विष्णु नागर

गणपतिजी और धनपतिजी
15-Sep-2021 1:48 PM
गणपतिजी और धनपतिजी

-विष्णु नागर
कल एक खबर पढ़ी थी कि पुणे के दगडूशेठ हलवाई गणपति को एक भक्त ने 10 किलो सोने का रत्नजडि़त मुकुट भेंट किया है। इसकी कीमत छह करोड़ रुपये बताई जाती है। कारीगरों को इसके लिए अस्सी लाख रुपये का मेहनताना दिया गया है।

गणेशजी पर इतनी कृपा बरसाने वाले इस भक्त ने अपना नाम गुप्त रखा है। इस कलयुग में जब पाँच किलो अनाज के थैले पर प्रधानमंत्री का फोटो अनिवार्य रूप से छपता है, तब एक सतयुगी भक्त बनकर किसी का 6 करोड़ रुपयों का इस प्रकार गुप्त बलिदान करने के लिए प्रकट हो जाना सचमुच प्रशंसनीय और चकितनीय घटना है। मैंने घटना कहा है, कृपया इसे दुर्घटना न पढ़ें।  

मेरी समस्या बस इतनी सी है कि 6 करोड रुपए खर्च करने की भक्ति सेठों में कब और कैसे उत्पन्न हो जाती है? कोई कारण तो होगा, अकारण तो इस दुनिया में कुछ होता नहीं। पृथ्वी तक सूरज का चक्कर 365 दिन में अकारण नहीं लगाती। चाँद तक अकारण पृथ्वी की परिक्रमा चौबीस घंटे में पूरी नहीं करता। चींटियाँ तक मिलकर अकारण कुछ खींचकर, उठाकर अपने बिल में नहीं ले जातीं! तो क्या इस भक्ति का कारण केवल गणेशजी का आशीर्वाद प्राप्त करना ही हो सकता है? याद रखिए यह भक्ति साधारण नहीं, 6 करोड़ रुपये इसमें इनवाल्व है। भक्त असाधारण है। ये गणेश भी असाधारण है। हर भक्त की इच्छा रहती है कि इनके दर्शन कम से कम एक बार अवश्य पास या दूर से प्राप्त करे। अब तो भक्त दगड़ूशेठ गणपति से अधिक उनके मुकुट के दर्शन में इंटेरेस्टेड होंगे।

सवाल यह है कि श्रद्धा के नाम पर खर्च करने के लिए 6 करोड़ रुपये किसी के पास आ कहाँ से जाते हैं? ऐसा तगड़ी भक्ति जिस सेठ में पाई है, उनके पास कम से कम 500 करोड़ पाए जाते होंगे। इतने बड़े करोड़पति में भी ऐसा भक्ति-भाव पाया जाता है, यह हृदय को विगलित-विजडि़त कर देने वाली घटना है। मेरी भक्त-पत्नी तो किसी भी मंदिर में 10 रुपये से ज्यादा नहीं चढ़ाती। हद से हद नारियल और हार-फूल पर भी वह कुछ अतिरिक्त खर्च कर देती है। इससे अधिक कुछ नहीं। इससे अधिक श्रद्धा उसमें है नहीं, जबकि वह काफी श्रद्धालु है। अभी जन्माष्टमी पर वह इतनी उत्साहित थी कि जैसे उसके बेटे या पोते का जन्मदिन हो। इस मंगलवार को ही उसने पाँच दिन बाद गणेशजी को पानी से भरी एक बड़े से पतीले में सम्मानपूर्वक बैठाकर रवाना किया है। रोज इन्हें उसने पकवान खिलाए हैं। इनके लिए रोज थोड़ा-थोड़ा मीठा बनाया है। गणेशजी के मजे हुए या नहीं मगर मेरे तो हो गए! मैं दगड़ूशेठ गणपति के दर्शन करने पुणे जाता तो इस सुख से वंचित हो जाता!

दगड़ूशेठ गणपति के ओ अप्रतिम भक्त, तू अगर इतना ही उदार हृदय है तो भाई एक शानदार स्कूल ही साधारण गरीब बच्चों के लिए खुलवा देता, जिसमें मुफ्त शिक्षा दी जाती। दगड़ूशेठ गणपति से मेरी इतनी तो पटती ही है कि मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि वह इस पर कतई  नाराज नहीं होते। लेकिन सेठ, तुम स्कूल -कॉलेज या विश्वविद्यालय खुलवाओगे तो वहाँ  एक के हजार बनाओगे। फिर किसी एक साल में वे छह करोड़ दगडूशेठ के गणपति को समर्पित कर आओगे। गोपनीय दान कर दोगे। गोपनीय दान तो राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के प्रवर्तक, पालक, संचालक गणेश के खजांची को समर्पित कर आते, तो तुम्हारे 6 सौ करोड़ के काम बन जाते। उनसे बड़ा गणपति आज कहाँ और कौन है इस भारत भू पर?

अरे इन गणपति को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके सिर पर मुकुट है या नहीं। और मुकुट अगर है तो कहीं छह करोड़ से कम का तो नहीं है? उन्होंने कभी नहीं कहा होगा कि मुझे 6 करोड़ का ही मुकुट चाहिए। उनकी मूर्ति के साथ जो मुकुट उन्हें मिलता है, उसी से उन्हें संतोष होगा बल्कि गर्मियों में यह परेशानी का कारण बन जाता होगा।

दगड़ूशेठ गणपति के भक्त, यह उनके सिर का मुकुट नहीं, तुम्हारा निर्दयता का असली प्रमाणपत्र  है। यही भक्त किसी सार्वजनिक काम के लिए अगर और मेरा जोर अगर पर है, सौ रुपये भी खर्च करेगा तो खीसे निपोर कर फोटो जरूर खिंचवाएगा। अखबार में उसे मुफ्त छपवाएगा। अखबार वाले मुफ्त नहीं छापेंगे तो दस लाख का फुल पेज विज्ञापन देकर अंग्रेजी अखबार में छपवाएगा। हो सके तो किसी राष्ट्रीय कहे जाने वाले टीवी चैनल पर अपने कीर्तिगाथा दिखवाएगा।  लेकिन यही सेठ गणेशजी को रत्न जडि़त सोने का मुकुट चढ़ाएगा तो गोपनीयता को प्राप्त होना चाहेगा। इसका नाम गुप्त था, गुप्त है और गुप्त रहने वाला है। सरकार से इस सेठ- भक्त की काफी तगड़ी सेटिंग होगी, जिसके सामने गुप्त कुछ भी नहीं रहता। सब प्रकट रहता है। हाँ, सरकार चाहे तो जनता से यह अप्रकट रह सकता है। छापामुक्त रह सकता है मगर इसकी एक निश्चित कीमत है। कीमत दो और गोपनीयता का सामान उठाकर आराम से घर ले जाओ। वैसे भी दगडूशेठ के गणपति से कौन सी सरकार दुश्मनी मोल लेना चाहेगी? वे नाराज हो गए तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी। लेकिन दिल्ली दंगों में तमाम बेगुनाहों को थोक के भाव फँसा दिया जाएगा और अपराधियों को साफ बचा लिया जाएगा। दिल्ली पुलिस को आदेश होगा कि ऐसा ही करना है। यही ‘सांप्रदायिक सद्भाव’ के हित में है। तेलुगु कवि वरवर राव को एक झूठे केस में फँसाकर मुश्किल से जमानत देने दी जाएगी मगर स्टेन्स स्वामी की तो जान ले ही ली जाएगी। इससे दगडूशेठ के उस भक्त को कोई दुख, कोई रंज नहीं होगा। उसे इन सब पचड़ों में पडऩे की फुर्सत भी न होगी, पता होगा, तो भी पता न होगा, जैसा होगा। उसका दिल अव्वल तो होगा नहीं और होगा तो इन बातों से दुखने के लिए फ्री न होगा। उसका दिल तो 6 करोड़ के मुकुट में समाहित है। उसका दिमाग तो सरकारी पार्टी को दिए गए गोपनीय चंदे में समाहित है।

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