राष्ट्रीय
नई दिल्ली , 7 दिसम्बर | राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक 29 वर्षीय सुनने और बोलने में असमर्थ महिला के साथ कथित तौर पर बलात्कार का मामला सामने आया है। एक अधिकारी ने मंगलवार को इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है।
अधिकारी के अनुसार, मौजपुर निवासी रेहान के रूप में पहचाने जाने वाले 34 वर्षीय व्यक्ति द्वारा 21 नवंबर से पीड़िता के साथ 'बार-बार बलात्कार' किया गया था।
पीड़िता ने अपनी मां और बहन के साथ पुलिस से संपर्क किया, जिसके बाद 5 दिसंबर को शिकायत दर्ज कराई। वहीं इस मामले में दिल्ली महिला आयोग (डीसीडब्ल्यू) द्वारा नियुक्त एक काउंसलर को बुलाया गया। हालाँकि, चूंकि पीड़िता सुनने और बोलने में असमर्थ है, इसलिए उसका बयान दर्ज करने के लिए एक दुभाषिए की आवश्यकता थी।
अधिकारी ने कहा, "देर रात होने के कारण, कोई दुभाषिया उपलब्ध नहीं था। बाद में, एक निजी दुभाषिये की व्यवस्था की गई और डीसीडब्ल्यू काउंसलर ने पीड़िता की काउंसलिंग की और दुभाषिया की मदद से उसका बयान भी दर्ज किया।"
पीड़िता का मेडिकल परीक्षण जगप्रवेश चंद्र अस्पताल में किया गया।
पुलिस ने भजनपुरा पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (2) (एन) और 506 के तहत मामला दर्ज किया।
सूत्रों के मुताबिक आरोपी उसी मोहल्ले में रहता था जहां पीड़िता रहती थी।
सूत्रों ने कहा, "आरोपी ने इस घिनौनी घटना का एक अश्लील वीडियो भी बनाया था और लड़की को जघन्य अपराध के बारे में किसी को बताने पर गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी।"
उसने एक ही वीडियो के साथ उसे कई बार रेप करने के लिए ब्लैकमेल भी किया।
जांच के दौरान आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया जिसके बाद पुलिस ने सोमवार को उसे स्थानीय अदालत में पेश किया।
अधिकारी ने कहा, "अदालत ने आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया है।" उन्होंने कहा कि मामले में आगे की जांच अभी जारी है।
हाल ही में, एक कार्यक्रम के दौरान, दिल्ली पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना ने कहा था कि राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं की सुरक्षा उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है।
उन्होंने कहा, "कुल मिलाकर ²ष्टिकोण यह है कि यदि कोई महिला संकट में है, यदि कोई बच्चा संकट में है, तो उन पर उचित ध्यान दिया जाता है।"
हालांकि, आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध में अभी भी वृद्धि जारी है।
दिल्ली पुलिस द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, शहर में 31 अक्टूबर 2021 तक 1,725 महिलाओं के साथ कथित तौर पर बलात्कार किया गया है।
2020 में इसी अवधि तक 1,429 महिलाओं को जघन्य अपराध का सामना करना पड़ा। पिछले साल के आंकड़ों की तुलना में इसमें 20 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
2020 में, महिलाओं के खिलाफ अपराधों की कुल संख्या 7,948 थी जो इस साल बढ़कर 11,527 हो गई है। कुल मिलाकर, पिछले 10 महीनों में राष्ट्रीय राजधानी में महिलाओं के खिलाफ अपराध में 45 प्रतिशत की भारी वृद्धि हुई है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 7 दिसम्बर | सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें पश्चिम बंगाल के मालदा जिले में तृणमूल कांग्रेस की एक जिला नेता हाथ में बंदूक लिए अपने कार्यालय में बैठी नजर आ रही है। इस घटना ने राज्य में राजनीतिक विवाद खड़ा कर दिया है। नेता मृणालिनी मंडल मैती न केवल पुरानी मालदा पंचायत समिति की अध्यक्ष हैं, बल्कि मालदा जिला तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष भी हैं।
हालांकि मृणालिनी ने दावा किया कि तस्वीर लगभग एक साल पुरानी है, लेकिन विपक्ष उनके बयान को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। विपक्ष के मुताबिक ऐसा पहली बार नहीं है, वह इससे पहले भी कई मौकों पर विवादों में रह चुकी हैं।
हाल ही में मृणालिनी के पति पर प्रखंड विकास कार्यालय के अंदर एक कर्मचारी को बेरहमी से पीटने का आरोप लगा था। उनपर घटना के बाद अपने पति को बचाने का आरोप लगाया गया था।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "हथियार रखना उनकी संस्कृति है और वह केवल परंपरा का पालन कर रही है। पिछले 11 वर्षों में उन्होंने राज्य के साथ-साथ मालदा को भी बारूद के ढेर पर डाल दिया है। यदि आप खोजे तो हो सकता है आपको बम और एके -47 भी मिल सकते हैं। यह उनके संस्कृति का हिस्सा बन गया है।"
मीडिया से बात करते हुए तृणमूल कांग्रेस के जिलाध्यक्ष कृष्णेंदु नारायण चौधरी ने कहा, "सरकारी कार्यालय में हथियार दिखाना उचित नहीं है। पुलिस पता लगाएगी कि बंदूक असली थी या नकली। कानून अपना काम करेगा।" (आईएएनएस)
बजरंग दल ने एक स्कूल पर बच्चों का धर्मांतरण कराने का आरोप लगाते हुए स्कूल पर तब हमला कर दिया जब बच्चे वहां पढ़ रहे थे. बच्चे तो बाल बाल बच गए लेकिन स्कूल में तोड़ फोड़ की गई.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
घटना मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के गंज बसोड़ा तहसील की है. सेंट जोसेफ हाई स्कूल में सोमवार छह दिसंबर को जब बारहवीं कक्षा के छात्र स्कूल में बैठ कर परीक्षा दे रहे थे उसी समय बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद से जुड़े करीब 300 लोग स्कूल के परिसर में घुस आए.
इन लोगों का आरोप था कि स्कूल में हिंदू बच्चों का जबरन धर्मांतरण कर उनसे ईसाई धर्म स्वीकार कराया जा रहा है. ये लोग पहले तो स्कूल के बाहर खड़े हो कर नारे लगा रहे थे लेकिन बाद में स्कूल के परिसर के अंदर घुस आए.
बच्चों की मौजूदगी में हमला
सोशल मीडिया पर मौजूद वीडियो में इन लोगों को 'जय श्री राम', 'भारत माता की जय' और 'फोड़ दो' जैसे नारे लगाते हुए सुना जा सकता है. भीड़ ने स्कूल की इमारत पर पत्थर फेंके और कांच को तोड़ दिया.
स्कूल के प्रिंसिपल ब्रदर ऐंथनी तीनंकल ने पत्रकारों को बताया कि भीड़ में लोगों के पास पत्थर और लोहे की रॉड थी. उन्होंने पुलिस पर भी सही समय पर उचित कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया.
उन्होंने पत्रकारों को बताया कि उन्होंने स्थानीय मीडिया से इस हमले की तैयारी की खबर एक दिन पहले ही मिल गई थी और उन्होंने पुलिस से सुरक्षा मांगी थी, जिस पर पुलिस ने कहा था कि भीड़ बस नारे लगाएगी और उसके बाद शांतिपूर्वक ढंग से वहां से चली जाएगी.
लेकिन ऐसा नहीं हुआ और पुलिस भी भीड़ के स्कूल से चले जाने के बाद वहां पहुंची. पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया है. स्थानीय पुलिस अधिकारी भारत भूषण ने एक बयान में कहा कि स्कूल के अधिकारियों को सुरक्षा भी दी गई थी और पुलिस ने घटना के लिए जिम्मेदार बजरंग दल के चार सदस्यों को हिरासत में भी ले लिया है.
धर्मांतरण के आरोप
विश्व हिंदू परिषद् के नेता नीलेश अग्रवाल ने बताया कि एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि 31 अक्टूबर को इसी स्कूल में आठ हिंदू लड़कियों का धर्मांतरण कराया गया था.
लेकिन प्रिंसिपल तीनंकल ने बताया कि उस दिन स्कूल ने ईसाई बच्चों के लिए एक समारोह का आयोजन किया था जिसका वीडियो धर्मांतरण का झूठा आरोप लगा कर यूट्यूब पर डाल दिया गया था.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक स्थानीय पुलिस ने अब स्कूल पर हमले और धर्मांतरण के आरोप दोनों की अलग अलग जांच शुरू कर दी है. बजरंग दल विश्व हिंदू परिषद का युवा संगठन है जो अक्सर ईसाई चर्चों और मस्जिदों पर हमले को लेकर चर्चा में रहता है.
कुछ ही दिनों पहले दिल्ली के मटियाला में एक अस्थायी चर्च की प्रार्थना सभा को भी बजरंग दल के सदस्यों ने भंग कर दिया था और वहां तोड़फोड़ की थी. उन्होंने वहां चर्च के लोगों को गोली मारने के नारे भी लगाए थे.
उसके पहले कर्नाटक के हसन जिले में बजरंग दल के सदस्यों ने एक ईसाई प्रार्थना सभा पर हमला कर दिया था. और भी कई राज्यों में बजरंग दल की इस तरह की गतिविधियों में शामिल होने की खबरें आ चुकी हैं. (dw.com)
बड़ी संख्या में भारतीय मानते हैं कि देश में हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच बढ़ती खाई के लिए सोशल मीडिया जिम्मेदार है.
5 दिसंबर को 1942 लोगों पर किए एक सर्वेक्षण में यह चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. सर्वेक्षण में शामिल आधे उत्तरदाताओं के करीब, 48.2 प्रतिशत ने महसूस किया कि सोशल मीडिया ने समुदायों के बीच की खाई को काफी हद तक बढ़ा दिया है. लगभग 23 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने महसूस किया कि सोशल मीडिया ने कुछ हद तक खाई को बढ़ा दिया है. वास्तव में 71 प्रतिशत से अधिक भारतीय सोशल मीडिया को दोनों समुदायों के बीच हाल के संघर्ष के लिए जिम्मेदार मानते हैं.
इसके विपरीत 28.6 प्रतिशत की राय थी कि इस घटना में सोशल मीडिया की कोई भूमिका नहीं है. अगर आप राजनीतिक विभाजन को देखें, तो एनडीए के 40.7 प्रतिशत मतदाताओं ने सोशल मीडिया को काफी हद तक जिम्मेदार माना, जबकि 53.6 प्रतिशत विपक्षी मतदाताओं ने ऐसा ही महसूस किया.
भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गलत सूचना, फर्जी खबरें, अपमानजनक और मानहानिकारक सामग्री फैलाने और हिंसा को सीधे भड़काने में उनकी कथित भूमिका के लिए देर से जांच के दायरे में आ गए हैं. तनाव और हिंसा की आशंका वाले क्षेत्रों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पहुंच पर अस्थायी रूप से प्रतिबंध लगाना राज्य और स्थानीय स्तर के प्रशासन के लिए नियमित हो गया है.
एक संसदीय समिति ने हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को विनियमित करने के लिए सिफारिशों का एक सेट प्रस्तुत किया है. एक प्रमुख सिफारिश उन्हें प्रकाशकों के रूप में मानने की है जबकि दूसरी उनकी गतिविधियों को विनियमित करने के लिए भारतीय प्रेस परिषद की तर्ज पर एक नियामक निकाय बनाने की है.
स्टैटिस्टा के मुताबिक भारत में दो करोड़ 20 लाख से ज्यादा ट्विटर यूजर्स हैं. भारत की आधी से ज्यादा आबादी तक इंटरनेट की पहुंच है और 30 करोड़ लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं. 20 करोड़ से ज्यादा लोग वॉट्सऐप इस्तेमाल करते हैं, जो किसी भी अन्य देश से ज्यादा है. कई अन्य देशों की तरह भारत ने भी हाल ही में फर्जी खबरों को रोकने और सरकार की आलोचना करने वाली सामग्री पर नियंत्रण करने के लिए नए कानून लागू किए हैं.
एए/सीके (आईएएनएस)
रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने भारत को ‘बड़ी ताकत’ बताया है. अपनी भारत यात्रा के दौरान सोमवार को दोनों देशों के बीच सैन्य और ऊर्जा क्षेत्र में कई अहम समझौते हुए.
भारत ने पुष्टि की है कि इस महीने रूस भारत को जमीन से हवा में मार करने वालीं एस-400 मिसाइलों की सप्लाई शुरू कर देगा. इस समझौते को लेकर अमेरिका ने आपत्ति भी जताई है और भारत पर प्रतिबंधों की तलवार लटक रही है.
पुतिन के दौरे पर दोनों देशों ने रक्षा तकनीक में सहयोग के लिए दस साल लंबा एक समझौता किया और तेल के लिए एक साल लंबा समझौता हुआ है. 2020 के आरंभ में पूरी दुनिया में कोरोनावायरस महामारी के फैलने के बाद व्लादीमीर पुतिन की यह दूसरी विदेश यात्रा थी. पुतिन जी-20 की बैठक और ग्लासगो के जलवायु सम्मेलन तक में नहीं गए थे. उन्होंने इसी साल जून में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से स्विट्जरलैंड में मुलाकात की थी.
उसके बाद वह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से ही व्यक्तिगत रूप से मिले हैं. नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद पुतिन ने कहा, "हम भारत को एक बड़ी ताकत मानते हैं, एक मित्र देश और वक्त पर आजमाया हुआ एक दोस्त.”
हथियारों पर समझौते
रूस लंबे समय से भारत को हथियारों की सप्लाई करता रहा है. एस-400 मिसाइलों की सप्लाई को भारतीय सेना को आधुनिक बनाने की दिशा में एक अहम कदम माना जा रहा है. भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने दोनों पक्षों की बैठक के बाद कहा, "सप्लाई इस महीने शुरू हो गई है और जारी रहेगी.”
2018 में हुआ यह समझौता पांच अरब डॉलर से भी ज्यादा का है लेकिन इस पर अमेरिका की नाराजगी की तलवार लटक रही है. अमेरिका ने ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट' (CAATSA) नामक कानून के तहत इस समझौते को आपत्तिजनक माना है. हालांकि पिछले हफ्ते अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि भारत पर प्रतिबंध लगाने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है.
इधर रूस के प्रवक्ता दिमित्री पेश्कोव ने सोमवार को मीडिया को बताया, "हमारे भारतीय दोस्तों ने स्पष्ट कहा है कि वे एक संप्रभु देश हैं और किससे हथियार खरीदने हैं व कौन भारत का साझीदार होगा, इसका फैसला वे खुद करेंगे.”
पुतिन के इस दौरे पर बातचीत ऊर्जा और हथियारों तक ही सीमित रही. एक समझौते के तहत रूसी कंपनी रोसनेफ्ट भारत को 20 लाख टन तेल सप्लआई करेगी. इसके अलावा दस साल लंबे रक्षा समझौते के तहत दोनों देशों ने मिलकर एके-203 राइफल बनाने का फैसला किया है.
क्लाशनिकोव बनाने वाली कंपनी ने कहा कि भारत में बनाई जा रही छह लाख एके-203 राइफल भारतीय सेना को दी जाएंगी. कंपनी के जनरल डायरेक्टर व्लादीमीर लेपिन ने कहा, "हम आधुनिक एके-203 राइफलों के उत्पादन के लिए अगले कुछ महीनों में ही तैयार होंगे.”
रूस और अमेरिका के बीच भारत
शीत युद्ध के दौरान भारत को सोवियत संघ का करीबी माना जाता था. उस ऐतिहासिक करीबियों की आंच अब भी बची हुई है. हालांकि सोवियत संघ के विघटन के बाद भारत की अमेरिका के साथ नजदीकियां बढ़ी हैं. इस लिहाज से विशेषज्ञ मानते हैं कि पुतिन का भारत दौरा प्रतीकात्मक रूप से काफी अहम है.
नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ऑबजर्वर रिसर्च फाउंडेशन के नंदन उन्नीकृष्णन कहते हैं, "भारत-रूस संबंधों को लेकर बहुत सारी अटकलें लगाई जाती रही हैं. इस बारे में बहुत संदेह रहे हैं कि रूस की चीन के साथ और भारत की अमेरिका के साथ नजदीकियों का इन संबंधों पर क्या असर पड़ेगा. इस दौरे ने उन सारी अटकलों को शांत कर दिया है.”
भारत और चीन के बीच संबंध पिछले समय से लगातार खराब हो रहे हैं. अमेरिका भी चीन के जवाब में भारत का साथ लेना चाहता है. इसलिए चार देशों के संगठन क्वॉड सिक्यॉरिटी डायलॉग को भी मजबूत किया जा रहा है, जिसमें भारत और अमेरिका के अलावा जापान और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं.
उधर चीन और रूस की करीबियों से भारतीय पक्ष में हलचल रहती है. लेकिन ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में पढाने वालीं टाटियाना बेलूसोवा कहती हैं कि इस क्षेत्र में रूस का प्रभाव सीमित है. वह कहती हैं, "चीन के साथ उसके मजबूत संबंधों और चीन के क्षेत्रीय हितों के खिलाफ कोई कार्रवाई ना करने की मंशा के चलते रूस का इस क्षेत्र में ज्यादा प्रभाव नहीं है.”
वीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
पूर्व आईपीएस अफसर किशोर कुणाल ने अपनी किताब 'दमन तक्षकों का' में कई राजनेताओं, मुख्यमंत्रियों और वरिष्ठ अफसरों के किस्से बेबाकी से लिखे हैं.
बात 1988 की है. उस समय किशोर कुणाल गुजरात लौटे थे. मन मोहन सिंह वहां डीजीपी थे. कुणाल की ईमानदारी के कायल डीजीपी ने उनसे भ्रष्टाचार के कई प्रकारों की व्याख्या करते हुए कहा था, "जहां-जहां शराबबंदी है, वहां-वहां अधिकारियों की चांदी है. उन पर धन की जो बारिश होती है, वह सावन-भादों को भी पीछे छोड़ दे. इस बरसात की खूबसूरती है कि यह मौसम पर आश्रित नहीं है. कभी आद्रा नक्षत्र की बौछार तो कभी हथिया की मूसलाधार." बरसों बाद भी मन मोहन सिंह की उक्ति बिहार में सौ फीसद कारगर साबित हो रही है.
यह पंक्तियां 1972 बैच के चर्चित आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) अधिकारी किशोर कुणाल की पुस्तक (जीवनी) से ली गई हैं. भ्रष्ट राजनेताओं, अधिकारियों व अपराधियों पर प्रबल प्रहार करती उनकी पुस्तक ‘दमन तक्षकों का' केवल उनकी जीवनी नहीं है, बल्कि देश की तत्कालीन भ्रष्ट व्यवस्था को उजागर करती वह सचाई है जिसे उन्होंने गुजरात, झारखंड, बिहार व भारत सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए महसूस किया, झेला और उससे लड़े.
अपनी पुस्तक में उन्होंने तक्षक को अपराध का प्रतीक मानते हुए बतलाया है कि समाज में तीन प्रकार के तक्षक मौजूद हैं, जब तक इन तक्षकों का कानून सम्मत दमन नहीं होगा, तब तक व्यवस्था में सुधार संभव नहीं है. तक्षक वह नागराज (जहरीला सांप) था, जिसके डंसने से राजा परीक्षित की मौत हुई थी. पौराणिक कथाओं व धार्मिक ग्रंथों के आख्यानों के अनुसार राजा परीक्षित की मौत को कलियुग की शुरुआत माना जाता है.
पूर्व आइपीएस अधिकारी ने अपनी पुस्तक में तक्षकों के तीन प्रकार बताए हैं- खूंखार अपराधी, घूसखोर नेता व बिके हुए अधिकारी. इस पुस्तक से एक से बढ़कर एक तक्षकों के बारे में जानकर पता चलता है कि आठवें व नौंवे दशक में बिहार समेत कुछ अन्य राज्यों के कुछ सत्ताधारी राजनेताओं, अफसरों ने कैसे कानून का शासन ध्वस्त करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. इनकी करतूतों से यह तय करना मुश्किल हो जाता है कि ये अपने ही देश के हैं या फिर कोई बाहरी हमलावर.
आईएएस मतलब ‘ऑलमाइटी सर्विस'
यूं तो इस पुस्तक में कई चौंकाने वाले प्रसंग हैं, किंतु इनमें सबसे हैरतअंगेज राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी के बारे में है.1978 में कुणाल जब मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी में चार महीने के एक कोर्स के लिए गए तो जिस कमरे में रहने के लिए उन्हें ले जाया गया, उसमें पहले से एक आईएएस प्रोबेशनर रहते थे.
कुणाल लिखते हैं कि जब उन्होंने कमरे में प्रवेश किया वे महाशय केवल अंडरवियर और बनियान में थे और बगल में शराब की बोतलें व जाम थे. कुणाल ने उनसे पूछा, क्या यहां शराब पीने की इजाजत है. इस पर उन्होंने कहा, "अफसर शराब नहीं पियेगा तो ऊर्जा कहां से आएगी!"
फिर बातचीत के क्रम में उन्होंने शबाब का अर्थ और आईएएस का पूरा नाम भी समझाया. कहा, "आईएएस का पूरा नाम इंडियन ऑलमाइटी सर्विस है. ईश्वर को ऑलमाइटी कहते हैं. वहीं कहीं स्वर्ग में रहता होगा. धरती के ईश्वर तो हम हैं. सेवा भाव रहता तो आईएएस में क्यों आता. साहिबी और सेवा, दोनों दो ध्रुव हैं."
वेतन तो सूखा साग है, ऊपरी कमाई है मलाई
गुजरात के आणंद में भारतीय पुलिस सेवा में सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर स्वतंत्र प्रभार वाली पहली पदस्थापना में कुणाल को जो पहला केस मिला उसके संदर्भ में नाडियाद अनुमंडल के पुलिस उपाधीक्षक देसाई साहब के 'दिव्य ज्ञान' की चर्चा उन्होंने पुस्तक के पहले पन्ने में विस्तार से की है.
हत्या के चार फरार गुनहगारों की पैरवी के क्रम में देसाई साहब ने कुणाल से कहा, "पगार तो सरकार को दिखाने के लिए है. परिवार का दारोमदार तो थानेदार बंधुओं पर रहता है. सारे व्यय-व्यापार का जुगाड़ तो वही करते हैं. वेतन तो सूखा साग है, ऊपरी कमाई है मलाई."
कुणाल लिखते हैं कि इसी केस के संबंध में कुछ अधिकारियों ने कुणाल की शिकायत गृह विभाग के उप मंत्री रहे माधवलाल शाह से की गई. उनके मुताबिक शाह ने उन्हें फोन पर केस को खत्म करने की हिदायत देते हुए कहा कि तुम्हारा हाथ जल जाएगा, ये (आरोपी) करोड़पति, अरबपति लोग हैं.
प्रत्युत्तर में कुणाल ने कहा, "कहां लिखा हुआ है कि करोड़पतियों को मर्डर करने की छूट है." कुणाल दावा करते हैं कि इस पर माधवलाल शाह ने उन्हें बोरिया-बिस्तर बांध लेने की धमकी दी और दो-तीन बाद उनका तबादला भी हो गया. हालांकि, पी.के पंत ने जब कुणाल से बात की तो उन्होंने तबादले को रोक कर उन्हें अपना काम करते रहने को कहा.
कुत्सित राजनीति, वीभत्स अपराध
कभी पटना से दिल्ली तक की राजनीति को हिला देने वाली लोमहर्षक श्वेतनिशा उर्फ बॉबी हत्याकांड का प्रमाणिक तौर पर जिक्र करते हुए कुणाल ने अपनी पुस्तक में बताया है कि आखिर क्यों कहा जाता है कि ‘समरथ को नहिं दोष गुसाईं.' यह एक महिला की ऐसी हत्या थी जिसमें सेक्स, अपराध और राजनीति का सम्मिश्रण था.
अखबार की खबर पर यूडी केस दर्ज कर कुणाल ने कब्रिस्तान से लाश को निकालकर पोस्टमॉर्टम करवाया. अनुसंधान की इतनी तीव्र गति किसी ने देखी या सोची नहीं थी. इस घटना में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के पुत्र रघुवर झा समेत कई छोटे-बड़े कांग्रेसी नेताओं का नाम आ रहा था.
कुणाल लिखते हैं कि वरीय अधिकारियों का बर्ताव ऐसा था जैसे सच का पता लगा कर उन्होंने कोई गुनाह कर दिया हो. वह लिखते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्र ने उन्हें फोन कर पूछा कि बॉबी कांड का मामला क्या है. कुणाल ने उन्हें जवाब दिया कि सर कुछ मामलों में आपकी छवि अच्छी नहीं है, किंतु चरित्र के मामले में आप बेदाग हैं, इसमें पड़िएगा तो यह ऐसी तीव्र अग्नि है कि हाथ जल जाएगा. अत: कृपया इससे अलग रहें. जवाब सुनकर मुख्यमंत्री ने फोन रख दिया था.
जांच के क्रम में बॉबी की कथित मां व बिहार विधान परिषद की सदस्य राजेश्वरी सरोज दास ने कुणाल को बताया कि कैसे स्पीकर के पुत्र रघुवर झा की दी दवाई से उसकी तबीयत बिगड़ी, कैसे नकली डॉक्टर ने उसका इलाज किया और कैसे झूठी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तक बनी.
अदालत को दिए बयान में भी उन्होंने कहा कि बॉबी को कब और किसने जहर दिया था. कुणाल के अनुसंधान से यह साबित हो गया था कि श्वेतनिशा की हत्या षड्यंत्र रचकर की गई थी. इसके लिए मुख्य सचिव ने उन्हें बधाई भी दी थी. किंतु इसी बीच दो मंत्री और 40 विधायक मुख्यमंत्री डॉ. मिश्र के पास पहुंचे और उन्हें धमकी दी कि अगर केस तत्काल सीबीआई को ट्रांसफर नहीं किया गया तो वे उनकी सरकार गिरा देंगे. मुख्यमंत्री बाध्य हो गए और केस सीबीआई को चला गया.
सीबीआई ने आरोपियों को अभयदान दे दिया. सीबीआई की जांच में भले ही आरोपी मुक्त हो गए, किंतु जनता ने कुणाल के अनुसंधान पर ही विश्वास किया और श्वेतनिशा उर्फ बॉबी हत्याकांड सेक्स-राजनीति से जुड़े अपराधों के इतिहास में एक रोचक दास्तां बनकर जुड़ गया.
कुणाल ने आणंद व मुंगेर की कुछ उन घटनाओं का जिक्र किया है जिसमें पुलिसकर्मी निर्धनों को पकड़कर किसी भी मामले में जेल भिजवा देते थे और त्वरित गति से मामले के उद्भेदन के इसी शैली से वरिष्ठ अधिकारियों से पुरस्कार व प्रशस्ति पत्र पाते थे.
अपने सरकारी आवास की साज-सज्जा पर डेढ़-दो करोड़ रुपये खर्च करने वाले राज्यसभा के एक सांसद से जब कुणाल ने इतने पैसे खर्च करने का प्रयोजन पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि 'मनीपुर' यानी पैसे के दम पर वह राज्यसभा सांसद बने रहेंगे और इसी बंगले में रहते रहेंगे. वह कभी इस पार्टी से तो कभी उस पार्टी से वे राज्यसभा के सदस्य बने रहे.
भारत में ओमिक्रॉन से संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं जिसकी वजह से जानकार लोगों को पूरी सावधानी बरतने की सलाह दे रहे हैं. दुनिया में भी कोरोना वायरस का यह नया वेरिएंट नए नए देशों में फैलता जा रहा है.
भारत में अभी तक ओमिक्रॉन से संक्रमण के 21 मामलों की पुष्टि हो गई है. इनमें से नौ मामले राजस्थान में, आठ महाराष्ट्र में, दो कर्नाटक में हैं और दिल्ली और गुजरात में एक एक मामला है.
और भी कोविड पॉजिटिव लोगों पर ओमिक्रॉन से ही संक्रमित होने का संदेह है लेकिन इनके सैंपलों की जेनेटिक जांच के नतीजे अभी आए नहीं हैं. दिल्ली में तो पिछले 24 घंटों में जांच किए गए सैंपलों में आई कमी के बावजूद संक्रमण के मामले बढ़ गए.
टीका लेना जरूरी
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने एक ट्वीट में सबसे टीका लेने की और मास्क पहनने की अपील की.
केंद्र सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश के 94 करोड़ वयस्क नागरिकों में से करीब 51 प्रतिशत को कोरोना वायरस के खिलाफ टीके के दोनों डोज लग चुके हैं. इसके अलावा करीब 85 प्रतिशत वयस्क नागरिकों को कम से कम एक डोज लग चुकी है.
ओमिक्रॉन के अधिकांश मामले ऐसे लोगों में सामने आए हैं जो हाल ही में विदेश यात्रा से लौटे थे. हालांकि कर्नाटक में एक डॉक्टर को भी संक्रमण हुआ है और वो कहीं भी नहीं गए थे. डॉक्टरों का कहना है कि नया वेरिएंट का स्थानीय आबादी में फैलना शुरू हो चुका है.
सर्जन अरविंदर सिंह सोइन ने ट्विटर पर लिखा, "ओमिक्रॉन यहां आ चुका है, इसका सामुदायिक प्रसार शुरू हो चुका है.
दुनिया के और भी कई देशों में अब ओमिक्रॉन के पहले मामलों की पुष्टि हो चुकी है. इनमें नेपाल, जापान, थाईलैंड, रूस, क्रोएशिया, अर्जेंटीना आदि देश शामिल हैं. ओमिक्रॉन के मामले सबसे पहले पकड़ने वाले देश दक्षिण अफ्रीका में रोजाना सामने आने वाले मामलों में पांच गुना उछाल आई है.
सभी एहतियात बरतें
जहां करीब 15 दिनों पहले जांच किए जाने वाले हर 100 सैंपलों में से सिर्फ दो पॉजिटिव आ रहे थे, वहीं अब करीब 25 पॉजिटिव आ रहे हैं. राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने कहा है कि संक्रमण की यह दर देश में पहले कभी नहीं देखी गई.
हालांकि संक्रमण से मरने वालों की संख्या में कोई नाटकीय बढ़ोतरी अभी तक नहीं देखी गई हैं. रामाफोसा ने सभी देशवासियों को टीका लेने की अपील की है. अभी तक देश की कुल आबादी में से करीब 25 प्रतिशत लोगों का ही टीकाकरण पूरा हुआ है.
इस बीच ऑक्सफोर्ड/ऐस्ट्राजेनेका टीके को बनाने वाले टीम की मुख्य वैज्ञानिक सारा गिल्बर्ट ने कहा है लोगों को सावधान रहने की अपील की है. गिल्बर्ट ने कहा, "जब तक हमें और जानकारी नहीं मिल जाती हमें और सावधान रहना चाहिए और इस नए वेरिएंट के प्रसार की गति को कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए."
हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि जरूरी नहीं है कि संक्रमण और कम हल्की बीमारी के खिलाफ सुरक्षा में कमी आने से गंभीर बीमारी और मृत्यु के खिलाफ सुरक्षा में भी कमी आ जाएगी.
सीके/एए (रॉयटर्स, एएफपी)
पूर्वोत्तर राज्य नागालैंड में सेना की फायरिंग में कम से कम 13 बेकसूर ग्रामीणों की मौत ने इलाके में दशकों से जारी उग्रवाद-विरोधी अभियान को एक बार फिर कठघरे में खड़ा कर दिया है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
असम राइफल्स पर खासकर नागालैंड और मणिपुर में आम लोगों पर अत्याचार और बेकसूरों की हत्या के आरोप पहले से भी लगते रहे हैं. इस घटना के विरोध में तमाम जनजातीय संगठनों ने सोमवार को राज्य में छह घंटे बंद रखा है. राज्य के सबसे बड़े त्योहार हॉर्नबिल फेस्टिवल पर भी इसका साया नजर आने लगा है. मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो सोमवार को प्रभावित जिले का दौरा कर रहे हैं.
संसद में भी घटना को लेकर हंगामा हुआ. कांग्रेस के गौरव गोगोई और मणिकाम टैगोर व आरजेडी के मनोज कुमार झा समेत कई सांसदों ने स्थगन का नोटिस दिया. कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने राज्यसभा में यह मामला उठाया और प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री से बयान देने की मांग की. हंगामे के बाद राज्यसभा को कुछ देर के लिए स्थगित करना पड़ा.
हाल के वर्षों की इस पहली घटना ने जहां कई अनुत्तरित सवाल खड़े किए हैं, वहीं इलाके में विवादास्पद सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा) के खिलाफ एक बार फिर विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं. सवाल पूछा जा रहा है कि क्या सेना ने इतने बड़े ऑपरेशन से पहले उग्रवादियों के बारे में मिली सूचना की पुष्टि नहीं की थी या फिर बीते दिनों मणिपुर में एक कर्नल विप्लव त्रिपाठी के सपिरवार मारे जाने के बाद उसके खिलाफ उग्रवादियों के खिलाफ किसी बड़े ऑपरेशन को अंजाम देने का भारी दबाव था?
ताजा मामला
नागालैंड के मोन जिले में एक के बाद एक गोलीबारी की तीन घटनाओं में सुरक्षाबलों की गोलियों से कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई जबकि 11 अन्य घायल हो गए. पुलिस की कहना है कि गोलीबारी की पहली घटना शायद गलत पहचान के कारण हुई. उसके बाद हुई झड़प में एक जवान की भी मौत हो गई. मोन जिला म्यांमार की सीमा के पास स्थित है. उग्रवादी संगठन एनएससीएन (के) का युंग ओंग गुट वहीं से अपनी गतिविधियां चलाता है.
गोलीबारी की पहली घटना शनिवार शाम उस समय हुई जब कुछ कोयला खदान कर्मी एक पिकअप वैन में घर लौट रहे थे. सेना के जवानों को प्रतिबंधित संगठन नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (एनएससीएन-के) के युंग ओंग गुट के उग्रवादियों की गतिविधि की सूचना मिली थी. इसी गलतफहमी में इलाके में अभियान चला रहे सैन्यकर्मियों ने वाहन पर कथित रूप से गोलीबारी की जिसमें छह मजदूरों की जान चली गई.
पुलिस ने बताया कि जब मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो स्थानीय युवक और ग्रामीण उनकी तलाश में निकले. उन्होंने मौके पर सेना के वाहनों को घेर लिया. इस दौरान हुई झड़प में एक जवान मारा गया. ग्रामीणों ने सेना के वाहनों में भी आग लगा दी. इसके बाद सेना के जवानों ने आत्मरक्षा में फायरिंग की जिसमें सात और लोगों की मौत हो गई.
इस घटना के खिलाफ उग्र विरोध और हिंसा का दौर रविवार को भी जारी रहा. नाराज भीड़ ने असम राइफल्स के कार्यालयों में तोड़फोड़ और आगजनी की. रविवार को सुरक्षा बलों की जवाबी गोलीबारी में कम से कम एक और नागरिक की मौत हो गई जबकि दो अन्य घायल हो गए.
नागालैंड सरकार ने भड़काऊ वीडियो, तस्वीरों या लिखित सामग्री के प्रसार को रोकने के लिए जिले में मोबाइल इंटरनेट और डेटा सेवाओं के एसएमएस करने पर भी पाबंदी लगा दी है.
जांच के आदेश
सरकार ने पुलिस महानिरीक्षक की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया है. रक्षा जनसंपर्क अधिकारी (कोहिमा) लेफ्टिनेंट कर्नल सुमित शर्मा ने कहा, "नागालैंड में मोन जिले के तिरु में उग्रवादियों की संभावित गतिविधियों की विश्वसनीय खुफिया जानकारी के आधार पर इलाके में एक विशेष अभियान चलाए जाने की योजना बनाई गई थी. यह घटना और इसके बाद जो हुआ, वह अत्यंत खेदजनक है.” सेना ने भी इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं.
मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने समाज के सभी तबकों से शांति बनाए रखने की अपील की है. सरकार ने इस घटना में मृत लोगों के परिजनों को पांच-पांच लाख रुपए की सहायता देने का भी ऐलान किया है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी घटना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अपने एक ट्वीट में इस घटना हृदय विदारक बताया है. उनका सवाल था, "गृह मंत्रालय आखिर क्या कर रहा है? देश में आम नागरिक और सुरक्षा बल ही सुरक्षित नहीं हैं.” जनजातीय संगठन ईस्टर्न नागालैंड पीपल्स ऑर्गनाइजेशन (ईएनपीओ) ने इस घटना के विरोध में क्षेत्र के छह जनजातीय समुदायों से राज्य के सबसे बड़े हॉर्नबिल महोत्सव से भागीदारी वापस लेने की अपील की है.
आफस्पा वापस लेने की मांग
नागालैंड में सुरक्षाबलों के हाथों 14 नागरिकों की हत्या के कारण सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम 1958 (अफस्पा) को निरस्त करने की मांग नए सिरे से जोर पकड़ने लगी है. अफस्पा असम, नागालैंड, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लांगडिंग और तिराप जिलों के साथ असम की सीमा से लगे राज्य के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों में लागू है.
नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एनईएसओ) अध्यक्ष सैमुअल बी. जायरा कहते हैं, "अगर केंद्र पूर्वोत्तर के लोगों के हितों के बारे में चिंतित है तो उसे इस कानून को निरस्त करना चाहिए. ऐसा नहीं हुआ तो यह इलाके के लोगों में अलगाव की भावना को और मजबूत करेगा.”
असम से राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार भुइयां कहते हैं, "बेकसूर ग्रामीणों की हत्या सब के लिए आंखें खोलने वाली होनी चाहिए. इस तरह की घटनाओं के कारण ही हम अफस्पा के नवीनीकरण के खिलाफ लगातार विरोध कर रहे हैं.” ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) के मुख्य सलाहकार समुज्ज्वल कुमार भट्टाचार्य कहते हैं, "सुरक्षा बलों की ताजा कार्रवाई एक अक्षम्य और जघन्य अपराध है. नागरिकों की सुरक्षा के लिए अफस्पा को फौरन निरस्त किया जाना चाहिए.”
मणिपुर विमिन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क और ग्लोबल एलायंस ऑफ इंडिजीनस पीपल्स की संस्थापक बिनालक्ष्मी नेप्राम का आरोप है, "इलाके के नागरिकों को मारने में शामिल किसी भी सुरक्षा बल पर आज तक कभी आरोप नहीं लगाया गया और न ही गलती के लिए उनको सजा दी गई है.”
सामाजिक कार्यकर्ता मोहन कुमार भुइयां कहते हैं, "इस घटना की जांच शीघ्र पूरी कर दोषियों को कड़ी सजा दी जानी चाहिए. ऐसा नहीं होने की स्थिति में पूर्वोत्तर में शांति प्रक्रिया तो खटाई में पड़ेगी ही, उग्रवाद का नया दौर शुरू होने का भी अंदेशा है.” (dw.com)
सात्विक और गौरव भट्टी की मुलाकात बॉलीवुड की एक पार्टी में हुई और दोनों के बीच प्यार परवान चढ़ गया. उन्होंने बड़े धूमधाम से शादी करने की सोची लेकिन सात साल हो गए उनका सपना सच नहीं हो पाया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2018 में समलैंगिक सेक्स पर औपनिवेशिक युग के प्रतिबंध को खत्म करने के बावजूद भारत में समलैंगिक विवाह अवैध हैं. भारत में एलजीबीटी+ समुदाय के लोगों को उम्मीद थी कि फैसले के साथ शादी और गोद लेने सहित अधिक समान अधिकारों का रास्ता साफ होगा. सात्विक ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपने पुरुष मित्र से शादी करने की इजाजत मांगी है.
सिंतबर 2020 से अब तक ऐसी छह याचिकाएं कोर्ट में दाखिल की जा चुकी हैं. कनाडा के वैंकुवर से थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन से सात्विक कहते हैं, "शादी करने का एक मौलिक अधिकार है और हमें किसी अन्य विपरीत लिंग जोड़े की तरह ही शादी करने का अधिकार दिया जाना चाहिए." वे कहते हैं, "गौरव और मैं शादी करना चाहते हैं. हम एक परिवार चाहते हैं. हम काम के लिए बाहर जाना चाहते हैं और घर वापस आकर परिवार की तरह बच्चों के साथ टीवी देखकर खाना खाना चाहते हैं."
यदि दंपति अपना केस जीत जाते हैं, तो भारत 2019 में ताइवान के बाद समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाला एशिया में दूसरा देश बन जाएगा. 2018 के फैसले के बाद से ही एलजीबीटी+ समुदाय के सदस्यों ने भारतीय समाज में अधिक प्रगति हासिल की है. टेलीविजन पर उनके चित्रण से लेकर राजनीति और समावेशी कॉर्पोरेट नीतियों में समुदाय ने अधिक महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व प्रगति की है. फिर भी कई लोग कहते हैं कि वे अभी भी बड़े पैमाने पर रूढ़िवादी भारत में खुलकर बोलने से डरते हैं जहां भेदभाव और दुर्व्यवहार एलजीबीटी+ लोगों को नौकरी, स्वास्थ्य, शिक्षा और आवास तक पहुंचने से रोकते हैं.
सात्विक और भट्टी अब कनाडा में रहते हैं. वे कहते हैं उन्हें किराये के अपार्टमेंट खोजने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था. भारतीय शास्त्रीय नर्तक भट्टी कहते हैं कि भारत में होमोफोबिया व्याप्त है. वे कहते हैं, "मैं सात्विक की तुलना में अधिक स्त्रीवत हूं और यह थोड़ा अधिक स्पष्ट है कि मैं समलैंगिक हूं. हर तरह की टिप्पणियां सुनना हमेशा एक मुद्दा था क्योंकि यह मानसिक रूप से आपके साथ क्या करता है... आप इसे अनदेखा करने की कोशिश करते हैं, आप कहते हैं परवाह नहीं है, लेकिन आपको यह गहराई से चोट करती है."
अगस्त 2020 में सात्विक ने दिल्ली छोड़कर वैंकुवर जाने का फैसला किया. वे कनाडाई नागरिक भट्टी के साथ रह रहे हैं. सात्विक कहते हैं यह एक कठिन फैसला था. उन्हें अपने परिवार को छोड़ना पड़ा और एक कानूनी फर्म में एक अर्थशास्त्री के रूप में एक अच्छी नौकरी भी छोड़नी पड़ी. कनाडा में उन्होंने नए सिरे से जीवन शुरू करने के लिए कंसल्टिंग की प्रैक्टिस की शुरुआत की.
वे कहते हैं, "यहां पर मैं गौरव का हाथ पकड़कर सड़क पर चल सकता हूं और शायद उन्हें सार्वजनिक रूप से चूम सकता हूं और कोई मुझ पर उंगली उठाने वाला नहीं है. अगर हमें शादी करने का अधिकार दिया गया होता तो हम शायद यहां नहीं आते."
याचिकाकर्ताओं और सरकार के बीच आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर हाई कोर्ट में अंतिम बहस होने की उम्मीद है.
एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन एक दिवसीय दौरे पर आज भारत में रहेंगे. मिसाइल सिस्टम की खरीद और अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर बेहतर समन्वय को इस दौरे के केंद्र बिन्दु माना जा रहा है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
पुतिन भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे और उम्मीद की जा रही है कि दोनों नेताओं के बीच कई सामरिक विषयों पर चर्चा होगी. पुतिन मोदी को एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम का एक मॉडल भेंट करेंगे जो भारत के रूस से इस सिस्टम की खरीद का एक प्रतीक होगा.
दोनों देश एके-203 असॉल्ट राइफलों के भारत में उत्पादन को लेकर 5,100 करोड़ रुपयों की एक संधि पर भी हस्ताक्षर करेंगे. राइफलें उत्तर प्रदेश के अमेठी में रूसी तकनीक के इस्तेमाल से बनाई जाएंगी.
उच्च स्तरीय बातचीत
पुतिन और मोदी के अलावा 2+2 फॉर्मेट के तहत दोनों देशों के विदेश मंत्री एस जयशंकर और सर्गेई लावरोव और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और सर्गेई शोइगु के बीच भी बातचीत होगी. अभी तक भारत इस फॉर्मेट में सिर्फ क्वॉड समूह के देशों अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के मंत्रियों साथ ही बातचीत करता रहा है.
मंत्रियों की बैठक के बाद मोदी और पुतिन एक दूसरे से निजी स्तर पर बातचीत करेंगे और फिर दोनों नेताओं के बीच भारत-रूस शिखर बैठक होगी. दोनों नेताओं के बीच हर साल इस शिखर बैठक का आयोजन होता है.
2019 में ऐसी बैठक मोदी की रूस यात्रा के दौरान व्लादिवोस्तोक में हुई थी. 2020 में कोरोना वायरस महामारी की वजह से बैठक नहीं हो पाई थी. यही तक दोनों देशों के शीर्ष नेताओं के बीच इस तरह की 20 बैठकें हो चुकी हैं.
रिश्तों का संतुलन
पुतिन की भारत यात्रा को कई मायनों से महत्वपूर्ण माना जा रहा है. रूस से एस-400 सिस्टम खरीदने की वजह से अमेरिका के भारत के ऊपर प्रतिबंध लगाने का खतरा है, लेकिन इस खतरे के बावजूद दोनों देश इस पर आगे बढ़ रहे हैं.
इसे भारत द्वारा अमेरिका और रूस दोनों से अपने रिश्तों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. अफगानिस्तान को लेकर रूस और भारत की साझेदारी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है.
पुतिन से पहले रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा के लिए भारत आ चुके हैं. इसके अलावा भारत और चीन के बीच करीब डेढ़ साल से बिगड़े हुए रिश्तों को सुधारने में भी रूस की मध्यस्थता की गुंजाइश है.
लद्दाख में भारत और चीन की सीमा पर सैन्य विवाद गहरा जाने के बाद रूस ने भारत और चीन के नेताओं को कई मौकों पर मंच साझा करने का मौका दिया. लद्दाख के कई इलाकों में दोनों देशों की सेनाएं अभी भी आमने सामने डटी हुई हैं. (dw.com)
भारत में अल्पसंख्यकों के लिए जगह घटती जा रही है. उन्हें सार्वजनिक स्थानों पर प्रार्थना करने से लेकर अपना धंधा चलाने आदि तक से रोका जा रहा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि यह सिर्फ जगह की लड़ाई नहीं है.
शुक्रवार की शामें दिल्ली से सटे गुड़गांव में रहने वाले मुसलमानों के लिए सामुदायिक नमाज का वक्त होती हैं. सबके जमा होने के लिए जगह चाहिए, जो पिछले कई साल से प्रशासन उन्हें उपलब्ध करवाता रहा है. पार्कों या खाली पड़ी जमीनों पर नमाज अदा होती रही है.
लेकिन पिछले कुछ वक्त से सब बदल गया है. अब जैसे ही मुसलमान नमाज के लिए जमा होते हैं, उनका विरोध करने वाले और उन्हें हटाने वाले हिंदू संगठन चले आते हैं. नमाज के वक्त में वहां नारे लगाए जाते हैं और गाली-गलौज की नौबत आ जाती है. इस फसाद के चलते प्रशासन ने सार्वजनिक जगहों पर नमाज के लिए दी इजाजत वापस ले ली है.
2014 में हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद से भारत में हिंदू-मुस्लिम खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है. बड़ी संख्या में सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगाते रहे हैं कि प्रशासन और अधिकारी अल्पसंख्य समुदायों के खिलाफ कट्टर हिंदू संगठनों का पक्ष लेते हैं.
नमाज से दिक्कत क्यों?
थिंक टैंक ‘वर्ल्ड रिसॉर्सेज इंस्टिट्यूट इंडिया' की प्रेरणा मेहता कहती हैं, "जगह तो कम है, इसलिए यह सवाल तो हमेशा बना रहता है कि विभिन्न सामुदायिक गतिविधियों के लिए अलग-अलग संगठनों को इसे कैसे उपलब्ध कराया जाए. लेकिन शहरों में सार्वजनिक जगह कैसे किसी को दी जाती हैं इस लेकर हमेशा वर्गीकरण होता है. गरीब और कमजोर वर्ग या अल्पसंख्यक समुदायों के लिए जगह की उपलब्धता औरों से कम है.”
भारत में 14 प्रतिशत मुसलमान हैं जबकि 1.3 अरब आबादी वाले देश में 80 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की है. देशभर में आमतौर पर सार्वजनिक स्थान अवैध झुग्गी बस्तियों, रेहड़ी ठेले वालों, बच्चों के खेलने, त्योहार मनाने, शादी-उत्सव या फिर राजनीतिक रैलियों के लिए इस्तेमाल होते रहे हैं.
लेकिन गुड़गांव में नमाज के लिए उपलब्ध जगहों पर हिंदू संगठनों ने यह कहकर अन्य गतिविधियां शुरू कर दी हैं कि सार्वजनिक स्थानों को धार्मिक प्रायोजन से प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए. इसके चलते पिछले कुछ समय में नमाज के लिए उपलब्ध स्थानों की जगह 40 से घटकर लगभग आधी रह गई है.
मुस्लिम एकता मंच के शहजाद खान कहते हैं, "त्योहारों की बात छोड़ दें तो जुमे की नमाज में मुश्किल से 30 मिनट लगते हैं. लेकिन मस्जिदें बहुत कम हैं इसलिए हमें बड़ी जगह की जरूरत पड़ती है. सार्वजनिक जगह सबके लिए हैं. और हम दशकों ऐसे ही नमाज पढ़ते आ रहे हैं, बिना किसी को तकलीफ दिए. अगर धार्मिक गतिविधियों की इजाजत नहीं, फिर तो हिंदुओं को भी जगह नहीं मिलनी चाहिए.
प्रशासन इस आरोप को नकारता है कि हिंदुओं को जानबूझकर फायदा दिया जा रहा है. गुड़गांव के जिलाधीश यश गर्ग कहते हैं, "अभी भी बहुत जगहों पर नमाज हो रही हैं. दो-तीन जगहों पर ही विरोध हुआ है. समुदाय और प्रशासन इस विवाद का एक शांतिपूर्ण हल खोजने को प्रतिबद्ध है और हम हर संभव विकल्प पर विचार कर रहे हैं.”
गुजरात मॉडल
ऐसा सिर्फ हरियाणा में नहीं हो रहा है. कई राज्यों में प्रशासन द्वारा ऐसे कदम उठाए गए हैं जो अल्पसंख्यक समुदाय के अधिकारों को ही कतरते हैं. मसलन गुजरात के अहमदाबाद में रेहड़ी ठेलों पर मांसाहारी खाना बेचने वालों को हटा दिया गया है.
गुजरात में हाल ही में कई जिलों में प्रशासन ने मांसाहारी खाना बेचने वाले छोटे ठेले-रेहड़ी वालों को हटा दिया. बहुत जगह तर्क दिया गया कि वे लोग हिंदुओं की भावनाओं को आहत कर रहे थे. लेकिन पिछले महीने राज्य के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने कहा कि ये कदम भेदभावकारी नहीं थे बल्कि सड़कों से भीड़-भाड़ हटाने और खाने को लेकर स्वच्छता को बढ़ाने देने के मकसद से उठाए गए.
पटेल ने मीडिया से कहा, "लोगो जो भी खाना चाहें, खा सकते हैं लेकिन ठेलों पर बेचा जा रहा खाना हानिकारक नहीं होना चाहिए और रेहड़ियों से ट्रैफिक बाधित नहीं होना चाहिए.”
पूरे देश की स्थिति
मानवाधिकार कार्यकर्ता इन कदमों को पूरे देश के माहौल से जोड़कर देखते हैं जबकि मुसलमानों के साथ कई निर्मम घटनाएं हो चुकी हैं. कई बार लोगों को घरों में घुसकर या राह चलते पीट-पीटकर मार डाला गया. और ऐसे भी आरोप हैं कि हिंदुत्वादी संगठनों की गतिविधियां त्योहारों के नाम पर बहुत ज्यादा आक्रामक हो गई हैं.
सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी ऐंड सेक्यलरिजम की उप निदेशक नेहा दाभाड़े कहती हैं, "ऐसी घटनाएं दिखाती हैं कि जब बात हिंदुओं की होती है तो धार्मिक भावनाओं के दिखावे में किसी तरह का संयम नहीं बरता जाता. सार्वजनिक जगहों पर सबका बराबर हक होना चाहिए और वह इस तरह होना चाहिए कि बाकियों को असुविधा ना हो. लेकिन एक प्रतिद्वन्द्विता लगातार बढ़ रही है जिसका स्वभाव सांप्रदायिक है. और एक ऐसी भावना का प्रसार हो रहा है कि मुसलमानों को सार्वजनिक जगहों पर नहीं होना चाहिए.”
गुड़गांव में कुछ हिंदुओं ने अपने घर और दुकानें मुसलमानों को नमाज के लिए उपलब्ध करवा दिए. सिखों ने गुरुद्वारे में नमाज अदा करने की इजाजत दे दी. खान कहते हैं, "ये बातें हमें उम्मीद बंधाती हैं. खुले में नमाज किसी के लिए पेरशानी या चिंता की बात नहीं होनी चाहिए. ये जगह सबके लिए हैं फिर चाहे वह प्रार्थना हो या क्रिकेट. और इन्हें ऐसे ही रहना चाहिए."
वीके/सीके (रॉयटर्स)
भारत में पेप्सी को बड़ा झटका लगा है. आलू की एक विशेष किस्म पर उसके पेटेंट को रद्द कर दिया गया है. इसी आलू से कंपनी लेज चिप्स बनाती है जो उसके सबसे ज्यादा बिकने वाले उत्पादों में शामिल है.
भारत में पेप्सीको इंक के खूब बिकने वाले आलू के चिप्स लेज का पेटेंट रद्द कर दिया है. पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकारों के लिए स्थापित संस्था (PPVFR) ने लेज के आलू चिप्स का पेटेंट रद्द करने का आदेश जारी किया.
2019 में पेप्सी ने गुजरात के कुछ किसानों पर इसलिए मुकदमा कर दिया था क्योंकि वे एफसी5 आलू उगा रहे थे. ये विशेष किस्म के आलू कम नमी के लिए जाने जाते हैं और चिप्स बनाने के लिए उत्तम माने जाते हैं. पेप्सी का कहना था कि आलू की इस किस्म पर उसका अधिकार है और अन्य किसान बिना उसकी इजाजत के इसे नहीं उगा सकते.
किसानों पर मुकदमा
पेप्सी की किसानों पर इस कार्रवाई का तीखा विरोध हुआ था जिसके बाद अमेरिकी कंपनी ने अपना मुकदमा वापस ले लिया था. किसानों ने इस मुकदमे को लड़ने की तैयारी कर ली थी. चार किसानों की तरफ से एक वकील ने पेप्सी के खिलाफ मुकदमा शुरू कर दिया था. लेकिन पूरे भारत के किसानों द्वारा विरोध के बाद कंपनी ने कहा था कि सद्भावपूर्ण तरीके से मामला हल कर लिया गया.
तभी किसानों के अधिकारों के लिए काम करने वालीं कविता कुरुगांती ने पीपीवीएफआई अथॉरिटी में एक याचिका दर्ज कर अनुरोध किया कि एफसी5 आलू पर कंपनी का एकाधिकार रद्द किया जाए. उनका तर्क था कि भारत के नियम बीजों की किस्मों पर पेटेंट का अधिकार नहीं देते.
पीपीवीएफआर ने कुरुगांती की इस दलील को स्वीकार किया है कि पेप्सी बीज की एक किस्म पर दावा नहीं कर सकती. अथॉरिटी के अध्यक्ष केवी प्रभु ने कहा, "तुरंत प्रभाव से पंजीकरण रद्द किया जाता है.”
किसान बोले, बड़ी जीत
इस बारे में पेप्सी ने कहा कि उसे इस आदेश की जानकारी है. एक प्रवक्ता ने कहा, "हमें जानकारी है कि पीपीवीएफआर अथॉरिटी ने ऐसा आदेश पारित किया है और उसकी समीक्षा कर रहे हैं.” हालांकि कंपनी का कहना है कि एफसी5 किस्म को उसने ईजाद किया था और 2016 में उसे पंजीकृत कराया था.
पेप्सी ने 1989 में भारत में आलू के चिप्स का पहला प्लांट लगाया था. लेज चिप्स बनाने के लिए कंपनी एफसी5 आलू का इस्तेमाल करती है. ये आलू कंपनी कुछ विशेष किसानों से ही खरीदती है. कंपनी ही किसानों को खेती के लिए बीज उपलब्ध करवाती है और बदले में उनसे एक निश्चित कीमत पर आलू खरीदती है.
अथॉरिटी के फैसले पर किसानों ने खुशी जताई है. जिन किसानों पर पेप्सी ने 2019 में मुकदमा किया था, उनमें से एक बिपिन पटेल ने कहा, "यह आदेश भारत के किसानों की बड़ी जीत है, और उनके खेती करने के अधिकार को एक बार फिर पुष्ट करती है.”
वीके/एए (रॉयटर्स)
पटना, 5 दिसम्बर | बिहार स्वास्थ्य विभाग ने तीन कोविड-19 केंद्रों को टीके की दूसरी खुराक दिए बिना 50 से अधिक व्यक्तियों के नाम केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया है। पटना की सिविल सर्जन वीणा कुमारी ने कहा कि पटना पॉलिटेक्निक कॉलेज, कंकड़बाग स्वास्थ्य केंद्र और पाटलिपुत्र स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स स्थित केंद्रों पर अनियमितताएं पाई गईं हैं।
सिविल सर्जन ने कहा, "हमने तीनों केंद्रों को नोटिस दिया है और उन्हें जल्द से जल्द मुख्य चिकित्सा अधिकारी के कार्यालय में जवाब देने को कहा है।"
यह घटना तब सामने आई जब पटना के कुछ निवासी अपनी दूसरी खुराक लेने के लिए कोविड टीकाकरण केंद्रों पर गए। अधिकारियों ने उन्हें बताया कि वे दूसरी खुराक ले चुके हैं और उनके नाम केंद्र सरकार की वेबसाइट पर अपलोड कर दिए गए हैं।
उन्होंने कहा, "कुछ लोगों ने पिछले हफ्ते मेरे कार्यालय से संपर्क किया और उसी के संबंध में शिकायत दर्ज कराई। तदनुसार, हमने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है।"
अधिकारी ने कहा कि सॉफ्टवेयर में तकनीकी गड़बड़ी ऐसी अनियमितता का एक कारण हो सकती है।
अधिकारियों ने बताया कि कई लोगों ने वैक्सीन की दूसरी खुराक समय पर नहीं ली है। कोविड -19 के नए वैरिएंट के खतरे के बाद वे अपनी दूसरी खुराक लेने के लिए केंद्रों पर आ रहे हैं। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 5 दिसम्बर | मेजर जनरल अभिजित एस. पेंढारकर ने प्रतिष्ठित वज्र डिविजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग(जीओसी) का पदभारत संभाला है। इससे पहले मेजर जनरल वी एम बी कृष्णन यह पद संभाल रहे थे। सेना ने रविवार को कहा, कृष्णन की नियुक्ति काउंटर इंसर्जेंसी जंगल वारफेयर स्कूल, वैरेंगटे के कमांडेंट के रूप में हुई है। पेंढारकर को 9 जून, 1990 को आईएमए, देहरादून से 6वीं बटालियन, असम रेजिमेंट में कमीशन किया गया था। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला के पूर्व छात्र, जनरल ऑफिसर ने रक्षा सेवा स्टाफ कॉलेज, वेलिंगटन, उच्च कमान पाठ्यक्रम और राष्ट्रीय रक्षा कॉलेज सहित सभी महत्वपूर्ण कैरियर पाठ्यक्रमों में भाग लिया है।
उन्होंने सामरिक अध्ययन में एमएससी और दर्शनशास्त्र में मास्टर डिग्री हासिल की है। जनरल ऑफिसर के पास पूर्वोत्तर और जम्मू और कश्मीर में गहन उग्रवाद/आतंकवादी विरोधी अभियानों में काम करने का व्यापक परिचालन अनुभव है।
उनकी विशिष्ट सेवा के लिए, उन्हें नियंत्रण रेखा पर एक चुनौतीपूर्ण ब्रिगेड की कमान संभालते हुए 2002 में जीओसी-इन-सी सेंट्रल कमांड कमेंडेशन कार्ड, 2007 में सीओएएस कमेंडेशन कार्ड और 2018 में युद्ध सेवा मेडल से सम्मानित किया गया है। (आईएएनएस)
सुजीत चक्रवर्ती
इंफाल/अगरतला, 5 दिसम्बर | भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र दुनिया का छठा सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्र है। यहां हिमालयी क्षेत्र की मिट्टी कमजोर है और भारी मानसून के कारण काम का मौसम बहुत कम होता है। हालांकि, इन चुनौतियों के बावजूद 111 किलोमीटर लंबी जिरीबम-इंफाल नई रेलवे लाइन के हिस्से के रूप में मणिपुर की नोनी पहाड़ी घाटी में दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनाया जा रहा है।
विशाल पुल का निर्माण 2015 से पश्चिमी मणिपुर के तामेंगलोंग जिले में 374 करोड़ रुपये की लागत से किया जा रहा है, जो 14,320 करोड़ रुपये की ब्रॉड गेज रेलवे लाइनों के एक अनिवार्य हिस्से के रूप में है, जो दिसंबर 2023 तक मणिपुर की राजधानी इंफाल को जोड़ेगी।
मणिपुर रेलवे परियोजना के मुख्य इंजीनियर संदीप शर्मा ने कहा कि पूर्वोत्तर क्षेत्र दुनिया में छठा सबसे अधिक भूकंप संभावित क्षेत्र है। हिमालयी क्षेत्र की मिट्टी कमजोर है और लंबी अवधि के लिए भारी मानसून के कारण पहाड़ी क्षेत्र में काम का मौसम बहुत कम होता है।
शर्मा ने फोन पर आईएएनएस को बताया, "कई बाधाओं, चुनौतियों और निर्माण मटेरियल के परिवहन की समस्याओं के बावजूद, बड़े आकार के पुल पर लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है और बाकी का काम अगले साल अगस्त में पूरा हो जाएगा।"
उन्होंने कहा कि भौगोलिक स्थिति और भूकंप के खतरे को देखते हुए, पुल की संरचना को उसी अनुसार डिजाइन किया गया है और आईआईटी खड़गपुर सहित भारत में विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सलाहकारों और आईआईटी से विशेषज्ञता प्राप्त की गई है। मार्गदर्शन के लिए विभिन्न विशेषज्ञ समितियों का भी गठन किया गया है।
मुख्य इंजीनियर ने कहा, "111 किलोमीटर लंबी जिरीबाम-इंफाल रेलवे लाइन यात्रा के समय को मौजूदा 10-12 घंटे से घटाकर 2.5 घंटे कर देगी।"
2023 तक रेलवे लाइन (जिरीबाम-इम्फाल) के पूरा होने के बाद, मणिपुर की राजधानी इंफाल पहाड़ी पूर्वोत्तर क्षेत्र का चौथा राजधानी शहर होगा, जो असम के मुख्य शहर गुवाहाटी (निकटवर्ती राजधानी डिसपुर), त्रिपुरा की राजधानी अगरतला और अरुणाचल प्रदेश के नाहरलगुन से जुड़ा होगा।
उत्तर-पूर्व सीमांत रेलवे (एनएफआर) दो और पूर्वोत्तर राज्यों मिजोरम और नागालैंड की राजधानी शहरों को जोड़ने के लिए ट्रैक बिछा रहा है।
एनएफआर की मुख्य जनसंपर्क अधिकारी गुनीत कौर ने कहा कि एनएफआर (निर्माण) संगठन 8 नए स्टेशन भवन, 11 बड़े पुल, 134 छोटे पुल, 4 रोड ओवरब्रिज, 12 रोड अंडरब्रिज और रिकॉर्ड लंबाई 71,066 मीटर से ज्यादा सुरंग का निर्माण करेगा।
एनएफआर के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि परियोजना को समय पर पूरा करने से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सभी हितधारकों द्वारा चर्चा की गई।
अधिकारी ने कहा कि इस परियोजना का समय पर पूरा होना भारत सरकार की 'एक्ट ईस्ट पॉलिसी' को ध्यान में रखते हुए भविष्य में म्यांमार तक रेल संपर्क को आगे बढ़ाने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
एनएफआर (निर्माण विंग) के एक वरिष्ठ इंजीनियर ने कहा कि भारत में पहली बार किसी भी आपात स्थिति के दौरान लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए सुरंग संख्या 12 पर जिरीबाम-तुपुल-इम्फाल रेलवे लाइन पर एक सुरक्षा सुरंग का निर्माण किया गया है जो महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस खंड में दुनिया का सबसे ऊंचा पुल और भारत में सबसे लंबी रेलवे सुरंग होगी।
उन्होंने कहा कि परियोजना के पूरा होने से मणिपुर की समृद्ध संस्कृति दुनिया के सामने आएगी।
11.55 किमी लंबी सुरंग संख्या 12 भारत में जिरीबाम-तुपुल-इम्फाल रेलवे लाइन पर सबसे लंबी रेलवे सुरंग है और जम्मू और कश्मीर में बनिहाल-काजीगुंड लाइन पर प्रसिद्ध पीर पंजाल सुरंग (8.5 किमी) से लंबी है।
इस सुरंग के निर्माण की अनुमानित लागत, जो मणिपुर, सेनापति और इंफाल पश्चिम के दो जिलों में स्थित है और इम्फाल घाटी के पश्चिमी भाग में स्थित है, 930 करोड़ रुपये होगी।
इंजीनियर ने कहा, "सुरंग संख्या 12 पर किसी भी आपात स्थिति के दौरान लोगों की सुरक्षित निकासी के लिए, अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी विशिष्टताओं के अनुसार एक समानांतर 9.35 किमी लंबी सुरक्षा सुरंग का निर्माण किया गया है। मुख्य सुरंग और समानांतर सुरक्षा सुरंग को सभी 500 मीटर पर क्रॉस पैसेज के माध्यम से जोड़ा जाएगा। सुरक्षा सुरंग के निर्माण के लिए 368 करोड़ खर्च किए गए थे।"
जिरीबाम-तुपुल-इम्फाल ब्रॉड गेज रेलवे परियोजना को 2008 में शुरू किया गया था और इसके महत्व के कारण इसे 'राष्ट्रीय परियोजना' घोषित किया गया था।
एनएफआर इंजीनियरों ने कहा कि परिदृश्य, मिट्टी की स्थिति और अन्य प्राकृतिक चुनौतियों ने रेलवे को अधिक पैसा निवेश करने और पूर्वोत्तर क्षेत्र में विविध चुनौतियों का सामना करने के लिए मजबूर किया है।
एनएफआर के इंजीनियर ने दावा किया, "देश के अन्य हिस्सों की तुलना में पूर्वोत्तर क्षेत्र की मिट्टी या मिट्टी धारण करने की क्षमता बहुत कम है। लेकिन रेलवे इंजीनियरों के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 5 दिसम्बर | श्रीलंकाई नागरिक प्रियंता कुमारा के शव के प्रारंभिक पोस्टमार्टम से पता चला है कि उनके सिर पर गंभीर चोट लगने से उनकी मौत हुई थी। उसको आग के हवाले करने से पहले उनके अंगों की अधिकांश हड्डियां टूट चुकी थीं। शनिवार को सामने आई रिपोर्ट और अतिरिक्त वीडियो में लिंचिंग के नए विवरण सामने आए हैं। यह सामने आया कि एक सहयोगी ने भीड़ से प्रियंता को बचाने की कोशिश की।
ईशनिंदा के कथित आरोपों को लेकर शुक्रवार को फैक्ट्री के कर्मचारियों और अन्य लोगों की भीड़ ने श्रीलंकाई नागरिक की पीट-पीटकर हत्या कर दी। उन्होंने वजीराबाद रोड स्थित राजको इंडस्ट्रीज की इकाई में निर्यात प्रबंधक के रूप में काम किया था।
फैक्ट्री के कर्मचारियों ने पहले उनकी हत्या की और फिर उनके शव को बाहर खींचकर आग के हवाले कर दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि भयावह घटनाओं को मोबाइल कैमरों में रिकॉर्ड किया गया।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में प्रियंता कुमारा के अंतिम क्षणों का पता चलता है, जो एक दशक से अधिक समय से इस देश में काम कर रहे थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, प्रियंता की खोपड़ी पर कई वार हुए और एक जोरदार झटका उनके दिमाग में गहराई तक चला गया, जिससे उनकी मौत हो गई। समा टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, भीड़ ने लगभग सभी अंगों की हड्डियां तोड़ दीं।
जलने और घावों से लगभग 99 प्रतिशत क्षतिग्रस्त हो गए। निचले पैरों को छोड़कर शरीर जल गया था।
कानूनी औपचारिकताओं और पोस्टमार्टम के बाद पुलिस ने सुरक्षा के बीच शव को लाहौर ले जाया गया है। शव इस्लामाबाद में श्रीलंकाई उच्चायोग को सौंपा जाएगा।
भीड़ ने प्रियंता पर ईशनिंदा का आरोप लगाया था, जब उन्होंने फैक्ट्री की दीवारों पर चिपकाए गए एक धार्मिक संगठन के कुछ पोस्टरों को कथित तौर पर फाड़ दिया था।
रिपोर्ट में कहा गया है, हालांकि, शनिवार को एक पुलिस जांच से पता चला कि प्रियनाथ और कार्यकर्ताओं के बीच एक अन्य मुद्दे पर तीखी नोकझोंक हुई थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विदेशी कंपनियों द्वारा राजको इंडस्ट्रीज का निरीक्षण किया जाना था और मृतक ने फैक्ट्री मशीनों के पूर्ण ओवरहाल और रखरखाव का आदेश दिया था।
पुलिस के मुताबिक शुक्रवार सुबह 10 बजे मैनेजर और कर्मचारियों के बीच पहली बार तीखी नोकझोंक हुई, जो बाद में हिंसा में बदल गई।
इसमें कहा गया है कि कुछ कर्मचारियों को अपमान के लिए निकाल दिया गया था। विवाद के बाद, श्रमिकों ने कारखाने में विरोध प्रदर्शन किया और आरोप लगाया कि प्रियंता कुमारा ने ईशनिंदा की है।
विरोध ने क्षेत्र में यातायात को निलंबित कर दिया और भीड़ धीरे-धीरे बड़ी हो गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि शनिवार को नए वीडियो और रिपोर्ट सामने आए, जिसमें बताया गया कि सड़क पर विरोध के बाद भीड़ के कारखाने में फिर से प्रवेश करने के बाद, प्रियंता अपनी जान बचाने के लिए छत पर भाग गए।
वीडियो में दिख रहा है कि भीड़ ने उन्हें छत पर सोलर पैनल के बीच घेर लिया।
एक सहयोगी ने प्रियंता को भीड़ से बचाने की कोशिश की, क्योंकि श्रीलंकाई नागरिक उनके पैरों से चिपक गया था। (आईएएनएस)
भारत में इन दिनों क्रिप्टोकरेंसी को लेकर चर्चा हरेक की जुबान पर है भले ही उसने इसमें कभी निवेश किया हो या नहीं. अब सरकार इस पर कानून लाने वाली है, लेकिन यह काम भी बड़ा उलझन भरा है. जाानिए क्यों?
डॉयचे वैले पर विनम्रता चतुर्वेदी की रिपोर्ट-
भारतीय संसद के इस हफ्ते शुरू हुए शीतकालीन सत्र की खास बात कृषि या विकास संबंधी परियोजनाएं न होकर एक ऐसी करेंसी या मुद्रा रही जो न देखी जा सकती है, न छुई जा सकती है और जिसकी कीमत तेजी से घटती-बढ़ती रहती है. इसे क्रिप्टोकरेंसी या डिजिटल करेंसी कहते हैं, जिस पर सरकार या बैंक का नियंत्रण नहीं होता है. यह करेंसी ब्लॉकचेन तकनीक पर बनी होती है, जो किसी डेटा को डिजिटली सहेजता है.
अब जो करेंसी किसी के नियंत्रण में नहीं है, उस पर सरकार कानून कैसे ला सकती है? इसका जवाब हां और ना दोनों है. भले ही सरकार ने क्रिप्टोकरेंसी को लेकर कोई कानून न बनाया हो, लेकिन भारत का आयकर विभाग क्रिप्टो निवेश पर होने वाली इनकम पर टैक्स लेता है. हालांकि क्रिप्टो टैक्स के नियम ज्यादा साफ नहीं हैं, लेकिन अगर किसी निवेश पर टैक्स लिया जा रहा है तो इसका मतलब है कि सरकार उसे आय का स्रोत मान रही है.
दूसरा पक्ष यह है कि सरकार इसे पेमेंट का माध्यम मानने से इनकार कर रही है. हाल ही में संसद की ओर से जारी एक बुलेटिन में कहा गया कि बिटकॉइन या इथेरियम जैसी अन्य क्रिप्टोकरेंसी को करेंसी का दर्जा नहीं दिया जा सकता है. यानि इनसे कोई भी दूसरा सामान नहीं खरीदा जा सकेगा.
नुकसानदेह हो सकता है सरकार का रवैया
सरकार की यह हिचक लंबे अर्से में नुकसान ही कराएगी क्योंकि कई छोटे-बड़े देशों ने क्रिप्टोकरेंसी को पेमेंट का माध्यम मान लिया है. मसलन, अमेरिका स्थित दुनिया के सबसे बड़े मूवी थिएटर चेन एएमसी ने कुछ क्रिप्टोकरेंसी से पेमेंट किए जाने को मंजूरी दे दी है. वहीं, कोरोना महामारी से बुरी तरह तबाह हो चुके टूरिज्म बिजनेस को दोबारा खड़ा करने के लिए थाइलैंड ने क्रिप्टो निवेशकों का स्वागत करते हुए कहा है कि वे उनके यहां आकर क्रिप्टो के जरिए सामान खरीद सकते हैं.
हालांकि, भारत सरकार क्रिप्टोकरेंसी को एसेट क्लास यानि स्टॉक, बॉन्ड जैसा मानने को तैयार दिख रही है. इसका मतलब है कि सरकार क्रिप्टोकरेंसी को करेंसी न मानकर निवेश का माध्यम मानने को तैयार है. संसद की ओर से जारी बुलेटिन की एक अन्य टिप्पणी भी भ्रम पैदा करने वाली है. सरकार ने कहा है कि वह प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगा देगी. यह प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी आखिर है क्या? सरकार ने इसे लेकर कोई व्याख्या नहीं दी है. क्रिप्टो जगत में प्राइवेट क्रिप्टोकरेंसी जैसी कोई चीज होती ही नहीं है क्योंकि सारी क्रिप्टोकरेंसी ‘प्राइवेट' ही हैं, ‘पब्लिक' या सरकार के नियंत्रण में तो हैं नहीं.
ब्लॉकचेन तकनीक से परहेज नहीं
एक अन्य मुद्दा जिस पर सरकार का रुख कन्फ्यूज कर रहा है वह है डिजिटल रुपये. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को ब्लॉकचेन तकनीक भा गई है क्योंकि इसकी वजह से रिकॉर्ड को सहेजना और करेंसी को जारी करना आसान है. सरकार को भले क्रिप्टोकरेंसी से दिक्कत हो, लेकिन वह खुद रुपये को डिजिटली जारी करना चाहती है. यानि हो सकता है कि भारतीय रुपया जल्द ही बिटकॉइन या डॉजकॉइन की तरह डिजिटल हो जाए.
हाल के दिनों में सरकार के रवैये ने आम भारतीय क्रिप्टो निवेशकों को खूब छकाया. भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंज जैसे वजीरएक्स और कॉइनडीसीएक्स पर निवेशकों ने जल्दबाजी में अपनी करेंसी बेच डाली. पुराने और मंझे हुए क्रिप्टो निवेशकों ने इसका फायदा उठाया और गिरे हुए भाव पर दाव लगाकर क्रिप्टोकरेंसी को अपनी झोली में डाल लिया. ऐसा ही होता है क्रिप्टोकरेंसी बाजार में, जहां कीमत के गिरने का इंतजार कर रहे निवेशक झट से पैसे लगाकर प्रॉफिट लेकर चले जाते हैं.
कंपनियों को सरकार के फैसले का इंतजार
भारत में स्थित क्रिप्टो कंपनियां फिलहाल सरकार के बिल लाने का इंतजार कर रही हैं. वह कई वर्षों से सरकार के साथ बातचीत कर रही थीं क्योंकि उन्हें मालूम है कि रेगुलेशन और कानून आने से उन्हीं का फायदा होगा और क्रिप्टो को लेकर आम लोगों में विश्वास जगेगा. यही वजह है कि क्रिप्टो बिल को लेकर तमाम अटकलों के बावजूद अरबों की संपत्ति वाला क्रिप्टो एक्सचेंज कॉइनडीसीएक्स अब अपना आईपीओ शेयर बाजार में लाने वाला है. आईपीओ के जरिए उसे विस्तार मिलेगा और वह आम लोगों में अपने शेयर बेचकर धन की उगाही कर सकेगा.
भारत को लेकर बड़ी कंपनिया आश्वस्त हैं कि यहां चीन की तरह क्रिप्टो पर बैन लगाकर तानाशाही नहीं चलेगी. एनालिटिक फर्म चेनएनालिसिस ने भी भारत को क्रिप्टो का हब करार दिया है, जो बिना किसी गाइडलाइंस के देश ने हासिल किया है. यह बड़ी उपलब्धि है और सरकार को इसे गंवाना नहीं चाहिए.
फिलहाल सरकार को ब्लॉकचेन तकनीक से कोई दिक्कत नहीं, न ही क्रिप्टोकरेंसी इनकम पर मिलने वाले टैक्स से. लेकिन विडंबना यह है कि सरकार क्रिप्टोकरेंसी पर बैन लगाने को भी आतुर है. यह वही बात हो गई है कि कमरे में हाथी रखा है और सबने उसकी अपनी तरह से व्याख्या की है. भारत सरकार को क्रिप्टोकरेंसी पर व्यापक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. एक ऐसा देश जो आईटी सेक्टर का हब हो, जहां 50 करोड़ इंटरनेट यूजर्स हो और जिसने डिजिटल इंडिया का ख्बाव देखा हो, वह ब्लॉकचेन और क्रिप्टोकरेंसी के उदय के दौर में पिछड़ कर रह जाएगा. (dw.com)
आण्विक ऊर्जा के समर्थकों का दावा है कि इसकी बदौलत हमारी अर्थव्यवस्थाएं प्रदूषण फैलाने वाले फॉसिल ईंधनों से छुटकारा पा सकती हैं. लेकिन तथ्य क्या कहते हैं? क्या एटमी ऊर्जा वाकई जलवायु को बचाने में मदद कर सकती है?
डॉयचे वैले पर योशा वेबर की रिपोर्ट-
कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के ताजा वैश्विक आंकड़े जलवायु संकट के खिलाफ विश्व की कोशिशों पर सवाल उठाते हैं. उत्सर्जनों पर नजर रखने वाले वैज्ञानिकों के एक समूह, ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट (जीसीपी) के, पिछले दिनों प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक पिछले साल के मुकाबले 2021 में सीओटू उत्सर्जन में 4.9 प्रतिशत का उछाल आया है.
2020 में कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के चलते उत्सर्जनों में 5.4 प्रतिशत की गिरावट आ गई थी. बहुत से पर्यवेक्षक इस साल इसके फिर से बढ़ने की आशंका जता रहे थे लेकिन इतना उछाल आ जाने का उन्हें भी अंदाजा नहीं था. ऊर्जा सेक्टर ही ग्रीन हाउस गैसों का सबसे बड़ा उत्सर्जन करने वाला सेक्टर बना हुआ है. 40 प्रतिशत उत्सर्जन इसी सेक्टर से होता है और ये दर बढ़ती जा रही है.
लेकिन एटमी ऊर्जा की क्या स्थिति है? इस विवादास्पद ऊर्जा स्रोत के समर्थक कहते हैं कि बिजली उत्पादन का ये क्लाइमेट-फ्रेंडली यानी जलवायु-अनुकूल तरीका है. जब तक हम व्यापक विकल्प तैयार नहीं कर पाते तब तक के लिए एटमी ऊर्जा ही वो चीज है जिसका इस्तेमाल करते रहा जा सकता है. हाल के सप्ताहों में, खासकर कॉप26 जलवायु बैठकों में, एटमी ऊर्जा की वकालत करन वाले लोग ऐसे बयान दे रहे हैं जिन पर ऑनलाइन हंगामा मचा हुआ है- जैसे कि "अगर आप एटमी ऊर्जा के खिलाफ हैं तो इसका मतलब आप जलवायु बचाने के खिलाफ हैं" और "एटमी ऊर्जा वापसी करके रहेगी." लेकिन क्या वाकई इसमें कुछ दम भी है?
क्या एटमी ऊर्जा शून्य उत्सर्जन वाला स्रोत है?
नहीं. एटमी ऊर्जा भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है. वास्तव में कोई भी ऊर्जा स्रोत पूरी तरह से उत्सर्जन-मुक्त नहीं हैं. एटमी ऊर्जा की बात आती है तो इसमें यूरेनियम निकालने, उसको लाने ले जाने और प्रोसेसिंग के दौरान उत्सर्जन होता है. एटमी ऊर्जा संयंत्रों की लंबी और पेचीदा निर्माण प्रक्रिया से भी सीओटू निकलती है. जिन ठिकानों की मियाद पूरी हो जाती है उनको ढहाने में भी गैस उत्सर्जित होती है. और आखिरी पर जरूरी बात ये है कि एटमी कचरे को सख्त स्थितियों में यहां से वहां ले जाना और स्टोर करना पड़ता है- इस दौरान भी उत्सर्जन होता है.
फिर भी इसकी वकालत करने वालों का दावा है कि एटमी ऊर्जा उत्सर्जन-मुक्त है. इनमें ऑस्ट्रिया की एक परामर्शदाता कंपनी एन्को भी है. उसने नीदरलैंड्स सरकार के आर्थिक मामलों और जलवायु नीति मंत्रालय के लिए तैयार किए गए अध्ययन को, 2020 के आखिरी दिनों में जारी किया था. नीदरलैंड्स में एटमी ऊर्जा के भविष्य की संभावित भूमिका को लेकर किए गए इस अध्ययन में एटमी ऊर्जा के पक्ष में दलीलें दी गई थीं. इसके मुताबिक "एटमी ऊर्जा के चयन के पीछे मुख्य कारक हैं, बिना सीओटू उत्सर्जन वाली आपूर्ति की विश्वसनीयता और सुरक्षा." एन्को की स्थापना अंतरराष्ट्रीय एटमी ऊर्जा एजेंसी के जानकारों ने की थी और ये आण्विक क्षेत्र के उद्यमियों के साथ नियमित रूप से काम करती है, इसलिए निहित स्वार्थो से पूरी तरह बरी नहीं है.
पर्यावरणीय मुहिम चलानेवाले समूह, साइंटिस्ट्स फॉर फ्यूचर (एस4एफ) ने कॉप26 में एटमी ऊर्जा और जलवायु पर एक केंद्रित एक शोधपत्र प्रस्तुत किया था. समूह बिल्कुल अलग ही नतीजे पर पहुंचा था. उसके मुताबिक, "मौजूदा समस्त ऊर्जा प्रणाली को मद्देनजर रखते हुए कहा जा सकता है कि एटमी ऊर्जा किसी भी तरह सीओटू निरपेक्ष नहीं है." इस रिपोर्ट के एक लेखक और बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी से जुड़े बेन वीलर ने डीडबल्यू को बताया कि "एटमी ऊर्जा के प्रस्तावक बहुत सारे कारकों पर गौर करने में चूक जाते हैं." इसमें वे उत्सर्जन स्रोत भी हैं जिनका जिक्र ऊपर किया गया है. डीडब्ल्यू ने भी जिन तमाम अध्ययनों की समीक्षा की उनमें एक ही चीज पाई, एटमी ऊर्जा उत्सर्जन-मुक्त नहीं है.
एटमी ऊर्जा में कितनी सी ओटू पैदा होती है?
नतीजे महत्त्वपूर्ण रूप से अलग अलग हैं. वे इस बात पर निर्भर करते हैं कि क्या हम सिर्फ बिजली उत्पादन की प्रक्रिया को ही देख रहे हैं या फिर एक एटमी ऊर्जा संयंत्र के समूचे जीवनचक्र को मद्देनजर रख रहे हैं. मिसाल के लिए, संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन कमेटी (आईपीसीसी) की 2014 में जारी एक रिपोर्ट में- प्रति किलोवॉट-घंटा 3.7 से 110 ग्राम सीओटू उत्सर्जन का अनुमान लगाया गया था.
लंबे समय से माना जाता रहा है कि एटमी संयंत्रों से प्रति किलोवॉट घंटा औसतन 66 ग्राम सीओटू पैदा होती है. हालांकि वीलर मानते हैं कि वास्तविक आंकड़े और अधिक होंगे. जैसे ज्यादा कड़े सुरक्षा निर्देशों के चलते, पिछले दशकों में बने संयंत्रों की तुलना में, नये ऊर्जा संयंत्र निर्माण के समय ज्यादा मात्रा में सीओटू पैदा करते हैं.
एटमी ऊर्जा संयंत्रों की समूची लाइफ-साइकिल पर- यानी यूरेनियम निकालने से लेकर एटमी कचरे के भंडारण तक - केंद्रित अध्ययन दुर्लभ हैं. कुछ शोधकर्ताओं ने इस ओर इशारा किया है कि इस बारे में डाटा अभी भी नहीं है. नीदरलैंड्स स्थित संस्था वर्ल्ड इन्फॉर्मेशन सर्विस ऑन एनर्जी (डब्लूआईएसई- वाइज) ने अपनी एक लाइफ-साइकिल स्टडी के तहत हासिल हुई गणना में पाया कि एटमी संयंत्र, प्रति किलोवॉट घंटा 117 ग्राम सीओटू उत्सर्जित करते हैं. यह गौरतलब है कि वाइज एटमी ऊर्जा विरोधी समूह है. इसलिए ये अध्ययन भी पूरी तरह निष्पक्ष नहीं है.
समूचे जीवन चक्र पर केंद्रित ऐसे दूसरे अध्ययन भी सामने आए हैं जिनके नतीजे समान हैं. कैलिफॉर्निया की स्टैन्फर्ड यूनिवर्सिटी में वायुमंडल ऊर्जा कार्यक्रम के निदेशक मार्क जेड जेकबसन ने प्रति किलोवॉट घंटा 68 से 180 ग्राम सीओटू की जलवायु कीमत निकाली है.
दूसरे ऊर्जा स्रोतों के मुकाबले कितनी जलवायु-अनुकूल है एटमी ऊर्जा?
अगर गणना में एक एटमी संयंत्र के समूचे जीवन चक्र को शामिल करते हैं तो एटमी ऊर्जा निश्चित रूप से कोयला या प्राकृतिक गैस जैसे फॉसिल ईंधनों से अव्वल ही आएगी. लेकिन अगर नवीनीकृत ऊर्जा से तुलना करें तो तस्वीर पूरी तरह से अलग हो जाती है.
जर्मन सरकार की पर्यावरण एजेंसी (यूबीए) के एक नये लेकिन अभी तक अप्रकाशित डाटा और वाइज के आंकड़ों के मुताबिक, सौर पैनलों के मुकाबले एटमी ऊर्जा से प्रति किलोवॉट घंटा 3.5 गुना अधिक सीओटू निकलती है. तटों पर लगी पवनचक्कियों की ऊर्जा से तुलना करें तो यह आंकड़ा 13 गुना अधिक सीओटू का हो जाता है. पनबिजली परियोजनाओं से मिलने वाली बिजली की तुलना में एटमी ऊर्जा 29 गुना कार्बन पैदा करती है.
ग्लोबल वॉर्मिंग पर काबू पाने के लिए एटमी ऊर्जा का सहारा?
दुनियाभर में एटमी ऊर्जा के प्रतिनिधि और कुछ राजनीतिज्ञ भी एटमी शक्ति के विस्तार की बात कहते रहे हैं. जैसे जर्मनी में दक्षिणपंथी एएफडी पार्टी ने एटमी ऊर्जा संयंत्रों का समर्थन किया है और उन्हें 'आधुनिक और साफ' करार दिया है. इस पार्टी ने उसी ऊर्जा स्रोत की ओर लौटने का आह्वान किया है जिसे जर्मनी ने 2022 के आखिर तक पूरी तरह से हटा देने का प्रण किया है. और देशों ने भी नये एटमी प्लांट बनाने की योजनाओं का समर्थन किया है. उनकी दलील है कि उसके बिना ऊर्जा सेक्टर जलवायु के लिए और नुकसानदेह होगा. लेकिन बर्लिन की टेक्निकल यूनिवर्सिटी के वीलर समेत दूसरे कई ऊर्जा विशेषज्ञों का नजरिया अलग है.
वीलर कहते हैं, "एटमी ऊर्जा का योगदान कुछ ज्यादा ही आशावादी ढंग से देखा जाता है जबकि वास्तव में एटमी संयंत्र के निर्माण में इतना समय खर्च होता है, और इतनी लागत आ जाती है कि जलवायु परिवर्तन पर उसका असर दिखने लग जाता है. बिजली तो बहुत देर बाद मिल पाती है." वर्ल्ड न्यूक्लियर इंडस्ट्री स्टेटस रिपोर्ट के लेखक माइकल श्नाइडर उनकी बात से सहमत हैं. वह कहते हैं, "एटमी ऊर्जा संयंत्र, पवन या सौर के मुकाबले करीब चार गुना महंगे पड़ते हैं और उन्हें बनाने में पांच गुना ज्यादा समय लग जाता है. जब आप इन तमाम चीजों को मद्देनजर रखते हैं, तो आप पाते हैं कि एक नये एटमी संयंत्र को पूरी तरह तैयार होने में 15 से 20 साल खप जाते हैं."
वह इस ओर ध्यान दिलाते हैं कि एक दशक के भीतर दुनिया को ग्रीनहाउस गैसों पर काबू भी पाना है. श्नाइडर कहते हैं, "अगले 10 साल में एटमी ऊर्जा इस मामले में कोई उल्लेखनीय योगदान देने की स्थिति में नहीं है." लंदन स्थित अंतरराष्ट्रीय मामलों के थिंक टैंक चैडहैम हाउस में पर्यावरण और समाज कार्यक्रम के उपनिदेशक एंटनी फ्रोगाट कहते हैं, "मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन के प्रमुख वैश्विक समाधानों में एटमी ऊर्जा का उल्लेख नहीं आता है." वह कहते हैं कि एटमी ऊर्जा की बेशुमार लागत, उसके पर्यावरणीय नतीजे और उसे लेकर जनसमर्थन की कमी- जैसी तमाम दलीलें उसके खिलाफ एक साथ खड़ी हैं.
एटमी फंडिंग का रुख अक्षय ऊर्जा की ओर
एटमी ऊर्जा से जुड़ी ऊंची लागतों की वजह से वे महत्त्वपूर्ण वित्तीय संसाधन भी अवरुद्ध हो जाते हैं जिनका इस्तेमाल यूं अक्षय यानी नवीकरणीय ऊर्जा को विकसित करने में किया जा सकता है. एटमी ऊर्जा विशेषज्ञ और नीदरलैंड्स में ग्रीनपीस से जुड़े एक्टिविस्ट यान हावरकाम्प्फ यह भी कहते हैं कि अक्षय ऊर्जा स्रोतों से ज्यादा बिजली मिल सकती हैं जो ज्यादा तेज और सस्ती पड़ती है. उनके मुताबिक "एटमी ऊर्जा में निवेश किया हुआ प्रत्येक डॉलर इस लिहाज से सच्ची और आपात जलवायु कार्रवाई से विमुख हुआ डॉलर है. और इसीलिए एटमी ऊर्जा जलवायु-मित्र नही है."
इसके अलावा एटमी ऊर्जा खुद जलवायु परिवर्तन से प्रभावित रही है. दुनियाभर में गर्मियों के दौरान बढ़ती तपिश में कई एटमी ऊर्जा संयंत्रों को अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा है या पूरी तरह रोक देना पड़ा है. अपने रिएक्टरों को ठंडक पहुंचाने के लिए संयंत्रों को आसपास के जलस्रोतों पर निर्भर रहना पड़ता है, कई नदियां सूख चुकी हैं या सूख रही हैं, तो पानी का मिलना भी दूभर होता जा रहा है.
माइकल श्नाइडर ने डीडबल्यू से कहा, "एटमी ऊर्जा के ‘नवजागरण' की शेखी बघारना एक बात है लेकिन उससे जुड़े तमाम हालात कुछ और ही कहते हैं." उनके मुताबिक "एटमी उद्योग सालों से सिकुड़ता आ रहा है." वह कहते हैं, "पिछले 20 साल में 95 एटमी प्लांट ऑनलाइन हो चुके हैं और 98 बंद किए जा चुके हैं. अगर आप इस समीकरण से चीन को बाहर रखें तो एटमी ऊर्जा संयंत्रों की संख्या पिछले दो दशकों में 50 तक गिर चुकी है. एटमी उद्योग फल-फूल नहीं रहा है." (dw.com)
यूपी में साल 2015 में यूएपीए के तहत सिर्फ छह केस दर्ज किए गए थे जिनमें 23 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. 2017 में योगी आदित्यनाथ की बीजेपी सरकार बनने के बाद यूएपीए के तहत 313 केस दर्ज हुए हैं और 1397 लोगों की गिरफ्तारी हुई.
डॉयचे वैले पर समीरात्मज मिश्र की रिपोर्ट-
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए के तहत सबसे ज्यादा गिरफ्तारियां उत्तर प्रदेश में हुई हैं. जम्मू कश्मीर इस मामले में दूसरे स्थान पर है जबकि तीसरे स्थान पर उत्तर पूर्वी राज्य मणिपुर है.
बुधवार को राज्यसभा में दिए गए एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने बताया कि साल 2020 में यूएपीए के तहत यूपी में 361 गिरफ्तारियां हुई हैं जबकि जम्मू कश्मीर में 346 और मणिपुर में 225 लोग इस कानून के तहत गिरफ्तार हुए हैं.
अब तक सिर्फ 3% ही दोषी पाए गए
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों का हवाला देते हुए केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने बताया कि साल 2019 की तुलना में साल 2020 में इस अधिनियम के तहत हुई गिरफ्तारियों में कमी आई है. साल 2019 में यूएपीए के तहत जहां देश भर में 1948 गिरफ्तारियां हुई थीं वहीं साल 2020 में यह संख्या 1321 रही.
एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि साल 2016 से लेकर अब तक यूएपीए के तहत कुल 7243 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं जिनमें से 212 लोग ही दोषी ठहराए गए हैं. 286 लोगों को कोई आरोप न मिलने के कारण छोड़ दिया गया जबकि 42 मामलों में कोर्ट ने कोई आरोप न मिलने के कारण छोड़ दिया.
बरी होने वालों की संख्या 26% बढ़ी
आंकड़ों के मुताबिक, साल 2019 और 2020 के बीच यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए लोगों की संख्या में गिरावट आई है जबकि कानून के तहत बरी होने वालों की संख्या में 26 फीसद की बढ़ोत्तरी हुई है. साल 2019 में इस कानून के तहत गिरफ्तार होने के बाद 92 लोगों को बरी कर दिया गया था जबकि 2020 में बरी किए गए लोगों की संख्या 116 थी.
कानूनी जानकारों के मुताबिक, यूएपीए के तहत जमानत पाना बहुत ही मुश्किल होता है क्योंकि जांच एजेंसी के पास चार्जशीट दाखिल करने के लिए 180 दिन का समय होता है और जेल में बंद व्यक्ति के मामले की सुनवाई मुश्किल हो जाती है. यूएपीए की धारा 43-डी (5) में कहा गया है कि यदि न्यायालय को किसी अभियुक्त के खिलाफ लगे आरोप प्रथमद्रष्ट्या सही लगते हैं तो अभियुक्त को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा.
खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी पर सवाल
इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना होता है और इसके तहत पुलिस ऐसे अपराधियों या अन्य लोगों को चिह्नित करती है जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं या फिर ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देते हैं. इस मामले में एनआईए यानी राष्ट्रीय जांच एजेंसी को काफी शक्तियां होती है.
यूएपीए कानून साल 1967 में लाया गया था. अगस्त 2019 में इसमें संशोधन करके इसे और भी ज्यादा कठोर कर दिया गया. संशोधन के बाद इस कानून को इतनी ताकत मिल गई कि किसी भी व्यक्ति को जांच के आधार पर आतंकवादी घोषित किया जा सकता है.
इस कानून के तहत हुई कई गिरफ्तारियों पर सवाल भी उठे हैं और पिछले दिनों जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार कार्यकर्ता खुर्रम परवेज की गिरफ्तारी पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी सवाल उठाए हैं. हालांकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त के प्रवक्ता का बयान आधारहीन है.
पिछले चार सालों में यूपी में 1397 लोग गिरफ्तार
यूएपीए के तहत दर्ज मामलों की जांच, राज्य पुलिस और राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए द्वारा की जाती है. उत्तर प्रदेश इस कानून के तहत गिरफ्तारियों के मामले में इस वक्त भले ही अव्वल हो लेकिन साल 2015 में इसके तहत यहां सिर्फ छह केस दर्ज किए गए थे जिनमें 23 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी. इससे अगले साल यानी साल 2016 में 10 केस दर्ज हुए और 15 लोग गिरफ्तार किए गए लेकिन अगले ही साल इसके तहत दर्ज मामलों और गिरफ्तारियों की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी होती गई. साल 2017 में 109 केस दर्ज हुए और 382 लोगों को पकड़ कर जेल में डाल दिया गया. साल 2017 में ही यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनी थी. यूपी में इन चार वर्षों के दौरान यूएपीए के तहत 313 केस दर्ज हुए हैं और 1397 लोगों को गिरफ्तार किया गया है.
उत्तर प्रदेश समेत देश भर में कई मशहूर सामाजिक कार्यकर्ताओं को भी इस कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है जिनमें कई लोग अभी भी जेल की सलाखों के भीतर हैं. पिछले साल हाथरस मामले की रिपोर्टिंग के लिए जा रहे केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को भी इसी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था जिन्हें अब तक जमानत नहीं मिल सकी है. उत्तर प्रदेश के डीजीपी रह चुके रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी विक्रम सिंह कहते हैं कि यह बेहद संवेदनशील कानून है और इसका इस्तेमाल सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए. वो कहते हैं, "इस कानून का किसी भी तरह का दुरुपयोग बेहद गंभीर परिणाम दे सकता है. इसके तहत किसी को भी गिरफ्तार करने के लिए एक अनिवार्य कारण होना चाहिए और इसका इस्तेमाल बहुत ही जरूरी परिस्थिति में ही किया जाना चाहिए.”
गिरफ्तारियों से पुलिस अधिकारी भी चिंतित
यूपी में इस कानून के तहत दर्ज मुकदमों और गिरफ्तारियों पर कई अन्य पुलिस अधिकारी भी चिंता जता चुके हैं. विपक्षी दल और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों का आरोप है कि सरकार असहमति के स्वरों को दबाने के लिए इस कानून का बेजा इस्तेमाल कर रही है.
यूपी में एक और रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी वीएन राय कहते हैं कि ऐसे कड़े कानूनों का नियमित आधार पर इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. उनके मुताबिक, "जिन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए ये कानून बनाए गए हैं, वैसे ही मामलों में इनका प्रयोग भी होना चाहिए. हर अपराध देशद्रोह और आतंकवाद से नहीं जुड़ा रहता. इससे जांच एजेंसियों पर भी अनावश्यक बोझ आता है और अदालतों पर भी. दूसरी बात, इससे कानून के दुरुपयोग की भी आशंका बनी रहती है. जहां तक यूपी का सवाल है तो यूएपीए के तहत पिछले साढ़े चार साल में इतने मामले दर्ज हुए लेकिन कानून व्यवस्था में तो कोई खास सुधार हुआ नहीं. (dw.com)
नई दिल्ली, 4 दिसम्बर | राज्य सभा में लगातार जारी हंगामे और सदन का कामकाज सुचारू ढंग से नहीं चल पाने से दुखी उपराष्ट्रपति एवं राज्य सभा के सभापति वेंकैया नायडू ने कहा है कि संसद की कार्यवाही वर्ष में कम से कम 100 दिन चलनी ही चाहिए और सभी को यह सुनिश्चित करना चाहिए। भारत की लोक लेखा समिति के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में संसद भवन में आयोजित दो दिवसीय समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम में बोलते हुए वेंकैया नायडू ने कहा कि सदन प्रभावी और अर्थपूर्ण तरीके से चले यह सभी को सुनिश्चित करना चाहिए। उन्होंने कहा कि राजनीतिक दल जब विपक्ष में रहते हैं तो वर्ष भर में 100 दिन सदन चलाने की वकालत करते हैं लेकिन सरकार में आने के बाद इस मांग की चिंता नहीं करते हैं।
राज्य सभा सभापति ने संसद के वर्ष में कम से कम 100 दिन चलने की वकालत करने के साथ-साथ राज्यों के विधानसभाओं को भी साल भर में कम से कम 90 दिन चलाने की वकालत की।
लोक लेखा समिति को संसद की सभी समितियों की मां की संज्ञा देते हुए वेंकैया नायडू ने इस बात पर भी चिंता जताई कि सांसद समितियों की बैठक को गंभीरता से नहीं लेते और अनुपस्थित रहते हैं। उन्होंने सभी को आत्मावलोकन करने की भी सलाह दी।
सरकार की जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने में लोक लेखा समिति की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने एक समय कहा था कि 1 रुपये में से सिर्फ 16 पैसा जरूरतमंद लोगों तक पहुंच पाता है , यह किसी पर आरोप से ज्यादा व्यवस्था पर उठाया गया सवाल था, लेकिन आज वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में जरूरतमंद लोगों को सीधे उनके खाते में पैसा भेजा जा रहा है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 4 दिसम्बर | प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) करोड़पति ठग सुकेश चंद्रशेखर के खिलाफ बी-टाउन अभिनेत्री जैकलीन फर्नाडीज और नोरा फतेही से जुड़े 200 करोड़ रुपये के मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गवाह के रूप में अपनी पहली अभियोजन शिकायत दर्ज करने के लिए पूरी तरह तैयार है। शनिवार को चार्जशीट दाखिल होने की संभावना है। ईडी ने इसे लेकर वरिष्ठ काउंसल से कानूनी राय ली है।
अभियोजन की शिकायत जो मूल रूप से एक चार्जशीट है, इसे पटियाला हाउस कोर्ट में दाखिल किया जाएगा। ईडी फिलहाल चार्जशीट की फिर से जांच कर रहा है और अपने वरिष्ठ अधिकारियों से कानूनी राय ले रही है। वे इस मामले में कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते हैं।
ईडी का मामला दिल्ली पुलिस के केस पर आधारित है। दिल्ली पुलिस ने सुकेश पर एक उद्योगपति की पत्नी से कथित तौर पर करीब 200 करोड़ रुपये रंगदारी वसूलने का आरोप लगाया था। बाद में हवाला के जरिए पैसे में हेर फेर किया गया और क्रिप्टो करेंसी खरीदने में इस्तेमाल किया गया।
उच्च पदस्थ सूत्रों ने कहा कि मामले में 100 से अधिक गवाह हो सकते हैं और सुकेश और उनकी पत्नी लीना मारिया पॉल के अलावा, ईडी लगभग 14 लोगों को आरोपी के रूप में नामित करेगी।
चार्जशीट में जिन लोगों को आरोपी बनाया जाएगा उनमें प्रदीप रामदानी, बी मोहन राज, दीपक रामनानी, अरुण मुथु, कमलेश कोठारी, अवतार सिंह कोचर, सुकेश चंद्रशेखर और उनकी पत्नी लीना मारिया पॉल शामिल हैं। चार्जशीट में और भी लोग होंगे जिनका नाम आरोपी के तौर पर होगा।
अगर ईडी शनिवार को इसे दाखिल करने में विफल रहती है, तो आरोपी को डिफॉल्ट रूप से जमानत मिल जाएगी। इस मामले पर टिप्पणी करने के लिए ईडी का कोई अधिकारी उपलब्ध नहीं था।
सुकेश की ओर से पेश वकील अनंत मलिक ने कहा कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद ही वह टिप्पणी करेंगे। (आईएएनएस)
चित्रदुर्ग (कर्नाटक), 4 दिसम्बर | कर्नाटक के चित्रदुर्ग जिले में शनिवार प्रात: तेज रफ्तार गैस टैंकर की चपेट में आने से चार लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। मृतकों की पहचान रायचूर निवासी हुलुगप्पा, रोना निवासी शरणप्पा, विजयपुरा निवासी संजय और कुश्तगी निवासी मंजूनाथ के रूप में हुई है।
घटना चित्रदुर्ग जिले के डोड्डासिद्दववनहल्ली गांव के पास राष्ट्रीय राजमार्ग 40 पर हुई। मृतक प्याज की बोरियों से लदे ट्रक में गडग जिले के रोना कस्बे से बेंगलुरु की ओर जा रहे थे।
मामले की जांच कर रही चित्रदुर्ग ग्रामीण पुलिस के मुताबिक गैस टैंकर चालक ने सड़क किनारे खड़े ट्रक को पीछे से टक्कर मार दी थी। एक व्यक्ति गाड़ी का टायर बदल रहा था। जबकि दूसरा बारिश के समय छाता लिए हुए था। अन्य दो उसकी मदद कर रहे थे। गैस टैंकर की चपेट में आने से सभी की मौके पर ही मौत हो गई।
पुलिस को अंदेशा है कि धुंध और बारिश के कारण गैस टैंकर का चालक बाइपास रोड के पास सड़क किनारे खड़े ट्रक को देख नहीं पाया। गनीमत रही कि घटना में गैस टैंकर में आग नहीं लगी जिससे बड़ा हादसा हो सकता था। पुलिस आगे की जांच कर रही है। (आईएएनएस)
लंदन, 3 दिसम्बर | ब्रिटिश दवा निर्माता ग्लैक्सो स्मिथक्लाइन ने दावा किया है कि प्रारंभिक प्रयोगशाला परीक्षणों से पता चला है कि कोविड-19 के खिलाफ इसकी एंटीबॉडी दवा नए सुपर म्यूटेंट ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ प्रभावी है। ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके) ने सोट्रोविमैब को यूएस पार्टनर वीर (वीआईआर) बायोटेक्नोलॉजी के साथ विकसित किया, जो मानव द्वारा पहले से बनाए गए प्राकृतिक एंटीबॉडी पर आधारित एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी है। नैदानिक परीक्षणों में, सोट्रोविमैब को 24 घंटों में हल्के से मध्यम कोविड-19 के साथ उच्च जोखिम वाले वयस्क रोगियों में अस्पताल में भर्ती होने या मृत्यु के जोखिम को 79 प्रतिशत तक कम करने का दावा किया गया है।
कंपनी ने एक बयान में कहा, "ओमिक्रॉन वैरिएंट के अनुक्रम (सीक्वेंस) के आधार पर, हमारा मानना है कि सोट्रोविमैब की ओर से इस वैरिएंट के खिलाफ सक्रियता और प्रभावशाली बनाए रखने की संभावना है।"
यह अध्ययन प्रीप्रिंट सर्वर बायोरेक्सिव पर पोस्ट किया गया है। हालांकि अध्ययन में प्रारंभिक प्रयोगशाला परीक्षणों के आधार पर डेटा साझा किया गया है और अभी तक इसकी पूर्ण समीक्षा नहीं की गई है। कंपनी के अनुसार, अध्ययन ने प्रदर्शित किया कि सोट्रोविमैब नए ओमिक्रॉन सार्स-सीओवी-2 वैरिएंट (बी.1.1.529) के प्रमुख म्यूटेंट के खिलाफ सक्रियता या गतिविधि को बरकरार रखता है।
कंपनियां अब 2021 के अंत तक एक अपडेट प्रदान करने के इरादे से सभी ओमिक्रॉन म्यूटेशन के संयोजन के खिलाफ सोट्रोविमैब की निष्क्रिय गतिविधि की पुष्टि करने के लिए इन व्रिटो स्यूडो-वायरस टेस्टिंग पूरा कर रही हैं।
वीर बायोटेक्नोलॉजी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी, पीएचडी, जॉर्ज स्कैनगोस ने एक बयान में कहा, "सोट्रोविमैब को जानबूझकर एक म्यूटेटिंग वायरस को ध्यान में रखकर बनाया गया है। स्पाइक प्रोटीन के अत्यधिक संरक्षित क्षेत्र को लक्षित करके, जिसके म्यूटेट होने की संभावना कम है, हमने वर्तमान सार्स-सीओवी-2 वायरस और भविष्य के वैरिएंट दोनों से निपटने की उम्मीद की है, जिसकी हमें उम्मीद थी कि यह अपरिहार्य होगा।"
उन्होंने कहा, "हमें पूरी उम्मीद है कि यह सकारात्मक प्रवृत्ति जारी रहेगी और ओमिक्रॉन के पूर्ण संयोजन अनुक्रम (फुल कोम्बिनेशन सीक्वेंस) के खिलाफ अपनी सक्रियता की पुष्टि करने के लिए तेजी से काम कर रहे हैं।"
बता दें कि जीएसके और वीर बायोटेक्नोलॉजी द्वारा विकसित सोट्रोविमैब एक खुराक वाली एंटीबॉडी है और यह दवा कोरोना वायरस के बाहरी आवरण पर स्पाइक प्रोटीन से जुड़कर काम करती है। इससे यह वायरस को मानव कोशिका में प्रवेश करने से रोक देती है।
जेवुडी के रूप में मार्केटिंग की जाने वाली दवा को कोविद-19 के लक्षणों की शुरुआत के पांच दिनों के भीतर दिए जाने की सिफारिश की गई है। इसने दिखाया है कि यह उन लोगों के लिए प्रभावी है, जिन्हें ऑक्सीजन सप्लीमेंट की आवश्यकता नहीं है और जिन्हें गंभीर कोविड संक्रमण के बढ़ने का खतरा है।
सोट्रोविमैब को यूके मेडिसिन्स एंड हेल्थकेयर प्रोडक्ट्स रेगुलेटरी एजेंसी (एमएचआरए) द्वारा रोगसूचक वयस्कों और किशोरों (12 वर्ष और अधिक आयु) के तीव्र कोविड-19 संक्रमण के उपचार के लिए एक सशर्त मार्केटिंग प्राधिकरण भी दिया गया है। सशर्त मार्केटिंग प्राधिकरण में इंग्लैंड, स्कॉटलैंड और वेल्स शामिल हैं। (आईएएनएस)
चेन्नई, 3 दिसम्बर | भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) के पूर्व अध्यक्ष ए वी वेंकटचलम ने आत्महत्या कर ली है। पुलिस ने शुक्रवार को यह जानकारी दी है। पुलिस ने कहा कि उन्होंने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा है। उसका शव वेलाचेरी के न्यू सचिवालय कॉलोनी गली में अपने आवास पर अपने बेडरूम में पाया गया है। सबसे पहले उनकी पत्नी ने उनके शव को बेडरूम में देखा था।
पूर्व आईएफएस अधिकारी टीएनपीसीबी के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे थे, और सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशालय (डीवीएसी) ने 24 सितंबर को उनके घर पर औचक छापे मारे थे।
डीवीएसी के अधिकारियों को छापेमारी के दौरान उनके आवास से 13.5 लाख रूपये (बेहिसाब), 2.5 करोड़ रुपये मूल्य का 8 किलो सोना और संपत्ति के लेन-देन से जुड़े कुछ दस्तावेज मिले थे। छापेमारी के दौरान आवास से दस किलो चंदन की लकड़ी भी मिली थी।
वेंकटचलम 2018 में आईएफएस से सेवानिवृत्त हुए और 2019 में तत्कालीन एआईएडीएमके सरकार द्वारा उन्हें टीएनपीसीबी के अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।
डीवीएसी ने उनके खिलाफ 14 अक्टूबर, 2013 से 29 जुलाई, 2014 के कार्यकाल के दौरान तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव के रूप में कार्य करते हुए मामले दर्ज किए थे।
वेलाचेरी पुलिस ने सीआरपीसी की धारा 174 के तहत अप्राकृतिक मौत का केस दर्ज किया है। सरकारी रोयापेट्टाह अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद शुक्रवार को उसका शव परिजनों को सौंप दिया गया। (आईएएनएस)
गुरुग्राम, 3 दिसम्बर | गुरुवार और शुक्रवार की दरमियानी रात यहां गढ़ी गांव के पास सधराना रोड पर एक कार सड़क किनारे दीवार से टकराकर पलट गई, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई।
पुलिस के मुताबिक मृतकों की पहचान सागर, जिबेक, नियाज खान, प्रिंस और जगबीर के रूप में हुई है।
घटना में हार्दिक तिवारी नाम का एक व्यक्ति घायल हो गया।
पीड़ित एक शादी में शामिल होने के बाद गांव सधरना से गुरुग्राम शहर लौट रहे थे।
गुरुग्राम पुलिस प्रवक्ता सुभाष बोकन ने कहा, "वे सभी सधरना गांव में एक शादी समारोह से आ रहे थे। यह दुर्घटना तेज गति और क्षतिग्रस्त सड़क का परिणाम थी। सभी पीड़ित शहर के एक निजी अस्पताल में काम करते थे। पुलिस आवश्यक कार्रवाई कर रही है।"
उन्होंने कहा, "घायल व्यक्ति को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। शवों को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। आगे की जांच जारी है।" (आईएएनएस)