सुनील कुमार

यादों का झरोखा-1
29-Jul-2020 4:22 PM
यादों का झरोखा-1

आज सुबह-सुबह एक अखबारनवीस साथी ने फोन करके कुछ झिझकते हुए एक सलाह दी। उसे कुछ तो जानकारी थी, और कुछ काम देखकर अंदाज था कि इन दिनों मैं काम से लदा हुआ हूं। फिर भी उसका कहना था कि छत्तीसगढ़ की राजनीति को जितने समय से मैंने देखा है, उसके बारे में मुझे कुछ लिखना चाहिए क्योंकि और लोगों के साथ-साथ पत्रकारों की ही एक ऐसी पीढ़ी आ गई है, जिसने उन दिनों के किस्से भी सुने हुए नहीं है, क्योंकि मेरी अखबारनवीसी में शुरूआती दिनों में यह पीढ़ी पैदा भी नहीं हुई थी। यह सलाह सुनते ही पल भर को तो दिल बैठ गया कि क्या रोज इतना काम करने के बाद भी अब आसपास के लोग भी बूढ़ा और बुजुर्ग मानने लगे हैं कि मुझे संस्मरण लिखने की सलाह दे रहे हैं। यह काम तो जिंदगी के आखिरी दौर में किया जाता है, और जहां तक काम का सवाल है, अभी तो मैं जवान हूं। 

फिर भी सदमे से उबरने में मिनट भर से अधिक नहीं लगा क्योंकि सलाह बड़ी दिलचस्प थी। न रोज लिखने की बेबसी, न कॉलम का कोई साईज तय, और न ही किसी खास मुद्दे पर सिलसिलेवार लिखना। फिर यह भी लगा कि राजनीति के साथ-साथ जुड़े हुए दूसरे मुद्दों पर भी लिखना हो जाएगा। 

उस पर जब एक गैरअखबारनवीस दोस्त से सलाह ली, तो उसका कहना था कि दुश्मन बनाने का सबसे आसान तरीका संस्मरण लिखना होता है, अगर सच लिखा जाए। पर मेरे दिमाग में अपना भुगता हुआ, अपनी भागीदारी वाला संस्मरण ही लिखना नहीं है, ऐसा भी लिखना दिमाग में आ रहा है जो कि कुछ दूरी से देखा हुआ होगा। और फिर कुछ लोगों को अगर बुरा लगता है, तो उससे बचते हुए कब तक ताजा इतिहास को लिखा जा सकता है?

यह सब सोचते हुए इस कॉलम के लिए एक नाम सूझा, यादों का झरोखा, पता नहीं इससे बेहतर भी कोई और नाम हो सकता था या नहीं, लेकिन नाम में क्या रक्खा है, गूगल का क्या मतलब होता है, याहू का क्या मतलब होता है, फेसबुक में फेस से परे बहुत कुछ है, और बुक तो है ही नहीं, इसलिए नाम कुछ भी हो, उस कॉलम में लिखना कुछ अच्छा हो जाए, और अधिक दिनों तक लिखना हो सके, तो हो सकता है कि मुझे लिखना और लोगों को पढऩा सुहाने लगे। 
छत्तीसगढ़ की राजनीति की छोटी-छोटी घटनाओं पर बिना किसी सिलसिले के कल से इसी वेबसाईट पर पढ़ें। 
-सुनील कुमार

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news