है. अब्रामोविच के पास महज 14 अरब डॉलर की संपत्ति है. इसके बावजूद, गेट्स ने अब्रामोविच से 80 फीसदी कम कार्बन का उत्सर्जन किया. बिल गेट्स के पास अपना सुपरयॉट भी नहीं है. हालांकि, वे कभी-कभी निजी जेट से यात्रा करते हैं.
विल्क और बैरोस इन आंकड़ों को ‘बर्फ के पहाड़ का ऊपरी हिस्सा' बताते हैं, क्योंकि उनमें ‘एम्बेडेड' कार्बन शामिल नहीं हैं. इसका मतलब है कि इन यॉट के बनाने के दौरान कार्बन का जितना उत्सर्जन हुआ वह आंकड़ा इसमें शामिल नहीं है. एम्बेडेड कार्बन का एक अन्य रूप जीवाश्म ईंधन के लिए खर्च किया गया पैसा हो सकता है जिसका इस्तेमाल इन लक्जरी यॉट के लिए किया जाता है.
इटली ने प्रतिबंधों के बाद जिस ‘सेलिंग यॉट ए' को जब्त किया है वह रूसी अरबपति एंड्री इगोरविच मेल्निचेंको का है. मेल्निचेंको कोयला कंपनी एसयूईके के मालिक हैं. इसके अलावा, गोपनीयता कानून और डेटा संरक्षण से जुड़ी नीतियां भी कई अरबपतियों के लिए ढाल का काम करती है.
रिपोर्ट के लेखकों का कहना है, "इन सब के बावजूद, हमें लगता है कि हमारा विश्लेषण एक उदाहरण है और जलवायु परिवर्तन के लिए कौन जिम्मेदार है, इस पर चल रही बहस में योगदान देकर मूलभूत मुद्दों को सामने लाता है.” वास्तव में किसी को भी यह नहीं पता कि 140 मीटर से ज्यादा लंबे ‘शहरजाद' सुपरयॉट का मालिक कौन है. कुछ लोगों का कहना है कि यह रूसी राष्ट्रपति ब्लादीमीर पुतिन का है.
दुनिया में मौजूद सभी मेगायॉट जलवायु के हत्यारे नहीं हैं. द अर्थ 300 दुनिया का सबसे बड़ा सुपरयॉट होगा. इसके बावजूद, इसका उत्सर्जन शून्य रहेगा. साथ ही, इस सुपरयॉट का उद्देश्य धरती की सबसे बड़ी चुनौती जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिए विज्ञान और खोज को एकसाथ लाना है. 300 मीटर लंबे इस यॉट पर 400 लोग रहेंगे और इसे 2025 में लॉन्च किया जाएगा. इसका कार्बन फुटप्रिंट काफी कम होगा और यह परमाणु ऊर्जा से संचालित होगा. (dw.com)
रूस ने यूक्रेन पर 'विशेष सैन्य कार्रवाई' का पहला चरण पूरा होने का एलान किया है. हालांकि यूक्रेनी शहरों पर हमला अब भी जारी है. इस बीच यूक्रेनी सेना ने कई इलाकों में मजबूत वापसी की है.
रूसी सेना के उप प्रमुख ने शुक्रवार शाम को कहा कि उनके सैनिकों ने पहले दौर के प्रमुख लक्ष्यों को हासिल कर लिया है. ऐसा लगता है कि रूसी सेना ने अपना ध्यान जमीनी युद्ध से हटाने के साथ ही अलगाववादी इलाके डोनबास की तरफ मोड़ दिया है. फिलहाल यह तो नहीं कहा जा सकता कि व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन में अपने लक्ष्यों से पीछे हट रहे हैं, लेकिन रूसी सेना की गतिविधियों से संकेत मिल रहे हैं कि वह रूसी शहरों में जमीनी युद्ध लड़ने के पक्ष में नहीं हैं.
राजधानी कीव के पास दो रूसी बख्तरबंद बटालियन अब भी शहर के उत्तर-पश्चिम और पूरब में अटके हुए हैं. रूसी सेना ज्यादा से ज्यादा मिसाइलों और हवाई हमलों का ही सहारा ले रही है. जमीन पर उसे यूक्रेन के कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ रहा है. जमीन पर रूस को ज्यादा कामयाबी नहीं मिल सकी है. तकरीबन चार हफ्ते से ज्यादा की लड़ाई के बाद भी रूस किसी बड़े यूक्रेनी शहर पर नियंत्रण नहीं कर सका है.
रूस की सेना को कई इलाकों में कड़े प्रतिरोध के कारण अपने कदम वापस खींचने पड़े हैं. बीते हफ्तों में अमेरिका और दूसरे देशों ने यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति तेज कर दी है. इस युद्ध में रूसी सेना को भी भारी नुकसान हुआ है. बड़ी संख्या में सैनिकों की मौत के साथ ही उसे टैंक, जहाज, हैलीकॉप्टर और दूसरे सैन्य उपकरणों के लिहाज से भारी क्षति हुई है.
हालांकि यूक्रेनी शहरों पर मिसाइलों और लड़ाकू विमानों से हमला लगातार जारी है. यूक्रेन के डोनबास इलाके में रूस समर्थित अलगाववादी 2014 से ही कुछ इलाकों पर अपना नियंत्रण रखे हुए हैं. रूस अब इसी इलाके पर अपना ध्यान केंद्रित कर युद्ध का नया दौर शुरू कर रहा है.
रूसी सैनिकों ने बेलारूस की सीमा के पास मौजूद स्लावुटिश को अपने कब्जे में ले लिया है. यहां चेर्नोबिल न्यूक्लियर प्लांट के कर्मचारी रहते हैं. कीव के गवर्नर ने शनिवार को यह जानकारी दी है. उन्होंने यह भी बताया कि रूसी सैनिकों ने एक अस्पताल पर कब्जा करने के साथ ही शहर के मेयर का अपहरण कर लिया है.
युद्ध खत्म करने की अपील
यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने शुक्रवार को फिर रूस से युद्ध खत्म करने की अपील की. हालांकि इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि शांति के लिए वह अपना इलाका नहीं छोड़ेंगे.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की शनिवार को कतर के दोहा फोरम में वीडियो लिंक के जरिए शामिल हुए. अपने भाषण में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के ताकतों से उनके देश की मदद के लिए आगे आने को कहा. जेलेंस्की ने मारियोपोल में हुई तबाही की तुलना सीरिया की जंग में अलेप्पो की तबाही से की.
जेलेंस्की ने कहा, "वे हमारे बंदरगाहों को तबाह कर रहे हैं. यूक्रेन से निर्यात रुक गया तो पूरी दुनिया में समस्या होगी." जेलेंस्की ने देशों से ऊर्जा का निर्यात बढ़ाने की भी मांग की. यह खासतौर से बेहद अहम है, क्योंकि कतर दुनिया में प्राकृतिक गैस का बड़ा निर्यातक है. जेलेंस्की ने रूस की आलोचना करते हुए कहा कि रूस परमाणु हथियारों से सबको डरा रहा है.
तुर्की के राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान ने शुक्रवार टेलिफोन पर यूक्रेनी राष्ट्रपति से बात की है. इस दौरान यूक्रेन की हालत और रूस-यूक्रेन के बीच सुलह के लिए हो रही बातचीत पर चर्चा की गई. एर्दोवान ने जेलेंस्की को बताया कि उन्होंने नाटो की हाल की बैठक में यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता के लिए समर्थन जताया है. तुर्की के रूस और यूक्रेन के साथ करीबी संबंध हैं और वह इस युद्ध में किसी का पक्ष ना लेकर, मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहता है.
युद्ध अपराध के सबूत
युद्ध के प्रचण्ड दौर में ही संभावित युद्ध अपराध के सबूतों को जमा करने के लिए तैयारी चल रही है. पुतिन ने यूक्रेन पर जब पहला बम गिराया था, तभी अमेरिका ने कह दिया था कि रूसी सैनिक युद्ध के अंतरराष्ट्रीय कानूनों को तोड़ रहे हैं, जो दूसरे विश्वयुद्ध के बाद लिखे गए थे. हालांकि यह साफ नहीं है कि इनके लिए किसे जिम्मेदारा ठहराया जाएगा और कैसे?
यूक्रेन में जिन संभावित युद्ध अपराधों की चर्चा हो रही है उनमें घरों को गिराना, सुरक्षित गलियारों से निकलने की कोशिश कर रहे लोगों पर गोलीबारी, अस्पतालों को निशाना बनाना, कल्स्टर बम जैसे हथियारों का नागरिक इलाकों में इस्तेमाल करना, परमाणु बिजली केंद्र पर हमला और जान बूझ कर भोजन, पानी जैसी मानवीय सहायता का रास्ता रोकना शामिल है. हालांकि इसमें भी नीयत की भूमिका बड़ी है. केवल अस्पताल को ध्वस्त कर देना ही काफी नहीं है. यह भी दिखाना होगा कि ऐसा जान बूझ कर किया गया.
समाचार एजेंसी एपी ने स्वतंत्र रूप से यूक्रेन के कम से कम 34 अस्पतालों या इलाकाई केंद्रों पर हमले की रिपोर्ट दी है. एजेंसी के पत्रकारों ने नागरिक ठिकानों पर रूसी हमलों से हुई तबाही को खुद जा कर देखा. इन हमलों के शिकार बने बच्चों और दूसरे लोगों को दफनाए जाने की घटनाओं को भी इन पत्रकारों ने दर्ज किया है.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयुक्त ने कम से कम 1035 आम लोगों के मौत की पुष्टि की है. जिनमें 90 बच्चे भी शामिल हैं. इसके अलावा 1650 से ज्यादा लोग इस युद्ध में घायल भी हुए हैं. हालांकि माना जा रहा है कि असल संख्या इसकी तुलना में बहुत ज्यादा है.
मारियोपोल की मुसीबत
इधर मारियोपोल की सड़कों पर लड़ाई की खबरें आ रही हैं. मारियोपोल के मेयर वादिम बोइशेंको का कहना है कि रूसी घेराबंदी में रह रहे शहर की हालत अब भी खराब है और शहर के केंद्र में सड़कों पर लड़ाई चल रही है.
मारियोपोल से आ रही तस्वीरों में हर तरफ तबाही के निशान और मलबे के ढेर दिख रहे हैं. टूटी-फूटी या पूरी तरह ध्वस्त इमारतें, जली हुई गाड़ियां दिख रही हैं. सदमे में डूबे लोग नजर आ रहे हैं जो पानी और खाना खोजने के लिए जगह-जगह मारे फिर रहे हैं. यहां लोगों को सामूहिक कब्रों में दफनाया जा रहा है.
इस बीच यूक्रेन के उप प्रधानमंत्री इरिना वेरेशचुक ने शनिवार को कहा कि 10 मानवीय गलियारा बनाने के लिए सहमति हुए है, ताकि नागरिकों को युद्ध वाले इलाकों से बाहर निकाला जा सके. वेरेशचुक ने यह भी कहा कि मारियोपोल से बाहर निकने वाले लोगों को निजी कारों में जाना होगा, क्योंकि रूसी सेना बसों को चेक प्वाइंट से नहीं गुजरने दे रही है. इन दावों की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो सकी है.
तटवर्ती शहर होने के कारण रूस की मारियोपोल पर नजर है और वो किसी भी तरह से इस पर कब्जा करना चाहता है. हालांकि तबाही के बाद भी यूक्रेन यह इलाका रूस को सौंपने के लिए तैयार नहीं है. 4 लाख से ज्यादा आबादी वाले शहर में अब भी एक लाख से ज्याद आम नागरिक फंसे हुए हैं.
एनआर/आरएस (एपी, एएफपी, रॉयटर्स)
रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से दुनिया के कई देशों में खाद्य असुरक्षा का संकट बढ़ गया है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, हम जो कुछ खाते हैं, उसका स्थायी और स्थानीय तौर पर उत्पादन करके से जलवायु परिवर्तन से लड़ा जा सकता है.
डॉयचे वैले पर स्टुअर्ट ब्राउन की रिपोर्ट-
रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के जल्द खत्म होने के आसार नहीं दिख रहे हैं. जैसे-जैसे युद्ध का समय बढ़ रहा है, वैसे-वैसे दुनिया के सामने खाद्य सुरक्षा से जुड़ी चिंताएं बढ़ती जा रही हैं. मध्य पूर्वी और उत्तरी अफ्रीकी देशों के लिए अनाज की ज्यादातर आपूर्ति रूस और यूक्रेन से ही होती है. मिस्र को दुनिया का सबसे बड़ा गेहूं आयातक देश माना जाता है. मिस्र ने पिछले साल अपने गेहूं का 80 फीसदी हिस्सा इन्हीं दो देशों से खरीदा था. वहीं संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम का भी कहना है कि वह दुनिया में जरूरतमंद लोगों को खिलाने के लिए जो अनाज खरीदता है, उसका 50 फीसदी हिस्सा यूक्रेन से आता है.
ग्लोबल अलायंस फॉर द फ्यूचर ऑफ फूड (जीएएफएफ) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, खाद्य असुरक्षा और आयात पर निर्भरता की वजह अस्थिर खाद्य प्रणालियां हैं. इससे वैश्विक स्तर पर तापमान भी बढ़ता है. इस रिपोर्ट से पता चलता है कि दुनिया में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) के एक तिहाई उत्सर्जन के लिए खाद्य प्रणालियां जिम्मेदार हैं. ज्यादातर राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों (एनडीसी) में अब तक खाद्य प्रणालियों की वजह से होने वाले उत्सर्जन को शामिल नहीं किया गया है.
रिपोर्ट में इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि किस तरह कार्बन का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले मोनोकल्चर खेती पर आधारित खाद्य प्रणालियां कई स्तरों पर जलवायु परिवर्तन को तेज कर रही हैं. इनमें वनों की कटाई और जैव विविधता के नुकसान से लेकर खाद्यान को हजारों किलोमीटर दूर तक आयात करना शामिल हैं. ये खाद्य प्रणालियां न तो जलवायु परिवर्तन के हिसाब से अनुकूल हैं और न ही युद्ध के लिहाज से.
बर्लिन स्थित क्लाइमेट थिंक टैंक, क्लाइमेट फोकस के वरिष्ठ सलाहकार और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक हसीब बख्तरी ने कहा, "खाद्य प्रणालियों पर स्थानीय और वैश्विक स्तर पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.” उन्होंने इसके समाधान पर बात करते हुए कहा कि स्थानीय स्तर पर ऐसी खाद्य प्रणाली विकसित करनी होगी जो जलवायु के अनुकूल हो और आयात पर निर्भरता कम करे. साथ ही भोजन की बर्बादी रोकनी होगी और कार्बन का कम इस्तेमाल करने वाले भोजन को बढ़ावा देना होगा.
बख्तरी इस बदलाव को ‘प्रकृति के लिहाज से ज्यादा अनुकूल' बताते हैं. उनके मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 2050 तक कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने का जो लक्ष्य रखा गया है, उसे पूरा करने में इस बदलाव का अहम योगदान हो सकता है. इस बदलाव को लागू करने से कार्बन उत्सर्जन में 20 फीसदी से ज्यादा की कमी हो सकती है.
जीएएफएफ के अध्ययन से पता चलता है कि मिस्र में इस साल के नवंबर में आयोजित होने वाले कॉप27 में 14 देश किस तरह से खाद्य प्रणाली में बदलाव की बात को शामिल कर सकते हैं.
चार देशों में तो बदलाव की प्रक्रिया पहले से जारी है.
1. बांग्लादेश
मौसमी चक्रवात और ज्वार से बांग्लादेश के बाढ़ प्रभावित हिस्से में नियमित नुकसान होता है. इसी इलाके में मछली पालन और धान की खेती होती है. हाल के दिनों में आयी बाढ़ ने दुनिया के इस तीसरे सबसे बड़े चावल उत्पादक देश को मजबूर कर दिया कि उसे बाहर से अनाज का आयात बढ़ाना पड़ा.
बांग्लादेश समुद्रतल से ऊंचाई के मामले में दुनिया के सबसे निचले देशों में से एक है. यहां के हर दसवें आदमी के सामने भोजन का संकट है. अब इस देश में बाढ़ प्रभावित इलाकों का बेहतर प्रबंधन किया जा रहा है. इससे बांग्लादेश जलवायु के हिसाब से खुद को बदल भी रहा है और चावल-मछली को एक साथ पैदा करने की प्रणाली को भी बेहतर बना रहा है. परंपरागत रूप से यहां की आबादी का मुख्य भोजन चावल-मछली ही है.
साल के पांच महीने, मानसून के मौसम में फ्लड प्लेन का इस्तेमाल मछली पालन के लिए किया जा रहा है. जब पानी का स्तर कम होने पर धान की खेती की जा रही है.
खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था ‘वर्ल्ड फिश' अब चावल-मछली की समुदाय-आधारित स्थायी उत्पादन प्रणाली बांग्लादेश में लागू कर रही है. जिसके तहत कृत्रिम उर्वरकों का इस्तेमाल बंद करके, मछली के अवशेषों का इस्तेमाल प्राकृतिक उर्वरक के तौर पर किया जा रहा है. साथ ही, मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले जैविक पदार्थों के विघटन को रोकने के लिए बाढ़ के मैदानों में पानी को जमा रखा जा रहा है.
मिट्टी में जैविक पदार्थ और नमी बरकरार रहने से देसी मछलियों की प्रजातियों को भी विकसित होने का मौका मिलता है. इस तरह से खाद्य प्रणाली को विकसित करने पर पोषण में भी सुधार होगा और आयात पर निर्भरता भी कम होगी.
2. मिस्र
मिस्र का लगभग 96 फीसदी हिस्सा रेगिस्तान है. इस देश में खेती योग्य भूमि और ताजा पानी की काफी कमी है. जलवायु परिवर्तन की वजह से गर्म हो रहे मौसम के कारण यह समस्या और बढ़ जा रही है. मिस्र में यह भी अनुमान लगाया गया है कि कृषि योग्य भूमि के 12 से 15 फीसदी हिस्से पर समुद्र के स्तर में वृद्धि होने की वजह से खारे पानी का बुरा प्रभाव होगा.
ऐसे में आयात किए जाने वाले भोजन और विशेष रूप से अनाज पर लगातार बढ़ रही निर्भरता से तभी मुकाबला किया जा सकता है, जब इस रेगिस्तान को हरा-भरा बनाने की पहल की जाए. जीएएफएफ की रिपोर्ट के अनुसार, 1970 के दशक से मिस्र के रेगिस्तान में टिकाऊ विकास पहल- एसईकेईएम चलाई जा रही है. इसके तहत, जलवायु के अनुकूल खेती करके शुष्क रेगिस्तान की तस्वीर बदली जा रही है.
यहां पेड़-पौधे लगाए जा रहे हैं. नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा दिया जा रहा है. नाइट्रोजन को बढ़ाने वाले पौधे लगाकर मिट्टी की उर्वरता में सुधार किया जा रहा है, ताकि कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता खत्म हो जाए. एसईकेईएम का दावा है कि 2020 तक उसके फार्म नवीकरणीय ऊर्जा से संचालित होंगे.
कंपोस्ट खाद की मदद से खेती करना जैविक खेती का हिस्सा है. इसका मकसद ऐसे समय में खाद्य पर आत्मनिर्भरता बढ़ाना है, जब संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने मिस्र में 2050 तक गेहूं का उत्पादन 15 फीसदी और मक्का का उत्पादन 19 फीसदी कम हो जाने की बात कही है.
खाद्य उत्पादन के लिए एसईकेईएम ने "एक नए उदाहरण पेश करने की कल्पना” की है. इसका नाम है- वहाट ग्रीनिंग द डेजर्ट पायलट प्रोजेक्ट. इस प्रोजेक्ट के तहत मिस्र के रेगिस्तान में 10 वर्ग किलोमीटर से अधिक के क्षेत्र को उपजाऊ खेत में बदलने के लिए काम किया जा रहा है.
3. सेनेगल
पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल जलवायु लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए कृषि-पारिस्थितिक खाद्य प्रणाली को अपनाने और स्थायी तौर पर खाद्य उत्पादन की दिशा में काम करने वाले कुछ देशों में से एक है. वजह है देश में ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन के 40 फीसदी हिस्से के लिए कृषि का जिम्मेदार होना. सेनेगल के खाद्य क्षेत्र के उत्सर्जन में कटौती से न केवल जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में मदद मिलेगी, बल्कि ऐसी खाद्य प्रणाली को सुधारने में मदद मिलेगी, जो हसीब बख्तरी के शब्दों में, ‘जलवायु के असर के प्रति संवेदनशील और नाजुक' है.
सेनेगल अफ्रीका के पश्चिमी साहेल क्षेत्र में है, जहां का तापमान वैश्विक औसत के मुकाबले 1.5 गुना तेजी से बढ़ रहा है. सेनेगल में भी खाद्य असुरक्षा और कुपोषण एक बड़ी समस्या है. 2020 में, 17 फीसदी आबादी को "अत्यधिक रूप से खाद्य असुरक्षित" माना गया था. उस वक्त यहां के 7.5 फीसदी लोग कुपोषित थे.
सेनेगल हाल के वर्षों में मछली का बड़ा निर्यातक रहा है. लेकिन यह देश चावल, गेहूं, मक्का, प्याज, ताड़ का तेल, चीनी और आलू सहित अपने मुख्य खाद्य पदार्थों का लगभग 70 फीसदी हिस्सा आयात करता है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि सेनेगल का एनडीसी भी स्थायी और स्थानीय तौर पर पैदा किए जाने वाले पौष्टिक खाद्य पदार्थों को बढ़ावा देकर इस निर्भरता को दूर करने का प्रयास कर रहा है.
4. अमेरिका
अमेरिका खाद्य असुरक्षा की तुलना में खाने की बर्बादी से ज्यादा प्रभावित है. यहां जरूरत से 30 से 50 फीसदी ज्यादा खाद्य पदार्थों का उत्पादन होता है. इसका मतलब है कि इनमें से ज्यादातर हिस्से को फेंक दिया जाता है.
बख्तरी कहते हैं कि अगर 2030 तक अमेरिका में खाद्य पदार्थों की बर्बादी को आधा कर दिया जाता है, तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सड़क पर चलने वाली 1.6 करोड़ कारों के सालाना उत्सर्जन के बराबर कटौती होगी.
अमेरिका में ग्रीन हाउस गैसों के कुल उत्सर्जन के 10 फीसदी हिस्से के लिए कृषि जिम्मेदार है. इसका काफी ज्यादा असर पर्यावरण पर पड़ता है. ऐसे में स्थिति को नियंत्रण में लाने के लिए, कम जैव विविधता वाले, कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भर रहने वाले मोनोकल्चर फॉर्मों पर ध्यान देना होगा.
वहीं, जीएएफएफ की रिपोर्ट के अनुसार शाकाहारी भोजन को बढ़ावा देने वाली खाद्य प्रणाली के इस्तेमाल से उत्सर्जन में 32 फीसदी की कमी आ सकती है. खाने की बर्बादी को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास पहले से ही चल रहा है. राष्ट्रीय गैर-लाभकारी संस्था रेफेड उपभोक्ताओं के व्यवहार में बदलाव करने, खाद्य पदार्थों के वितरण में बढ़ोतरी करने जैसे उपाय अपनाकर अमेरिका में भोजन की बर्बादी को रोकने का प्रयास कर रहा है. रेफेड का मानना है कि खाने की बर्बादी व्यावस्था से जुड़ी समस्या है. इसे दूर करने के लिए पूरी खाद्य श्रृंखला में बदलाव करना होगा. (dw.com)
अफ्रीकी महाद्वीप जलवायु से जुड़ी वित्तीय मदद के संकल्प को पूरा करने के लिए अमीर देशों पर जोर डाल रहा है. जमीनी स्तर पर अनुभव की कमी से अहम जलवायु अनुकूलन परियोजनाएं रुकी पड़ी हैं.
डॉयचे वैले पर नगाला किलियन चिमटोम की रिपोर्ट-
अफ्रीकी महाद्वीप, दक्षिण से लेकर पूरब तक जलवायु परिवर्तन की मार से घिरा है. दक्षिण में चक्रवातों की विपदा है तो पूर्व में बाढ़ और सूखा. वैश्विक ग्रीन हाउस उत्सर्जन में अफ्रीकी भागीदारी न्यूनतम है- महज 3.8%. फिर भी वो उस संकट की एक बड़ी गंभीर कीमत चुका रहा है जिसमें उसका कोई हाथ नहीं.
कई विशेषज्ञ इस बात को मानते हैं कि अफ्रीका को पैसो की मदद बहुत जरूरी है जिससे वो जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के लिहाज से खुद को ढाल सके. एक दशक पहले, अमीर देशों ने 2020 तक इसी मकसद को पूरा करने की खातिर विकासशील देशों को 100 अरब डॉलर की धनराशि देने का संकल्प किया था.
इस डेडलाइन को दो साल बीत चुके हैं- और विकसित देशों का अनुमान है कि वे 2023 से पहले तो अपना वादा पूरा नहीं कर पाएंगे. उन पर अपना वादा पूरा करने का दबाव लगातार बढ़ रहा है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) के लिए अफ्रीका से जलवायु परिवर्तन समन्वयक रिचर्ड मुनांग ने डीडब्लू को बताया, "हमें ये समझने की जरूरत है कि अफ्रीका पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा तेजी से गरम हो रहा है. खाद्य असुरक्षा की चुनौतियां और सामाजिक-आर्थिक चुनौतियां जिनसे हम आज जूझ रहे हैं वे ना सिर्फ बनी रहेंगी बल्कि अफ्रीका को बहुत जोखिम भरी और दुविधा वाली स्थिति में डालेंगी.”
जरूरतें बढ़ती जा रही हैं
2100 तक विश्व आबादी में अफ्रीकी योगदान 17 फीसदी से बढ़कर 40 फीसदी हो जाने का अनुमान है. इसे देखते हुए जलवायु अनुकूलन परियोजनाओं के लिए करो या मरो की स्थिति आ गई है. टिकाऊ विकास लक्ष्यों (एडीजी) पर अपनी गति बनाए रखने के लिए अफ्रीकी महाद्वीप की जद्दोजहद भी जारी है. संयुक्त राष्ट्र के तमाम सदस्य देशों ने 2030 तक गरीबी के खात्मे और जलवायु मामलों में लचीलापन बढ़ाने के लिए 2015 में इन विकास लक्ष्यों को पूरा करने का संकल्प लिया था. उन्हीं के साथ राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) भी शामिल किए गए थे.
मुनांग बताते हैं कि, "अफ्रीका को एनडीसी पर अमल के लिए दो खरब डॉलर की दरकार है और एसडीजी के लिए 1.2 खरब डॉलर चाहिए होंगे. इसीलिए ये कतई जरूरी है कि जलवायु लचीलापन हासिल करने में अफ्रीका की मदद की जाए.”
हाल की प्राकृतिक विपदाओं की ओर साक्ष्य के तौर पर इशारा करते हुए मुनांग का कहना है कि विश्व बिरादरी को यथाशीघ्र अपने वादों पर अमल करना चाहिए.
वो कहते हैं, "आप देख रहे हैं, मांएं भूखी हैं, फसल बर्बाद हो रही है, लोग बाढ़, सूखे की मार झेल रहे हैं और विस्थापन को विवश हैं...ये सारी वास्तविकताएं जलवायु परिवर्तन के तहत बढ़ने ही वाली हैं.”
क्यों नहीं मिलता है पैसा
लेकिन इस पूरी बहस में अफ्रीकी द्वंद्व की सिर्फ आंशिक झलक ही मिलती है. जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण परियोजनाओं के लिए जारी कुछ फंड जब महाद्वीप में पहुंचता है तो अक्सर ये साफ नहीं होता कि उसका ठीक ठीक क्या इस्तेमाल हो रहा है और आखिर उसे हासिल कैसे किया जा सकता है.
कैमरून की वानिकी तकनीशियन और एनजीओ लीडर एडलीन टेंगम कहती हैं कि उन्होंने कई दफा जलवायु के लिए जारी इस पैसे तक पहुंचने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहीं.
उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "स्थानीय समुदायों की रोजीरोटी के स्तर में सुधार के जरिए हमारा विचार है बर्बाद इलाकों की पुनर्बहाली. इस किस्म के प्रोजेक्टों के लिए पैसा चाहिए और उसके लिए हमें जूझना पड़ रहा है. हर बार मैं जब प्रोजेक्ट जमा करती हूं, उसे घटिया बता कर खारिज कर दिया जाता है.”
ये अकेली टेंगम की लड़ाई नहीं है. संयुक्त राष्ट्र वन फोरम से जुड़े पीटर गोंडो कहते हैं कि जलवायु का पैसा मिलने में कठिनाई, पूरे अफ्रीकी महाद्वीप में एक जानी पहचानी समस्या है. वो कहते है कि घूम फिर कर सारा मामला, परियोजनाओं के प्रस्तावों के निरूपण में अनुभव की कमी पे आकर अटक जाता है.
वो कहते हैं, "अभ्यर्थियों को ये दिखाना होता है कि उनके प्रस्तावित प्रोजेक्ट, जलवायु परिवर्तन न्यूनीकरण और अनुकूलन में किस तरह योगदान करते हैं. इस प्रस्तुति में बहुत सारे विस्तृत, सटीक डाटा की जरूरत पड़ती है जिससे ये अनुमान लगाया जा सके कि अगर आप अपना प्रोजेक्ट चालू करते हैं तो ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की कटौती में आप कितना योगदान करने वाले हैं. कई देशों में जरूरी दक्षता वाले पर्याप्त जानकार हैं ही नहीं.”
बेहतर भविष्य का प्रशिक्षण
ज्यादा से ज्यादा जलवायु परियोजनाएं हासिल करने और उन्हे लागू करने के लिए अफ्रीकी वन फोरम ने ग्लोबल फॉरेस्ट फाइनेन्सिंग फेसिलिटेशन नेटवर्क (जीएफएफएफएन) के साथ भागीदारी की है. दोनों मिलकर पब्लिक सेक्टर और स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के लिए, जलवायु कोष और ठोस परियोजनाएं तैयार करने के बारे में प्रशिक्षण सत्रों का आयोजन करते हैं.
टेंगम ने दोआला में ऐसी ही एक वर्कशॉप में भाग लिया था. वहां उन्हें ना सिर्फ ये जानकारी मिली कि उनके पास किस तरह की फंडिंग के अवसर हैं बल्कि ये भी जाना कि फंड की जरूरतों को पूरा करने वाले प्रोजेक्टों को कैसे ड्राफ्ट करना है. वो कहती हैं कि वो भविष्य के प्रस्तावों को जमा करने के बारे में अब ज्यादा आश्वस्त हुई हैं.
"मैंने वो तरीका सीख लिया है कि जो मुझे समस्या से समाधान की ओर ले जाएगा, हमारे वित्तीय मददगार यही चाहते हैं.”
आखिरकार, इस अभियान का मकसद ये सुनिश्चित करना है कि अफ्रीका को मौजूदा और आगामी अंतरराष्ट्रीय जलवायु संबंधित आर्थिक मदद आसानी से हासिल होती रहे. सेक्टर से जुड़े साझेदारों का कहना है कि उचित वित्तीय सहायता और प्रस्तावों की ड्राफ्टिंग और प्रस्तुति में अनुभव के साथ अफ्रीकी महाद्वीप उत्सर्जन में कमी और जलवायु-अनुकूल भविष्य के रास्ते पर आगे बढ़ सकेगा. (dw.com)
रूस का दावा है कि उसने यूक्रेन में हाइपरसोनिक मिसाइलों का इस्तेमाल किया है. पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों के मुकाबले अत्यधिक तीव्र रफ्तार वाली ये मिसाइलें लंबे समय तक रडार की पकड़ में नहीं आती हैं
डॉयचे वैले पर कार्ला ब्लाइकर की रिपोर्ट-
यूक्रेन-रूस युद्ध को करीब एक महीना हो चला है, इस बीच पिछले शुक्रवार को हुआ रूसी हमला, पहले से काफी अलग था. रोमानिया से लगती यूक्रेन की सीमा से से 100 किलोमीटर दूर डेलियाटिन नाम के एक छोटे से गांव में हथियार और गोलाबारूद के भूमिगत डिपो को निशाना बनाया गया था.
हमले में ठिकाना नेस्तनाबूद हो गया. लेकिन बात इतनी सी नहीं थी, बात ये भी थी कि रूस ने इस लड़ाई में पहली दफा हाइपरसोनिक मिसाइल छोड़ी थी.
रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने, 2018 में हाइपरसोनिक मिसाइलों के जखीरे का उद्घाटन करते हुए इन्हें, "अपराजेय” कहा था.
प्रचार के मकसद से उन्होंने शायद तारीफ बढ़ा चढ़ा कर कर दी हो लेकिन उसमें कुछ सच्चाई भी थी. हाइपरसोनिक मिसाइले कई लिहाज से पारंपरिक बैलिस्टिक मिसाइलों से अलग होती हैं क्योंकि वे मिसाइल रक्षा प्रणालियों की पकड़ में नहीं आ पाती हैं. वे बहुत तेज रफ्तार होती हैं और बहुत कम ऊंचाई से भी मार कर सकती हैं.
कितनी तेज होती हैं हाइपरसोनिक मिसाइलें?
हाइपरसोनिक मिसाइलें ध्वनि की रफ्तार से पांच से दस गुना ज्यादा तेज गति से उड़ान भरती हैं. उस गति को कहा जाता है माक 5 और माक 10. ध्वनि की कोई एक निर्धारित गति नहीं होती क्योंकि वो वेरिअबल्स यानी परीवर्तनीय चीजों पर निर्भर करती है, खासकर माध्यम पर और उस माध्यम के तापमान पर- जिसके जरिए कोई वस्तु या ध्वनितरंग गुजरती है.
हालांकि एक तुलना के रूप में देखें, तो कॉनकोर्ड का विमान ध्वनि की दोगुना गति से उड़ान भरता था. वो एक सुपरसोनिक विमान था जिसकी अधिकतम रफ्तार 2180 किलोमीटर प्रति घंटा थी याना माक 2.04. इस लिहाज से हाइपरसोनिक उड़ानें उसके मुकाबले कम से कम तीन गुना रफ्तार वाली होती हैं.
डेलियाटिन गांव के हथियार डिपो पर गिराई गई रूस की हाइपरसोनिक मिसाइल का नाम है किन्जाल यानी खंजर. उसकी लंबाई आठ मीटर है.
कुछ जानकारों का कहना है कि इस किस्म की मिसाइल 6,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ती है यानी उसकी गति करीब माक 5 की होगी. जबकि कुछ जानकारों के मुताबिक वो माक 9 या माक 10 की गति से भी मार कर सकती है.
हर लिहाज से उसकी गति बहुत तेज है. अमेरिकी वेबसाइट मिलेट्री डॉट कॉम के मुताबिक इस हथियार की स्पीड इतनी तेज है कि उसके सामने वायु दबाव, एक प्लाज्मा बादल निर्मित कर देता है, जो रेडियो तरंगों को सोख लेता है.
इसी के चलते किन्जाल यानी खंजर मिसाइल और दूसरे हाइपरसोनिक हथियार रडार प्रणालियों की पकड़ में नहीं आ पाते हैं. उनकी इस खूबी को और मजबूत बना देती है उनकी नीची उड़ान.
कम ऊंचाई
हाइपरसोनिक मिसाइलें पारंपरिक बैलेस्टिक मिसाइलों के मुकाबले कम ऊंचाई में उड़ती हैं.
वे एक निम्न वायुमंडलीय-मुक्त प्रक्षेप पथ में उड़ान भरती हैं. इसका मतलब ये है कि जब तक रडार आधारित मिसालइल रक्षा प्रणाली उन्हें चिन्हित कर पाती है तब तक वे अपने लक्ष्य के इतना करीब पहुंच चुकी होती हैं कि कई मामलों में तो उन्हें भेद पाने के लिए बहुत देर हो चुकी होती है.
रही-सही कसर, हाइपरसोनिक मिसाइलों की, बीच रास्ते में उड़ान की दिशा बदलने की खासियत से पूरी हो जाती है.
उनकी रेंज क्या है?
यूक्रेन में इस्तेमाल की गई रूसी हाइपरसोनिक मिसाइल को हवा से दागा गया था. बहुत संभव है किसी मिग-31 लड़ाकू विमान से.
हाइपरसोनिक हथियार जहाजों और पनडुब्बियों से भी छोड़े जा सकते हैं. वे अपने साथ परमाणु विस्फोटक भी ले जा सकते हैं.
किन्जाल मिसाइल 2000 किलोमीटर दूर से मार कर सकती है. दूसरी हाइपरसोनिक मिसाइलें करीब 1000 किलोमीटर दूर जा सकती हैं.
अगर हाइपरसोनिक मिसाइलें रूसी प्रांत कालिनिनग्राद में तैनात की जातीं तो यूरोप के बहुत से शहर उनकी जद में आ जाते. कालिनिनग्राद रूसी मुख्य भूमि से दूर और पोलैंड, लिथुआनिया और बाल्टिक सागर के पास है. वहां से जर्मन राजधानी बर्लिन महज 600 किलोमीटर दूर है.
लेकिन कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यूक्रेन के डेलियाटिन गांव में हुआ हमला एक अलग घटना थी और हाइपरसोनिक मिसाइलों के तमाम फायदों के बावजूद रूस अंधाधुंध तरीके से अपने "अपराजेय” हथियारों का इस्तेमाल करने से परहेज करेगा. (dw.com)
यूरोप को ऊर्जा की आपूर्ति की बात हो तो स्पेन की बड़ी महत्वाकांक्षाएं हैं. स्पेन, अफ्रीका और यूरोप के बीच हाइड्रोजन की ढुलाई की धुरी बन सकता है. हालांकि पहले उसे पाइरेनीज पर्वतों में एक पाइपलाइन में फ्रांस की मदद चाहिए.
डॉयचे वैले पर स्टेफानी मुलर की रिपोर्ट-
यूक्रेन पर व्लादिमीर पुतिन के हमले से नॉर्ड स्ट्रीम 2 यानी रूस और जर्मनी के बीच गैस पाइपलाइन परियोजना को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल देने से यूरोप की ऊर्जा सुरक्षा खतरे में है.
हालांकि युद्ध के अलावा कुछ दूसरी राजनीतिक स्थितियों ने भी कई मायनों में स्पेन के लिए चीजों को बदल रखा है. मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के साथ इसके लंबे आर्थिक संबंध और इन जगहों पर चल रहे कई सौर और पवन ऊर्जा पार्क अचानक ध्यान आकर्षित करने लगे हैं. स्पेन में छह लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG) टर्मिनल हैं और सातवां बन रहा है. इसके अलावा, यह नाइजीरिया और कच्चे माल के दूसरे सप्लायरों के साथ संबंधों को मजबूत करना चाहता है.
इबेरियन प्रायद्वीप का यह सबसे बड़ा देश अक्षय स्रोतों से अपनी सकल ऊर्जा खपत का 21 फीसदी से ज्यादा उत्पन्न करता है और इसलिए मौजूदा स्थिति में भी उसे आपूर्ति की कोई समस्या नहीं है. तमाम चीजों को मिलाकर, कई लोग स्पेन को भविष्य में यूरोप में ऊर्जा की आपूर्ति के लिए एक महाशक्ति बनने के लिए एक बड़े अवसर के रूप में देखते हैं.
मिडकैट को पुनर्जीवित करना ?
स्पेन पर्यटन पर बहुत ज्यादा निर्भर है. इसलिए कोविड महामारी की वजह से लॉकडाउन और यात्रा प्रतिबंधों के दौरान इसे खासा नुकसान हुआ है. अब स्पेन अपनी अर्थव्यवस्था के हरित रूपांतरण के लिए यूरोपीय संघ के नेक्स्ट जेनरेशन फंड से 154 अरब डॉलर का उपयोग करना चाहता है. इसमें ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन भी शामिल है.
यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला वॉन डेर लेयन कई बार स्पेन की राजधानी मैड्रिड जा चुकी हैं और इस बात से वो भी सहमत हैं. वह मिडकैट पाइपलाइन परियोजना को पुनर्जीवित करने में भी दिलचस्पी रखती हैं जो स्पेन और फ्रांस के बीच एक गैस लिंक है. स्पेन के इलाके में 80 किलोमीटर लंबी पाइपलाइन के निर्माण के बाद साल 2019 में यह निर्माण कार्य बंद हो गया था. यदि यह पूरा हो जाता है तो पाइपलाइन में 7.5 अरब क्यूबिक मीटर गैस की क्षमता होगी और यह एक बड़े कार्यक्रम की शुरुआत हो सकती है. नॉर्ड स्ट्रीम 1 से तुलना करें, तो यह परियोजना एक साल में 55 अरब क्यूबिक मीटर गैस को संभाल सकती है.
मौजूदा समय में सिर्फ दो छोटी पाइपलाइनें हैं जो नावरा और बास्क देश से फ्रांस तक गैस लेकर आती हैं. स्पेन की पर्यावरण मंत्री टेरेसा रिबेरा ने हाल ही में फ्रांस की इसलिए आलोचना की है क्योंकि वह मिडकैट परियोजना को पुनर्जीवित करने में भाग नहीं लेना चाहता है.
उत्तरी अमेरिकी मामलों की विशेषज्ञ इग्नासियो केंब्रेरो कहती हैं, "यह मुख्य रूप से वित्तपोषण के बारे में है. हालांकि, नॉर्ड स्ट्रीम2 की विफलता ने इस मामले को फिर से प्रासंगिक बना दिया है.”
घरेलू ऊर्जा की कीमतों को कम करना होगा
स्पेन के प्रधान मंत्री पेड्रो सांचेज को पहले अपने देश में ऊर्जा की कीमतों को अल्पावधि में नीचे लाना होगा. COVID-19 महामारी, बर्फबारी जैसी आपदाओं, मुद्रास्फीति और अब अत्यधिक सूखे से त्रस्त देश में ज्यादातर लोग परेशान हैं.
स्पेन में बिजली पर मूल्य वर्धित कर पहले ही कम किया जा चुका है लेकिन सिर्फ इतना ही पर्याप्त नहीं है. तेजी से बढ़ रही गैस की कीमतों का सामना करते हुए, सांचेज यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि पनबिजली, सौर ऊर्जा और पवन ऊर्जा जैसे ऊर्जा के हरित स्रोत ज्यादा लोकप्रिय बनाए जाएं. अपनी योजना को आगे बढ़ाने के लिए सांचेज ने अब यूरोपीय सद्भावना यात्रा शुरू की है.
वे चाहते हैं कि इस बारे में यूरोपीय संघ में आम सहमति बने. कुछ पर्यवेक्षक इसे स्पेन के लिए आर्थिक और राजनीतिक मौके के रूप में देखते हैं. हालांकि कई लोग इसके खिलाफ भी हैं और ऊर्जा आपूर्तिकर्ता बनने के उसके लक्ष्य को भ्रामक समझते हैं.
स्पेन में ऊर्जा के आंकड़ों से संबंधित एक पत्रिका के मुख्य संपादक लुई मेरिनो कहती हैं, "यह स्पष्ट है कि अपने कई पवन और सौर ऊर्जा पार्कों की वजह से हम साल 2025 तक पचास यूरो प्रति मेगावाट की दर से बिजली हासिल कर सकते हैं जबकि इतनी ही बिजली के लिए जर्मनी और फ्रांस के लोगों को साठ से सत्तर यूरो का भुगतान करना पड़ेगा. निश्चित तौर पर यह स्पेन को ऊर्जा निर्यातक के रूप में और अधिक आकर्षक बना देगा.”
रणनीति बदलने में समय लगेगा
ऊर्जा के परिवहन के मामले में स्पेन को पहले से ही काफी अनुभव है. जनवरी 2022 में स्पेन ने फ्रांस को आयात की तुलना में बिजली का निर्यात ज्यादा किया.
वेलेंसिया के यूरोपीय विश्वविद्यालय में ऊर्जा मामलों के जानकार रॉबर्टो गोम्ज कालवेट कहते हैं, "कम जनसंख्या घनत्व के कारण हमारे पास ज्यादा संख्या में हाइड्रोलिक सिस्टम बनाने और भू-तापीय ऊर्जा जैसे स्रोतों में निवेश करने के काफी अवसर हैं. लेकिन मौजूदा सरकार की जो रणनीति है, वह सही तो है, लेकिन उसके पूरा होने में अभी कई साल लगेंगे.”
उनका मानना है कि कुछ साल पहले कोयले को पीछे छोड़ना मौजूदा स्थिति को देखते हुए एक गलती थी. स्पेन में पांच परमाणु ऊर्जा संयंत्र चल रहे हैं और आने वाले वर्षों में इन्हें ग्रिड से हटा दिया जाएगा. काल्वेट कहते हैं कि अब यह बीतों दिनों की चीजें हो चुकी हैं और खासकर तब यह और जरूरी हो जाता है जबकि स्पेन वास्तव में एक बड़ा ऊर्जा निर्यातक बनना चाहता है.
मयोर्का का हरित हाइड्रोजन कारखाना
ऊर्जा विशेषज्ञ कहते हैं कि ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन बहुत महंगा है और बहुत ज्यादा उपयोगी भी नहीं है.
काल्वेट कहते हैं, "लेकिन तेल और गैस की जगह लेने के लिए फिलहाल हमारे पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. यही कारण है कि मयोर्का में पहली हरित हाइड्रोजन फैक्ट्री अभी-अभी शुरू हुई है और यह उद्योग के लिए गिनी पिग साबित होगा. फिलहाल, यह अभी भी एक तरह की प्रयोगशाला है.”
स्पेनिश गैस कंपनी एनागास के एक पूर्व प्रबंधक रॉबर्टो सेंटेनो कहते हैं कि स्पेन को एक प्रमुख ऊर्जा उत्पादक के रूप में बदलने के सांचेज के सपने को साकार करने के लिए बड़े पैमाने पर अमेरिका से गैस का आयात करना होगा. वो कहते हैं, "पहले हम फ्रांस से जुड़ना चाहते थे लेकिन रूसी गैस को स्पेन में लाने के लिए हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है.”
स्पेन में इस समय यूरोपीय संघ के कुल तरल गैस भंडार का 35 फीसदी हिस्सा है. पुर्तगाल के पास एक तरल प्राकृतिक गैस टर्मिनल भी है और वो सांचेज के सपने का समर्थन करता है और अपने देश के लिए वैकल्पिक ऊर्जा में और अधिक निवेश करने का अवसर देता है.
केम्ब्रेरो इस मामले में वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति में ना सिर्फ लाभ देखती हैं बल्कि कहती हैं कि समस्याएं वास्तव में आस-पास हैं. उनके मुताबिक, "अल्जीरिया से मोरक्को के लिए गैस कनेक्शन को राजनीतिक विवादों के चलते रोक दिया गया था. इसका इस्तेमाल स्पेन अपनी गैस आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए करता था. अल्जीरिया के साथ ऊर्जा संबंधों को फिर से शुरू करके, मोरक्को और स्पेन अफ्रीका में इस्लामी आतंकवादियों के समर्थन और पश्चिमी सहारा जैसी स्थिति पैदा करने की गलती कर रहे हैं.” (dw.com)
चीन के विदेश मंत्री वांग यी गुरुवार की सुबह अपनी विदेश यात्रा पर काबुल पहुंचे. यहां उन्होंने तालिबान के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के सत्ता अपने हाथों में लेने के बाद वांग यी पहली बार वहां का दौरा कर रहे थे.
तालिबान के सत्ता में आने के बाद से अब तक, चीन की ओर से काबुल पहुंचने वाले वे चीन सरकार के सर्वोच्च अधिकारी हैं.
तालिबान के विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताकी ने काबुल एयरपोर्ट पर उनका स्वागत किया. विदेश मंत्रालय में बैठक के बाद, वांग यी ने तालिबान के पहले उप प्रधानमंत्री अब्दुल ग़नी बरादर और तालिबान के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी से भी मुलाक़ात की.
गुरुवार की शाम को ही, रूसी राष्ट्रपति के विशेष दूत ज़मीर काबुलोव भी काबुल पहुंचे. उन्होंने तालिबान के पहले उप प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और विदेश मंत्री सहित तालिबान नेतृत्व के अधिकारियों के साथ बात की.
किन मुद्दों पर हुई बातचीत?
रूसी प्रतिनिधिमंडल में रक्षा, गृह, अर्थव्यवस्था, उद्योग और ऊर्जा मंत्रालयों के प्रतिनिधि भी शामिल थे और कहा जा रहा है कि दोनों पक्षों के बीच राजनीतिक, आर्थिक, एक दूसरे के यहां आने जाने और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के मुद्दों पर चर्चा हुई.
यूक्रेन पर रूसी आक्रमण के शुरुआती दिनों में, तालिबान के विदेश मंत्रालय ने कहा था कि उनकी विदेश नीति "तटस्थ" है और उन्होंने इस मामले के हल के लिए दोनों पक्षों से बातचीत का आह्वान किया था.
तालिबान के विदेश मंत्री के रूस स्थित दूत ने इस दौरान मध्य पूर्व और दुनिया में संतुलित नीति अपनाने के लिए संयुक्त अरब अमीरात की प्रशंसा की थी.
तालिबान प्रशासन के गृह मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी ने रूसी दूत से कहा कि तालिबान अपनी सभी प्रतिबद्धताओं पर कायम है और अफ़ग़ानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी देश पर हमले के लिए नहीं किया जाएगा. उन्होंने रूसी प्रतिनिधिमंडल से तालिबान सरकार को मान्यता देने का आह्वान किया.
वैसे सरकार में आने से पहले सिराजुद्दीन हक्कानी खुद अमेरिकी फ़ेडरल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टिगेशन यानी एफ़बीआई के वांछितों में शामिल थे. रूसी प्रतिनिधिमंडल ने तालिबान के विदेश मंत्री और प्रथम उप प्रधानमंत्री के साथ विदेश मंत्रालय में अलग-अलग बैठकें की हैं. यह दल पूर्व अफ़ग़ान राष्ट्रपति हामिद करजई से उनके आवास पर भी जाकर मिला.
चीन किस बात से चिंतित है?
वहीं चीन के विदेश मंत्री वांग यी तालिबान नेतृत्व से मुलाकात के काबुल पहुंचने वाले तीसरे विदेश मंत्री हैं. उनसे पहले पाकिस्तान और क़तर के विदेश मंत्री काबुल का दौरा कर चुके हैं.
चीन के विदेश मंत्री इस्लामाबाद में इस्लामिक सहयोग संगठन की उद्घाटन बैठक में भाग लेने और प्रधान मंत्री इमरान ख़ान और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल बाजवा के साथ बातचीत करने के बाद काबुल पहुंचे थे.
उनकी इस यात्रा के दौरान अफ़ग़ानिस्तान सबसे अहम मुद्दा रहा. काबुल के बाद वांग यी गुरुवार की शाम काबुल से दिल्ली के लिए रवाना हो गए.
चीन और तालिबान के विदेश मंत्रियों ने दोनों देशों के बीच राजनीतिक, आर्थिक और एक दूसरे के साथ आवागमन के मुद्दों, हवाई कॉरिडोर, चीन को सूखे फल निर्यात, छात्रवृत्ति और चीनी निवेशकों के लिए वीजा जैसे मुद्दों पर चर्चा की.
यह यात्रा चीन में एक सप्ताह बाद चीन में प्रस्तावित बैठक से ठीक पहले हुई है. चीन की मेजबानी वाली बैठक में तालिबान के विदेश मंत्री भी शामिल होंगे.
दरअसल, इन दिनों चीन, तालिबान के नियंत्रण वाले अफ़ग़ानिस्तान में वीगर मुस्लिम ईस्ट तुर्किस्तान मूवमेंट के सदस्यों की गतिविधियों को लेकर चिंतित है. हालांकि चीन ने इस दौरान तालिबान के साथ संबंधों को कायम रखा है. उल्लेखनीय है कि तालिबान के उप प्रधानमंत्री अब्दुल गनी बरादर ने तालिबान के अफ़ग़ानिस्तान पर नियंत्रण से पहले बीजिंग का दौरा किया था.
हाल के महीनों में, तालिबान ने चीनी निवेश का स्वागत किया है, हालांकि अफ़ग़ानिस्तान के अभूतपूर्व आर्थिक और मानवीय संकट के दौर में भी बीजिंग ने अब तक केवल सीमित वित्तीय और मानवीय सहायता प्रदान की है.
वांग ने अपनी इस यात्रा के दौरान तालिबान के पहले उप प्रधान मंत्री अब्दुल गनी बरादर से मुलाकात की, जो आर्थिक मामलों के प्रभारी भी हैं.
बताया जा रहा कि इस बैठक में अयनाक तांबा खनन परियोजना को फिर से शुरू करने और अन्य खानों में खनन करने और इसके लिए अफ़ग़ान कर्मियों को प्रशिक्षित करने में मदद पर बातचीत हुई है.
इससे पहले, तालिबान के खनन और पेट्रोलियम मंत्रालय ने लोगार स्थित विशाल अयनाक तांबे की खदान पर काम शुरू करने के लिए चीन की कंपनी के साथ बातचीत की घोषणा की थी.
पाकिस्तान के साथ तोरखम सीमा पार से देश के उत्तर में स्थित हेराटन के बंदरगाह तक एक रेलवे ट्रैक का निर्माण हो रहा है. अफ़ग़ानी मंत्रालय और चीन की कंपनी के बीच 400 मेगावॉट पावर का थर्मल पावर प्लांट, देश के अंदर अयनाक कॉपर रोड का निर्माण और कॉपर प्रोसेसिंग पर भी चर्चा हुई है.
इमरान ख़ान से हुई बातचीत
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर के विस्तार पर चर्चा करने के लिए इस्लामाबाद में वांग यी से मुलाकात की.
पाकिस्तान यात्रा के बाद चीनी दूतावास द्वारा जारी एक बयान में विशेष रूप से अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर कहा गया है, "इमरान ख़ान ने चीन-अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के आपसी सहयोग की अफ़ग़ानिस्तान की स्थिरता और क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने में भूमिका की प्रशंसा की है."
साथ ही पाकिस्तान चीन के साथ रोड बेल्ट सहयोग को आगे बढ़ाने और अफ़ग़ानिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का विस्तार में सहयोग देने के लिए तैयार है.
इमरान खान तालिबान सरकार के साथ आर्थिक सहयोग के लिए चीन और रूस जैसी क्षेत्रीय शक्तियों की मदद मांग रहे हैं. वांग यी ने पाकिस्तान की सेना के प्रमुख क़मर जावेद बाजवा से भी अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर बात की.
उन्होंने इस्लामाबाद स्थित चीनी दूतावास में एक बयान में कहा, "अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे को दबाव या प्रतिबंधों के जरिए नहीं सुलझाया जाना चाहिए, बल्कि संवाद और संचार को बढ़ावा देकर सुलझाया जाना चाहिए."
चीन के विदेश मंत्री ने कहा कि, 'चीन और पाकिस्तान दोनों को, एक खुली और समावेशी राजनीतिक व्यवस्था का निर्माण करने, उदार और विवेकपूर्ण घरेलू और विदेशी नीतियों को आगे बढ़ाने और आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ने के लिए अफ़ग़ानिस्तान के तालिबान शासकों को प्रोत्साहित करना चाहिए.'
उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आर्थिक विकास के लिए सही रास्ता खोजने, लोगों के जीवन स्तर को सुधारने और आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में अफ़ग़ानिस्तान की मदद करनी चाहिए.
पूर्वी तुर्किस्तान आंदोलन की गतिविधियों को लेकर चीन चिंतित
बीजिंग प्रशासन ने इस दौरान तालिबान से विशेष रूप से पूर्वी तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट के साथ संबंधों से दूर होने की अपील की है. चीन शिनजियांग के पश्चिमी क्षेत्र में हमलों के लिए इसी समूह को ज़िम्मेदार ठहराता रहा है.
हाल ही में, चीनी राजदूत ने कहा कि, 'अफ़ग़ानिस्तान से विदेशी सैनिक बलों की वापसी ने सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एक शून्य पैदा कर दिया है. इस शून्य ने आतंकवादी ताक़तों को अराजकता का लाभ उठाने का अवसर दिया है."
दो महीने पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के विश्लेषण की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्वी चीन तुर्किस्तान इस्लामिक आंदोलन के क़रीब 200 से 700 सदस्य अफ़ग़ानिस्तान में रह रहे हैं.
तालिबान पर इस्लामाबाद में इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक में बोलते हुए वांग यी ने कहा कि चीन अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी राजनीतिक व्यवस्था और उदारवादी सरकार की स्थापना और शांति और पुनर्निर्माण का नया अध्याय खोलने का समर्थन करता है. (bbc.com)
खाड़ी क्षेत्र के एक विवादास्पद गैस फ़ील्ड को डेवलप करने पर सऊदी अरब और कुवैत के बीच हुए समझौते को लेकर ईरान ने शनिवार को नाराज़गी जताई है. ईरान ने दोनों देशों के बीच हुए समझौते को अवैध करार दिया है.
ईरान इस गैस फ़ील्ड के दोहन पर अपना दावा जताता है.
कुवैत के आधिकारिक बयान के अनुसार, दोनों देशों के ऊर्जा मंत्रियों ने सोमवार को अरश गैस फ़ील्ड को विकसित करने को लेकर समझौते पर दस्तखत किए थे.
समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद दुनिया भर में गैस की क़ीमतें जिस तरह से बढ़ रही हैं, उसे देखते हुए कुवैत और सऊदी अरब ने ये समझौता किया है.
ईरान के विदेश मंत्रालय ने शनिवार को इस समझौते को अवैध करार देते हुए बयान जारी किया. उसका कहना है कि कुवैत और सऊदी अरब के बीच हुआ समझौता अतीत में हुई बातचीत और निर्धारित प्रक्रियाओं का उल्लंघन है.
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सईद ख़ातिबज़ादेह ने कहा, "ईरान अरश गैस फ़ील्ड के दोहन के अपने अधिकार को सुरक्षित रखता है. इस गैस फ़ील्ड को विकसित करने की दिशा में कोई भी कार्य तीनों देशों के बीच समन्वय स्थापित करके ही की जानी चाहिए." अरश गैस फ़ील्ड को लेकर साठ के दशक से ही विवाद रहा है. (bbc.com)