दयाशंकर मिश्र
एक उम्र के बाद अपने से बड़ों से कोई शिकायत नहीं करनी चाहिए। केवल उनसे प्रेम किया जाना चाहिए, क्योंकि जिंदगी इतनी भी लंबी नहीं, जितनी हम माने बैठे हैं। इसलिए, जितना संभव हो उसे जीवन में भर लेना चाहिए। कल का क्या भरोसा!
उनकी आवाज बहुत मीठी थी। मीठे से अधिक उसमें प्यार की खुशबू थी। लगा कोई बरगद अपनी छांव में बैठे यात्री को मीठी हवा के झूले झुला रहा है। उनके शब्दों से प्रेम बरस रहा था। सच तो यह है कि मेरा मन भी उनके शब्दों के लिए कई बरस से तरस रहा था। जीवन उतना सरल नहीं, जितना हम मान लेते हैं। यही इसकी चुनौती, रस है। सारे अरमान निकल जाएं, तो जीने का रस कम न हो जाए! इसलिए आज जो उपलब्ध है, उसे पूरी तरह जीना होगा।
असल में केवल अभी जो मिला है, उसी क्षण को जीना ही सच्चा आनंद है। लाओत्से कहते हैं, यही जीवन-मार्ग है। मुझ पर अपने शब्दों से प्रेम और स्नेह की वर्षा करने वाले पिता सरीखे बुजुर्ग की उम्र अस्सी बरस के आसपास है। मुझे उनकी बातों के बाद देर तक वसीम बरेलवी साहब की याद आती रही। वो लिखते हैं-
‘वो मेरे घर नहीं आता मैं उसके घर नहीं जाता
मगर इन एहतियातों से तअल्लुक़ मर नहीं जाता।’
कभी-कभी शब्द कैसे जिंदगी में उतर आते हैं। जिन्होंने मुझे फोन किया था उनके साथ मेरा एकदम यही रिश्ता है। मैं उनके घर नहीं जाता और वह मेरे घर नहीं आते। ऐसा नहीं कि हम ऐसा नहीं चाहते, लेकिन कभी-कभी चाहना ही काफी नहीं होता।
इसलिए, मैंने निवेदन किया कि कभी-कभी जिंदगी में दोनों में से किसी की भी गलती न होने पर भी सजा जिंदगी को ही मिलती है। उस पिता की विवशता, प्रेम देखिए। अपने बेटे से वह नहीं पूछते कि मैं उनके घर क्यों नहीं आता। मुझसे भी नहीं कहते कि क्यों नहीं आते। लेकिन जानते सब हैं। फोन पर उन्होंने कोई गिला-शिकवा नहीं किया। केवल आशीर्वाद दिया। एक प्यारभरा गीला चुंबन जैसे मेरे माथे पर देर रात तक ताजा है। बात सुबह की है और लिख मैं देर रात को रहा हूं।
जीवन की मोहब्बत यही है। कई बरस तक वह मुझसे इसलिए बात नहीं कर पाए, क्योंकि वह डायरी नहीं मिल रही थी, जिसमें मेरा नंबर लिखा था। कैसा जीवन है! उनके घर में हर किसी के पास मेरा नंबर है, लेकिन वह किसी से मांगना नहीं चाहते थे। वह फोन न करते, तो भी हमें उनसे कोई शिकायत नहीं।
एक उम्र के बाद अपने से बड़ों से कोई शिकायत नहीं करनी चाहिए। केवल उनसे प्रेम किया जाना चाहिए, क्योंकि जिंदगी इतनी भी लंबी नहीं, जितनी हम माने बैठे हैं। इसलिए, जितना संभव हो उसे जीवन में भर लेना चाहिए। कल का क्या भरोसा!
जिनके बारे में लिख रहा हूं, उनके और हमारे रिश्ते का विरोधाभास देखिए। चाहते सब प्रेम ही हैं, लेकिन मन की दीवार कभी-कभी हम इतनी ऊंची उठा लेते हैं कि प्रेम की सारी सीढिय़ां छोटी पड़ जाती हैं। हम चाह करके भी बहुत कुछ नहीं कर पाते। बस, इतना ही कर सकते हैं कि प्रेम बना रहे, उसकी तने, पत्तियां कुछ कमजोर हो सकती हैं, लेकिन जड़ का ख्याल सबसे जरूरी है। यह जो मुझे फोन किया गया था, वह जड़ को सींचने जैसा ही था। यह हुनर सजगता से संभालने योग्य है। प्रेम न सही, प्रेम के पुल तो बने रहें।
यह किस्सा इसलिए भी आपसे साझा कर रहा हूं, क्योंकि ‘जीवनसंवाद’ को बहुत से प्रश्न रिश्तों की जटिलता पर मिलते हैं। मैं कहना चाहता हूं कि जीवन केवल सही-गलत के बीच का चुनाव नहीं। दोनों के बीच बहुत कुछ शेष रहता है। जो प्रेम में होते हैं, सुख को पाना चाहते हैं, उनको दोनों के बीच उतरना ही होगा। (hindi.news18)
-दयाशंकर मिश्र