दयाशंकर मिश्र
हमें मन के उस कोने की खोज करनी है, जो हमारी पूरी शक्ति का सबसे बड़ा केंद्र है। उसके बाद पूरी सजगता से उसे संभालना है। जीवन के लिए गति जरूरी है, लेकिन ठहराव उससे भी जरूरी है!
अपने लिए हम क्या करते हैं। कुछ ऐसा जिसका संबंध विशुद्ध रूप से हमारे भीतर से हो। कुछ होने या न होने से नहीं। ऐसी कोई एक गतिविधि जो हमें आत्मिक आनंद से भर दे। ऐसा कुछ जिससे मन पूरी तरह झूम उठे। जीवन से जुड़ी हमारी अधिकांश शिक्षाएं अब केवल डायरी और किताबों में ही मिलेंगी, क्योंकि हमने सबकुछ पाने की आशा में अपने जीवन का बहुत जरूरी हिस्सा विश्राम खो दिया है। आनंद खो दिया है, क्योंकि सबकुछ नतीजे पर केंद्रित हो गया! ऐसा करने से क्या हासिल होगा! किसलिए! किसलिए! किसलिए!
हमने अपने दिमाग को कुछ इस तरह से प्रशिक्षित किया है कि वह केवल यही दोहराता रहता है कि इस काम का हासिल क्या है। जीवन में श्रेष्ठता की ओर यात्रा अच्छा विचार है, लेकिन कोई भी रास्ता अगर दुनिया के दूसरे रास्ते से कट जाता है, तो वह अंतत: अकेला ही हो जाता है। ऐसा रास्ता, हमें केवल भटकाता है! कहीं पहुंचाता नहीं। कहीं पहुंचने के लिए दिमाग का ठीक तरह से समावेशी होना जरूरी है। उसका टुकड़े में बंटा होना, हमारे जीवन के लिए अच्छा नहीं है। पिछले कुछ दिनों में लखनऊ और पटना से दो युवा उद्योगपतियों से संवाद हुआ। दोनों ही तनाव को ठीक से नहीं संभाल पा रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य हो सकता है कि दोनों का ही संकट आर्थिक नहीं है। हां, इस संकट के कारण अवश्य उनकी पूरी अर्थव्यवस्था मुश्किल में पड़ गई है।
दोनों के व्यक्तित्व में सबसे बड़ी समस्या उनका पूरी तरह से पूर्ण होना है। इतने पूर्णता से भरे हुए हैं कि प्रेम, स्नेह के लिए कोई जगह ही नहीं। परिवार, पत्नी और बच्चों के साथ होते हुए भी दूर हैं। जीवन संवाद में हम इस बात पर सबसे अधिक जोर देते आए हैं कि धन में इतनी शक्ति जरूर है कि वह हमारी सुविधाएं बढ़ा दे। कुछ कष्ट कम कर दे, लेकिन वह हमें सुखी करने के लिए पर्याप्त रूप से शक्तिशाली नहीं है। हमने महत्वाकांक्षाओं के चक्कर में धन को बहुत अधिक शक्तिशाली समझ लिया। सुख, मन के शांत और समभाव होने से उपजा भाव है। इतना दुर्लभ कि किसी से भी पूछ लीजिए कि वह सुखी है, तो वह घबरा जाता है। सुख की बात सुनकर घबराने वाला मन सुखी कैसे होगा! ऐसे प्रश्न के उत्तर में संभव है, कुछ यह कह दें कि वह तो सुखी हैं, लेकिन तुरंत ही संभाल लेंगे कि अगर यह हो जाता, तो मैं सुखी हो जाता। मेरा सुख अभी यहां अटका हुआ है!
जीवन में अतृप्ति का यह अभाव ही हमारे संकट का सबसे बड़ा कारण है। खुद से दूरी का सबसे बड़ा कारण यही है। जब हम खुद को हमेशा स्वयं से ही घेरे रहेंगे तो धीरे-धीरे हम अपने आसपास से आने वाली ऊर्जा, ताजे विचार और प्रेम से खुद को वंचित करते जाएंगे! अपने को केवल ऐसी चीजों से व्यस्त रखना जिनसे नौकरी/कारोबार/आजीविका चलती हो, वास्तव में एक ऐसी कोठरी में बंद कर लेना है, जहां पर केवल चारों ओर आप ही की तस्वीर लगी हो। ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे समाज और दुनिया से दूर खिसकता जाता है!
इसलिए बहुत जरूरी है कि हम अपने को वक्त दें। स्वयं को कुछ ऐसी चीजों से जोड़ें, जो हमारे आंतरिक मन को ऊर्जा, आनंद से भर सकें। सबके लिए यह काम अलग-अलग हैं। हमें मन के उस कोने की खोज करनी है, जो हमारी पूरी शक्ति का सबसे बड़ा केंद्र है। उसके बाद पूरी सजगता से उसे संभालना है। जीवन के लिए गति जरूरी है, लेकिन ठहराव उससे भी जरूरी है! (hindi.news18)
-दयाशंकर मिश्र