दयाशंकर मिश्र

तुम्हारी चिंता !
01-Oct-2020 3:07 PM
तुम्हारी चिंता !

अनियंत्रित गति केवल सडक़ पर ही हमें नुकसान नहीं पहुंचाती। जीवन, रिश्ते और आत्मीयता के पुलों को भी तोड़ती चलती है! इसलिए जरूरी है कि सबकुछ जल्दी-जल्दी हासिल करने के सपने के बीच हमें सुरक्षित गति का बोध रहे।

हम कितने भी परेशान क्यों न हों, कोई बस इतना भर कह दे, ‘मुझे तुम्हारी चिंता है’। इससे मन हल्का हो जाता है। मैं हूं ना तुम्हारे साथ, कोई जरूरत पड़े तो बेधडक़ मुझे याद करना। कितने कम शब्द हैं, और कितने प्रबल भाव! लेकिन हमने जिंदगी की गति इतनी अधिक बढ़ा दी है कि हमारे पास किसी चीज के लिए समय नहीं। स्पीड-ब्रेकर सडक़ों के साथ जिंदगी में भी होने चाहिए। इनसे जीवन में दूसरों के लिए हमदर्दी, स्नेह, आत्मीयता बनी रहती है! अनियंत्रित गति केवल सडक़ पर हमें नुकसान नहीं पहुंचाती। जीवन, रिश्ते और आत्मीयता के पुलों को भी तोड़ती चलती है! इसलिए जरूरी है कि सबकुछ जल्दी-जल्दी हासिल करने के सपने के बीच हमें सुरक्षित गति का बोध रहे।

यह जो गहरे भाव हैं मन के- ‘तुम्हारी फिक्र है। अपने को अकेला मत समझो। हम हर हालत में तुम्हारे साथ हैं।’ इन्हें केवल शब्द मत समझिए। हमसे पहले जो लोग धरती पर सुखी जीवन व्यतीत करके गए, जीवन के आनंद को साथ लेकर गए। उन्होंने इन्हें केवल शब्द नहीं समझा था। भावना से अलग होते ही शब्द अपना महत्व खो देते हैं। भावविहीन शब्दों का कोई अर्थ नहीं। हां, केवल औपचारिकता हैं। किसी भी रिश्ते की जड़ में अगर औपचारिकता समा जाए, तो हमें सजग हो जाना चाहिए कि रिश्ता कभी भी टूट सकता है। इसलिए सच्चे मन और हृदय से उपजे भाव को पहचानिए।

जैसे-जैसे हमारी आर्थिक क्षमता बढ़ती जाती है, असल में हम भीतर से उतने ही असुरक्षित, कमजोर और आत्मकेंद्रित होते जाते हैं। जबकि होना ठीक इसके उलट चाहिए। हमें आत्मविश्वासी, मजबूत और दूसरों के लिए तत्पर होना चाहिए। इसका परिणाम यह होता है कि भीतर निरंतर उथलपुथल चलती रहती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस पेशे में हैं। किस पद पर हैं। सारा अंतर केवल इससे पड़ता है कि जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण कैसा है। अगर हमारे मन में कोमलता है, तो दूसरों के लिए जगह अपनेआप बनती जाती है। अगर कठोरता है, तो एक अनुभव को हम पकड़े बैठे रहते हैं। किसी ने आपको धोखा दिया। रिश्ते को तोड़ा। प्रेमसंबंध टूट गए। नाजुक मोड़ पर रिश्ते छूट गए। यह जीवन का एक मोड़ है, जीवन नहीं!

अगर एक स्टेशन पर हमसे रेलगाड़ी छूट जाए, तो हम क्या करते हैं? उसके बाद हम रेल में सफर बंद कर देते हैं/ रेलवे स्टेशन जाना छोड़ देते हैं? नहीं, हम ऐसा कुछ नहीं करते। जिस वजह से समय पर रेलगाड़ी नहीं पकड़ पाए, उन वजहों को दूर करने की कोशिश करते हैं। जीवन, रेलगाड़ी से बहुत अलग नहीं है। मिलना-बिछडऩा, नाराजगी हमारे और रेल के रिश्ते जैसे हैं। व्यक्तिगत रूप से मुझे तो रेलयात्रा ने बहुत कुछ सिखाया है। एक-दूसरे को सहने की क्षमता। नाराजगी का प्रेम में बदलना, जबकि हम जानते हैं कि सफर में मिला साथ केवल कुछ ही घंटे का है। जीवन का अनुभव बताता है कि इस सफर में मिले लोग जीवन में बहुत कम मिलते हैं, क्योंकि दुनिया इतनी छोटी भी नहीं है।

इसलिए, जीवन संवाद में हम निरंतर सबसे अधिक जोर अपने मन की कड़वाहट, गुस्सा और हिंसा को दूर करने पर देते हैं। मन के असली मैल यही हैं। दूसरे की चिंता छोडि़ए, उसे बदल पाना हमारे वश में नहीं। हमारे बस में केवल इतना है कि हम खुद को बदल लें। अपने को दूसरे की मर्जी से न चलने दें। जिंदगी को बदलने के लिए इतना ही पर्याप्त है। भवानी प्रसाद मिश्र ने बड़ी सुंदर बात कही है, ‘हर व्यक्ति फूल नहीं हो सकता, लेकिन सुगंध सब फैला सकते हैं।’

अपने कहे गए शब्दों को निभाना, सुगंध फैलाने जैसा ही है। जब आप दूसरों की मदद कर रहे हैं, तो बिल्कुल मत सोचिए कि आप दूसरे की मदद कर रहे हैं, असल में आप अपने लिए दुनिया में थोड़ी-सी कोमलता बढ़ा रहे हैं। प्रेम का बीज गहरा कर रहे हैं! (hindi.news18)
-दयाशंकर मिश्र

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