राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 7 नवंबर| रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर का इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) जीतने का सपना एक बार फिर टूट गया। लीग के 13वें सीजन के एलिमिनटेर मुकाबले में सनराइजर्स हैदराबाद ने शुक्रवार को बेंगलोर को छह विकेट से हरा लीग से बाहर कर दिया। आईपीएल का सफर खत्म होने के बाद बेंगलोर के कप्तान विराट कोहली ने टीम का साथ देने के लिए प्रशंसकों का शुक्रिया अदा किया है।
कोहली ने ट्वीट करते हुए लिखा, "आप उतार-चढ़ाव भरे सफर में एक साथ रहे। एक ईकाई के तौर पर यह शानदार सफर रहा। हां, चीजें हमारे पक्ष में नहीं रही, लेकिन मुझे पूरी टीम पर गर्व है। हमारे सभी प्रशंसकों का हमारा समर्थन करने के लिए शुक्रिया। आपका प्यार हमें मजबूत बनाता है। जल्दी मिलेंगे।"
लीग के 13 साल के इतिहास में बेंगलोर एक बार भी खिताब नहीं जीत सकी है। वह तीन बार फाइनल में पहुंची है, लेकिन ट्रॉफी से दूर ही रही। आखिरी बार 2016 में उसने विराट की कप्तानी में ही फाइनल खेला था लेकिन हैदराबाद ने उसे खिताब जीतने नहीं दिया था। (आईएएनएस)
बेंगलुरु, 7 नवंबर| बेंगलुरु सेंट्रल क्राइम ब्रांच (सीसीबी) ने शुक्रवार को 2 ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया है जो कथित तौर पर इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) क्रिकेट मैचों में सट्टेबाजी करने का रैकेट चला रहे थे। सीसीबी पुलिस ने उनके पास से 10.05 लाख रुपये नकद और 2 मोबाइल फोन बरामद किए। शुक्रवार की रात को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच आईपीएल मैच के लिए संभावित ग्राहकों के साथ सट्टेबाजी के सौदे करते हुए सीसीबी ने इन्हें पकड़ा था। पुलिस के अनुसार, 29 साल का आकाश जैन और 34 साल का नवीन दानी यहां के स्थानीय निवासी हैं।
सीसीबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "हमें एक टिप मिली कि यह जोड़ी गुरुवार की रात को मुंबई इंडियंस और दिल्ली कैपिटल्स के बीच आईपीएल मैच पर सट्टेबाजी कर रही थी। इसके बाद हमने यह कार्रवाई की।"
पुलिस के अनुसार, आरोपी संभावित ग्राहकों के साथ डायमंड एक्सचेंज और लोटस जैसी वेबसाइटों का उपयोग करके सट्टेबाजी की शर्तें तय करते थे। अधिकारी ने कहा, "इन वेबसाइटों को सट्टेबाजी का अनुपात देने के लिए जाना जाता है। इन्हीं वेबसाइटों से मिले आंकड़ों के आधार पर दोनों अपना रैकेट चलाते थे।"
पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है और जांच जारी है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 नवंबर| दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) ने एक मामला दर्ज किया है और दो फर्मों के खिलाफ जांच शुरू की है, जिसमें नयति हेल्थकेयर शामिल है। नयति हेल्थकेयर की चेयरपर्सन और प्रमोटर नीरा राडिया हैं, जो 2जी मामला और विवादित टेपकांड को लेकर सुर्खियों में रह चुकी हैं। गुरुग्राम की हेल्थ फर्म के साथ-साथ, ईओडब्ल्यू की एफआईआर में दर्ज एक अन्य कंपनी नारायणी इन्वेस्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड पर 300 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया है जो एक ऋण के माध्यम से प्राप्त की गई थी।
नयति और नारायणी पर गुरुग्राम और विमहंस हॉस्पिटल दिल्ली के प्रिमामेद हॉस्पिटल परियोजनाओं में 2018-2020 के बीच 312.50 करोड़ रुपये की राशि के गबन और जालसाजी का आरोप लगाया गया है।
यह शिकायत दिल्ली के आर्थोपेडिक सर्जन राजीव के. शर्मा ने दायर की थी।
सूत्रों के अनुसार, फर्मों ने विभिन्न जानेमाने ठेकेदारों के नाम पर फर्जी खाते खोलकर और इन खातों में सीधे ऋण राशि हस्तांतरित कर बैंक ऋण से करोड़ों का गबन किया।
शर्मा ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि 400 करोड़ रुपये से अधिक के ऋण और इक्विटी मनी को निकाल लिया गया है, जबकि गुरुग्राम अस्पताल की इमारत की हालत 'पहले से भी बदतर' हो गई है।
मामले में जांच जारी है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 7 नवंबर | घोड़े और गैंडे जैसे खुरों वाले जानवर एक अजीब किस्म के भेड़ के आकार वाले जानवरों की सुअर और कुत्ते के बीच क्रॉस ब्रीडिंग से विकसित हुए हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि ऐसे जानवर 5.5 करोड़ साल पहले भारत में रहते थे। गुजरात में खानों की खोज करने वाले जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों ने कैम्बेथेरियम नामक अजीब प्राणी के अवशेषों की खोज की है। कैम्बेथेरियम, पेरिसोडैक्टिल्स (स्तनधारियों का समूह जिसमें घोड़े, गैंडे, और टेपीर शामिल हैं) का एक विलुप्त चचेरा भाई है जो लगभग 5.5 करोड़ साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप में रहते थे।
जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में एमेरिटस प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक केन रोज ने कहा कि 2001 में की गई राजस्थान की पहली यात्रा में बहुत कम सफलता मिली थी। उन्होंने कहा, "हमें उस यात्रा में केवल मछलियों की कुछ हड्डियां मिलीं लेकिन बाद के सालों में हमारे भारतीय सहयोगी राजेंद्र राणा ने दक्षिण में लिग्नाइट खानों की खोज जारी रखी और फिर गुजरात में वस्तान खान पहुंचे। यह नई खदान हमारे लिए बहुत अधिक आशाजनक साबित हुई।"
अपने पेपर में उन्होंने आगे कहा, "2004 में हमारी टीम वापस आयी और बेल्जियम के हमारे सहयोगी थिएरी स्मिथ को पहला स्तनपायी जीवाश्म मिला, जिसमें कैम्बेथेरियम भी शामिल था।" हमारी टीम फिर से गुजरात की खदानों में पहुंची और कैम्बेथेरियम की कई जीवाश्म हड्डियों को इकट्ठा किया।
शोधकर्ताओं ने कहा कि संभवत: यह जानवर उस समय विकसित हुआ, जब भारत एक द्वीप था। रोज ने कहा, "इससे पहले 1990 में क्राउज एंड मास ने भी कहा था कि घोड़ों की उत्पत्ति भारत में हुई थी।"
2005 में पहली बार कैम्बेथेरियम का वर्णन विलुप्त समूह के सबसे प्रमुख सदस्य के रूप में किया गया जो पेरिसोडैक्टिल के विकास से ठीक पहले खत्म हो गया था।(आईएएनएस)
भुवनेश्वर, 7 नवंबर| ओडिशा में कोरोनावायरसके कुल मामलों की संख्या तीन लाख के पार पहुंच चुकी है जबकि राज्य में इस बीमारी से 1,400 से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। स्वास्थ्य विभाग ने शनिवार को यह जानकारी दी। राज्य में पिछले 24 घंटों में 1,372 नए मामले सामने आए हैं जिससे कुल मामलों की संख्या बढ़कर 3,00,140 हो गई है।
वहीं, पिछले 24 घंटों में घातक वायरस से 174 मरीजों की मौत हुई है जिससे मृतकों की संख्या बढ़कर 1,410 हो गई।
खोर्धा, कटक, मयूरभंज, संबलपुर, बरगढ़, पुरी, बालासोर, कोरापुट, कालाहांडी, केंद्रपाड़ा और भद्रक जिलों में मौतें हुई हैं।
विभाग ने कहा कि कुल ताजा मामलों में से, 796 विभिन्न क्वारंटीन सेंटरों से रिपोर्ट किए गए हैं जबकि शेष 576 स्थानीय संपर्क के मामले हैं।
खोर्धा में सबसे अधिक 145 ताजा मामले दर्ज किए गए, इसके बाद कटक (121) और नुआपड़ा (108) हैं।
राज्य में 13,503 सक्रिय मामले हैं, जबकि 2,85,174 मरीज अब तक ठीक हो चुके हैं। (आईएएनएस)
चंडीगढ़, 7 नवंबर| हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर सरकार ने 24 अक्टूबर को विवादास्पद डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को एक दिन की पैरोल दी थी, जो अपने दो शिष्याओं के साथ दुष्कर्म करने के मामले में 20 साल की जेल की सजा काट रहा है और जिसे अदालतों द्वारा कई बार जमानत देने से मना किया जा चुका है। सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि राम रहीम को उसकी पत्नी हरजीत कौर की याचिका पर पैरोल दी गई थी क्योंकि दिल की बीमारी से जूझ रही उसकी 85 वर्षीय मां नसीब कौर गंभीर रूप से बीमार थी।
डेरा प्रमुख ने गुरुग्राम में अस्पताल में भर्ती अपनी मां से मुलाकात की थी। अधिकारियों ने शनिवार को इस बात की पुष्टि की। पुलिस के एक अधिकारी ने कहा कि उसे गुरुग्राम के अस्पताल में कड़ी सुरक्षा के बीच ले जाया गया, जहां वह दिन में रुका था और शाम को फिर उसे जेल ले आया गया।
52 वर्षीय राम रहीम इस समय राज्य की राजधानी चंडीगढ़ से 250 किलोमीटर दूर रोहतक में उच्च सुरक्षा वाली सुनारिया जेल में बंद है।
उनकी जमानत याचिका कई बार न्यायालयों द्वारा खारिज कर दी गई है। 24 अप्रैल को अपनी बीमार मां से मिलने के लिए उसका तीन सप्ताह का पैरोल दो वजहों से खारिज कर दिया गया था। पहली वजह थी कि पैरोल उसकी रिहाई और सरेंडर के समय राज्य में कानून और व्यवस्था की समस्याएं पैदा कर सकता था।
दूसरा कारण यह रहा कि उसकी मां की जांच करने वाले डॉक्टरों के पैनल की एक रिपोर्ट में कहा गया कि वह दिल की बीमारी से पीड़ित थी, लेकिन गंभीर हालत में नहीं थी।
जून 2019 में राम रहीम ने पैरोल की अर्जी वापस ले ली थी जब भाजपा विपक्षी दलों द्वारा उसका पक्ष लेने के आरोपों पर चिंतित हो गई थी। (आईएएनएस)
लखनऊ , 7 नवम्बर| बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने पराली जलाने के मामलों में किसानों के साथ हो रही अभद्रता को लेकर सरकार पर निशाना साधा और कहा कि यूपी में फैले प्रदूषण को लेकर खासकर यहां पराली जलाने की आड़ में किसानों के साथ हो रही जुल्म-ज्यादती अति निंदनीय है। मायावती ने शनिवार को ट्विटर के माध्यम से लिखा कि, यूपी में फैले प्रदूषण को लेकर खासकर यहां पराली जलाने की आड़ में किसानों के साथ हो रही जुल्म-ज्यादती अति निंदनीय। जबकि इस मामले में सरकार को कोई भी कार्यवाही करने से पहले, उन्हें जागरूक व जरूरी सहायता देने की भी जरूरत। बसपा की यह मांग।
ज्ञात हो कि उत्तर प्रदेश में पराली जलाने को लेकर तमाम जिला प्रशासन द्वारा किसानों के खिलाफ तमाम कार्रवाई की बातें सामने आ रही है। कई को जेल भी भेजा गया है। इस कार्रवाई के दौरान कई जगह किसानों और पुलिस प्रशासन के अफसरों में झड़प की खबरें भी आई हैं। कई जगह किसानों ने आंदोलन की चेतावनी तक दे दी है। उधर विपक्षी दल सरकार पर निशाना साध रहे हैं। हालांकि किसानों पर हो रहे दुर्व्यहार को लेकर मुख्यमंत्री योगी काफी सख्त हैं। उन्होंने किसानों के साथ कोई दुर्व्यवहार या उत्पीड़न नहीं किये जाने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। (आईएएनएस)
भारत सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत इस वक़्त 22 कैबिनेट मंत्री है. 4 नबंबर को अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, रसायन एवं उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा. सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के अलावा हर कैबिनेट मंत्री ने अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ ट्वीट या रिट्वीट किया है.
कई ऐसे ट्वीट भी सामने आए जिनमें अर्नब को समर्थन देने के साथ-साथ कांग्रेस और शिवसेना को निशाना बनाया गया है. इससे पहले किसी पत्रकार की गिरफ़्तारी को लेकर इतने बड़े पैमाने पर भारत के केंद्रीय मंत्रियों की फ़ौज ने ऐसी एकजुटता दिखाई हो, ऐसा उदाहरण पिछले छह साल में कभी देखने को नहीं मिला.
अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री और पार्टी के पदाधिकारी भी बोले. इनमें उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी शामिल थे और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी.
जब पार्टी का शीर्ष नेतृत्व साथ हो तो कार्यकर्ता कैसे पीछे रहते. कई जगह अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ वो सड़कों पर भी उतरे.
दूसरी तरफ़ पूरे मामले पर शिवसेना, महाराष्ट्र पुलिस के साथ खड़ी दिखी. आख़िर हो भी क्यों न. प्रदेश में मुख्यमंत्री भी तो शिवसेना से ही हैं.
लेकिन अर्नब की गिरफ़्तारी के समर्थन में तीन लोगों की चुप्पी भी सवालों के घेरे में हैं. न तो कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी बोलीं न ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी. इतना ही नहीं एनसीपी नेता शरद पवार की तरफ़ से भी कोई बयान नहीं आया.
जहाँ केंद्रीय नेताओं के ट्वीट पर लोग सवाल उठा रहे हैं वहीं इन तीन नेताओं की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है.
ऐसा इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र की राजनीति में- शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस और बीजेपी- इन चारों ही पार्टियों की छवि दाँव पर है.
शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिल कर सरकार बनाई है. भले ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवसेना से हों लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति के जानकार हमेशा कहते हैं, इस सरकार का 'रिमोर्ट कंट्रोल' एनसीपी नेता शरद पवार के हाथ में है.
इसलिए उनके बयान का सबको इंतजार है.
दूसरी तरफ़ महाराष्ट्र सरकार और अर्नब गोस्वामी के बीच का विवाद जिस टीवी चर्चा से शुरू हुआ, उसमें अर्नब गोस्वामी पर आरोप है कि उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए अभ्रद भाषा का प्रयोग किया था. इसलिए लोगों को सोनिया गांधी और राहुल गांधी के बयान का इंतजार है.
इन तीनों के अलावा राज्य में बीजेपी भी है, जिसके नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फ़डणवीस 2019 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए बैठे थे. लेकिन शिवसेना ने सपना तोड़ दिया.
फिर भी जोड़-तोड़ कर शपथ ग्रहण भी कर लिया था, लेकिन आगे बात नहीं बनी. इसके जख़्म आज तक हरे हैं.
यही वजह है कि अर्नब की कहानी हो या फिर कंगना रनौत की कहानी- जहाँ भी बात शिवसेना से जुड़ी होती है, हर मामले में बीजेपी ज़रूर कूद पड़ती है.
ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है कि एक पत्रकार की गिरफ़्तारी को लेकर शिवसेना और बीजेपी आमने सामने क्यों है? क्या एनसीपी और कांग्रेस का भी इसमें कोई हाथ है? क्या अर्नब गोस्वामी का पूरे प्रकरण में इस्तेमाल हो रहा है या वो ख़ुद इसमें एक पक्ष बन गए हैं?
बीजेपी कर रही है अर्नब का इस्तेमाल?
महाराष्ट्र की वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन कहती हैं, "जाहिर सी बात है इस पूरे मामले में राजनीति हो रही है. अर्नब का बीजेपी इस्तेमाल कर रही है. अर्नब की पत्रकारिता देख कर कोई भी अंदाजा लगा सकता है कि वो बीजेपी के समर्थन की पत्रकारिता करते हैं. उनका जर्नलिज़्म प्रोपगैंडा जर्नलिज़्म है. बीजेपी के उनके समर्थन में उतरने से ये बात और साफ़ हो जाती है."
वे कहती हैं, "यही वजह है कि अब तक बीजेपी के निशाने पर शिवसेना रहती थी, इसलिए उसको अर्नब गोस्वामी ने अपनी पत्रकारिता में टारगेट किया. फिर चाहे वो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए अभ्रद भाषा का इस्तेमाल हो या उनके बेटे आदित्य ठाकरे या फिर मुंबई के पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह के लिए. अगर आप किसी को रात-दिन टारगेट करेंगे तो ज़ाहिर सी बात है एक दिन आप भी उनके निशाने पर आएँगे ही. बात बस मौके की होती है."
सुजाता आनंदन कहती हैं, "2018 के अन्वय नाइक मामले की दोबारा जाँच का मामला ऐसा ही था. अर्नब ने सुशांत सिंह राजपूत के मामले में बिना सबूतों के रिया चक्रवर्ती को अपराधी घोषित कर दिया था. अब अर्नब के ख़िलाफ़ तो पूरा सुसाइड नोट है. परिवार वालों के बयान हैं. रिया मामले में जो सही है वो अर्नब गोस्वामी के मामले में भी सही होना चाहिए. दोनों मौत का मामला है, दोनों मामलों में पैमाने अलग-अलग नहीं हो सकते."
दरअसल ये सच है कि अन्वय नाइक मामले की दोबारा जाँच के लिए महाराष्ट्र पुलिस ने कोर्ट में अर्जी लगाई थी, लेकिन पुलिस को जाँच दोबारा शुरू करने के लिए कोर्ट की तरफ़ से इजाज़त नहीं मिली थी.
ये भी सच है कि 2018 में शिवसेना, बीजेपी के साथ महाराष्ट्र में सत्ता में थी. उसी दौरान अन्वय नाइक की मौत का मामला सामने आया था.
आखिर उस वक़्त जब पुलिस ने केस बंद किया था, तब शिवसेना ने इस मामले को क्यों नहीं उठाया?
इस सवाल के जवाब में सुजाता कहती हैं, "बीजेपी के साथ सत्ता में रहते हुए शिवसेना के पास कितने अधिकार थे, ये किसी से छुपा नहीं है. शिवसेना के हाथ में न तो राज्य की पुलिस थी, न तो गृह मंत्रालय था, न राजस्व विभाग ही था. उद्धव चुनाव से पहले ही समझ गए कि बीजेपी अपने सहयोगी पार्टियों का क्या हाल कर रही है. यही वजह है कि उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ा और एनसीपी और कांग्रेस से नाता जोड़ा."
सुजाता साफ़ शब्दों में कहती हैं कि ये शिवसेना और बीजेपी के बीच की राजनीतिक लड़ाई है, जिसके बीच में अर्नब गोस्वामी हैं, जो बीजेपी के हाथों में खेल रहे हैं.
उनको नहीं लगता कि इस पूरे मामले में कांग्रेस का कोई रोल है. उनका मानना है कि महाराष्ट्र सरकार में अशोक चव्हाण को छोड़ कर कोई बड़ा नेता कैबिनेट में नहीं है.
हाँ, वो पूरे मामले में एनसीपी का रोल मानती हैं.
उनका कहना है कि एनसीपी के बड़े नेता सरकार में शामिल है. ये भी सच है कि गिरफ़्तारी के समर्थन में पहला बयान गृह मंत्री अनिल देशमुख का ही आया था, जो एनसीपी कोटे से सरकार में गृह मंत्री हैं.
पूरे मामले में कांग्रेस की भूमिका
लेकिन वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय मानते हैं कि उद्धव ठाकरे दूसरे के इशारे पर ये काम कर रहे हैं. उन्होंने सीधे कांग्रेस का नाम नहीं लिया लेकिन इशारों में अपनी बात कह गए.
बीबीसी से फ़ोन पर बातचीत के दौरान उन्होंने कहा, "भारतीय राजनीति में अपराधिकरण का बीज सबसे पहले कांग्रेस ने बोया. अपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों को पहले काउंस्लर बनवाया, मुख्यमंत्री बनवाया, फिर विधानसभा और संसद भवन तक पहुँचाया. ये सब इमरजेंसी की देन है. अगर ये सब चलता रहा तो नहीं मालूम महाराष्ट्र की राजनीति किस तरफ़ जाएगी.
उद्धव ठाकरे जो कर रहे हैं वो राजनीतिक बदले की भावना से नहीं बल्कि निजी बदले की भावना से कर रहे हैं. उनके इस निजी बदले की भावना का इस्तेमाल दूसरी पार्टी कर रही है. वो पार्टी उन्हें कठपुतली की तरह नचा रही है. वो पार्टी कौन है ये सब लोग जानते हैं."
राम बहादुर राय इस पूरे मामले की जड़ में सुशांत सिंह राजपूत की पूर्व मैनेजर दिशा सालियान की मौत पर रिपब्लिक टीवी के कार्यक्रम को मानते हैं. दिशा सालियान ने सुशात सिंह राजपूत की मौत से कुछ दिन पहले ही 8 जून 2020 को आत्महत्या की थी.
वो कहते हैं, "इस मामले पर अपने एक शो में अर्नब गोस्वामी ने इशारे में आदित्य ठाकरे पर निशाना साधा था. अर्नब ने उनके लिए 'बेबी पेंगुइन' शब्द का इस्तेमाल किया था. उद्धव ठाकरे उसी बात को गांठ बाँध कर बैठे हैं."
हाल में हुई दशहरा की रैली में भी उद्धव ठाकरे ने कहा था कि उनको और आदित्य ठाकरे को बिना सबूत के निशाना बनाया जा रहा है.
राम बहादुर राय आगे कहते हैं, उद्धव ठाकरे जो कर रहे हैं, उससे उनकी अयोग्यता, बदले की कार्रवाई को साबित करता है. लेकिन इसके पीछे कोई और भी है.
शिवसेना-बीजेपी कभी पास, अब दूर
राम बहादुर राय को बीजेपी के करीबी पत्रकारों में गिना जाता है. शिवसेना और बीजेपी के बीच पहली बार गठबंधन से लेकर 2019 में दोनों के अलग होने को उन्होंने क़रीब से देखा है.
दोनों पार्टियों के साथ आने की वजह पर वो एक किस्सा सुनाते हैं. 80 के दशक के वाक्ये को याद करते हुए उन्होंने कहा, "1989 में जब शिवसेना और बीजेपी का पहली बार गठबंधन हुआ था, तो मुझसे महाराष्ट्र के कई पत्रकारों ने कहा था कि ये ठीक नहीं हुआ. अब शिवसेना की इमेज की काली छाया बीजेपी पर पड़ेगी. प्रमोद महाजन मेरे मित्र थे. मैं उनके पास गया और कहा कि ये समझौता बहुत ख़राब है. इससे बीजेपी की साख़ पर धब्बा लगेगा. तो प्रमोद महाजन ने मुझे समझौते के तर्क दिए. तर्क ये था कि अयोध्या आंदोलन में शिवसेना बीजेपी से साथ खड़ी थी.
आज शिवसेना के कार्यकर्ता जो पहले करते थे, वही काम वहाँ की पुलिस से सरकार करवा रही है."
2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के दौर बीजेपी और शिवसेना का ये गठबंधन टूट गया.
गठबंधन का टूटना और बीजेपी का सत्ता में ना आना ही महाराष्ट्र की राजनीति का वो अहम पड़ाव है, जो बीजेपी साल भर बाद भी भूल नहीं पाई है. और अब वो जख़्म नासूर बन गया है.
पूरे मामले में इसलिए दोनों पार्टियाँ आमने सामने हैं.(bbc)
जम्मू,7 नवंबर | जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने शुक्रवार को केंद्र सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने सरकार के जम्मू-कश्मीर के हालात सामान्य होने के दावे पर सवाल खड़े किए। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) नेता ने यहां मीडिया के सामने सवाल खड़े करते हुए कहा, "अगर कश्मीर में स्थिति सामान्य है, तो यहां असंतुष्ट आवाज क्यों उठ रही हैं। उन्होंने हमारा झंडा हटा दिया है, उन्होंने हमारी गरिमा को छीन लिया है।"
उन्होंने दावा किया कि जब भी उनके पार्टी समर्थकों ने घाटी में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने की कोशिश की, पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया। उन्होंने सरकार पर लोकतांत्रिक विचारों को रोकने का आरोप लगाया।
महबूबा ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि जिस तरह की स्थिति है, उसमें यह कहा जा सकता है कि यह बाबासाहेब भीवराव अंबेडकर द्वारा दिया गया संविधान नहीं है, जिसकी हम ईमानदारी एवं निष्ठा की प्रतिज्ञा लेते हैं।
उन्होंने कहा, "जम्मू-कश्मीर में वर्तमान स्थिति को देखते हुए, हमारे लड़कों और लड़कियों के लिए बाहर से उन लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करना बहुत मुश्किल है। अगर हरियाणा 70 प्रतिशत नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित कर सकता है, तो हमारे युवाओं के लिए नौकरी में आरक्षण क्यों नहीं हो सकता है?"
महबूबा ने सवाल किया कि जब दिल्ली चीन के साथ आठवें दौर की बातचीत में उलझी हुई थी, जिसने हमारी जमीन के 1,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, तो केंद्र को डोगरा और कश्मीरियों से विभिन्न मुद्दों पर बात करने में आखिर क्या समस्या है।(आईएएनएस)
पटना, 7 नवंबर | बिहार विधानसभा चुनाव के तीसरे और अंतिम चरण के तहत शनिवार को सुबह सात बजे से 15 जिलों के 78 विधानसभा क्षेत्रों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मतदान शुरू हो गया। मतदान को लेकर सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए गए हैं। अंतिम चरण में राज्य के 78 विधानसभा क्षेत्रों में वोट डाले जा रहे हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार, इस चरण में 2.35 करोड से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे, जिसके लिए 33,782 मतदान केंद्र बनाए गए हैं।
चुनाव आयोग के मुताबिक, इस चरण में 1,204 प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला होना है, इनमें से 1094 पुरूष तथा 110 महिला शामिल है। सबसे अधिक 31 प्रत्याशी गायघाट से हैं जबकि सबसे कम नौ प्रत्याशी ढाका, त्रिवेणीगंज, जोकीहाट तथा बहादुरगंज से हैं।
इस चरण में सामान्य विधानसभा क्षेत्रों में सुबह सात बजे से शाम छह बजे तक जबकि चार विधानसभा क्षेत्रों में सुबह सात बजे से शाम चार बजे तक ही मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। सभी मतदान केन्द्रों पर सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है। सीमांचल क्षेत्रों में सुरक्षा के और पुख्ता प्रबंध किए गए हैं।
बिहार में विधानसभा की 243 सीटों के लिए तीन चरणों में चुनाव होना है। इसके तहत प्रथम चरण के लिए 28 अक्टूबर को 71 सीटों पर तथा 3 नवंबर को 94 सीटों पर मतदान हो चुका है। वोटों की गिनती 10 नवंबर को होगी।(आईएएनएस)
देखें किस-किस दिग्गज का भविष्य आज दांव पर है !
बिहार में सात नवंबर को तीसरे और आख़िरी चरण के लिए वोटिंग शुरू हो गई है. आज 16 ज़िलों की 78 सीटों पर मतदान है जिसमें मुख्य तौर पर सीमांचल और मिथिलांचल के इलाक़े हैं.
बिहार के लगभग आधे मुसलमान इस तीसरे चरण के विधानसभा क्षेत्रों में रहते हैं.
लेकिन ये चरण इसलिए भी ख़ास है क्योंकि यहां की कई सीटों पर मुक़ाबला दो मुख्य पर्टियों के बीच या त्रिकोणीय नहीं बल्कि बहुकोणीय है.
तीसरे चरण में उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी, असदद्दुीन ओवैसी की एआईएमआईएम, मायावती की बीएसपी और पूर्व सांसद पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी भी मुक़ाबले में है.
साल 2015 में इन 78 सीटों में से 54 सीटें जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस गठबंधन को मिली थी. वहीं एनडीए का हिस्सा थे बीजेपी, एलजेपी, आरएलएसपी और जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवाम पार्टी जो 24 सीटें जीत पाए थे. लेकिन इसमें सबसे ज़्यादा 19 सीटें बीजेपी को मिली थी.
इस बार महागठबंधन में जेडीयू नहीं है और एलजेपी एनडीए के साथ नहीं लड़ रही.
तीसरे चरण के लिए बीजेपी ने 35 उम्मीदवार और जेडीयू ने 37 उम्मीदवार खड़े किए हैं. साथ ही मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के भी पाँच उम्मीदवार अपनी किस्मत आज़मा रहे हैं.
वहीं राजद ने 46 और कांग्रेस ने 25 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं.
नीतीश सरकार की कैबिनेट के 12 मंत्री तीसरे चरण के चुनाव में उम्मीदवार के तौर पर उतरे हैं. सरायरंजन से विधानसभा स्पीकर रहे विजय कुमार चौधरी, सुपौल से बिजेंद्र प्रसाद यादव, प्रमोद कुमार मोतिहारी से लड़ रहे हैं.
वहीं बिहारीगंज से पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव की बेटी सुभाषिनी यादव कांग्रेस की टिकट पर लड़ रही हैं.
तीसरे चरण में सीमांचल इलाक़ा केंद्र में रहेगा जहां राजद के पारंपरिक वोटर काफ़ी संख्या में है यानी यादव और मुसलमान. लेकिन इस बार कुशवाहा, ओवैसी और पप्पू यादव के गठबंधन ने इस इलाक़े में राजद के लिए थोड़ी मुश्किल खड़ी कर दी है.
2010 के विधानसभा चुनावों में जेडीयू और बीजेपी ने मिलकर 243 में से 206 सीटें जीती थी लेकिन सीमांचल के किशनगंज में जगह नहीं बना पाए थे. तब राजद और कांग्रेस को किशनगंज से चार सीटें मिली थी.
पिछले साल किशनगंज में हुए उपचुनाव में एआईएमआईएम को बिहार में अपनी पहली जीत मिली थी.
वहीं मिथिलाचंल के दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, मधेपुरा, सहरसा, सुपौल और सीतामढ़ी ज़िलों की 34 सीटों पर चुनाव होगा. मुज़फ़्फ़रपुर, वैशाली की भी छह सीटों पर मतदान होगा. वहीं, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण की 12 सीटों पर भी सात नवंबर को वोट डाले जाएंगे.
पिछली बार मिथिलाचंल से बीजेपी सिर्फ़ छह सीटें जीत पाई थी. इसलिए यहां मुक़ाबला बीजेपी के लिए भी कड़ा है.
इस चरण से पहले बीजेपी ने अपने स्टार प्रचारकों को भरपूर इस्तेमाल किया जिसमें राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा से लेकर योगी आदित्यनाथ भी प्रचार करने के लिए आए.
जेडीयू ने तीसरे चरण से पहले पार्टी-विरोधी गतिविधियों की वजह से 33 नेताओं को निकाल दिया है. साथ ही नीतीश कुमार ने एक रैली से ये एलान भी किया कि ये उनका आख़िरी चुनाव है.(bbc)
नई दिल्ली, 6 नवंबर | एक सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश लोगों ने इच्छा जाहिर की है कि सरकार को नागरिकों की सभी संपत्ति को आधार कार्ड के साथ अनिवार्य रूप से जोड़ना चाहिए और सभी मंत्रियों, सरकारी कर्मचारियों एवं उनके परिवार के सदस्यों की सभी संपत्तियों का अनिवार्य रूप से खुलासा किया जाना चाहिए। लोगों का मानना है कि अगर ऐसा होगा तो काले धन पर अंकुश लगाया जा सकेगा। सर्वे में शामिल लोगों ने न केवल केंद्र सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बल्कि सभी राज्य सरकार के मंत्रियों एवं कर्मचारियों और उनसे प्रत्यक्ष रूप से जुड़े परिवार के सदस्यों पर भी यह नियम लागू किए जाने की बात कही है।
काले धन या रिश्वत के मामले में सर्वे में लोगों द्वारा पहचाने गए प्रमुख मुद्दों में से एक सार्वजनिक कंपनियों द्वारा शेल कंपनियों का उपयोग भी देखने को मिला है।
नागरिकों का मानना है कि कैसे भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के परिवार के सदस्यों को इन शेल कंपनियों में निदेशक के रूप में सूचीबद्ध किया जाता है और एक उच्च प्रीमियम पर शेयर पूंजी के रूप में भ्रष्टाचार होता है। तब प्राप्त धन का उपयोग कंपनी के प्रमोटरों द्वारा स्वयं या फर्जी कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करने के लिए किया जाता है।
लोकलसर्कल्स प्लेटफॉर्म पर नागरिकों ने विभिन्न क्षेत्रों की ओर इशारा किया, जहां अवैध आर्थिक गतिविधियां व्याप्त हैं।
सर्वेक्षण में 15,492 मतदाताओं ने अपने विचार रखे हैं। इसमें शामिल लोगों से सवाल पूछा गया, भारत में काले धन को कम करने के लिए सरकार को तुरंत क्या कदम उठाना चाहिए?
इस पर सर्वे में शामिल 33 फीसदी लोगों ने कहा, सभी संपत्ति मालिकों को आधार से जोड़ना अनिवार्य करें। 38 फीसदी लोगों ने कहा, सभी मंत्रालयों और सरकारी कर्मचारियों और उनके प्रत्यक्ष परिवार के सदस्यों की सभी संपत्तियों का अनिवार्य खुलासा किए जाए।
इसके अलावा 10 फीसदी लोगों ने कहा, 2000 रुपये के नोट को तुरंत बंद करने में ध्यान देना चाहिए। वहीं सात फीसदी लोगों ने कहा, 10,000 रुपये से ऊपर के सभी नकद लेनदेन पर दो प्रतिशत लेनदेन कर लगाया जाना चाहिए।
सर्वे में शामिल पांच फीसदी प्रत्येक ने स्विस बैंक खाते के साथ सभी व्यक्ति की विस्तृत जांच कराए जाने और अन्य मुद्दों को तवज्जो दी। इसके अलावा दो फीसदी लोगों ने इस संबंध में कोई भी टिप्पणी नहीं की।
पिछले साल के सर्वेक्षण के साथ तुलना करने पर, इस साल के परिणामों से पता चलता है कि किराने का सामान खरीदना और घरेलू कर्मचारियों को वेतन देना उस शीर्ष श्रेणी में ही बने हुए है, जहां नागरिकों ने नकदी में लेनदेन किया और पिछले 12 महीनों में इसकी उनके पास कोई रसीद नहीं है।
ये मुख्य रूप से कम मूल्य के लेनदेन हैं, जिनमें लोग रसीद या वेतन पर्ची का ख्याल नहीं रखते हैं।
सर्वेक्षण में भारत के 300 से अधिक जिलों से 45,000 से अधिक प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जिनमें से 51 फीसदी उत्तरदाता टियर-1 से थे, जबकि टियर-2 से 34 फीसदी और टियर-3 एवं टियर-4 और ग्रामीण जिलों से 15 फीसदी लोग शामिल रहे। (आईएएनएस)
निवाड़ी, 6 नवंबर| मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में बोरवेल के गड्ढे में गिरे चार साल के प्रहलाद को सुरक्षित निकालने के लिए सुरंग बनाई जा रही है और उम्मीद इस बात की जताई जा रही है कि देर रात तक अभियान पूरा हो सकता है। वहीं प्रहलाद के परिजन की हताशा व निराशा लगातार बढ़ती जा रही है। निवाड़ी जिले के सेतपुरा गांव में हरिकिशन का चार साल का बेटा प्रहलाद बुधवार की सुबह खेत में खोदे गए दो सौ फुट गहरे बोरवेल में गिर गया था, उसके बाद से ही बच्चे को सुरक्षित निकालने के लिए राहत और बचाव अभियान चलाया जा रहा है। दो सौ फुट गहरे खोदे गए बोरवेल के गड्ढे में लगभग 60 फुट की गहराई पर बच्चे के फंसे होने की संभावना है। उसी के चलते एनडीआरएफ, सेना और अन्य राहत व बचाव दल ने समानांतर 60 फुट का गहरा गड्ढा खोदा और साथ ही सुरंग बनाई जा रही है, ताकि बच्चे के करीब तक पहुंचा जा सके। इसके लिए रेलवे की मशीनों की मदद भी ली जा रही है।
जिलाधिकारी आशीष भार्गव ने संवाददाताओं को बताया है कि बोरवेल के गड्ढे के करीब तक पहुंचने के लिए सुरंग बनाई जा रही है। संभावना इस बात की है कि सुरंग बनाने का काम जल्दी पूरा कर लिया जाएगा।
बताया गया है कि बोरवेल के गड्ढे तक पहुंचने के लिए 22 फुट की सुरंग बनाई जानी है और अभी तक 12 फुट की सुरंग बन चुकी है। उम्मीद इस बात की है कि सुरंग बनाने के साथ बच्चे को निकालने का अभियान देर रात तक पूरा हो जाएगा।
बच्चा जिस गड्ढे में गिरा है उसमें लगातार ऑक्सीजन की आपूर्ति की जा रही है, वहीं कैमरे के जरिए उसकी हर हरकत पर नजर रखी जा रही है। राहत और बचाव अभियान को लगभग 56 घंटे से ज्यादा का वक्त बीत गया है और बीते लगभग 50 घंटे से बच्चा किसी भी तरह की हरकत करते नजर नहीं आया है।
वहीं दूसरी ओर प्रहलाद के परिजनों की हताशा बढ़ रही हैं, उनका कहना है कि राहत और बचाव अभियान में कुछ देर हुई है, प्रशासन लगातार यही कह रहा है कि राहत और बचाव काम चल रहा है। प्रहलाद का एक छोटा भाई है, जो डेढ़ साल का है।
एक तरफ राहत और बचाव कार्य चल रहा है, वहीं लोग मंदिरों में पूजा पाठ भी कर रहे हैं, हर तरफ यही कामना की जा रही है कि बच्चे को सुरक्षित निकाल लिया जाए। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 6 नवंबर| दिल्ली पुलिस ने रजौरी गार्डन इलाके में एक फर्जी कॉल सेंटर का भंडाफोड़ किया है और कथित रूप से विदेशी नागरिकों को टेक्निकल सपोर्ट मुहैया कराने के नाम पर ठगी करने वाले 17 लोगों को गिरफ्तार किया है। पुलिस ने कहा कि आरोपी लोगों को पोप-अप्स भेजता था और बताया जाता था कि उनका डिवाइस हैक हो गया है और मालवेयर ने अटैक कर दिया है। आरोपी इस बिनाह पर माइक्रोसॉफ्ट से टेकि्न कल सपोर्ट मुहैया कराने के नाम पर ठगी करता था।
मामले में कॉलर समेत 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस ने उनके पास से 20 कंम्यूटर भी जब्त किए।
पुलिस के अनुसार, अक्टूबर 2019 और नवंबर 2020 के बीच 2,268 लोगों से 8 करोड़ रुपये की ठगी की गई।
डीसीपी साइबर सेल अनयेश राय ने कहा, "छापे के समय, आरोपी अमेरिका में रहने वाली एक महिला डॉक्टर से ठगी करने की कोशिश कर रहा था। छापा मारने वाली टीम ने कॉल में ही पीड़िता को बताया कि उसके साथ ठगी हो रही थी और उसे इस ठगी से बचाया गया था।"
मुख्य आरोपी साहिल दिलावरी बीते तीन सालों से यह फर्जी कॉल सेंटर चला रहा था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 6 नवंबर| सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे ने शुक्रवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि अदालत का किसी भी आयोग से कोई लेना-देना नहीं है और यह प्राथमिकता के आधार पर बस यही चाहती है कि केंद्र यह सुनिश्चित करे कि शहर में स्मॉग (धुंध) न हो। मेहता ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए नवगठित वायु गुणवत्ता आयोग शुक्रवार से काम करना शुरू कर देगा और पूर्व पेट्रोलियम सचिव एम.एम. कुट्टी आयोग के प्रमुख होंगे।
प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, "हमें किसी आयोग से मतलब नहीं हैं। पहले से ही कई आयोग और कई दिमाग काम कर रहे हैं। लेकिन यह सुनिश्चित करें कि शहर में कोई स्मॉग न हो। हम छुट्टियों के बाद इन दलीलों पर विस्तृत सुनवाई करेंगे।"
मामले में नाबालिग याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि पांच साल की जेल और 1 करोड़ रुपये के जुर्माने की रकम मनमानी लगती है। सिंह ने जोर देकर कहा कि बढ़ता वायु प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय है और वास्तव में यह एक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल है और इसके लिए कुछ कठोर कदम उठाने की आवश्यकता है।
प्रधान न्यायाधीश ने मेहता से यह भी कहा कि अपराधों की ग्रेडिंग की आवश्यकता है। बोबडे ने कहा, "हमें इस पर विस्तार से जानकारी की जरूरत है कि आप किस तरह के अपराधों को देख रहे हैं। आयोग के आदेशों और प्रावधानों के उल्लंघन के कारण 5 साल की जेल या 1 करोड़ रुपए का जुर्माना नहीं हो सकता है।"
आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के नहीं होने के पहलू पर, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "आखिरकार, हम कानून की अदालत हैं। हम अपनी जिम्मेदारियों को नहीं छोड़ेंगे लेकिन हम अपनी बाधाओं के बारे में भी जानते हैं। हम एग्जीक्यूटिव डोमेन में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। सरकार के पास संसाधन और पैसे हैं और उन्हें अंतत: कार्य करना होगा।"
शीर्ष अदालत पराली जलाने के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थीं, जो दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का एक बड़ा कारण है।
नई दिल्ली, 6 नवंबर दो साल के इंतजार के बाद व्हाट्सएप पेमेंट सर्विस को 160 से अधिक समर्थित बैंकों के साथ यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) पर लाइव जाने के लिए नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) से मंजूरी मिल गई है। भारत में 40 करोड़ से अधिक व्हाट्सएप यूजर्स अब सुरक्षित रूप से दोस्तों और परिवार को पैसे भेज सकते हैं, और भुगतान सुविधा अब आईफोन और एंड्रॉइड उपयोगकतार्ओं के लिए उपलब्ध है। यह ऐप के नए संस्करण में उपलब्ध हैं।
फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने शुक्रवार को एक बयान में कहा, "मैं आज उत्साहित हूं कि व्हाट्सएप को पूरे भारत में भुगतान शुरू करने की मंजूरी दी गई है। हम भारत के नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन के साथ इस पर काम कर रहे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि यह सुरक्षित और विश्वसनीय है।"
उन्होंने आगे कहा, "और हमने इसे भारत के यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस का उपयोग करके बनाया है, जो किसी के लिए भी विभिन्न ऐप पर तुरंत भुगतान स्वीकार करना आसान बनाता है और साथ ही लोगों के लिए शानदार सेवाएं प्रदान करने के लिए कंपनियों के लिए भी यह सहज होगा।"
भुगतान अब व्हाट्सएप के 10 भारतीय क्षेत्रीय भाषा वर्जन में उपलब्ध है।
जुकरबर्ग ने कहा, "आपको सिर्फ बैंक और उसका डेबिट कार्ड चाहिए जो यूपीआई सपोर्टेड हो और आप इसे सीधे सेट कर सकते हैं। आप इसे व्हाट्सएप के नए संस्करण में पा सकते हैं।"
व्हाट्सएप ने भारत में 2018 में ही पेमेंट फीचर का परीक्षण शुरू कर दिया था, लेकिन रेगुलेटरी बाधाओं और डेटा अनुपालन मुद्दों के कारण फीचर लॉन्च नहीं कर सका।
कंपनी ने सूचना दी, "हमें भारत में पांच अग्रणी बैंकों के साथ काम करने को लेकर खुश है, ये बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक, एक्सिस बैंक, भारतीय स्टेट बैंक और जियो पेमेंट्स बैंक हैं। लोग यूपीआई समर्थित ऐप का उपयोग करके किसी को भी व्हाट्सएप पर पैसे भेज सकते हैं।"
व्हाट्सएप ने कहा कि भुगतान सुविधा को सुरक्षा और गोपनीयता सिद्धांतों के एक मजबूत सेट के साथ डिजाइन किया गया है, जिसमें प्रत्येक भुगतान के लिए एक व्यक्तिगत यूपीआई पिन दर्ज करना शामिल है।
गौरतलब है कि अगस्त में एनपीसीआई द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक को सूचित किया गया था कि व्हाट्सएप ने डेटा लॉकलाइजेशन की आवश्यकताओं को पूरा करता है।
ब्राजील जून में व्हाट्सएप भुगतान सेवा शुरू करने वाला पहला देश बन गया है।
भारत में व्हाट्सएप भुगतान सेवा अन्य प्रमुख प्रतियोगी जैसे कि पेटीएम, गूगल पे और फोनपे सहित अन्य के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा लाएगा। (आईएएनएस)|
चेन्नई, 6 नवंबर| तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष एल मुरुगन और कई अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं को पुलिस ने तिरुतनी में उस समय हिरासत में लिया, जब उन्होंने शुक्रवार को पुलिस की अनुमति के बिना वेट्री वेल यात्रा निकालने की कोशिश की। तमिलनाडु सरकार ने गुरुवार को मद्रास उच्च न्यायालय से कहा था कि उसने भाजपा की राज्य इकाई की एक महीने की वेट्री वेल यात्रा के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया है क्योंकि कोविड -19 के फैलने का खतरा है।
6 नवंबर से शुरू होने वाली यात्रा का समापन 6 दिसंबर को तमिलनाडु में भगवान मुरुगन के छह निवासों को कवर करने के लिए किया गया था।
शुक्रवार की सुबह मुरुगन ने अपने निवास से यहां शुरूआत की और फिर भगवान मुरुगन के छह निवासों में से एक तिरुत्तनी पहुंचे।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि भगवान से प्रार्थना करना उनका मौलिक अधिकार है और उसी आधार पर वह तिरुत्तनी की यात्रा कर रहे हैं।
तिरुवल्लुर जिले की पुलिस ने मुरुगन की वैन और पांच अन्य वाहनों को तिरुत्तनी की ओर जाने की अनुमति दी।
तिरुत्तनी में भगवान मुरुगन मंदिर में प्रार्थना करने के बाद, टीएन भाजपा प्रमुख ने पहले की योजना के अनुसार जुलूस निकालने की कोशिश की। (आईएएनएस)
मनोज पाठक
पटना, 6 नवंबर| बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल (युनाइटेड) के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने गुरुवार को बिहार विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में चुनाव प्रचार के अंतिम दिन 'यह उनका अंतिम चुनाव है' कह कर बिहार की सियासत की तपिश बढ़ा दी है, हालांकि नीतीश के बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं। नीतीश के बयान को उनकी ही पार्टी जदयू भी अलग ढंग से देखती है। कई इसे 'इमोशनल कार्ड' भी खेलना बता रहे हैं।
वैसे नीतीश की पहचान सधे, मंझे और गूढ राजनेता के रूप में रही है। कहा जाता है कि नीतीश बिना सोचे समझे कोई बयान नहीं देते हैं और उनके बयानों के कई अर्थ होते हैं।
नीतीश की यह पहचान केवल बिहार में ही नहीं पूरे देश में दिखाई देती रही है। नीतीश के बयान के बाद जदयू के वरिष्ठ नेता और जदयू के बिहार प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने इस बयान को चुनाव प्रचार के अंतिम दिन से जोड़ दिया।
सिंह ने कहा, सार्वजनिक जीवन जीने वाले, राजनीति करने वाले कभी रिटायर नहीं होते। जबतक पार्टी चाहेगी नीतीश कुमार काम करते रहेंगे। जब वे चुनाव लड़ ही नहीं रहे, तो यह अंतिम चुनाव कैसे।
राजनीतिक समीक्षक सुरेंद्र किशोर भी कहते हैं कि जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सिंह अगर कोई बयान दे रहे हैं, उसे नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने कहा कि यह सही है कि नीतीश कुमार के बयान के कई मायने निकाले जा सकते हैं। उन्होंने इसे भावना उभारने वाला बयान होने से भी इंकार नहीं किया है।
किशोर कहते हैं, जदयू में नीतीश सर्वमान्य नेता रहे हैं। पार्टी उन्हें इतना आसानी से छोड़ देगी, इसकी उम्मीद काफी कम है।
इधर, जदयू के एक नेता कहते हैं कि नीतीश के संन्यास लेने के बाद जदयू ही बिखर जाएगी। जदयू के नेता ने नाम प्रकाशित नहीं करने की शर्त पर कहा, अन्य दलों की तरह जदयू वंशवाद की पार्टी नहीं है और भाजपा की तरह संगठित पार्टी भी नहीं है, ऐसे में पार्टी के लोग ही नीतीश कुमार को पार्टी से अलग नहीं होने देंगे।
यह सच भी है कि जदयू में ऐसा कोई नेता नहीं जो पार्टी के कार्यकतार्ओं को जोड़ कर रख सके और पार्टी के कार्यकर्ता भी उन्हें नेता मान लें।
जदयू के प्रवक्ता अजय आलोक भी कहते हैं कि राजनीति या सार्वजनिक जीवन में कोई रिटायर नहीं होता। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बयान का संन्यास से जोड़ना सही नहीं है।
वैसे, यहां आम लोगों की बात की जाए तो उन्हें भी नीतीश का यह बयान गले के नीचे नहीं उतरता है। लोगों का मानना है कि नीतीश का यह बयान वोट पाने की एक और जुगाड़ है, क्योंकि नीतीश आसानी से मैदान छोड़ने वालों में नहीं।
उल्लेखनीय है कि पूर्णिया के धमदाहा में गुरुवार को जदयू की प्रत्याशी लेसी सिंह के समर्थन में आयोजित एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा था, आज चुनाव प्रचार का आखिरी दिन है। परसों चुनाव है और मेरा यह अंतिम चुनाव है। अंत भला तो सब भला।
चार दशकों से राजनीतिक जीवन जीने वाले नीतीश कुमार 15 साल तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं, आज भी वे बिहार चुनाव में राजग का मुख्यमंत्री का चेहरा हैं।
बहरहाल, जो भी हो, मुख्यमंत्री के इस बयान के बाद नीतीश के राजनीतिक सन्यास को लेकर बहस तेज हो गई है, लेकिन पूरे चुनाव प्रचार में बिहार को विकसित राज्य बनाने का वादा करने वाले नीतीश बिना काम किए मैदान छोड देंगे, यह किसी की गले नहीं उतर रही है। माना जा रहा है कि यही कारण है कि पार्टी के नेता अब सामने आकर बयान दे रहे हैं। (आईएएनएस)
संदीप पौराणिक
भोपाल, 6 नवंबर | मध्यप्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव के नतीजे आने से पहले ही सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्षी दल कांग्रेस ने अपनी आगामी रणनीति के लिए कदमताल तेज कर दी है, कहीं बैठकों का दौर जारी है तो कहीं विधायकों से मेल मुलाकात तेज हो गई है।
राज्य के 28 विधानसभा क्षेत्रों के लिए मतदान हो चुका है और 10 नवंबर को मतगणना होने वाली है। सत्ताधारी दल भाजपा और विपक्ष कांग्रेस का दावा है कि नतीजे उनके पक्ष में आएंगे और सरकार उनकी बनेगी। अंकगणित को लेकर दोनों के अपने-अपने तर्क हैं।
विधानसभा की स्थिति पर गौर करें तो 230 सदस्यों वाली विधानसभा में एक स्थान रिक्त है वहीं 28 स्थानों पर उपचुनाव हुए हैं। वर्तमान में 201 विधायक हैं जिनमें भाजपा के पास 107 कांग्रेस के 87 और चार निर्दलीय, दो बसपा और एक सपा का है। इस तरह 28 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा को आठ स्थानों पर जीत की जरूरत है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को सभी 28 सीटें जीतने के बाद एक और विधायक की जरुरत होगी।
जीत की आस लगाए दोनों दल चुनाव परिणामों के बाद की रणनीति पर मंथन करने में जुटे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ लगातार कांग्रेस नेताओं के संपर्क में हैं, साथ ही मतदान की समीक्षा कर रहे हैं। परिणामों के बाद के अंक गणित पर भी जोड़-घटाव जारी है। उनका कोर ग्रुप इस बात पर भी मंथन कर रहा है कि अगर कांग्रेस 20 या उसके आसपास सीटें जीतती हैं तो किस तरह आगे बढ़ा जाएगा। इसको लेकर निर्दलीय, बसपा और सपा विधायकों से कांग्रेस के नेता लगातार संपर्क में हैं। कांग्रेस को भरोसा तो इस बात का है कि अगर भाजपा को पूर्ण बहुमत से बहुत ज्यादा सीटें नहीं मिलती हैं तो पार्टी में बगावत हो सकती है और उसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है।
वहीं दूसरी ओर भाजपा थोड़ी निश्चिंत है क्योंकि उसे इस बात की पूरी उम्मीद है कि वह पूर्ण बहुमत के लिए आवश्यक कम से कम आठ सीटें तो जीत ही लेगी, साथ ही उसे निर्दलीय बसपा और सपा के विधायकों का भी समर्थन हासिल रहेगा। जहां दो निर्दलीय विधायक पूर्व मंे ही भाजपा केा समर्थन दे चुके हैं, वहीं एक निर्दलीय विधायक सुरेंद्र सिंह शेरा और बसपा विधायक संजीव कुशवाहा की नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह से शुक्रवार को मुलाकात हुई। इस मुलाकात को सियासी तौर पर महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बसपा विधायक कुशवाहा का कहना है कि उनका भाजपा को समर्थन है, जहां तक भूपेंद्र सिंह से मुलाकात की बात है तो वह क्षेत्र के विकास को लेकर हुई है।
राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का मानना है कि राज्य के उप-चुनाव सियासी तौर पर काफी अहम है, पहले हुए उपचुनाव से यह चुनाव अलग है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस उप-चुनाव के नतीजे सरकार तक पर असर डाल सकते हैं। यही कारण है कि दोनों दल सजग और सतर्क हैं, राजनीति में कब क्या हो जाए इसे कोई नहीं जानता। इसीलिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ने नतीजों से पहले अपनी रणनीति पर मंथन तेज कर दिया है।(आईएएनएस)
आगरा, 6 नवंबर | आगरा पुलिस ने खेलो इंडिया गेम्स के फर्जी विज्ञापन मामले में जांच शुरू कर दी है। इस विज्ञापन में खिलाड़ियों से खेलो इंडिया गेम्स में हिस्सा लेने के लए पैसों की मांग की जा रही थी। इस बात का पता चलने पर भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) ने शहर में एफआईआर दर्ज कराई और अब इस मामले में जांच शुरू हो चुकी है। शहर के एसएसपी बबलू कुमार ने कहा कि यह केस अब सायबर सेल के पास जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक, बाह तहसील से एक शख्स ने सोशल मीडिया पर एक फर्जी विज्ञापन डाला था और खिलाड़ियों से पंचकुला में अगले साल होने वाले खेलो इंडिया गेम्स में हिस्सा लेने के लिए संपर्क करने को कहा था।
साई ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और अगरा के जिला न्यायाधीश (डीएम) से इसकी शिकायत की और एफआईआर दर्ज करा तत्काल प्रभाव से कदम उठाने की मांग की।
साई को इस बात की जानकारी तब मिली जब केरल के कुछ खिलाड़ियों ने कहा कि आगरा स्थिति पटना का रहने वाला एक शख्स खेलो इंडिया गेम्स में हिस्सा लेने के लिए पैसों की मांग कर रहा है।
साई ने डीजीपी को चार नवंबर को पत्र लिख बताया था कि वह एक शख्स खेलो इंडिया में चयन के नाम पर खिलाड़ियों से पैसे ऐंठ रहा है।
यह पता चला है कि आरोपी खिलाड़ियों से विज्ञापन पर लिखे नंबर पर उससे संपर्क करने को कहता था और खिलाड़ियों को एक फर्जी फॉर्म भरने को भी कहता था। एक खिलाड़ी की मां से जब आईएएनएस ने इस मामले में संपर्क किया तो उन्होंने माना कि उनसे कैम्प में हिस्सा लेने के लिए 6000 रुपये की मांग की गई थी।
इसी बीच हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह ने गुरुवार को कहा था कि सरकार की तरफ से खेलो इंडिया गेम्स-2021 में हिस्सा लेने के लिए किसी तरह की फीस नहीं ले जा रही है। उन्होंने कहा कि अगर कोई भी शख्स या कंपनी खेलो इंडिया-2021 में हिस्सा लेने के लिए पैसे मांगता है तो उसके खिलाफ शिकायत की जाए। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 6 नवंबर| दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले में सुरक्षा बलों के साथ जारी मुठभेड़ के बीच एक कश्मीरी आतंकवादी ने आत्मसमर्पण कर दिया है। पुलिस ने शुक्रवार को ये जानकारी दी। पुलिस ने कहा, एक स्थानीय आतंकवादी ने पंपोर इलाके में मुठभेड़ के दौरान आत्मसमर्पण कर दिया। ऑपरेशन अभी भी जारी है।
इससे पहले, एक आतंकवादी को गोलियों से उड़ा दिया गया और एक नागरिक ने गुरुवार को गोली लगने के बाद शुक्रवार को अस्पताल में दम तोड़ दिया।
पुलिस ने कहा कि 22 वर्षीय स्थानीय नागरिक आबिद मीर गुरुवार को आतंकवादियों की गोलियों से घायल हो गया था। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, लेकिन शुक्रवार सुबह उसने दम तोड़ दिया।
सुरक्षा बलों ने गुरुवार देर रात को तलाशी अभियान शुरू किया। जैसे ही तलाशी अभियान तेज हुआ, आतंकवादियों ने सुरक्षा बलों पर गोलीबारी की, जिसमें दो नागरिक घायल हो गए। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 6 नवंबर | मणिपुर के ज्ञानेंद्रो निंगोमबाम निर्विरोध हॉकी इंडिया (एचआई) के अध्यक्ष चुने गए हैं जबकि पूर्व अध्यक्ष मोहम्मद मुश्ताक अहमद की एचआई के कार्यकारी बोर्ड में वापसी हुई है। वह निर्विरोध उपाध्यक्ष चुने गए हैं। ज्ञानेंद्रो एचआई में पूर्वोत्तर से आने वाले पहले अध्यक्ष हैं। इसी साल जुलाई में मुश्ताक के इस्तीफा देने के बाद वह अध्यक्ष चुने गए थे।
एचआई के महासचिव राजिंदर सिंह ने कहा, "ज्ञानेंद्रो और मुश्ताक को हॉकी प्रशासन का लंबा अनुभव है। मुझे पूरा विश्वास है कि उनकी योग्यता खेल को फायदा पहुंचाएगी। उनकी सलाह देश में खेल को आगे ले जाने के लिए कारगर रहेगी।"
ज्ञानेंद्रो को दो साल के लिए अध्यक्ष चुना गया है। वह मणिपुर हॉकी में 2009 से 2014 तक मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर काम कर चुके हैं। वह एक दशक से राज्य की हॉकी से जुड़े हुए हैं।
एचआई की 10वीं कांग्रेस का शुक्रवार को आयोजित किया गया है जहां ज्ञानेंद्रो और मुश्ताक ने अपने-अपने कार्यभार संभाले। इसमें घरेलू कैलेंडर की शुरुआत पर भी चर्चा हुई।
सिंह ने कहा, "हमारी आज की बैठक काफी शानदार रही। सभी राज्यों के प्रतिनिधियों ने इसमें हिस्सा लिया। कई मुद्दों पर बैठक में चर्चा हुई जिसमें घरेलू कैलेंडर की शुरुआत, सरकारी गाइडलाइंस का पालन करते हुए वार्षिक नेशनल चैम्पियनशिप-2021 के सफल आयोजन के लिए सभी राज्य संघों के समर्थन की जरूरत, खासकर कोविड-19 जैसी स्थिति में, इन मुद्दों पर चर्चा हुई।"
उन्होंने कह, "अगले साल की प्लानिंग भी एक मुद्दा थी जहां सभी चार राष्ट्रीय टीमों के टूर्नामेंट को लेकर भी बात हुई। सीनियर और जूनियर टीमों को अधिक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के टूर्नामेंट मुहैया कराने जिससे उन्हें टोक्यो ओलम्पिक खेलों की तैयारी करने में मदद मिले, इस पर भी बात हुई। हमारी कोशिश है कि हम ओलम्पिक की तैयारी के लिए किसी भी तरह की कमी नहीं छोड़ें।" (आईएएनएस)
भोपाल , 6 नवंबर| मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने भाजपा पर बड़ा आरोप लगाते हुए कहा है कि, "भाजपा ने येन-केन प्रकारेण सरकार में बने रहने के लिए सौदेबाजी और बोलियां लगाने की राजनीति फिर शुरू कर दी है।" पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ ने कहा कि, "उप चुनावों में जनता द्वारा सच्चाई का साथ देने के कारण अपनी हार भाजपा को सुनिश्चित दिखाई दे रही है, यही कारण है कि सौदेबाजी और बोलियां लगाना शुरू कर दी गई है। उनके पास कांग्रेस के विधायकों और निर्दलीय विधायकों की तरफ से निरंतर यह सूचना प्राप्त हो रही है कि भाजपा के लोग विधायकों से संपर्क करके तरह-तरह के प्रलोभन दे रहे हैं।"
उप-चुनाव में जीत का दावा करते हुए कमल नाथ ने कहा कि, "भाजपा यह समझ ले कि इस प्रदेश की जनता ने सौदेबाजी और बोलियों से बनी सरकार को अस्वीकार कर दिया है। 10 नवम्बर को उपचुनाव के परिणाम इस बात को सिद्ध करेंगे कि प्रदेश की जनता ने सौदेबाजी की सरकार को नकार दिया है।"
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि, "शुचिता की राजनीति की बात करने वाली भाजपा को चुनाव परिणाम के बाद नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना पड़ेगा लेकिन जो आचरण आज की भाजपा और उनके नेताओं का है, उनसे नैतिकता की उम्मीद मध्यप्रदेश की जनता को नहीं है। आज की भाजपा तो नैतिकता से कोसों दूर जा चुकी है। गत मार्च 2020 से भाजपा ने अपने आचरण से यह स्वयं सिद्ध किया है। अब फिर से सरकार में बने रहने के लिए मतदान के बाद अनैतिक और प्रदेश को कलंकित करने की राजनीति भाजपा ने शुरू कर दी है।"
सत्ता का दुरुपयोग किए जाने का आरोप लगाते हुए कमल नाथ ने कहा कि, "मतदान के पहले भाजपा ने पुलिस, प्रशासन, रुपया, शराब और विभिन्न प्रलोभन सामग्री का दुरुपयोग कर मतदान को प्रभावित करने का कुत्सित प्रयास किया और जब इससे भी सफल होते नहीं दिख रहे हैं तो फिर से सौदेबाजी की राजनीति पर उतर आए हैं।"
भाजपा को चेतावनी देते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "अगर भाजपा ने सरकार में टिके रहने के लिए मध्यप्रदेश की पहचान और जनता के सम्मान को कलंकित करने की सौदेबाजी की, तो जनता के साथ मिलकर लोकतंत्र को बचाने के लिए कांग्रेस आक्रमक आंदोलन और प्रतिरोध करेगी। किसी भी स्थिति में सौदेबाजी की सरकार को राज्य में स्वीकार नहीं किया जाएगा।" (आईएएनएस)
सरोज सिंह
नई दिल्ली, 6 नवंबर। मैं लकड़ी का बिजनेस करता हूँ, साथ में समाज सेवा भी। सोशल मीडिया को समाज सेवा का जरिया बनाकर रखा है। अनुभव जिंदगी का नाम से तीन व्हाट्सऐप ग्रुप चलाता हूँ। हर ग्रुप में 256 सदस्य हैं। मैं जहाँ रहता हूँ उसके 10 किलोमीटर के दायरे में किसी भी गरीब, बीमार को मदद की जरूरत होती है, वो मैं करता हूँ।
बिहार के सारण जिले के रहने वाले मनोज सिंह व्हाट्सऐप पर अपनी मौजूदगी को लेकर किसी पेशेवर की तरह संजीदा हैं। वे बताते हैं कि इसके अलावा एक दर्जन और व्हाट्सऐप ग्रुप हैं जिनके वे सदस्य हैं। इनमें से एक ब्लड डोनेशन ग्रुप भी है।
वे कहते हैं, यूपी-बिहार सीमा पर रहता हूँ, दोनों तरफ़ के तीन ग्रुप का मैं सदस्य हूँ। इतना ही नहीं, सारण में कुछ सात-आठ न्यूज़ ग्रुप में भी मैं मेंबर हूँ। उस ग्रुप में जो लिंक फॉरवर्ड होते हैं उससे पल-पल की ख़बर हमें मिल जाती है और मैं अपने ग्रुप में उसे तत्काल शेयर कर देता हूँ। चुनावी माहौल में मैसेज सेंड और रिसीव करने का सिलसिला थोड़ा ज्यादा बढ़ गया है।
वो कहते हैं, बिहार के सारण जिले में तकरीबन 3800 लोगों का व्हाट्सऐप नेटवर्क और 5000 लोगों का फेसबुक नेटवर्क चलाना आसान काम नहीं है।
बिजनेस के साथ-साथ व्हॉट्सऐप ऑपरेट करते हुए उनका दिन आराम से कट जाता है। किसी भी राजनीतिक पार्टी के एक मैसेज को मिनटों में हजारों लोगों तक पहुंचाना हो तो मनोज सिंह जैसे लोग कारगर साबित होंगे।
बिहार चुनाव में ऐसे लोग कब राजनीतिक दलों के लिए सोशल मीडिया वॉरियर्स बन जाते हैं, इसका उन्हें भी अंदाजा नहीं होता।
कोरोना महामारी के दौर में बिहार में भारत का पहला विधानसभा चुनाव हो रहा है। यहाँ वर्चुअल रैलियों की शुरुआत जून में ही हो चुकी थी जबकि चुनाव की घोषणा सितंबर महीने में हुई। तब लगा था, मानो ये पूरा चुनाव सोशल मीडिया पर ही लड़ा जाएगा।
हालांकि जब चुनाव आयोग ने फिजिकल रैलियों की इजाजत दी, तो वर्चुअल रैलियों का रंग फीका पड़ गया।
अब तो आलम ये है कि राष्ट्रीय जनता दल के दावे के मुताबिक़ तेजस्वी यादव ने एक दिन में 19 चुनावी रैलियों को संबोधित करने का नया रिकॉर्ड बनाया है।
बताया जा रहा है कि इसके पहले ये रिकॉर्ड उन्हीं के पिता लालू यादव के नाम था, जिन्होंने एक दिन में 16 चुनावी रैलियों को संबोधित किया था।
लेकिन सब जनता रैलियों में तो पहुँचती नहीं है, यही वजह है कि मनोज सिंह जैसे लोग इस चुनाव में नेता से कम भूमिका नहीं निभा रहे।
क्या बीजेपी, क्या आरजेडी, क्या जेडीयू और क्या कांग्रेस-सभी ने बिहार चुनाव के लिए अपने-अपने सोशल मीडिया वॉर रूम अलग से बनाए हैं।
पसंदीदा है व्हाट्सऐप
बीबीसी ने चुनाव के दौरान चारों मुख्य पार्टियों के सोशल मीडिया प्रभारियों से बात की। चारों से बातचीत में एक ही निष्कर्ष निकला कि बिहार में ट्विटर और यू-ट्यूब से ज्यादा चलन व्हाट्सऐप और फ़ेसबुक का है।
व्हाट्सऐप भले ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ना हो। आज भी उसकी गिनती मैसेजिंग ऐप में होती है, जिसमें मैसेज को प्राइवेट चैट माना जाता है। लेकिन अलग-अलग ग्रुप बना कर, जिस बड़े पैमाने पर इसका राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है उसने मैसेजिंग ऐप और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के भेद को खत्म कर दिया है।
आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में तकरीबन डेढ़ अरब लोग व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हैं, जिनमें 20 करोड़ लोग भारत में हैं।
यही वजह है कि हर पार्टी ने व्हाट्सऐप को अपने कैम्पेन का सबसे अहम जरिया बनाया है। जिला से लेकर पंचायत तक में व्हाट्सऐप नेटवर्क बनाया है और हर जगह मनोज सिंह जैसे लोगों को ढूंढकर ग्रुप में जोड़ा जाता है।
मनोज सिंह कहते हैं कि वो राजनीति से दूर हैं, नेतागिरी नहीं करते, केवल राजनीतिक मैसेज पढ़ते हैं और सच लगने पर, जाँच-परख कर ही आगे फॉरवर्ड करते हैं।
लेकिन उनका दावा सच्चाई से बिल्कुल अलग है।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया, तेजस्वी ने भी रोजगार देने का वादा किया है, बीजेपी ने भी। नीतीश जी स्थाई नौकरी तो नहीं दिए, लेकिन शिक्षा मित्र और स्वास्थ्य विभाग में ठेका वाला नौकरी दिए हैं। तेजस्वी जो कह रहे हैं, वो बात भी सच है कि सरकारी नौकरी में बहुत पद खाली है। इसलिए दोनों का वीडियो हम फॉरवर्ड करते हैं, अपनी तरफ से दो लाइन लिखकर।
और बस इतने से ही राजनीतिक पार्टियों का काम पूरा हो जाता है क्योंकि ऐसे लोग केवल वोटर नहीं होते बल्कि वोट मोबिलाइजऱ का काम करते हैं।
संगीता महापात्रा
चुनावों में सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप के इस्तेमाल के क्या तरीके हैं और इसका फ़ायदा होता भी है या नहीं, इस पर जर्मन इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल एरिया स्टडी की रिसर्च एसोसिएट संगीता महापात्रा ने शोध किया है।
भारत, अमरीका और इसराइल के साथ-साथ दक्षिण-पश्चिम एशियाई देशों में सोशल मीडिया पर उन्होंने अध्ययन किया है।
वो मानती हैं कि सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप के जरिए जनता किसी मुद्दे पर कोई नई राय नहीं बनाती, लेकिन पहले से मौजूद सोच के लिए ऐसे मैसेज, उत्प्रेरक का काम ज़रूर करते हैं। सोशल मीडिया के जरिए आप मास मैसेजिंग और माइक्रो टारगेटिंग दोनों काम एक साथ कर सकते हैं।
जर्मनी के हैम्बर्ग शहर से बीबीसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि व्हाट्सऐप के साथ कुछ ऐसी बातें हैं जो राजनीतिक दलों को काम लायक लगती है।
वो कहती हैं, मसलन, अगर आप बेरोजगारी की वजह से पहले से दुखी हैं, तो रोजगार के वादे अगर आपको व्हाट्सऐप पर मिलते हैं या फेसबुक पर दिखते हैं, तो आपकी पहले से बनी सोच उस पार्टी के लिए और पुख़्ता होती है।
संगीता कहती हैं, भारत में हर इलाके में लोगों तक खबरें अलग-अलग माध्यमों से पहुँचती है। बिहार के लिए ये अलग है और दिल्ली के लिए अलग। दिल्ली में जनता ख़बरों के लिए कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करती है, जैसे ट्विटर, यूट्यूब, गूगल, फ़ेसबुक। लेकिन बिहार की बात करें तो वहाँ मैसेजिंग ऐप व्हाट्सऐप का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है। ये पर्सनलाइज़्ड होता है और इसमें क्षेत्रीय बोलियो में कंटेंट ऑडियो और वीडियो फॉर्म में आसानी से भेजे जा सकते हैं। बिहार में साक्षरता दर कम है, इस वजह से भी व्हाट्सऐप पर लोगों से जुडऩा ज्यादा आसान होता है। इतना ही नहीं, मैसेज कितना सच है या कितना झूठ, व्हाट्सऐप फॉरवर्ड में अंतर करना मुश्किल हो जाता है। व्हाट्सऐप के बाद बिहार के लोग न्यूज के लिए फेसबुक और यूट्यूब जैसे सोशल प्लेटफॉर्म पर जाते हैं।
राजनीतिक पार्टियों की रणनीति
अमृता भूषण चुनाव में बिहार बीजेपी का सोशल मीडिया देख रही हैं। वो प्रदेश में पार्टी की महामंत्री भी हैं। पटना से बीबीसी से फ़ोन पर बात करते हुए उन्होंने कहा, बीजेपी के हर बूथ पर 21 वॉलेंटियर मौजूद हैं जो सोशल मीडिया से फेसबुक, ट्विटर और दूसरे माध्यमों से जुड़े हुए हैं।
अमृता भूषण
वे कहती हैं, लोगों तक अपनी बात पहुँचाने में इनकी अहम भूमिका है। बिहार में बीजेपी ने पंचायत के स्तर पर शक्ति केंद्र का गठन किया है। हर शक्ति केंद्र में बीजेपी का एक आईटी इंचार्ज है। इससे ऊपर जि़ला स्तर पर आईटी सेल और फिर प्रदेश स्तर पर भी अलग से सेल हैं। केंद्र की सोशल मीडिया सेल भी प्रदेश के सोशल मीडिया सेल की मदद करती है। कुल आंकड़े को जोड़ दें तो बिहार में बीजेपी के 60 हजार आईटी संचालक हैं।
इस अभियान का पैमाना कितना बड़ा है, ये बताते हुए वे कहती हैं, यही नहीं, खास तौर पर विधानसभा चुनाव को देखते हुए तकरीबन 72 हजार व्हाट्सऐप ग्रुप बनाए हैं जो जिला और बूथ लेवल पर काम करते हैं। इनमें से कुछ में बीजेपी के कार्यकर्ता हैं और कुछ में हमारे समर्थक जुड़े हुए हैं। आरजेडी का सोशल मीडिया का कामकाज संजय यादव देखते हैं, जो तेजस्वी यादव के राजनीतिक सलाहकार भी हैं।
संजय यादव
संजय मानते हैं कि सोशल मीडिया का चुनावी लोकतंत्र में एक अपना स्थान है। लोगों तक आसान शब्दों में आप अपनी बात को वीडियो और ऑडियो के जरिए पहुंचा सकते है। काम की वजह से कई लोग टीवी नहीं देख पाते और रैलियों में हिस्सा लेने नहीं जा सकते। सोशल मीडिया के कई माध्यम हैं-कुछ लोग ट्विटर पर नहीं तो फेसबुक पर हैं, कुछ इन दोनों पर नहीं तो यूट्यूब देखते हैं और कुछ तीनों पर नहीं हैं तो कम से कम व्हाट्सऐप पर तो जरूर हैं। बुजुर्ग तो सबसे ज्यादा व्हाट्सऐप पर ही हैं।
संजय मानते हैं कि आरजेडी सबसे ज्यादा मजबूत व्हाट्सऐप पर है, फिर फेसबुक पर, फिर ट्विटर और सबसे अंत में यूट्यूब पर।
बिहार में जेडीयू सोशल मीडिया पर आरजेडी और भाजपा के मुकाबले थोड़ी पिछड़ती दिखाई पड़ती है। ट्विटर हो या फेसबुक दोनों ही जगह उन्होंने मैदान में उतरने में देरी की है। लेकिन समय रहते फॉलोअर्स का बेस बना लिया है।
व्हाट्सऐप पर उन्होंने काम देर से शुरू किया, पर हर पंचायत तक 200 सदस्य जोडऩे में सफल हुए, ऐसा उनका दावा है।
उनके सोशल मीडिया टीम के सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, मई के महीने में जनता दल यूनाइडेट ने सोशल मीडिया पर पकड़ मजबूत करने के लिए दिल्ली से टीम बुलाई। 15 लोगों की टीम ने फेसबुक लाइव के साथ-साथ व्हाट्सऐप ग्रुप में सदस्यों को जोडऩे का काम मई के अंत में शुरू कर दिया था। पार्टी के लिए 53 फेसबुक पेज तैयार किए गए और सबमें तकरीबन 15 हजार से 20 हजार लोगों को जोड़ा गया। नीतीशकेयर्स और बिहारजेडीयू जैसे बिना ब्लू टिक वाले कई फेसबुक पेज इसी मुहिम के तहत लॉन्च किए गए।
दिल्ली वाली टीम ने फेसबुक पर लाइव करवाने का सिलसिला 24 मई से शुरू किया, जिसमें मुख्यमंत्री जैसे बड़े नेता शामिल नहीं होते थे, पर इलाके के छोटे नेता (बूथ अध्यक्ष, प्रखंड अध्यक्ष, जि़ला अध्यक्ष) शामिल होते थे, जो कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद करते थे। ऐसा करने पर इस बात की आशंका भी नहीं होती थी कि दर्शकों की संख्या कम रहने पर बड़े नेता की किरकिरी हो जाएगी। है
सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर जेडीयू के एक नेता ने बीबीसी से कहा, जेडीयू में एक धारणा है कि बिहारी जनता ट्विटर पर चुनाव नहीं लड़ती। जैसे चुनावी रैलियों में जमा भीड़ वोट में तब्दील हो जाए इसकी गारंटी नहीं देती वैसे ही सोशल मीडिया के फॉलोअर्स, ट्वीट, रीट्वीट, लाइक्स, कमेंट और शेयर अच्छे चुनाव प्रचार का पैमाना नहीं हो सकते।
यही वजह है कि ख़ुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने ट्विटर पर शोक संदेश और बधाई संदेश लिखने की जगह मुख्यमंत्री कार्यालय की तरफ से जारी पीडीएफ पेज ही ट्वीट कर देते हैं।
रोहन गुप्ता
रही बात कांग्रेस की तो उन्होंने चुनाव से चार महीने पहले बिहार में सोशल मीडिया यूजर्स का डेटा बेस तैयार करने का काम शुरू कर दिया था। सबसे पहले एक कंट्रोल रूम में 40 लोगों की टीम तैयार की गई। डिजिटल मेंबरशिप ड्राइव शुरू किया और छह लाख ऑनलाइन मेंबर बनाए।
कांग्रेस के सोशल मीडिया प्रभारी रोहन गुप्ता कहते हैं, हमने बिलकुल अलग तरीके से व्हाट्सऐप नेटवर्क तैयार किया।
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने बताया कि कांग्रेस ने अपने एक नंबर को अपने लोकल उम्मीदवारों से कहकर लोकल व्हाट्सऐप ग्रुप में ऐड करवाया। उनका कहना है कि मैसेज फॉरवर्ड के लिए व्हाट्सऐप ग्रुप सही है। लेकिन जब पार्टी के प्रोग्राम को लाइव करने की बात आती है तो उसके लिए फेसबुक पेज और यूट्यूब की जरूरत पड़ती है। जिसके लिए उन्होंने कुछ इंफ्लूएंसर्स की मदद ली, जो कांग्रेस की विचारधारा से सहमति रखते हैं।
फेसबुक का इस्तेमाल
व्हाट्सऐप ग्रुप का कौन कैसे इस्तेमाल कर सकता है इसे सारण के मनोज सिंह के जरिए समझा जा सकता है। राजनीतिक पार्टियाँ कैसे किसी फेसबुक पेज का इस्तेमाल कर सकती हैं, इसे भी एक मिसाल से आप समझिए।
भक बुड़बक नाम का बिहार का एक फेसबुक पेज इन दिनों काफी चर्चा में है। इस पेज को तकरीबन साढ़े चार लाख लोग फॉलो करते हैं। ये फेसबुक पेज वैरिफाइड नहीं है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस पेज को इसी साल फरवरी में लॉन्च किया गया है और मार्च में नाम बदला गया है यानी चुनाव से बस आठ महीने पहले।
इस पेज पर जो सबसे पॉपुलर वीडियो पोस्ट किया गया है उस वीडियो को तकरीबन 48 हजार बार शेयर किया जा चुका है और तकरीबन 30 लाख लोग उसे देख चुके हैं।
फेसबुक पन्ने को देखकर ये समझने ज्यादा वक्त नहीं लगता कि ये फेसबुक पन्ना किस पार्टी के समर्थन और किस पार्टी के विरोध में चल रहा है।
ऐसे पेज प्रॉक्सी पेज की तरह काम कहते हैं। संगीता इस तरह के साइट्स के लिए इम्पोस्टर शब्द का इस्तेमाल करती हैं।
उनका कहना है कि ये साइट बहरूपिया होते हैं, देखने में लगेगा कि किसी राजनीतिक पार्टी के हैं, लेकिन असल में होते नहीं हैं। इनके कंटेंट नौजवान वोटरों के लिए बनाए जाते हैं, जिसमें मीम और शॉर्ट वीडियो होते हैं। अकसर ऐसे पेज कुछ सही जानकारी के साथ ग़लत जानकारी, अधूरी जानकारी परोसते हैं। इसलिए ये किसी भी चुनाव में चिंता का सबब होते हैं।
अब कुछ आँकड़े
बिहार में तकरीबन छह करोड़ मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले हैं, जिनमें से तकरीबन चार करोड़ लोग मोबाइल इंटरनेट का भी इस्तेमाल करते हैं।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया पर कंटेंट पोस्ट कर कितनी आसानी से मिनटों में कितने लोगों तक पहुँचा जा सकता है।
चुनावी मौसम में ऐसे पेज हजारों की संख्या में बनाए जाते हैं। जरूरी नहीं कि ये पेज बिहार से ही बने, दुनिया के किसी भी कोने में ये बन सकते हैं।
राष्ट्रीय जनता दल
आरजेडी के ट्विटर एकाउंट के 3 लाख 77 हजार फॉलोअर्स हैं। 2014 के चुनाव में उन्होंने अपना ट्विटर एकाउंट बनाया था और अब तक इस हैंडल से लगभग 32 हजार ट्वीट किए गए हैं।
आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव के ट्विटर पर 26 लाख फॉलोअर्स हैं। उनके बड़े भाई तेज प्रताप को तकरीबन 7 लाख 80 हजार लोग फॉलो करते हैं। ट्विटर पर लालू यादव को फॉलो करने वाले तकरीबन 50 लाख लोग हैं।
आरजेडी के फेसबुक पेज को 2012 में लॉन्च किया गया था और तकरीबन 6 लाख उनके फॉलोअर्स हैं।
आरजेडी के बिहार के हर जिले में वेरिफाइड फेसबुक पेज हैं। उनका दावा है कि आरजेडी के अलावा बिहार में कोई पार्टी नहीं है जिसके सभी जिला फेसबुक पेज वेरिफाइड हों।
भारतीय जनता पार्टी
बीजेपी बिहार ट्विटर हैंडल की बात करें तो उनके तकरीबन 2 लाख फॉलोअर्स हैं। 2016 में ये अकाउंट बना और अब तक 21 हजार ट्वीट कर चुके हैं।
बिहार बीजेपी पेज के 5 लाख से ज्यादा फॉलोअर्स हैं और 2015 में उन्होंने अपना अकाउंट खोला है। यानी दोनों ही प्लेटफॉर्म पर आरजेडी के बाद इनका अकाउंट बना है।
आरजेडी की तरह ही बीजेपी के लाइक्स कमेंट और शेयर हजारों में रहते हैं। वीडियो, रैली और इंटरव्यू के क्लिप्स ही ज्यादातर सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं।
सुशील मोदी बिहार बीजेपी के बड़ा चेहरा माने जाते हैं - इनके ट्विटर पर 20 लाख फॉलोअर्स हैं। लेकिन ज्यादातर तस्वीरें और ट्वीट लिख कर पोस्ट करते हैं। बीजेपी के कुछ हैंडल के वीडियोज़ को रीट्वीट जरूर करते हैं।
जनता दल (यूनाइटेड)
जनता दल यूनाइटेड के ट्विटर हैंडल को केवल 43 हजार लोग फॉलो करते हैं। इस हैंडल से अब तक तकरीबन 7 हजार ट्वीट हुए हैं और 2018 में ये अकाउंट बना है। 15 साल से सत्ता में रहने के बाद सत्ताधारी पार्टी ट्विटर अकाउंट इतनी देरी से बना, ये अपने आप में आश्चर्य की बात है।
नीतीश कुमार, बिहार के मुख्यमंत्री हैं इस नाते ट्विटर पर उनके फॉलोअर्स की संख्या 60 लाख है, जो कि प्रदेश के किसी नेता के मुकाबले ज्यादा है।
केवल रैलियों के सीधे प्रसारण के अलावा इक्का-दुक्का अखबार की कतरन देखने को मिलेगी। सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए खास तौर पर कोई अलग से वीडियो बनाया गया हो ऐसा कम देखने को मिलता है।
जनता दल यूनाइटेड का फेसबुक पेज 2018 में बना है। हालांकि देर से अकाउंट खोलने के बाद भी 5 लाख फॉलोअर्स इनके भी हैं।
संगीता का कहना है कि बिहार का चुनाव जितना रैलियों के जरिए लड़ा गया उतना ही व्हाट्सऐप, फेसबुक और यूट्यूब पर भी लड़ा गया।
जमीन पर होने वाली रैलियों की जगह ये नहीं ले सकते मगर रैलियों के प्रचार प्रसार में मददगार हैं, जिससे वोटरों तक पहुँच कई गुना बढ़ जाती है। (बीबीसी)
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बागपत, 6 नवंबर | एक नए गन्ना तौल केंद्र की मांग को लेकर जिला गन्ना अधिकारी के कार्यालय के बाहर धरना देते हुए 60 वर्षीय एक किसान का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। इसके बाद अधिकारियों पर 'उदासीनता' का आरोप लगाते हुए घटनास्थल पर मौजूद सैकड़ों लोगों के हंगामा करने के कारण तनाव पैदा हो गया। किसान सूरज सिंह पिछले पांच दिनों से बागपत में अपने गांव में एक नए केंद्र के लिए अन्य किसानों के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
सिंह की गुरुवार को हुई मौत से काफी तनाव पैदा हो गया है। किसानों ने अधिकारियों पर 'अपनी उचित मांग के प्रति उदासीनता' बरतने का आरोप लगाया है।
भारतीय किसान यूनियन के जिला अध्यक्ष प्रताप गुर्जर ने कहा, "हम गांव के लिए एक नए गन्ना तौल केंद्र की मांग कर रहे हैं। लेकिन अधिकारी अनुदान में देरी कर रहे हैं। ग्रामीणों ने विधायकों, सांसदों से संपर्क किया और लखनऊ भी गए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।" (आईएएनएस)