दयाशंकर मिश्र

बच्चों को क्या बनाना है !
30-Jul-2020 12:49 PM
बच्चों को क्या बनाना है !

इस समय हर कोई बहुत जल्दी में है, यह बात और है कि कोई कहीं पहुंचता दिखाई नहीं देता। अक्सर पहुंचकर भी रास्ते में ही रहते हैं!


बच्चों के लिए माता-पिता का आशावाद, चिंता नई चीज नहीं है। यह हमेशा से थी। हां, पहले यह बहुत हद तक ‘समय’ से आकार लेती थी। अब यह चिंता बच्चे की शिक्षा आरंभ होते ही तनाव में बदल जाती है। ‘डियर जिंदगी’ को बड़ी संख्या में अभिभावकों के सवाल मिल रहे हैं।

परीक्षा के कठिन मौसम में बच्चों से कहीं अधिक तनाव में अभिभावक रहते हैं। इस समय इंटरनेट पर दस साल का बच्चा एलेक्स छाया हुआ है। एलेक्स खुद को ‘ओशियानिया एक्सप्रेस’ का संस्थापक और सीईओ कहता है। एलेक्स ने ऑस्ट्रेलियन एयरलाइंस ‘क्वांटस’ के सीईओ एलन जोएस को चि_ी लिखकर अपनी एयरलाइंस खोलने के लिए मदद करने की गुजारिश की है। बच्चे ने लिखा, ‘प्लीज, मुझे सीरियसली लें, मैं एक एयरलाइंस शुरू करना चाहता हूं।’ एलन ने चि_ी का जवाब देने के साथ ही उन्हें मिलने के लिए भी बुलाया है।

यहां चि_ी के जिक्र का अर्थ केवल इतना है कि दुनिया के दूसरे समाजों में बच्चों को किस तरह लिया जाता है। बच्चे की चि_ी को एक सीईओ कितनी गंभीरता से ले रहा है, उसे संवाद का मौका दिया जा रहा है और उसे जितना संभव हो प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके उलट हमारे यहां माता-पिता केजी वन से लेकर पहली दूसरी में ही बच्चे के स्कूल में प्रदर्शन से दुखी हुए जा रहे हैं। हम अपने बच्चे को एक ऐसे ‘तुलना घर’ में धकेले जा रहे हैं जहां हर समय उसे परीक्षा से गुजरना है। बच्चे की रुचि, उसकी प्रतिभा के दायरे तलाशने की जगह हम पहले से चुनी, तय की हुई चीजें उसके ऊपर थोप रहे हैं।

हम बच्चे को ऐसे ‘दीवार’ की ओर धकेल रहे हैं जहां कोई खिडक़ी नहीं है जहां कोई रोशनदान नहीं, बस गहरा अंधेरा है। अब यह केवल संयोग की बात हो सकती है कि उसके धक्के से या तो दीवार में सुराग हो जाए या किसी वजह से कोई हाथ बढ़ाकर उसे दीवार के उस पार ले जाए। हम बच्चों पर अपने और अपने समय के वह सभी ग्लैमरस सपने थोप रहे हैं जिनसे उनके ‘कुछ हो जाने’ की आस है।

हमारे एक मित्र हैं जो किसी जमाने में गायक बनना चाहते थे, नहीं बन पाए तो आप अपने 15 बरस के बेटे में अपना सपना जीने की कोशिश कर रहे हैं। बच्चे की आवाज निसंदेह अच्छी है, लेकिन वह तो कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहता है। अमेरिका जाकर पढऩा चाहता है और भारत के लिए सुपर कंप्यूटर से बहुत आगे की कोई चीज तैयार करना चाहता है। वह अपने सपने को जीना चाहता है, मित्र बेटे के बहाने ‘अपने’ सपने को पूरा करना चाहते हैं। यह सपनों का टकराव नहीं, सपने का अतिक्रमण है।

अब जरा एलेक्स के सपने और इस बच्चे के सपने को सामने रखकर देखिए। एलेक्स के सपने को एक अनजान सीईओ का सहारा मिलता है। दूसरी ओर हमारे यहां एक पिता अपने सपने के लालच को संभाल नहीं पा रहा। बच्चे में उसके खुद के स्वतंत्र सपने को पूरा करने की हिम्मत कैसे भरेगा।

हमें बहुत गंभीरता से एक समाज के रूप में यह समझने की जरूरत है कि हम अपने बच्चों को कितनी स्वतंत्रता दे रहे हैं और कितनी देने की जरूरत है। बच्चों को महंगे स्कूल, महंगी जि़द, कपड़े और गैजेट की जगह अगर किसी चीज़ की सबसे ज्यादा जरूरत है तो ‘उनके’ सपनों की तलाश में मददगार बनने की। उनके भीतर की प्रतिभा को बिना किसी मिलावट के जानने और समझने की। बच्चों पर दांव लगाने की और उनके सपनों में साझेदार होने की। इससे हम बहुत हद तक उनके भीतर बढ़ रहे तनाव, गहरी निराशा और आत्महत्या जैसे खतरे को कम कर सकते हैं। (hindi.news18.com)
-दयाशंकर मिश्र

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