राष्ट्रीय
अमरावती, 18 जून | आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने गुरुवार को आश्वासन दिया कि नई शिक्षा नीति (एनईपी) को लागू करने की प्रक्रिया में राज्य के स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों से एक भी कर्मचारी को नहीं हटाया जाएगा। उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि कोई भी आंगनवाड़ी केंद्र बंद नहीं किया जाएगा और स्पष्ट किया कि शिक्षा प्रणाली में बदलाव इन दो कारकों को ध्यान में रखकर लागू किया जा रहा है।
रेड्डी ने अधिकारियों को निर्देश दिए कि दो तरह के स्कूल स्थापित किए जाएं। प्रारंभिक कक्षा 1 और 2 वाली पहली कक्षा छात्रों से एक किलोमीटर की दूरी के भीतर होनी चाहिए। कक्षा 3 से कक्षा 10 तक के अन्य विद्यालय छात्रों से 3 किमी की दूरी के भीतर स्थित होने चाहिए।
मुख्यमंत्री के मुताबिक फाउंडेशन कोर्स में शिक्षक-छात्र अनुपात संतुलित रखना जरूरी है, क्योंकि आठ साल से कम उम्र के बच्चों का मानसिक विकास जरूरी है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार का लक्ष्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है, और राज्य की शिक्षा नीति को एनईपी के साथ तालमेल बिठाने का आह्वान किया।(आईएएनएस)
उज्जैन, 18 जून| देश की प्रमुख ज्योर्तिलिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर के श्रद्धालुओं केा बार फिर दर्शन हो सकेंगे। कोरोना महामारी के कारण दर्शनार्थियों के प्रवेश पर रोक थी, 28 जून से श्रृद्धालुओं केा मंदिर में प्रवेश कर महाकाल के दर्शन का मौका मिल सकेगा।
महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की बैठक में 28 जून से दर्शन के लिए पट खोलने का फैसला लिया गया। ऑनलाइन बुकिंग करवाने पर स्लॉट अनुसार दर्शन की अनुमति दी जायेगी। वेक्सीनेशन सर्टिफिकेट (एक डोज लगवाने पर भी) या 24 से 48 घंटे पूर्व की कोविड रिपोर्ट दिखाने पर ही मन्दिर परिसर में प्रवेश दिया जायेगा।
बैठक में तय किया गया है कि महाकालेश्वर मन्दिर परिसर में सभी देवस्थान दर्शन हेतु खुले रहेंगे। शीघ्र दर्शन के काउंटर खोले जाएंगे, किन्तु शीघ्र दर्शन करने वाले दर्शनार्थियों को भी वेक्सीनेशन सर्टिफिकेट अथवा कोविड जांच रिपोर्ट दिखाना होगी। श्रद्धालुओं को 28 जून से प्रात छह बजे से रात्रि आठ बजे तक सात स्लॉट में ऑनलाइन बुकिंग के बाद दर्शन की अनुमति दी जायेगी। मन्दिर में सेल्फी लेने पर प्रतिबंध रहेगा। गर्भगृह एवं नन्दी हाल में श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा।
इसके साथ ही कोरेाना संक्रमण को ध्यान में रखकर तय किया गया है कि भस्म आरती एवं शयन आरती में सामान्य श्रद्धालुओं का प्रवेश प्रतिबंधित रहेगा। निशुल्क अन्नक्षेत्र को आधी क्षमता के साथ प्रारम्भ करने की अनुमति दी गई है।
मन्दिर के समीप स्थित भूमि पर अतिक्रमित 147 मकानों में निवासरत 250 परिवारों को हटाकर प्रति परिवार तीन लाख रुपये के मान से राशि दी जाएगी, यह अतिक्रमण हटने से लगभग डेढ हेक्टेयर से ज्यादा भूमि मन्दिर परिक्षेत्र के विस्तार के लिये उपलब्ध होगी। इस बार श्रावण महोत्सव स्थगित रहेगा। (आईएएनएस)
भोपाल, 17 जून | मध्य प्रदेश से अगवा की गईं लड़कियों में से 5205 को पुलिस बीते छह माह में बरामद करने में कामयाब रही। अपहृत बालिकाओं में से बरामद होने वालों की तादाद 61 प्रतिशत है। राज्य में महिला एवं बच्चों के विरुद्ध अपराध व घरेलू हिंसा के मामलों में की गई कार्रवाई की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि प्रदेश में महिलाओं एवं बच्चों के विरुद्ध अपराध करने वालों को कड़ी सजा मिले, इसके लिए ऐसे प्रकरणों में न्यायालयों में शासन का पक्ष मजबूती से रखा जाए।
मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि प्रदेश में गत छह महीनों में अपहृत 5205 बालिकाओं को उनके घर वापस पहुंचाया गया है, जो कि कुल अपहृत 8566 बालिकाओं का 60.8 प्रतिशत है।
बताया गया कि प्रदेश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के 18 प्रकरणों में न्यायालय द्वारा दी गई मृत्युदंड की सजा को उच्च न्यायालय द्वारा यथावत रखा गया है। अब प्रकरण सर्वोच्च न्यायालय में हैं।
केंद्र सरकार द्वारा महिला पुलिस वॉलेंटियर योजना के संचालन के लिए प्रदेश के दो जिले मुरैना एवं विदिशा का चयन किया गया है। योजना के अंतर्गत प्रत्येक गांव, वार्ड में एक महिला पुलिस वॉलेंटियर बनाई जाएगी, जो महिलाओं के विरुद्ध अपराध के संबंध में कार्रवाई में सहायता करेगी। उन्हें एक हजार रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अपराधों का एक कारण बेरोजगारी भी है, इसलिए प्रदेश में प्रतिमाह हर जिले में रोजगार अभियान चलाया जाए, जिसके माध्यम से अधिक से अधिक युवाओं को रोजगार दिलवाया जाए।(आईएएनएस)
श्रीनगर, 18 जून| कश्मीर के दो युवा पर्वतारोहियों ने 1 जून को माउंट एवरेस्ट फतह किया और उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने गुरुवार को उन्हें उनकी असाधारण उपलब्धि के लिए बधाई दी। सिन्हा ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर कहा, मैं कुलगाम के श्री महफूज इलाही हाजम और कुपवाड़ा के श्री मोहम्मद इकबाल खान को माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ाई करने के लिए अपनी हार्दिक बधाई देता हूं। आशा है कि उनकी उपलब्धि जम्मू-कश्मीर और देश को रोमांच और अन्वेषण के क्षेत्र में गौरवान्वित करने के लिए और अधिक युवाओं को प्रेरित करेगी।
28 वर्षीय हाजम अरु, पहलगाम में जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड वाटर स्पोर्ट्स में प्रशिक्षक हैं।
उन्होंने एक ट्वीट में कहा, 1 जून को सुबह 6.30 बजे मैंने माउंट एवरेस्ट को फतह किया, मेरे गुरु कर्नल आईएस थापा की मदद से, जो दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को पहले दो बार फतह कर चुके हैं और इस समय जवाहर इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग एंड वाटर स्पोर्ट्स में प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत हैं।
खान भी इस अभियान का हिस्सा थे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 जून | सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को दिल्ली पुलिस की उस याचिका पर सुनवाई कर सकता है, जिसमें तीन छात्र एक्टिविस्ट नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत देने के दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी गई है। यह फरवरी 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली हिंसा से संबंधित कथित बड़ी साजिश से जुड़ा मामला है, जिसमें 53 लोगों की जान चली गई थी और सैकड़ों लोग घायल हो गए थे।
कंप्यूटर जनित सूची के अनुसार, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यम की पीठ दिल्ली पुलिस द्वारा दायर अपील पर विचार कर सकती है।
तीनों को मंगलवार को 50-50 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानत के साथ राहत दी गई गई। उनकी रिहाई के लिए अन्य शर्तों में उनके पासपोर्ट को जमा करने से लेकर ऐसी किसी भी गतिविधि में उन्हें शामिल नहीं होना है, जिससे केस पर कोई असर पड़ सकता है।
जमानत का रास्ता खुलने के बाद दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को तीनों छात्र एक्टिविस्ट को रिहा करने का आदेश दिया है।
हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए ²ष्टिकोण पर सवाल उठाते हुए, पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई अपनी अपील में कहा है कि तीन छात्र, तन्हा, कलिता और नरवाल को जमानत देने वाले तीन फैसले बिना किसी आधार के हैं और आरोप पत्र (चार्जशीट) में एकत्रित और विस्तृत सबूतों की तुलना में सोशल मीडिया नैरेटिव पर आधारित प्रतीत होते हैं।
पुलिस की दलील में कहा गया है, दुर्भाग्य से रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्य और विस्तृत मौखिक और लिखित प्रस्तुतीकरण के विपरीत, हाईकोर्ट ने पूर्व-कल्पित और पूरी तरह से गलत भ्रम पर मामले को हाथ में लिया है।
पुलिस ने आरोप लगाया कि हाईकोर्ट ने सबूतों और बयानों को पूरी तरह से खो दिया है और इसने उन सबूतों को भी खारिज कर दिया है, जिससे स्पष्ट रूप से तीन आरोपियों द्वारा अन्य सह-साजिशकतार्ओं के साथ बड़े पैमाने पर दंगों की एक भयावह साजिश रची गई थी।
दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत दिल्ली हिंसा मामले में नताशा नरवाल, देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दे दी थी।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जे. भंभानी की पीठ ने कहा कि प्रथम ²ष्टया, यूएपीए की धारा 15, 17 या 18 के तहत कोई भी अपराध तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड की गई सामग्री के आधार पर नहीं बनता है।
अदालत ने कई तथ्यों को ध्यान में रखते हुए जमानत मंजूर करते हुए कहा कि तीनों को जमानत 50,000 रुपये के निजी मुचलके और दो स्थानीय जमानतदारों के अधीन है। इसके अलावा जमानत के तौर पर शामिल शर्तों में तीनों को अपने पासपोर्ट जमा कराने होंगे और ऐसी किसी गतिविधियों में शामिल नहीं होना होगा, जिससे मामले में बाधा आ सकती है।
तन्हा जामिया मिल्लिया इस्लामिया से स्नातक की छात्रा है। उसे मई 2020 में यूएपीए के तहत दिल्ली हिंसा के मामले में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह लगातार हिरासत में है। नरवाल और कलिता जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर हैं, जो पिंजरा तोड़ आंदोलन से जुड़ीं हुईं हैं। वे मई 2020 से हिरासत में हैं।
यह मामला दिल्ली पुलिस की ओर से उस कथित साजिश की जांच से संबंधित है, जिसके कारण फरवरी 2020 में दिल्ली में भयानक हिंसा भड़क उठी थी। पुलिस के अनुसार, तीनों आरोपियों ने अभूतपूर्व पैमाने पर अन्य आरोपियों के साथ मिलकर ऐसा व्यवधान पैदा करने की साजिश रची, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगाड़ी जा सके।(आईएएनएस)
जयपुर, 17 जून | कोरोना महामारी के समय में आरएसएस के लोगों की काफी तारीफ हुई जब वो हजारों जरूरतमंदों को ऑक्सीजन सिलेंडर, कंसंट्रेटर , भोजन और दवाओं की आपूर्ति कर रहे थे। उनके साथ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महिला टीम की भी तारीफ हो रही है क्योंकि कोविड संकट के दौरान वो मजबूती से खड़ी रहीं। महिला टीम ने लोगों को अंतिम संस्कार कराने में मदद करने के अलावा टीकाकरण के बारे में जागरूकता को बढ़ावा दिया, योग शिविर आयोजित किया और जरूरतमंदों को दवाएं बांटीं। अँतिम संस्कार करने पंडित जब श्मशान तक नहीं पहुंचे तो आरएसएस की इन महिला सदस्यों ने सभी रस्में अदा करके शवों का अंतिम संस्कार किया।
अजमेर में महिलाओं ने बड़ी संख्या में टीकाकरण करवाने में मदद की। उन्होंने अस्पतालों से टीकाकरण केंद्रों की सूची जमा की और अपना पता व्हाट्सएप ग्रुप पर प्रसारित किया और इससे लगभग 600 लोगों को टीकाकरण कराने में मदद मिली।
जयपुर प्रांत प्रचार प्रमुख गुलशन शेखावत ने कहा कि जयपुर और उदयपुर के सदस्यों द्वारा एक महीने से अधिक समय तक योग शिविर का आयोजन किया गया। लाभान्वित होने वालों में कोविड पॉजिटिव लोग, कोविड के बाद की जटिलताओं वाले व्यक्ति के साथ-साथ वे लोग भी शामिल थे जो स्वस्थ रहने के लिए योग सीखना चाहते थे।
इन महिला सदस्यों ने अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए कोविड-संक्रमित लोगों से भी बात की। चित्तौड़ में महिला सदस्यों ने एमएपी नामक एक समूह बनाया, जिसमें रोगियों के सभी प्रश्नों के समाधान के लिए डॉक्टरों के साथ चिकित्सा कर्मचारी, प्रशासन आदि जुड़े हुए थे। इस संवाद कार्यक्रम में कम से कम पांच संक्रमित लोगों को कोविड लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया गया।
हर दिन सेविकाओं की टीमों को पंद्रह दिनों तक कोरोना पॉजिटिव व्यक्तियों से बात करने की जिम्मेदारी सौंपी गई, उन्होंने जरूरत पड़ने पर मदद, समर्थन और सलाह के लिए डॉक्टरों से बात करने के लिए भी कहा।
वरिष्ठ सदस्यों ने प्रतिदिन कोविड देखभाल केंद्रों का दौरा किया।
सालंबूर और राजसमंद में करीब 2,000 लोगों को होम्योपैथी दवाएं बांटी गई।
जोधपुर प्रांत प्रचारिका रितु ने कहा कि महिला सदस्यों ने जानवरों और पक्षियों के लिए भी भोजन का बंदोबस्त किया। भीलवाड़ा में ये सदस्य परिवारों को काड़ा, मास्क आदि बांट रहे हैं।
कोटा में उन्होंने शुगर टेस्ट स्ट्रिप जैसी सामग्री बांटी है और ऑक्सीजन की व्यवस्था की है।
इन महिला सदस्यों की सेवाओं से कुल मिलाकर लगभग 50,000 लोग लाभान्वित हुए हैं। (आईएएनएस)
भारत के दो सबसे बड़े महानगरों दिल्ली और मुंबई में भी कचरा खुले में फेंका जाता है. दिल्ली का गाजीपुर और मुंबई का मुलुंड डंपिंग ग्राउंड ऐसे इलाके हैं, जहां कचरे के ऊंचे पहाड़ बन चुके हैं और जिनके आसपास लोग भी रहते हैं.
डॉयचे वैले पर अविनाश द्विवेदी की रिपोर्ट-
भारत से हर साल 277 अरब किलो कचरा निकलता है यानी प्रति व्यक्ति करीब 205 किलो कचरा. इसमें से 70 प्रतिशत ही इकट्ठा किया जाता है, बाकी जमीन और पानी में फैला रहता है. इकट्ठा किए गए कचरे में से भी आधा या तो खुले में फेंक दिया जाता है या जमीन में दबा दिया जाता है. और कुल कचरे के सिर्फ पांचवें हिस्से की रिसाइकिलिंग हो पाती है. वे शहर जिनमें कचरे को खुले में फेंका जा रहा है, उनमें भारत के दो सबसे बड़े महानगर दिल्ली और मुंबई भी शामिल हैं. दिल्ली का गाजीपुर और मुंबई मुलुंड डंपिंग ग्राउंड ऐसे इलाके हैं, जहां ऊंचे-ऊंचे कचरे के पहाड़ बन चुके हैं और इनके आसपास लोग भी रहते हैं. जिनके स्वास्थ्य पर इस कचरे का बुरा असर होता है.
भारत से निकलने वाला कचरा मुख्यत: दो तरह का है, इंडस्ट्रियल और म्युनिसिपल. इंडस्ट्रियल कचरे के निपटान की जिम्मेदारी जहां उद्योगों पर ही है, म्युनिसिपल कचरे की जिम्मेदारी स्थानीय सरकारों की होती है. उन्हें शहरी इलाकों को साफ रखना होता है हालांकि ज्यादातर म्युनिसिपल अथॉरिटी कचरे को इकट्ठा तो करती हैं लेकिन फिर उसे आबादी के आसपास ही किसी डंपिंग ग्राउंड में फेंक देती हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के स्कूल ऑफ एनवायरमेंटल साइंसेस की एक स्टडी के मुताबिक खुले में फेंके गए कचरे में भारी मात्रा में निकल, जिंक, आर्सेनिक, कांच, क्रोमियम और अन्य जहरीली धातुएं होती हैं, जो पर्यावरण और लोगों के लिए गंभीर खतरों की वजह बनती हैं. भारत साल भर में जितनी जहरीली मीथेन का उत्सर्जन करता है, उसमें से 20 प्रतिशत सिर्फ इन कचरे के ढ़ेरों से होता है.
असली समस्या मिला-जुला कचरा
भारत में भारी मात्रा में कचरे के रिसाइकिल न हो पाने और इसे खुले में फेंके जाने की वजह मिला-जुला कचरा भी होता है. नेशनल इंवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) के टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट सेंटर के हेड साइंटिस्ट डॉ. सुनील कुमार कहते हैं, "असल समस्या कचरा नहीं बल्कि मिक्स कचरा है. यानी ऐसा कचरा जिसमें सब्जियों-फलों के छिलके, कागज, प्लास्टिक, धातुएं, शीशा और इलेक्ट्रिक कूड़ा यह सब मिला हुआ हो. ऐसे कूड़े का निपटान बहुत मुश्किल होता है. अगर यह कूड़ा अलग-अलग हो तो इसका निपटान सरकारी और प्राइवेट दोनों ही चैनल से किया जा सकता हैं." डॉ. सुनील कुमार का इशारा उन सरकारी और प्राइवेट यूनिट की ओर है, जिनमें कचरे को रिसाइकिल किया जाता है.भारत में लंबे समय से कचरे को प्राइवेट यूनिट के जरिए रिसाइकिल किया जा रहा है. कबाड़वाले घरों से पुराने अखबार, प्लास्टिक-कांच की बोतलें और धातुएं कुछ दाम देकर ले जाते हैं, जिसे वे प्राइवेट रिसाइक्लिंग यूनिटों को बेच देते हैं. जहां इन्हें फिर से काम में आने लायक चीजों में बदल दिया जाता है. हालांकि भारत में असंगठित प्राइवेट सेक्टर में जिस तरह रिसाइक्लिंग होती है, उससे न सिर्फ पर्यावरण को नुकसान होता है बल्कि इसमें लगे कामगारों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर होता है. डॉ. सुनील कुमार भी मानते हैं, "ऐसी ज्यादातर प्राइवेट यूनिट में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं. यहां कामगारों को न ही गम बूट दिए जाते हैं और न ही ग्लव्स और मास्क, जिससे कई तरह की गंदगी और रासायनिक कचरे के संपर्क में आने से उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं." डॉ. सुनील कुमार भी कहते हैं कि सरकार की ओर से दावा किया जा रहा है कि प्राइवेट यूनिट में रिसाइकिलिंग अब सुरक्षित हुई है लेकिन जमीन पर ऐसा कुछ नहीं है.
सिर्फ 1 प्रतिशत ई-कचरा होता है रिसाइकिल
दिल्ली जैसे शहरों से कितना कचरा निकलता है, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि यूपी के कई जिलों में ऐसी यूनिट हैं, जिनमें दिल्ली से लाकर कचरा रिसाइकिल होता है. उत्तर प्रदेश के कानपुर में प्लास्टिक कचरे को रिसाइकिल करने वाली प्राइवेट यूनिट के ठेकेदार ने बताया, "रिसाइक्लिंग से बहुत कम मुनाफा होता है. इसलिए सभी कामगारों के लिए सेफ्टी किट का इंतजाम करना महंगा पड़ता है." ठेकेदार ने यह भी बताया कि वे ज्यादातर प्लास्टिक कचरा दिल्ली से मंगाते हैं, जिसे कानपुर में रिसाइकिल किया जाता है. नेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के संस्थापक और अध्यक्ष डॉ अमिय कुमार साहू कहते हैं, "सरकार भी अब कचरे के निपटान के लिए प्राइवेट सेक्टर से मदद ले रही है, जो अच्छी बात है. मुझे आशा है इससे कचरे के पहाड़ और ऊंचे नहीं होंगे." अब इलेक्ट्रॉनिक और प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन के लिए सरकार उद्योगों की भी जिम्मेदारी तय कर रही है. विशेषज्ञों के मुताबिक आने वाले समय में सोलर पैनल, बैटरी गाड़ियों, मोबाइल और लैपटॉप का जो भारी ई-कचरा बढ़ने वाला है, उसके निपटान की जिम्मेदारी इन वस्तुओं का उत्पादन करने वाली कंपनियों की ही होगी. लेकिन अब भी भारत के पूरे कचरा प्रबंधन को देखा जाए तो हम इंडस्ट्रियल और म्युनिसिपल दोनों ही सेक्टर में अन्य देशों से बहुत पीछे हैं. दरअसल अब भी भारत में कुल ई-कचरे का सिर्फ 1-2% ठीक से रिसाइकिल हो पाता है. बाकी सारा ई-कचरा असंगठित क्षेत्र में चला जाता है, जहां स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक इस कचरे की रिसाइक्लिंग भी प्लास्टिक कचरे की तरह ही होती है. हालांकि डॉ. अमिय कुमार साहू मानते हैं कि भारत में कचरे से जुड़े ज्यादातर आंकड़े सही नहीं हैं क्योंकि इन्हें केंद्रीय स्तर पर इकट्ठा नहीं किया गया है.
जागरुकता और विज्ञान हैं कचरे का इलाज
तो क्या भारत में कचरे के पहाड़ ऊंचाई में लगातार बढ़ते रहेंगे और लोग इनके आस-पास रहने को मजबूर रहेंगे. इस सवाल के जवाब में डॉ. सुनील कुमार कहते हैं, "ऐसा नहीं है लेकिन कचरे का प्रबंधन हमारे घरों से ही शुरू हो जाता है. सबसे पहले लोगों को अलग-अलग कचरा अलग-अलग डस्टबिन में रखने के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए. जिससे इसकी रिसाइक्लिंग आसान हो सके." डॉ अमिय कुमार साहू कहते हैं, "भारत में लोगों को ऑर्गेनिक, प्लास्टिक और धातु के कचरे को तीन-चार अलग-अलग डस्टबिन में रखने के लिए तैयार करना अभी मुश्किल है. उन्हें अभी गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग रखने के बारे में जागरुक किया जा रहा है, जो काफी है. और इसे लेकर सरकार के स्वच्छ भारत अभियान के बाद लोगों में काफी जागरुकता आई है."डॉ. सुनील कुमार यह भी बताते हैं, "लैंड फिल माइनिंग और बायोसेल डेवलपमेंट दो कारगर वैज्ञानिक तरीके हैं, जिनसे कचरे के पहाड़ों को भी कम किया जा सकता है." लैंड फिल माइनिंग में कचरे की खुदाई कर उसे अलग-अलग कर लिया जाता है, यानी प्लास्टिक अलग, धातुएं अलग, कागज अलग और शीशा अलग. इसके बाद उन्हें वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में भेज दिया जाता है. जहां अलग-अलग चीजों को उनके लिए निर्धारित अलग-अलग रिसाइकिल प्रक्रिया से गुजारा जाता है. वहीं बायोसेल डेवलपमेंट में अलग-अलग एंजाइम का प्रयोग कर कचरे को गलाकर खत्म किया जाता है. वर्ल्ड बैंक के अनुमान के मुताबिक 2030 तक भारत में हर साल निकलने वाला कचरा बढ़कर 388 अरब किलो हो जाने का अनुमान है. कुछ जानकार यह भी कहते हैं कि भारत में कचरे को ऊर्जा के स्रोत के तौर पर भी देखा जाना चाहिए ताकि इससे डरने के बजाए इसका प्रयोग वैज्ञानिक प्रक्रिया से बिजली आदि बनाने में किया जा सके. (dw.com)
ईरान में शुक्रवार को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होंगे. शुरू में चुनावों में 600 उम्मीदवार थे, लेकिन उम्मीदवारों का पुनरीक्षण करने वाले गार्जियन काउंसिल ने उनमें से सिर्फ सात को चुनाव लड़ने की इजाजत दी.
हालांकि ईरान में सबसे शक्तिशाली नेता देश के सर्वोच्च धार्मिक नेता आयतुल्ला अली खोमेनी हैं, लेकिन औद्योगिक नीति से लेकर विदेशी मामलों तक पर राष्ट्रपति का भी महत्वपूर्ण प्रभाव रहता है. इस बार चुनावों में छह करोड़ मतदाता उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करेंगे, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि अति-रूढ़िवादी धार्मिक नेता इब्राहिम रईसी ही जीतेंगे. चुनावों से ठीक एक दिन पहले गार्जियन काउंसिल ने कहा कि यह एक "गंभीर राजनीतिक लड़ाई है".
12-सदस्यीय परिषद के मुखिया अब्बास अली कदखुदाई ने एक प्रेस सम्मलेन में कहा, "मीडिया और जनता ने प्रमाणित किया है कि एक अच्छी प्रतिस्पर्धा हो रही है." कदखुदाई ने मीडिया को बताया कि परिषद द्वारा स्वीकृत किए गए सातों उम्मीदवारों के बीच तीन बार वाद-विवाद प्रतियोगिता हो चुकी है जो टीवी पर प्रसारित भी की गई थी और इन बहसों ने दिखा दिया है कि चुनावों में "गंभीर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा" है.
गार्जियन काउंसिल कानूनविदों और मौलानाओं की एक संस्था है जिसके सदस्य चुने हुए नहीं होते हैं. चुनावों में ज्यादा मतदाताओं के वोट डालने की उम्मीद नहीं है.परिषद ने जब करीब 600 उम्मीदवारों में से सिर्फ सात को चुनाव लड़ने की स्वीकृति दी, तब कई मतदाता निराश हो गए. जिन लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया उनमें संसद के पूर्व स्पीकर अली लारीजानी भी थे.
गार्जियन काउंसिल से निराशा
लारीजानी ने मांग की कि परिषद, "आधिकारिक और सार्वजनिक रूप से" उन्हें अयोग्य ठहराने के "सभी कारणों को स्पष्ट करे". रूहानी ने बाद में बताया कि उन्होंने सर्वोच्च नेता को एक चिट्ठी लिख कर और ज्यादा "प्रतिस्पर्धा" की अपील की है. खोमेनी ने भी इस बात को माना कि कुछ उम्मीदवारों के साथ "अन्याय" हुआ है, क्योंकि "उन पर और उनके परिवारों पर झूठे आरोप लगाए गए थे". उन्होंने इन उम्मीदवारों के नाम नहीं लिए.
बुधवार को चुनावी अभियान का अंत होने से ठीक पहले बाकी बचे सात उम्मीदवारों में से भी तीन और उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया. अब प्रतियोगिता में रईसी के अलावा दो और अति-रूढ़िवादी उम्मीदवार ही हैं. इकलौते सुधारवादी उम्मीदवार हैं केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष अब्दुलनासिर हेम्मति. कदखुदाई ने प्रेस सम्मलेन में कहा कि उम्मीदवारों का "चुनावी कानून" के आधार पर पुनरीक्षण किया गया था और "गार्जियन काउंसिल के कोई भी राजनीतिक विचार नहीं हैं".
देश में कई लोग सालों से चल रहे आर्थिक संकट के दर्द की वजह से हतोत्साहित हैं. यह संकट अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से उत्पन्न हुआ था और कोविड-19 महामारी की वजह से और गंभीर हो गया. चुनाव भी ऐसे समय पर हो रहे हैं जब ईरान दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ अपनी परमाणु संधि को फिर से जीवित करने के लिए बातचीत कर रहा है. तीन साल पहले डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका ने खुद को संधि से पीछे खींच लिया था. (dw.com)
सीके/एए (एएफपी)
म्यांमार में तख्तापलट के बाद आम लोगों का जीवन बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. महिलाओं और बच्चों को अस्थायी शिविरों में पनाह लेनी पड़ी है. इन शिविरों की हालत दयनीय है.
जंगल में बने कुछ शिविरों में कुछ दर्जन लोग हैं, जबकि कुछ कैंपों में हजार से अधिक लोग हैं. म्यांमार की मानसूनी बारिश से बचने के लिए परिवार के सदस्य एक ही प्लास्टिक के नीच सोते हैं. इन शिविरों में महिलाओं और बच्चों की महत्वपूर्ण संख्या है. पूर्वी म्यांमार के काया राज्य में हाल की लड़ाई से जान बचाकर भागे लोगों का कहना है कि भोजन की कमी है और रोग फैलने के संकेत हैं.
इसी साल 1 फरवरी को लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को सेना ने सत्ता से बेदखल कर दिया था. तख्तापलट के बाद से ही सेना देश पर नियंत्रण स्थापित करने में संघर्ष कर रही है. देश के अशांत सीमांत क्षेत्रों से सैन्य चुनौतियां बढ़ रही हैं. वहां जातीय अल्पसंख्यक समूहों के पास राजनीतिक शक्तियां हैं और गुरिल्ला सेनाएं हैं. उत्तर और पूर्व में अल्पसंख्यक समूहों ने आंदोलन को अपना समर्थन दिया और लड़ाई तेज कर दी है.
जंगल में रह रहे 26 साल के फाउंग कहते हैं, "कुछ बच्चे दस्त से पीड़ित हैं. हमें मुश्किल से साफ पानी मिल पाता है. हम लोगों को पानी और चावल लाने का मौका नहीं मिल पाता है." उन्होंने पेड़ के सहारे तिरपाल लगाकार सोने का इंतजाम किया है. संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि काया में हाल में हुई हिंसा में 1,10,000 लोग विस्थापित हुए हैं.
उत्तरी और पश्चिमी म्यांमार में भी नई लड़ाई के साथ अब तक लगभग 2,00,000 लोग अपने घरों से भाग गए हैं. सेना ने काया राज्य में स्थानीय विद्रोहियों की करेन्नी पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) को आतंकवादी समूह कर दिया है. पीडीएफ पिछले एक महीने से लड़ाई लड़ रही है. पीडीएफ के साथ संघर्ष में म्यांमार सेना के कुछ सैनिकों की मौत हो गई है, जबकि सैकड़ों घायल बताए जा रहे हैं.
हालांकि समूह ने कहा कि वह समुदायों की अपील के बाद हमले रोकेगा. जंगल में शरण लिए लोग अपनी जान जोखिम में डालकर अपने घरों को वापस जाने के लिए कम इच्छुक दिखाई दे रहे हैं. काया राज्य के डेमोसो शहर के पास एक गांव के रहने वाले जॉन कैनेडाई ने बताया, "युद्धविराम की अवधि के दौरान दूर-दराज के गांवों के कुछ लोग बस्ता भरकर चावल और सामान लाने के लिए गए थे. लेकिन लोग अपने गांव में रहने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं."
2020 के नवंबर में हुए चुनाव को लेकर सेना संतुष्ट नहीं थी और वह चुनाव में धोखाधड़ी का मुद्दा उठा रही थी. हालांकि म्यांमार के राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग ने सेना की ओर से लगाए गए चुनावों में धोखाधड़ी होने के आरोपों से इनकार किया था. तख्तापलट के बाद से सू ची के अलावा 4,500 से भी ज्यादा लोगों को हिरासत में रखा गया है. (dw.com)
एए/सीके (रॉयटर्स)
अमरावती, 17 जून | तेलुगु देशम पार्टी (तेदेपा) के वरिष्ठ नेता वरला रमैया ने गुरुवार को आंध्र प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गौतम सवांग से शिकायत की कि वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी पी. वी. सुनील कुमार कथित तौर पर असंवैधानिक गतिविधियों में लिप्त है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुमार ने एआईएम (आंबेडकर का भारतीय मिशन) नामक एक संगठन की स्थापना की और वह इस बैनर तले विभाजनकारी गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।
रमैया ने दावा करते हुए कहा, आंध्र प्रदेश में एक वरिष्ठ सिविल सेवक और वर्तमान में अतिरिक्त डीजीपी, सीआईडी के रूप में कार्यरत कुमार अपमानजनक बयान दे रहे हैं, जो एक सिविल सेवक के आचरण के लिए अनुपयुक्त हैं।
तेदेपा नेता ने शिकायत की कि आईपीएस अधिकारी के कथित बयान विविधता में एकता की भावना और भारत के संविधान के खिलाफ हैं।
रमैया के अनुसार, कुमार ने कहा कि अंग्रेज दलितों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य लाए। उन्होंने दावा किया कि ये बयान डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान को कमजोर करने वाला है।
रमैया ने दावा किया कि इस तरह के बयान भारत के सामाजिक रूप से वंचित वर्गों के उत्थान के उद्देश्य से अंबेडकर की ²ष्टि को अंधेरे में डाल देते हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि कुमार द्वारा आयोजित एक एआईएम बैठक में कृष्णा जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक (एएसपी) मोका सत्ती बाबू ने आतंकवादियों के समर्थन में बात की।
उन्होंने दावा किया, बाबू ने अपने भाषण में वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हवाई जहाज से हमला करने वाले आतंकवादी का उदाहरण देते हुए युवाओं से इस तरह की प्रतिबद्धता का अनुकरण करने के लिए कहा है। इसके अलावा, उन्होंने कहा कि आतंकवादी के समानांतर मरने की प्रतिबद्धता ही मदद करेगी।
तेदेपा महासचिव के मुताबिक, इस तरह के भाषण आम तौर पर युवाओं और खासकर दलित युवाओं को भड़का रहे हैं।
उन्होंने दावा किया, वास्तव में, ऊपर उल्लिखित दो अधिकारियों द्वारा दिए गए बयान सही नहीं हैं और ये अपमानजनक, अवैध, असंवैधानिक और विभाजनकारी प्रकृति के हैं।
इसके साथ ही एआईएम के पीछे की मंशा पर संदेह जताया गया है और आरोप लगाया गया है कि विभाजनकारी राजनीति और नफरत को कायम रखने के लिए संगठन का इस्तेमाल एक मोर्चे के रूप में किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इन बयानों पर विभिन्न धाराओं के तहत कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए और कुमार तथा बाबू ने अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 का उल्लंघन किया है, जिस पर कार्रवाई की जानी चाहिए।
उन्होंने सवांग को लिखते हुए कहा कि मैं विभाजनकारी एजेंडे का पालन करने वाले ऐसे दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने की अपील करता हूं। (आईएएनएस)
यूएपीए के तहत लगे आरोप में नौ साल जेल में बिताने के बाद मोहम्मद इलियास और मोहम्मद इरफान को एक विशेष अदालत ने बाइज्जत बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि दोनों के खिलाफ कोई सबूत नहीं है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
33 साल के मोहम्मद इरफान और 38 साल के मोहम्मद इलियास को महाराष्ट्र पुलिस के आतंक विरोधी दस्ते (एटीएस) ने अगस्त 2012 में गिरफ्तार किया था. उनके अलावा दो और लोगों को गिरफ्तार किया गया था. पांचों के खिलाफ आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा से संबंध होने के आरोप लगाए गए थे. चूंकि मामला हथियार बरामद होने और राजनेताओं, पुलिस अफसरों और पत्रकारों की हत्या करने की योजना बनाने की एक साजिश का था, 2013 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) ने जांच अपने हाथों में ले ली थी.
लेकिन एनआईए भी मोहम्मद इलियास और मोहम्मद इरफान के खिलाफ ऐसे सबूत नहीं जुटा पाई जिनसे अदालत उन पर लगे आरोपों पर भरोसा कर सके. बरी होने के बाद दोनों नांदेड़ स्थित अपने अपने घर चले गए हैं, लेकिन इस मामले ने एक बार फिर गलत आरोपों में गिरफ्तार किए गए लोगों की समस्याओं पर चर्चा शुरू कर दी है. गिरफ्तार किए जाने से पहले, इलियास का नांदेड़ में ही फलों का व्यापार था और इरफान की इन्वर्टर की बैटरियों की एक दुकान थी.
दोनों ने इन नौ सालों में जमानत की कई अर्जियां डाली थीं जिनमें उन्होंने बार बार कहा था कि एटीएस और एनआईए दोनों को ही उनके खिलाफ कोई भी सबूत नहीं मिला. इरफान को 2019 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने जमानत पर रिहा करने के आदेश दे दिए थे लेकिन वो सिर्फ चार महीने जमानत पर जेल के बाहर रह पाए. एनआईए ने सुप्रीम कोर्ट में उन्हें फिर से गिरफ्तार करने की अर्जी दी और अदालत ने अर्जी मंजूर कर ली.
क्या था मामला
महाराष्ट्र एटीएस ने दावा किया था कि उसके एक अफसर को जानकारी मिली थी कि 30 अगस्त 2012 को चार लोग हथियारों के साथ नांदेड़ की तरफ जा रहे थे. एटीएस की अलग अलग अलग टीमों ने छापे मारे और इरफान और इलियास के अलावा मोहम्मद मुजम्मिल और मोहम्मद सादिक को भी गिरफ्तार किया. बाद में मामले की और जांच करने के बाद एक और व्यक्ति मोहम्मद अकरम को भी गिरफ्तार किया गया.
एटीएस के दावों के मुताबिक सादिक और मुजम्मिल दोनों के पास से एक-एक रिवॉल्वर, कुछ गोलियां और कुछ कारतूस पाए गए. इरफान और इलियास के पास से कोई भी हथियार बरामद नहीं हुआ. बाद में और जांच करने के बाद एनआईए ने अकरम को लश्कर का सदस्य और पूरी योजना बनाने वाला व्यक्ति बताया. इरफान और इलियास को बरी करने के साथ साथ अदालत ने इन तीनों को दोषी पाया है और 10 साल जेल की सजा सुनाई है. जो नौ साल वो जेल में बिता चुके हैं, उन्हें उनकी सजा में से घटा दिया जाएगा.
नौ सालों का हिसाब
नांदेड़ स्थित अपने अपने घर जाने से पहले इरफान ने एक अखबार के रिपोर्टर के साथ उनके खोए हुए नौ सालों का दुख साझा किया. इरफान ने कहा, "बस, नौ साल जो गए, सब हवा में." उनके 62 साल के पिता नांदेड़ जिला परिषद में ड्राइवर की नौकरी करते थे और उन्हें हर बार मामले की सुनवाई के लिए मुंबई जाना पड़ता था. इस साल की शुरुआत में उन्हें और इरफान की मां दोनों कोविड पॉजिटिव पाए गए थे और उन्हें अस्पताल में भर्ती भी कराना पड़ा था.इलियास कहते हैं कि जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तब उनकी सबसे छोटी संतान की उम्र बस दो सप्ताह की थी और पिछले नौ सालों में वो अपनी पत्नी और अपने तीनों बच्चों से सिर्फ एक बार मिल पाए हैं. उन्होंने बताया कि उन्हें जेल हो जाने के बाद उनका व्यापार बंद हो गया क्योंकि मकान मालिक ने उनके परिवार को वो जगह खाली कर देने को कह दिया. वो ऊंची अदालतों में अपनी जमानत के लिए भी नहीं लड़ पाए क्योंकि उनके पास केस लड़ने के पैसे नहीं थे.
यूएपीए आतंकवाद की रोकथाम के लिए बना एक विशेष कानून है, लेकिन जानकार कहते हैं कि पुलिस और अन्य एजेंसियां इसका बेहद लापरवाही से इस्तेमाल करती हैं और इसका नतीजा कई बेगुनाहों को भुगतना पड़ता है. सरकार द्वारा संसद में दिए गए ताजा आंकड़े बताते हैं कि 2016 से 2019 के बीच यूएपीए के तहत दर्ज किए गए सभी मामलों में से सिर्फ 2.2 प्रतिशत मामलों में अपराध सिद्ध हो पाया. इस अवधि में इसके तहत कुल 5,922 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें से सिर्फ 132 लोगों का अपराध सिद्ध हो पाया. (dw.com)
नई दिल्ली: किसान आंदोलन के दौरान लाल किले पर हुई हिंसा के मामले में दीप सिद्धू और अन्य के खिलाफ दिल्ली पुलिस (Delhi Police) ने सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की है. मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट गजेंद्र सिंह नागर नए आरोप-पत्र पर संज्ञान लेने के बिंदु के बारे में 19 जून को दोपहर दो बजे आदेश पारित करेंगे. अदालत ने कहा, ‘‘मामले के जांच अधिकारी ने उन प्रत्यक्षदर्शियों के नाम का जिक्र किया है जो हिंसा में गंभीर रूप से घायल हुए या जिनसे हथियार छीने गए.''मामले की जांच अपराध शाखा कर रही है]उसने 17 मई को 3,224 पन्नों का आरोप-पत्र दायर किया था और सिद्धू समेत 16 आरोपियों के खिलाफ मामला चलाने का अनुरोध किया था. हिंसा के मुख्य साजिशकर्ता सिद्धू को 9 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था.पुलिस ने उस पर लाल किले में हंगामे को भड़काने का भी आरोप लगाया .
26 जनवरी के लाल किला हिंसा मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इससे पहले, पिछले माह चार्जशीट दाखिल की थी. तीस हजारी कोर्ट में दाखिल की गई इस चार्जशीट में दीप सिद्धू समेत करीब 16 लोगो को आरोपी बनाया गया था.पुलिस ने लालकिला परिसर में तोड़फोड़ किए जाने की घटना को ‘‘राष्ट्र विरोधी गतिविधि'' करार दिया था. ‘फॉरेंसिक विशेषज्ञों की एक टीम ने घटना के बाद लालकिले का दौरा किया था और साक्ष्य एकत्रित किए थे.
केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की मांग को लेकर 26 जनवरी को किसान संघों द्वारा आयोजित ट्रैक्टर परेड के दौरान हजारों प्रदर्शनकारी पुलिस से भिड़ गए थे. कई प्रदर्शनकारी ट्रैक्टर चलाते हुए लाल किले तक पहुंच गए थे और इस ऐतिहासिक स्मारक में घुस गए थे. इस दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों ने लाल किले के ध्वजस्तंभ पर एक धार्मिक झंडा भी फहराया था. ट्रैक्टर रैली के दौरान किसानों की लाल किले सहित राजधानी दिल्ली के कई स्थानों पर पुलिस के साथ झड़प हुई थी. (भाषा)
भारत में आमतौर पर युवा जीवन बीमा को पहले कम तरजीह देते थे. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर के बाद नजरिया बदला है. कम उम्र के नौजवानों की मौत ने युवाओं को जीवन बीमा की ओर आकर्षित किया है.
भारत में 20 वर्षी की आयु से अधिक कई लोगों की तरह बेवरली कोटीनो जीवन बीमा पॉलिसी को टालती रहीं. जब कोविड-19 के कारण संक्रमण के मामलों में वृद्धि और मौतों में उछाल से उनका सामना हुआ तो उन्हें भी अपनी चिंता सताने लगी. मुंबई में पब्लिक रिलेशंस एजेंसी में बतौर सीनियर एक्जिक्यूटिव काम करने वालीं 24 साल की कोटीनो कहती हैं, "मैंने अपनी उम्र के लोगों को मरते देखा, जिसने मुझे फौरन जीवन बीमा लेने के लिए प्रेरित किया."
कोटीनो कहती हैं, "मैं नहीं चाहती हूं कि अगर मुझे कुछ हो जाता है तो मेरा परिवार ऐसी स्थिति में रहे जहां उसे पैसे के लिए हाथ पांव मारना पड़े."
भारत में कोविड-19 के कारण 3.80 लाख के करीब मौतें हुई हैं. अमेरिका और ब्राजील के बाद भारत में सबसे अधिक मौतें दर्ज हुई हैं. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि कोरोना की जांच कम होने के कारण भारत में संख्या को कम करके आंका गया और शायद भारत में दुनिया से कहीं अधिक मौतें हुई हों.
जागरूक हुए युवा
भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन बीमा एग्रीगेटर पॉलिसीबाजार के मुताबिक देश में जब अप्रैल और मई के दौरान महामारी की विनाशकारी दूसरी लहर चरम पर थी, उस वक्त 25 और 35 वर्ष आयु वर्ग के बीच टर्म प्लान (सावधि बीमा) लेने वालों की संख्या पिछले तीन महीने की तुलना में 30 फीसदी अधिक रही.
ऑनलाइन बीमा एग्रीगेटर बीमादेखो के माध्यम से सावधि बीमा की खरीद मार्च के मुकाबले मई में 70 फीसदी बढ़ी है. व्यापार गोपनीयता का हवाला देते हुए कंपनियों ने यह नहीं बताया कि उन्होंने कितनी पॉलिसी बेचीं लेकिन कंपनियों ने कहा कि "संख्या हजारों" में थी.
एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस के मुख्य वित्तीय अधिकारी नीरज शाह कहते हैं, "मौजूदा महामारी ने चारों ओर बहुत वित्तीय सुरक्षा की आवश्यकता और बीमा कवरेज को लेकर जागरूकता पैदा की है." एचडीएफसी लाइफ इंश्योरेंस का कहना है कि 35 साल के कम उम्र के लोगों में जीवन बीमा को लेकर अधिक मांग देखने को मिली है.
मुश्किल है बीमा
इंश्योरेंसदेखो के संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अंकित अग्रवाल कहते हैं, "कपड़ा, भोजन और घर के बाद अब बीमा मिडिल क्लास परिवार के लिए चौथा स्तंभ बन गया है." बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण के ताजा आंकड़ों के मुताबिक साल 2001 में 2.15 फीसदी की तुलना में 2019 में भारत की आबादी के बीच जीवन बीमा की पैठ 2.82 फीसदी थी.
यह अभी भी साल 2019 के वैश्विक औसत 3.35 प्रतिशत से काफी नीचे है. लेकिन फिर भारत के 1.35 अरब लोगों का एक बड़ा वर्ग बीमा के लिए अतिरिक्त पैसे नहीं जुटा पाता है. कोरोना महामारी की वजह से यह स्थिति और ज्यादा खराब हो गई है.
टर्म इंश्योरेंस प्लान भारत में लोकप्रिय हैं क्योंकि वह अक्सर सस्ता होता है और अगर प्लान लेने वाले व्यक्ति की मृत्यु प्रीमियम देने की अवधि में हो जाती है तो परिवार को पैसे मिलते हैं. लेकिन सावधि बीमा लेने वाला समय के अंत तक जीवित रहता है तो कवर को जब्त कर लिया जाता है और कुछ भुगतान नहीं होता है.
अन्य प्रकार के बीमा की भी मांग में वृद्धि हुई है. अलग-अलग चिकित्सा बीमा की भी खरीद महामारी के दौरान तेजी से बढ़ी है.
एए/वीके (रॉयटर्स)
अरुणाचल प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे लोअर सुबनसिरी जिले में 45 साल से ऊपर के लोग कोरोना की वैक्सीन लगवाने से हिचक रहे थे. उनकी हिचकिचाहट दूर करने के लिए राज्य सरकार ने 20 किलो चावल की पेशकश की.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट
राज्य में लगातार बढ़ते मामलों को देखते हुए अचानक स्थानीय अधिकारियों को एक उपाय सूझा और वह काफी हिट हो गया. प्रशासन ने एलान कर दिया कि वैक्सीन लेने वाले को 20 किलो चावल मुफ्त दिए जाएंगे. इसके बाद वैक्सीनेशन सेंटरों पर भीड़ बढ़ने लगी और तीन दिनों के भीतर ही इलाके की ज्यादातर आबादी को वैक्सीन लगाई जा चुकी है. अरुणाचल प्रदेश में अब तक कोरोना के करीब 30 हजार मामले सामने आए हैं और 125 लोगों की मौत हो चुकी है.
सीमावर्ती इलाके में मूलभूत नागरिक सुविधाओं की भी कमी है. इस बीच, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार को सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले छह सौ ग्रामीणों के पानी, स्वास्थ्य और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है.
अफवाहों से इलाके में आतंक
कोरोना वैक्सीन को लेकर तरह-तरह की अफवाहों और भ्रांतियों की खबरें सामने आती रही हैं. कहीं लोग डर के मारे इसे लेने से हिचक रहे हैं, तो कहीं साइड इफेक्ट्स के डर से. खासकर ग्रामीण और दुर्गम इलाकों से ऐसी कई खबरें आती रही हैं. पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश के दुर्गम लोअर सुबनसिरी जिले में यही स्थिति थी. इलाके के खासकर 45 साल से ऊपर की उम्र के लोग वैक्सीन लगाने ही नहीं पहुंच रहे थे. ऐसे में एक स्थानीय प्रशासनिक अधिकारी को इस समस्या को सुलझाने का एक अनूठा उपाय सूझा. उन्होंने अपने ऊपर के अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श के बाद एलान कर दिया कि वैक्सीन लगवाने वालों को 20 किलो चावल मुफ्त दिया जाएगा.
उनका यह आइडिया इतना हिट हुआ कि वैक्सीनेशन सेंटरों पर भीड़ बढ़ने लगी और तीन दिनों के भीतर इस आयु वर्ग के ज्यादातर लोगों ने वैक्सीन लगवा ली. दरअसल, वहां लोगों में यह डर था कि वैक्सीन लगने के बाद वे नपुंसक हो जाएंगे और वैक्सीन के जरिए उनके शरीर में कोई माइक्रोचिप डाल दी जाएगी जिससे सरकार उन पर चौबीसों घंटे निगाह रख सकेगी. याजाली इलाके के सर्किल अफसर ताशी वांगचुक थांगडॉक ने एलान करा दिया कि 45 साल से ऊपर के उम्र वालों को वैक्सीन लगवाने के बाद 20 किलो चावल मौके पर ही मुफ्त दिए जाएंगे. इसका नतीजा यह हुआ कि पहले ही दिन 50 से ज्यादा वैक्सीनेशन सेंटर पर पहुंच गए. उसके पहले इक्का-दुक्का लोग ही पहुंचते थे. नतीजतन वैक्सीन नष्ट होने का खतरा बढ़ रहा था.
सामाजिक कार्यकर्ताओं का सहयोग
अरुणाचल प्रदेश सिविल सर्विस की 2016 बैच के अधिकारी थांगडॉक बताते हैं, "हम इस सर्किल में वैक्सीन कवरेज बढ़ाने के लिए विभिन्न उपायों पर विचार-विमर्श कर रहे थे. इसी दौरान मुफ्त चावल देने का विचार सूझा. यह अभियान 20 जून तक जारी रहेगा. तब तक सबको वैक्सीन लग चुकी होगी." इस मुहिम के लिए दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ताबा नागू और लिचा बीरबल ने चावल मुफ्त में मुहैया कराए. छोटी-सी पहाड़ी याजाली कस्बे की आबादी करीब 12 हजार है और इनमें से 45 साल से ऊपर की उम्र वालों की तादाद 14 सौ है. इनमें से 209 लोग ऐसे थे जो लाख समझाने पर भी वैक्सीन लेने के लिए तैयार नहीं थे.
प्रशासन की ओर से उनके घर जाकर वैक्सीन देने की भी कोशिशें हुईं. लेकिन लोग इसके लिए तैयार नहीं थे. थांगडॉक बताते हैं, "कुछ लोग वैक्सीन लगने के बाद कुछ दिनों के लिए शराब का सेवन छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे. हाल में व्हाट्सएप पर एक संदेश वायरल हो रहा था कि वैक्सीन लगने के दो साल के भीतर संबंधित व्यक्ति की मौत हो जाएगी. इससे निपटने के लिए इलाके में जागरूकता अभियान चलाया गया था."
कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान इलाके में संक्रमण के 243 मामले सामने आए थे. उनमें से 53 लोग फिलहाल संक्रमित हैं. याजाली में कोरोना से अब तक किसी की मौत नहीं हुई है. थांगडॉक बताते हैं कि दो सामाजिक कार्यकर्ताओं ने 209 लोगों के लिए जरूरी चावल का इंतजाम किया. मोटे तौर पर 20 किलो चावल की कीमत स्थानीय बाजारों में छह से सात सौ रुपए के बीच है. याजाली के रहने वाले लिचा बीरबल, जो अब असम की राजधानी गुवाहाटी में व्यापार करते हैं, बताते हैं, "सर्किल अफसर ने मुफ्त चावल बांटने के आइडिया के साथ मुझसे संपर्क किया था. मैंने अपने स्कूली सहपाठी ताहा नागू के साथ मिल कर इसके लिए जरूरी रकम का इंतजाम किया."
मानवाधिकार आयोग की पहल
तिब्बत की सीमा से सटा अरुणाचल प्रदेश देश के दुर्गम इलाकों में से एक है. खासकर सीमावर्ती इलाकों में सड़क, स्वास्थ्य और पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी भारी अभाव है. ऐसे में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और मानवाधिकार कार्यकर्ता राधाकांत त्रिपाठी की ओर से दायर एक याचिका पर अरुणाचल सरकार से दुर्गम इलाकों में रहने वाले ऐसे करीब छह सौ लोगों को मौलिक सुविधाएं मुहैया कराने का निर्देश दिया है.
याचिका में कहा गया था कि उन लोगों को पीने के पानी, स्कूल, खेल के मैदान, आंगनवाड़ी केंद्र, सड़क और स्वास्थ्य जैसी मौलिक सुविधाएं भी हासिल नहीं हैं. इसके अलावा लोगों की आजीविका या स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण का भी कोई वैकल्पिक इंतजाम नहीं है. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने दलील दी थी कि वह संबंधित इलाके में तमाम सुविधाएं मुहैया कराने का प्रयास कर रही है. सीमावर्ती इलाकों में आधारभूत सुविधाएं विकसित और मजबूत करने के लिए 4,690 करोड़ की योजना का प्रस्ताव भी तैयार किया गया है.
(dw.com)
नई दिल्ली, 17 जून : देश में लगातार कोरोना के मामले कम होते जा रहे हैं. स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 24 घंटे में देश में 67,208 नए COVID-19 के केस सामने आए हैं. वहीं इस दौरान कोरोना संक्रमण की चपेट में आए 2,330 लोगों ने अपनी जान गंवाई है. आज आए कोरोना के नए मामलों के साथ देश में अब तक कोरोना के कुल मामलों का आंकड़ा बढ़कर 29,700,313 पर पहुंच गया है. बीते 24 घंटों में 1,03,570 लोग कोरोना संक्रमण को हराकर स्वस्थ हुए हैं. इसके साथ ही देश में अब कुल सक्रिय मामलों का आंकड़ा घटकर 8,26,740 पर पहुंच गया है.
देश में जारी टीकाकरण अभियान के तहत रोजाना टीका लगवाने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है. पिछले 24 घंटों में 34,63,961 लोगों ने टीकाकरण कराया है. देश में अब कुल टीकाकरण करा चुके लोगों की संख्या 26,55,19,251 पर पहुंच गई है. वहीं बीते 24 घंटों में 19,31,249 लोगों ने अपनी कोरोना जांच कराई है.
राहत की बात यह है कि देश में लगातार दसवें दिन कोरोना संक्रमण की सकारात्मकता दर 5 प्रतिशत से नीचे रही है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक बीते 24 घंटों में आए आंकड़ों के अनुसार देश में अभी कोरोना सकारात्मकता दर 3.48% है.
पूरी दुनिया में 5 करोड़ 80 लाख से ज्यादा केस
भारत समेत दुनिया भर के 190 से ज्यादा देश कोरोना वायरस संक्रमण से प्रभावित हैं. दुनिया में अब तक 17 करोड़ 66 लाख से अधिक लोग COVID-19 की चपेट में आ चुके हैं. यह वायरस 38 लाख 22 हजार से अधिक लोगों की जिंदगी छीन चुका है. दुनिया में पांच करोड़ 80 लाख से अधिक एक्टिव केस हैं और 11 करोड़ 47 लाख से अधिक लोग कोरोना से संक्रमित होने के बाद स्वस्थ हो चुके हैं.
मुंबई, 17 जून| स्वास्थ्य अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि महाराष्ट्र में कोविड-19 से होने वाली मौतों का स्तर अधिक रहा, जबकि नए संक्रमण भी 10,000 के स्तर को पार कर गए, हालांकि ठीक होने वाले रोगियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है। सोमवार को घोषित 1,458 मौतों के मुकाबले, राज्य में अब 1,236 मृत्यु (237 नई, और 999 पहले की मौतों) के निचले आंकड़े का खुलासा किया, जिससे कुल संख्या 115,390 हो गई।
ताजा मामलों की संख्या मंगलवार को 9,350 से बढ़कर 10,107 हो गई, जो कुल संख्या को 59,34,880 तक ले गई।
मुंबई में, लगातार 20वें दिन, नए संक्रमण 1,000 के स्तर से नीचे रहे, लेकिन एक दिन पहले 572 से बढ़कर 821 हो गए, जिससे शहर की संख्या 717,172 हो गई। मरने वालों की संख्या एक दिन पहले 14 से घटकर 11 हो गई, जिससे कुल मौतें 15,227 हो गईं।
सक्रिय मामलों की संख्या 138,361 से गिरकर 136,661 हो गई, जबकि 10,567 पूरी तरह से ठीक हो चुके मरीज - फिर से ताजा संक्रमणों की संख्या से अधिक - घर लौट आए, कुल 56,79,746 हो गए, जबकि ठीक होने की दर 95.69 प्रतिशत से घटकर 95.07 प्रतिशत हो गई।.
मुंबई सर्किल - जिसमें मुंबई, ठाणे, पालघर और रायगढ़ जिले शामिल हैं - ने नए मामलों में वृद्धि दर्ज की, 1,971 से 2,330 तक, इसकी संख्या 15,67,290 तक ले गई और 56 और मौतों के साथ, कुल आंकड़ा बढ़कर 30,990 हो गया।
इस बीच, होम आइसोलेशन में भेजे गए लोगों की संख्या 878,781 थी, जबकि संस्थागत संगरोध में 5,401 लोग थे। (आईएएनएस)
मुंबई, 16 जून| मुंबई पुलिस ने एक पॉश कांदिवली हाउसिंग कॉम्प्लेक्स में कथित धोखाधड़ी की जांच शुरू कर दी है, जहां दो सप्ताह पहले एक निजी टीकाकरण अभियान चलाया गया था। एक अधिकारी ने यह जानकारी दी। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "समाज की शिकायत के बाद हम मामले की जांच कर रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं हुई है और न ही किसी को हिरासत में लिया गया है या गिरफ्तार किया गया है।"
कांदिवली पश्चिम में हीरानंदानी हेरिटेज सोसाइटी (तीन टावरों में 435 फ्लैट) के निवासियों के अनुसार, एक जालसाज ने कथित तौर पर 30 मई को 390 लोगों के लिए टीकाकरण अभियान चलाया, जिसमें सोसायटी के सदस्य और उनके परिवार, इन-हाउस स्टाफ जैसे सुरक्षा गार्ड, ड्राइवर या घरेलू सहायक शामिल थे।
यह कुछ सहायकों, राजेश पांडे और संजय गुप्ता के माध्यम से आयोजित किया गया था, जिन्होंने कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल (केडीएएच) और नानावती अस्पताल जैसे प्रमुख निजी संस्थानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा किया था और प्रत्येक के लिए लगभग 1,260 रुपये में 400 वैक्सीन खुराक प्रदान करने पर सहमत हुए जिसे सोसायटी ने करीब 5 लाख रुपये दिए।
हालांकि, केडीएएच और नानावटी अस्पताल के शीर्ष अधिकारियों ने कहा है कि एजेंटों द्वारा दावा किए गए पूरे अभियान से उनका कोई लेना-देना नहीं था, उनसे समाज द्वारा संपर्क नहीं किया गया था और उन्होंने इस मामले में कोई और कदम उठाने पर विचार नहीं किया था।
टीकाकरण अभियान समाप्त होने के बाद संदेह शुरू हुआ, क्योंकि किसी भी लाभार्थी को टीकाकरण प्रमाणपत्र नहीं दिया गया था, और कई निवासियों ने देखा कि शीशियों पर 'बिक्री के लिए नहीं' लाल मुहर लगी थी।
गुप्ता ने आश्वासन दिया कि 3-4 दिनों के बाद प्रमाणपत्र दिए जाएंगे, और जब उनमें से कई को अंतत: 8 जून के बाद मिला, तो वे शहर के विभिन्न अस्पतालों से जारी किए गए थे, वे भी बिना 30 मई की तारीख के, जब टीकाकरण किया गया था।
निवासियों में से एक ने कहा, "हमने कांदिवली पुलिस से संपर्क किया है। हम बहुत चिंतित हैं। हमें नहीं पता कि हमें कोविड वैक्सीन के नाम पर क्या दिया गया था।"
योगेश सागर जैसे स्थानीय भाजपा नेताओं ने आरोप लगाया कि इस तरह के निजी अभियानों में बीएमसी और बेईमान तत्वों के बीच सांठगांठ हो सकती है और लाभार्थियों को इस तरह के प्रस्तावों के लालच में आने से पहले पूरी पूछताछ करनी चाहिए। (आईएएनएस)
भोपाल, 16 जून| मध्य प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मुलाकात की तस्वीर सामने आने पर कांग्रेस और भाजपा के बीच सियासी संग्राम छिड़ गया है। कांग्रेस ने तस्वीर में प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की दूरी को लेकर सवाल उठाए तो वहीं भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ व प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात की तस्वीर जारी कर जवाब दिया। मुख्यमंत्री चौहान की बुधवार को दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात हुई। दोनों नेताओं के बीच कई मुद्दों पर चर्चा हुई। इस मुलाकात की एक तस्वीर जारी हुई, इस तस्वीर में प्रधानमंत्री मोदी के करीब की कुर्सी खाली है तो वहीं मुख्यमंत्री चौहान सोफा पर बैठे नजर आ रहे हैं।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की तस्वीर के साथ कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कमल नाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा ने ट्वीट करते हुए लिखा, यह समझ में नहीं आता है कि हमारे शिवराज जी को मोदी जी इतना नापसंद क्यों करते हैं, दूसरे नेताओं की तरह उन्हें भी पास की कुर्सी पर क्यों नहीं बैठाते हैं, उन्हें हमेशा ही दूर क्यों रखते हैं? अब देखिए, योगी जी से इतनी नाराजगी होने के बाद भी उन्हें पास की कुर्सी पर बैठाया?
कांग्रेस के इस ट्वीट का भाजपा के मीडिया विभाग के प्रमुख लोकेंद्र पाराशर ने जवाब दिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री कमल नाथ की प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की पुरानी तस्वीर, जिसमें कमल नाथ एक पैर पर पैर रखकर बैठे हैं। साथ ही मुख्यमंत्री चौहान की आज की मुलाकात की तस्वीर साझा करते हुए लिखा है, इसे कहते हैं 15 वर्षो की शालीनता और 15 महीने का घमंड शिवराज सिंह चौहान की शालीनता को समझने का संस्कार वे कांग्रेसी लाएंगे कहां से, जिनके मुखिया ही प्रधानमंत्री के सामने टांग उठाकर बैठते हों? (आईएएनएस)
लखनऊ, 16 जून| यूपी में केंद्र की तरह यूपी टीईटी के प्रमाणपत्र को भी आजीवन मान्य करने का आदेश दे दिया है। उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा (यूपी टीईटी) उत्तीर्ण 21 लाख से अधिक अभ्यर्थियों के लिए बड़ी खुशखबरी है। मुख्यमंत्री योगी ने केंद्र की तर्ज पर उन्होंने बुधवार को समीक्षा बैठक के दौरान निर्देश दिया कि भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार, यूपी टीईटी का प्रमाणपत्र को आजीवन वैधता प्रदान की जाए। एक बार परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद दोबारा देने की आवश्यकता नहीं होगी। इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी कर दिया जाए। डीएलएड पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए पूर्व प्रचलित व्यवस्था ही लागू रखी जाए।
दरअसल, केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने तीन जून को ऐलान किया था कि टीईटी 2011 से जारी हो रहे प्रमाणपत्र आजीवन होंगे। इसके पहले प्रमाणपत्र सात साल और 2020 का ही आजीवन मान्य था। मंत्री के बयान के बाद यूपी में भी इसके आजीवन मान्य होने की संभावना बढ़ गई थी। परीक्षा नियामक प्राधिकारी उत्तर प्रदेश प्रयागराज ने इसका प्रस्ताव भी भेज दिया था। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके लिए नोटीफिकेशन जारी करने का आदेश दे दिया है। इस कदम से उन अभ्यर्थियों को विशेष राहत होगी, जो प्रमाणपत्र की अवधि पूरी होने से दोबारा परीक्षा देने की तैयारियों में जुटे थे। यूपी टीईटी का प्रमाणपत्र अभी तक पांच वर्ष तक ही मान्य रहा है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा वर्ष में एक बार होती रही है। दस साल में आठ परीक्षाएं हो चुकी हैं और उनमें करीब 21 लाख से अधिक परीक्षार्थी सफल हुए हैं। अभी तक यूपीटीईटी प्रमाणपत्र पांच वर्ष के लिए ही मान्य रहा है। इसके पहले 2012 में यूपीटीईटी नहीं हुई और 2020 की परीक्षा का नोटीफिकेशन इसी माह जारी होने के आसार हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 जून| अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में बुधवार रात भीषण आग लग गई, जिसके बाद आग बुझाने के लिए दमकल की 22 गाड़ियां भेजी गईं। दमकल अधिकारियों ने यह जानकारी दी। दमकल के एक अधिकारी ने बताया कि रात 10.32 बजे एक कॉल आई। गेट नंबर दो के पास अस्पताल प्रखंड की नौवीं मंजिल पर आग लगने की सूचना मिली
अधिकारी ने कहा, आग बुझाने के लिए दमकल की 22 गाड़ियां मौके पर भेजी गई हैं।
आग लगने के कारणों के बारे में पूछे जाने पर अधिकारी ने कहा कि कारणों का आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 जून| दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को फरवरी 2020 के दंगों के आरोपी कार्यकर्ताओं देवांगना कलिता, नताशा नरवाल और आसिफ इकबाल तन्हा की रिहाई के आदेश को टाल दिया, जिन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय ने 15 जून को जमानत दी थी। उच्च न्यायालय द्वारा तीनों आरोपियों को जमानत दिए जाने के बाद, उन्होंने दोपहर 1 बजे के रूप में अपनी तत्काल रिहाई की मांग करते हुए निचली अदालत का रुख किया। हाईकोर्ट ने समय सीमा तय की थी। उन्हें 50-50 हजार रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानत पर रिहा करने का भी आदेश दिया गया है।
कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश रविंदर बेदी ने कहा कि अदालत गुरुवार को सुबह 11 बजे आदेश पारित करेगी।
अदालत ने मंगलवार को आरोपियों के पते और जमानत के सत्यापन के अभाव में उनकी तत्काल रिहाई के आदेश को टाल दिया था। इसने मामले को बुधवार के लिए पोस्ट करते हुए दिल्ली पुलिस से सत्यापन रिपोर्ट मांगी थी।
बुधवार को जांच अधिकारी ने आरोपियों और उनके जमानतदारों के पते का सत्यापन करने के लिए अदालत से और समय मांगा। आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि जांच अधिकारी को समय दिए जाने के बावजूद सत्यापन रिपोर्ट दायर नहीं की गई थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया।
तीन आरोपियों को जमानत देते हुए, जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और अनूप जयराम भंभानी की एक उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा, हम यह व्यक्त करने के लिए विवश हैं कि ऐसा लगता है कि असंतोष को दबाने की चिंता में, विरोध करने के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा कुछ धुंधली होती दिख रही है। अगर इस मानसिकता को बल मिलता है, तो यह लोकतंत्र के लिए एक दुखद दिन होगा।
इस बीच, दिल्ली पुलिस ने आदेश पर रोक लगाने की मांग करते हुए तीनों कार्यकर्ताओं को दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की है। (आईएएनएस)
ढाका, 17 जून| आतंकवादी संगठन हेफजत-ए-इस्लाम्स ढाका सिटी चैप्टर के पूर्व संगठन सचिव अजहरुल इस्लाम को राष्ट्रीय राजधानी के जात्राबाड़ी इलाके से गिरफ्तार किया गया है। आईएएनएस से खबर की पुष्टि करते हुए, ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अतिरिक्त उपायुक्त (मीडिया और जनसंपर्क) इफ्तेखारुल इस्लाम ने कहा कि अजहरुल ढाका के शापला चटोर इलाके में मई 2013 के नरसंहार सहित कई मामलों में आरोपी है।
इस साल 26 मार्च से 4 अप्रैल तक, हेफाजत आतंकवादियों ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ढाका यात्रा के खिलाफ कई हिंसक विरोध प्रदर्शन किए।
इस संबंध में अकेले ढाका में 17 मामले दर्ज किए गए हैं। (आईएएनएस)
विशाखापत्तनम, 17 जून| आंध्र प्रदेश पुलिस ने बुधवार सुबह विशाखापत्तनम जिले के तीगलामेट्टा वन क्षेत्र में छह नक्सलियों- तीन पुरुषों और तीन महिलाओं को मार गिराया। एक पुलिस अधिकारी ने कहा, विशाखापत्तनम जिले के मम्पा थाना क्षेत्र के तीगलामेट्टा वन क्षेत्र में नक्सली गतिविधियों की विश्वसनीय सूचना मिलने पर चरमपंथियों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान शुरू किया गया।
पुलिस और माओवादियों के बीच सुबह करीब 10 बजे गोलीबारी हुई, जिसमें छह माओवादी मारे गए।
पुलिस ने मारे गए नक्सलियों की पहचान अर्जुन (डीसीएम), अशोक (डीसीएम), संतू नचिका (एसीएम), ललिता (पीएम), पाइक (पीएम) के रूप में की है, जबकि एक महिला माओवादी की पहचान नहीं हो सकी है।
अधिकारी ने कहा, ऐसा लगता है कि कुछ घायल माओवादी बच गए हैं, जबकि पुलिस ने उनसे सर्वोत्तम संभव चिकित्सा उपचार का आश्वासन देकर आत्मसमर्पण करने की अपील की है।
विशाखापत्तनम जिले के पुलिस अधीक्षक बी. कृष्ण राव ने भी माओवादियों से आत्मसमर्पण करने की अपील की और मौजूदा नीति के अनुसार सभी लाभों का वादा किया।
यह मुठभेड़ मम्पा थाना क्षेत्र के कोयुरु इलाके के आसपास हुई और तलाशी अभियान जारी है।
आंध्र प्रदेश के पुलिस महानिदेशक, गौतम सवांग ने कहा कि पुलिस ने विश्वसनीय इनपुट मिलने के बाद इलाके में तलाशी अभियान शुरू किया था।
पुलिस ने अभियान स्थल से एक एके-47 राइफल, एक सेल्फ लोडिंग राइफल, एक कार्बाइन, साहित्य, किट बैग और विस्फोटक सामग्री बरामद की है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 जून| भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने स्वदेशी कोवैक्सिन को लेकर कांग्रेस पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया है। भाजपा ने इसे महापाप बताते हुए कहा है कि कांग्रेस संदेह पैदा कर वैक्सीन को बर्बाद करना चाहती है। भाजपा ने इस बात को खारिज किया कि कोवैक्सीन के निर्माण में गाय के बछड़े का सीरम होता है। भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा, "आज कांग्रेस ने महापाप किया है, क्योंकि जिस प्रकार का भ्रम भारत में निर्मित कोवैक्सीन को लेकर आज कांग्रेस पार्टी ने सोशल मीडिया और प्रेस कांफ्रेंस करके उनके प्रवक्ता पवन खेड़ा ने फैलाया है, वो महापाप है।
संबित पात्रा ने कहा कि, "अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवन खेड़ा और कांग्रेस के सोशल मीडिया के नेशनल कन्वीनर गौरव पांधी ने आक्षेप लगाया है कि कोवैक्सीन में गाय के बछड़े का सीरम होता है। सोशल मीडिया पर यहां तक कहा गया कि गाय और बछड़े को मारकर ये वैक्सीन तैयार किया गया है। स्वास्थ्य मंत्रालय और वैज्ञानिकों ने साफ तौर कहा है कि कोवैक्सीन में किसी भी प्रकार का गाय या बछड़े का सीरम नहीं मिला हुआ है। यह वैक्सीन पूर्णत: सेफ है और इसमें किसी भी प्रकार का अपभ्रंश नहीं है।"
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा, "कांग्रेस 2 बातों के लिए याद रखी जाएगी, वैक्सीन के बारे में संदेह उत्पन्न करने के लिए और वैक्सीन को बर्बाद करने के लिए। आज हम सोनिया जी, राहुल जी और प्रियंका गांधी से पूछना चाहते हैं कि आप तीनों बताएं कि आपने वैक्सीन का अपना पहला और दूसरा डोज कब लिया या लिया ही नही। गांधी परिवार को कोवैक्सीन पर विश्वास है, या नहीं। ये सवाल केवल भाजपा का नहीं, बल्कि पूरे हिंदुस्तान का है।"
संबित पात्रा ने कहा कि आज हम सोनिया , राहुल और प्रियंका गांधी से पूछना चाहते हैं कि आप तीनों बताएं कि आपने वैक्सीन का अपना पहला और दुसरा डोज कब लिया या लिया ही नही? गांधी परिवार को कोवैक्सीन पर विश्वास है, या नहीं। ये सवाल केवल भाजपा का नहीं, बल्कि पूरे हिंदुस्तान का है। (आईएएनएस)
एक सर्वे के मुताबिक शहरी भारतीयों के लिए गरीबी उन्मूलन, भुखमरी हटाना और लैंगिक समानता हासिल करना 'सतत विकास लक्ष्यों' (एसडीजी) के बीच प्रमुख प्राथमिकताएं हैं.
विश्व आर्थिक मंच-मार्केट रिसर्च कंपनी इपसोस ने शहरी भारतीयों के बीच यह सर्वे कराया है. जिसमें यह तथ्य सामने आए हैं. इपसोस के एक बयान में कहा गया है कि सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि शहरी भारतीयों के लिए अच्छा स्वास्थ्य और भलाई सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक है. इसके अलावा 2021 के लिए वैश्विक नागरिकों की शीर्ष तीन एसडीजी प्राथमिकताएं हैं, भुखमरी हटाना, गरीबी हटाना, बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण.
इपसोस इंडिया के सीईओ अमित अदारकर के मुताबिक, "महामारी और लॉकडाउन ने बड़े पैमाने पर आजीविका को प्रभावित किया है और शीर्ष तीन लक्ष्य केवल यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि लोगों को खिलाना और आर्थिक रूप से समर्थित करना है और उपचार और टीकाकरण प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को आगे बढ़ाना है."
उन्होंने कहा कि सरकार ने भी इन तीन क्षेत्रों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है, जब तक कि वायरस पर नियंत्रण नहीं हो जाता.
संयुक्त राष्ट्र ने कुल 17 सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) रखे हैं जिन्हें 2030 तक हासिल किया जाना है. दूसरे देशों के साथ भारत ने भी 2015 में इन एसडीजी को हासिल करने का संकल्प लिया है. सतत विकास लक्ष्यों के तहत दूसरा लक्ष्य अगले 10 सालों में सभी देशों से भूख और हर प्रकार का कुपोषण खत्म करना है.
अदारकर कहते हैं, "हालांकि भारत जैसे देश के लिए, जो बहुसंख्यक गरीबी में डूबा हैं, ये दीर्घकालिक लक्ष्य हैं. लिंग समानता की भी एक प्रमुख क्षेत्र के रूप में पहचान की गई है. महामारी के बाद महिलाओं पर अधिक दबाव है. इसलिए, भारत में लैंगिक समानता अधिक प्रमुख हो गई है."
संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों की ओर से 2015 में 2030 एजेंडा के रूप में अपनाए गए 17 सतत विकास लक्ष्यों में पिछले साल भारत 115वें स्थान पर था. ताजा रिपोर्ट में यह दो पायदान नीचे आया है. वहीं अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक 2020 के दौरान भारत की बेरोजगारी दर बढ़ कर 7.11 फीसदी पर पहुंच गई. यह पिछले तीन दशक का सर्वोच्च स्तर है. (dw.com)
एए/वीके (रॉयटर्स)