अंतरराष्ट्रीय
(ललित के. झा)
वाशिंगटन, 17 मार्च। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन को लॉस एंजिलिस के मेयर एरिक गार्सेटी पर पूरा भरोसा है और उनका मानना है कि वह भारत में देश के एक उत्कृष्ट प्रतिनिधि साबित होंगे।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव जेन साकी ने विश्वास जताया कि संसद जल्द ही भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में उनके नाम की पुष्टि करेगी, जिसे पहले रिपब्लिकन सांसद चक ग्रासली ने रोक दिया था।
साकी ने दैनिक संवाददाता सम्मेलन में पत्रकारों से कहा, ‘‘ वह (ग्रासली) वास्तव में मतदान नहीं रोक सकते। मेरा मतलब है कि वह अपना विरोध व्यक्त कर सकते हैं, जैसा कि किसी भी सांसद का अधिकार है। हम जल्द संसद में मतदान की उम्मीद कर रहे हैं।’’
साकी ने एक सवाल के जवाब में कहा, ‘‘ राष्ट्रपति को मेयर गार्सेटी पर भरोसा है और उनका मानना है कि वह भारत में एक उत्कृष्ट प्रतिनिधि साबित होंगे। बेशक यह महत्वपूर्ण है, हमने भारत सहित अपने सभी दूतावासों के प्रमुख की पुष्टि की है और हम संसद से उनके नाम की जल्द से जल्द पुष्टि करने का आग्रह करते हैं।’’
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने पिछले साल जुलाई में भारत में देश के राजदूत के तौर पर गार्सेटी को नामित किया था। आंतरिक जांच के दौरान गार्सेटी के नाम की पुष्टि पर रोक लगा दी गयी थी, जिससे भारत में ऐसे अहम वक्त में अमेरिका का शीर्ष राजनयिक पद खाली है जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया है। (भाषा)
तोक्यो, 17 मार्च । उत्तरी जापान के फुकुशिमा तट पर बुधवार रात को 7.4 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई और 90 से अधिक लोग घायल हो गए।
जापान के प्रधानमंत्री फुमिओ किशिदा ने बृहस्पतिवार सुबह संसद के एक सत्र में कहा कि भूकंप के दौरान चार लोगों की मौत हो गई, जबकि 97 अन्य घायल हुए हैं।
जापान मौसम विज्ञान एजेंसी ने बृहस्पतिवार तड़के फुकुशिमा और मियागी प्रांत के तटों पर सुनामी के लिए अपनी कम जोखिम वाली चेतावनी वापस ले ली है।
जापान मौसम विज्ञान एजेंसी ने बताया कि स्थानीय समयानुसार बुधवार रात 11 बजकर 36 मिनट पर आए भूकंप का केन्द्र समुद्र में 60 किलोमीटर की गहराई में था। यह क्षेत्र उत्तरी जापान का हिस्सा है, जो 2011 में नौ तीव्रता वाले विनाशकारी भूकंप और सुनामी से तबाह हो गया था। भूकंप के कारण परमाणु आपदा भी आई थी। (एपी)
-टिम बाउलर
यूक्रेन पर हमले के बाद और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की वजह से हो सकता है कि रूस उस हालत में पहुंच जाए जहां वो कर्ज चुकाने में डिफॉल्ट कर जाए.
अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में जारी किए गए दो बॉन्ड्स के निवेशकों को रूस को बुधवार को 117 मिलियन डॉलर का ब्याज चुकाना है. ये बॉन्ड्स डॉलर के लिए जारी किए गए थे.
लेकिन रूस का 630 बिलियन डॉलर का विदेश मुद्रा भंडार इस समय फ्रीज कर दिया गया है.
क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों ने भी चेतावनी दी है कि रूस का अपने कर्ज़ों की अदायगी में 'डिफॉल्टर होना तय' है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि वो रूस की कर्ज चुकाने में नाकामी के असर को लेकर चिंतित ज़रूर हैं लेकिन वो ये नहीं मानते कि इससे कोई वैश्विक वित्तीय संकट खड़ा होने वाला है.
रूस कर्ज़ चुकाने में क्यों नाकाम हो सकता है?
रूस की सरकार और गज़प्रोम, ल्युकऑइल, स्बेरबैंक जैसी सरकारी कंपनियों पर विदेशी निवेशकों का 150 अरब डॉलर का कर्ज़ है.
इनमें से ज़्यादातर कर्ज़ों की देनदारी डॉलर या फिर यूरो में है. और चूंकि रूस के कारोबारी संस्थान प्रतिबंध की वजह से विदेश में मौजूद अपने डॉलर या यूरो वाले खातों का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.
अगर रूस कर्ज़ों की वक़्त पर अदायगी में नाकाम रहता है तो साल 1998 के बाद पहली बार ऐसा होगा कि वो डिफॉल्ट करेगा.
विदेशी मुद्रा में लिए गए कर्ज़ को चुकाने के मामले में भी साल 1917 की क्रांति के बाद ये रूस पहली बार डिफॉल्टर होने जा रहा है. तब नई बॉल्शेविक सरकार ने पिछले बरस के कर्ज़ों को चुकाने से इनकार कर दिया था.
अगर रूस रूबल में भुगतान करता है तो क्या होगा?
रूस के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि अगर उसे डॉलर या यूरो में भुगतान करने से रोका गया तो वो अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को रूबल में भुगतान करना चाहेगा.
लेकिन दिक्कत ये है कि डॉलर में जारी किए गए जिन दो बॉन्ड्स के लिए बुधवार को भुगतान किया जाना है, उसमें किसी और मुद्रा में पैसा देने का कोई प्रावधान नहीं है.
लेकिन रूस के अन्य ऋण समझौतों में ये प्रावधान है कि अन्य मुद्रा में भुगतान किया जा सकता है. ऐसा हुआ तो कर्ज़ों के भुगतान में रूबल का सहारा लिया जा सकता है.
लेकिन ये इस बात पर निर्भर करेगा कि रूबल में भुगतान क्या डॉलर या यूरो के उसी वैल्यू के साथ किया जाएगा जिसकी निवेशकों को उम्मीद होगी.
रूस में निवेशकों ने हाल के दिनों में देखा है कि उनके निवेश के मूल्य में गिरावट दर्ज की गई है.
दिक्कत ये है कि रूस की वित्तीय स्थिति इतनी तेज़ी से बिगड़ी है कि कुछ लोगों को मौका ही नहीं मिला कि वे अपने निवेश को बेच सकें.
क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडी का कहना है कि 21 प्वॉयंट के रेटिंग स्केल बताता है कि निवेश के लिहाज से कोई देश कितना सुरक्षित है. रूस इस पैमाने पर नीचे से दूसरे स्थान पर आ गया है और वो इससे भी नीचे जा सकता है.
मूडी के चीफ़ क्रेडिट ऑफ़िसर कोलिन एलिस ने बीबीसी से कहा, "हम ये संकेत दे रहे हैं कि हमें ना सिर्फ रूस के कर्ज ना चुकाने का अंदेशा है बल्कि हम निवेशकों को ये भी बता रहे हैं कि उन्हें कितना नुकसान हो सकता है. वो अपने निवेश का 35 से 65 प्रतिशत तक गंवा सकते हैं."
अधिकारिक तौर पर कर्ज ना चुकाने का एक नतीजा ये हो सकता है कि कर्ज़ देने वाले दावे पेश करना शुरू कर सकते हैं. ये क्रेडिट स्वैप किसी इंश्यूरेंस की तरह काम करते हैं. कर्ज़दाता इन्हें एडवांस में ख़रीदते हैं ताकि किसी कंपनी या देश के कर्ज़ चुकाने में नाकाम रहने पर वो नुक़सान की भरपाई कर सकें.
आख़िरी बार रूस 1998 में क़र्ज़ चुकाने में नाकाम रहा था. तब इससे वैश्विक वित्तीय बाज़ार हिल गए थे. कैपिटल इकोनॉमिक्स के प्रमुख अर्थशास्त्री विलियम जैकसन के मुताबिक अभी यदि रूस डिफॉल्ट करता है तो ये सांकेतिक रूप से तो अहम होगा लेकिन इसका कोई वास्तविक असर शायद ही हो.
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि वो साल 2022 के लिए वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रगति के अपने 4.4 प्रतिशत रहने के पूर्वानुमान को युद्ध की वजह से घटा देगा. आईएमएफ़ की प्रमुख क्रिस्टेलीना जॉर्जीवा भी मानती हैं कि रूस के डिफॉल्ट होने का वैश्विक वित्तीय व्यवस्था पर व्यापक असर नहीं होगा.
हालांकि वो चेताती हैं कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से वहां अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट आ सकती है और साथ ही दुनियाभर में खाद्य पदार्थों और ऊर्जा के दाम बढ़ सकते हैं.
हालांकि यहां एक अज्ञात कारक ये है कि रूस की कंपनियों का क़र्ज़ डिफॉल्ट कितना बड़ा हो सकता है और इससे रूस में निवेश करने वालों पर क्या असर हो सकता है.
रूस इस समय जिन वित्तीय मुश्किलों और चुनौतियों का सामना कर रहा है, क़र्ज़ ना चुकाने से वो बढ़ेंगी ही.
यूक्रेन पर आक्रामण से पहले रूस को क़र्ज़ चुकाने के मामले में सबसे भरोसेमंद देशों में शामिल किया जाता था. रूस पर क़र्ज़ भी बहुत ज़्यादा नहीं था. लेकिन अब हालात नाटकीय ढंग से बदल गए हैं.
विदेशी कंपनियां बड़ी तादाद में रूस को छोड़ रही हैं, रूबल और अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए रूस ने पहले से ही पैसे के बाहर जाने पर सख़्त नियम लागू कर दिए हैं. हालांकि प्रतिबंधों की वजह से इस साल रूस की अर्थव्यवस्था 7 प्रतिशत तक सिकुड़ सकती है.
फ़रवरी में यूक्रेन पर आक्रामण से पहले यहां महंगई दर पहले से ही 9.15 प्रतिशत के उच्च स्तर पर भी. आशंका है कि इस साल इसमें और भी इज़ाफ़ा हो सकता है.
रूस की सेंट्रल बैंक ने क़र्ज़ पर ब्याज़ की दर को पहले ही 9.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 20 प्रतिशत कर दिया है. (bbc.com)
भारत में बहुत से लोग अपने बारे में लेख और वीडियो आदि इंटरनेट से हटवाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं. भुलाए जाने का अधिकार भारत में अब तक हासिल नहीं है.
उस बात को दस साल से भी ज्यादा बीत चुके हैं जबकि एक्टर आशुतोष कौशिक को शराब पीकर गाड़ी चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. वह उस बात को पीछे छोड़ देना चाहते हैं लेकिन इंटरनेट उन्हें ऐसा करने नहीं दे रहा. इसीलिए वह इंटरनेट से अपना इतिहास हटाए जाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं.
कौशिक ने पिछले साल दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी. उनकी मांग है कि उनकी गिरफ्तारी और अन्य घटनाओं से जुड़े लगभग 20 लेख और वीडियो इंटरनेट से हटा दिए जाएं. कौशिक की यह मांग बहुत से लोगों की इंटरनेट से अपना बीता हुआ कल हटाए जाने की इच्छा से जुड़ी है.
कौशिक के वकील अक्षत बाजपेयी कहते हैं, "मेरे मुवक्किल एक दशक से भी ज्यादा समय से बहुत छोटी सी घटना की सजा भुगत रहे हैं, जबकि उसके लिए वह कीमत चुका चुके हैं. क्यों ऐसा होना चाहिए जब भी कोई उनका नाम गूगल पर सर्च करे तो उन्हें उस घटना की दोबारा सजा मिले?”
दर्जनों याचिकाएं लंबित
कौशिक द्वारा दायर याचिका ऐसी ही दर्जनों याचिकाओं में से एक है जिनमें इंटरनेट से सूचनाएं हटाने की अपील की गई है. याचिकाकर्ताओं का दावा है कि ये सूचनाएं निजता या अभिव्यक्ति के अधिकार का उल्लंघन करती हैं या फिर अब इनकी जरूरत और प्रासंगिकता खत्म हो चुकी है.
बाजेयी कहते हैं कि जैसे सूचना का अधिकार जरूरी है, उतनी ही अहमियत भुलाए जाने के अधिकार की भी है. वह बताते हैं, "सूचना के अधिकार का भुलाए जाने के अधिकार के साथ तालमेल होना चाहिए. हर बार किसी का नाम गूगल करने पर छोटी-छोटी पुरानी बातें सामने आने से कौन सा सामाजिक भला हो रहा है?”
इस बारे में भारत में किसी तरह का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है. इस वजह से हाल के समय में कई अदालतों ने भुलाए जाने के अधिकार को निजता के अधिकार का ही एक अंग मानते हुए फैसले सुनाए हैं. 2017 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को मूलभूत अधिकार माना था. उसी आधार पर इंटरनेट पर अपनी सूचनाएं हटवाने को विभिन्न अदालतों ने निजता में निहित माना है.
अन्य देशों की स्थिति
सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण यह मुद्दा सिर्फ भारत में नहीं बल्कि कई अन्य देशों में भी विवाद का विषय बन चुका है. इसी के चलते कई देशों ने तो इस बारे में कानून भी पास किए हैं. यूरोप ने 2014 में ही भुलाए जाने के अधिकार को मान्यता दे दी थी. यह यूरोपीय संघ के जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेग्युलेशन (जीडीपीआर) का भी हिस्सा है. लेकिन 2019 में यूरोपीय संघ की सर्वोच्च अदालत ने एक फैसले में सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियों को यह छूट दे दी थी कि कहीं और उन्हें इस कानून को लागू करने की जरूरत नहीं है.
भारत में भी डाटा प्रोटेक्शन बिल लंबे समय से चर्चा में है. अधिकारी कहते हैं कि इस बिल में भुलाए जाने का अधिकार भी शामिल है लेकिन बिल ही काफी वक्त से लंबित है.
कौशिक ने अपनी याचिका में गूगल के एक प्रवक्ता का नाम भी लिया है. उस प्रवक्ता का कहना है कि गूगल के पास ऐसी व्यवस्था मौजूद है जिसके तहत कोई भी व्यक्ति ऐसी जानकारी को चिन्हित कर सकता है जो उसकी निजता का उल्लंघन करती है. प्रवक्ता के मुताबिक इस व्यवस्था में "स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करने वाली सामग्री को हटाने” का प्रावधान भी है. प्रवक्ता ने कहा, "हमारा मकसद हमेशा यह रहा है कि सूचना की सर्वोच्च सुलभता का समर्थन किया जाए.”
2014 में यूरोपीय संघ का फैसला आने के बाद गूगल के पास लोगों द्वारा सूचनाएं हटाने के 12 लाख से ज्यादा आग्रह आए थे. इन आग्रहों में 48 लाख लिंक थे जो राजनेताओं और मशहूर हस्तियों से लेकर आम लोगों तक ने भेजे थे.
सर्च इंजन चलाने वाली कंपनियों की यह जिम्मेदारी है कि "अनुचित और अप्रासंगिक” जानकारियां देने वाले लिंक को जनहित को ध्यान में रखते हुए हटा दे. गूगल के डाटा के मुताबिक आग्रहों में से लगभग आधे लिंक हटा दिए गए. अन्य देशों में भी इस बारे में नियम बनाए गए हैं. मसलन, रूस में कुछ मामलों में सूचनाएं इंटरनेट से हटाई जा सकती हैं. स्पेन, अर्जेंटीना और अमेरिका ने भी कुछ मामलों में भुलाए जाने के अधिकार को मान्यता दी है.
जिंदगी पर असर
भारत में सूचनाएं हटवाने की ज्यादातर याचिकाएं ऐसे लोगों ने की हैं जिन्हें किसी अपराध में सजा हुई और उन्होंने अपनी सजा भुगती. कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके बारे में सूचनाएं उनकी इजाजत के बिना प्रकाशित की गईं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन पुरानी सूचनाओं के कारण उनकी छवि, करियर और शादियां तक प्रभावित होती हैं.
कौशिक कहते हैं, "जब मैं शराब पीकर गाड़ी चलाने के लिए गिरफ्तार हुआ था तो 26-27 साल का था. अब मैं 42 साल का हूं और अब तक सजा भुगत रहा हूं. उन ऑनलाइन रिपोर्टों ने मेरे परिवार को प्रभावित किया और मेरा करियर भी. मेरी एक सार्वजनिक जिंदगी है लेकिन निजी जिंदगी भी तो है. निजता मेरा भी अधिकार है.”
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की अनंदिता मिश्रा कहती हैं कि कानून ना होने के कारण अदालतों की अपनी सीमाएं हैं क्योंकि किसी सूचना को हटाने की बात करते ही वैध जनहित, सूचना का अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी जैसे मुद्दे खड़े हो जाते हैं. मिश्रा कहती हैं कि भुलाए जाने का अधिकार कई और बड़ी समस्याओं को जन्म दे सकता है.
आईएफएफ का कहना है, "हमारा रुख है कि अगर कोई सूचना पब्लिक रिकॉर्ड में है तो उस पर निजता का अधिकार लागू नहीं होता और जब तक डाटा प्रोटेक्शन कानून नहीं बनता, तब तक कोर्ट का रिकॉर्ड पब्लिक रिकॉर्ड है.” यानी जब तक यह कानून नहीं बन जाता, तब तक लोगों को हर मामले में अलग-अलग कानूनी लड़ाई लड़नी होगी. यह लंबी और दुरूह लड़ाई हर बार जीती भी नहीं जाएगी.
वीके/एए (रॉयटर्स)
अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री मार्क वांडे हइ तकरीबन एक साल से अंतरिक्ष में हैं. उनके काम का शायद सबसे मुश्किल वक्त अब आया है, जब रूस के साथ चल रहे तनाव के दौर में उन्हें धरती पर वापसी करनी है.
अंतरिक्ष यात्री मार्क वांडे हई को एक रूसी कैप्सूल में धरती पर वापसी करनी है. अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा इस बात पर अड़ी है कि उनकी वापसी पहले से तय समय पर हो. उनकी वापसी मार्च के आखिर में प्रस्तावित है. रूस के यूक्रेन पर हमले का एक नतीजा अंतरिक्ष अभियानों के टलने और करारों के रद्द होने के साथ ही जुबानी जंग के रूप में भी नजर आया है.
अंतरिक्ष स्टेशन के भविष्य पर सवाल
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के भविष्य को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं. रूसी अंतरिक्ष एजेंसी के प्रमुख और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबीदमित्री रोगोजिन ने हाल ही में कई कठोर बातें कही हैं. बहुत से लोग इस बात पर चिंता जता रहे हैं कि रोगोजिन कई दशकों से धरती के बाहर चल रहे साझे शांतिपूर्ण अभियानों को अपने बयानों से खतरे में डाल रहे हैं.
अंतरिक्ष यात्री वांडे हई को रूसी सोयूज कैप्सूल के सहारे धरती पर वापस आना है. ऐसे में उनकी वापसी को लेकर चिंताएं स्वाभाविक हैं. मंगलवार को वांडे हई ने एक बार में सबसे ज्यादा समय तक अंतरिक्ष में रहने का अमेरिकी रिकॉर्ड बनाया है जो 340 दिन का है. दुनिया के लिए यह रिकॉर्ड 438 दिन का है जो अब भी रूसी अंतरिक्ष यात्री के नाम है. वापस लौटने तक हाइ इस रिकॉर्ड को 355 दिन तक पहुंचा देंगे. हालांकि फिलहाल सबकी नजर उनकी वापसी पर है.
नासा के रिटायर हो चुके अंतरिक्ष यात्री स्कॉट केली के पास अब तक सबसे ज्यादा समय अंतरिक्ष में बिताने का अमेरिकी रिकॉर्ड था. केली यूक्रेन में हो रहे युद्ध से काफी नाराज हैं. उन्होंने अंतरिक्ष में खोज के लिए मिले रूसी मेडल को भी वापस कर दिया है. हालांकि भारी तनाव के बावजूद केली का मानना है कि दोनों पक्ष अंतरिक्ष में साथ मिल कर काम कर सकते हैं. केली का कहना है, "हमें उदाहरण पेश करने की जरूर है कि दोनों देश, जो ऐतिहासिक रूप से बहुत दोस्ताना नहीं रहे हैं, फिर भी किसी जगह पर शांति से काम कर सकते हैं. और वो जगह है अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन. यही वजह है कि हमें इसको बनाए रखने के लिए संघर्ष करना होगा."
कब तक चलेगा अंतराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन?
नासा अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को 2030 तक चालू रखना चाहती है. यूरोपीय, जापानी और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसिया भी यही चाहती हैं. लेकिन रूसी एजेंसी ने 2024 के बाद इसे बनाए रखने के लिए कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखाई है.
अमेरिका और रूस इस स्टेशन के मुख्य ऑपरेटर हैं. 2020 में स्पेस एक्स ने अंतरिक्ष यात्रियों को स्टेशन पर भेजना शुरू किया. उससे पहले तक अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नियमित रूप से रूसी सोयूज कैप्सूल के सहारे ही वहां जाते रहे और हर बार एक-एक सीट के लिए रूस को करोड़ों डॉलर की फीस दी जाती. रूस और अमेरिकी की अंतरिक्ष एजेंसियां अब भी लंबे समय के लिए आपसी सहयोग के तंत्र पर काम कर रही हैं. इसके तहत रूसी एजेंसी स्पेस एक्स के कैप्सूल को लॉन्च करेगी और अमेरिकी यात्री सोयूज से जाएंगे. इससे स्टेशन में अमेरिका और रूस की मौजूदगी हमेशा बनी रहेगी.
अंतरिक्ष में यूक्रेन युद्ध पर चर्चा
55 साल के वांडे हई सेना से रिटायर्ड अधिकारी हैं. पिछले साल अप्रैल में वह अंतरिक्ष स्टेशन में गए थे. उनके साथ रूस के प्योत्र दुब्रोव और दूसरे अंतरिक्ष यात्री भी थे. हई और दुब्रोव ने वहां सामान्य से दोगुना ज्यादा समय बिताया है. ताकि एक रूसी फिल्म क्रू को जगह दी जा सके. यह फिल्म क्रू अक्टूबर में वहां गया था.
अंतरिक्ष स्टेशन में तो फिलहाल सब ठीक ही चल रहा है. लेकिन वहां से करीब 420 किलोमीटर नीचे धरती पर हालात बिगड़ गए हैं. वांडे हई ने माना है कि वह यूक्रेन के बारे में दुब्रोव और रूसी कमांडर एंटन शकाप्लेरोव से बातचीत नहीं कर रहे हैं. तीन और रूसी अंतरिक्ष यात्री इस शुक्रवार कजाखस्तान से अंतरिक्ष स्टेशन के लिए उड़ान भरने वाले हैं, जो उनकी जगह लेंगे.
वांडे हाइ ने फरवरी के मध्य में एक टीवी चैनल के साथ इंटरव्यू में कहा था, "हमने इस बारे में बहुत ज्यादा बात नहीं की है. मुझे यकीन है कि हम सचमुच वहां नहीं जाना चाहते."
नासा के मुताबिक, अंतरिक्ष स्टेशन का कामकाज अंतरिक्ष में और धरती पर पहले की तरह ही चल रहा है. नासा की ह्यूमन स्पेसफ्लाइट चीफ काथी लॉयडर्स का कहना है, "अगर हम अंतरिक्ष में अपना अभियान शांतिपूर्ण तरीके से जारी नहीं रख सके तो अंतरराष्ट्रीय अभियानों के लिए वह दुखद दिन होगा."
हई के लिए सोयूज का विकल्प
मंगलवार को बने रिकॉर्ड की ओर ध्यान दिलाने के लिए नासा ने ट्विटर पर लोगों से वीडियो के जरिए सवाल पूछने को कहा. कुछ लोगों ने पूछा है कि क्या वांडे हाई वापसी के लिए अमेरिकी यान चुन सकते हैं? नासा के स्पेश स्टेशन प्रोग्राम मैनेजर जोएल मोंटाल्बानो ने सोमवार को एक प्रेस ब्रीफिंग के दौरान कहा कि रूसी स्पेस एजेंसी ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि वो वांडे हई और दो दूसरे रूसी अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाएंगे. नासा का एक जहाज और छोटी टीम कजाखस्तान से वांडे हाई को ह्यूस्टन ले जाने के लिए हमेशा की तरह वहां जाने की तैयारी में है.
सहयोग पर प्रतिबंधों का साया
नासा के पूर्व अंतरिक्ष यात्री हाइडमैरी स्टेफानिशिन पाइपर के पिता यूक्रेन में जन्मे थे. वो मानती हैं कि मौजूदा परिस्थिति कठिन है. पाइपर ने कहा, "हम रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं, कंपनियां रूस से कारोबार समेट रही हैं लेकिन अब भी अमेरिकी सरकार, स्पेस एजेंसी रूस के साथ कारोबार कर रहे हैं." उनका कहना है अंतरिक्ष स्टेशन के दो हिस्सों को "एकदम से अलग करने के लिए हमारे पास कोई बटन नहीं है."
अंतरिक्ष स्टेशन से बाहर निकल कर इसे अमेरिका, यूरोप या कहीं और गिराने की धमकियों के अलावा, रोगोजिन ने इस महीने इंटरनेट सेटेलाइट लेकर जाने वाले सोयूज रॉकेट पर दूसरे देशों के झंडों को ढंकवा दिया था.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी भी असमंजस में है. रूस के साथ मिल कर तैयार हुए मार्स रोवर को लॉन्च करने की समय सीमा साल 2020 तय की गई थी. इसे इस साल सितंबर में भेजने की कोशिश भी खटाई में पड़ गई है. मौजूदा हालात देखकर संभावना कम नजर आती है कि 2024 से पहले मंगल ग्रह पर इसे भेजा जा सकेगा.
वहीं रूस ने दक्षिण अमेरिका में फ्रांस की लॉन्च साइट से अपने स्टाफ वापस बुला लिया है. इसके साथ ही यूरोपीय सेटेलाइटों के लिए सोयूज की लॉन्चिंग भी निलंबित कर दी है. इसके बाद रूसी सरकार ने नवंबर में एंटीसेटेलाइट मिसाइल का भी परीक्षण किया है. इसकी वजह से पहले से ही अंतरिक्ष में मौजूद कचरे की मात्रा और ज्यादा बढ़ गई. इस वजह से कई दिनों तक स्पेश स्टेशन में मौजूद सात अंतरिक्ष यात्रियों को अलर्ट पर रहना पड़ा.
रूस, अमेरिका का अंतरिक्ष में सहयोग कब तक चलेगा?
जेफ्री मैनबर ने 1990 के दशक में अमेरिका और रूस के बीच सहयोग बढ़ाने में मदद की थी. उनके प्रयासों के चलते 1998 में दोनों देशों ने स्पेस स्टेशन का पहला हिस्सा लॉन्च किया गया. वह इसे दोनों देशों के सहयोग का ऐसा प्रारूप मानते हैं जो तमाम विरोधों के बावजूद काम करता रहा है. हालांकि उनका यह भी कहना है, "अगर समझौता टूट जाता है तो फिर वापसी का कोई रास्ता नहीं बचेगा और इसका नतीजा आईएसएस प्रोग्राम के समय से पहले खत्म होने के रूप में सामने आएगा."
कई विशेषज्ञों का मानना है कि स्पेस स्टेशन पर क्या होता है, उसकी परवाह ना करें तो भी रूस और पश्चिमी देशों के बीच लंबे समय के अंतरिक्ष सहयोग की गुंजाइश अब कम ही है. जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन लांग्सडन कहते हैं, "रूस पहले ही चीन की तरफ बढ़ रहा है, मौजूदा स्थिति उधर जाने की गति और तेज कर देगी."
वांडे हाई तो ट्विटर पर खामोश हैं लेकिन दूसरे लोग रोगजिन की धमकियों का जवाब दे रहे हैं. रोगोजिन ने कहा था कि रूस अमेरिकी कंपनियों को रॉकेट के इंजिन की सप्लाई बंद कर देगा. साथ ही कहा कि अमेरिकी कंपनियां झाड़ू की तीलियों के सहारे ऑर्बिट में जा सकती हैं. पिछले हफ्ते स्पेस एक्स ने लॉन्च के वक्त आधिकारिक रूप से कहा था, "अमेरिकी झाड़ू की तीलियों के उड़ने का वक्त आ गया है और आजादी की आवाज सुनाई दे रही है."
एनआर/आरएस (एपी)
यूक्रेन और रूस के बीच 21वें दिन भी लड़ाई जारी है. रूस कीएव पर नियंत्रण के लिए लगातार कोशिशें कर रहा है लेकिन उसे विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है. वहीं, दोनों देशों के बीच शांति वार्ता भी चल रही है लेकिन फिलहाल कोई समाधान नहीं निकला है.
आइये जानते हैं इस बीच यूक्रेन में बीते कुछ घंटों में कैसे रहे हालात:
- ·यूक्रेन के कई शहरों में हवाई हमलों से पहले सायरन बज रहे हैं.
- ·रूस और यूक्रेन के बीच शांति वार्ता के चौथे दौर में कुछ प्रगति नज़र आई है. यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने शांति वार्ता को लेकर कहा कि अब लग रहा है कि रूस के साथ 'असल बातचीत' हो रही है.
- स्लोवेनिया,चेक रीपब्लिक और पोलैंड के प्रधानमंत्री यूक्रेन को अपना समर्थन देने के लिए ट्रेन से यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की से मिलने ट्रेन से कीएव पहुंचे.
- स्लोवेनिया के प्रधानमंत्री ने यूक्रेन के लोगों को संबोधित करते हुए कहा, “आप लोग अकेले नहीं हैं. आपकी लड़ाई हमारी भी लड़ाई है.”
- यूक्रेन की राजधानी कीएव में अब भी बमबारी जारी है और वहां 35 घंटों का कर्फ्यू भी लग चुका है. हवाई हमलों में मंगलवार को कम से कम 5 लोग मारे गए.
- मारियुपोल के मेयर ने बताया कि वहां रूसी सैनिकों ने 400 डॉक्टरों और मरीज़ों को बंधक बना लिया है.
- अमेरिका यूक्रेन को सैन्य सहायता देने के लिए 1 बिलियन डॉलर की मदद दे सकता है.
- संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि युद्ध की शुरुआत से हर दिन 70,000 बच्चे शरणार्थी बन जाते हैं. यूक्रेन से आने वाले शरणार्थियों की संख्या अब 30 लाख से भी ज़्यादा हो चुकी है.
- रूस ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन पर प्रतिबंध लगाए हैं. ये प्रतिबंध अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन, रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और सीआईए प्रमुख विलियम बर्न्स पर भी लागू होंगे. (bbc.com)
वाशिंगटन, 15 मार्च । दवा निर्माता कंपनी फाइजर इस सप्ताह वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोविड-रोधी टीके की अतिरिक्त बूस्टर खुराक की मंजूरी के लिए आवेदन कर सकती है। सूत्रों ने यह जानकारी दी है।
मंजूरी मिलने की सूरत में यह महामारी से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले 65 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लोगों को संक्रमण से बचाव के लिए टीके की चौथी खुराक होगी क्योंकि अब तक टीके की दो खुराक देने के बाद बूस्टर खुराक दी जाती है।
सूत्र ने कहा कि इस बात की पूरी संभावना है कि खाद्य एवं औषधि प्रशासन और रोग नियंत्रण केंद्र इस आवेदन को मंजूरी दे सकता है।
फाइजर की प्रवक्ता जेरिका पिट्स ने कहा, 'हमने सभी उपलब्ध आंकड़े एकत्र करना और उनका आकलन करना जारी रखा है और हम वायरस से निपटने के लिए कोविड-19 टीका रणनीति बनाने के मद्देनजर लगातार नियामकों और स्वास्थ्य अधिकारियों के साथ संवाद कर रहे हैं।'(एपी)
न्यूयॉर्क (अमेरिका), 16 मार्च। यूक्रेन में ‘फॉक्स न्यूज’ के लिए काम करने वाले एक अनुभवी वीडियोग्राफर और 24 वर्षीय एक यूक्रेनी पत्रकार की मौत हो गई है। कीव के बाहर उनके वाहन में आग लग गई थी।
पियरे ज़कर्ज़वेस्की (55) और ऑलेक्ज़ेंड्रा ‘साशा’ कुवशिनोवा सोमवार को होरेन्का में फॉक्स न्यूज के पत्रकार बेंजामिन हॉल के साथ यात्रा कर रहे थे। हॉल अभी अस्पताल में भर्ती हैं।
नेटवर्क की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) सुजैन स्कॉट ने मंगलवार को कर्मचारियों को जारी किए गए एक ज्ञापन में कहा, ‘‘ आज फॉक्स न्यूज मीडिया के लिए और उन सभी पत्रकारों के लिए बेहद दुखद दिन है, जो खबर दिखाने के लिए अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।’’
वृत्तचित्र फिल्म निर्माता ब्रेंट रेनॉड की भी रविवार को युद्ध क्षेत्रों को कवर करते समय मौत हो गई थी। रूसी सेना ने कीव के बाहर इरपिन में उनके वाहन पर गोलियां चला दी थीं।
रूस के यूक्रेन पर हमला करने के बाद से युद्ध संबंधी खबरों को कवर कर रहे तीन पत्रकारों की मौत हो चुकी है। (एपी)
कीव, 15 मार्च (एपी)। यूक्रेन की राजधानी के एक रिहायशी इलाके में मंगलवार को रूस ने कई हवाई हमले किए, जिससे कीव में 15 मंजिला एक इमारत में आग लग गई। हमले में कम से कम एक व्यक्ति की मौत हो गयी और कई अन्य के इमारत में फंसे होने की आशंका है।
यूक्रेनी सेना ने एक बयान में बताया कि तोपों से गोले दागे गए, जो पश्चिमी कीव में स्वयातोशनस्की जिले और उपनगर इरपिन के निकट गिरे। हमले के बाद इमारत से आग की लपटें निकलती देखी गईं और कई दमकल कर्मी सीढ़ियों पर चढ़कर आग बुझाने की कोशिश में लगे हैं।
घटनास्थल पर मौजूद एक दमकलकर्मी ने हादसे में एक व्यक्ति के मारे जाने की पुष्टि की है। कई लोगों को वहां से निकाला गया है। अब भी इमारत में कई लोगों के फंसे होने की आशंका है और दमकल कर्मी उन्हें निकालने के लिए लगातार मशक्कत कर रहे हैं।
कीव क्षेत्र के प्रमुख ओलेक्सी कुलेबा ने यूक्रेनी टेलीविजन को बताया कि रूस ने उत्तर-पश्चिमी उपनगर इरपिन, बुका और होस्तोमेल में भी रात भर हमले किए।
यूक्रेन के सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ ने ‘फेसबुक’ पर बताया कि रूसी सेना ने मंगलवार को दक्षिण में बंदरगाह शहर मारियुपोल पर कब्जा करने की कोशिश एक बार फिर शुरू की और पूर्व में खारकीव शहर पर तोपों से फिर गोले दागे।
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स तुर्की की संक्षिप्त यात्रा पर अंकारा पहुंचे हैं. यहां उन्होंने तुर्क राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान से मुलाकात की है. चांसलर बनने के बाद वो पहली बार तुर्की पहुंचे हैं.
शॉल्त्स और एर्दोवान की बातचीत में प्रमुख रूप से रूस और यूक्रेन युद्ध पर चर्चा हुई है. तुर्क राष्ट्रपति के कार्यालय से जारी बयान में कहा गया है कि यूक्रेन के अलावा दोनों नेता तुर्की और यूरोपीय संघ के रिश्तों के साथ ही आपसी संबंधों पर भी बातचीत करेंगे.
अंकारा पहुंचने के बाद जर्मन चांसलर ने कहा है कि उनका देश यूक्रेन को इस लायक बनाना चाहता है कि वो अपनी रक्षा कर सके. नाटो के सदस्य देश तुर्की का करीबी संबंध रूस और यूक्रेन दोनों से है. तुर्की ने दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की पिछले हफ्ते मुलाकात भी करवाई थी. हालांकि इससे कोई नतीजा नहीं निकला था. अब भी कूटनीतिक कोशिशें जारी हैं. शॉल्त्स ने यह भी कहा कि बातचीत
बड़ा कारोबारी रिश्ता
जर्मनी और तुर्की के बीच बड़ा कारोबारी रिश्ता है. 2021 में दोनों देशों के बीच कारोबार बढ़ कर 41 अरब यूरो के पार हो गया है. जर्मनी में तुर्क मूल के 30 लाख से ज्यादा लोग रहते हैं जिसकी वजह से दोनों देशों के आपसी रिश्ते प्रगाढ़ बने हुए हैं. हालांकि तुर्की में मानवाधिकार के खराब रिकॉर्ड की वजह से जर्मनी के साथ उसके रिश्तों में तनाव भी रहा है. तुर्की ने कई जर्मन पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार भी किया है.
जर्मनी ने तुर्की को यूरोप में आने वाले शरणार्थियों की संख्या को नियंत्रित करने में एक अहम सहयोगी माना है. हजारों लोग जो तुर्की से यूरोप आना चाहते हैं उन्हें वह रोक लेता है. जर्मन सरकार यह भी जानती है कि नाटो का सदस्य होने के कारण तुर्की रणनीतिक रूप से अहम स्थान रखता है.
सहयोग और आलोचना का संतुलन
पूर्व जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने अपने 16 साल के कार्यकाल में तुर्की के साथ रिश्ते में सहयोग और आलोचना के बीच कठिन संतुलन बनाए रखा. उन्होंने एर्दोवान से कई बार मुलाकात की और कार्यकाल खत्म होने से ठीक पहले आखिरी बार बीते अक्टूबर में तुर्की के दौरे पर गई थीं.
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स के लिए भी तुर्की के साथ संबंधों को निभाना एक चुनौती होगी. यूक्रेन के युद्ध से उपजी परिस्थितियां दोनों देशों के लिए चुनौती के साथ ही सहयोग का मौका भी लेकर आई हैं. तुर्की ने यूक्रेन पर हमले को अस्वीकार्य बताया है लेकिन रूस पर पश्चिमी देशों के लगाए प्रतिबंधों में शामिल नहीं हुआ है. तुर्की गैस और सैलानियों से होने वाली कमाई के लिए रूस पर निर्भर है.
जानकारों का कहना है कि पश्चिमी देश तुर्की से प्रतिबंधों में शामिल होने की उम्मीद नहीं कर रहे हैं. लेकिन इतना जरूर चाहते हैं कि वह कोई और नया ऐसा काम ना करे, जिससे कि रूस को प्रतिबंधों का सामना करने में मदद मिले. जर्मन चांसलर सोमवार की रात ही बर्लिन लौट आएंगे.
एनआर/आरएस(एपी, डीपीए)
यूक्रेन की राजधानी कीव के चारों तरफ और देश के लगभग सभी प्रमुख शहरों पर रूस का हमला जारी है. मारियोपोल की मैटर्निटी वार्ड पर हमले में एक गर्भवती महिला और उसके बच्चे की मौत हो गई है.
एक दिन पहले पोलैंड की सीमा पर हुए हमले के साथ ही यूक्रेन की जंग अब एक नाटो सदस्य देश की सीमा के करीब पहुंच गई. यहां रूस ने सेना के एक ट्रेनिंग बेस को निशाना बनाया है. यूक्रेनी अधिकारियों के मुताबिक, इस हमले में 35 लोगों की जान चली गई और 134 लोग घायल हुए हैं. यावोरिव मिलिट्री एकेडमी पर रविवार को 30 क्रूज मिसाइल दागे गए. पोलैंड के प्रधानमंत्री मातेउतस मोराविकी ने अपने यूक्रेनी और लिथुआनियाई समकक्षों के साथ एक न्यूज कांफ्रेंस में कहा कि सीमा के पास रूसी हमले का मकसद "आम लोगों में अफरातफरी मचाना था."
उधर रूसी सेना ने कहा है कि सोमवार को यूक्रेनी बैलिस्टिक मिसाइल के हमले में पूर्वी शहर दोनेत्स्क में 20 आम लोग मारे गए हैं. यूक्रेन ने इससे इनकार किया है. इस हमले की स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं हो पाई है. तीसरे हफ्ते में पहुंच चुके युद्ध की कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ रही है. मारियोपोल शहर के एक मैटर्निटी हॉस्पिटल में एक गर्भवती महिला और उसका बच्चा बमबारी का शिकार हुए. यहां महिला अपने बच्चे को जन्म देने आई थी. हमले के बाद महिला को बचाने के लिए दूसरे अस्पताल में ले जाए जाने की तस्वीरें बहुत विचलित करने वाली हैं.
कीव पर कब्जे की कोशिश
रूसी सेना ने कीव पर कब्जे की कोशिश सोमवार एक बार फिर तेज कर दी है. एक स्थानीय अधिकारी ने यूक्रेनी टेलिविजन पर बताया कि कीव के उपनगरों पर हवाई हमले और टैंकों से गोलाबारी की जा रही है. कीव के पूर्व में मौजूद ब्रोवरी के टाउन काउंसलर की इस हमले में मौत हो गई है. इर्पिन, बूचा और होस्तोमेल को भी भारी नुकसान हुआ है.
सोमवार सुबह एक नौ मंजिला इमारत हमले की चपेट में आ गई. इस हमले में दो लोगों की मौत हुई है. धमाके से इमारत की कई मंजिलों पर आग लग गई और कई अपार्टमेंट ध्वस्त हो गए. यहां करीब सात लोग घायल भी हुए हैं. रूसी सेना ने कीव की एयरप्लेन फैक्टरी को भी निशाना बनाया है.
यूक्रेनी राष्ट्रपति के कार्यालय ने बताया है कि हवाई हमलों में दक्षिण के प्रमुख शहर मिकोलाइव और पूर्वी शहर खारकीव की रिहायशी इमारतों को निशाना बनाया है. इसके साथ ही रीवने शहर में एक टेलिविजन टावर को ध्वस्त कर दिया गया है.
रविवार को एक अमेरिकी पत्रकार की मौत हो गई जबकि दूसरा घायल हो गया. इनकी कार रूसी हमले का शिकार बनी थी. संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि उसने अब तक 596 आम लोगों की मौत दर्ज की है. हालांकि उसका मानना है कि वास्तविक संख्या इससे बहुत ज्यादा है. यूक्रेन के मुख्य अभियोजन कार्यालय का कहना है कि मरने वालों में कम से कम 85 बच्चे भी हैं. रूसी रक्षा मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि उसकी सेना पिछले 24 घंटे में 11 किलोमीटर आगे बढ़ी है.
उम्मीद से धीमा रहा रूसी अभियान
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एक करीबी सहयोगी ने माना है कि रूस का सैन्य अभियान उतनी तेजी से नहीं चल सका जितना कि राष्ट्रपति चाहते थे. यह पहली बार है जब रूस ने अपने अभियान की कोई खामी जताई हो.
रूस के नेशनल गार्ड के प्रमुख विक्टर जोलोतोव पुतिन की सिक्योरिटी काउंसिल के सदस्य भी हैं. जोलोतोव ने यूक्रेन पर आरोप लगाया है कि धुर दक्षिणपंथी यूक्रेनी ताकतें आम लोगों की आड़ ले रही हैं. विक्टर जोलोतोव का कहना है, "मैं कहना चाहता हूं कि सारी चीजें उतनी तेजी से नहीं हो रही हैं जितना हम चाहते थे. लेकिन हम अपने लक्ष्य की ओर कदम दर कदम बढ़ रहे हैं." उनका यह बयान नेशनल गार्ड की वेबसाइट पर भी डाला गया है.
अमेरिका और उसके यूरोपीय सहयोगी पुतिन के हमले को पुराने जमाने की जमीन हथियाने जैसी कार्रवाई की संज्ञा दे रहे हैं. यह भी कह रहे हैं कि अब तक इस पर बहुत खराब तरीके से अमल हुआ है क्योंकि रूस ने यूक्रेन की ताकत को कम आंका था
हर तरफ हमला
इस बीच पश्चिमी यूक्रेन को तुलनात्मक रूस से सुरक्षित मान कर जो लोग उधर गए थे उन्हें भी अब देश के बाहर जाने पर मजबूर होना पड़ा है. सोमवार को पोलैंड की सीमा के पास हुए एक हमले के बाद देश से निकलने वाले लोगों की संख्या तेजी से बढ़ी है.
यूक्रेन का कहना है कि रविवार को सैन्य अड्डे पर हुए रूसी हमले में 35 लोगों की जान गई है. उधर रूस का कहना है कि करीब 180 "विदेशी लड़ाके" मारे गए और बड़ी संख्या में विदेशी हथियारों का भंडार नष्ट हुआ है. यूक्रेन ने देश के पश्चिमी हिस्से के एक एयरपोर्ट पर हवाई हमलों की भी खबर दी है.
रूस और यूक्रेन की बातचीत
यूक्रेन और रूस के बीच चल रही बातचीत फिलहाल मंगलवार तक के लिए रोक दी गई है. यूक्रेनी राष्ट्रपति के सलाहकार मिखाइलो पोडोल्या ने बताया है कि शीर्ष प्रतिनिधिमंडल स्तर की बातचीत कुछ तकनीकी कारणों से रोक दी गई है. हालांकि कार्यकारी समूहों के बीच बातचीत जारी है. दोनों पक्षों ने वीडियो लिंक के जरिए सोमवार को बातचीत शुरू की है. इससे पहले दोनों तरफ के प्रतिनिधिमंडल बेलारूस में तीन दौर की बातचीत कर चुके हैं.
यूक्रेन का कहना है कि उसने संघर्ष विराम पर कठोर बातचीत शुरू की है जिसमें रूसी सैनिकों को तुरंत हटाए जाने और रूस की तरफ से सुरक्षा गारंटी मिलने पर बातचीत की जा रही है. उधर रूस क्राइमिया को रूसी इलाके और अलगाववादी क्षेत्रों को स्वतंत्र गणराज्य घोषित करने की मांग कर रहा है.
दोनों पक्षों ने हफ्ते के आखिर में हुई बातचीत में दुर्लभ प्रगति का दावा किया है. इससे पहले की बातचीत में मुख्य रूप से रूसी सैनिकों के कब्जे वाले इलाकों से आम लोगों को निकालने और सहायता पहुंचाने पर ध्यान दिया जा रहा था. हालांकि इस दौरान हुए संघर्ष विराम आमतौर पर नाकाम ही रहे.
28 लाख शरणार्थी
रूसी हमले के बाद यूक्रेन से बाहर निकलने वाले शरणार्थियों की संख्या 28 लाख को पार कर गई है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों से यह पता चला है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पहली बार यूरोप में इतना बड़ा शरणार्थी संकट पैदा हुआ है. यूरोपीय संघ ने अनुमान लगाया है कि इस युद्ध के कारण 50 लाख लोग शरणार्थी बनने पर मजबूर हो सकते हैं हालांकि कुछ दूसरे संगठनों ने इससे ज्यादा लोगों की संख्या रहने का भी अनुमान लगाया है.
यूक्रेन के भीतर भी बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए हैं. ये लोग युद्ध वाले इलाकों को छोड़ लवीव जैसे शांत इलाकों की तरफ गए हैं.
52 साल की मिरोस्लाव पश्चिम में टेर्नोपिल के इलाके से अपना घर छोड़ कर भागी हैं. फिलहाल क्राकाओ के एक टर्मिनल पर खड़ी मिरोस्लाव कुछ मित्रों का इंतजार कर रही हैं. उन्हें नहीं पता कि कहां रहेंगी. मिरोस्लाव का कहना है, "हम कल हुए हमले की वजह से बाहर निकले. हम नहीं निकलना चाहते थे लेकिन हमला इतना पास आ गया कि हमने निकलने का फैसला किया."
शरणार्थियों की मदद
अधिकारी और वॉलंटियर पूरे मध्य और पूर्वी यूरोप में लोगों को भोजन, आवास और इलाज की सुविधा मुहैया कराने में जुटे हैं. शरणार्थियों की करीब आधी संख्या ने पोलैंड का रुख किया है इसके अलावा स्लोवाकिया, रोमानिया, हंगरी और मोल्दोवा में भी बड़ी संख्या में शरणार्थी आए हैं. यहां से ये लोग पश्चिम के दूसरे देशों की ओर जा रहे हैं. जर्मनी में अब तक करीब 1.5 लाख लोगों ने खुद को शरणार्थी के रूप में दर्ज कराया है.
पोलैंड के बॉर्डर गार्ड के मुताबिक अब तक करीब 17.6 लाख लोगों ने सीमा पार की है. सोमवार सुबह ही करीब 18,400 लोग यूक्रेन से पोलैंड आए हैं. अनुमान है कि इनमें से करीब 10 लाख लोग पोलैंड में ही हैं. पश्चिमी की ओर थोड़ा और आगे के देश जैसे चेक रिपब्लिक और लिथुआनिया में भी बड़ी संख्या में शरणार्थी आ रहे हैं.
आम लोगों को बाहर निकालने की कोशिश
यूक्रेन ने कहा है कि वह 10 मानवीय गलियारों के सहारे ज्यादा से ज्यादा आम लोगों को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा है. रूस ने इस बात से इनकार किया है कि वह आम लोगों को निशाना बना रहा है. उसका अब भी यही कहना है कि वह एक विशेष सैन्य अभियान चला रहा है जिसका मकसद यूक्रेन को "असैन्य" और "नाजीवादरहित" करना है. यूक्रेन और पश्चिमी देश इसे 4.4 करोड़ की आबादी वाले लोकतांत्रिक देश पर हमले का आधारहीन कारण बता रहे हैं.
दक्षिणी यूक्रेन के मिकोलाइव शहर की एक शरणार्थी अलेना कासिन्यास्का ने कहा, "घर उड़ाए जा रहे हैं, लोगों के पास रहने को जगह नहीं है, हम सब डरे हुए हैं." कासिन्यास्का डैन्यूब डेल्टा को पार कर रोमानिया पहुंची हैं.
येवजिनी ल्यामिन जॉर्जिया की संसद के बाहर कपड़ों और भोजने से भरे डिब्बे यूक्रेन के लिए जा रहे ट्रक पर रख रहे हैं.
ल्यामिन रूस के उन 25 हज़ार लोगों में से एक हैं जो यूक्रेन पर हमले के बाद देश छोड़कर जॉर्जिया पहुँचे हैं. जॉर्जिया के बड़े शहरों में रहने की किफ़ायती जगह खोजने के लिए रूसी लोगों को मशक्कत करनी पड़ रही है.
कई लोग तो राजधानी तिबलिसी की सड़कों पर अपने सूटकेस और पालतू जानवरों के साथ भटकते दिख रहे हैं.
ल्यामिन के कोट पर नीले और पीले रंग का फीता लगा हुआ है. ये यूक्रेन के झंडे का भी रंग है. इन्हीं फीतों के कारण वो यूक्रेन पर हमले के अगले दिन रूस में युद्ध के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान गिरफ़्तार हुए थे.
राजनीति शास्त्र में स्नातक 23 साल के ल्यामिन कहते हैं, "मैं समझ गया था कि पुतिन के शासन के ख़िलाफ़ कार्रवाई का सबसे अच्छा तरीका मेरा रूस छोड़ देना है. यूक्रेन के लोगों की मदद के लिए हर संभव प्रयास करना मेरी ज़िम्मेदारी है."
रूस छोड़कर जाने वाले लोग सिर्फ़ जॉर्जिया तक ही सीमित नहीं है. यूरोपियन यूनियन, अमेरिका, यूके और कनाडा ने रूस के लिए अपने वायुक्षेत्र को बंद कर दिया है, इसलिए ये लोग तुर्क़ी, मध्य एशिया और दक्षिण कराकस जैसी उन जगहों पर जा रहे हैं, जहां अभी भी उड़ानों को बंद नहीं किया गया. बहुत से लोग तो आर्मीनिया भी चले गए हैं.
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रूस के 2 लाख़ से ज़्यादा नागरिकों ने छोड़ा देश
रूस के एक अर्थशास्त्री का अनुमान है कि युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक तक़रीबन 2 लाख़ नागरिक देश छोड़कर चले गए हैं.
बेलारूस के लोग भी इसी रास्ते पर हैं. दमनकारी नीतियों और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मदद करने को लेकर अलेक्ज़ेंडर लुकाशेंको की सरकार पर पश्चिम देशों के प्रतिबंधों से तंग आकर बेलारूस के नागरिक भी दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं.
इसका असर ये हुआ है कि न केवल विमान का किराया बढ़ गया है बल्कि इस्तांबुल और आर्मीनिया की राजधानी येरेवन जैसे बड़े शहरों में भी रहने के ठिकानों के लिए ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ रही है.
अपना पूरा नाम न बताने की शर्त पर आन्या ने कहा, "इस्तांबुल जाने के लिए विमान का एक तरफ़ का क़िराया मेरे और मेरे पति की पूरे महीने की तनख्वाह के बराबर था."
आन्या ने रूस छोड़ने का निर्णय तब लिया जब रूस में देशद्रोह को लेकर नया कानून आया. इसके तहत यूक्रेन का समर्थन करने वालों को 20 साल तक की जेल की सज़ा का प्रावधान किया गया है और आन्या को लगता है कि वो भी इसका निशाना बन सकती हैं.
उन्होंने कहा, "बंद सीमाओं का डर, राजनीतिक दमन और जबरन सैन्य सेवा हमारे डीएनए में है. मुझे याद है कि मेरी दादी हमें कहानियां सुनाया करती थीं कि कैसे वो लोग स्टालिन के समय में भी इसी डर के माहौल में जीते थे."
देश छोड़ने वालों में से अधिकांश तकनीकी क्षेत्र में काम कर रहे हैं और ये सुदूर इलाकों से भी अपना काम कर सकते हैं.
तिबलिसी के एक कैफ़े में मिले वीडियो गेम डेवलेपर ने मुझसे कहा कि वो और उनके जानने वाले अधिकतर लोग रूस की नीतियों से असहमत हैं और उन्हें पता है कि अब किसी भी प्रदर्शन को बुरी तरह दबा दिया जाएगा.
आईगॉर (नकली नाम) ने हमसे कहा, "अब विरोध जताने का केवल एक ही तरीका है कि हम देश छोड़ दें, अपना पैसा और कौशल अपने साथ लेकर निकल जाएं. हमारे आसपास लगभग सभी ने यही फैसला लिया है." हालांकि, आईगॉर जॉर्जिया की राजधानी भी छोड़ने की योजना बना रहे हैं क्योंकि उन्हें यहां अच्छा महसूस नहीं हो रहा.
एयरबीएनबी से जुड़े होस्ट की ओर से रूस और बेलारूस के नागरिकों को रहने के ठिकाने देने से इनकार करने से जुड़ी कई रिपोर्ट सामने आ चुकी हैं.
एयरबीएनबी के एक होस्ट ने बेलारूस के एक कपल से कहा, "मैं रूस और बेलारूस के लोगों को अपने यहां नहीं रखता. आपके पास छुट्टियां मनाने का समय नहीं है. अपनी भ्रष्ट सरकारों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाइए."
आईगॉर ने शिकायती लहज़े में कहा, "उन्हें लगता है कि हम रूस से सिर्फ़ इसलिए भागे क्योंकि ऐपल पे अब वहां काम नहीं कर रहा. हम अपने आराम के लिए नहीं भाग रहे, हमने वहां अपना सबकुछ खो दिया. हम शरणार्थी हैं. पुतिन की भूराजनीति ने हमारी ज़िदगियां बर्बाद कर दी."
तिबलिसी पब्लिक सर्विस हॉल में पहुंचने वाले नए लोग बिज़नेस या मकान के लिए पंजीकरण करवा रहे हैं.
बेलारूस की राजधानी मिंस्क की आईटी स्पेशलिस्ट क्रिस्टीना निकिता ने आंत्रप्रन्योर के तौर पर पंजीकरण करवाया है. इसके ज़रिए वो जॉर्जिया के बैंक में ख़ाता खुलवा सकेंगी.
क्रिस्टीना कहती हैं, "हम अपनी सरकारों का समर्थन नहीं करते, इसलिए ही हम भाग गए. हम यहां सुरक्षित रहना चाहते हैं. लेकिन हमें केवल हमारी नागरिकता की वजह से परेशान किया जा रहा है. मुझे अपने देश का नाम छिपाने की ज़रूरत है. जब लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं कहां से हूं तो मैं असहज हो जाती हूं."
यूक्रेन में युद्ध के शुरू होते ही तिबलिसी में यूक्रेन के समर्थन में कई विशाल रैलियां हुईं. हाल में हुए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 87 फ़ीसदी जॉर्जियाई नागरिकों का मानना है कि यूक्रेन में हो रहा युद्ध उनकी रूस से अपनी जंग जैसा है.
लेकिन जॉर्जिया के बहुत से नागरिकों को यूं बड़ी संख्या में रूसी नागरिकों का अपने देश में आना खास पसंद नहीं आ रहा. क्योंकि अभी जॉर्जिया पर रूस के आक्रमण को 14 साल से भी कम समय बीता है.
कुछ लोगों को ये भी डर है कि राष्ट्रपति पुतिन ये दावा कर सकते हैं कि विदेश में रह रहे रूसी नागरिकों को सुरक्षा की ज़रूरत है. इसी बहाने से पुतिन ने जॉर्जिया के साउथ ओसेटिया में साल 2008 में अपनी सेना भेजने के फैसले का बचाव किया था. आज तक जॉर्जिया का 20 फ़ीसदी क्षेत्र रूस के कब्ज़े में है.
हालांकि, टेक आंत्रप्रन्योर लेव कलाशनिकोव का मानना है कि रूस के लोगों का आना जॉर्जिया के लिए फ़ायदेमंद साबित होगा. उन्होंने कतार में खड़े रहते हुए ही टेलीग्राम मेसेजिंग ऐप पर प्रवासियों के लिए एक ग्रुप बनाया.
उन्होंने कहा, "मेरे सामने कुछ 50 के आसपास लोग थे और पीछे भी 50 लोग थे. ये लोग मेरे ग्रुप के पहले सब्सक्राइबर बने और अब हमारे ग्रुप के करीब 4000 सदस्य हैं."
सभी सदस्य ग्रुप में रहने के ठिकानों, बैंक खाता खोलने की प्रक्रिया और सार्वजनिक स्थलों पर रूसी भाषा में बात करना सुरक्षित है या नहीं जैसे मामलों पर चर्चा करते हैं.
येवगेनी ल्यामिन जॉर्जिया की भाषा बोलना-लिखना सीख रहे हैं.
वो कहते हैं, "मैं पुतिन के ख़िलाफ़ हूं, मैं युद्ध के ख़िलाफ़ हूं. मैं अभी भी अपने रूसी बैंक अकाउंट से पैसे नहीं निकाल सकता लेकिन ये समस्या यूक्रेन के लोगों की परेशानी के आगे कुछ भी नहीं." (bbc.com)
न्यूयॉर्क, 14 मार्च (भाषा)। यूक्रेन में मारे गए पुरस्कार विजेता अमेरिकी फिल्म निर्माता और पत्रकार ब्रेंट रेनॉड ‘टाइम स्टूडियो’ के लिए काम कर रहे थे और मृत्यु के समय वैश्विक शरणार्थी संकट पर केंद्रित एक परियोजना से जुड़े थे। कंपनी ने यह घोषणा की है।
रेनॉड (50) ने टाइम्स, एचबीओ, एनबीसी, वाइस मीडिया और अन्य कंपनियों के लिए फिल्म और टेलीविजन परियोजनाओं पर अक्सर अपने भाई क्रेग रेनॉड के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने अफगानिस्तान, हैती, इराक, मैक्सिको और यूक्रेन के संघर्ष वाले इलाकों और जोखिम भरे क्षेत्रों में काम किया।
टाइम पत्रिका ने एक बयान में कहा, “हम ब्रेंट रेनॉड के निधन से बेहद दुखी हैं। एक पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता और पत्रकार के रूप में, ब्रेंट ने अपने भाई क्रेग रेनॉड के साथ अक्सर दुनिया भर की सबसे कठिन कहानियों पर काम किया। हाल के हफ्तों में, ब्रेंट वैश्विक शरणार्थी संकट पर केंद्रित टाइम स्टूडियो परियोजना पर काम करने के लिये उस क्षेत्र में थे। हमारी संवेदनाएं ब्रेंट के सभी प्रियजनों के साथ है।”
बयान में इस आवश्यकता को रेखांकित किया गया है कि पत्रकार यूक्रेन में चल रहे रूसी आक्रमण और मानवीय संकट की रिपोर्टिंग सुरक्षित तरीके से करें। दुनिया भर की सबसे चुनौतीपूर्ण खबरों से निपटने वाले रेनॉड कीव क्षेत्र में मारे गए और उनके सहयोगी जुआन अर्रेडोंडो घायल हो गए।
कीव स्थित एक अस्पताल ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें अर्रेडोंडो कहते सुने जा रहे हैं कि जिस कार में वे सफर कर रहे थे, वह इरपेन शहर में एक चौकी के पास गोलाबारी की चपेट में आ गई थी। हालांकि उन्होंने इस बारे में कोई जानकारी नहीं दी कि कार पर गोलाबारी कौन कर रहा था।
अमेरिकी विदेश विभाग ने रविवार को एक बयान में रेनॉड की मौत की पुष्टि करते हुए कहा कि वह उनके परिवार को “हर संभव सहायता की पेशकश” कर रहा है।
मारियुपोल (यूक्रेन), 14 मार्च (एपी)। यूक्रेन के प्रसूति अस्पताल पर रूस के बम विस्फोट के बाद एक गर्भवती महिला और उसके गर्भस्थ शिशु की मौत हो गई है।
एक स्ट्रेचर पर महिला को एम्बुलेंस में ले जाने की तस्वीरें दुनिया भर में प्रसारित हुई थीं, जो मानवता के सबसे मासूम निरीह प्राणी पर भयावहता का प्रतीक थीं।
अस्पताल पर हमले के बाद एपी पत्रकारों द्वारा बुधवार को शूट किए गए वीडियो और तस्वीरों में महिला को खून से लथपथ पेट के निचले हिस्से को सहलाते हुए देखा गया था। सदमाग्रस्त इस महिला के निराश, मुरझाए हुए चेहरे से उसके मन में उपजी आशंका साफ झलक रही थी।
अब तक के 19 दिन के युद्ध में यह यूक्रेन के खिलाफ रूस के सबसे क्रूर क्षणों में से एक था। महिला को दूसरे अस्पताल में ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे बचाने का भरपूर प्रयास किया।
जब महिला को पता चला कि उसका बच्चा नहीं रहा, तब उसने रोते हुए डॉक्टरों से कहा ‘‘मुझे भी मार डालिए।’’
सर्जन तिमूर मारिन ने पाया कि महिला के शरीर का निचला हिस्सा बम विस्फोट की वजह से क्षतिग्रस्त हो कर लहुलुहान हो गया। उन्होंने बताया कि महिला का फौरन सीजेरियन किया गया लेकिन बच्चे में जीवन के कोई लक्षण नहीं थे। फिर करीब तीस मिनट के बाद महिला ने भी दम तोड़ दिया।
उन्होंने बताया कि जल्दबाजी में उन्होंने महिला के पति का नाम नहीं पूछा था। उसके पिता आ कर उसका शव ले गए। मारिन ने कहा कि कम से कम कोई तो उसका शव लेने आया और वह सामूहिक कब्र में नहीं जाएगी।
गौरतलब है कि मारियुपोल में रूस की भीषण गोलाबारी में मारे गए लोगों में से कई की पहचान नहीं की जा सकी और वहां चल रहे हालात की वजह से इन लोगों को सामूहिक कब्रों में दफनाना पड़ा है।
युद्ध अपराध के आरोपों का सामना कर रहे रूसी अधिकारियों ने दावा किया कि यूक्रेन के चरमपंथी प्रसूति अस्पताल का उपयोग अपने ठिकाने के तौर पर कर रहे थे और वहां कोई मरीज या चिकित्सा कर्मी नहीं था। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत और लंदन में स्थित रूसी दूतावास के राजदूत ने संबंधित तस्वीरों को ‘‘फर्जी खबर’’ करार दिया।
युद्ध की विभीषिका कवर कर रहे ‘‘एसोसिएटेट प्रेस’’ के पत्रकारों ने विस्फोट का शिकार बने प्रसूति अस्पताल में जमीन पर रक्तरंजित अवस्था में पड़ी गई गर्भवती महिलाओं, रोते बच्चों और उनके इलाज के लिए प्रयासरत चिकित्सा कर्मियों के वीडियो, फोटो पोस्ट किए।
अगले दिन उन्होंने शहर में उस अस्पताल का पता लगाया जहां इनमें से कुछ महिलाओं को ले जाया गया। एक सप्ताह से इस शहर में पानी, खाना, बिजली या किसी भी तरह की गर्मी का अभाव है और आपात जनरेटरों को केवल ऑपरेशन कक्ष के लिए ही सुरक्षित रखा गया है।
मारियुपोल में ही एक अन्य गर्भवती महिला ने शुक्रवार को सीजेरियन से अपनी बच्ची को जन्म दिया। हालांकि विस्फोट में इस महिला के हाथ पैरों की कुछ उंगलियां पूरी तरह नष्ट हो गई हैं।
पीड़ितों का दावा है कि यूक्रेन के कई शहरों में रूसी हमलों के कारण इसी तरह के हालात हैं।
(रेनॉड फौकार्ट, लैंकेस्टर यूनिवर्सिटी)
लैंकेस्टर (ब्रिटेन), 14 मार्च (द कन्वरसेशन) यूक्रेन पर आक्रमण ने रूस को दिवालिया होने के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। ब्याज दरें दोगुनी हो गई हैं, शेयर बाजार बंद हो गया है और रूसी मुद्रा रूबल अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से युद्ध की सैन्य लागत बढ़ गई है। रूसी नागरिक जो अब आईकेईए, मैकडॉनल्ड्स या स्टारबक्स में खर्च करने में असमर्थ हैं, उन्हें अपने पास मौजूद किसी भी पैसे को विदेशी मुद्रा में बदलने की अनुमति नहीं है।
अनुमान बताते हैं कि रूसी अर्थव्यवस्था अगले साल सात प्रतिशत तक सिमट सकती है, जबकि आक्रमण से पहले इसमें दो प्रतिशत की वृद्धि का अनुमान था। इस बीच, यूरोपीय संघ (ईयू) रूस पर अपनी ऊर्जा निर्भरता में भारी कमी करने की योजना बना रहा है, जबकि अमेरिका और ब्रिटेन ने अपने स्तर पर आयात को चरणबद्ध तरीके से सीमित करना शुरू कर दिया है।
इसके दीर्घकालिक परिणाम भयावह हैं। अगर प्रतिबंध को बनाए रखा जाता है, तो रूस चीन और बेलारूस के अलावा अपने मुख्य व्यापारिक भागीदारों से अलग हो जाएगा। रेटिंग एजेंसियों का अब अनुमान है कि रूस जल्द ही अपने लेनदारों को भुगतान करने में असमर्थ होगा। विदेशी निवेश आकर्षित करना मुश्किल हो जाएगा और यह पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो जाएगा।
अगर पुतिन यूक्रेन में जीत का दावा करने वाले बिंदु पर पहुंच जाते हैं तो आर्थिक परिदृश्य वास्तव में और भी खराब दिखाई देता है। देश पर कब्जा करने और कठपुतली सरकार स्थापित करने से निश्चित रूप से नष्ट हुए बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी रूस पर आएगी और यूक्रेन के नागरिकों के तेजी से यूरोप समर्थक होने से इस तरह के शत्रुतापूर्ण वातावरण में शांति बनाए रखने के लिए पुतिन को रूस के बजट से भारी मात्रा में संसाधनों को हटाने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
युद्ध की कीमत
जीवन प्रत्याशा और प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद पर आधारित एक मोटे अनुमान से पता चलता है कि 10,000 रूसी सैनिकों की मृत्यु चार अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक की लागत के अनुरूप होगी। पुतिन ने मृत सैनिकों के परिवारों को दिए जाने वाले मामूली मुआवजे की भी घोषणा की है, जिसका भुगतान स्थानीय मुद्रा में किया जाएगा, जिसका अर्थ है कि इसका वास्तविक मूल्य जल्द ही शून्य के करीब हो सकता है।
आने वाले दिनों और हफ्तों में पुतिन के लिए युद्ध की कीमत बहुत अधिक है या नहीं, यह दो तत्वों पर निर्भर करेगा। क्या रूसी सैन्य और रक्षा उद्योग पश्चिम से इलेक्ट्रॉनिक्स और औद्योगिक रोबोट जैसे तकनीकी आयात के बिना जीवित रह सकते हैं? और क्या प्रतिबंधों और हताहतों का प्रभाव जनता की राय को इस तरह से बदलने के लिए पर्याप्त होगा जिससे क्रेमलिन को खतरा हो?
-जेम्स गैलहर
अंग प्रत्यारोपण के क्षेत्र में लगातार नए प्रयोग हो रहे हैं. अब इसकी सीमा पहले से कहीं आगे बढ़ा दी गई है.
जेनेटिक इंजीनियरिंग से बने सूअरों से निकाले गए शुरुआती अंग लोगों के शरीर में प्रत्यारोपित किए गए थे.
इस तरह के सूअर का हृदय पहली बार जिस मनुष्य के शरीर में प्रत्यारोपित किया गया था वह सिर्फ दो महीने तक जिंदा रहा था.
पूरी दुनिया में इस वक्त प्रत्यारोपण के लिए अंगों की कमी है. ऐसे में अंगों की असीमित सप्लाई के लिए हम सूअरों के इस्तेमाल के कितने करीब हैं?
अब हम एक ऐसे ऑपरेशन थियेटर की ओर चलते हैं, जहां प्रत्यारोपण ऑपरेशन होने वाला है.
ऑपरेशन थियेटर में चुप्पी पसरी हुई है. यहां सूअर के अंग को प्रत्यारोपण के लिए लाए जाने से पहले तनाव दिख रहा है.
सर्जनों ने अभी अभी एक सूअर के गुर्दे को एक मानव शरीर से जोड़ा है. अब मानव शरीर का रक्त सूअर के अंगों की ओर प्रवाहित हो रहा है.
अंग प्रत्यारोपण करने वाले सर्जन डॉ. जेमी लोक का कहना है, "आप सुई गिरने की आवाज भी सुन सकते थे."
वह कहती हैं, "अगले चंद पलों में इस ऑपरेशन की कामयाबी या नाकामी तय हो जाएगी और अब सबके दिमाग में एक ही सवाल है- गुलाबी या काला?"
अगर मानव शरीर ने बाहरी अंग के खिलाफ भयानक हमला बोल दिया तो सूअर के उत्तक में मौजूद हर कोशिका में छेद हो जाएंगे. साथ ही इस अंग में भीतर से बाहर तक थक्का जम जाएगा. इसके बाद पहले यह चितकबरा फिर नीला और फिर कुछ ही मिनटों में काला हो जाएगा.
अगर 'हाइपरएक्यूट रिजेक्शन' से बच जाते हैं तो यह प्रत्यारोपित अंग खून और ऑक्सीजन से गुलाबी हो जाता है.
हाइपरएक्यूट रिजेक्शन प्रत्यारोपण के कुछ ही मिनट बाद शुरू हो जाता है. यह प्रक्रिया तब शुरू होती है जब एंटीजेन का पूरी तरह मिलान नहीं हो पाता है.
अंग प्रत्यारोपण ऑपरेशन के बाद अमेरिका में अलबामा यूनिवर्सिटी के डॉक्टर लोक ने कहा, "प्रत्यारोपित अंग गुलाबी हो गया और अब यह खूबसूरत दिख रहा है. अब राहत का अहसास हो रहा है. कमरे में खुशी और उम्मीद का माहौल है."
यह ऑपरेशन चिकित्सा जगत में कामयाबियों की श्रृखंला में से एक है. इसने जेनोट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में फिर से दिलचस्पी पैदा कर दी है.
मानव शरीर के लिए जानवरों के अंग का इस्तेमाल पुराना आइडिया है. इस क्रम में चिंपैंजी के अंडकोष के प्रत्यारोपण से लेकर बंदरों की दूसरी प्रजातियों के गुर्दे और हृदय निकाल कर इस्तेमाल किए जा चुके हैं. हालांकि इन प्रत्यारोपण की परिणति मृत्यु में ही हुई है.
दिक्कत यह है कि मानव शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) प्रत्यारोपित अंगों को एक संक्रमण की तरह लेता है और उस पर हमला करता है.
इस वक्त प्रत्यारोपण के लिए सबसे ध्यान सूअरों पर है क्योंकि उनके अंगों का आकार अमूमन मानव शरीर के अंगों के आकार के बराबर होता है. सूअर पालने का हमारा अनुभव सदियों पुराना है.
लेकिन अंग प्रत्यारोपण में सबसे बड़ी चुनौती है हाइपरएक्यूट रिजेक्शन. अंग गुलाबी रहे और काला न पड़े, यह भी एक चुनौती है. ऐसा नहीं है कि आप सीधे किसी सूअर के फार्म में जाएं. वहां से एक सूअर पकड़ कर ले जाएं और इसके अंग को मानव शरीर में प्रत्यारोपित कर दें.
अंग प्रत्यारोपण के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग को विकास के कई चरणों से गुजरना पड़ा है ताकि सूअर के डीएनए को बदला जा सके. इस बदलाव से उनके अंग मानव शरीर के प्रतिरोध तंत्र से ज्यादा तालमेल बिठा पाते हैं.
हाल में सूअर के गुर्दे और हृदय के जो प्रत्यारोपण हुए उनमें अंग खास तौर पर तैयार '10- जीन सूअर' से लिए गए गए थे.
दान किए गए किसी अंग को मानव विकास हारमोन को प्रतिक्रिया देने से रोकने और अनियंत्रित वृद्धि से बचाने के लिए इसके जीन में एक बदलाव किया गया था.
एक और अहम बदलाव किया गया शर्करा अणु हटा कर. इसे अल्फा-गैल कहा जाता है. यह सूअर की कोशिका की सतह में चिपकता है और एक बड़े चमकते नियोन संकेत की तरह काम करता है. इस तरह यह टिश्यू को पूरी तरह एलियन बना देता है.
पूरक प्रणाली कहा जाने वाला हमारे प्रतिरक्षा प्रणाली की एक इकाई अल्फा-गैल का इंतजार करने वाले शरीर की निगरानी करती है. यही वजह है प्रत्यारोपित होने के कुछ ही क्षणों के बाद अंग शरीर की ओर से खारिज कर दिए जाते हैं या मार दिए जाते हैं.
इस प्रयोग के दौरान दो अन्य 'नियोन संकेत' जेनेटिक तौर पर हटा दिए गए थे. इसके बजाय छह मानव संकेत जोड़े गए थे. यह सूअर की कोशिकाओं के ऊपर एक छद्म आवरण की तरह काम रहे थे. इससे इन्हें शरीर के प्रतिरोधी तंत्र से छिपने में मदद मिल रही थी.
बहरहाल, जो 10-जीन सूअर तैयार किया जाता है उसे जीवाणुरहित माहौल में बड़ा किया जाता है. ताकि वह प्रत्यारोपण के मुफीद हो सके.
वह अंग दान करना चाहते थे. ब्रेन डेड अवस्था में उनके परिवार की इजाजत से उनके गुर्दों की जगह सूअर के गुर्दे प्रत्यारोपित किए गए.
डॉक्टर लोक बताती हैं कि प्रत्यारोपित गुर्दों में से एक ने मूत्र बनाना शुरू कर दिया. यह कामयाबी उल्लेखनीय थी. इससे लगा कि जेनोट्रांसप्लांटेशन वास्तव में लोगों की जिंदगी बदल सकता है. और सीधे तौर पर कहें तो उनकी जिंदगी बचा सकता है. उन्हें उम्मीद है कि इस साल इसका क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो सकता है.
वो ऑपरेशन तीन दिन का लंबा प्रयोग था लेकिन इस बीच मैरीलैंड मेडिकल सेंटर यूनिवर्सिटी के सर्जन एक कदम आगे बढ़ कर प्रयोग करने के लिए तैयार थे.
57 साल के उनके मरीज डेविड बेनेट को भारी हार्ट अटैक आया था. उनका शरीर मानव अंग प्रत्यारोपण के मुफीद नहीं लग रहा था. उन्हें एक्मो मशीन के जरिये जिंदा रखा गया था. इससे उनके गुर्दे और फेफड़ों को सहारा मिला हुआ था.
बेनेट ने सूअर के हृदय को 'अंधेरे में लगाया गया निशाना' बताया.
इस ऑपरेशन के दौरान 10-जीन सूअर को 7 जनवरी को अस्पताल ले जाया गया. फिर इसके हृदय को बेनेट की छाती के अंदर दाखिल करा दिया गया. ऑपरेशन काफी पेचीदा था क्योंकि बेनेट का बीमार हृदय सूज गया था. इसलिए उसकी रक्त धमनियों को सूअर के छोटे हृदय से जोड़ना एक चुनौती था.
एक बार फिर घबराहट का माहौल था. ऐसा लग रहा था कि क्या प्रत्यारोपित हृदय तुरंत खारिज हो जाएगा. लेकिन यह धड़कता रहा और आखिरकार गुलाबी रंग में तब्दील हो गया. अस्पताल में कार्डियक जेनोट्रांसप्लांटेशन विभाग के डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद मोहिउद्दीन ने कहा कि वह तो 'अपनी जिंदगी' में इस सफलता को देखने की उम्मीद नहीं कर रहे थे.
जब मैंने इस ऑपरेशन के एक महीना पूरा होने पर उनसे बात की तो उन्होंने बताया कि शरीर की ओर से प्रत्यारोपित अंग को खारिज करने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं. लेकिन बेनेट अब भी काफी कमजोर दिख रहे थे.
उन्होंने कहा, '' हमने 1960 की एक कार में फरारी का नया ईंजन डाल दिया है. ईंजन काफी अच्छे तरीके से काम कर रहा है लेकिन बाकी बॉडी को भी अभी इससे एडजस्ट करना है. ''
लेकिन प्रत्यारोपण के दो महीनों के बाद बेनेट की मौत हो गई. लिहाजा जेनोट्रांसप्लांटेशन के असर और वजहों के बारे में अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है.
बेनेट ऑपरेशन से पहले भी काफी कमजोर थे और यह संभव हो सकता है कि उनके लिए नया हृदय भी पर्याप्त न हो.
इस मामले में प्रत्यारोपित अंग को खारिज किए जाने के किसी संकेत की रिपोर्ट नहीं थी . लेकिन अगर हृदय का विस्तृत विश्लेषण प्रतिरक्षा रक्षा प्रणाली की ओर से इस पर हमला करने का संकेत देता है तो 10-जीन सूअर में और संशोधन की जरूरत होती है ताकि प्रत्यारोपण के लिए अंग मानव शरीर के ज्यादा मुफीद हो सके.
और अंतत: मामला शरीर रचना पर आ सकता है और सूअर का हृदय मानव शरीर के मुफीद नहीं बैठ सकता. हमारे हृदय को गुरुत्वाकर्षण से लड़ने के लिए सूअर की तुलना में ज्यादा परिश्रम करना पड़ता है क्योंकि मनुष्य को दो पैरों पर चलना पड़ता है. जबकि सूअर के चार पैर होते हैं.
नॉटिंघम यूनिवर्सिटी में स्टेम सेल बायोलॉजी विभाग के प्रोफेसर क्रिस डेनिंग ने कहा कि हाइपरएक्यूट रिजेक्शन की नाकामी से पार पाने का मतलब हृदय प्रत्यारोपण की सफलता मानी जाएगी.
उन्होंने कहा कि अगर मामला मरीज की कमजोरी का था तो यह और बात है. लेकिन 'जेनोट्रांसप्लांटेशन' भविष्य में सफल हो सकता है. लेकिन अगर शरीर रचना का मामला हो तो यह 'संभावित शो स्टॉपर' हो सकता है.
अस्पताल अब अपने क्लीनिकल ट्रायल को जारी रखना चाहता है.
अंग प्रत्यारोपण की दुनिया में सूअर के अंगों से बढ़ी उम्मीद
ब्रिटेन के सबसे नामचीन ट्रांसप्लांट सर्जनों में से एक प्रोफेसर जॉन वॉलवर्क के मुताबिक बड़ी तादाद में लोगों की जिंदगी बचाने के लिए जरूरी नहीं कि गुणवत्ता में सूअर के हृदय को मानव हृदय की तरह ही होना पड़े. वह कहते हैं कि कई लोग अब भी ट्रांसप्लांट के इंतजार में मर जाते हैं.
जेनोट्रांसप्लांटेशन के क्षेत्र में काम करने वाले प्रोफेसर वॉलवर्क शुरुआती लोगों में से एक हैं. उन्होंने ही दुनिया का पहला हृदय-फेफड़ा-लीवर प्रत्यारोपण किया था. वह कहते हैं कि 100 लोगों को मानव हृदय के साथ जिंदा रहने का 85 फीसदी मौका देने से अच्छा है कि 1000 लोगों को इसके साथ जिंदा रहने का 70 फीसदी मौका मिले.
जेनो ट्रांसप्लांटेशन को ट्रांसप्लांट मेडिसिन में हमेशा एक अगली बड़ी चीज के तौर पर देखा गया गया है. यही वजह है कि इसमें एक के बाद एक उल्लेखनीय ऑपरेशन हुआ. लेकिन आगे होने वाली और रिसर्च ही बता सकेंगी कि इसका बड़ा सपना मुकम्मल रूप ले सकेगा या नहीं.
डॉ. लोक कहती हैं, '' हमारा लक्ष्य यह होगा कि एक एडिटेड 10-जीन सूअर किडनी, लीवर और हृदय के नाकाम होने पर मरीजों की मदद कर सके और आखिरी दौर की दिल के मरीजों को बीमारी से निजात दिला सके.
उन्होंने कहा, यह बेहद अहम उपलब्धि होगी और मेरा ईमानदारी से यह मानना है कि अपने जीवनकाल में भी हम सब उस दौर में होंगे. ''
चीन ने अपने सबसे बड़े शहरों में से एक में रविवार को लॉकडाउन लागू कर दिया. समाचार एजेंसी एएफ़पी की रिपोर्ट के अनुसार, शहर की पूरी आबादी ही इस लॉकडाउन के दायरे में आ गई है.
दक्षिणी चीन के शेनज़ेन शहर में एक करोड़ 70 लाख की आबादी रहती है. चीन में कोरोना संक्रमण के मामले दोगुने बढ़कर 3400 के करीब पहुंच गए हैं. ज़ीरो-कोविड पॉलिसी को लेकर चीन सख़्त रवैया अपनाता रहा है. लेकिन हाल के दिनों में कोरोना संक्रमण के बढ़े मामलों की वजह से वहां बेचैनी का माहौल है.
शहर में सभी निवासियों से कहा गया कि वे अपने घरों में ही रहें क्योंकि पड़ोसी शहर हांगकांग ओमिक्रोन के मामलों से बुरी तरह प्रभावित है और यहां भी इससे जुड़े मामले बढ़ रहे हैं. शहर के प्रशासन की ओर से जारी नोटिस में बताया गया कि 20 मार्च तक लॉकडाउन लागू है और इस दौरान सार्वजनिक यातायात पर रोक है.
नोटिस में बताया गया कि वृहद स्तर पर तीन चरण में जांच होगी. रविवार को शेनजेंग के स्वास्थ्य अधिकारी लिन हांगचेंग ने कहा, '' अगर रोकथाम और नियंत्रण जैसे कदम को समय रहते मजबूती के साथ नहीं उठाया गया तो बड़े स्तर पर संक्रमण का प्रसार हो सकता है.''
चीन के कई शहरों में संक्रमण के मामले बढ़े हैं और इसके मद्देनजर शंघाई में अधिकारियों ने स्कूल बंद कर दिये और पूर्वोत्तर के कई शहरों में लॉकडाउन लागू है.
चीन के 18 प्रांत ओमिक्रोन और डेल्टा स्वरूप के क्लस्टर (कोई खास इलाका प्रभावित) से प्रभावित हैं. चीन में 2019 में सबसे पहले संक्रमण का मामला सामना आया था और तब से चीन कड़ाई से 'जीरो कोविड' नीति बनाए हुए है. (bbc.com)
सऊदी अरब ने कहा है कि उसने शनिवार को 81 पुरुषों को सज़ा-ए-मौत दी है. ये आंकड़ा बीते पूरे साल के दौरान सऊदी अरब में दी गई मौत की सज़ा से ज़्यादा है.
सरकारी समाचार एजेंसी एसपीए के अनुसार, मौत की सज़ा पाने वालों में सात यमनी और एक सीरियाई नागरिक शामिल हैं. इन्हें चरमपंथ सहित "एक से ज़्यादा जघन्य अपराधों" के लिए सज़ा दी गई है.
इनमें से कुछ पर कथित इस्लामी चरमपंथी समूह इस्लामिक स्टेट, अल-क़ायदा और यमन के हूती विद्रोहियों के समूहों से जुड़े होने का आरोप था.
मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि इनमें से कई आरोपियों को निष्पक्ष तौर पर क़ानूनन अपनी दलील देने का मौक़ा भी नहीं दिया गया. हालाँकि, सऊदी सरकार ने इन आरोपों को ख़ारिज कर दिया है.
एसपीए के मुताबिक़, मौत की सज़ा पाने वालों पर 13 न्यायाधीशों के अधीन मुकदमा चलाया गया और इस दौरान ये सभी तीन चरणों वाली न्यायिक प्रक्रिया से गुज़रे थे.
इन सब पर देश के महत्वपूर्ण वित्तीय ठिकानों पर हमले की साजिश रचने, सुरक्षाबलों को मारने या उन्हें निशाना बनाने, अपहरण, यातना, बलात्कार और देश में हथियारों की तस्करी करने का आरोप लगाया गया था.
सऊदी अरब में बीते सालभर में 69 लोगों को मौत की सज़ा दी गई थी.
मौत की सज़ा देने वाले दुनिया के शीर्ष देशों में सऊदी अरब का नाम शामिल है. इस मामले में वो दुनिया में पांचवें पायदान पर है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की बनाई सूची के अनुसार इस लिस्ट में सऊदी अरब से पहले चीन, ईरान, मिस्र और इराक़ का नाम शामिल है. (bbc.com)
कीव,13 मार्च । शरणार्थियों के काफिले पर रूसी गोलाबारी में एक बच्चे सहित यूक्रेन के सात लोगों की मौत हो गयी। हमले के बाद यह काफिला वापस लौटने के लिए मजबूर हो गया।
यूक्रेन के रक्षा मंत्रालय ने यह जानकारी दी।
एक खबर के अनुसार, ये सात लोग राजधानी कीव के उत्तर पूर्व में 20 किलोमीटर दूर पेरेमोहा गांव से जान बचा कर भाग रहे सैंकडों लोगों के काफिले में शामिल थे। इस गोलाबारी में लोग घायल भी हुए हैं।
रूस ने कहा है कि वह संघर्ष क्षेत्रों के बाहर मानवीय गलियारा बनाएगा, लेकिन यूक्रेनी अधिकारियों ने रूस पर उन मार्गों को बाधित करने और आम नागरिकों पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया है।
यूक्रेन की उप प्रधानमंत्री इरिना वेरेशचुक ने शनिवार को कहा कि ऐसे 14 गलियारों पर सहमति बनी थी लेकिन शनिवार को केवल नौ गलियारे खोले गए और इनके जरिए देश भर से 13 हजार लोगों को सुरक्षित निकाला गया।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, देश पर 17 दिन पहले हुए रूसी आक्रमण के बाद से अब तक कम से कम 25 लाख लोग यूक्रेन छोड़कर जा चुके हैं।(एपी)
रूस-यूक्रेन जंग और पश्चिमी देशों के रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बीच भारत के लिए एक अच्छी खबर आ रही है. अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौर में लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत की सरकारी कंपनी का कुछ पैसा दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला में फंस गया था, जो अब वापस मिल सकता है. इस वक्त पूरी दुनिया का ध्यान रूस पर है, उसने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला कर दिया था. जिसके बाद से उसपर तमाम तरह के प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. जबकि अमेरिका दूसरे देशों पर लगाए गए इन्हीं प्रतिबंधों में ढिलाई करने की सोच रहा है.
रूस पर लगाए जा रहे प्रतिबंधों के बीच भारत ने अमेरिका के साथ अपनी कूटनीतिक वार्ताओं को तेज कर दिया है, ताकि वेनेजुएला में उसकी कंपनी की बकाया राशि जारी हो सके. भारत की दूसरी बड़ी तेल और गैस कंपनी ONGC विदेश के सीईओ ने बताया कि भारत, अमेरिका के विदेश मंत्रालय के साथ इस मसले पर बातचीत कर रहा है. ताकि कंपनी को वेनेजुएला के तेल कार्गो के व्यापार से पिछले कर्जों का निपटारा किए जाने की अनुमति मिल सके. अमेरिका के वेनेजुएला पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण ये पैसा फंसा हुआ है.
मिल सकते हैं 420 मिलियन डॉलर
सूत्रों का कहना है कि अमेरिका अब उन प्रतिबंधों में ढिलाई कर सकता है, जिससे ओएनजीसी की विदेशी शाखा ओवीएल को उसके 420 मिलियन डॉलर वापस मिल सकें. जो कुछ सालों से फंसे हुए हैं. 8 मार्च को बाइडेन प्रशासन ने रूस के तेल, गैस और कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था. ऐसे में अब माना जा रहा है कि इन सभी जरूरी चीजों के आयात के लिए अमेरिका रूस को भुलाकर दक्षिण अमेरिकी देश वेनेजुएला का रुख कर सकता है. अमेरिका ने जब से वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाए हैं, तभी से वहां से आयात बंद किया हुआ है.
ट्रंप कार्यकाल में लगे थे प्रतिबंध
साल 2017 में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने OPEC के दो बड़े सदस्य देशों- वेनेजुएला और ईरान पर प्रतिबंध लगा दिए थे. वेनेजुएला पर प्रतिबंध लगाए जाने के पीछे का कारण वहां के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो को सत्ता से बेदखल करना था. जबकि ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाए गए थे. जिसके चलते भारत ने बड़े स्तर पर 2019 में वेनेजुएला से तेल आयात में कटौती की. उसने ईरान से भी तेल खरीदना बंद कर दिया.
अमेरिका और वेनेजुएला के बीच बातचीत
अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारियों ने वेनेजुएला की राजधानी काराकास में वहां के अधिकारियों से मुलाकात की है. ये बैठक दो घंटे तक चली. हालांकि इसमें किन मुद्दों पर चर्चा हुई, ये स्पष्ट नहीं किया गया है. इससे पहले अमेरिकी राष्ट्रपति के कार्यालय व्हाइट हाउस ने वाशिंगटन डीसी में एक मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा था कि अधिकारियों ने काराकास का दौरा कई मुद्दों पर चर्चा करने के लिए किया था. जिसमें ‘ऊर्जा सुरक्षा’ के साथ-साथ देश (वेनेजुएला) में 9 अमेरिकी नागरिकों को जेल में रखे जाने का विषय शामिल है.
मादुरो ने पुतिन के प्रति समर्थन जताया
अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व जुआन गोंजलेज ने किया. जो व्हाइट हाउस में लातिन अमेरिकी मामलों के टॉप सलाहकार हैं. उनके साथ वेनेजुएला में अमेरिकी राजदूत जेम्स स्टोरी भी थे. अधिकारियों ने वेनेजुएला का दौरा ऐसे वक्त पर किया है, जब यूक्रेन युद्ध के कारण दुनियाभर के देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं. अमेरिका ने 2019 में इस दक्षिण अमेरिकी देश से रिश्ता तोड़ लिया था. हालांकि राष्ट्रपति मादुरो ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को आश्वस्त किया है कि वह यूक्रेन मामले में उनका समर्थन कर रहे हैं.
कच्चे तेल के व्यापार पर लगाए थे प्रतिबंध
अमेरिका ने मादुरो को सत्ता से हटाने के लिए इस देश पर तमाम प्रतिबंध लगाए थे, जिसमें देश को अमेरिकी बाजार में अपने कच्चे तेल के व्यापार से रोकना भी शामिल है. वेनेजुएला के राजस्व का 96 फीसदी हिस्सा तेल के व्यापार से ही आता है. अमेरिका ने मादुरो की सरकार से बातचीत करने में भी कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और विपक्षी नेता जुआन गाइदो को देश का वैध राष्ट्रपति बताया, साथ ही अमेरिका उन्हें नेता के रूप में मान्यता देने वाले 60 देशों में से एक है.
प्रतिबंध नीति की समीक्षा करेगा अमेरिका
फरवरी 2022 में (बाइडेन सरकार) अमेरिका ने संकेत दिया था कि वह अपनी प्रतिबंध नीति की समीक्षा करने के लिए तैयार है, केवल तभी जब मादुरो की सरकार और विपक्ष के बीच वार्ता आगे बढ़े. वहीं भारत की बात करें, तो वह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक और उपभोक्ता देश है. जो एक ही देश से तेल ना लेकर दूसरे देशों से भी लेना चाहता है, ताकि उसका आयात बिल कम हो सके और विदेशी मुद्रा बचाने के लिए सस्ता तेल खरीद सके.
अमेरिका से मंजूरी मिलना जरूरी
ईरान और वेनेजुएला पर लगे प्रतिबंधों के कारण प्रति दिन 30 लाख बैरल (बीपीडी) या विश्व आपूर्ति का 3 प्रतिशत तक तेल अवरुद्ध हो गया है. इस बीच अब भारत ने अमेरिका के माध्यम से वेनेजुएला से अपना बकाया वसूल करने के लिए अनुरोध किया है. अमेरिका में विदेश विभाग और भारतीय दूतावास इस मामले में चर्चा कर रहे हैं. वेनेजुएला से किसी भी तरह का बकाया पैसा लेने के लिए अमेरिका की मंजूरी काफी जरूरी है. अब देखना ये होगा कि अमेरिका कब तक इसपर हामी भरता है और भारत को उसका पैसा वापस मिल पाता है.(tv9hindi.com)
-काई वांग
रूस के आक्रमण पर यूएन में हुई वोटिंग में हिस्सा न लेकर चीन ने यूक्रेन में जारी युद्ध से ख़ुद को कूटनीतिक रूप से अलग रखा है.
दूसरी तरफ़, चीन सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर युद्ध को लेकर ज़ाहिर किए जा रहे मज़बूत विचारों को दबाने का प्रयास भी लगातार कर रहा है.
युद्ध की स्थिति में चीन ने अपने लिए इसे ही बीच का रास्ता बनाया है.
बीते महीने ही, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एलान किया था कि बीजिंग और रूस के बीच हाल ही में प्रगाढ़ हुए संबंधों की कोई "सीमा" नहीं है.
किस तरह के कंटेंट को दबा हा चीन?
चीन सोशल मीडिया से रोज़ाना उस तरह के पोस्ट को हटा रहा है जिनमें रूसी सैन्य कार्रवाई के पक्ष या फिर विपक्ष में विचार ज़ाहिर किए गए हों.
चीन में ट्विटर सरीख़े प्लेटफ़ॉर्म वीबो पर एक शख्स ने लिखा, "फिलहाल किसी में यूक्रेन के साथ खड़े होने की हिम्मत नहीं है." ये पोस्ट पूरी तरह से रूस के समर्थन में था.
चीन के सेंसरशिप को ट्रैक करने वाले फ्ऱी वीबो के मुताबिक, इस पोस्ट और इसके जैसे ही अन्य पोस्ट को हटा दिया गया.
युद्ध शुरू होने से पहले वीचैट मेसेजिंग ऐप पर व्लादिमीर पुतिन से इस्तीफ़े की मांग करने वाले एक सेवानिवृत्त रूसी जनरल की ख़ुली चिट्ठी शेयर हो रही थी.
अब इसे ब्लॉक कर दिया गया है.
रूस के समर्थन में व्यक्त किए गए कुछ विचारों को भी सोशल मीडिया से हटा दिया गया है.
रूस के सरकारी समाचार नेटवर्क आरटी के आधिकारिक वीबो अकाउंट से चीन के समर्थन के लिए एक धन्यवाद नोट लिखा गया. लेकिन इसे भी हटा दिया गया.
पोस्ट में लिखा था, "खुशी है कि रूस ने यूक्रेन में नाज़ियो से लड़ने के कठिन काम की शुरुआत की है. रूस पर लगाए प्रतिबंध अस्वीकार्य हैं."
सोशल मीडिया को कैसे सेंसर कर रहा है चीन?
किसी खास कंटेंट से निपटने के तरीकों के लिए चीन की सरकार लगातार सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स को निर्देश दे रही है और उनपर इनका पालन करने का दबाव भी है.
इन्हीं निर्देशों में से एक कथित तौर पर लीक हो गया और चाइना डिजिटल टाइम्स ने इस बारे में ख़बर भी प्रकाशित कर दी.
ऐसा कहा जा रहा है कि इस महीने चीन के केंद्रीय नियामक साइबरस्पेस ऐडमिनिस्ट्रेशन ऑफ चाइना (सीएसी) ने सभी कमर्शियल वेबसाइट्स, स्थानीय और निजी मीडिया से कहा है कि वे यूक्रेन संघर्ष से जुड़े किसी मुद्दे पर न तो लाइवस्ट्रीम करें और न ही हैशटैग्स का इस्तेमाल करें.
इसके अतिरिक्त चीन में विदेशी मीडिया की रिपोर्ट्स को रिपोस्ट करना और किसी भी पक्ष के लिए "दुर्भावना से भरे संदेश" पोस्ट करना भी सख्त तौर पर प्रतिबिंधित है.
चीन की माडिया एक्सपर्ट सारा कुक इन कथित निर्देशों को लेकर कहती हैं, "मुझे ये वास्तविक लगते हैं. स्रोत विश्वसनीय है और नए निर्देश बीते समय में किए गए मीडिया के नियंत्रण से मेल खाते हैं."
आक्रमण के बाद चीन के सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म ऐसे कई पोस्ट हटा रहे हैं, जो ख़तरनाक या अशांति फैलाने वाले लगते हैं.
चीन के टिकटॉक सरीखे वीडियो प्लेटफ़ॉर्म डोएन ने बीते सप्ताह कहा था कि उसने युद्ध और घृणा को बढ़ावा देने वाले गलत सूचनाओं और अनुचित संदेश वाले 498 वीडियो और 2,657 कमेंट्स हटाए हैं. साथ ही सैकड़ों अकाउंट निलंबित भी किए हैं.
वीबो ने कहा कि उसने हज़ारों अकाउंट निलंबित किए हैं और बड़ी संख्या में ऐसे पोस्ट्स डिलीट किए जो यूक्रेन की मौजूदा स्थिति का "मख़ौल" उड़ा रहे थे. वीबो ने ये भी ऐलान किया कि अब वो पोस्ट में जियो-लोकेशन लेबल की शुरुआत करेगा, जिससे पोस्ट की वेरिफ़िकेशन करने में मदद मिलेगी.
वीडियो स्ट्रीमिंग साइट बिलीबिली ने कहा कि उसने बीते महीने 1,642 "अनुचित संदेश" हटाए और करीब 57 अकाउंट्स भी निलंबित किए.
वीचैट और बिलीबिली दोनों ने ही यूज़र्स ने से आग्रह किया है कि यूक्रेन पर चर्चा के दौरान वे "तार्किक" और "निष्पक्ष" रहें.
यूक्रेन के राष्ट्रपति का यह बयान क्या पुतिन के सामने नरम पड़ना है?
सरकारी और मेनस्ट्रीम मीडिया यूक्रेन की स्थिति पर लगातार रिपोर्टिंग कर रहा है लेकिन इन ख़बरों में रूस की कार्रवाई को "युद्ध" या "आक्रमण" नहीं कहा जा रहा है.
रियल टाइम में भ्रामक जानकारियों पर नज़र रखने वाली संस्था डबलथिंक लैब ने बताया है कि चीनी मीडिया लगातार "रूसी स्रोतों से मिलने वाली भ्रामक जानकारियों और साजिशों की कहानियों का ज़िक्र कर रहा है."
यूक्रेन के लोगों ने अपने ही परमाणु संयंत्र में आग लगा दी जैसे झूठे दावों को चीनी मीडिया लगातार बिना सवाल उठाए ही दोहरा रहा है.
चीनी मीडिया में यूक्रेन के प्रतिरोध पर भी बहुत कम रिपोर्टिंग हो रही है न तो रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों की व्यापक प्रतिक्रिया को ही ज़्यादा जगह मिल रही है.
सारा कुक कहती हैं, "मेरे विचार में, यूक्रेन से संबंधित कंटेंट पर सेंसरशिप असंतुलित है... उन टिप्पणियों और आवाज़ों को अधिक दबाया जा रहा है जो चीन के आधिकारिक रुख के विपरीत हैं."
चीन की मीडिया में यूक्रेन के घटनाक्रम की आलोचना दिखाई देती है, लेकिन अक्सर ये अमेरिका को निशाना बनाकर की जाती है, जिसपर संघर्ष भड़काने का दोष मढ़ा जाता है.
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में अमेरिका पर यूक्रेन में हथियार बेचकर मुनाफ़ा कमाने का आरोप लगाया गया.
एक अन्य लेख में, चीन की छवि ख़राब करने के लिए अमेरिका पर यूक्रेन संकट को लेकर भ्रामक जानकारी फैलाने का आरोप लगाया गया.
चीन में जहां अधिकांश विदेशी वेबसाइटों को या तो ब्लॉक कर दिया गया है या फिर कड़े प्रतिबंध झेलने पड़ रहे हैं, वहां रूस का सरकारी मीडिया लंबे समय से यहां आराम से काम कर रहा है.
स्पुतनिक जैसे रूसी मीडिया आउटलेट्स के वीबो पर 1.16 करोड़ फॉलोअर्स हैं. कई बार चीन की सरकारी मीडिया इसके हवाले से यूक्रेन संकट से जुड़ी ख़बरों की रिपोर्टिंग कर रही है.(bbc.com)
यूक्रेन के विदेश मंत्रालय का दावा है कि रूसी सेना ने दक्षिणी यूक्रेन के शहर मारियुपोल में एक मस्जिद पर गोलीबारी की है.
यूक्रेन का दावा है कि इस मस्जिद में बच्चों समेत 80 लोगों ने शरण ले रखी थी, जिसमें तुर्की के नागरिक भी शामिल हैं.
यूक्रेन ने ये भी आरोप लगाया है कि रूस ने मारियुपोल से लोगों को बाहर निकलने देने से इनकार कर दिया है और नाकाबंदी की वजह से सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं.
वहीं, रूस ने यूक्रेन पर शहर को खाली न कराने का आरोप लगाया है.
यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने एक ट्वीट में लिखा है कि मारियुपोल में सुल्तान सुलेमान और उनकी पत्नी रोक्सोलाना (हुर्रम सुल्तान) की मस्जिद पर रूस ने बमबारी की है.
ट्वीट में आगे लिखा है कि तुर्की के नागरिकों समेत 80 से अधिक वयस्क और बच्चे वहां छिपे हुए हैं. फिलहाल, किसी की मौत या किसी के जख़्मी होने का ब्योरा अबतक सामने नहीं आया है.
दूसरी तरफ़, रूस ने यूक्रेन में नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाने से इनकार किया है. (bbc.com)
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने कीएव में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि अब तक करीब 1300 यूक्रेन के सैनिकों की मौत लड़ाई में हो चुकी है.
ज़ेलेंस्की ने ये भी दावा किया कि शुक्रवार को करीब 500-600 रूसी सैनिकों ने यूक्रेन की सेना के सामने आत्मसमर्पण किया है.
इन आंकड़ों की पुष्टि बीबीसी नहीं कर सकता है.
पश्चिमी सूत्रों का अनुमान है कि शुक्रवार तक करीब 6000 रूसी सैनिकों की मौत हुई है.
वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रूसी सैनिकों को चेतावनी देते हुए कहा है कि लोगों के दिमाग पर क़ब्ज़ा करना संभव नहीं है और अगर शहरों-कस्बों पर क़ब्ज़ा हो रहा है तो वो भी अस्थायी है.
ज़ेलेंस्की इस दौरान मेलिटोपोल के मेयर को अगवा किए जाने को लेकर भी रूस पर बरसते नज़र आए. ज़ेलेंस्की ने कहा कि मेलिटोपोल के मेयर को अगवा करने पर रूस को शर्म आनी चाहिए.
शुक्रवार की दोपहर को रूसी सैनिकों ने मेयर को अगवा कर लिया था और ये घटना सीसीटीवी में कैद हो गई थी जो सोशल मीडिया पर ख़ूब शेयर की जा रही है.
ज़ेलेंस्की का कहना है कि मेयर को अगवा किया जाना लोकतंत्र के ख़िलाफ़ अपराध है. उनका कहना है कि जर्मनी और फ्रांस के नेताओं को पुतिन से बातचीत कर मेयर को रिहा कराना चाहिए.
पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और अमेरिका को ईंधन निर्यात पर रोक के बाद अब रूस भारत को अपने तेल और पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात करने के साथ ही रूसी तेल क्षेत्र में भारत के निवेश को बढ़ाने का इच्छुक है.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू की ख़बर के मुताबिक़, शुक्रवार को रूसी उप प्रधानमंत्री एलेक्ज़ेंडर नोवाक ने भारत के पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी को इसकी जानकारी दी है.
रूसी सरकार की ओर से जारी बयान के मुताबिक, हरदीप सिंह पुरी ने नोवाक से फ़ोन पर बात की और भारत और रूस के बीच ऊर्जा क्षेत्र में रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने की संभावनाओं के बारे में चर्चा की.
रूस द्वारा जारी बयान के मुताबिक़, "भारत को रूस के तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात एक अरब डॉलर तक पहुँच गया है और अब इस आंकड़े को बढ़ाने के लिए स्पष्ट मौके हैं."
बयान के मुताबिक़ नोवाक ने कहा, "हम रूसी तेल और गैस क्षेत्र में भारतीय निवेश को बढ़ाने और भारत में रूसी कंपनियों के सेल नेटवर्क का विस्तार करने में रुचि रखते हैं." सूत्रों के अनुसार, रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों के मद्देनज़र दोनों नेताओं के बीच भुगतान के संभावित तरीकों के साथ ही प्रस्ताव पर अन्य अधिकारियों द्वारा चर्चा किए जाने पर सहमति बनी.(bbc.com)
शनिवार सवेरे यूक्रेन की राजधानी कीएव समेत कई शहरों में हमले के साइरन सुनाई दिए हैं.
यूक्रेन ने एक और बार रूस पर आरोप लगाया है कि वो दक्षिणी शहर मारियुपोल से लोगों को सुरक्षित बाहर निकलने नहीं दे रहा.
यूक्रेनी सरकार का कहना है कि मारियुपोल में स्थिति बद से बदतर होती जा रही है. यहां अब तक मारियुपोल में 1,500 लोगों की मौत हो चुकी है और जो लोग बच गए हैं उनके पास न तो खाना है और न ही पानी. साथ ही उनके सामने बिना बिजली के ठंड गुज़ारने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है.
वहीं, शनिवार को यूक्रेनी अधिकारियों ने कहा है कि देश के उत्तरपूर्वी शहर सुमी से लोगों को बाहर निकालने के लिए और मानवीय कॉरिडोर बनने को लेकर सहमति बन गई है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की ने एक वीडियो जारी कर रूस की मांओं से अपील की है कि वो अपने बच्चों को युद्ध में न भेजें.
अमेरिका राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि वो यूक्रेन में रूस के ख़िलाफ़ युद्ध में हिस्सा लेने के लिए अपने सैनिक नहीं भेजेगा. हालांकि, उन्होंने कहा कि रूस के रईसों पर प्रतिबंध बढ़ाएंगे.
रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में यूक्रेन में जैविक हथियारों की अमेरिकी गतिविधियों का दावा किया. हालांकि, रूस ने इसके पक्ष में कोई सबूत नहीं दिए.
यूक्रेन ने कहा है कि आने वाले दिनों में बेलारूस युद्ध में रूस का साथ दे सकता है. (bbc.com)