अंतरराष्ट्रीय
बांग्लादेश में नौ आतंकवादियों ने एक सरकारी कार्यक्रम का फायदा उठाते हुए आत्मसमर्पण कर दिया है. कार्यक्रम के तहत सरकार ने उन्हें नकद धनराशि के अलावा और भी मदद दी है.
ये नौ आतंकवादी दो प्रतिबंधित आतंकी संगठन जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश और अंसार अल-इस्लाम के सदस्य थे. गुरुवार को ढाका में आत्मसमर्पण करने के बाद गृह मंत्री असदुज्जमां खान ने उनका फूलों से स्वागत किया और उन्हें उनके परिवारों को सौंप दिया. इस मौके पर एक बयान में खान ने कहा, "जिन्होंने गलत रास्ता अपना लिया था वो आज अपनी पुरानी जिंदगी की तरफ वापस लौट आए हैं और उनके ऐसा करने से उनके माता-पिता के चेहरों पर मुस्कुराहट लौट आई है."
गृह मंत्री ने दूसरे चरमपंथियों को भी इस अवसर का फायदा उठाने को कहा. समर्पण करने वाले सभी पूर्व आतंकवादियों की उम्र 18 से 34 साल के बीच है. जेएमबी और अंसार में शामिल होने की वजह से सब अपने अपने परिवारों से जुदा हो गए थे. दोनों संगठनों पर बांग्लादेश में हुए कई आतंकी हमलों को कराने का आरोप है.
आतंकवादियों को कट्टरपंथ से बाहर निकालने और उनके पुनर्वासन के लिए सरकार ने यह कार्यक्रम शुरू किया था. कार्यक्रम के मुखिया कर्नल तुफैल मुस्तफा सरवर ने बताया इस कार्यक्रम के तहत जिंदगी फिर से शुरू करने के लिए नकद धनराशि और मदद दी जाती है.
उन्होंने बताया कि जिन लोगों ने समर्पण किया है उनमें से सिर्फ एक के खिलाफ एक आपराधिक मामला दर्ज है, लेकिन शेष सभी आतंकी संगठनों से गहराई से जुड़े हुए थे. उन्होंने यह भी बताया कि सभी पर निगरानी रखी गई और उन्हें धीरे धीरे इस मुकाम तक लाया गया. कर्नल सरवर ने यह जानकारी भी दी कि उन सभी को या तो सोशल मीडिया या उनके दोस्तों के जरिए कट्टरपंथी बनाया गया था.
उन्हें वापस लाने के लिए गुप्तचर संस्थाओं के सदस्य आतंकवादियों का भेष बना कर उनसे मिले, दोस्ती की और धीरे धीरे उन्हें आतंकवाद का रास्ता छोड़ने के लिए मना लिया. कर्नल सरवर का कहना है कि ये उन्हें "रोशनी" की तरफ वापस लाने की पहली सीढ़ी है.
सीके/एए (डीपीए)
जनरल मोटर्स ने कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो 2021 में एक ऐसी कार को पेश किया है जो बिना ड्राइवर के खुद से उड़ेगी और लैंड भी करेगी. भविष्य की जरूरतों को देखते हुए कंपनी ने इस तरह के कॉन्सेप्ट को पेश किया है.
कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो (सीईएस) 2021 में जनरल मोटर्स ने भविष्य की खुद से उड़ने और उतरने वाली कॉन्सेप्ट कार को पेश किया. इस कॉन्सेप्ट कार का नाम कैडिलैक है. कोरोना महामारी की वजह से इस साल सीईएस का आयोजन वर्चुअल तरीके से हो रहा है. कैडिलैक अपने यात्री को सीधे हवा में ले जा सकती है और फिर जमीन पर उतार सकती है, यह सब कुछ बिना ड्राइवर के मुमकिन है. जनरल मोटर्स के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस सिद्धांत को "व्यक्तिगत परिवहन के भविष्य को फिर से परिभाषित करने वाला" बताया है. उड़ने वाली कार कैडिलैक में एक यात्री सफर कर सकता है, तकनीकी रूप से यह सीधे जमीन से ऊपर उड़ान भर सकती है और एक छत से दूसरी छत पर सफर कर सकेगी.
कार की रफ्तार 88.5 किलोमीटर तक जा सकती है. कार पूरी तरह से खुद से चलने वाली और इलेक्ट्रिक है, जिसमें 90 किलोवॉट का मोटर लगा है. उड़ने वाली कैडिलैक को कंपनी की मुख्य कार्यकारी मैरी बर्रा ने एक वीडियो के जरिए पेश किया. कंपनी ने परिवार के लिए अनुकूल एक इलेक्ट्रिक वाहन भी पेश किया.
उड़ने वाली कार की खासियत
मैरी बर्रा ने पिछले साल बताया था कि उनकी कंपनी हवाई परिवहन के रूप में इस तरह के वैकल्पिक परिवहन साधनों पर काम कर रही है. जनरल मोटर्स के डिजाइन प्रमुख माइक सिमकोय के मुताबिक, "वर्टिकल टेक-ऑफ और लैंडिंग (वीटीओएल) भविष्य के लिए जनरल मोटर्स की दृष्टि की कुंजी है." उड़ने वाली कैडिलैक की बॉडी बहुत हल्की है, इसमें जीएम अल्टियम बैटरी पैक है और इसमें चार रोटर लगाए गए हैं. कार के आगे और पीछे स्लाइडिंग दरवाजे लगे हुए हैं. कार में बायोमीट्रिक सेंसर, वॉयस कंट्रोल और हाथ के इशारे समझने वाली विशेषता दी गई है. कार के वीडियो को पेश करने के दौरान बताया गया कि यह जल्द ही आने वाली है. कंपनी ने उड़ने वाली कैडिलैक के बारे में और अधिक बताने से मना किया है.
उबर, टोयोटा, ह्यूंडई समेत अन्य कंपनियां भी उड़ने वाली कारों पर काम कर रही हैं. कुछ स्टार्टअप भी इस तरह की कार पर काम कर रही है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
वाशिंगटन, 15 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 9.3 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से होने वाली मौतें 19.9 लाख से अधिक हो गई हैं। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी ने दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने शुक्रवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामलों और मृत्यु दर क्रमश: 93,051,654 और 1,991,997 है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका कोविड से सर्वाधिक प्रभावित देश है, यहां कुल 23,308,712 मामले और 388,529 मौतें दर्ज की गई हैं।
Information courtesy Worldometer
संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 10,512,093 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है, जबकि देश में कोविड से मरने वालों की संख्या बढ़कर 151,727 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दस लाख से अधिक पुष्ट मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (8,324,294), रूस (3,459,237), ब्रिटेन (3,269,757), फ्रांस (2,909,879), तुर्की (2,364,801), इटली (2,336,279), स्पेन (2,211,967), जर्मनी (2,004,011), कोलम्बिया (1,849,101), अर्जेंटीना (1,770,715), मेक्सिको (1,571,901), पोलैंड (1,414,362), ईरान (1,311,810), दक्षिण अफ्रीका (1,296,806), यूक्रेन (1,175,343) और पेरू (1,040,231) हैं।
कोविड से हुई मौतों के मामले में ब्राजील 207,095 आंकड़ों के साथ दूसरे नंबर पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मृत्यु वाले अन्य देश मेक्सिको (136,917), ब्रिटेन (86,163), इटली (80,848), फ्रांस (69,452), रूस (63,016), ईरान (56,538), स्पेन (53,079), कोलंबिया (47,491), अर्जेंटीना (45,125), जर्मनी (44,672), पेरू (38,399), दक्षिण अफ्रीका (35,852), पोलैंड (32,456), इंडोनेशिया (25,246), तुर्की (23,495), यूक्रेन (21,300) और बेल्जियम (20,250) है। (आईएएनएस)
गाजा, 15 जनवरी | यूएन रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी' (यूएनआरडब्ल्यूए) ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए अमेरिकी वित्तीय सहायता को बहाल करने को लेकर अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यालय से संपर्क किया है। एक शीर्ष अधिकारी ने यह जानकारी दी। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, यूएनआरडब्ल्यूए के कमिश्नर-जनरल फिलिप लजारिनी ने गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "हम नए अमेरिकी प्रशासन के साथ संबंधों को फिर से शुरू करने को लेकर आशान्वित हैं।"
उन्होंने कहा कि जैसे ही नया प्रशसान 20 जनवरी को कार्यभार संभालेगा, एजेंसी अगले चरण के दौरान अपनी पिछली स्थिति को बहाल करने के लिए अमेरिकी वित्तीय आवंटन के लिए तत्पर है।
लजारिनी ने कॉन्फ्रेंस में आगे कहा कि यूएनआरडब्ल्यूए फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए सभी सेवाओं और रोजगार कार्यक्रमों को जारी रखेगा।
एजेंसी के अधिकारियों ने बार-बार घोषणा की है कि यह एक गंभीर वित्तीय संकट से गुजर रहा है, जो तब शुरू हुआ जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 की शुरुआत में 36 करोड़ डॉलर में कटौती करने का फैसला किया, जो यूएनअरडब्ल्यूए के बजट का 30 प्रतिशत था।
यूएनआरडब्ल्यू 56 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थियों को मानवीय सेवाएं प्रदान करता है।
वॉशिंगटन, 15 जनवरी| अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इस बात का खुलासा किया है कि कोविड-19 के प्रकोप से प्रभावित साल 2020 सबसे अधिक गर्म साल भी रहा। इसने साल 2016 के रिकॉर्ड को एक डिग्री के दसवें हिस्से की अधिकता के साथ तोड़ दिया है। हालांकि इसकी कई सारी वजहें भी हैं, जिनमें से एक है ऑस्ट्रेलिया, साइबेरिया और अमेरिकी वेस्ट कोस्ट के जंगलों में लगी भीषण आग और भीषण चक्रवाती अटलांटिक तूफान के दौरान इस आग के जलने का समय भी काफी लंबा रहा।
अमेरिका में नासा के गोडार्ड स्पेस फ्लाइट सेंटर में एक शोध मौसम विज्ञानी लेस्ली ओट ने कहा, "अब तक हमने जलवायु परिवर्तन के जिन गंभीर प्रभावों की भविष्यवाणी की है, यह साल उसी का एक उदाहरण रहा है।"
हालांकि इसके लिए सिर्फ जंगलों में लगी आग को ही दोषी ठहराया जाना उचित नहीं है बल्कि मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन भी धरती को गर्म करने के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है।
न्यूयॉर्क सिटी में नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस स्टडीज (जीआईएसएस) के निदेशक और जलवायु वैज्ञानिक गेविन श्मिट ने कहा, "धरती की सामान्य प्रक्रियाएं यही है कि इंसानी गतिविधियों द्वारा उत्सर्जित कार्बन-डाई-ऑक्साइड का शोषण कर लिया जाए, लेकिन हम जिस अधिक मात्रा में पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड को छोड़ रहे हैं, उस पर काबू पाना अब पेड़-पौधों व समंदर के वश में नहीं हो पा रहा है।"
नासा के मुताबिक, आज से करीब 250 साल पहले हुई औद्योगिक क्रांति के बाद से कार्बन डाई ऑक्साइड का स्तर करीब-करीब 50 फीसदी तक बढ़ गया है। वातावरण में मीथेन की मात्रा दोगुनी से अधिक हो गई है। नतीजतन इस दौरान धरती एक डिग्री सेल्सियस और ज्यादा गर्म हो गई है।
जलवायु विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि चूंकि धरती गर्म हो रही है, ऐसे में गर्म हवा के थपेड़ों और सूखे में और इजाफा हो सकता है, जंगलों में आग लगने की संख्याओं में भी बढ़ोत्तरी हो सकती है, साल में औसत से अधिक गंभीर तूफानों के आने की आशंका भी बनी हुई है। (आईएएनएस)
हांगकांग, 15 जनवरी | कोविड-19 महामारी के कारणों का अध्ययन करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीम गुरुवार को वुहान पहुंची है। चीन ने इस 13 सदस्यीय अंतरराष्ट्रीय टीम के दो सदस्यों को महामारी के केंद्र (एपिसेंटर) वुहान की यात्रा करने पर रोक लगा दी है। बताया जा रहा है कि सिंगापुर में कोरोनावायरस एंटीबॉडी परीक्षण में असफल होने के बाद सदस्यों पर यात्रा की रोक लगाई गई है।
इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने ट्वीट किया था कि 13 वैज्ञानिकों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने कोविड-19 के कारणों का पता लगाने के लिए वुहान पहुंची है, जहां से वायरस की उत्पत्ति हुई थी।
विशेषज्ञों को अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के लिए दो सप्ताह के क्वांरटीन प्रोटोकॉल के दौरान तुरंत अपना काम शुरू करना था।
बाद में डब्ल्यूएचओ ने एक अलग ट्वीट में कहा कि आईजीएम एंटीबॉडी के लिए पॉजिटिव परीक्षण किए जाने के बाद उस टीम के दो सदस्य सिंगापुर में ही हैं।
आईजीएम एंटीबॉडी एक कोरोनोवायरस संक्रमण के शुरूआती संभावित संकेतों में से हैं।
डब्लूएचओ ने एक ट्वीट में बताया है कि दो वैज्ञानिक अभी भी कोविड-19 परीक्षण पूरा करने के लिए सिंगापुर में ही हैं।
गुरुवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने कहा कि देश महामारी की रोकथाम के नियमों और आवश्यकताओं का कड़ाई से पालन करेगा और डब्ल्यूएचओ विशेषज्ञों के लिए समान समर्थन और सुविधाएं प्रदान करेगा, जो वायरस के मूल स्थान का पता लगाने के लिए चीन पहुंचे हैं।
शुरूआती आनाकानी के बाद और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे झुकते हुए चीन ने डब्ल्यूएचओ की टीम को अपने यहां आने की अनुमति दी है। बीजिंग पर यह आरोप है कि उसके वुहान शहर स्थित लैब से ही वैश्विक महामारी का कारण बनने वाला कोविड-19 वायरस पैदा हुआ और यहीं से पूरी दुनिया में फैल गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सबसे पहले यह आरोप लगाया था और इसे चीनी वायरस करार दिया था।
--आईएएनएस
न्यूयॉर्क, 15 जनवरी | नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने गुरुवार को ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ सोनिया अग्रवाल को जलवायु नीति और नवाचार के लिए अपनी वरिष्ठ सलाहकार के रूप में नामित किया। सोनिया बाइडेन प्रशासन में शामिल कई प्रमुख भारतीय अमेरिकी चेहरों में से एक हैं।
बाइडेन की ट्रांजिशन टीम के अनुसार, बाइडेन जिन दिनों उप राष्ट्रपति थे, उन दिनों सोनिया अग्रवाल ने ऊर्जा नवाचार के लिए 200 बिजली नीति विशेषज्ञों को एकजुट किया था और अमेरिका की बिजली योजना का नेतृत्व किया था।
उन्होंने जलवायु और ऊर्जा नीतियों के पर्यावरण, आर्थिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए ऊर्जा नीति सिम्युलेटर विकसित करने वाली टीम को भी निर्देशित किया था।
ओहियो में जन्मीं सोनिया अग्रवाल ने सिविल इंजीनियरिंग में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में मास्टर्स कोर्स किया है।
बाइडेन प्रशासन में महत्वपूर्ण पदों के लिए नामित भारतीय अमेरिकियों में से एक कमला हैरिस, अगले बुधवार को उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगी। नीरा टंडन कैबिनेट रैंक के साथ प्रबंधन और बजट के कार्यालय की निदेशक होंगी। विवेक मूर्ति सर्जन जनरल, वेदांत पटेल सहायक प्रेस सचिव, विनय रेड्डी भाषण लेखन निदेशक और गौतम राघवन राष्ट्रपति के कार्मिक कार्यालय के उप निदेशक होंगे।
अन्य लोगों में : अतुल गवांडे और सेलीन गौंडर, कोविड-19 टास्क फोर्स के सदस्य, भरत राममूर्ति राष्ट्रीय आर्थिक परिषद के उपनिदेशक, सबरीना सिंह, कमला हैरिस के लिए उप प्रेस सचिव, माला अदिगा प्रथम महिला बनने वाली जिल बाइडेन के लिए नीति निदेशक रहेंगी।
शपथ ग्रहण समारोह आयोजन समिति के कार्यकारी निदेशक माजू वर्गीज बनाए गए हैं।
शक्तिशाली राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में नामांकित व्यक्ति हैं तरुण छाबरा, प्रौद्योगिकी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए वरिष्ठ निदेशक हैं; सुमोना गुहा, दक्षिण एशिया के लिए वरिष्ठ निदेशक और शांति कलाथिल, लोकतंत्र और मानवाधिकार के लिए समन्वयक।
--आईएएनएस
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप चार सालों तक अमेरिकी सियासत में छाये रहे. उनके सामने कोई न टिक सका और वो सुर्ख़ियों में बने रहे. लेकिन बुधवार को अमेरिकी हाउस ऑफ़ रिप्रेज़ेंटेटिव्स द्वारा महाभियोग किये जाने के बाद वाशिंगटन के पत्रकार कहते हैं कि व्हाइट हाउस में एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ है.
ट्विटर उनका पसंदीदा सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म था जिसके ज़रिए राष्ट्रपति अपने करोड़ों समर्थकों से संपर्क में रहते थे. लेकिन इस प्लेटफ़ॉर्म से वो बाहर कर दिए गए हैं. फ़ेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने भी उनके अकाउंट को निलंबित कर दिया है. उनके कई क़रीबी साथियों ने उनका साथ छोड़ दिया है. राष्ट्रपति पद के शीर्ष पर पहुँच कर भी वो बहुत अकेला महसूस कर रहे होंगे. उनकी विरासत ध्वस्त होती नज़र आती है.
क्या ये उनके सियासी भविष्य का अंत है? क्या उनके पीछे दृढ़ विश्वास के साथ खड़ी रिपब्लिकन पार्टी उनसे अपना दामन छुड़ाने के कगार पर है? क्या वो रिपब्लिकन पार्टी के लिए इसके गले का फंदा बन गए हैं? और सब से अहम, क्या रिपब्लिकन पार्टी इस संकट से जल्द निकल सकेगी या ट्रंप अगले चुनाव में भी पार्टी की तरफ़ से राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार होंगे?
biden kamla
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप 20 जनवरी को अमेरिका के एक आम नागरिक हो जाएंगे. अगर उन्हें अमेरिकी सीनेट ने हिंसा भड़काने का दोषी ठहराया और उनके ख़िलाफ़ दो-तिहाई वोट पड़े तो आगे वो न तो 2024 का चुनाव लड़ सकते हैं और न ही कोई सरकारी पद हासिल कर सकते हैं. पूर्व राष्ट्रपति को दिए जाने वाले विशेषाधिकार से भी वो वंचित हो जाएंगे.
छह जनवरी को ट्रंप के समर्थकों द्वारा अमेरिकी संसद पर हमले के बाद कुछ रिपब्लिकन पार्टी के लीडर उनके ख़िलाफ़ हो गए हैं. कम से कम हाउस के 10 सदस्यों ने उनके ख़िलाफ़ वोट भी दिया.
लेकिन बी. जे. रुदेल के अनुसार राष्ट्रपति का मृत्यु लेख लिखना अभी मूर्खता होगी.
वो कहते हैं, "उदाहरण के तौर पर पिछले साल उन्होंने पत्रकार बॉब वुडवर्ड से स्वीकार किया था कि कोरोना महामारी कितनी घातक साबित होगी लेकिन दूसरे जब ये कहते थे तो राष्ट्रपति उन्हें फ़ेक न्यूज़ फैलाने वाला कहते थे. नतीजा क्या हुआ? बॉब वुडवर्ड का इंटरव्यू सितंबर में आया जिसके बाद उनकी लोकप्रियता 92 प्रतिशत से बढ़ कर 94 प्रतिशत हो गयी."
लेकिन मुंबई में स्थित विदेश नीतियों के थिंक टैंक गेटवे हाउस से जुड़े भारत के पूर्व राजनयिक राजीव भाटिया कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप और उनकी पार्टी को लेकर फ़िलहाल अनिश्चितता बनी हुई है.
बीबीसी से बातें करते हुए उन्होंने कहा कि ट्रंप का भविष्य पार्टी क्या रुख़ लेती है इस पर निर्भर करेगा.
nancy pelosi
वो कहते हैं, "उनका भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि रिपब्लिकन पार्टी के लोग क्या चाहते हैं. ये अभी स्पष्ट नहीं है. एक तरफ़ तो ये कहा जा रहा है कि दल एकता बनाएगा और ट्रंप के साथ जुड़ा रहेगा और उनके ख़िलाफ़ सीनेट के ट्रायल में जो दो-तिहाई बहुमत चाहिए वो नहीं मिल सकेगा. दूसरी तरफ़ रिपब्लिकन पार्टी में भी दो ख़ेमों की बात कही जा रही. एक ख़ेमा जो ट्रंप के साथ रहेगा और दूसरा उनके साथ नहीं रहेगा. अब आगे क्या होगा इसके लिए तो हमें इंतज़ार करना पड़ेगा."
अमेरिकी सीनेट में 100 सदस्य होते हैं जिनमे 51 सदस्य डेमोक्रैटिक पार्टी के हैं और 49 रिपब्लिकन पार्टी के. सीनेट में होने वाले मुक़दमे में रिपब्लिकन पार्टी के 17 सदस्य ट्रंप के ख़िलाफ़ वोट देंगे तब ही दो-तिहाई बहुमत हासिल हो सकेगा. मुक़दमा अब 20 जनवरी के बाद ही शुरू हो सकेगा जब ट्रंप राष्ट्रपति पद से हट चुके होंगे. राजीव भाटिया कहते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी की अंदरूनी राजनीति क्या रुख़ लेती है इस पर ही ये तय हो सकेगा कि ट्रंप को लेकर चलेंगे या उन्हें छोड़ देंगे.
राजीव भाटिया के अनुसार दो घटनाएँ ऐसी हुई हैं जो ट्रंप और रिपब्लिकन पार्टी दोनों के लिए नकारात्मक साबित हुई हैं.
वो कहते हैं, "एक तो ये कि ट्रंप ने जो लगातार चुनाव की वैधता को लेकर सवाल खड़े किये वो हर स्टेज पर ख़ारिज होते रहे, चुनावी अधिकारियों के स्तर पर, राज्य सरकारों के स्तर पर और अदालतों के स्तर पर ये ख़ारिज होते रहे. और दूसरा छह जनवरी की कांग्रेस की इमारत के भीतर हुई हिंसा उससे पार्टी को धक्का लगा है और ट्रंप को भी. उसी दिन घटना से पहले हाउस में रिपब्लिकन पार्टी के कई सदस्य ये कह रहे थे कि चुनावी नतीजे को न माना जाए लेकिन घटना के बाद ऐसे सदस्यों की संख्या थोड़ी रह गयी. इन दोनों घटनाओं से रिपब्लिकन पार्टी और ट्रंप दोनों को धक्का लगा है. ट्रंप के लिए इससे बड़ी क्या बेइज़्ज़ती हो सकती है कि उनके काल के आख़िरी हफ़्ते में वो अमेरिका के ऐसे पहले राष्ट्रपति बन गए जिनके ख़िलाफ़ दो बार महाभियोग प्रस्ताव पारित हुआ."
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप की हालत एक ऐसे मुक्केबाज़ जैसी है जिसके क़दम डगमगा रहे हैं. एक ज़ोरदार मुक्का लगा तो वो नॉक आउट हो सकते हैं. लेकिन कई मुक्केबाज़ इस बुरी तरह से पिटने के बाद भी मुक़ाबला जीत जाते हैं.
अगर सीनेट द्वारा उनपर आने वाले चुनाव में हिस्सा लेने पर पाबंदी न भी लगाई जाए तो ये तय है कि पार्टी के अंदर उनका असर कम हुआ है. लेकिन ये याद रखना ज़रूरी है कि पार्टी में छह जनवरी से पहले उनकी लोकप्रियता 87 प्रतिशत थी. इसके अलावा उनके समर्थकों की संख्या करोड़ों में है जो उनका साथ नहीं छोड़ने वाले हैं. ये भी याद रखने की बात है कि उन्हें चुनाव में साढ़े सात करोड़ के क़रीब वोट मिले हैं.
बी जे रुदेल कहते हैं कि उनके समर्थक उनके सच्चे भक्त हैं और उन्हें ये विश्वास है कि ट्रंप ही चुनाव जीते थे. वो आगे भी ट्रंप के साथ बने रहेंगे.
लेकिन कुछ दूसरे विशेषज्ञ ये मानते हैं कि ट्रंप उतने ताक़तवर हैं नहीं जितना कि लोग उनके बारे में गुमान करते हैं. उनका तर्क है कि ऐसा कम ही होता है कि वर्तमान राष्ट्रपति अगला चुनाव हार जाए. वो चुनाव हार गए और फिर उनके काल में सीनेट और हाउस दोनों में रिपब्लिकन पार्टी ने अपना बहुमत गंवाया. उनके ख़िलाफ़ ये रिकॉर्ड जीत दिलाने वाले किसी उम्मीदवार का नहीं है.
इसलिए अब कई वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक पार्टी को सलाह दे रहे हैं कि वो ट्रंप से दूरी बना लें.
सियासी विश्लेषक कीथ नौगटन "द हिल" नामक एक पत्रिका में एक लेख में लिखते हैं कि रिपब्लिकन पार्टी को चाहिए कि वो ट्रंप से नाता तोड़े और रिपब्लिकन पार्टी के नए वोटरों पर ध्यान दे.
वो लिखते हैं, "ट्रंप अब चुनाव नहीं जीत सकते (2024 का चुनाव). छह जनवरी की घटना काफ़ी घातक साबित हुई है उनके सियासी करियर के लिए. पार्टी को उनके बग़ैर आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए."
लेकिन फ़िलहाल ट्रंप को कोई भी पूरी तरह से ख़ारिज करने के लिए तैयार नहीं है. इस संभावना से पूरी तरह से कोई भी इंकार करने को तैयार नहीं कि 2024 के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार वो नहीं होंगे. पार्टी में दूसरे संभावित उम्मीदवार, जैसे कि, निक्की हेली, टेड क्रूज़ और जोश हॉली ऐसे नेता हैं जिनका वोटरों में आधार कम है और पार्टी के अंदर ट्रंप की तुलना में उनकी लोकप्रियता काफ़ी कम है.
इस समय ट्रंप के पास सबसे बड़ी सियासी पूँजी उनके समर्थकों का एक बहुत बड़ा बेस का होना है. पहले वो ट्विटर या दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म द्वारा इन समर्थकों से बातें करते थे. अब आने वाले कुछ हफ़्तों और महीनों में ये स्पष्ट हो सकेगा कि वो उन समर्थकों से किस माध्यम से बातें करेंगे. एक सुझाव है कि वो ट्विटर की तरह एक नया प्लेटफ़ॉर्म बनाएँगे और दूसरा सुझाव है कि वो अपना एक टीवी चैनल शुरू करेंगे.
सबकी राय यही है कि ट्रंप मुसीबत में ज़रूर हैं लेकिन वो मैदान से बाहर नहीं हुए हैं. (बीबीसी)
ब्रिटेन में मौसम भले ही सर्द हो लेकिन ब्रेक्जिट के बाद स्कॉटलैंड की आजादी की मांग को लेकर माहौल गर्माने लगा है. स्कॉटलैंड में आजादी के लिए फिर से जनमत संग्रह की मांग उठ रही है.
डॉयचे वैले पर स्वाति बक्षी का लिखा -
एक तरफ ईयू से विदाई के बाद स्कॉटलैंड से समुद्री भोजन के निर्यात से जुड़ी दिक्कतों ने सिर उठाया है तो दूसरी ओर आजाद स्कॉटलैंड की समर्थक स्कॉटिश नैशनल पार्टी (एसएनपी) ने ब्रिटिश सरकार पर राजनैतिक दबाव बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं. ब्रेक्जिट के बाद पहले हफ्ते में स्कॉटलैंड से ईयू जाने वाले समुद्री खाद्यों से भरे ट्रकों को सीमाएं पार करने में हुई भारी दिक्कतों की वजह से कई निर्यातकों का व्यापार डूब जाने की आशंका जताई जा रही है.
ब्रिटिश संसद में एसएनपी के नेता इयन ब्लैकफर्ड ने रविवार को कहा कि ब्रेक्जिट की वजह से होने वाले जबरदस्त आर्थिक नुकसान और व्यापार से जुड़ी परेशानियों को देखते हुए स्कॉटलैंड ब्रिटेन से बड़े मुआवजे का हकदार है. ब्रेक्जिट को एक "गैरजरूरी आर्थिक बर्बरता” की संज्ञा देते हुए ब्लैकफर्ड ने कहा, "अब यह बिल्कुल साफ हो चुका है कि स्कॉटलैंड के हितों की रक्षा और यूरोप में उसकी जगह सुनिश्चित करने के लिए आजादी ही एकमात्र रास्ता है.”
स्कॉटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर निकोला स्टर्जन तो आजादी के मसले पर दोबारा जनमत संग्रह कराए जाने को लगातार हवा देती रही हैं. सवाल यह है कि क्या अब ब्रिटेन स्कॉटलैंड की आजादी के लिए तेज होती आवाजों को अनसुना करना जारी रख सकता है.
ब्रेक्जिट के बाद व्यापारिक दिक्कतें
ईयू के एकल बाजार और कस्टम यूनियन से बाहर निकलने के बाद पहले हफ्ते स्कॉटलैंड के समुद्री खाद्य उद्योग में अफरा-तफरी का माहौल रहा. बदली औपचारिक परिस्थितियों से व्यापारिक गतिविधियां खासी प्रभावित रहीं. खासकर मछली और दूसरे समुद्री खाद्य पदार्थों के निर्यातकों को कागजाती जरूरतों से उपजी उलझनें और आईटी से जुड़ी दिक्कतें झेलनी पड़ीं जिसके चलते ट्रक चालक घंटों तक फंसे रहे.
इससे ना सिर्फ सामान को यूरोपीय बाजारों में पहुंचाने में देरी हुई बल्कि कुछ कंपनियों ने सामान की डिलीवरी ही रद्द कर दी. निर्यातकों के लिए असमंजस और अनिश्चितता के इस माहौल का असर स्कॉटलैंड के घरेलू बाजार पर भी दिखाई दिया. खाद्य उद्योग से जुड़ी एक प्रतिनिधि संस्था स्कॉटलैंड फूड ऐंड ड्रिंक के सीईओ जेम्स विदर्स ने सोमवार को ट्वीट करके कहा कि ब्रेक्जिट के बाद पैदा हुई अड़चनों के चलते घरेलू बाजार में समुद्री खाद्य पदार्थों की कीमतें 80 फीसदी तक गिर गईं.
यूरोपीय बंधन से आजादी
पांच दशक तक यूरोपीय संघ का हिस्सा रहने के बाद ब्रिटेन आजादी की एक नई राह पर है. पांच दशक के निकट आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समन्वय के बाद अब ब्रिटेन सारे फैसले अकेले ले सकेगा.
खाद्य उद्योग से जुड़े तीन संगठनों- स्कॉटलैंड फूड ऐंड ड्रिंक, सीफूड स्कॉटलैंड और स्कॉटिश सामन प्रड्यूसर्स ऑर्गनाइजेशन ने बीते शुक्रवार ही अपने संयुक्त बयान में कहा था कि ब्रिटेन को ब्रसेल्स के साथ मिलकर यूरोपियन यूनियन को होने वाले निर्यात के लिए नियम-कायदों को हल्का करने के लिए काम करना चाहिए.
उलझनों का यह माहौल सिर्फ स्कॉटलैंड तक सीमित हो ऐसा नही है. ब्रिटेन से उत्तरी आयरलैंड भेजे जाने वाले सामान की चेकिंग के तरीके और औपचारिक कागजों की बदली जरूरतों के मद्देनजर, प्रमुख रीटेलर मार्क्स ऐंड स्पेंसर ने उत्तरी आयरलैंड के अपने सभी स्टोर में सैकड़ों प्रकार का सामान ना भेजने का फैसला किया ताकि अड़चनों के चलते सामान खराब ना हो.
कुल मिलाकर पहला हफ्ता स्कॉटलैंड के लिए उलझनें और चिंताएं लेकर आया. जाहिर है एसएनपी इस मौके पर ब्रिटिश सरकार की आलोचना और स्कॉटलैंड की आजादी की बात दोहराने से नहीं चूंकी.
जनमत संग्रह की मांग और आजादी की आस
सितंबर 2014 में स्कॉटलैंड ने यूनाइटेड किंगडम से आजादी के मामले पर जनमत संग्रह करवाया गया था जिसके हक में 45 फीसदी लोगों ने वोट किया जबकि 55 फीसदी ने इसे नकार दिया था. लेकिन यूरोपियन यूनियन से बाहर आने के मामले पर यूनाइटेड किंगडम में हुए जनमत संग्रह ने इस मसले को नया मोड़ दे दिया. जून 2016 में ब्रेक्जिट के लिए हुए जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड की जनता ने 32 फीसदी के मुकाबले 68 फीसदी वोटों के साथ ईयू में बने रहने के लिए वोट किया था लेकिन ब्रिटेन की विदाई तय होने के साथ ही स्कॉटलैंड की आजादी का मसला जोर पकड़ने लगा.
स्कॉटलैंड की फर्स्ट मिनिस्टर एसएनपी नेता निकोला स्टर्जन ने इसे स्कॉटलैंड की मर्जी के खिलाफ बताते हुए आजादी के लिए फिर से जनमत संग्रह की मांग उठाई. साल 2017 में लिस्बन संधि के अनुच्छेद 50 के तहत ईयू से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले स्टर्जन ने स्कॉटलैंड में फिर से जनमत संग्रह की औपचारिक इजाजत मांगी जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री टेरीजा मे ने अस्वीकार कर दिया. तब से लेकर अब तक स्टर्जन कई मौकों पर यह मांग उठाती रही हैं जिसे बॉरिस जॉनसन भी यह कहकर दरकिनार करते रहे हैं कि ऐसा मौका पीढ़ियों में एक बार आता है और वह मौका 2014 में निकल चुका है.
यूरोप और यूरोपीय संघ में क्या फर्क है
देश
ब्रिटेन के निकलने के बाद यूरोपीय संघ में 27 सदस्य बचेंगे जबकि यूरोपीय महाद्वीप में कुल देशों की संख्या लगभग 50 है. वैसे पूर्वी यूरोप के कई देश यूरोपीय संघ का हिस्सा बनना चाहते हैं.
हालांकि ब्रेक्जिट के बाद इस मांग को नया बल मिलता दिख रहा है और यह मसला ज्यादा अहम इसलिए भी है क्योंकि मई 2021 में स्कॉटलैंड के संसदीय चुनाव हैं. एडिनबरा में रहने वाले कॉलिन बर्नेट लघु कथाकार हैं और क्वीन मार्गरेट यूनिवर्सिटी में समाज-शास्त्र के छात्र रहे हैं. कॉलिन कहते हैं कि 2014 में उन्होने स्कॉटलैंड की आजादी के लिए वोट दिया था क्योंकि वो एक ऐसे देश में रहना चाहेंगे जिसकी अपनी राजनैतिक और सांस्कृतिक पहचान हो.
कॉलिन स्कॉटलैंड की आजादी को वहां की जनता से जोड़ते हुए कहते हैं कि "अगर आप ब्रिटेन और अमेरिका की तरफ देखें तो वहां का कामकाजी तबका दक्षिणपंथी पार्टियों के राजनैतिक अजेंडे का शिकार है जबकि स्कॉटलैंड में ऐसा नहीं है. यहां लोग इस बात को समझने लगे हैं कि अगर वे एक होकर काम करें तो स्कॉटलैंड के भविष्य निर्माण में भूमिका निभा सकते हैं." कॉलिन का कहना है कि आजाद स्कॉटलैंड में कामगार वर्ग की अहम भूमिका होगी जो ब्रिटेन में नहीं है. वहां सरकार पर अमीरों और रसूखदारों का प्रभाव है.
कॉलिन उस शिक्षित युवा वर्ग के नजरिए की एक बानगी पेश करते हैं जिसका मानना है कि ब्रिटेन ने उनके देश की इच्छाओं की अनदेखी करते हुए ईयू का साथ छोड़ दिया. हालांकि जानकारों की राय यही है कि स्कॉटलैंड और यूरोपीय यूनियन का रिश्ता गहरा है और आजादी की बहस को यूरोपियन यूनियन में वापसी के मुद्दे से अलग करके नहीं देखा जा सकता. दोनों आपस में जुड़े हुए हैं. साथ ही यह बात सिर्फ दोबारा जनमत संग्रह करवाए जाने और ब्रिटिश सरकार की रजामंदी की नहीं है. इसमें अहम बात स्कॉटलैंड और ब्रिटेन के बीच एक साझेदारी व दोनों तरफ के हितों और संबंधों की रक्षा की है.
यूरोपीय यूनियन में वापसी का इरादा
ब्रेक्जिट जनमत संग्रह में स्कॉटलैंड की जनता के ईयू में बने रहने के लिए दिए गए वोट के बाद इस बात में कोई शक नहीं कि स्कॉटलैंड ईयू से रिश्ते तोड़ने के हक में ना था और ना ही है. इसी कारण आजाद स्कॉटलैंड के यूरोपियन यूनियन में वापस लौटने की इच्छा और अपनी भूमिका नए सिरे से परिभाषित करने का इरादा आजादी की इस पूरी बहस का अटूट हिस्सा है.
यूनाइटेड किंगडम (यूके)
असल में इसका पूरा नाम यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नॉदर्न आयरलैंड है. यूके में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड, उत्तरी आयरलैंड और वेल्स आते हैं. इन चारों के समूह को ही यूके कहा जाता है.
एडिनबरा स्थित थिंक टैंक यूरो मर्चेंट्स के संस्थापक व राजनीतिक विश्लेषक ऐंथनी सैलेमोन कहते हैं, "जहां पिछले सालों में ब्रिटेन का सारा ध्यान ईयू से संबंध तोड़ने के सवाल पर लगा रहा, वहीं स्कॉटलैंड आज भी यूरोप के साथ खड़ा है. आजाद स्कॉटलैंड की वैश्विक भूमिका और उसकी पहचान में यूरोप के साथ संबंधों की अहम भूमिका होगी. हालांकि स्कॉटलैंड एक छोटा देश है लेकिन ईयू का हिस्सा बनकर उसके लिए मुमकिन होगा कि उसकी भी आवाज सुनी जाए और वह अपनी भूमिका सफलतापूर्वक निभा सके.”
ब्रेक्जिट को अंजाम तक पहुंचाने के लिए पिछले चार साल में जिस तरह की उठा-पटक हुई और दरारें उभर कर सामने आईं, उसके बाद स्कॉटलैंड और ब्रिटेन के बीच सांस्कृतिक-वैचारिक अंतर की बात और ज्यादा महत्वपूर्ण बनकर सामने आई है. सैलेमोन का कहना है, "स्कॉटलैंड बहुपक्षीय अंतरराष्ट्रीय संबंधों में दिलचस्पी रखता है और वैश्विक तंत्र के जरिए काम करना चाहता है लेकिन ब्रेक्जिट के दौरान ब्रिटेन ने दिखा दिया कि उसका नजरिया स्कॉटलैंड से अलग है. ये स्कॉटिश लोगों के लिए अहमियत रखता है. यूरोपियन यूनियन में वापसी की इच्छा यह भी जताती है कि स्कॉटलैंड सहयोग में यकीन रखता है और उसका 47 बरस का यूरोपीय इतिहास भी है.”
इन दलीलों से स्कॉटलैंड की यूरोपियन यूनियन में वापसी का इरादा और आधार मजबूत नजर आता है. हालांकि यह रास्ता भी आसान नहीं होगा क्योंकि इसके कई राजनीतिक पड़ाव होंगे जिनकी कोई योजना या खाका फिलहाल मौजूद नहीं है. साथ ही यह डर तो बरकरार ही है कि स्कॉटलैंड की आजादी का रास्ता साफ होने से यूनाइटेड किंगडम का अस्तित्व कमजोर होगा.
डब्लूएचओ ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति की जांच के लिए महामारी के ग्राउंड जीरो यानी वुहान में विशेषज्ञों का एक दल भेजा है. दिसंबर 2019 में कोरोना वायरस का पहला मामला वुहान में ही सामने आया था.
डब्लूएचओ की जांच टीम का चीन दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब देश ने आठ महीने में पहली बार कोरोना वायरस से पहली मौत दर्ज की है. दुनिया भर में कोरोना वायरस के नए रूप को लेकर हड़कंप मचा हुआ है. विश्व भर में कोरोना वायरस मामलों की कुल संख्या 9.2 करोड़ से अधिक हो गई है और अब तक करीब 20 लाख लोगों की मौत हो चुकी है. दुनिया के कई देश कोरोना की दूसरी या तीसरी लहर की चपेट में हैं. महामारी के कारण ना केवल जान का नुकसान हो रहा है बल्कि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं भी बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं.
चीन के वुहान में गुरुवार को शोधकर्ताओं की एक वैश्विक टीम पहुंची जो यह जांच करेगी कि कोरोना वायरस कैसे फैला. शुरूआत में तो चीन अपने यहां जांच करने के लिए टीम को नहीं आने देना चाह रहा था लेकिन वैश्विक दबाव के बाद उसे सहमति देनी पड़ी. डब्लूएचओ ने 10 सदस्यीय टीम को बीजिंग की मंजूरी मिलने के बाद भेजा है, महीनों तक शी जिनपिंग की सरकार ने जांच दल को आने से रोकने के तमाम कूटनीतिक हथकंडे अपनाए, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने सार्वजनिक तौर पर चीन की इसके लिए आलोचना भी की थी.
चीन में जांच दल को मिलेंगे सबूत?
वैज्ञानिकों को शक है कि चीन के इसी प्रांत से चमगादड़ या अन्य जानवरों से वायरस इंसानों तक फैला जिसके कारण लाखों लोग मारे जा चुके हैं. चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी उन आरोपों से चिढ़ गई जिसमें कहा गया कि उसने बीमारी को फैलने दिया. इसके बदले पार्टी का कहना है कि वायरस विदेश से आया था, मुमकिन हो आयात किए हुए समुद्री भोजन से, लेकिन वैज्ञानिक इसे मानने से इनकार करते आए हैं.
डब्लूएचओ की अंतरराष्ट्रीय टीम में वायरस एक्सपर्ट के अलावा अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं, ये एक्सपर्ट अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, जापान, ब्रिटेन, रूस, नीदरलैंड्स, कतर और विएतनाम के हैं. चीनी सरकार के प्रवक्ता ने इस हफ्ते कहा था कि टीम को चीनी वैज्ञानिकों के साथ विचार आदान प्रदान करने का मौका मिलेगा, लेकिन उसने संकेत नहीं दिया कि उन्हें सबूत जुटाने की इजाजत होगी या नहीं.
चीन के चैनल सीजीटीएन की एक पोस्ट में कहा है टीम को दो हफ्ते के लिए क्वारंटीन में जाना होगा और इसी के साथ उनके गले के स्वॉब की जांच होगी. क्वारंटीन में रहने के दौरान डब्लूएचओ की टीम के सदस्य चीनी विशेषज्ञों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए साथ काम कर सकेंगे. ताइवान के चांग गुंग यूनिवर्सिटी में उभरते वायरल संक्रमण अनुसंधान केंद्र के निदेशक शिन-रु-शी कहते हैं, "सरकार को बहुत पारदर्शी और सहयोगी होना चाहिए."
चीनी सरकार ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर भ्रम पैदा करने की कोशिश की, उसने साजिश के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया जिसके बहुत कम सबूत थे, जैसे कि वायरस खराब समुद्री भोजन से फैला होगा. हालांकि अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों और एजेंसियों इन सिद्धांतों को खारिज कर दिया. चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के अधिकारी मी फेंग ने बुधवार को कहा था, "डब्ल्यूएचओ को अन्य स्थानों पर भी इसी तरह की जांच करने की आवश्यकता है."
एक सप्ताह पहले डब्ल्यूएचओ टीम के सदस्य चीन रवाना होने के लिए तैयार थे लेकिन चीन ने ऐन वक्त पर उन्हें वैध वीजा नहीं दिया.
जारी है कोरोना का कहर
जॉन होप्किंस यूनिवर्सिटी की तालिका के मुताबिक वैश्विक स्तर पर कोरोना वायरस मामलों की कुल संख्या 9.2 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 19.7 लाख से अधिक हो गई हैं. अभी भी अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां संक्रमण के 23,067,796 मामले और 3,84,604 मौतें दर्ज की गईं हैं. संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 1,05,12,093 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर आता है, जबकि देश में कोविड-19 से मरने वालों की संख्या 1,51,529 हो गई है. भारत में इस बीमारी से ठीक होने वाली की दर 96.51 प्रतिशत है, जबकि मृत्यु दर 1.44 प्रतिशत है.
एए/सीके (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)
टोक्यो, 14 जनवरी | जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने कहा है कि देश में कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के मद्देनजर बाहरी देश के नागरिकों को यहां प्रवेश की अनुमति नहीं दी जाएगी। सिन्हुआ समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकांश बाहरी देश से आने वाले लोगों के प्रवेश पर दिसंबर में ही अंकुश लगा दिया गया था, लेकिन व्यापार के चलते आने वाले कुछ लोगों सहित स्टूडेंट्स प्रोग्राम की वजह से आने वाले नागरिकों को कड़े प्रतिबंधों के तहत छूट दी गई थी।
प्रधानमंत्री ने बुधवार को एक प्रेस वार्ता में कहा, सभी अनिवासी विदेशी नागरिकों के लिए जापान की सीमाओं को 7 फरवरी तक बंद रखा जाएगा क्योंकि ग्रेटर टोक्यो सहित अन्य क्षेत्रों में आपातकाल घोषित हैं।
प्रधानमंत्री ने एक टीवी शो में हाल ही में कहा था कि जापान कुछ देशों के कारोबारियों के लिए अपने दरवाजे खुले रखेगा, बशर्ते ऐसा करने की वजह से ब्रिटेन और दक्षिण अफ्रीका में पाए गए कोरोना की नई किस्म का वायरस न फैलें। (आईएएनएस)
अपना कार्यकाल खत्म होने के कुछ ही दिन पहले डॉनल्ड ट्रंप दो बार महाभियोग लगाए जाने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बन गए हैं. संभव है कि उन पर अमेरिकी संसद में मुकदमा उनके पद छोड़ने के बाद भी चलता रहेगा.
इसके पहले तीन बार और महाभियोग लाए जा चुके हैं जो पूर्व राष्ट्रपति एंड्रू जॉनसन, बिल क्लिंटन और खुद ट्रंप के खिलाफ थे. लेकिन तीनों मौकों पर महाभियोग प्रस्ताव लाने के बाद संसद में जांच और सुनवाई के बाद प्रस्ताव पर मतदान होने में महीनों लग गए. लेकिन इस बार ट्रंप से प्रोत्साहन पा कर उनके समर्थकों द्वारा कैपिटल पर हमले के बाद महाभियोग लाने में सिर्फ एक हफ्ता लगा.
डेमोक्रैट सांसदों के अलावा 10 रिपब्लिकन सांसदों ने भी सिर्फ एक आरोप पर ट्रंप के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए मत डाला. यह आरोप था "विद्रोह के लिए उकसाना". सीनेट में बहुसंख्यक पक्ष के निर्गामी नेता मिच मैककॉनेल ने कहा है कि सीनेट जल्द से जल्द करने पर भी अगले मंगलवार से पहले सुनवाई शुरू नहीं कर पाएगी. उसके अगले दिन ही जो बाइडेन को राष्ट्रपति पद की शपथ लेनी है.
इस समय यह स्पष्ट नहीं है कि यह सुनवाई कैसे आगे बढ़ेगी और सीनेट में कोई भी रिपब्लिकन सांसद ट्रंप को दोषी ठहराए जाने के पक्ष में अपना मत डालेगा या नहीं. सुनवाई तो ट्रंप के पद छोड़ने से पहले नहीं ही हो पाएगी, लेकिन फिर भी उसका यह असर जरूर हो सकता है कि ट्रंप दोबारा कभी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ ना पाएं.
सीनेट भेजा जाना
सीनेट में महाभियोग पर मतदान होने के बाद हाउस के स्पीकर प्रस्ताव के अनुच्छेद या अनुच्छेदों को सीनेट में या तो तुरंत भेज सकती हैं या थोड़ा इंतजार कर सकती हैं. स्पीकर नैंसी पेलोसी ने अभी तक नहीं कहा है कि वो कब भेजेंगी लेकिन उनके कॉकस के कई डेमोक्रैट सांसद उन्हें तुरंत भेजने के लिए कह चुके हैं. पेलोसी ने महाभियोग के लिए नौ मैनेजर नियुक्त किए हैं जो ट्रंप के खिलाफ सीनेट के मुकदमे में जिरह करेंगे. इसे इस बात का संकेत माना जा रहा है कि वो उन्हें जल्द ही भेजेंगी. एक बार अनुच्छेद सीनेट पहुंच गए तो फिर वहां बहुसंख्यक पक्ष के नेता को सुनवाई की प्रक्रिया तुरंत शुरू करनी होगी.
सीनेट का शिड्यूल
सीनेट के कार्यक्रम के अनुसार उसका सत्र 19 जनवरी से पहले शुरू नहीं होगा जो कि सीनेट में नेता के रूप में मैककॉनेल का आखिरी दिन हो सकता है. उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस के शपथ लेने के बाद वो सीनेट की अध्यक्ष बन जाएंगी. उसके बाद जॉर्जिया के दो डेमोक्रेट्रिक सीनेटर भी शपथ लेंगे और उसके बाद सीनेट में डेमोक्रेटों के नेता चक शूमर अपना पद ग्रहण कर लेंगे और फैसला करेंगे कि मुकदमा कैसे आगे बढ़ेगा. मैककॉनेल कह चुके हैं कि वो मुकदमे को शुरू करने के लिए सीनेट को आपात आधार पर वापस नहीं बुलाएंगे. उन्होंने बताया कि सीनेट में पिछले तीनों मौकों पर सुनवाई 83, 37 और 21 दिनों तक चली थी.
मैककॉनेल पर निगाहें
एक रिपब्लिकन रणनीतिकार ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि मैककॉनेल मानते हैं कि ट्रंप ने महाभियोग के लायक अपराध किए हैं और वो यह भी मानते हैं कि यह महाभियोग अभियान रिपब्लिकन पार्टी पर ट्रंप की पकड़ को कमजोर करने का भी एक अवसर है.
अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर रणनीतिकार ने यह भी बताया कि मैककॉनेल ने बीते सप्ताहांत पर पार्टी के प्रमुख डोनरों को बताया कि ट्रंप को लेकर उनका धीरज खत्म हो चुका है. मैककॉनेल की पत्नी ट्रंप के मंत्रिमंडल में यातायात विभाग की सचिव थीं लेकिन उन्होंने कैपिटल पर हमले के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया. हालांकि इस तरह के संकेत देने के बावजूद मैककॉनेल सार्वजनिक रूप से शांत हैं. उनके कार्यालय ने उनके सहयोगियों के लिए बुधवार को एक नोट जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि, "उन्होंने अभी तक इस बारे में फैसला नहीं लिया है कि वो किस पक्ष में मतदान करेंगे."
सीनेट की राजनीति
अगर मैककॉनेल ट्रंप को दोषी ठहराए जाने के पक्ष में मत डालते हैं तो दूसरे रिपब्लिकन भी ऐसा ही करेंगे. लेकिन किसी भी रिपब्लिकन सीनेटर ने यह नहीं कहा है कि वो किस तरफ मत डालेंगे. सीनेट के दो-तिहाई सदस्यों के मतदान की आवश्यकता है. हालांकि कुछ रिपब्लिकनों ने ट्रंप को इस्तीफा देने को कहा है. इनमें पेंसिल्वेनिया के सीनेटर पैट टूमी और अलास्का के सीनेटर लीजा मुर्कोव्स्की शामिल हैं. कुछ सीनेटर उनके पक्ष में भी बोल रहे हैं. 2019 में हाउस में हर रिपब्लिकन सांसद ने ट्रंप के महाभियोग के खिलाफ मतदान किया था.
ट्रंप का भविष्य
अगर सीनेट ट्रंप को दोषी साबित करने में सफल हो जाती है, तो उसके बाद सांसद ट्रंप को भविष्य में दोबारा चुनाव लड़ने से रोकने के सवाल पर एक और मतदान करा सकते हैं. बुधवार को शूमर ने इस बात की पुष्टि की. महाभियोग कर हटाए गए फेडरल न्यायाधीशों के संबंध में सीनेट को उन्हें दोबारा किसी भी फेडरल पद पर नियुक्ति से प्रतिबंधित करने के लिए दूसरा मतदान कराना पड़ा है. हालांकि जहां उन्हें दोषी ठहराने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता है, भविष्य के लिए प्रतिबंध लगाने के लिए सिर्फ बहुमत की आवश्यकता होगी.
सीके/एए (एपी)
मास्को, 14 जनवरी । रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने चेतावनी देते हुए कहा कि देश में नए कोरोनावायरस मामलों में गिरावट की स्थिति को लेकर देशवासियों को आश्वस्त नहीं होना चाहिए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी सदस्यों के साथ वीडियो लिंक के माध्यम से बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पुतिन ने कहा, "इस बीमारी पर अंकुश लगाना और सभी नकारात्मक परिणामों को रोकना संभव नहीं है, जिसे हम पूरे विश्व में देख रहे हैं, जो दुर्भाग्यपूर्ण है।"
राष्ट्रपति के अनुसार, रूस ब्रिटेन सहित अन्य देशों में कोरोनावायरस की वर्तमान स्थिति का अवलोकन कर रहा है।
पुतिन ने अगले हफ्ते से पूरी आबादी के लिए बड़े पैमाने पर वैक्सीनेशन शुरू करने का आदेश दिया, वहीं अधिक जोखिम वाले समूहों के लोगों को दिसंबर की शुरुआत से ही टीका दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि, यात्रा प्रतिबंध सिर्फ अस्थायी उपाय होंगे और यह रूस में स्थिति को पूरी तरह से समझने और यह पता लगाने के लिए महत्वपूर्ण है कि उभरते खतरों को कैसे रोका जाए।
अब तक रूस में कुल 3,471,053 कोविड-19 मामले दर्ज किए गए हैं। (आईएएनएस)
वाशिंगटन, 14 जनवरी | वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 9.2 करोड़ से अधिक हो गई है, जबकि संक्रमण से होने वाली मौतों की संख्या 19.7 लाख से अधिक हो गई हैं। यह जानकारी जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने गुरुवार को दी।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने गुरुवार सुबह अपने नवीनतम अपडेट में खुलासा किया कि वर्तमान वैश्विक मामले और मृत्यु दर क्रमश: 92,291,033 और 1,961,987 है।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका दुनिया का सबसे अधिक प्रभावित देश है, जहां संक्रमण के 23,067,796 मामले और 384,604 मौतें दर्ज किए जाते हैं।
संक्रमण के मामलों के हिसाब से भारत 10,495,147 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर आता है, जबकि देश में कोविड से मरने वालों की संख्या 151,529 हो गई है।
सीएसएसई के अनुसार, दस लाख से अधिक मामलों वाले अन्य देश ब्राजील (8,256,536), रूस (3,434,934), ब्रिटेन (3,220,953), फ्रांस (2,888,292), तुर्की (2,355,839), इटली (2,319,036), स्पेन (2,176,089), जर्मनी (1,981,013), कोलम्बिया (1,831,980), अर्जेंटीना (1,757,429), मेक्सिको (1,556,028), पोलैंड (1,404,905), ईरान (1,305,339), दक्षिण अफ्रीका (1,278,303), यूक्रेन (1,166,958) और पेरू (1,040,231) हैं।
कोविड से हुई मौतों के मामले में ब्राजील वर्तमान में 205,964 आंकड़ों के साथ दूसरे नंबर पर है।
वहीं 20,000 से अधिक मौतें दर्ज करने वाले देश मेक्सिको (135,682), ब्रिटेन (84,910), इटली (80,326), फ्रांस (69,168), रूस (62,463), ईरान (56,457), स्पेन (52,878), कोलंबिया (47,124), अर्जेंटीना (44,983), जर्मनी (43,604), पेरू (38,399), दक्षिण अफ्रीका (35,140), पोलैंड (32,074), इंडोनेशिया (24,951), तुर्की (23,325), यूक्रेन (21,191) और बेल्जियम (20,194) हैं।
--आईएएनएस
लंदन, 14 जनवरी | ब्रिटेन में रहने वाले अधिकांश भारतीय मूल के नागरिक भारतीय किसानों के लिए उचित सौदा सुनिश्चित करने के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच एक व्यापारिक समझौते के पक्ष में हैं। एक नए शोध में यह बात सामने आई है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा समर्थित ब्रिटेन आधारित थिंक टैंक द 1928 इंस्टीट्यूट की ओर से किए गए शोध से पता चला कि 47 प्रतिशत ब्रिटिश-भारतीय ब्रिटेन-भारत व्यापार सौदे के पक्ष में हैं। इसके अलावा शोध में शामिल 43 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि किसानों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिए उनसे सीधे उपज खरीदनी होगी।
संस्थान ने 510 उत्तरदाताओं के बीच यह सर्वेक्षण किया, जिनकी आयु 16 से 85 वर्ष के बीच थी और जिनमें 50 प्रतिशत महिलाएं शामिल थीं। इस शोध में ग्रेटर लंदन, वेस्ट मिडलैंड्स, ईस्ट मिडलैंड्स, वेल्स और उत्तरी आयरलैंड के ब्रिटिश-भारतीयों ने हिस्सा लिया।
सर्वेक्षण में शामिल कई लोगों ने कहा कि ब्रिटिश मुख्यधारा की मीडिया भारतीय कृषि सुधारों के बारे में उतनी जानकारीपूर्ण नहीं है।
भारत और इसके किसानों के साथ उनके संबंधों के महत्व को दर्शाते हुए 32 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि कृषि सुधार बिल्कुल अनुचित हैं, जबकि 31 प्रतिशत ने कहा कि यह नए कानून बिल्कुल उपयुक्त हैं।
अध्ययन में पाया गया कि 41 प्रतिशत ब्रिटिश भारतीयों ने ब्रिटेन के विरोध का समर्थन नहीं किया, क्योंकि ये राजनीति से प्रेरित हैं।
चल रही कोविड महामारी के साथ 30 प्रतिशत उत्तरदाताओं को लगता है कि विरोध प्रदर्शन उनकी चिंता का पर्याप्त स्तर प्रदर्शित करता है, जबकि 18 प्रतिशत लोग कोविड-19 के कारण उपस्थित नहीं हो पाए। वहीं 13 प्रतिशत लोगों को लगता है कि महामारी के विरोध में प्रदर्शन नहीं होना चाहिए।
द 1928 इंस्टीट्यूट की सह-संस्थापक किरण कौर मनपु ने आईएएनएस से कहा, "यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री की आगामी भारत यात्रा (जो कि रद्द कर दी गई है) का परिणाम निष्पक्ष व्यापार के माध्यम से किसानों के लिए समर्थन में हुआ है। हमारे आंकड़ों से पता चलता है कि ब्रिटिश भारतीय, भारतीय कृषि सुधारों के प्रति अपने व्यक्तिगत विचारों की परवाह किए बिना अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कर चुके हैं। उन्होंने इस स्थायी परिणाम को आगे बढ़ाने की इच्छा व्यक्त की है।"
बता दें कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी है और कानूनों की विस्तार से जांच करने के लिए चार सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया है। इसका मतलब है कि भारत सरकार फिलहाल कानूनों को लागू करने का निर्णय नहीं ले सकती है।
--आईएएनएस
ढाका, 14 जनवरी | बांग्लादेश सशस्त्र बल, जो 50 साल पहले अपने भारतीय समकक्षों के साथ मिलकर लड़ा और जीता, वह राजपथ पर 26 जनवरी को नई दिल्ली में होने वाले गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेगा।
भारतीय उच्चायोग ने एक प्रेस नोट में कहा, बांग्लादेश सशस्त्र बलों के 122 गौरवान्वित कर्मियों की एक टुकड़ी विशेष रूप से भेजे गए भारतीय वायुसेना सी-17 विमान में भारत के लिए रवाना हो गई है।
बांग्लादेश की टुकड़ी, जो गर्व से राजपथ पर मार्च करेगी, 1971 के बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों की विरासत को आगे बढ़ाएगी, जिन्होंने स्वतंत्रता, न्याय और अपने लोगों के लिए संघर्ष किया।
भारत के इतिहास में यह तीसरा मौका है जब किसी विदेशी सैन्य दल को गणतंत्र दिवस परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। इससे पहले फ्रांस और यूएई की टुकड़ियां हिस्सा ले चुकी हैं।
बांग्लादेश की टुकड़ी में अधिकांश कर्मी बांग्लादेश सेना की सबसे प्रतिष्ठित इकाइयों से आते हैं, जिनमें 1, 2, 3, 4, 8, 9, 10 और 11 ईस्ट बंगाल रेजिमेंट और 1,2 और 3 फील्ड आर्टिलरी रेजिमेंट शामिल हैं, जिन्हें 1971 का मुक्ति संग्राम लड़ने और जीतने का सम्मान प्राप्त है।
बांग्लादेश नौसेना के नाविकों और बांग्लादेश वायुसेना के वायु योद्धाओं के भी प्रतिनिधि इसमें शामिल हैं।
प्रेस नोट में कहा गया है कि यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वर्ष 2021 में मुक्ति संग्राम के 50 वर्ष हैं, जिसके माध्यम से बांग्लादेश एक जीवंत राष्ट्र के रूप में उभरा, जो अत्याचार और उत्पीड़न के जुए से मुक्त है।
--आईएएनएस
अमेरिकी सेना के शीर्ष अधिकारियों ने डॉनल्ड ट्रंप के समर्थकों की कैपिटॉल पर हिंसा की निंदा की है और इस बात की पुष्टि की है कि 20 जनवरी को नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन का शपथग्रहण होगा.
अमेरिका के शीर्ष जनरल मारिक मिली ने ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के साथ मिल कर एक बयान जारी किया है जिसमें कैपिटॉल पर हुई हिंसा की निंदा की गई है. इस बयान पर सेना की हर शाखा के प्रमुख का दस्तखत है. इसमें कहा गया है कि 6 जनवरी को हुई घटनाएं, "कानून के शासन के लिहाज से उचित नहीं थीं." बयान में यह भी कहा गया है, "अभिव्यक्ति की आजादी का आधिकार और सम्मेलन का अधिकार किसी को हिंसा, देशद्रोह और विद्रोह करने का अधिकार नहीं देता." सेना की तरफ से आए इस बयान में हरेक सैनिक को उनके मिशन की याद दिलाई गई है.
यह अमेरिका के लिए अप्रत्याशित घटना है. सेना के अधिकारियों ने इस समय पर यह संदेश देना जरूरी समझा है. उन्होंने याद दिलाया है, "संवैधानिक प्रक्रिया में बाधा डालने" की कोई भी कोशिश ना सिर्फ "हमारी परंपराओं, मूल्यों और शपथ के बल्कि कानून के भी खिलाफ होगी."
सेना कानून के प्रशासन के साथ
सेना ने इस पत्र के जरिए राष्ट्रपति ट्रंप की खुले तौर पर मुखालफत की है जो 20 जनवरी को पद से हट जाएंगे. सेना के पत्र ने आने वाले डेमोक्रैट की जीत पर भी अपनी मुहर लगा दी है. सेना ने साफ कहा है, "20 जनवरी 2021 को संविधान के मुताबिक... नवनिर्वाचित राष्ट्रपति बाइडेन शपथ लेंगे और हमारे 46वें कमांडर इन चीफ बनेंगे."
सुरक्षा अधिकारियों ने कहा है कि नेशनल गार्ड वॉशिंगटन डीसी में शपथग्रहण समारोह की तैयारियां कर रहे है. आशंका जताई जा रही है कि डॉनल्ड ट्रंप के हथियारबंद समर्थक राजधानी या फिर देश में कुछ और हिंसक गतिविधियों को अंजाम दे सकते हैं. सेना सुरक्षा इंतजामों में हिस्सा नहीं लेगी. सेना खुफिया अधिकारियों के साथ इस बात पर जरूर चर्चा कर रही है कि शपथ ग्रहण में शामिल होने वाले जो सैनिक नेशनल गार्ड की तरफ से शामिल होंगे क्या उनकी पृष्ठभूमिक की जांच करना जरूरी है.
राष्ट्रपति और देश की सेना के सर्वोच्च कमांडर रहते रहते डॉनल्ड ट्रंप ने सेना पर खर्च बढ़ाया है. हालांकि सेना ने राष्ट्रपति के चुनाव में धोखधड़ी के अपुष्ट दावों से खुद को दूर ही रखा है.
महाभियोग का प्रस्ताव
इस बार के अमेरिकी चुनाव और उसके बाद हुई घटनाओं ने पूरी दुनिया को हैरान किया है. डॉनल्ड ट्रंप ना सिर्फ चुनाव के नतीजों को खारिज कर रहे हैं बल्कि उनमें बिना सबूत धोखधड़ी के आरोप भी लगा रहे हैं. अमेरिका दुनिया भर में लोकतंत्र का सबसे बड़ा पैरोकार है और इस तरह की घटना को देखना ना सिर्फ देशवासियों बल्कि बाकी दुनिया के लोगों के लिए भी अप्रत्याशित है. खुद डॉनल्ड ट्रंप की पार्टी के ही सांसद और नेता ट्रंप के विरोध में आ गए हैं.
इस बीच संसद के निचले सदन में ट्रंप के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए औपचारिक अनुरोध कर दिया गया है. अगर यह प्रस्ताव आता है तो ट्रंप अमेरिका के पहले राष्ट्रपति होंगे जिनके खिलाफ दो बार महाभियोग का प्रस्ताव आएगा. ट्रंप के कार्यकाल में अब महज 7 दिन बचे हैं. ऐसे में इतनी जल्दी इस प्रक्रिया के पूरे होने के आसार कम ही हैं लेकिन डेमोक्रैटिक पार्टी इस प्रस्ताव को लाने पर अमादा है. माना जा रहा है कि यह प्रस्ताव ट्रंप को दोबारा चुनाव का उम्मीदवार बनने से रोकने के लिए है. कई रिपब्लिकन सांसद भी ट्रंप के खिलाफ इस प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं.
इससे पहले ट्रंप के खिलाफ एक महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा चुका है. सीनेट में दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित नहीं होने के कारण ट्रंप को इस प्रस्ताव से राहत मिल गई. उस वक्त यूक्रेन के राष्ट्रपति को जो बाइडेन के खिलाफ जांच शुरू कराने के लिए ट्रंप के फोन करने की बात सामने आई थी. कथित टेलिफोन कॉल में इसके बदले में यूक्रेन को अमेरिकी सहायता का वादा किया गया था.
25वें संशोधन का इस्तेमाल
अमेरिकी संविधान के जानकार मान रहे हैं कि महाभियोग का प्रस्ताव ट्रंप को दोबारा उम्मीदवार बनने से रोकने के लिए लाया जा रहा है. बर्नार्ड कॉलेज के राजनीतिविज्ञानी शेरी बर्मन ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा है, "अगर सीनेट में उन पर दोष सिद्ध हो जाता है तो विचार यह होगा कि उन्हें दोबारा राष्ट्रपति बनने से रोका जाए. राष्ट्रपति ने देशद्रोह के लिए उकसाया है, हिंसा के लिए उकसाया है तो लोकतंत्र के लिए यह जरूरी है कि कानून का शासन उन्हें इसके लिए जिम्मेदार ठहराए."
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैन्सी पेलोसी ट्रंप के बयानों के आधार पर उनके खिलाफ महाभियोग का मामला बनाने की कोशिश कर रही हैं. इससे बचने के लिए उन्होंने उपराष्ट्रपति माइक पेंस के सामने 25वें संशोधन का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया था. हालांकि उपराष्ट्रपति ने उनकी बात नहीं मानी और ट्रंप के साथ बने रहने की बात कही. 25वां संशोधन विशेष परिस्थिति से जुड़ा है. इसके तहत उपराष्ट्रपति अगर किसी वैध आधार पर राष्ट्रपति को उनके पद के लिए अयोग्य घोषित कर दे तो उस स्थिति में उपराष्ट्रपति खुद कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाते हैं और सारी शक्तियां उनके पास आ जाती हैं.
अमेरिका में कोई शख्स सिर्फ दो बार के लिए राष्ट्रपति बन सकता है. हालांकि यह जरूरी नहीं है कि यह दोनों कार्यकाल लगातार हों. बीते कुछ दशकों से लगभग सभी राष्ट्रपतियों ने दो कार्यकाल पूरे किए हैं. जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश के बाद डॉनल्ड ट्रंप पहले राष्ट्रपति हैं जिन्हें एक कार्यकाल के बाद ही पद छोड़ना पड़ा है. जॉर्ज बुश 1989 से 1993 के बीच अमेरिका के राष्ट्रपति रहे थे.
रिपोर्ट: निखिल रंजन (एपी, एएफपी, डीपीए)
नई दिल्ली, 13 जनवरी | कजाकिस्तान मध्य एशिया में भारत का सबसे बड़ा आर्थिक साझेदार और एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। भारत में कजाकिस्तान के राजदूत येरलन अलिम्बयेव ने आईएएनएस के साथ एक साक्षात्कार में यह बात कही।
उन्होंने अपने देश में हाल ही में हुए संसदीय चुनावों के महत्व और राजनीतिक सुधारों के बारे में बात करने के अलावा भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों को कैसे मजबूत किया जाए, इस पर भी प्रकाश डाला।
पेश हैं साक्षात्कार के कुछ प्रमुख अंश :
प्रश्न : कजाकिस्तान के संसदीय चुनावों पर सभी की निगाहें थीं। इस बार कजाकिस्तान में राष्ट्रीय चुनाव अलग कैसे थे?
उत्तर : हमने 10 जनवरी 2021 को मजलिस (संसद का निचला सदन) में संसदीय चुनाव कराए। ये चुनाव केवल कजाकिस्तान के लिए ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र राष्ट्रों के पूरे राष्ट्रमंडल के लिए भी बहुत हरावल (वैन्गार्ड) थे। सबसे पहले तो संसदीय चुनाव वैश्विक कोविड-19 महामारी के युग में आयोजित हुए। इसके बावजूद पूरी चुनाव प्रक्रिया सार्वजनिक सुरक्षा उपायों, जैसे मास्क पहनना, सामाजिक दूरी, सुरक्षात्मक व्यक्तिगत उपकरण आदि के अनुरूप हुई।
सुधारों की बात करें तो पार्टी की सूची में महिलाओं और युवाओं के लिए 30 प्रतिशत कोटा, राय और विपक्ष की संस्कृति का स्वागत और एक संसदीय विपक्षी संस्थान का गठन शामिल है। मजलिस के लिए आखिरी चुनाव मार्च 2016 में हुए थे।
भारतीय चुनाव पर्यवेक्षकों के प्रति मैं आभार व्यक्त करता हूं, जो शंघाई सहयोग संगठन टीम का हिस्सा रहे और नूर-सुल्तान में भारतीय दूतावास के एक हिस्से के रूप में पर्यवेक्षकों के तौर पर कुछ मतदान केंद्रों का दौरा किया।
यह देखते हुए कि कजाकिस्तान और भारत रणनीतिक साझेदार हैं, मैं वास्तव में विश्वास करता हूं कि आगे विकासवादी लोकतंत्रीकरण प्रक्रियाएं हमारे बंधन को और भी मजबूत बनाएंगी। कजाकिस्तान संसद की नए सिरे से बनाई गई रचना देश में सामाजिक और आर्थिक सुधारों के लिए गुणवत्तापरक विधायी समर्थन पर केंद्रित होगी।
प्रश्न : 1992 से भारत और कजाकिस्तान के बीच संबंध कैसे विकसित हुए?
उत्तर : भारत के मध्य एशिया के साथ ऐतिहासिक संबंध हैं और कजाकिस्तान क्षेत्र में एक विशेष स्थान रखता है। हमारे द्विपक्षीय संबंध हर साल बढ़ रहे हैं और इनका विस्तार जारी है। आधिकारिक रूप से 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित हुए थे। 29 वर्षों में कजाकिस्तान के राष्ट्रपति ने पांच बार भारत का दौरा किया और भारतीय प्रधानमंत्रियों ने पांच बार कजाकिस्तान का दौरा किया। हमारे देशों के नेता वार्षिक आधार पर मिलते रहते हैं, जिसमें संयुक्त राष्ट्र (यूएन) और एससीओ जैसे बहुपक्षीय मंच शामिल हैं।
भारत और कजाकिस्तान के बीच संबंधों ने इस अवधि में काफी गतिशीलता और गति प्रदर्शित की है। भारत 1991 में सोवियत संघ के टूटने के बाद एक स्वतंत्र एवं संप्रभु राष्ट्र के रूप में कजाकिस्तान को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था।
साल 2009 में सामरिक भागीदारी पर हस्ताक्षर करके हमारे देशों के बीच सहयोग को एक उच्च स्तर पर लाया गया था। वर्तमान में हम महामारी के साथ स्थिति स्थिर होते ही 2021 में राष्ट्रपति कासम-जोमार्ट टोकायेव की पहली राष्ट्र यात्रा की व्यवस्था पर काम कर रहे हैं।
इस समय कजाकिस्तान मध्य एशिया में भारत का मुख्य व्यापार भागीदार है। द्विपक्षीय व्यापार कारोबार क्षेत्र के बाकी राष्ट्रों के साथ भारत के कुल व्यापार कारोबार से अधिक है और 2020 के 11 महीनों में 2.3 अरब डॉलर के बराबर है।
प्रश्न : कजाकिस्तान और भारत के व्यापार संबंधों को मजबूत करने के लिए ईरान का चाबहार बंदरगाह कितना महत्वपूर्ण है?
उत्तर : मध्य एशिया यूरेशियन महाद्वीप के सभी चार भागों को जोड़ने वाला एक अनूठा क्षेत्र है। प्राचीन काल से इस क्षेत्र ने यूरोप और एशिया के बीच सबसे छोटा मार्ग प्रदान किया है। आज मध्य एशियाई क्षेत्र पूर्व (चीन) और पश्चिम (यूरोप) को जोड़ने वाले भूमि गलियारे में एक महत्वपूर्ण कड़ी बन गया है और इसका काफी महत्व है।
--आईएएनएस
इस्लामाबाद, 13 जनवरी | पाकिस्तान वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा के लिए बुधवार को यहां दूसरी पाकिस्तान-तुर्की-अजरबैजान त्रिपक्षीय बैठक की मेजबानी कर रहा है।
पाकिस्तान विदेश कार्यालय ने कहा, "तीनों पक्ष शांति और सुरक्षा, व्यापार और निवेश, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, शिक्षा और सांस्कृतिक सहयोग सहित आम हित के सभी क्षेत्रों में त्रिपक्षीय सहयोग को गहरा करने की संभावनाएं तलाशेंगे।"
तीनों पक्ष क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा के लिए मौजूदा खतरे पर भी चर्चा करेंगे।
विदेश कार्यालय द्वारा जारी बयान में कहा गया, "पाकिस्तान, अजरबैजान और तुर्की आम विश्वास, मूल्यों, संस्कृति और इतिहास पर आधारित करीबी भाईचारा संबंधों का आनंद लेते हैं, जो आपसी विश्वास और समझ में गहराई से अंतर्निहित है।"
यह त्रिपक्षीय स्तर पर चर्चा का दूसरा दौर होगा, क्योंकि पहली बैठक नवंबर 2017 में बाकू में हुई थी।
अजरबैजान के विदेश मंत्री जेहुन बिरामोव दो दिवसीय यात्रा पर बुधवार से इस्लामाबाद में होंगे, जबकि तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कैवुसोग्लू पहले ही दो दिवसीय दौरे के लिए इस्लामाबाद पहुंच चुके हैं।
विवरण के अनुसार, दोनों विदेश मंत्री पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के साथ आमने-सामने की बैठक करेंगे। दोनों विदेश मंत्री राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और प्रधानमंत्री इमरान खान से भी मुलाकात करेंगे।
--आईएएनएस
होवार्ड मुस्तो और डैनिएल पालुम्बो
बिज़नेस रिपोर्टर्स
दुनिया भर में करोड़ों लोगों की नौकरियां चली गईं है या उन्हें घर पर रहने की वजह से सरकार को बेरोजगारी भत्ता देना पड़ा है.
लेकिन, पिछले साल 2020 में मार्च में आई गिरावट के बाद से शेयर बाज़ार में उछाल आया है. टेक्नॉलॉजी कंपनी नैसडैक के शेयरों में पिछले साल के आख़िर तक 42 प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई थी. ये अमेरिका में सबसे बड़ा उछाल आया था.
साल भर में एसएंडपी500 के शेयर 15 प्रतिशत ऊपर गए. लेकिन, ब्रिटेन का स्टॉक एक्सचेंज इंडेक्स एफटीएसई100 कोरोना महामारी के कारण संघर्ष कर रहीं तेल कंपनियों, बैंक, एयरलाइंस की वजह से इतनी अच्छी स्थिति में नहीं रहा.
पिछले साल की शुरुआत से इसमें 14 प्रतिशत की गिरावट आई लेकिन पिछले कुछ महीनों में इसमें तेज़ी से बढ़ोतरी हुई है और यूरोपीय संघ के साथ ट्रेड डील होने और वैक्सीन को अनुमति मिलने के बाद इसमें बड़ी तेज़ी देखी गई.
जापान में वैक्सीन बनने के बाद एक बार फिर शेयर बाज़ार ने उछाल देखने को मिला. फार्मास्यूटिकल स्टॉक्स और गेमिंग कंपनियों के शेयर इनमें आगे रहे. हालाँकि शेयर बाज़ार के प्रदर्शन का आकलन इस पूरी प्रक्रिया को नहीं दर्शाता है.
मनी मैनेजर स्क्रॉडर्स में यूके इक्विटीज़ की प्रमुख स्यू नॉफका कहती हैं, "एक महत्वपूर्ण बात ये है कि शेयर बाज़ार की कीमतें अभी और इसी वक़्त का मामला नहीं हैं बल्कि शेयर बाज़ार एक कार चलाने जैसा है जिसमें नज़रें दूर के लक्ष्य को देखती हैं ना कि ठीक सामने दिख रहे गड्ढे को."
निवेशक भरोसा कर रहे हैं कि स्वीकृत हो चुकीं या विकसित हो रहीं नई वैक्सीन की सफलता से वृद्धि होगी और बिक्री सामान्य हो पाएगी. निवेशक सस्ते ऋण का इस्तेमाल कर रहे हैं जो कारोबार के लिए एक वरदान है.
केंद्रीय बैंक भी इस सस्ते ऋण के कारोबार में लगे हुए हैं और इसका असर भी दिख रहा है. बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने अकेले सरकार और कॉरपोरेट के 895 बिलियन पाउंड का बॉन्ड खरीदने की योजना बनाई है. पिछले साल मार्च से अब तक अमेरिकी फेड ने तीन खरब डॉलर की संपत्ति खरीदी है.
इन खरीदारियों का मकसद ऋण को और सस्ता करना है. जब ये पैसा बॉन्ड की खरीदारी के रूप में अर्थव्यवस्था में आता है तो यह कहीं और क़ीमतों में इजाफे की वजह बनता है.
नॉफका कहती हैं, "इससे पैसे के मूल्य में गिरावट आई है और ये सस्ता पैसा वित्तीय संपत्ति के मूल्य को बढ़ा देता है. हम दुनिया भर में स्टॉक मार्केट में यही होते हुए देख रहे हैं."
साल 2021 में वर्ल्ड इकॉनमीः कौन से देश जीतेंगे, कौन हारेंगे
महामारी और मंदी के बावजूद एक कंपनी के शेयर से करोड़पति बनने वाले लोग
पांच बड़ी कंपनियां
जब हम बाज़ार के प्रदर्शन को देखते हैं तो आमतौर पर हम कंपनियों के समूहों वाले इंडेक्स को देखते हैं. छोटी कंपनियों के प्रदर्शन की बजाए बड़ी कंपनियों की वृद्धि का इंडेक्स वैल्यू पर बड़ा प्रभाव होता है.
लेकिन, खासतौर पर अमेरिका में बड़ी कंपनियां बहुत बड़ी हो गई हैं. ये साल टेक कंपनियों के लिए अच्छा रहा है. लोगों के दूर-दराज में काम करने के कारण उनकी आय में बढ़ोतरी हुई है.
उदाहरण के लए नैसडैक ने साल की शुरुआत से बहुत बढ़ोतरी देखी है. लेकिन, सिर्फ़ पांच कंपनियों- गूगल के स्वामित्व वाली एल्फाबेट, माइक्रोसाफ्ट, अमेज़न और फेसबुक की कीमत अन्य 95 कंपनियों के पूरे जोड़ के लगभग बराबर है.
स्यू नॉफका कहती हैं, "ऐसे में शेयर बाज़ार इंडेक्स को देखकर लगेगा कि कोरोना वायरस महामारी का अमेरिका अर्थव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. लेकिन, ऐसा नहीं है. इसलिए ज़रूरी नहीं कि इंडेक्स देखकर आप सभी कंपनियों की स्थिति का सही अंदाज़ा लगा सकते हैं."
दस साल का ट्रेंड
एक इंडेक्स में कुछ बड़ी कंपनियों का वर्चस्व तथाकथित निष्क्रिय निवेश के उदय से जुड़ा होता है जिसमें पेंशनर्स, मनी मैनेजर्स और सट्टेबाज इंडेक्स को प्रभावित करने वाला सस्त निवेश खरीद सकते हैं.
इसलिए जब निवेशक इन फंड्स को खरीदते हैं तो वो बुनियादी शेयरों को खरीदते हैं और कीमतों में बढ़ोतरी में मदद करते हैं.
यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक में वित्तीय बाज़ार में एक शोधकर्ता योहानस पेट्रे कहते हैं, "पिछले 10 सालों से आप एक ट्रेंड देख रहे हैं कि पैसों का प्रवाह सक्रिय फंड्स से निष्क्रिय फंड्स की ओर हो रहा है."
कई कंपनियां अपने आकार के कारण इंडेक्स से जुड़ती हैं और अलग होती है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता है. बड़ी कंपनियां शेयर बाज़ार इंडेक्स का हिस्सा नहीं भी हो सकती हैं.
उदाहरण के लिए योहानस पेट्रे कहते हैं कि अनुमान है कि इस महीने एसएंडपी500 इंडेक्स में प्रवेश करने वाली इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला ने फंड से शेयरों की खरीद में समस्या होने के कारण शेयरों के लिए अतिरिक्त 100 बिलियन डॉलर की मांग की है.
ब्रोकरेज फर्म थीमिस ट्रेडिंग में एक साझेदार जो सॉलोज़ी कहते हैं कि ऐसा कहा जा रहा है कि गिरावट के लिए स्थितियां तैयार हैं. कई निवेशक सोचते हैं कि बाज़ार हमेशा ऊपर नहीं चढ़ सकता लेकिन ये कहना मुश्किल है कि उसमें गिरावट कब आएगी.
जो सॉलोज़ी कहते हैं कि वो सीएनएन पर दिया गया एक इंडिकेटर देखते हैं जिसका नाम फीयर एंड ग्रीड इंडेक्स है. एक समय पर वह बेहद ऊंचाई पर था लेकिन अब वो गिर गया है. वह कहते हैं, "जब मैं ये देखता हूं तो लगता है कि लोगों में घबराहट नहीं है."
उन्होंने एक और प्वाइंटर पर नज़र रखी और वो है कि बाज़ार के बढ़ने के मुक़ाबले बाज़ार के गिरने पर लगने वाली शर्तों का अनुपात. साल 2012 के बाद से हाल में बाज़ार के बढ़ने पर लगने वालीं शर्तें उसके गिरने की शर्तों से ज़्यादा थीं.
वो कहते हैं, "एक बड़ी गलती जो लोग कर रहे हैं, वो वही है जिसका विश्लेषण अभी हमने किया है. हम इसके बाद इस निष्कर्ष पर निकलते हैं कि अभी क़ीमत ज्यादा है तो यह वक्त सही है कि हम अपने शेयर निकाल दे. ऐसा करते हुए हम सोचते हैं कि हम बाज़ार से ज्यादा होशियार है लेकिन ऐसा नहीं है. आप होशियार नहीं और ना ही कोई और है."
नॉफका कहती हैं कि कुछ वजहें होती हैं जिसके चलते बाज़ार खुद अपने आप को चलाता है. बहुत सारे लोग जिनकी नौकरी नहीं गई है, वे अभी कम खर्च कर रहे हैं लेकिन वो बाद में खरीदारी करना चाहेंगे. सरकार पिछले संकट को देखते हुए शायद ही मितव्ययिता का रास्ता अपनाए.
जो सॉलोज़ी कहते हैं कि जब बाज़ार नीचे जाएगा तब यह देखना दिलचस्प होगा कि निवेशक क्या रुख अपनाते हैं खासकर वे नए निवेशक जो नया-नया बाज़ार के उतार-चढ़ाव का अनुभव ले रहे हैं और जल्द से जल्द अपना पैसा फायदे के साथ निकालना चाहते हैं.
ऐसे लोगों की तदाद भले ही कम हो लेकिन वो इस बाज़ार का एक सक्रिय हिस्सा हैं. (bbc.com)
जर्मनी में अधिकारियों ने डार्कनेट के सबसे बड़े बाजार को बंद करने का दावा किया है. इस सिलसिले में एक शख्स को गिरफ्तार भी किया गया है.
डार्कनेट पर इस अवैध ऑनलाइन बाजार में नकली मुद्रा, ड्रग्स और इसी तरह की चीजें खरीदी बेची जा रही थीं. जर्मनी के कोबलेंज और ओल्डेनबुर्ग शहर के अभियोजकों का कहना है कि उन्होंने "संभवतः डार्कनेट पर सबसे बड़े अवैध बाजार" को बंद करा दिया है. इसे डार्क मार्केट कहा जाता है. इसके साथ ही एक आदमी को गिरफ्तार किया गया है जो जर्मनी की डेनमार्क से लगती सीमा के पास से इस बाजार को चला रहा था. हिरासत में लिए जिस शख्स को बाजार का ऑपरेटर कहा जा रहा है उसकी उम्र 34 साल है और वह ऑस्ट्रेलिया का नागरिक है.
अधिकारियों का कहना है कि ड्रग्स, नकली मुद्रा, चोरी के क्रेडिट कार्ड का डाटा, अज्ञात लोगों के नाम पर जारी सिमकार्ड जैसी चीजें इस साइट पर खरीदी और बेची जाती हैं. माना जाता है कि इसका इस्तेमाल 5 लाख से ज्यादा लोग करते हैं. आमतौर पर यह व्यापार क्रिप्टोकरेंसी से होता है. यह अवैध कारोबार करीब 14 करोड़ यूरो का बताया जा रहा है.
ओल्डेनबुर्ग पुलिस का कहना है कि सप्ताहांत में छापा मारा गया था. अभियोजकों के मुताबिक, "सोमवार को जांचकर्ता बाजार को बंद कराने और सर्वर को बंद करने में सफल हुए."
अंतरराष्ट्रीयजांच
यह पहली बार नहीं है जब डार्क मार्केट को जर्मनी में बंद कराया गया है. जर्मनी में यह अवैध बाजार पिछले कई सालों से चल रहा है. 2019 में कोब्लेंज के अभियोजकों ने ही घोषणा की थी कि एक नाटो के पुराने बंकर से डार्केनेट सर्वर चल रहा है.
अधिकारियों का कहना है कि करीब एक महीने तक अंतरराष्ट्रीय कानून का पालन कराने वाली एजेंसियों के अभियान के बाद इस डार्क मार्केट का पता चल सका है. इस काम में अमेरिकी एजेंसी एफबीआई, डीईए नार्कोटिक्स लॉ इनफोर्समेंट डिविजन और आईआरएस टैक्स अथॉरिटी, इन सब ने इस जांच में हिस्सा लिया. इसके साथ ही ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, डेनमार्क, स्विट्जरलैंड, यूक्रेन, मोल्डोवा और यूरोपोल ने भी इस अभियान में मदद की.
ओल्डेनबुर्ग के अधिकारियों ने बताया है, "इस बाजार के जरिए कम से कम 320,000 लेनदेन हुए हैं जिनमें 4650 बिटकॉइन और 12,800 मोनेरो के जरिए भुगतान हुआ." बिटकॉइन और मोनेरो सबसे प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी हैं.
बाजार को बंद करते समय इस डार्क मार्केट में 2,400 से ज्यादा वेंडर और 500,000 से ज्यादा यूजर थे.
डार्कनेट बाजार ई कॉमर्स की वेबसाइटें हैं जिन तक आम सर्च इंजन के जरिए नहीं पहुंचा जा सकता. आप इन्हें अवैध बाजार की तरह समझ सकते हैं. ये बाजार अपराधियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं क्योंकि इनमें खरीदने और बेचने वाले की पहचान जाहिर नहीं होती. भुगतान भी ऐसी मुद्रा में की जाती है जिससे कि यह दुनिया और सरकारों की नजर में नहीं आए.
एनआर/आईबी (एएफपी, डीपीए)
जनेवा, 13 जनवरी | स्विट्जरलैंड के स्वास्थ्य नियामक स्विसमेडिक ने ऑनलाइन टीके खरीदने के खतरे की चेतावनी देते हुए कहा है कि फर्जी कोरोनावायरस वैक्सीन पहले से ही इंटरनेट पर बेचे जा रहे हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, स्विसडेमिक ने मंगलवार को एक बयान में कहा कि कोरोनोवायरस के टीके की मांग बढ़ रही है, आपराधिक व्यक्ति और संगठन इंटरनेट पर नकली टीके देकर लोगों के डर का फायदा उठा रहे हैं।
बयान में कहा गया, "अवैध दवाओं और टीकों और विशेष रूप से कोविड-19 टीकों से जुड़े अपराध स्वास्थ्य और आबादी के जीवन के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं।"
उन्होंने कहा, "बहुत बार, वे जो उत्पाद पेश कर रहे हैं, वे नकली हैं जिनमें या तो कोई सक्रिय तत्व नहीं है या फिर ऐसे खतरनाक पदार्थ हैं जो लोगों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकते हैं। कई मामलों में, अग्रिम भुगतान किया जाता है।"
स्विसमेडिक ने जोर देकर कहा कि टीके ऐसे समाधान हैं, जिन्हें एक चिकित्सा पेशेवर द्वारा तैयार किए जाने के बाद एक सिरिंज के साथ इंजेक्ट किया जाता है, और उन्हें अक्सर एक कोल्ड स्टोरेज में सही तापमान में रखा जाता है। इसलिए, ऐसे उत्पादों को ऑनलाइन बेचा नहीं जा सकता है।
उन्होंने कहा, "टीकाकरण की इच्छा रखने वाले किसी भी व्यक्ति को अपने डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।" (आईएएनएस)
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने ईरान सरकार पर खुलकर आरोप लगाए हैं कि वो जिहादी नेटवर्क अल-क़ायदा को अपनी ज़मीन पर नया ठिकाना बनाने दे रही है.
पॉम्पियो ने अमेरिका के नेशनल प्रेस क्लब में कहा, "अफ़ग़ानिस्तान से अलग, जहाँ अल-क़ायदा पहाड़ों में छिपा था, ईरान में अल-क़ायदा वहाँ के शासकों की पनाह में सक्रिय है."
हालाँकि, अमेरिकी मंत्री ने अपने आरोपों के पक्ष में कोई ठोस सबूत नहीं दिए.
ईरान ने उनके बयान पर सख़्त आपत्ति जताई है. ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने इसे "युद्धोन्मादी झूठ" बताया है.
पिछले साल नवंबर में ईरान ने अल-क़ायदा में दूसरे नंबर के नेता अब्दुल्ला अहमद अब्दुल्ला उर्फ़ अबू मोहम्मद अल-मसरी के बारे में इस रिपोर्ट का खंडन किया था कि अमेरिका के आग्रह पर इसराइली एजेंटों ने तेहरान में मसरी को मार डाला.
From designating Cuba to fictitious Iran "declassifications” and AQ claims, Mr. “we lie, cheat, steal" is pathetically ending his disastrous career with more warmongering lies.
— Javad Zarif (@JZarif) January 12, 2021
No one is fooled. All 9/11 terrorists came from @SecPompeo's favorite ME destinations; NONE from Iran.
मंगलवार को अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा कि वो पहली बार इस बात की पुष्टि कर सकते हैं कि मसरी की 7 अगस्त को मौत हो गई. हालाँकि, उन्होंने इस बारे में कोई ब्यौरा नहीं दिया.
उन्होंने इस बात पर ज़ोर देकर कहा कि लोगों का ये मानना ग़लत है कि एक शिया ताक़त ईरान और सुन्नी चरमपंथी गुट अल-क़ायदा एक-दूसरे के दुश्मन हैं.
पॉम्पियो ने कहा, "ईरान में मसरी की मौजूदगी वो वजह है जिससे हम यहाँ बात कर रहे हैं. अल-क़ायदा का अब एक नया ठिकाना है - वो है ईरान."
"इसकी वजह से, ओसामा बिन लादेन के बनाए इस दुष्ट समूह की ताक़त बढ़ती जाएगी."
पॉम्पियो ने आरोप लगाया कि ईरान ने 2015 से देश में मौजूद अल-क़ायदा नेताओं को खुलकर दूसरे सदस्यों से बात करने और ऐसे कई काम करने की छूट दे रखी है जिनके निर्देश पहले अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आया करते थे. इनमें हमले करना, प्रोपेगेंडा और पैसे जमा करने जैसे काम शामिल हैं.
उन्होंने कहा, "ईरान और अल-क़ायदा की धुरी दूसरे देशों और अमेरिका की सुरक्षा के लिए बड़ा ख़तरा है और हम क़दम उठा रहे हैं."
अमेरिकी विदेश मंत्री ने कहा है कि अमेरिका अल-क़ायदा के दो नेताओं को विशेष ग्लोबल चरमपंथी घोषित करना चाहता है और ये दोनों ईरान में स्थित हैं.
उन्होंने उनके नाम ये बताए - मोहम्मद अबाटे उर्फ़ अब्दुल रहमान अल-मग़रेबी और सुल्तान यूसुफ़ हसन अल-आरिफ़.
पॉम्पियो ने कहा कि अमेरिका मग़रेबी का सुराग़ या पहचान बताने वाले को 70 लाख डॉलर का इनाम देगा.
अमेरिका कथित तौर पर ईरान में रह रहे अल-क़ायदा के दो अन्य नेताओं के लिए पहले ही इनाम की पेशकश कर चुका है. उनके नाम हैं सैफ़ अल-आदिल और यासीन अल-सूरी.
2001 में अफ़ग़ानिस्तान पर अमेरिका की अगुआई में हुए हमले के बाद अल-क़ायदा के कई चरमपंथी और ओसामा बिन लादेन के कई संबंधी पड़ोसी देश ईरान भाग गए थे.
ईरानी अधिकारियों का कहना है कि ये लोग अवैध रूप से चले आए थे और उन्हें गिरफ़्तार कर उनके अपने देशों में प्रत्यर्पित कर दिया गया है.
पिछले साल मसरी की मौत की ख़बर आने के बाद ईरान के विदेश मंत्री ने ज़ोर दिया कि उनकी ज़मीन पर अल-क़ायदा का कोई भी "आतंकवादी" मौजूद नहीं है.
मंगलवार को ईरान सरकार के एक प्रवक्ता ने मीडिया से कहा, "ईरान, अमेरिका और उससे जुड़े समूहों के बरसों से चलाए जा रहे आतंकवाद का शिकार रहा है और उसका अल-क़ायदा और इस्लामिक स्टेट के ख़िलाफ़ जारी लड़ाई में रिकॉर्ड स्पष्ट है."
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने अमेरिका के एक पूर्व वरिष्ठ ख़ुफ़िया अधिकारी के हवाले से लिखा है कि ईरान 9/11 के पहले या बाद, कभी भी अल-क़ायदा के क़रीब नहीं रहा है, और "उनके बीच अभी किसी तरह के सहयोग के दावे को सतर्क होकर देखना चाहिए".
आलोचकों ने पॉम्पियो के बयानों के समय पर भी सवाल उठाए हैं और कहा कि ऐसा लगता है कि वो जो बाइडन के लिए ईरान से दोबारा संपर्क करने और 2015 की ईरान की परमाणु संधि में दोबारा शामिल होने के प्रयासों में कठिनाई पैदा करने की कोशिश करना चाहते हैं. (bbc.com)
पाकिस्तान में डिजिटल भुगतान की एक नई प्रणाली की शुरुआत की गई है. अधिकारियों को उम्मीद है कि इस से देश की टैक्स वसूली दर में सुधार होगा और सरकार को अति-आवश्यक राजस्व की प्राप्ति होगी.
नई प्रणाली का नाम 'रास्त' रखा गया है, जिसका उर्दू में मतलब होता है 'सही रास्ता.' पाकिस्तान में कर वसूली की दर दुनिया में सबसे कम दरों में से है और देश के राजस्व अधिकारी उम्मीद कर रहे हैं कि नई व्यवस्था इस सूरत को बदलने में सहायक होगी. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था बड़े पैमाने पर नकद लेन-देन पर आधारित है और डिजिटल भुगतान प्रणाली की वजह से लेन-देन के लिखित प्रमाण हासिल हो सकेंगे.
पाकिस्तान में जीडीपी मुकाबले टैक्स का अनुपात 10 प्रतिशत से भी कम है. इसकी वजह से पूर्व में देश को मजबूर हो कर या तो वैश्विक बैंकों से कर्ज या चीन और सऊदी अरब जैसे साझेदारों से मदद लेनी पड़ी है. देश में लगभग 40 प्रतिशत लेन-देन नकद माध्यम से होता है जब कि विकसित देशों में यह अनुपात एक अंक में ही रहता है.
'रास्त' को बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, विश्व बैंक, संयुक्त राष्ट्र और ब्रिटेन के सहयोग से विकसित किया गया है. पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक के प्रवक्ता आबिद कमर ने बताया कि प्रणाली "बहुत तेज और कम खर्च वाली" है. कमर ने यह भी बताया कि देश में पहले से ही डिजिटल भुगतान और नकद हस्तांतरण की कुछ सेवाएं मौजूद हैं, लेकिन यह सरकार द्वारा शुरू की गई पहली सेवा है.
इस सेवा को लेकर सरकार के आगे के लक्ष्यों के बारे में प्रवक्ता ने कहा, "हमारी योजना है कि भविष्य में सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन इसी माध्यम से दिए जाएं." अधिकारियों और जानकारों का कहना है कि अगर यह प्रणाली सफल हो गई तो सरकार इसकी मदद से राजस्व की वसूली बढ़ा सकती है. कमर ने कहा, "हमें उम्मीद है कि आगे चल कर हमें कर वसूली और राजस्व के दूसरे साधनों की वसूली में काफी सुधार होंगे.
आर्थिक मामलों के जानकार सलीम रजा का कहना है कि प्रणाली से इस समय नकद में होने वाले खुदरा लेन-देन का 95 प्रतिशत आधिकारिक रिकॉर्डों में दर्ज किया जा सकता है और कर प्रणाली में लाया जा सकता है.
सीके/एए (डीपीए)
चीन में पांच महीने से भी ज़्यादा वक़्त बाद कोरोना संक्रमण के एक दिन में सबसे ज़्यादा मामले दर्ज किए गए हैं. जबकि कोरोना की अगली लहर से बचने के लिए चीन के चार शहरों में लॉकडाउन लागू है, टेस्टिंग बढ़ा दी गई है और दूसरे कदम भी उठाए जा रहे हैं.
ज़्यादातर नए मामले राजधानी बिजिंग के नज़दीक मिले हैं. बुधवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ उत्तरपूर्वी चीन के एक प्रांत में भी मामलों में तेज़ बढ़ोतरी देखी गई है. मामले बढ़ने के बीच 28 मिलियन से ज़्यादा लोगों को होम क्वारंटीन में डाल दिया गया है.
नेशनल हेल्थ कमिशन ने एक बयान में कहा कि चीन में कुल 115 नए मामलों की पुष्टि हुई है, इसके मुक़ाबले एक दिन पहले 55 मामले दर्ज किए गए थे. 30 जुलाई के बाद एक दिन में ये सबसे ज़्यादा बढ़त है.
कमिशन ने बताया कि 107 मामले लोकल इंफेक्शन थे. 90 मामले बिजिंग से लगने वाले हिबे प्रांत में दर्ज किए गए, वहीं उत्तरपूर्वी हेलुंगजांग प्रांत में 16 नए मामले सामने आए.
हिबे के तीन शहरों में लॉकडाउन लगा दिया गया है, वहीं बिजिंग शहर के प्रशासन ने स्क्रीनिंग और दूसरे एहतियाती कदम उठाना शुरू कर दिया है ताकि अन्य क्लस्टर बनने से रोका जा सके.
हेलुंगजांग प्रांत ने बुधवार को कोविड-19 इमरजेंसी घोषित कर दी. प्रांतीय राजधानी हार्बिन की सीमा से लगने वाले सूहुआ शहर ने अपने 5.2 मिलियन नागरिकों के लिए लॉकडाउन लगा दिया है. (bbc.com)